प्रेम की उसी रूहानी अनुभूति को अभिव्यक्त करती गुलाम अली की दो गजलें आपकी सेवा में आज प्रस्तुत हैं -मैं हूँ तो मेहंदी हसन का फैन मगर गुलाम अली की गायी कुछ गजलें भी बेखुदी के आलम में पहुंचा देती हैं -एक बानगी -इस गजल को किसने लिखा है कोई बताएगें क्या ?
वो कभी मिल जायं तो क्या कीजिये
रात दिन सूरत को देखा कीजिये
चांदनी रातों में इक इक फूल को
बेखुदी कहती है सजदा कीजिये
जो तमन्ना बर न आये ,उम्र भर
उम्र भर उसकी तमन्ना कीजिये
इश्क की रंगीनियों में डूबकर
चांदनी रातों में रोया कीजिये
हम ही उसके इश्क के काबिल ना थे
क्यों किसी जालिम का शिकवा कीजिये
चांदनी रातों में इक इक फूल को
बेखुदी कहती है सजदा कीजिये
जो तमन्ना बर न आये ,उम्र भर
उम्र भर उसकी तमन्ना कीजिये
इश्क की रंगीनियों में डूबकर
चांदनी रातों में रोया कीजिये
हम ही उसके इश्क के काबिल ना थे
क्यों किसी जालिम का शिकवा कीजिये
इसे यहाँ जरूर जरूर सुन भी लीजिये ..अब गुलाम अली की ही गायी एक और गजल -नासिर काजमी की
पूरी यह गजल यूं है -
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
शोर बरपा है खान-ए दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
याद के बेनिशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आरही है अभी
शहर की बेचिराग गलियों में
ज़िन्दगी मुझ को ढूंढती है अभी
सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जगती है अभी
वक़्त अच्छा भी आयेगा नासिर
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
शोर बरपा है खान-ए दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
याद के बेनिशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आरही है अभी
शहर की बेचिराग गलियों में
ज़िन्दगी मुझ को ढूंढती है अभी
सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जगती है अभी
वक़्त अच्छा भी आयेगा नासिर
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी
अब आप भी प्रेम की रूहानी यादों में तनिक खो जाईये तो बात बनें !
बढिया प्रस्तुति। आभार।
जवाब देंहटाएंजख्त तो सबके हरे हो गये होंगे। पर आपके उतने ताज़े न हों जितने हमारे हैं। अब बताईये हम कौन सी गज़ल गायें।
जवाब देंहटाएंओए-होए ! आज तो आप प्रेम के समंदर में गोते लगा रहे हैं. मेरी ज़रा सी भी चिंता नहीं आपको... यहाँ मुए बादर बरस-बरसकर हलकान हुए जा रहे हैं, मौसम हिल स्टेशन सा हो गया है... और मैं विरहिणी ... ऊपर से आप ये प्रेमराग छेड़े पड़े हैं.
जवाब देंहटाएंगज़ल अभी सुन रही हूँ. मेरे फेवरेट गुलाम अली हैं, मैंने मेहंदी हसन को कभी नहीं सुना. कोई साईट हो उनकी गज़लें सुनने के लिए तो बताइयेगा.
और कभी अपनी प्रेम की यादों को शेयर कीजिये. भाभी जी को नहीं बताएँगे हमलोग :-)
गिरिजेश जी के बहकावे मे मत आइये उन्हे तो सावन मे सब हरा ही हरा दिखाई देता है सावन के महीने मे शिवोपासना करे या शिव कुमार जी से परामर्श ले कर पिछली पोस्ट को आगे बढाये पाक शास्त्र के बाद प्रेम शास्त्र कुछ अट्पटा सा लग रहा है वैसे जैसी पन्चो की मर्जी अगर प्रेम रस की वर्षा होगी तो हम भी नहा लेगे
जवाब देंहटाएंगजल की पन्क्तियो के लिये साधुवाद
अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंआज तो आप गज़ब की पोस्ट लगा दिए हैं ....यहाँ ज़ख्म जैसा तो कुछ नहीं :):) पर गज़ल बहुत खूबसूरत हैं ....
