हैपी बर्थडे टू यू डेजी! आज (२ फरवरी,2015) तुम्हारा पन्द्रहवां साल पूरा हुआ। पंद्रह मोमबत्तियों की सलामी स्वीकार करो।बच्चों ने आफत की इस गुड़िया को सन 2000 में माह अप्रैल में वाराणसी के मैदागिन स्थित डाक्टर यादव के डॉग क्लीनिक से लिया था तो हेल्थ कार्ड पर नाम डेजी और जन्म 2 फरवरी 2000 अंकित था। मतलब आज पन्द्रहवां साल पूरा हुआ और चिर यौवना डेजी का सोलहवां साल शुरू हो रहा है। बेटे बेटी कौस्तुभ और प्रियेषा समय के साथ दूरस्थ हो गए मगर डेजी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी। तीन तीन ट्रांसफर इसने भी झेला। दो बार मरणासन्न हुईं फिर आश्चर्यजनक तरीके से संभल गयीं जैसे पुनर्जन्म हो गया हो। कहते हैं मनुष्य का दस वर्ष और श्वानवर्ग का एक वर्ष बराबर होता है। इस तरह से आज तो डेजी जीवन के एक सौ इकसठवें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं -स्टैंडिंग ओवेशन!
मैंने डेजी को चिर यौवना इसलिए कहा कि आज भी इनकी ऊर्जा में कोई बदलाव नहीं है। अपने नर समवयियों पर ये आज भी तेजी से झपटती हैं। कानों से सुनना भले कम हो गया हो मगर आँखें तेज हो चली हैं। कौस्तुभ कहते हैं कि पापा इसे मोतियाबिंद हो गया है पर मुझे तो नहीं लगता , ऑफिस से मेरे घर आने पर आज भी इनका तेजी से गोल गोल घूमना और छलांग लगा लगा कर मुंह चूमने का उपक्रम बदस्तूर कायम है. मगर हैं ये दुलारी अपनी मालकिन की ही -मतलब मालिक मालकिन सब कुछ श्रीमती जी को ही मानती हैं -कहें तो फिक्जेटेड हैं पूरी तरह उन्ही पर। उनके बिना एक पल भी रहना इन्हे गंवारा नहीं। इसलिए अब ये एक बड़ी लायबिलिटी बन गयी हैं -हम दोनों को बस से भी यात्रा मंजूर है मगर इन्हे गाड़ी चाहिए। सही है मनुष्य अपनी किस्मत लेकर भले न पैदा होते हों यह प्रजाति तो निश्चित ही किस्मत लेकर अवतरित होती है। जीना मुहाल है अब हम दोनों का -पिछले 15 वर्षों से हम साथ साथ दूर कहीं घूमने नहीं जा पाये तो इन्ही की बदौलत।
पाम -स्पिट्ज (Pomeranian -Spitz) प्रजाति का औसत जीवनकाल अन्य श्वान नस्लों की तरह यही 12 -14 वर्ष ही होता है। विश्व रिकार्ड 19 वर्ष है। कहीं डेजी के इरादे तबतक तो हमारी छाती पर मूंग दलते रहने की तो नहीं? मौजूदा फिटनेस देखकर तो यही लगता है. आज तो इनका जन्मदिन है शुभ शुभ ही बोलना है। कभी कभी लगता है डेजी को यह लगता है जैसे इन्होने हम सभी को पाला है। और चाहती हैं कि सबकी दादी बनी रहें -हमारी भी और आने नाती पोतों की भी।
पहले यह भी लगता था कि घर आने वाले हर आगंतुक को ये समझती थीं कि इनसे ही मिलने आया है। हाथ जोड़ सलाम करती थीं। मगर कुछ समय से स्वभाव बदल गया है-अब आगंतुक का आना पसंद नहीं - किसी की मेहमान नवाजी तो बिल्कुल नहीं -शिष्टाचारवश सामने तो कुछ नहीं बोलतीं मगर मेहमान के रुके रहने तक एक परदे के पीछे जाकर मद्धिम स्वर में गुरगुराती रहती हैं।
इनकी प्रजाति अंतःवासी अर्थात घर के भीतर निवास वाली है। और लाइव अलार्म का काम करती है। घर के अहाते में किसी के भी घुसते ही यह अलार्म चालू हो जाता है। अलर्ट काल! बच्चों से इन्हे चिढ है -उनका सामीप्य बिल्कुल पसंद नहीं। आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करने वाली डेजी को कुत्तों से सख्त नफरत है। साहचर्य की पक्की विरोधी। और परिवार के जाने पहचाने सदस्यों के अलावा इन्हे किसी के भी द्वारा ज्यादा स्नेह प्रदर्शन और घनिष्टता पसंद नहीं है। सर पर तो किसी और का हाथ बिल्कुल ही कबूल नहीं! लोगों को सावधान करना पड़ता है -क्योंकि इनकी क्यूटनेस से लोग बाग़ खुद को रोक नहीं पाते और हाथ बढ़ा देते हैं। अब चूँकि इनका हर वर्ष माह अप्रैल में इम्यूनाइजेशन हो जाता है इसलिए कोई डर नहीं।
विश्वास तो बस अपनी मालकिन पर ही है, शायद मुझ पर भी नहीं। और डरती हैं तो केवल बेटे कौस्तुभ से -उसके एक इशारे पर बोलती बंद -पता नहीं उसने क्या जादू किया था। बच्चों से छठे छमासे ही मुलाकात है मगर एकदम से पहचान कर उछल कूद शुरू हो जाती है।प्रियेषा के साथ इनकी खूब धमाचौकड़ी मचती है। आज तो वे अपने ननिहाल गयीं है मालकिन के मायके -हम सभी दूर से ही नमस्कार और बधाईयाँ दे रहे हैं।
हम सब के साथ आप भी डेजी को लम्बी आयु का आशीष दें!
इनकी प्रजाति अंतःवासी अर्थात घर के भीतर निवास वाली है। और लाइव अलार्म का काम करती है। घर के अहाते में किसी के भी घुसते ही यह अलार्म चालू हो जाता है। अलर्ट काल! बच्चों से इन्हे चिढ है -उनका सामीप्य बिल्कुल पसंद नहीं। आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करने वाली डेजी को कुत्तों से सख्त नफरत है। साहचर्य की पक्की विरोधी। और परिवार के जाने पहचाने सदस्यों के अलावा इन्हे किसी के भी द्वारा ज्यादा स्नेह प्रदर्शन और घनिष्टता पसंद नहीं है। सर पर तो किसी और का हाथ बिल्कुल ही कबूल नहीं! लोगों को सावधान करना पड़ता है -क्योंकि इनकी क्यूटनेस से लोग बाग़ खुद को रोक नहीं पाते और हाथ बढ़ा देते हैं। अब चूँकि इनका हर वर्ष माह अप्रैल में इम्यूनाइजेशन हो जाता है इसलिए कोई डर नहीं।
विश्वास तो बस अपनी मालकिन पर ही है, शायद मुझ पर भी नहीं। और डरती हैं तो केवल बेटे कौस्तुभ से -उसके एक इशारे पर बोलती बंद -पता नहीं उसने क्या जादू किया था। बच्चों से छठे छमासे ही मुलाकात है मगर एकदम से पहचान कर उछल कूद शुरू हो जाती है।प्रियेषा के साथ इनकी खूब धमाचौकड़ी मचती है। आज तो वे अपने ननिहाल गयीं है मालकिन के मायके -हम सभी दूर से ही नमस्कार और बधाईयाँ दे रहे हैं।
हम सब के साथ आप भी डेजी को लम्बी आयु का आशीष दें!