पता नहीं आपमें से कितने लोग खुद जाकर सब्जी मंडी से अपनी जरुरत की सब्जियां खरीदते हैं मगर मेरी तो यह हाबी है ..मैं सब्जी मंडी से खुद सब्जी लाने का कोई अवसर गवाना नहीं चाहता ....जबकि पत्नी जी का मानना है कि इतने सालों बाद भी मुझे खरीददारी का हुनर नहीं आया ...आये दिन ऊंचे दामों में और अक्सर सड़ी गली सब्जियां लेकर चला आता हूँ ..मगर मुझे लगता है उनका बार बार यह कोसना आधारहीन है और मेरी क्षमताओं का सही आकलन नहीं है ....या वे खुद जाकर ही सब्जी खरीदना चाहती हैं ....कारण यह कि मैं सब्जियों की खरीददारी कैसे करूँ यह उनके द्वारा बार बार समझाए जाने पर उनके अनुसार समझ नहीं पाया हूँ ...उनके मुताबिक़ सबसे पहले पूरी सब्जी मंडी के हर ठेले पर जा कर उनकी क्वालिटी और दाम का सर्वे करना चाहिए ....जब यह श्रमसाध्य कार्य पूरा हो जाय तब जाकर ही कुछ चयनित ठेलों से मोल तोल करके सब्जी खरीदनी चाहिए ..
मैं समझता हूँ कि इतना लम्बा सर्वे करनी की कोई जरुरत नहीं है -कारण कि सब्जियों की गुणवत्ता को देखते ही पहचान जाने का कुछ नैसर्गिक सहज बोध लोगों में होता ही है -मैं देखकर समझ जाता हूँ कि अमुक फल या सब्जी ठीक है या नहीं ...यह कुछ मेरे अभिभावकों द्वारा भी बताया समझाया गया है -अब इतना अनाड़ी भी नहीं हूँ मैं ... एकदम से धूप में बाल सफ़ेद नहीं किये हैं ....दूसरे अर्थशास्त्र का सिद्धांत है कि बाजार खुद ही जिंस/सब्जियों का दाम निर्धारित कर देता है ....अब थोड़ी पूछ ताछ तो चलती है मगर मोल चाल के नाम पर दूकानदार की फजीहत करना कहाँ तक उचित है?
हाँ कुछ खरीददार लोगों से भी अहैतुक मदद मिल ही जाती है ..अभी कल ही तो मैं लकदावे(दाल का एक व्यंजन ) के लिए अरुई के पत्तियों की ढेरी खरीद रहा था ....अब कोई पत्तियों की ढेरी में एकाध खराब पत्ती डाल दे आखिर उसका पता कैसे चलेगा? लेकिन शुक्रगुजार हूँ एक उन कुशल गृहिणी का जिन्होंने बिना मदद की गुहार के खुद उन पत्तियों में से खराब पत्तियों को अलग कर दुकानदार को डांट भी लगायी -यह है मानवता की मदद! बिना कहे, बिना प्रत्याशा ...यह सुकृत्य करके वे फिर अपनी खरीददारी में लग गयीं और मेरी ओर देखा तक नहीं कि मैं उनके इस औदार्य के लिए आभार भी व्यक्त कर सकूं ...इसी तरह एक दिन मुझे बाजार में अभी अभी आये बंडे की एक किस्म की खरीदारी के बारे में एक अन्य गृहिणी ने काम की बातें बतायीं जो सचमुच मैं नहीं जानता था ...पत्नी को भी नहीं पता था ...अब ऐसे एक्सपर्ट सुझाव मुफ्त में ही मंडी में मिल जाएँ तो फिर पत्नी को इस काम के लिए जाने की क्या जरुरत है ...
पत्नी को कथित सड़ी गली सब्जी तो मंजूर है मगर इस बात से वे खफा हैं कि मैं सब्जी मंडी में यथोक्त अहैतुक मदद ले ही क्यों रहा हूँ ..अब लीजिये इसमें भी नुक्स!लगता है दाम्पत्य जीवन की समरसता के लिए अब अपनी एक अच्छी खासी हाबी की बलि देनी ही पड़ेगी .....जाएँ वे खुद ही सब्जी खरीदें ..मुझे क्या?