वह प्रथम मिलन: संध्या -अरविन्द!
देखते देखते दस बीस नहीं बत्तीस वर्ष बीत गए ....गनीमत यही कि खुदा के फज़ल से अभी बत्तीसी सलामत है..१८ फरवरी १९८१ की उस गुनगुनी शाम और गुलाबी निशा की यादें आज भी तरोताजा हैं, हाँ बारीक डिटेल्स यानी कोहबर और सोहबत की बातें जरुर विस्मृत हुई हैं ....यह पूरी तरह से एक अरेंज्ड मैरेज थी .....पिता पितामह चाचा आदि श्रेष्ठ जनों ने जो आज्ञां दी सर माथे ले ली थी ....उसके पहले के एकाध क्रश और क्रैश का गला घोटकर :) ...मैंने विवाह पूर्व के कतिपय कैजुअल रागात्मक सम्बन्धों के दरम्यान यह बात बहुत साफ़ करके रखी थी कि विवाह का स्वतंत्र निर्णय मैं नहीं ले पाऊंगा ..यद्यपि दूसरों को इसके लिए प्रोत्साहित करता था और अपने एक मित्र की कोर्ट मैरेज में मैंने भी बखूबी उत्प्रेरण का दायित्व निभाया था......
परिणय के साक्षी मित्रगण
मगर खुद अपने बारे में ऐसा निर्णय इस लिए नहीं ले पा रहा था कि परिवार में कुछ वर्षों पहले ही बिना पारिवारिक सम्मति के एक इंटर रेलिजन विवाह हो चुका था और परिवार के कई सदस्य इससे संतप्त थे -ख़ास कर मेरे पितामह जिन्हें मैं बेहद चाहता था ..फिर दुबारा कम से कम उन्हें दुखी करना नहीं चाहता था..उन्हें अपनी खोयी साध पोते की शादी में पूरी करनी थी सो उन्हें मैं इसका पूरा अवसर उन्हें देना चाहता था ..यह उनका हक़ था ....और किन तरीकों से पितामह ऋण से उरिण हुआ जा सकता है ... साथ ही एक पूर्व पारिवारिक घटना के संघात की भरपाई भी करना मेरा जैसे मकसद सा था -जैसे त्याग का एक जनून सा तारी हो गया था मुझ पर ..और इसलिए मां बाप नियोजित इस विवाह प्रस्ताव को शिरोधार्य कर लिया था मैंने ...
....पितामह और परिजनों ने सचमुच अपनी साध पूरी की और पूरी सज धज के साथ बारात निकली थी ..बरात में दो दो रियासतों के राजा -राजा जौनपुर और राजा सिंगारामउ गए थे जो की एक विरल घटना मानी गयी थी -कारण कि रियासतों के वैमनस्य के कारण वे कभी साथ साथ नहीं होते थे ....मित्रगण इसे एक सामंतवादी नजरिये का नाम देगें और शायद उनकी यह सोच सही भी है ..मैं भी उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र था और बहुत सी बातें मुझे भी नागवार लगती थी मगर मैं तो त्याग की प्रतिमूर्ति बना बैठा था न ....सो चुप ही रहा हर समय...
मगर मुझे आज भी लगता है कि बिना कोर्टशिप के विवाह कैसा? गनीमत यही थी कि प्रचलित रस्म के मुताबिक़ मेरा गौना(वधू की विदाई ) लगभग एक वर्ष बाद होना था सो मैंने एक जिम्मेवार पति के दायित्व को बखूबी निभाया ...उन दिनों गौने के पहले ससुराल आना जाना एक टैब्बू था सो मैंने पत्राचार का रास्ता निकाला..हर रोज श्रीमती जी को एक पत्र लिखने लगा ..और निरंतर यह अनुरोध कि वे भी मुझे निरंतर पत्र लिखें ...आखिर शुरुआती संकोच के बाद उनके पत्र लेखन का सिलसिला नियमित हो चला था औंर गौने के दिन आते आते एक दूसरे के प्रति हमारे अपरिचय का फासला मिट चुका था ..प्राणी शास्त्र /व्यवहार विज्ञान के अध्ययन ने मुझे मनुष्य की मूलभूत जैवीय आवश्यकताओं के बारे में काफी कुछ समझा रखा था और एक बात जो जेहन में बराबर घूमती रहती थी वह यह थी कि मनुष्य के मामले में कोर्टशिप अवधि अमूमन एक वर्ष की होती है ....मतलब हमारे बीच यह अवधि सफलतापूर्वक बीत गयी थी भले ही गहन पत्राचार के जरिये ही ...और प्रत्यक्षे किम प्रमाणं? आज ३२ वर्ष बीत गए हैं और हमारे बीच की सहमति सामंजस्य के प्रति जन परिजन भी प्रायः ईर्ष्यालु हो उठते हैं ....
