हाई स्कूल के नतीजे निकलने वाले थे...दिल की धडकन बढ़ती जा रही थी ..अब सारा समय तो गुल गपाड़ा में ,शेरो शायरी का मतलब जानने में बीत गया था तो परिणाम होना क्या था ..मगर फेल होने पर ठुकाई /जग थुकाई का ख़याल आते ही डर के मारे उस किशोर के शरीर के रोयें रोयें सिहर उठते थे-घबराहट और बेचैनी के उसी अलाम में उसने यह मैडेन शेर लिखा और उसके बाद फिर उसकी कलम हारे हुए अर्जुन की गांडीव बन गयी,फिर सध न सकी -हर्फ़ हर्फ़ याद है उसे वो पहला और आख़िरी स्वरचित शेर -
दिल जानने को बेचैन है आखिर
क्या होगा नतीजा मेरे इम्तिहाँ का
बहरहाल हजरत पास तो हो गए मगर शायरी का असर अंकतालिका पर पड़ चुका था ...और अब तो शेरो शायरी को लेकर एक अजीब सा प्रतिशोधात्मक भाव भी उनके मन में आ गया था ..सारे के सारे पढ़ डालूँगा .अब या तो ये रहेगी मन में या इसका काम तमाम ही कर देगें हमेशा के लिए .उन्होंने हिंद पाकेट बुक्स की ग़ालिब की शायरी पर एक पेपर बैक मंगा ही ली ...अब मियाँ का मुंह और मसूर की दाल ...शेरो सुखन की पहली ही चुनौती ग़ालिब से मिली और मियां चारो खाने चित ..चले थे शायरी की मय्यत उठाने ..खीझ में बिना समझे ग़ालिब के कई शेर ही रट डाले -मतलब आज तक पता नहीं ...(कोई हमदर्द बताएगें क्या ?कुछ गलती हुई हो तो वह भी सुधार देगें ...अब याददाश्त ही तो है जो कहते हैं बड़ी बुरी दोस्त होती है एन वक्त पर साथ छोड़ देती है ... )
इशरते कतरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
इन आबलो के पाँव से घबरा गया हूँ मैं
जी खुश हुआ है राह को पुरखार देख कर
उस पूरे दीवान में बस नीचे का एक यही शेर जनाब के कुछ समझ में आया,इसमें वाईज साहब कौन हैं यह तो आज तक समझने में लगे हैं ..ग़ालिब के कोई दोस्त -वोस्त रहे होंगे ...
ग़ालिब बुरा न मान जो वाईज बुरा कहे
ऐसा भी कोई है सब अच्छा कहे जिसे
जनाब को जल्दी ही लग गया कि शेरो शायरी को प्यार और ख़ुलूस से ही हासिल किया जा सकता है ...दोस्तों ने भी समझाया कि मियां ग़ालिब के अलावा और भी सुखनवर है इस दुनिया में ..और लाकर दीगर शायरों के कुछ नायाब किताबे भी सामने रख दी ...उन्हें पढ़ते हुए लगता था कि कोई अज्ञात नाम के अजीम शायर हो चुके हैं जो इतने उम्दा शेर लिखते हैं मगर आज तक यह समझ में नहीं आया कि फिर वे खुद का नाम अज्ञात क्यों लिखते थे..शायद बदनामी का डर रहा होगा उन्हें ..अब देखिये न यह कैसा शेर है उनका -
अंगडाई ले भी न पाए थे वे उठा के हाथ
देखा मुझे तो मुस्कुरा के छोड़ दिए हाथ
और यह भी कि
अभी नादाँ हो खो दोगे कहीं दिल मेरा
तुम्हारे लिए ही रखा है ले लेना जवां होकर
अब नीचे वाले वाले शेर को पढ़ पढ़ के जनाब मुतमईन हो जाते थे जबकि उनका एक होशियार साथी समझाता रहता था -अरे इनका चक्कर तुम नहीं जानते ,ये बस बहानेबाजी है ,ये दिल वो किसी और को देने के फिराक में हैं बस तुम्हे उल्लू बन रहे हो ...और बात सच ही निकली ...आज वो मोहतरमा खुद भी कई शेरो शायरियों की जन्मदाता होकर ये भी भूल गयीं कि उनका वो दीवाना कबका जवां हो चुका है ...उन्ही दिनों के कुछ और शेर सुनाकर यह सेशन यही समाप्त करते हैं ---मगर यह अफसाना तो अभी शुरू ही हुआ है ......
एक वो आलम था कि खुदा को खुदा न कह सका
इक ये आलम है कि हर बुत को खुदा कहते हैं ..
याद में तेरी जहां को भूलता जाता हूँ मैं
भूलने वाले कभी तुझको भी याद आता हूँ मैं
मिलते हैं फिर ....