Kya gazab kee rachnayen hain ye donohi!
जवाब देंहटाएंमुक्ति ,
जवाब देंहटाएंफेसबुक पर उन मेघ दूतों को इधर भेज देने के प्रेमादेश का आह्वान मैं पहले ही कर चुका हूँ मगर आप उन्हें दिल्ली की ही परिधि में बरसाए ले/दे रही हैं-अब भी इधर भेजिए न ....
"गजल बाई मेहंदी हसन सर्च कर लें -अब से मैं बीच बीच में आपको लिंक दे ही दूंगा -प्लीज बिना मेहंदी हसन के आगे की ज़िंदगी मत बितायें यह मनुहार है -अब तक जैसे बिता दीं तो बिता दीं ! क्या शेयर करूँ -क्यों किसी जालिम का शिकवा कीजिये ?
गुलाम अली मेरे प्रिय ग़ज़ल गायक हैं .....जादू है उनकी आवाज़ में ...
जवाब देंहटाएंकल चौदहंवी की रात थी ...शब् भर रहा चर्चा तेरा ...
तू बिलकुल मेरे जैसा लगे है ...
आदि -आदि भी सुनकर देखिएगा ...
आप मेहंदी हसन से गुलाम अली तक कैसे पहुंचे ...गिरिजेशजी की पोस्ट बड़ा असर दिखा रही है ..!
गुलाम अली के तो हम भी दीवाने रहे हैं. गोता खोरी करते रहिये. सेहत के लिए अच्छी हैं. हमें दो गीत याद आ गए. एक तो जगमोहन का गाया "ये न बता सकूँगा मैं" दूसरा वास्तव में बड़ा कर्ण प्रिय है. लाजवंती का "गा मेरे मन गा" .
जवाब देंहटाएंदिल में इक लहर सी उठी है अभी
जवाब देंहटाएंकोई ताज़ा हवा चली है अभी
शोर बरपा है खान-ए दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
...Bahut hi achhi gajal hai yah.. sunkar bahut achha lagta hai aapne prastut kiya to padhne ko mil gaya...
Badiya prastuti ke liye aabhar
दिल में इक लहर सी उठी है अभी---
जवाब देंहटाएंआहा आहा ! आनंद आ गया । मेरी पसंद की ग़ज़ल ।
इसे भी सुनाते तो और भी अच्छा लगता । आभार ।
@ अरविन्द जी, काहे उल्टी हवा चलवाने की बात कर रहे हैं? बादल तो पूरब से पच्छिम की ओर आते हैं और आप उन्हें उल्टा बजने को कह रहे हैं... हाँ, कोई चक्रवात आये तो कोई बात नहीं, लेकिन उसमें तो तोड़-फोड ज्यादा होती है, बारिश कम.
जवाब देंहटाएंऔर देखिये, हमारे गुलाम अली के कितने दीवाने निकले :-)
@प्रवीण जी आप मेहदी हसन की ये वाली गजल गुन गुनाकर मुझे , मुक्ति को और चाहें तो सार्वजनिक सुना दीजिये -
जवाब देंहटाएंhttp://www.youtube.com/watch?v=CwpAPtNzGyA
@सुब्रमन्यन साब जी ,
मैंने तो सुन ली ,यहाँ भी लिंक छोड़ दें ना !
@मुक्ति ,सच है ,गुलाम अली के दीवाने मिजारिटी में हैं ....आप मेहँदी हसन की ऊपर लिंक वाली गजल सुन के इमानदारी से बताएं -मेहंदी हसन को सूने का मतलब है इबादत वाली एकाग्रता -चलते फिरते ,व्यग्रता के साथ उन्हें सुनने का निषेध है .फुरसत में हों तो मन को केन्द्रित हो सुने ..जब दुबारा सुनेगीन कभी भी तासीर बड़ी होगी और उत्तरोत्तर बढ़ती जायेगी!यही कालजयी हुनर /कृति /सृजन का सबसे पुख्ता मानदंड है ...