आज कुछ घंटों पहले का एनीवर्सरी फोटो
हम तब तक जिम्मेदारियों के बोझ का साझा निर्वहन भलीभांति नहीं कर सकते हैं जबतक जोड़ बंध मजबूत न हों और वे कैसे मजबूत हो सकते हैं मुझे लगता है कि उसे एक प्राणिविद से बेहतर शायद ही कोई समझ सकता हो .... :) भले ही हमारे अली भाई अपने समाजविज्ञान की अपनी विद्वता बघारें और सुश्री प्रिय आराधना चतुर्वेदी अपना पांडित्य ..जैवीयता के बंध गहरे होते हैं यह मैं आपसे पूरी ईमानदारी के साथ शेयर करना चाहता हूँ -यह बेसिक/आधारशिला है और बाद में समाज विज्ञान और मनुजता की दीगर विशिष्टताएं भी आ जुड़ती हैं ....आज हम मिया बीबी, हमारे बच्चे एक गहरे बंधन से जुड़े हैं और अपने जीवन से सर्वथा संतुष्ट और तमाम आपा धापी, विरोधाभास और जीवन की अपरिहार्य ,समस्याओं के बावजूद भी हम एक इकाई हैं .....
आज शाम हम पुष्प प्रदर्शनी देखने गए तो जामियास वू सा लगा !
संध्या धुर आस्तिक हैं तो मैं नास्तिक हूँ ..मगर हाँ मैं एक दूसरे तरीके का नास्तिक हूँ ..मुझे अपनी संस्कृति ,संस्कारों पर गर्व है और ईश्वर के अस्तित्व को लेकर मैं अपने उपनिषदों के नेति नेति की विचारधारा का समर्थक हूँ ...ईश्वर को न तो प्रकल्पित किया जा सकता है और न ही रूपायित ही ....यहाँ मैं इस्लाम में ईश्वर की अवधारणा के करीब हूँ मगर इस्लाम के परवर्ती विचारों और कूपमंडूकता से मुझे सख्त नफरत है, उसी तरह से जैसे हिन्दू धर्म के पौरोहित्यवाद और पंडावाद का मैं विरोध करता हूँ -मगर क्या करियेगा ..कबीलाई समूहों की प्रवृत्ति हमारे जीनों में रची बसी है और इसलिए अपने को अलग थलग दिखाते रहने की जैवीय प्रतिबद्धता ने हमें हिन्दू मुस्लिम में बाँट के रखा है और यह मनुष्य प्रजाति के खात्में के साथ ही शायद ख़त्म होगा.... अरे अरे यह कैसा लेक्चर देने लगा मैं ..आज तो हमारी परिणय बत्तीसी है ....
आप महानुभावों की शुभकामनाओं,आशीर्वाद और कुछ प्रियजनों की मीठी ईर्ष्या की भी दरकार है आज तो, ...और आप सभी हम दोनों को इनसे धन्य और परिपूर्ण करेगें ऐसी आशा है ......
आप दोनों को वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें मिश्र जी ।
जवाब देंहटाएं३२ साल पहले का हाल पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।
कभी उन प्रेम पत्रों को आज पढ़कर देखिएगा , और भी आनंद आएगा । :)
वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो ये कि आप बड़े हैंडसम लग रहे हैं विवाह के चित्र में, जबकि आमतौर पर लोग समय के साथ हैंडसम होते हैं और शादी के फोटो में लल्लू लगते हैं :)
जवाब देंहटाएंहमारे क्षेत्र में 'गौने' की परम्परा मुझे बहुत अच्छी लगती है. ये निश्चित ही 'कोर्टशिप' की कमी को पूरा करती है. आप उस समय की बात कर रहे हैं. हमारे यहाँ आज भी शादी से पहले लड़का-लड़की एक दूसरे से नहीं मिलते, अपनी मर्जी से शादी करना, तो बड़ी बात है.
और तीसरी बात मैंने कभी 'जैवीयता' के महत्त्व को नकारा नहीं, बस इतना कहती हूँ कि समाजवैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक तत्व किसी मायने में कम नहीं होते. आपकी कहानी में ही वो एक साल की 'कोर्टशिप' सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण रही संबंधों को अधिक परिपक्वता से आरम्भ करने में.
और अंत में वैवाहिक वर्षगाँठ की आपदोनों को हार्दिक शुभकामनाएँ. ये प्यार यूँ ही बना रहे. आमीन !
