![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDr05S4xkX8srX9PZxhOlhjs3a__zXwL0drQ6LlgaCgALzsfZBfTAEb_3A_3_SX3FoDPChuX6TRetywrfBIFnRGwHCZbVu4Ab4ciqdbxyVs7RBWXcVWqWTpekd9cxT2WHOJ9-IY7sVhg4/s200/SEEMA+GUPTA00222.jpg)
अभी उसी दिन तो जानकारी हुयी कि सीमा जी के दुश्मनों की तबीयत नासाज हो गयी थी मगर एक शल्य चिकित्सा के बाद वे स्वास्थ्य लाभ कर रही हैं ! जैसे ही यह मालूम हुआ मन सहसा ही दुखी हो गया और हम तुरत फुरत उनको शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामना दे आए ! उनको शुभकामना देने वालों की लम्बी कतार है ! मगर मन अभी भी क्लांत है ! उनकी तबीयत अब कैसी है जानने को उत्सुकता बनी हुयी है .हम आशा करते हैं कि शीघ्र ही वे फिर ब्लॉग जगत में अपनी कविताओं/गीतों से हमें रूबरू करायेगीं !
सीमा जी उन चंद ब्लागर हस्तियों में हैं जिनके प्रति मेरे मन में गहरा सम्मान है ! मगर यह सम्मान उनका फोटो देखकर अकस्मात उत्पन्न हुयी कोई आसक्ति ( इन्फैचुएशन ) नही है जो ब्लॉग के आभासी जगत में सहज संभाव्य है बल्कि एक महनीय व्यक्तित्व को धीरे धीरे समझते जाने से उत्पन्न श्रद्धा भाव ( adoration ) है ! अन्यथा तो सच कहूं कि उनके ब्लॉग कुछ लम्हे पर जब पहली बार गया तो ऐसा लगा कि हातिमताई के किसी कथानक के सेट पर पहुच गया हूँ -खासी तड़क भड़क ,उमर खैयाम के जाम और प्याले ,अलिफ़ लैला सरीखा परिवेश-ख़ुद सीमा जी के कई मनभावन पोर्ट्रेट ,और कुल मिला कर श्रृंगार के विविध भावों को उद्दीपित करता माहौल ! मैं किशोरावस्था से ही ऐसे चित्र ,दृश्य से सहसा ही अप्रस्तुत हो कर धीरे धीरे ही संयत हो पाता हूँ -सो पहली बार तो इस ब्लॉग पर पहुँच कर बहुत कुछ अप्रस्तुत सा होता हुआ फूट लिया ! मगर उत्कंठा ऐसी बढ़ी कि मन माने ही नही । 'मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे जैसे उडि जहाज को पन्छी पुनि जहाज पर आवे !' लिहाजा मैं उनके ब्लॉग पर अब बार बार और शीघ्रता से पहुँचने लगा और फिर तो गंभीर और बौद्धिकता से ओतप्रोत एक नया रचना संसार मानो मेरे सामने अनावृत होने लगा ! हातिमताई के परिवेश की अनुभूति अब काफूर हो चली थी !
फिर किस्सा कोताह यह कि मैं ब्लॉग आमुख की तड़क भड़क से परे अब उसकी अंतर्वस्तु पर भी नजरे स्थिर करने लगा -और वहाँ प्रस्तुत हो रही रचनाओं की वैचारिक गहराई से प्रभावित हुए बिना नही रहा ! यद्यपि उनमें वर्तनी की अशुद्धियाँ रहती थीं मगर भाव गाम्भीर्य में वे छुप सी जाती थीं ,कभी भी चुभती नही थीं ! मुझे आश्चर्य भी हुआ कि मानव मन के सूक्ष्म से सूक्ष्मतर भावों की इतनी बारीक पकड़ और अभिव्यक्ति रखने वाली रचनाकार से वर्तनी की इतनी छोटी छोटी भूलें ? माजरा क्या है ? मैंने उन्ही दिनों देखा कि सीमा जी की अनेक टिप्पणियाँ रोमन में आ रही हैं जिनके अंत में रिगार्ड्स की हस्ताक्षर मुहर अनिवार्य रूप से होती थी ! जब जिज्ञासा और बढ़ी तो मैंने सीधे रचनाकार से ही वार्ता कर समाधान का निर्णय लिया और सीमा जी को चैट पर आमंत्रित किया , उन्होंने तत्परता से मुझे उपकृत किया और एक रहस्योदघाटन आखिर हो ही गया -सीमा जी मिलेट्री परिवेश में पली बढ़ी है जहाँ बोलचाल में अंगरेजी का बोलबाला रहता है -इसलिए हिन्दी की अच्छी जानकारी के बावजूद भी उनकी वर्तनी पर पकड़ उतनी अच्छी नही रह पायी !