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
अरविंद सा है मुख औ है मिश्री सी जो आवाज़
जवाब देंहटाएंअंजाम देखना जब कर ही दिया आग़ाज़.
इंतज़ार रहेगा पंडित जी!
बड़े दमदार हैं। और भी पढ़वायें।
जवाब देंहटाएंएक वो आलम था कि खुदा को खुदा न कह सका
जवाब देंहटाएंइक ये आलम है कि हर बुत को खुदा कहते हैं
खुदा की खुमारी, मदमस्त मस्ती
प्रभु हैं हृदय में, यही मेरी हस्ती॥
हा हा हा...त्रयी से निपटने का ये तरीका भी जोरदार रहा :)
जवाब देंहटाएंबस ऐसे ही सुस्ता सुस्ता के लिखते चलिए !
शेरो शायरी का भी क्या जमाना था!हम तो सुरैय्या और तलत को सुन मन बहलाया करते थे.
जवाब देंहटाएंइशरते कतरा है दरिया में फ़ना हो जाना
जवाब देंहटाएंदर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
" शेरी शायरी की बहार आई लगती है, याददाश्त की गलियों से अच्छे मोती निकल कर लाये हैं आप...."
regards
Bahut badhiya likhte hain! Likhte rahen!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही शानदार, ज़ोरदार और धमाकेदार है! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंआपकी पसंद बहुत बढ़िया है ..एक से एक नायाब शेर पढने को मिले ..
जवाब देंहटाएंक्या महाराज, इस समय फुर्सत में है क्या ? धड़ाधड़ पोस्टें लिखते जा रहे हैं. कितना बैकलाग जमा हो गया.
जवाब देंहटाएंशेरो-शायरी की हमारी समझ कुछ कच्ची है, पर हमें उर्दू और शेरो-शायरी दोनों ही पसंद हैं. पर ये सब केवल पढते हैं और सुनते हैं. कभी सुनाते नहीं. गलत हो जाने पर मज़ाक उड़ने का डर होता है ना, इसीलिये.आपके उपर्युक्त शेरों में से अधिकांश मेरे पल्ले नहीं पड़े. सॉरी :-)
वैसे क्या आपको मालूम है कि हमारे डॉ. राजेन्द्र मिश्र जी संस्कृत में गज़लें लिखते हैं?
और एक बात, कृपया पोस्टों में विवादित शब्दों को स्थान ना दें. आप समझ गए होंगे कि इशारा किधर है. फिर मत कहियेगा कि लोग हमें ऐसा कहते हैं या वैसा कहते हैं :-)
@मुक्ति किस शब्द की बात कर रही हैं -
जवाब देंहटाएंकितने इल्जाम लगाये थे उसने मुझ पे शमीम
मुझे भी कहना था कुछ मगर जाने दो ....
(ये ठीक से यद् नहीं मगर काम चला लीजिये इसी से )
अरे हाँ एक तो भोला ही जा रहा है -ऊपर की पोस्ट में जोड़कर पढ़ें
तुम्हे गैरों से कब फुर्सत अपने गम से कब मैं खाली
चलो अब हो चुका मिलना न तुम खाली न मैं खाली
अब इस तरह की गजलों में गलती की गुंजाईश ही कहाँ हैं
आपको कोई भी समझ में नहीं आया -झुट्ठी हैं !
काफ़ी बढिया शेर पढवा दिये…………आभार्।
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर एक शेर हैं सब ..आभार इन्हें पढवाने का.
जवाब देंहटाएंउर्दू के कुछ शब्द मेरी भी समझ में नहीं आये ...
जवाब देंहटाएंमुझे भी एक शेर याद आ रहा है ...
बुत हमको कहें काफिर अल्लाह की मर्जी है ...
शेरो शायरी की इतनी समझ मुझमे भी नहीं है ...मगर लिखने वाले सब कुछ अपना ही बयाँ लिखे जरुरी नहीं ...!
@अभी नादाँ हो खो दोगे कहीं दिल मेरा तुम्हारे लिए ही रखा है ले लेना जवां होकर...
हाई स्कूल की बात है तो अब तक वो मोहतरमा भी 50 पार कर चुकी होंगी ...अब दिल लेकर करेंगी भी क्या ...:):)
और जो मुझे कहना था मुक्ति कह चुकी हैं ...!
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट ..बेहतरीन शेर पढवाने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंकिसी अज्ञात का शेर नज़र है ....
जवाब देंहटाएंगुनाहगारों में शामिल हैं गुनाहों से नहीं वाकिफ
सजा को जानते हैं हम खुदा जाने खता क्या है !
आज ग़ालिब कैसे याद आ गए ?