आप दोनों को वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएं@मुक्ति, काम्प्लिमेंट के लिए शुक्रिया ....हाय लौट के नहीं आता गुज़ारा हुआ जमाना ..काश!
जवाब देंहटाएं@दराल साहब, यह ख़याल मेरे मन में भी कई बार आया है ..आप तो बड़े अनुभवी हैं ! :)
जवाब देंहटाएंपंडित जी! कमाल की (अ)समानता है हमारे बीच.. हमने २३ और आपने ३२... हमारी १८ जनवरी आपकी फरवरी...
जवाब देंहटाएंबहारहाल हमारी ओर से भी आपके सुखद विवाह वार्षिकी की मंगलकामनाएं..
ये एनिवर्सरी के अवसर पर भी आप किसी समारोह का बैज सीने पर धारण किये हैं, यह बात कुछ समझ नहीं आई..
श्वेत-श्याम छवि के मध्य आपकी सतरंगी यादों का फ्लैश-बैक.. शानदार!! पुनः बधाई और शुभकामनाएं!!
@सलिल जी आभार -यह बैज क्वालिटी एश्योरेंस का है ! :)
जवाब देंहटाएंदराल साहब ने जिन पत्रों का हवाला दिया है और आपने भी संस्मरण में जिनका ज़िक्र किया है वे पढ़ाये जाते तो कोई बात होती :)
जवाब देंहटाएंदेखिये , गौने के दरम्यान आपने टैबू को तोड़ कर जो कोर्टशिप की है वही सामाजिकता है और हम तो केवल उसी का खुलासा चाहते हैं ! बाकी जैविकता और जैवीय आवश्यकताओं तद्जनित जैविक व्यवहार की गोपनीयता पर खुलासे की हमारी कोई डिमांड नहीं है :)
और श्रीमान जी आप स्वयं को एकाध क्रश का प्रमाणपत्र देकर दोस्तों को भ्रमित क्यों कर रहे हैं !एकाध पर तो कोई चीज़ आसानी से क्रेश नहीं होती ,सामान्यतः क्रेश के लिए एकाधिक को ही जिम्मेदार माना जाता है :)
आप दोनों को बहुत बहुत शुभकामनाएं !
बधाई एवं शुभकामनाये |
जवाब देंहटाएंबस हर क्षण भय यह होता है कि किसी क्षण उन्हें 'डेजा वू' न लगने लगे |
बधाई जी।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंशादी की सालगिरह की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं....मतलब महाराज रंगीन तबियत के थे शुरू से ही और जिद्दी भी !
जवाब देंहटाएंसंध्या जी ने आपके जीवन को उजाले की आस पहले ही दे दी थी, दादा की नाराज़गी भी कुछ समय बाद ख़त्म हो गयी होगी.
पहले आप हैण्डसम तो अब भी कम कातिल नहीं :-)
मेरी तो यही कामना है:
पूरे बत्तीस साल हो गए साथ -साथ,
वही पहले जैसा इश्क तारी रहे अभी !
...मैंने कतिपय प्रामिस्कुअस पूर्व सम्बन्धों के दरम्यान यह बात बहुत साफ़ करके रखी थी कि विवाह का स्वतंत्र निर्णय मैं नहीं ले पाऊंगा
जवाब देंहटाएंpromiscuous
adjective
1.characterized by or involving indiscriminate mingling or association, especially having sexual relations with a number of partners on a casual basis.
परिणय बत्तीसी के अवसर पर यह स्वीकारोक्ति वाकई बहुत कलेजे की बात है। यह आप जैसा मूर्धन्य ही कर सकता है। आश्चर्य है, किसी ने अभी तक इसपर आपको टोका नहीं?
भाभी जी की आस्तिकता का प्रत्यक्ष दर्शन कर चुका हूँ मारकंडेयजी के मदिर में मेरे बेटे के मुंडन कार्यक्रम के दौरान जहाँ आप नहीं गये थे।
जुग-जुग जिए जुगल जोड़ी...
लख-लख बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत बधाई और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं@सिद्धार्थ भाई ,
जवाब देंहटाएंप्रामिस्कुअस सम्बन्धों में कोई जरुरी नहीं कि सेक्स सम्बन्ध अनिवार्यतः हो हीं,
मैंने इनसे पूरा परहेज ही किया ..अब आप मानेगें तो नहीं ...दोस्त भी कैसे कि मौका मिलते ही बेलो
बेल्ट प्रहार से नहीं चूकते! :)
32 साल पर बल्ले बल्ले ☺
जवाब देंहटाएंप्रस्न्नता सदा आपके साथ रहे.
@सिद्धार्थ भाई ,टोकेगा कौन? टोके वह जो अपने गिरेबां में पहले झाँक ले!