और हाँ हम उल्टी गंगा बहा सकते हैं तो आप बादलों का रुख नहीं फेर सकती -चुनौती !
काहे सेंटी कर कर के मेंटल करवाना चाहते है ! जब आप जानते है कि," प्रेम जीवन की यादगार अनुभूतियों में से है -नए शोध भी कहते हैं बाकी बहुत कुछ भूल जाय प्रेम पगी /प्रेम में परिपाक हुई अनुभूतियाँ मृत्यु शैया तक भी नहीं भूलतीं /छूटती ..वे जीवन को अनुप्राणित करने वाली एक पुनर्नवीय सतत ऊर्जा बन पल पल कदमताल करती चलती रहती हैं| "
जवाब देंहटाएंजख्म को कुरेदने मै ज्यादा मजा आता है जी, गजल बहुत सुंदर लगी
जवाब देंहटाएंप्रेम की रुहानी यादों में खो गये, गजल तो गजब ही हैं... फ़िर भी कुछ जख्म ऐसे होते हैं जो हमेशा हरे रहते हैं।
जवाब देंहटाएं@ अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंप्रेम की रूहानियत में खो गये थे इसलिए एक छोटी सी गज़ल आपकी नज्र कर पा रहे हैं , इसे गाया गुलाम अली नें और पसंद हमारी !
कुछ दिन तो बसो मेरी आंखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या
जब हम ही न महके फिर साहिब
तुम वादे सबा कहलाओ तो क्या
जब चाहने वाला कोई नहीं
जल जाओ तो क्या बुझ जाओ तो क्या
याद ए माज़ी अज़ाब है यारब
जवाब देंहटाएंछीन ले मुझसे हाफ़िज़ा मेरा !!
क्या बात है जी....हर ओर प्रेम रस बह रहा है....बढ़िया है।
जवाब देंहटाएंगुलाम अली को मैं भी पसंद करता हूँ।
ये सावन का महीना भी बड़े मौके से आया है... या यूँ कहूँ कि आपलोगों के मन में इश्क-मुहब्बत की बात बहुत सही मौसम में पैदा हुई है। बस जमाए रहिए। महफिल रंगीन हुई जा रही है। हम तो बस दर्शक/श्रोता की भूमिका ही निभा सकते हैं। :)
जवाब देंहटाएं@अली सा ,
जवाब देंहटाएंवाह लाईने तो बड़ी सार....गर्भित हैं !
@सिद्धार्थ जी ,
ये ओढी तटस्थता क्यूं -क्या विश्वविद्यालय से मेमो मिल जायेगा या घर में पीटने की नौबत आ सकती है -या ऐसी बातों में हेयता का बोध होता है ?
jhamaajham.
जवाब देंहटाएंअरे वह सर जी आप ऐसे भी हैं ये तो हमको तनिक भी न पता था , अच्छा लगा आपका ये अंदाज भी देखकर
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवो कभी मिल जाएँ तो ! सच्ची कहूं तो डायलेमा हो जाएगा. क्या करें क्या न करें...
जवाब देंहटाएंकिसी और के कंप्यूटर पर बैठा हूँ... पहले का कॉपी किया हुआ पेस्ट हो गया आपके टिपण्णी बक्से में और पिछले से पिछला वाला कमेन्ट वही था.
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंपंडित जी,
जवाब देंहटाएंअब क्या टिप्पणी दें..पूरी दास्तान पढ़ने (इशारों इशारों में जो बयान किया) के बाद हाथ दिल से जुदा नहीं होता. मगर क्या करें, कमबख़्त दिल है कि मानता नहीं... सो हमने भी सोचा इस नाज़ुक मौके पर आपके साथ खड़े हो जाएँ... वैसे भी जो आईना आपने दिखाया है, उसमें हर किसी को अपना ही अक्स नज़र आता है...
अंत में मेहदी हसन साहब (इत्तेफाक़न मेरे भी फेवरिट हैं) कि ये ग़ज़ल आपने मिस कर दी, जो इस उमर में आपका हाले दिल बयान करता हैः
.
