यह अभिनव आयोजन हरियाणा के जींद शहर में होना तय है .इसके पहले सोनपुर के प्रसिद्ध पशु मेले में भी ऐसे आयोजन को जनता का भरपूर समर्थन मिला था ...माडल्स का कैटवाक तो फैशन की दुनिया का एक जानामाना आयोजन है -बिल्लौरी आँखों के चुम्बक और मदमाती "फेलायिन " चाल से लोगों के कलेजों पर बिजलियाँ गिरातीं माड्लें...निश्चित ही नए आयोजन की प्रेरणा स्रोत भी यही माड्लें ही हैं ..वैसे भैंसों की तुलना भी बेहतर सेक्स से चोरी छुपे और दबी जुबान में पुरुष जन करते ही रहते हैं ....अब यह आयोजन एक दमित इच्छा का उत्सवी प्रगटीकरण ही लगता है ...
सौन्दर्य की नयी श्यामा :) कैसी लगी ?
सौन्दर्य के इन नयी कृष्णा -माडलों के लिए अलग ढंग और डिजाईन के रैम्प बनाए जा रहे हैं....और आयोजन के पहले चयन की स्पर्धा में बेशर्म भैंसों को ही चयनित किया गया है और शर्मीलियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है -आयोजक बिलकुल वही मोड्यूल अपना रहे हैं जो माडलों के कैटवाक का है ...बेशर्म इसलिए कि हजार जोड़ी घूरती गृद्ध दृष्टियाँ कहीं भैंसों को भी नर्वस न बना दें ....इसलिए शर्मीली पहले से ही बाहर कर दी गयीं -यहाँ तो भीड़ के सामने उद्धत और बेपरवाह ,बिंदास या बम्बास्ट ही बने रहना पड़ता है ..शर्मीली बिचारियों के लिजलिज संस्कार उनके आड़े जो आ जाते हैं ...सो वे कहीं आयोजन के रंग में भंग न डाल दें इसलिए जजों की पारखी दृष्टि ने उन्हें पहले ही पहचान कर घर का रास्ता दिखा दिया है ....
अगर हम माडलों के कैट वाक् के अल्पकालीन इतिहास पर गौर करें तो इसकी शुरुआत फैशन डिजाईनरों ने अपनी दुकान चलाने को किया था -हाँ इससे माडलों को और भी मौके मिले और विश्व सुन्दरियों तक का चयन भी ऐसे ही आयोजनों से मूर्त रूप लेने लगा -प्रयोगधर्मियों ने बाद में गृहणियों को भी रैम्प पर रम पम कराने की मुहिम चलाई और यह कतई असंगत नहीं कि अब रैम्प पर सौन्दर्य की नयी कृष्णाओं की धमक होने को है ...कैटवाक पर निश्चित ही पुरुष माडल सफल नहीं हुए और यही कारण है कि भैसे इस प्रतियोगिता से अभी भी बाहर हैं -युगल कैटवाक का भी यहाँ सवाल नहीं है क्योकि कहीं यम दूत और दूतियाँ रैम्प पर कैटवाक करते करते सहसा कुछ और अप्रत्याशित गुल न खिला दें -यह एक बड़ा रिस्क है!आयोजक यह रिस्क लेने को तैयार नहीं हैं खास तौर पर इस बासंती मदमाते मौसम में!
वैसे हरियाणा सरकार का जाहिरा तौर पर यह दावा है कि पूरा आयोजन मुर्रा भैंसों की नस्ल को जनप्रिय बनाए जाने का है -जो अधिक दूध देती हैं .और हरियाणा में इन्हें पालने वालों को समाज में ऊँची नज़रों से देखा जाता है -जितनी मुर्रा भैंसे दरवाजे पर उतनी ही बड़ी हैसियत और रुतबा -अब इसके बारे में डॉ .दराल साहब और दीगर हरियाणवीं ब्लॉगर बन्धु ज्यादा जानकारी दे सकते हैं ....
चलिए, इसी बहाने भैंसों को महत्त्व तो मिला. वरना हमेशा से गायों से अधिक दूध देने के बावजूद भी ना जाने क्यों गायों की अपेक्षा इन्हें कम महत्त्व मिलता रहा है. शायद इसलिए कि सनातन हिन्दू धर्म में गाय अधिक पूज्य मानी गयी है. या शायद इसलिए कि गाय खूबसूरत ज्यादा होती हैं :)
जवाब देंहटाएं@मुक्ति, गायें सुन्दर होती हैं और शायद इसलिए मरखनी भी ..क्यों?
जवाब देंहटाएं@पुनश्च :मरखनी गायों की तो चर्चा प्रायः होती है मगर मरखनी भैंसों की नहीं प्रायः बिचारी सीधी साधी तो होती हैं ..जबकि भैंसा तो अदबदाय मरखना होता है ! :)
जवाब देंहटाएंarvind ji
जवाब देंहटाएंanand aa jata hai aapke blog se gujarkar...
@स्मिता -आपका अता पता न पाकर होठों की स्मित चली गयी :)
जवाब देंहटाएंखबर तो हमने भी देखी थी पर सरसरी तौर से , पर
जवाब देंहटाएंआपने इसे ख़तरनाक बना दिया :-)
ये भी हो सकता है की मेरी अक्ल चरने चली गई हो ! वैसे अक्ल के साथ भैंस का रिश्ता यूं ही नहीं जोड़ा जाता, गाय के साथ नहीं :-) :-)
उन भैंस के निर्णायक मंडल में जज क्या कोई सांड है ?
@संतोष ,
जवाब देंहटाएंजजेज में अमूमन सांड ही तो होते हैं और यह लाजिमी है !
