शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

पड़ चुके हैं संतों के चरण प्रयाग में ...

जी हाँ, हिन्दी चिट्ठाकारिता  की दुनिया पर विमर्श के लिए देश के कोने कोने (जुमला ) से संतो का समागम संगम की नगरी प्रयाग में हो रहा है -भले ही अभी "माघ मकर गति जब रवि होई '' वाला ज्योतिषीय योग नहीं बना है -संतों के चरण परसों से ही पड़ने शुरू हो गए ! चिट्ठाजगत के याज्ञवल्क्य और भारद्वाज परसों शाम से ही विराज चुके हैं -मतलब रवि रतलामी और अजित वडनेरकर और प्रवचन पान की लालसा से महर्षि अनूप शुक्ल भी अपनी चरण रज वहां बिखेर चुके हैं ! अब जब इतनी महान विभूतियाँ वहां पहले से पाँव जमा चुकी हों  तो आयोजन की सफलता सुनिश्चित ही है !

अभी हम तो बनारस मे ही पड़े हुए हैं - हिमांशु पांडे और अरुण प्रकाश जी का इंतज़ार है वे आयें तो हम भी चलते बने -मुझे तो यही सोच सोच कर व्यग्रता हो रही है कि उधर संगम नगरिया में इतना पहले से ही पहुँच कर संत लोग क्या गुल खिला रहे हैं और समारोह  संयोजक श्री सिद्धार्थ जी जिन्हें "धनुष जग्य जेहिं करण होई " का यश प्राप्त हो चुका है उनकी क्या सेवा सुश्रुषा करते भये हैं ! चिटठा संत समागम की पूरी पृष्ठभूमि रची जा चुकी है !

चिट्ठाजगत का एक अल्पांश आज वहां विराजेगा बाकी दूर से तमाशा देखेगा ! तमाशाई वृत्ति के हम प्रेमी हैं ! मानव मन  भी बड़ा अजीबं है -राग विरागों से संयुक्त ! कुछ लोग मन ही मन सोच रहे होंगें कि मैं तो जा ही नहीं पाया ..अच्छा हो कि कार्यक्रम फ्लाप शो हो जाय -आह ईर्ष्या तू न गयी मन से ! कुछ के मन में होगा कि मुझे बुलाया होता तो जरूर जाता ! कुछ लोग ऐसे ही ब्रह्मा के रचे हुए हैं कि किसी भी कार्यक्रम में न तो कभी जायेगें न कभी खुद कोई आयोजन करेगें और न किसी प्रकार की मदद ही करेगें उल्टे किसी भी सृजनात्मक काम को घोर संशय और निंदक के नजरिये से देखते रहेगें ! उनके लिए भले ही विश्वामित्र समांतर  दुनिया रच डालें उनके मुंह से शाबाशी नहीं निकलेगी ! ऐसे सिरफिरे और सिनिक संसार में भरे पड़े हैं तो आखिर अपना चिट्ठाचर्चा ही क्यों अपवाद रहे -तो सिनिकों तुम भी झाडे रहो कलक्टरगंज !

मैं तो जब भी ऐसे प्रयास देखता हूँ विनम्र सा हो उठता  हूँ -आज के इस युग में जब हर कोई एक दूसरे की टांग खींचने में लगा है ऐसे आयोजन का संकल्प सचमुच साहस की बात है ! आयोजन से जुड़े लोग निश्चित ही तारीफ़ के काबिल हैं -यह सिलसिला चलते रहना चाहिए ! चिट्ठाजगत अब महज आभासी नहीं रह गया है इसकी पहुँच और अनुगूंज अब आभासी जगत के बाहर भी जा पहुँची है -साहित्य के पुरोधा नामवर सिंह तक भी ! अब  ब्लॉग साहित्य अधकचरा है कहने वाले स्तंभित होंगे!देखते रहिये वह दिन दूर नहीं जब सर्वं ब्लॉगमयम जगत का दृश्य साकार हो उठेगा-
क्या आभासी क्या वास्तविक ,सब समरस!

ये कुछ स्फुट विचार हैं जो प्रयाग संधान के ठीक पहले मैं आपसे साझा कर ले रहा हूँ -बाकी आप ती वहां पहुंचकर या लौट कर !

15 टिप्‍पणियां:

  1. उनके लिए भले ही विश्वामित्र समांतर दुनिया रच डालें उनके मुंह से शाबाशी नहीं निकलेगी ! ऐसे सिरफिरे और सिनिक संसार में भरे पड़े हैं तो आखिर अपना चिट्ठाचर्चा ही क्यों अपवाद रहे -तो सिनिकों तुम भी झाडे रहो कलक्टरगंज !