कोंपलें फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे
वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे
वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा कर ले गया
इतनी तन्हा हो गई है रहगुज़र कहना उसे
रिस रहा हो ख़ून दिल से लब मगर हँसते रहे
कर गया बरबाद मुझको ये हुनर कहना उसे
जिसने ज़ख़्मों से मेरा 'शहज़ाद' सीना भर दिया
मुस्करा कर आज प्यारे चारागर कहना उसे
बस यह कहने आया हूँ कि दूसरी वाली ग़जल उस लम्बे प्रेमपत्र में आनी थी। हॉस्टल में मेस अटेंडेंट ने सुना सुना कर याद करवा दिया था ! उसे भी आप की ही तरह नहीं पता था ... अब नहीं आएगी :)
जवाब देंहटाएंऔर
@ कल चौदहंवी की रात थी ...शब् भर रहा चर्चा तेरा ...
आवारगी के एक विशेष कालखण्ड में यह गायन भी आना था ... देख रहा हूँ सबके तार झंकृत हुए थे कभी न कभी एक अनूठी तान पर !
संवेदना के स्वर
जवाब देंहटाएंक्या गजल और कैसे अल्फाज -सीना चाक भला क्यों न हो जाय ..
कोपलें फिर फूटी हैं ...
भूली बिसरी चंद उमीदे चंद फ़साने याद आ आये
तुम याद आये साथ तुम्हारे गुजरे जमाने याद आये
ये पूरी गजल तो फिर आपने सुनी ही होगी ....
दोनों ही गज़लें नासिर नासिर काजमी की ही हैं.
जवाब देंहटाएंमेरे दिल की राख़ कुरेद मत, इसे मुस्कुरा के हवा न दे.
ये चराग फ़िर भी चराग है कहीं तेरा हाथ जला न दे.
मित्र भूत भंजक ,आप आये उनकी याद लेकर आये
जवाब देंहटाएंअब होम करने में हाथ तो जलता ही हैं ,इसकी फ़िक्र क्यूं की जाय भला ! बशीर बद्र के इस शेर के लिए शुक्रिया !
हाय!! ये जख़्म!! उफ्फ!
जवाब देंहटाएं" वाह वाह इन जख्मो को तनिक हरा ही रहने दीजिये देखिये न क्या खुबसूरत गजले निकल कर लाये हैं आप..........प्रेम की रूहानी यादों का सफ़र यूँही दिलचस्प रहे"
जवाब देंहटाएंवक़्त अच्छा भी आयेगा नासिर
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी
regards
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
क्या आपने हिंदी ब्लॉग संकलन के नए अवतार हमारीवाणी पर अपना ब्लॉग पंजीकृत करा लिया है?
जवाब देंहटाएंइसके लिए आपको यहाँ चटका (click) लगा कर अपनी ID बनानी पड़ेगी, उसके उपरान्त प्रष्ट में सबसे ऊपर, बाएँ ओर लिखे विकल्प "लोगिन" पर चटका लगा कर अपनी ID और कूटशब्द (Password) भरना है. लोगिन होने के उपरान्त`मेरी प्रोफाइल" नमक कालम में अथवा प्रष्ट के एकदम नीचे दिए गए लिंक अपना ब्लाग सुझाये" पर चटका (click) लगा कर अपने ब्लॉग का पता भरना है.
हमारे सदस्य मेरी प्रोफाइल"में जाकर अपनी फोटो भी अपलोड कर सकते हैं अथवा अगर आपके पास "वेब केमरा" है तो तुरंत खींच भी सकते हैं.
http://hamarivani.blogspot.com
चलिये अब आपने कुरेद ही दिये हैं जख़्म तो फ़िर और लीजिये:
जवाब देंहटाएंमिल भी जाएं वो अगर क्या बेवफ़ा कह पाउंगा?
हद से हद होगा यही मैं देखता रह जाउंगा।
और फ़िर बच्चन जी की पंक्तियां:
उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर मुख से हाला.
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में,
पा जाता तब हाय न इतनी प्यारी लगती मधुशाला.
