शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

शर्म उनको मगर नहीं आती ...आज मेरा शोक दिवस है!

आशंका सच साबित हुई -प्रकाशन विभाग से पुस्तक छप के आ गयी -इस समय मेरे सामने है ..विकासवाद के जनक चार्ल्स डार्विन .मेरा नाम गायब है ...जबकि लगभग पूरी किताब ही मेरे पूर्व प्रकाशित लेखों और दूसरे लेखकों के समय समय पर प्रकाशित लेखों से कामा ,फुलस्टाप सहित जस का तस लेकर छाप दी गयी है -पूरा विवरण यहाँ अवश्य देख लें -इस पूरे मामले में एक घोषित नारी वादी और लेखक भी -दोनों भारत सरकार के प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्यरत हैं की घृणित भूमिका है .ऐसे लोग अपने संस्थानों जहाँ वे कार्यरत है पर भी अपने घृणित ,भर्त्सनीय आचरण का धब्बा लगा देते हैं -इस देश में कोई देखने सुनने वाला है ऐसे लोगों के  आचरण को ?

क्या हो गया है भारतीय बौद्धिकता को ? चोर गुरुओं की चांदी क्यों  गयी है यहाँ ? दूसरे के श्रम और बौद्धिकता पर क्यों पलते हैं लोग ? क्या अकादमीय जगत ऐसे परजीवियों से मुक्त हो पायेगा ? शर्म उनको मगर  नहीं आती -दूसरे की सामग्री पैराग्राफ  दर पैराग्राफ उड़ा ली जाती है -और उसको यथोचित क्रेडिट नहीं दी जाती! एक लेखक की प्रचुर सामग्री किसी पुस्तक में छाप दी जाती है और लेखक से उसका नाम इसलिए  हटा दिया जाता है कि कुछ लोगों ने उसे नारी विरोधी तनखैया घोषित कर रखा है -मानवता की न्याय संहिता के किस अध्याय में ऐसा न्यायिक  विधान लिखा हुआ है ? क्या मानवीय नैतिकता ऐसे कुकृत्य को माफ़ कर देगी ? क्या आज के भ्रष्टाचार के नागारखाने में न्याय की यह गुहार  दब के रह जायेगी ? मित्रों, मनुष्य की बौद्धिकता की ऐसी गिरावट पर आज मेरा शोक दिवस है -

बस इतना ही आज .....क्या इस शोक दिवस में आप मेरे साथ हैं ??

73 टिप्‍पणियां:

  1. कोई भी वादी होना भले होने की गारंटी नहीं है। असाध्य बीमारी से मुक्ति का प्रचार कर सहानुभूति बटोरने वाला व्यक्ति भला भी होगा, कोई ज़रूरी नहीं। आस्तीन के साँप तो साँप ही होते हैं। यह समय शोक मनाने का नहीं, कार्रवाई का है।
    उत्तिष्ठ भारत!
    पूरे विवरण के साथ प्रकाशन विभाग के सम्पादक मंडल और सम्बन्धित मंत्रालय को लिखिए। यह माँग कीजिए कि या तो पुस्तक पर लेखक के रूप में आप का नाम दिया जाय या उसे वापस लिया जाय। साथ ही दोषियों पर समुचित कार्रवाई की जाय।
    इन लोगों ने अक्षम्य अपराध किया है।

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  2. यह तो आपराधिक मामला है जिसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है. गिरिजेश जी ने ठीक कहा..
    ..यह समय शोक मनाने का नहीं, कार्रवाई का है।
    उत्तिष्ठ भारत!

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  3. अपराध सहना भी अपराध की भागीदारी है. इन ढपोरशंख छपासियों के नाम (फ़ोटी भी हो तो और भी अच्छा) व जहां धंधे-पानी के लिए जाते हैं उनके नाम-पते भी आपको जारी ही नहीं करने चाहिये, खुल्लमखुल्ला कान से घसीट कर कोर्ट-कचेहरी भी करनी चाहिये. साथ ही साथ, प्रकाशन विभाग को भी ठीक से बता देना चाहिये कि क्या कर रहे हैं वो काठ के उल्लू.