    सत्य वचन अरविंद जी...

    एक बात और अनूप शुक्ल जी के साथ महर्षि का संबोधन बड़ा सटीक लगा...ठीक वैसे ही जैसे समीर लाल जी समीर के साथ गुरुदेव का संबोधन बड़ा जमता है...

    सम्मेलन की त्वरित रिपोर्टिंग का इंतज़ार रहेगा...

    जय हिंद...

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  2. टांग खींचना और खिंचवाना एक कला है जो हमारे भारतीय खेल कब्बड्डी का मुख्य हिस्सा है. इस लिये टांग खींचे जाने की चिंता मत किजिये. टांगे खींच खांचकर ही तो कबड्डी के खेल की रोचकता बरकरार रह पाती है.

    कार्यक्रम की सफ़लता के लिये आपको और आयोजकों को हार्दिक शुभकामनाएं.

    वैसे आपका यह कथन सही है कि अगर पता होता या बुलाये जाते तो हम भी आते.:)

    रामराम.

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  3. किसे कौन चाहिये? स्थापित हिन्दी वालों को ब्लॉगिंग या ब्लॉगिंग वालों को स्थापितों का ठप्पा!

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  4. सम्मलेन की सफलता की कामना लिए और अगली रपट की प्रतीक्षा में

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  5. सम्मेलन की पूर्व कल्पना अच्छी है। हमारी हालत तो "कुछ लोग मन ही मन सोच रहे होंगें कि मैं तो जा ही नहीं पाया ..अच्छा हो कि कार्यक्रम फ्लाप शो हो जाय -आह ईर्ष्या तू न गयी मन से !"जैसी हो रही है। अब ईर्ष्या के सिवा और क्या कर सकते हैं। संगम के संगम से वंचित रह गए। चलो आप लोगों की रपटों से काम चलाएंगे।

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  6. इन्ही शुभकामनाओं के साथ कि वे अच्छी तरह से नहाए और त्रिवेणी का लुफ्त उठाये !!

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  7. मै तो उत्साहित हूँ, दूर से ही देखूंगा पर बेहद आशान्वित हूँ..

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  8. बहुत बहुत शुभकामनाएं जी ..रिपोर्ट का इंतजार रहेगा

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  9. कुछ लोग मन ही मन सोच रहे होंगें कि मैं तो जा ही नहीं पाया ..अच्छा हो कि कार्यक्रम फ्लाप शो हो जाय -आह ईर्ष्या तू न गयी मन से !
    मुझे नही लगता कोई ऎसा सोचता होगा,सभी आना चाहते है, लेकिन दुरी के कारण या किसी ओर कारण से नही आ सकते, जेसे कि मै, लेकिन इस के बाद आने वाली जानकारियो का बेसबरी से इंतजार रहता है, ओर फ़िर बाद मै उस सम्मेलन के बारे पढ कर ओर चित्र देख कर बहुत अच्छा लगता है,दुसरो की बात तो नही जानता, लेकिन मेरे दिन मै हमेशा आता है कि अगर मै कुछ ज्यादा समय के लिये भारत आऊं तो ऎसा ही एक सम्मेलन अपने खर्चे पर करुं, ताकि ज्यादा से ज्यादा ब्लांगरो से मिल सके,
    आप के इस सम्मेलन की कामयाबी हम सब की कामयाबी है, ओर भगवान से प्राथना करता हुं आप का यह सम्मेलन,यह आयोजन बहुत सफ़ल हो, अगर कोई बुरा सोचता हो तो वो भी आप के इस आयोजन से प्रभावित हो.
    धन्यवाद

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  10. :(
    Aur log kehte hain ki Rajhdhain main sab suvidhaiyen hain !!
    "Koi mere dil se pooche"
    :(


    Prayagraj ki jai...
    ..Jai Blogging kumbh mele ki !!

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  11. Self congratulatory indeed! I don't think there will ever be a meet like The Great Himalayan Blogger's meet held on 5jan. 2007 @ Sonapani (uttarakhand) !

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  12. जंह जंह पाँव पड़े संतान के तंह तंह बंटाधार ....
    दे देते हैं हम भी शुभकामनाएँ ...!!

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  13. इस समागम के निश्चित ही दूरगामी परिणाम होंगे. मै इसकी सफलता के लिए हार्दिक तौर पर आशान्वित हूँ....

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  14. बढ़िया है, आज सुबह से रिपोर्ट ही रिपोर्ट मिल रही है वहां की.

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