गाय पाली है, उनका ममता भरा सौन्दर्य समझ सकते हैं, भैंस के बारे में अनुभव कम है..
जवाब देंहटाएंकाश ! किसी भैंस का भी ब्लॉगर-खाता होता तो वह अपना पक्ष रख पाती,गायों को इसकी ज़रूरत नय है !
जवाब देंहटाएं@है ना संतोष जी ...काश वाश कहने की जरुरत नहीं तनिक दिल से दिल्ली के इर्द गिर्द नज़रें तो फेरिये....:)
जवाब देंहटाएंइसलिए कि हजार जोड़ी घूरती 'गृद्ध' दृष्टियाँ कहीं भैंसों को भी नर्वस न बना दें ....इसलिए शर्मीली पहले से ही बाहर कर दी गयीं -यहाँ तो भीड़ के सामने उद्धत और बेपरवाह ,बिंदास या बम्बास्ट ही बने रहना पड़ता है
जवाब देंहटाएंगिद्ध या गीध (गृध्र )कर लें .आपकी घर वापसी मुबारक .चुनाव निपटा लिए ?
आपकी शैली पर कौन मर न जाए .बेशक खा खाके भैंस हो ना मुहावरा .'अक्ल बड़ी या भैंस' यह भी .वैसे भैंस बड़ी होती है अक्ल से क्योंकि भैंस में कुछ अक्ल भी होती है अक्ल में भैंस नहीं होती .
जवाब देंहटाएंजब कीमत एक एक लाख हो जाएगी तब उनकी चाल तो कैटवाक ही लगेगी ।
जवाब देंहटाएंवैसे भैंस खरीदे हुए एक मुद्दत हो गई , इसलिए मुर्रा भैंसों पर प्रकाश नहीं डाल सकता ।
वैसे दिल्ली की भैंसों पर क्यों नज़र रखे हुए हैं । :)
इसी बहाने बेचारी भैंस के साथ जो भेदभाव होता था शायद कम हो जाये :)
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंकृष्णा तो बड़ी क्यूट है ...... भैंसें और कैटवाक बढ़िया है......
जवाब देंहटाएंबेशर्म चयनित, शर्मीली बाहर।
जवाब देंहटाएंतो क्या अब भैंसों को भी इंसानों की तर्ज पर चुना :)
हो सकता है कि भैंसे ज़्यादा शालीन दिखाई दें...
जवाब देंहटाएंबाद इलेक्शन के
जवाब देंहटाएंउन्हें याद आये
मुर्रा भैसों के कदम
मार्जारी से चलन :)
चाहे उद्धत हो या बिंदास
कि बम्बास्ट भी हों
सबपे स्मूथ है
मिश्रा की कलम :)
आपकी विशेषज्ञता को अली साब ने खूब पकड़ा है,
जवाब देंहटाएंआप खूब खुश हो लें,दर-असल उन्होंने रगड़ा है !
@स्मूथ सतह पर भला कौन रगड़ना न चाहेगा!
जवाब देंहटाएंआज ही पेपर में एड देखा । ऐसा लगता है , मुर्राह भैंसें दूध ज्यादा देती हैं । मॉडल तो बन ही गई ।
जवाब देंहटाएंपोस्ट का शीर्षक बहुत आकर्षक है ...भैंसों के दिन भी फिर गए हैं ... उन पर पोस्ट लिखी जा रही है ... रोचक प्रस्तुति और अच्छी जानकारी भरी पोस्ट
जवाब देंहटाएंकैटवाक जबर्दस्त ....
जवाब देंहटाएंचलिये इसी बहाने कुछ पढे लिखे लोगों को हिन्दुत्व पर चुटकी लेने का मौका भी मिल गया :)।
आज जिस तरह से भैंसों को काट कर खाया जा रहा है निकट भविष्य मे दूध मिलना भी दूभर हो जाएगा।
कभी घर के सामने हाथी झूलना स्टेटस सिंबल होता था तो अब मुर्रा भैंसें :)
जवाब देंहटाएंअपन तो फागुन से पहले, इस कैटवॉक वाली पोस्ट से कुछ शब्द सहेजने में लगे हैं...
जवाब देंहटाएंभैंस मुर्रा
गाय मरखनी
मार्जारी बम्पास्ट
स्मूथ सतह
रगड़ने की चाह
..इसी में मुक्ति का मार्ग तलाशना है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
कल शाम से नेट की समस्या से जूझ रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। अब नेट चला है तो आपके ब्लॉग पर पहुँचा हूँ!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत सुन्दर ,
जवाब देंहटाएंसादर
सार्थक समीचीन सृजन रोचक भी ,आदमी से जानवरों की पहचान होती रही है ,जमाना बदल गया है जानवरों से आदमी की पहचान हो एक प्रगतिशीलता का सोपान होगा,वर्ना तो हम इंशान होने जा रहे थे ....बधाईयाँ जी सुन्दर जानकारी व रोचक लेखन के लिए .../
जवाब देंहटाएंkya khoobsurat lag rahee hai bhaisiyaa!!!
जवाब देंहटाएंपहली बार भैंसों पे पोस्ट पढ़ी ..रोचक
जवाब देंहटाएंmurra bhais????
जवाब देंहटाएंeg said:
जवाब देंहटाएं:)
आनन्द आ गया। आप ने 'राजमहिषी' की मीमांसा छोड़ दी। निराशा हुई। ;)
फेसबुक पर इस पोस्ट का लिंक देखा. न्यूज तो पढ़ी थी, विस्तृत रिपोर्ट इस पोस्ट से मिल गई.
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