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  4. बेहद अफ़सोसजनक,
    आपको गिरिजेश जी के सुझाव पर गौर करना चाहिये और इस आपराधिक कृत्य के बारे समुचित कार्यवाही होने तक चैन न लेना चाहिये.

    विज्ञान लेखन के क्षेत्र में Plagiarism, paraphrasing एक गम्भीर अपराध है। कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्यरत कई प्रोफ़ेसरों को इसके चलते अपनी नौकरी से हाथ धोना पडा है।

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  5. हम आपके साथ हैं..आप कानूनी कार्यवाही की शुरुवार करें अब!

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  6. अफसोस एक और जयचन्द ,गोरी से मिल बैठा , मित्रघाती , बौद्धिकता के कलंक !

    व्यक्तिगत वैमनस्यता की बलि वेदी पर बौद्धिकता की आहुति शर्मनाक है !

    घटना के लिये कारण जो भी उत्तरदाई हों, विधिक प्रतिकार किये जायें यह हमारा सुझाव है !

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  7. मिल गए, नाम मिल गए.. इस पोस्ट पर.
    http://sb.samwaad.com/2010/08/blog-post_13.html
    याद रखूंगा इन्हें.

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  8. सच मे ये शर्मनाक बात है ऐसे लोगों पर कानूनी कार्यवाई होनी चाहिये। हम सब आपके साथ हैं। सब को इस अपराध की घोर निन्दा करनी चाहिये। शुभकामनायें

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  9. अब कानूनी कार्यवाही करना जरूरी हो गया है। बिना देर किए ऐसे लोगों को मजा चखाना ही होगा। गिरिजेश जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ।

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  10. यह समय शोक मनाने का नहीं है .. कानूनी कार्रवाई किया जाना आवश्‍यक है .. पूरा ब्‍लॉग जगत सत्‍य के साथ होगा !!

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  11. अरविंद जी,
    तुरंत कॉपीराइट एक्ट में कार्यवाही कीजिए।

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  12. लेखक से उसका नाम इसलिए हटा दिया जाता है कि ...
    कोई भी बहाना इस कुकृत्य को जस्टिफाइ नहीं कर सकता है। सीधा सादा "अमानत में खयानत" और सीनाज़ोरी का मामला है यह! किताब पर हडबडी में चिपकाया हुआ स्टिकर भी आपकी पिछ्ली पोस्ट का ही परिणाम है वरना तो रात के अन्धेरे में अब तक न जाने कितने लेखकों के साथ यह भ्रष्टाचार हुअ होगा, क्या मालूम?

    इस मामले में आपकी सामग्री लेकर छपी पुस्तक पर छपे दोनों नामों "आर अनुराधा" और "मनीष मोहन गोरे" और प्रकाशक पर ही प्लेज्यरिज़्म का मुकदमा चलाइये। पहली नज़र से स्पष्ट है कि "आर. अनुराधा" ने तो इस मामले में व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों और स्वार्थ को अपनी संस्था के हर्ज़े खर्चे पर भुनाया है। कानूनी कार्र्वाई से आपके साथ न्याय होने के साथ-साथ विज्ञान लेखन से जुडे लोगों को इन लोगों के काले कारनामे की जानकारी भी मिलेगी।

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  13. हम गिरिजेश जी का समर्थन करते हैं.

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  14. सच्चाई को सामने लाना चाहिए..हक माँगने से नहीं मिलता ..छीनना पड़ता है कभी कभी...आपके साथ जो हुआ बेहद अफ़सोस है

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  15. अरविन्द साहब ,मुझे आश्चर्य नहीं हुआ,
    जैसा की मैं अक्सर अपने लेखों और टिप्पणियों में अफ़सोस के साथ लिखता रहता हूँ की अगर हराम की मिल जाए तो इस देश में खाने वाले बहुत भरे पड़े है! अगर इतने सारे ये हराम की खाने के आदी नहीं होते तो शायद इस देश को तीन-तीन गुलामियाँ भी नहीं झेलनी पड़ती ! मगर आपसे भी यही कहूँगा की आप चुप न बैठे ! सम्बंधित लोगो और संस्थानों के अलावा अन्य जगहों पर भी इस बात का खुला प्रचार करे ताकि आगे से इन्हें सबक मिले !