जवाब देंहटाएंबढ़िया शेर प्रस्तुत किये हैं ।
@मुझे लग रहा है कि कहीं कुछ कन्फ्यूजन हो गया है -अरे यह मेरा संस्मरण है जब मैं हाईस्कूल में था ....तब के अरविन्द और अब के डॉ अरविन्द मिश्र में सरग पताल का अंतर है जी ....एक और अर्ज है -
जवाब देंहटाएंउनको देखते ही आ जाती है चेहरे पर रौनक
वे समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है
और ये दो और याद आये सहसा
काफी दिनों जिया हूँ किसी दोस्त के बगैर
अब तुम भी जाने को कह रहे हो खैर
जाना है तो जाईये है देर किसलिए
जिस तरह गुजरेगी हम भी गुजार देगें
@ ई आपका आखिरी उत्तर में पहिला सेर त हमको भी ओही जमाना में ले गया... गिरिजेस बाबू सुधार नहीं किए त हमरा का औकात...चलिए हम अपना सेर मारते हैं.. (हमरा नहीं सॉरी..सायद फिराक़ साहब का है):
जवाब देंहटाएंउनके दर्शन से जो आ जाती है मुख पर आभा
वह समझते हैं कि रोगी की दशा उत्तम है.
बचपन में एक शेर से वाकई मुलाकात हुई थी तब से शैरों से भी डर लगने लगा था। उस जमाने में हम मधुशाला और उर्वशी पर फिदा थे।
जवाब देंहटाएं@ कलम या की बोर्ड को संभाले उन उँगलियों को चूम लूं जिन्होंने किन्ही होठों को चूम न पाने की अपनी कशमकश को इतनी ख़ूबसूरती से कागज़ या ब्लॉग पृष्ठ पर उतार दिया है - ये कौन हैं? हम तो वह सीन फिल्मा कर भी ऐसी तारीफ नहीं पाए। बताइए जल्दी, मारे जलन के मरे जा रहा हूँ।
जवाब देंहटाएं_________________________
वह पंक्तियाँ सुना रहा हूँ जो मैंने 'उनको' पहली बार सुनाई थी:
जवाब देंहटाएंगुंजा खिल कर गुलाब हो जाय,
दिल प्रणय की किताब हो जाय,
आप मुस्कुरा दें गर चुपके से
ज़िन्दगी भर का हिसाब हो जाय।
हमें बस इसी टाइप की शेरो शायरी आती है। वैसे भी मैं मुहब्बत की जगह प्रेम, तरन्नुम की जगह सुर, तनहाई के लिए एकांत, तसव्वुफ के लिए विरक्ति आदि का प्रयोग करने का हिमायती हूँ।
चलते चलते मीर का एक शेर:
नाज़ुकी उनके लबों की क्या कहिए, पंखुड़ी गुलाब की सी हैं।
'मीर' उन नीमबाज आँखों में सारी मस्ती शराब की सी है।
कहना न होगा यह भी 'उनके' सामने ही पढ़ा गया था।
हाउ अनसॉफिस्टिकेटेड न !
अब आप शेरो शायरी कर रहे हैं तो हमे जो आएगा वही कहेंगे न। शेली और पंत को थोड़े सुनाएँगे।
@ संस्कृत में ग़जल - लाहौल विला कुव्वत!
@गिरिजेश भाई ,बाकी मुला सब ठीक है मगर उर्दू में आपका हाथ थोडा तंग जरूर है ..हा हा
जवाब देंहटाएंअब तसव्वुर माने कल्पना है भाई ,ई कहाँ से विरक्ति को बीच में लाये ?
इंशा अल्लाह कल उर्दू की जानकारी वाली वाली दूसरी पोस्ट करनी ही पड़ेगी ...
अरे वाह ये बढ़िया , अच्छा लगा ये अंदाज भी ।
जवाब देंहटाएंकल कबीर पर पोस्ट आज ग़ालिब की याद में ...बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंस्कूली दिनों की यादें ...हिंद पाकेट बुक्स की ग़ालिब की किताबें..:) ..
पुरानी यादों से निकली शेरो शायरी भी अच्छी कही है आप ने.
बहुत बेहतरीन शेर पढ़वा दिये, आभार....
जवाब देंहटाएंक्या भई वाईज़ का मतलब.....
ऐसा करें...गालिब मुझे मान कर सोचिये...वाईज का चेहरा अपने आप आँखों में घूम जायेगा आपके ...आपके ही क्या--सभी लोगों के. फिर दिक्कत न होगी समझने में. :)
@ उ हूँ !
जवाब देंहटाएंमैंने तसव्वुर नहीं तसव्वुफ कहा है :)
मान गए ......!
जवाब देंहटाएंइशरते कतरा है दरिया में फ़ना हो जाना
जवाब देंहटाएंदर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना
वाह क्या मोती ढूँढ के लाये हैं-- ये सफर जारी रहे--- इन्तजार रहेगा ऐसी शायरी का। शुभकामनायें