जवाब देंहटाएंआप दोनों को वैवाहिक वर्षगांठ की बधाई! 32 साल पहले के इस विवाह सम्बन्ध की पृष्ठभूमि, परिस्थितियाँ और पितामह के ऋण से उऋण होने की भावना, आपसी वैमनस्य भूलकर दो राजाओं की उपस्थिति, और गौने तक के एक वर्ष का इंतज़ार - परिणय बत्तीसी पर यह सब याद करके मुस्कराना - आप दोनों को असीम शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंआपको ढेरों शुभकामनायें, विवाह एक विशेष बन्धन है और बहुत संवेदनाओं से निभाना भी होता है..अब पचासे की प्रतीक्षा है...
जवाब देंहटाएंआपको ढेरों शुभकामनायें , हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंवैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंपरिणय बत्तीसा मुबारक .खुश रहो आबाद रहो एक इकाई बनके ,दस की धाईं बनके ...मुबारक .जैविक सम्बन्धों के फलस्वरूप उपजा प्रेमाकर्षण अपेक्षाकृत स्थाई होता है .संस्कार गत ,संस्कारजन्य प्रेम का स्वरूप निराला होता है .कृपया 'मुखे 'को मुझे कर लें .
जवाब देंहटाएंवैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंवैवाहिक वर्षगाठ पर हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंपरिणय बत्तीसी की यह अंतर्कथा .. बेहद रूमानी
बहुत बधाई जी।
जवाब देंहटाएंपरम्परा बद्ध अनुबंधित शादी में स्पर्श जन्य पुलक और आकर्षण बनता है संसर्ग बनता है दाम्पत्य प्रेम की आंच का चिर -स्थाई आधार .बाकी रोमांटिक लव तो होता रहता है कभी बौद्धिक आकर्षण तो कभी भौतिक आकर्षण इसका आधार बनता है .वायवीय प्रेम कई मर्तबा एक तरफ़ा भी होता है जो फेंटेसी ज्यादा होता है .परछाइयों के पीछे आदमी भागता रहता है .परछाइयां हाथ नहीं आती .इसीलिए अप्राप्य के प्रति आकर्षण और अनुराग बना रहता है ताउम्र भी कभी कभार .
जवाब देंहटाएंआप दोनों को वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआप इस सात्विक पर्व पर एक गलत शब्द प्रयोग कर गए हैं .हर शब्द का अपना संस्कार और बिम्ब होता है 'प्रमिस्क्युअस 'अनेक व्यक्तियों के साथ यौन -सम्बन्ध रखने वाला व्यभिचारी कहलाता है .promiscuity व्यभिचार कहलाती है .कभी कभार ऐसी गलती तब हो जाती है जब विचारों की भीड़ से कुछ छंटनी करनी होती है .आपका निश्चय ही वह आशय नहीं है जो आप लिख गएँ हैं वह अपूर्ण वाक्य प्रयोग ही कहलायेगा जिसका आशय चयनित शब्दों से मेल नहीं खाता .
जवाब देंहटाएं@वीरू भाई,
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी ने भी यह इन्गिति की थी,दरअसल जो अर्थ मैं लेता रहा हूँ अपने संदर्भ में उसके अंतर्गत
प्रामिस्क्युइटी माने अविवेकपूर्ण,कैजुअल सम्बन्ध हैं जो गाहे बगाहे बिना गंभीरता से लोगों से हो सकते हैं ...ऐसे संदर्भों में
अनिवार्यतः शारीरिक सबंध सम्मिलित नहीं भी हो सकता ..मगर चूंकि जैसा कि आपने भी इस पर आपत्ति की है अतः इसेद संपादित कर रहा हूँ ,आभार!
@veerubhai
जवाब देंहटाएं:)
बत्तीसी तो अभी भी कायम है डॉक्टर साहब.... मतलब यह कि आपका सुरक्षा चक्र कायम है :)
जवाब देंहटाएंबधाई जी!
जवाब देंहटाएंsinghasan batteesi bhee qaayam hai ya nahee.....
जवाब देंहटाएं'इसेद' संपादित कर रहा हूँ ,आभार!अरविन्द भाई शुक्रिया .'इसेद' को इसे कर लें .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाइयाँ - आपको भी और संध्या भाभी जी को भी :)आप दोनों को शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंकई बिन्दुओं को सतर्कता से समेटा गया है पर वे अपनी कहानी खुद बयाँ कर रहे हैं.. हार्दिक बधाई...शुभकामनाएँ भी .
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंवही... प्रणाम, बधाई और शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंआप दोनों के बीच की सहमति - सामंजस्य प्रशंसनीय भी है और अनुकरणीय भी. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएं