बुधवार, 5 दिसंबर 2012

अखंड प्रेम का एक खंडित प्रतीक - लोरिक पत्थर( सोनभद्र -एक पुनरान्वेषण यात्रा, 2 )

राबर्ट्सगंज से शक्तिनगर मुख्यमार्ग पर मात्र 6 किमी पर एक विशालकाय दो टुकड़ो में खंडित पत्थर जिस पर वीर लोरिक पत्थर लिखा है यात्रियों  -पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर सहज ही आकर्षित करता है। मुझे भी इसके बारे में जिज्ञासा हुयी . जो कुछ जानकारी मिली आपसे अति संक्षेप में साझा कर रहा हूँ क्योकि इस पत्थर से जुड़ा  आख्यान वस्तुतः हजारो पक्तियों की गाथा लोरिकी है जिसे यहाँ के लोक साहित्यकार डॉ अर्जुन दास केसरी ने अपनी पुरस्कृत कृति लोरिकायन में संग्रहीत किया है . उत्तर प्रदेश में आल्हा के साथ ही लोरिकी एक बहुत महत्वपूर्ण लोकगाथा है .कहते हैं संस्कृत की मशहूर कृति मृच्छ्कटिकम  का प्रेरणास्रोत लोरिकी (लोरिकायन) ही है। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने डिस्कवरी आफ इंडिया में लोरिकी का उल्लेख किया है।पश्चिमी विद्वानों में बेवर ,बरनाफ ,जार्ज ग्रियर्सन आदि ने भी लोरिकी पर काफी कुछ लिखा है।

लोरिक दरअसल एक लोकविश्रुत नायक हैं जो बहुत बलशाली और आम जन के हितैषी के रूप में इस क्षेत्र में विख्यात हैं . उनका जन्म बलिया जनपद के गऊरा गाँव में होना बताया गया है। उनके काल निर्धारण को लेकर बहुत विवाद है -कोई कोई विद्वान् उन्हें ईसा  के पूर्व का बताते हैं तो कुछ उन्हें मध्ययुगीन  मानते हैं . यह भी कहा जाता है लोरिक की वंशावली राजा भोज से मिलती जुलती है। लोरिकायन पवांरो का काव्य माना जाता है और पवारों के वंश में (1167-1106) ही राजा भोज हुए थे। बहरहाल लोरिक जाति  के अहीर (आभीर ) थे जो एक लड़ाकू जाति(आरकियोलोजिकल  सर्वे आफ इंडिया रिपोर्ट  ,खंड आठ ) रही है। 
जनश्रुतियों के नायक लोरिक की कथा से सोनभद्र के ही एक अगोरी(अघोरी?)  किले का गहरा सम्बन्ध है ,यह किला अपने भग्न रूप में आज भी मौजूद तो है मगर है बहुत प्राचीन और इसके प्रामाणिक इतिहास के बारे में कुछ जानकारी नहीं है ,यह भी ईसा पूर्व का है किन्तु दसवीं शती के आस पास  इसका पुनर्निर्माण खरवार और चन्देल राजाओं ने करवाया। अगोरी दुर्ग के  ही नृशंस अत्याचारी   राजा मोलागत से लोरिक का घोर युद्ध हुआ था . कहीं कहीं ऐसी भी जनश्रुति है कि लोरिक को तांत्रिक शक्तियाँ भी सिद्ध थीं और लोरिक ने अघोरी किले पर अपना वर्चस्व कायम किया . अपने समय का तपा हुआ ,अत्यंत क्रूर राजा मोलागत लोरिक द्वारा पराजित हुआ , और इस युद्ध का हेतु एक प्रेम कथा बनी थी -लोरिक और मंजरी (या चंदा? ) की प्रेम कथा।

अगोरी के राजा मोलागत के अधीन ही महरा नाम का अहीर रहता था . महरा की ही आख़िरी सातवीं संतान थी मंजरी जिस पर मोलागत की बुरी नजर पडी थी और वह उसे महल में ले जाने का दबाव डाल  रहा था। इसी दौरान उसके पिता महरा को लोरिक के बारे में जानकारी हुई और मंजरी की शादी लोरिक से तय कर दी गयी . लोरिक को पता था कि बिना मोलागत को पराजित किये वह मंजरी को विदा नहीं करा पायेगा। युद्ध की तैयारी के  साथ बलिया से बारात सोनभद्र के मौजूदा सोन(शोण)  नदी तट  तक आ गयी । राजा मोलागत ने तमाम उपाय किये कि बारात सोन को न पार कर सके ,किन्तु बारात नदी पार  कर अगोरी किले तक जा पहुँची ,भीषण युद्ध और रक्तपात हुआ -इतना खून बहा कि अगोरी से निलकने वाले नाले का नाम ही रुधिरा नाला पड़ गया और आज भी इसी नाम से जाना जाता है ,पास ही नर मुंडों का ढेर लग गया -आज भी नरगडवा नामक   पहाड़ इस जनश्रुति को जीवंत बनाता खडा है .कहीं  शोण (कालांतर का नामकरण सोन ) का नामकरण भी तो उसके इस युद्ध से रक्तिम हो जाने से तो नहीं हुआ? 
अघोरी किले का एक मौजूदा दृश्य 

मोलागत और उसकी सारी सेना और उसका अपार बलशाली इनराव्त हाथी भी मारा गया -इनरावत हाथी का वध लोरिक करता है और सोंन  नदी में उसके शव को फेंक देता है -आज भी हाथी का एक प्रतीक प्रस्तर किले के सामने सोंन  नदी में दिखता है। लोरिक मोलागत और उसके कई मित्र राजाओं से हुए युद्ध के  प्रतीक चिह्न किले के आस पास मौजूद है .जिसमें  राजा निर्मल की पत्नी जयकुंवर   का उसके पति के लोरिक द्वारा मारे जाने के उपरान्त  उसके  सिर  को लेकर सती होने के प्रसंग से जुड़ा एक बेर का पेड़ सतिया का बेर और युद्ध के दौरान ही बेहद  निराश मंजरी द्वारा कुचिला का फल (जहर ) खाने का उपक्रम करना और उसके हाथ से लोरिक का कुचिला का फल फेक देना और आज भी केवल  अगोरी के इर्द गिर्द ही कुचिला के पेड़ों का मिलना रोचकता लिए है। 

मंजरी की विदाई के बाद डोला मारकुंडी  पहाडी पर पहुँचाने  पर नवविवाहिता मंजरी लोरिक के  आपार बल को एक बार और देखने  के लिए  चुनौती देती है और कहती है कि वे अपने प्रिय हथियार  बिजुलिया खांड (तलवार नुमा हथियार) से एक विशाल  शिलाखंड को एक ही वार में दो भागो में विभक्त कर दें -लोरिक ने ऐसा ही किया और अपनी प्रेम -परीक्षा में पास हो गए -यह खंडित शिला आज उसी अखंड प्रेम की  जीवंत कथा कहती प्रतीत होती है -मंजरी ने खंडित शिला को अपने मांग का  सिन्दूर भी लगाया।  यहाँ गोवर्द्धन पूजा और अन्य अवसरों पर मेला लगता है -लोग कहते हैं कि कुछ अवसरों पर शिला का सिन्दूर  चमकता है -मैं फिर देखने का प्रयास करूंगा और प्रत्यक्ष कारण भी जानने की चेष्टा करूँगा . जब मैंने फोटो लिया तो शाम हो रही थी और मुझे कथित सिंदूरी चमक का  स्थान नहीं दिखा , लौटते वक्त इस पोस्ट का शीर्षक सहसा कौंध गया -अखंड प्रेम का खंडित प्रतीक! 

47 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे भी इस स्थल को देखने की उत्कन्ठा हो रही है। इस रोचक प्रस्तुति के लिये आभार!

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  2. अद्भुत वृतांत है ...
    आभार आपका कलमबद्ध करने के लिए !

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  3. अरसे बाद कोई इतिहास के पन्नों से कोई रुचिकर पोस्ट आई है.आभार आपका आगे की कड़ियों का इंतज़ार रहेगा.

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  4. मजा आया पढ़ कर, हम छत्‍तीसगढ़ में लोरिक चंदा की पारंपरिक गाथा सुनते-देखते हैं, यहां मंजरी के बजाय दावना मांजर पात्र है.

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    1. maja to aana hi tha ..... yunki aapki vidha jo thahra.....haan shaili unki apni hai.......jo bastugat tathaya ko ruchikar bana de reahe hain......


      pranam.

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  5. कहीं ये चंद्रकान्ता की कहानी तो नहीं?

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  6. अखंड प्रेम का खंडित प्रतीक,,,उत्कृष्ट आलेख,शीर्षक पसंद आया,,

    recent post: बात न करो,

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  7. शानदार वर्णन पंडित जी! मेरे लिए तो एकदम नॉस्टैल्जिक है, ननिहाल की बात जो ठहरी! यह सारा इलाका चंद्रकांता संतति के कथानक की पृष्ठभूमि रही है. रिहन्द नदी के बाँध के कैचमेंट एरिया का पूरा जंगल पैदल छान मारा है मैंने. चमत्कृत करता है यह सब!!
    लोरिक पत्थर के विशालकाय टुकड़े के खंडित भाग को देखकर साफ़ पता चलता है कि किसी ने सेब को चाकू की धार से दो टुकड़ों में काट दिया हो!! अब आप वहाँ हैं तो ऐसी अद्भुत कहानियाँ और भी मिलेंगी सुनने को!! आभार आपका!!

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    1. भाग्यशाली रहे आप ऐसा प्रकृतिस्थ ननिहाल पाकर

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  8. बहुत अच्छी पोस्ट\रिपोर्टेज अरविन्द जी, वास्तव में बहुत पसंद आई।

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    1. "वास्तव में" जोर देने की क्या जरुरत थी ? :-)

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  9. ....प्रेम के पुरा- नायक को आधुनिक प्रेम- नायक द्वारा जानना रुचिकर लगा !

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    1. "आधुनिक प्रेम नायक" ... वाह, यह विशेषण संतोष जी ही दे सकते थे।

      सोनभद्र स्थानान्तरण के जिस लाभ की चर्चा मैंने की थी उसकी किश्तें अब मिलने लगी हैं।

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  10. लोरिक-चंदा का आख्यान सुना था ,आज उसकी विद्यमानता की रोचक गाथा से परिचय हुआ -आभार !

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  11. इस देश की धरती जाने कितने रक्त से सनी है .
    रोचक ऐतिहासिक पात्रों का परिचय प्राप्त हुआ !

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  12. प्रेम का प्रतीक अखंडित होता है, शक्ति का प्रतीक खंडित..

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  13. ओह! दो तीन बार इन पत्थरों के पास से निकल गया हूँ! लोरिक पत्थर नया लगने लगा है अब!
    लोरिकायन- यह पढ़ लिया आपने? कहाँ मिलेगा?

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    1. हिमांशु जी जुगाड़ कर एक प्रति आपके लिए रखते हैं मगर आना पड़ेगा लेने यहाँ !

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  14. दशकों पहले लोरिक चंदा की कथा पढ़ी थी शायद नेशल बुक ट्रस्ट की किसी पुस्तक में - लेकिन आपका आलेख बड़ा जीवंत लगा| और अधिक चित्र देखने की उत्सुकता जाग गई| राजा भोज का काल 1967-1106 लिख गया है, ठीक कर लीजिये|

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  15. ज्ञानवर्धक संग्रहणीय आलेख .....लोरिकी के बारे में नयी जानकारी मिली ...आभार ।

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  16. इस अन्वेषण परक रचना और इसके शीर्षक के लिए आपका आभार .बहुत परिमार्जित प्रस्तुति रही प्रेम पुजारी की .

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    1. यह प्रेम पुजारी विशेषण किसके लिए आपके रहते :-) ?

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  17. बढ़ि‍या.

    (दूसरे पहरे में '...पवारों के वंश में (1967-1106)...' सन ठीक करना रह गया है)

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  18. सच! कथा की जीवन्तता आह्लादित कर रही है .कई बार पढ़ी हुई ये दुर्लभ प्रेम- कथा भी बिलकुल नई सी लगी.

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  19. bahut hi rochak kahani aur jaankari.

    Uttar Pradesh ke is sthan ke bare mei jaankaariyan adhik pracharit nahin hain..aap ki posts is upekshit sthan ko prachar dilaayengee.

    Andmaan-nikobar dwip ko bhi talwaar se vibhkt kiya gya tha.wo bhi ek prem kahani hai.

    [pahle ki talwaaren aisee-kaisee hotii thin ...jo patThar ko bhi kaat deti thin!]

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  20. क्षेत्रीय इतिहास का बढ़िया अन्वेषण किया है .
    पुरातत्व की खोज जारी रहे.

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  21. हम तो श्रीमान !आपके अनुगामी हैं .शायद हमारे भी हाथ कुछ आये .दोनों हाथ खाली हैं .

    ROSEMARY LINKS HAVE BEEN E -MAILED TO YOU SIR JI .REGARDS.

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  22. भाई साहब चेरा पूँजी के गिर्द हमने ऐसे ही पत्थर देखे पास पास ऊर्ध्वाधर खड़े एक छोटे से आधार पर जो गुनगुनाते थे .हिलाने पे हिलते भी थे शायद यही कम्पन श्रय ध्वनी में तब्दील हो जाते थे

    .तलवार की धार साम्राज्य का प्रतीक है .पत्थर की क्या बिसात जो विभक्त न हो अल्पना जी .

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  23. मिश्र जी प्रणाम बहुत खुबसूरत कहानी उससे भी सुन्दर प्रस्तुति

    अखंड प्रेम का खंडित प्रतीक,

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  24. सर बहुत ही उम्दा जानकारी मिली आभार

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  25. आभार सर - मेरे लिए तो बिलकुल नयी कहानी है यह । नल दमयंती कब आने वाले हैं ? :)

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  26. अद्भुत कथा! बनारस में सरकारी सहायता प्राप्त एक वीर लोरिक इ0 कॉलेज है। इस कथा के बारे में सुना था लेकिन इतना जीवंत वर्णन कभी नहीं पढ़ा।

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  27. सब कुछ नया लगा...लेकिन बहुत अच्छा लगा जानकर ...

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  28. पाषाण पर लिखी एक प्रेम कहानी !!!
    सिंदूर के चमकने की तिथी पर क्या मान्यता है पता चले तो बताईएगा।

    अभिषेक मिश्र

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  29. इस पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है...

    http://merecomment.blogspot.in/

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  30. bahut sundar lekh. bahut din hua lorkayan sune.ganv me pahale gaya jata tha lekin aj achchhi jankai mili bahut2 abhar.

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  31. लोक गाथा में इसको गाते भी हैं आल्हा की तरह। बस कभी सुना नहीं :)

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  32. सोनभद्र के विषय में कहते हैं की यह एक ऐसा अकेला जिला है जो पूरे उ० प्र० को अकेले खिला सकता है. सोनभद्र प्राकृतिक सम्पदा और पुरातात्विक खजाने का अपार स्रोत है. लोरिक पत्थर का तो कहना ही क्या है लोरिक पत्थर से शुरू होता है सों घाटी का विहंगम द्रश्य थोडा आगे चलते ही मिलता है सालखन फोसिल पार्क जो दुनिया में केवल दो जगह हैं एक अमेरिका में दूसरा सालखन में. इस पार्क में पत्थर के पेड़ हैं अर्कियन महा कल्प के. और आगे है सोनं नदी. सोनं नदी की बालू , डाला की गिट्टी का पूरा प्रदेश ऋण है.

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