मैंने कुछेक बार उनसे कुछ शब्दों की वर्तनी सुधारने का धृष्ट आग्रह भी किया मगर उन्होंने कभी इसे अन्यथा नही लिया बल्कि तत्परता से वांछनीय सुधार कर दिया -मैंने उनसे एक आग्रह करने की अनाधिकार चेष्ठा यह भी की -वे कृपया ब्लॉगों पर अपनी टिप्पणियाँ रोमन में न कर के हिन्दी में किया करें -और मैं तो कृत कृत्य हो गया -सुनते ही उन्होंने इसे अमल में भी ला दिया ! मैं जानता हूँ कि इस निर्णय को लागू करने में उन्हें कितनी असुविधा हुई होगी ! और आज भी मैं उनके इस निर्णय के प्रति आभारोक्ति शब्दों में कर पाने में सक्षम नही हो सका हूँ ! हाँ regards का पुछल्ला अभी भी उनकी टिप्पणियों में लगा रहता है मगर यह उनकी मर्जी है तो ठीक है -अब सब को मंजूर भी है और मुझे भी ! यह मुझे हिन्दी अनुप्रयोग की उनकी विजय गाथा की याद दिलाता रहता है !
उनकी बौद्धिक परिपक्वता और विषयों की गहरी समझ का संकेत उनकी टिप्पणियाँ करती रही हैं -तस्लीम की अनेक पहेलियाँ उन्होंने चुटकियों में बूझी हैं ! उनका काव्य प्रणयन वियोग -विरह से आप्लावित है और मैंने उनसे इसका कारण भी पूछने की जुर्रत भी की -भले ही मैं इस विचार का हिमायती हूँ कि पाठक को रचनाकार की रचना से बस मतलब होना चाहिए उसकी निजी जिन्दगी से नही ! उन्होंने सहजता से ही जवाब दिया था कि विरह वियोग भी मानव जीवन का एक प्रमुख भाव-पहलू है भला इससे विमुख कैसे हुआ जा सकता है ! मगर मैंने उन्हें आगाह कर रखा है कि उनकी वियोग भरी रचनाएँ मन में सहसा ही altruistic भावों का संचार करती हैं इसलिए मैं कभी कभी उन्हें पढने से कतरा जाता हूँ ! शायद इसलिए मेरी तसल्ली के लिए ( कैसी खुशफहमी पाल रखी है मैंने भी !) उन्होंने एकाध श्रृंगार प्रधान कविताये -गीत भी लिखे है. मैंने इस चाह में उन रचनाओं की इसलिए भी ज्यादा प्रशंसा की कि यह उनका एक स्थाई भाव बन जाय मगर उनका तो स्थाई भाव विरह -वियोग ही है -साहित्य के ही इस पक्ष की वे सिद्धहस्त प्रतिनिधि रचनाकार हैं !
मेरा आपसे आग्रह है कि कृपया आज आप सब एक बार फिर उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं मेरे साथ करें -वे आयें और ब्लॉग जगत को अपनी कालजयी रचनाओं से निरंतर समृद्ध करें ! वैसे तो सीमा गुप्ता जी से शायद ही लोग अपरिचित हों मगर नए ब्लॉगर उनके बारे में इस साक्षात्कार से विस्तृत रूप से परिचय प्राप्त कर सकते हैं !