प्रसाद की कामायनी भी याद आ रही है:
विस्मृत हों वे बीती बातें अब जिनमें कुछ सार नहीं,
वह जलती क्षाती न रही अब वैसा शीतल प्यार नहीं,
सब अतीत में लीन हो चलीं, आशा, मधु-अभिलाषाएं,
प्रिय की निष्ठुर विजय हुई पर ये तो मेरी हार नहीं.
प्रेम में विरह की एक खूबसूरत अभिव्यक्ति :-
जवाब देंहटाएंचाँद इक बेवा की चूड़ी की तरह टूटा हुआ,
हर सितारा बेसहारा सोच में डूबा हुआ
गम के बादल एक जनाज़े की तरह ठहरे हुए,
हिचकियों के साज़ पर कहता है दिल रोता हुआ,
कोई नहीं मेरा इस दुनिया में जिंदिगी नाशाद है....
वाह मित्र भूत भंजक ,आपने इन कालजयी रचनाओं को सामने रख सत्याभास् करा दिया -मैं किंचित मोहग्रस्त हो रहा था पार्थ !
जवाब देंहटाएंकई पंक्तियाँ और तिर आयी हैं मन में ...बच्चन तो अतीत जीवी हैं ही नहीं.....जो बीत गयी सो बात गयी ...नीड़ का निर्माण फिर फिर ......
और प्रसाद भी आशा और उछाह के कवि हैं --पथिक आ गया एक न मैंने पहचाना हुए नहीं पद्शब्द न मैंने जाना ....
क्या करूं माजी से ह्रदय को रिक्त कर दूं ? बताईये न ?? बन जाइए न उद्धव कुछ देर के लिए मानवता के त्राण की खातिर ...
Zeashan,हर सितारा बेसहारा सोच में डूबा हुआ
जवाब देंहटाएंकोई नहीं मेरा इस दुनिया में जिंदिगी नाशाद है....
AAh.....
क्या इतना आसान है माज़ी से हृद्य को रिक्त कर देना?
जवाब देंहटाएंरहने दीजिये मन के किसी कोने में, सावन के सुहाने मौसम में, कभी-कभी निकालने के लिये:
खिलते हैं दिलों में फूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
और बकौल गालिब:
गालिब छुटी शराब, पर अब भी कभी कभी,
पीता हूँ रोज़े-अब्रो-शबे-माहताब में.
@तो गोया यह सावन की खुराफात है ..मेरा जी नाहक ही हलकान हुआ जा रहा है !दुरुस्त बात, जैसा आप कहें !
जवाब देंहटाएंoh" je wali baat ....
जवाब देंहटाएंphir to kinare se kat le..
hamne to is se khud ko badar kar rakha hai.
bakiya tipnni pratitippani paristhiti ki najukta bayan kar raha hai.
pranam.
एक नया अंदाज़ देख आनंद आ गया ....शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंखोना तो शायद हर कोई चाहे, पर जमाना खोने दे तब न।
…………..
स्टोनहेंज के रहस्यमय पत्थर।
क्या यह एक मुश्किल पहेली है?
hmm ....गज़लें ...उदासियों में ही ज्यादा करीब लगती हैं..
जवाब देंहटाएंबाक़ी ..बारिशों का असर पोस्ट पर /tippaniyon में दिख ही रहा है ..
किशोर दा को सौरभ श्रीवास्तव की स्वरांजलि
सब कुछ भीगा भागा सा है. मौसम ही गाने का है.
जवाब देंहटाएंरामराम
पूरी ग़ज़ल ऐसी है
जवाब देंहटाएंदिल में एक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी
कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और यह चोट भी नई है अभी
भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी
तू शरीक़-ए-सुख़ाँ नहीं है तो क्या
हमसुखाँ तेरी ख़ामोशी है अभी
याद के बेनिशाँ जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी
शहर की बेचराग़ गलियों में
ज़िंदगी तुझको ढूँढती है अभी
सो गए लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी
तुम तो यारों अभी से उठ बैठै
शहर में रात जागती है अभी
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासीर'
ग़म ना कर ज़िंदगी पडी है अभी
~नासिर काज़मी