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  16. मेरी पोस्ट न्यूजपेपर में छपी तो मुझे अच्छा नहीं लगा लेकिन यहाँ तो वैज्ञानिक शोध और लेखों के छपने की बात है. मैं समझ सकता हूँ कि आपको कितना कष्ट हुआ होगा. यह घोर आपराधिक कृत्य है. इसकी जितनी भर्त्सना की जाय, कम होगी.

    आप तुरंत कानूनी कार्यवाई कीजिये. पानी सर से ऊपर चला गया. मैंने सोचा था कि किताब अभी भी छपने की प्रक्रिया में होगी और आप एक स्टे ले लेंगे लेकिन यह तो छाप गई. अब कानूनी कार्यवाई ज़रूर कीजिये.

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  17. मुझे तो शिव कुमार मिश्र जी ने इस घोर कर्म के बारे में सूचना दी। मैं आपके साथ नैतिक समर्थन में खड़ा हूं, अरविन्द जी।
    अब कानूनी कार्यवाई ज़रूर कीजिये.

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  18. हे पार्थ! अब समय गांडीव उठाने का है,शोक मनाने का नहीं. चढ़ाओ गांडीव पर प्रत्यंचा और जग को अपना लोहा मनवा दो. ईश्वर सहाय करेंगे.

    गिरिजेश जी से पूर्णत: सहमत

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  19. कमाल है इस तरह के घटिया लोग भी हैं ..अरविन्द जी , आप को ब्लाग जगत में मजबूत लोगों में गिना जाता है अगर ऐसे लोग भी अपमान को सहेंगे तो आने वाले समय को दिशा कौन देगा ? हर हाल में क़ानून की शरण में जाइए अन्यथा आपके पिछले लेख और इस लेख का कोई अर्थ नहीं बनता !
    कौन लोग हैं और क्या कारण है जो वे आपको नीचा दिखाने का प्रयत्न कर रहे हैं यह भी प्रकाशित होना चाहिए !
    शुभकामनायें आपको !

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  20. अंगेजी में कहावत है " गिव ए डाग ए बैड नेम एंड किक इट" सब कुछ पूर्वनिर्धारित लगता है पहले आप को चिन्हित किया फिर यह दुष्कर्म. आपको कानूनी कार्यवाही तो करनी ही चाहिये ब्लोग के जरिये भी यह मुहिम जारी रखनी चाहिये.

    कमाल की वैज्ञानिक चेतना है,जो सत्य की खोज के बजाये उसका क्रेडिट लेने में विश्वास करती है.

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  21. ब्‍लाग जगत में कई वरिष्‍ठ पत्रकार भी हैं, उनसे सम्‍पर्क साधिए और कानूनी कार्यवाही के साथ मीडिया में भी इस मुद्दे को उठाइए।

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  22. घोर अन्याय, आप तुरंत न्यायलय कि तरफ रुख करे आर्य . मन विषाद से भर उठा है.

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  23. मैं भी गिरिजेश जी की बात से सहमत हूँ. समय शोक का नहीं कार्यवाही का है. जिस किसी ने भी ऐसा कार्य किया है, उसके ऊपर आप कापीराईट एक्ट के तहत वाद कर सकते हैं. इस सन्दर्भ में आप द्विवेदी जी की मदद ले सकते है.

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  24. @मित्रों ,आप सब के मिल रहे स्नेह , नैतिक समर्थन और दिशा निर्देशों से ही मुझे अगली कार्यवाही करने की स्पष्ट दिशा मिल सकेगी -मैं मित्रता के कारण थोड़ी क्लैव्यता का शिकार हो हो रहा हूँ -पर मुझे अब बोध हो रहा है कि दोषी को दंड अवश्य मिले ...मैं न्यायिक कार्यवाही हेतु गंभीर हो रहा हूँ -बात तो खैर हो ही चुकी है -दिनेश जी जैसे वरिष्ठ न्यायविद का साथ सहज उपलब्ध है ही -बनारस के वकीलों से मेरी बात हो गयी है ...बस केस दायर करना है ....धाराएं इत्यादि समझी जा रही हैं. .

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  25. क्या हो गया है भारतीय बौद्धिकता को ? चोर गुरुओं की चांदी क्यों गयी है यहाँ ? दूसरे के श्रम और बौद्धिकता पर क्यों पलते हैं लोग ? क्या अकादमीय जगत ऐसे परजीवियों से मुक्त हो पायेगा ?
    कानूनी कार्रवाई किया जाना आवश्‍यक है .. ,b>पूरा ब्‍लॉग जगत सत्‍य के साथ होगा !!,/b>

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  26. Behad afsos ki baat hai...yah bahut nindniya hai!
    Aapko kanuni karywahi jarur karani hi chahiye..aise logo ko nasihat milana bahut zaruri bhi hai.

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  27. सचमुच दु:खद है यह स्थिति। मेरी समझ से लेखक को सामने आकर सारी स्थिति स्वयं ही स्पष्ट करनी चाहिए। यदि उसकी तरफ से कोई गल्ती हुई है, तो और अगर यह गल्ती सम्पादकीय विभाग की है, तो भी उसे सारी बातें स्पष्ट करनी चाहिए, जिससे पुस्तक के बारे में छाया कुहासा हट सके और दोषी की स्पष्ट पहचान सम्भव हो सके। अन्यथा फिर कानूनी कार्यवाही ही अन्तिम उपाय बचता है।

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  28. @सही है जाकिर ,अगर ये ऐसे ही चुप्पी लगाये रहते हैं तो कोर्ट का ही विकल्प है -मुझे लगता है इन दोनों संतानो के मुखिया को भी पूरे प्रकरण से अवगत करा दू -वे भी जरा अपने मुलाजिमों की सत्यनिष्ठा परख ले .यह तो घोर निरंकुशता ,अंधेरगर्दी है ,

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  29. पंडित जी!ई दुःख के बेला में हमहूँ आपके साथ हैं... आपके बनारस से एगो पत्रिका निकलता था अवकाश... उसी में सायद एक बार योगराज थानी का संसमरण पढे थे कि उनका थिसिस पर उनके गाइड (नाम नहीं लिख रहे हैं, काहे कि ऊ हिंदी साहित्य जगत में एगो बहुत प्रतिष्ठित नाम है) किसी दोसरा को डॉक्टरेट दिला दिए थे. वैचारिक चोरी का सिलसिला बहुत पुराना है..केतना लोग तो पागल हो जाता है...हमको साथे समझिए!!

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  30. बहुत अफसोसजनक है यह सब। पता नही भारत का भविष्य क्या होने वाला है जहाँ ऐसे चोरों की भरमार हो....अच्छा है आपने कानूनी कार्यवाही के लिए कमर कस ली है....

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  31. @गिरिजेश जी ,
    "असाध्य बीमारी से मुक्ति का प्रचार कर सहानुभूति बटोरने वाला व्यक्ति भला भी होगा, कोई ज़रूरी नहीं। "
    प्रत्यक्षम किम प्रमाणं ? और लेखक तो खैर आस्तीन का साप ही निकला ! चूकि आपके विचारों से कई ब्लॉगर बन्धु सहमत हैं और मुझे निरंतर सही मार्ग निर्देश मिल रहा है अतः यह केस दायर करता हूँ !
    @अनुराग जी ,
    जी आपने बिलकुल सही राय दी है .कानूनी तरीके से ही निपटा हूँ इनसे ..

    @शिव भाई ,ज्ञान जी
    आप ज्ञान जी को काहें डिस्टर्ब कर रहे हैं -उन्हें स्वास्थ्य लाभ करने दीजिये -अब देखिये वे भी रोक नहीं पाए खुद को अन्याय के प्रति

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  32. @जाकिर आपको की गयी टिप्पणी में संतानों को संस्थानों पढ़ा जाय

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  33. अरे ये तो हद्द हो गई ..बेहद घृणित है ये सब ..आपको कार्यवाही करनी ही चाहिए .

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  34. It's a shame!

    यह तो आपराधिक मामला है जिसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है

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  35. प्रकाशन विभाग में जुगाड़ू लोगों को ही काम मिलता है। ज़ाहिर है,जब ज्यादा वक्त जुगाड़ में ही निकल जाता हो,तो स्वाध्याय अथवा अनुसंधान का वक्त कहां मिल पाता होगा। पिछले दिनों एक कवि मिले। कहने लगे कि उनकी एक कविता पत्राचार से स्कूली शिक्षा प्रदान करने वाली राष्ट्रीय संस्था ने बगैर अनुमति या सूचना के छाप दी। पारिश्रमिक या रॉयल्टी का तो प्रश्न ही नहीं था। पूछने पर संस्था ने बताया कि आपका एड्रेस ही नहीं था हमारे पास। हद है।

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  36. इसे कहते हैं चोरी और सीनाज़ोरी...अरविंद जी ऐसे लोग सिर्फ चोर ही नहीं बहुत शातिर भी है...आपका नाम एक दो जगह देकर लेखों के प्रभावित होने की बात कह कर क़ानूनी कार्रवाई का तोड़ पहले ही ढूंढने की कोशिश की गई है...आप इस वक्त बेहतर से बेहतर वकील करके लोहे को लोहा काटने वाला रास्ता अपनाएं...ऐसे लोगों को एक बार ऐसा कड़ा सबक मिले कि फिर कोई दूसरे के लेखन को अपना कह कर प्रचारित करने की ज़ुर्रत न कर सके...इस मुद्दे पर पूरा ब्लॉगवुड चट्टान की तरह आपके साथ है...

    जय हिंद...

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  37. नीरज जी ,
    "विज्ञान लेखन के क्षेत्र में Plagiarism, paraphrasing एक गम्भीर अपराध है। कई प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्यरत कई प्रोफ़ेसरों को इसके चलते अपनी नौकरी से हाथ धोना पडा है।"
    डिजर्व तो वे यही करते हैं मगर इनके बिचारे परिवारों का क्या होगा

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  38. इस मामले के सभी खलनायकों को उपयुक्त सबक़ मिलना ही चाहिए।
    आप कार्यवाही करके अन्य लोगों को भी अन्याय के खिलाफ़ खडे रहने का साहस प्रदान करेंगे।
    हम सभी आपके साथ है।

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  39. BHAIJEE PRANAM,

    DUSTON PAR KARWAYEE AVASHYA HO AUR
    HAMARE BLOG PARIVAR KE SAKSHAM LOG
    APNA SAHYOG AVASHYA KAREN.


    GHOR NINDNIYA AUR DANDNIYA KARM

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  40. हद हो गयी……………कार्यवाही तो बेहद जरूरी है।

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  41. जब अरविन्द जी जैसे सुपरिचित लेखक के साथ यह हो रहा है तो नए और गुमनाम लेखकों के साथ तो पता नहीं क्या क्या होता होगा. बोलीवुड के गीत और कहानियां जो हम सुनते और देखते हैं उनमें से कितनी ही उनकी होती ही नहीं जिनके नाम सिल्वर स्क्रीन पर आते हैं. नया लेखक अपनी मेहनत करके अपनी फ़ाइल किसी नामी को दिखाता है और वह फ़ाइल सड़ा सा मुंह बनाकर वापस कर दी जाती है. बाद में पता चलता है की वही गीत या कहानी स्क्रीन पर चल रही है, उसी 'नामी' के नाम से. कहीं इसी वजह से तो देश में अच्छे लेखकों की कमी नहीं हो गई?

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  42. ... are ye kyaa nautanki hai ... ye shok divas naheen ... unke liye sharmsaar divas honaa chaahiye !!!

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  43. अन्याय का प्रतिकार किया जाना चाहिए और पुरजोर तरीके से किया जाना चाहिए....अनुराग शर्मा जी ने जो सहा, उस से पूर्णत: सहमति रखते हुए हम भी यही कहना चाहेंगें कि आप निसंकोच बिना किसी हिचक के कानूनी कार्यवाही को अंजाम दें..

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  44. शोककर्म में भी आपके साथ हूँ और विरोध करने में भी।

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  45. बेशक शर्मनाक कारनामा है ।
    अपने हक़ के लिए लड़ना तो पड़ेगा ।

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  46. डा. साहब,
    अन्याय का विरोध करना ही चाहिये। हम आपके साथ हैं।

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  47. बहुत बुरा लगा आपके साथ जो हादसा हुआ उसके बारे में सुनकर! जल्द ही इस समस्या का समाधान हो जाए!

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  48. हर गैरकानूनी काम के विरोध में साथ हैं हम..

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  49. मैं भी ऐसी धूर्त लोगों का शिकार हुआ हूँ.और मेरे साथ ऐसा करने वाले सुपर स्टार रहे हैं हिंदी जगत के.मैं तो अदना सा लेखक और आदमी.आप के पास तो समूचा ब्लॉग जगत है आपको कानूनी सहारा लेना चाहिए.हम आपके साथ हैं.
    समय हो तो अवश्य पढ़ें.

    विभाजन की ६३ वीं बरसी पर आर्तनाद :कलश से यूँ गुज़रकर जब अज़ान हैं पुकारती http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_12.htmlanumanju

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  50. इसीलिये मेरा भारत महान है. पर इन चोरों को यूंही छोड देना भी चोरी बेइमानी को शह देने से कम नही होगा. कानूनी लडाई का ऐलान किया जाये. हम साथ हैं. हमारे लायक सेवा का हुक्म फ़रमायें.

    रामराम.

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  51. इस निम्न कोटि के कर्म के खिलाफ़ मैं आपके साथ हूं. अन्याय का प्रतिकार आवश्यक है. कार्यवाही का समय आ गया.

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  52. हम आप के साथ हैं अरविन्द जी,
    बेहद बेहद अफ़सोस की बात है कि इस तरह की चोरी को बढ़ावा दिया गया और पुस्तक प्रकाशित हो गयी.
    गिरिजेश जी की बात का समर्थन करते हैं.
    अपराध सहना भी अपराध की भागीदारी है.

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  53. ओ भाया, हम हाई स्कूल नक़ल कई के पास किहें!
    फिर इंटर में पुर्जी छुपाये के पास हुवें!
    फिर बी.एस.सी मुन्ना भाई बनके निकाल लिहें!
    तो फिर नउकरी में नक़ल काहें नाहीं करबये ?

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  54. यह समय शोक मनाने का नहीं, कार्रवाई का है। मैं आपके साथ नैतिक समर्थन में खड़ा हूं।

    संविधान की दुहाई देने वाले और ज़ेंडर बायस पर बमकने वालों ने इन्ही दोनों चीजों का दुरूपयोग किया है और अक्षम्य अपराध किया है।

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  55. ताऊ जी की विचारधारा सही है !
    -
    -
    यह अक्षम्य अपराध है
    यह शोक की नहीं हुंकार की घड़ी है....शंखनाद का समय है! आप यहाँ समर्थन की मुहीम न चलाईये! इसकी जगह तत्काल कार्यवाही कीजिये! जिसके अन्दर नाम मात्र की भी नैतिकता शेष है वो आपके पक्ष में दिखाई देगा!

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  56. आदरणीय अरविंद मिश्र जी
    नमस्कार !
    आपके पूर्व प्रकाशित लेखों को किसी अन्य द्वारा छपवा लेना बेहद घृणित और निंदनीय कृत्य है । इसकी मैं भी घोर निंदा करता हूं ।
    आप कानूनी कार्यवाही करें , न्याय की आशा है ।
    शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  57. आशा करता हूँ कि उन्हें उचित सजा मिलेगी.

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  58. हम आप के साथ हैं डा.अरविन्द जी

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  59. सरकारी पदों पर कार्य करने वाले लोगों को अपने पद का अपनी व्यक्तिगत शत्रुता या लडाई में उपयोग करना भ्रष्टाचार ही है. इस प्रकार की निम्न मानसिकता रखने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए.

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  60. बेड़ागर्क हो ऐसे लोगों का, हम तो दुहाई ही दे सकते हैं, क्योंकि आज ऐसा लगता है वही सफ़ल है जो अच्छे से चोरी और सीनाजोरी करना जानता हो, हर क्षैत्र में।

    कैंसर के रोगियों के लिये गुयाबानो फ़ल किसी चमत्कार से कम नहीं (CANCER KILLER DISCOVERED Guyabano, The Soupsop Fruit)

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  61. नारी विरोधी प्रचारित कर पुस्तक में योगदान को नजरअंदाज किया जाना एक सुनियोजित साजिश ही है. आप निश्चय ही प्रतिरोध करें. यह ऐसी साजिशों के खिलाफ कई और लोगों को भी प्रेरित करेगा.

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  62. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदचन।
    मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि॥

    यदि आपको मित्र के परिवार की चिंता सता रही है तो आपको यह मुद्दा ब्लॉग जगत में उठाना ही नहीं था, परन्तु जब आप इतना आगे बाद गए तो चिंता किस बात की, और आगे बढ़ें और जिस-जिसने गलत किया है उसके खिलाफ बिगुल बजा कर गांडीव उठा लें... फिर यारी दोस्ती न देखें... जब उन्हों ने नहीं देखि तो आप क्यों कमजोर पड़ रहे है...

    यदि अप सत्य हैं तो ईश्वर भी आप के संग है...

    सांच को आंच किस बात की...

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  63. आशा है आप इस उचित कार्यवाही करेंगे अरविन्द जी यह बहुत ही गलत कार्य है ....

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  64. blog ne kalayi kholkar unhe dandit kar diya hai. do bat ha galti chhoti ho ya badi galat hoti ha. dusri bat galti insan karta ha, agar vo kisi bhi moh maya me galti karne se bach jaye to vah bhagvan na ho jata. samvad karke bich ka rasta nikalna chahiye.
    Dinesh ji ap bhi parivarshuda honge. parivar ko aise najarandaj na karen. daya (mercy)ko shakespeare ne insan ki sabse bada gun (attribute) bataya hai.

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  65. @दिनेश जी ,अनाम भाई !
    परिवार वाली बात को आप दोनों ने नोटिस लेकर अपने सूक्ष्म निरीक्षण और व्यापक दृष्टि का ही परिचय दिया -
    यह मेरे भी अनिश्चय और अनिर्णय का कारण था -मगर पंचो की राय के मुताबिक़ इस मामले को न्यायालय पर छोड़ दिया जाना चाहिए ! और उसी की तैयारी है!
    शुक्रिया !

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  66. बहुत देर से आया। इसका कष्ट तो था ही, यह बात जानकर तकलीफ़ और बढ़ गयी। जिन लोगों ने यह घटिया काम किया है वे ब्लॉगजगत में भी जाने पहचाने चेहरे हैं। खोखली सहानुभूति बटोरने के अलावा इनका कोई और उत्कृष्ट कार्य सामने नहीं आया है। अब इस निकृ्ष्टतम उदाहरण के बाद तो सीधी कार्यवाही ही की जानी चाहिए। नवीनतम अपडेट देते रहिए। हम आपके समर्थन में खड़े हैं।

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  67. सिद्धार्थ जी ,बजा फरमाते हैं -इनसे कोई ठोस काम नहीं होने वाला है -आखिर सूर्पनखा ,सुरसा की वंशावलियां कही गयीं थोड़े ही ..आज भी विद्यमान हैं !

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