रविवार, 4 अक्टूबर 2009

एक जब्तशुदा प्रेम पत्र के कुछ अंश



मूंगफली का सीजन शुरू हो गया ! मगर पहली ही खरीद दुखी कर गयी -यानि बिस्मिल्लाह ही बुरा हुआ ! मूंगफली से ज्यादा उसके ठोंगें ने सहसा ही ध्यान खींच  लिया -जब्तशुदा प्रेम पत्र ....! मगर किसके प्रेम पत्र -यह हिस्सा फटा हुआ था ! पत्रिका भी कौन ,यह भी नहीं जाना जा सका -खैर पत्र के मजमून पर निगाहें फिसलती गयीं और जहाँ रुकीं उसके बाद का अंश भी गायब !
मन बोझिल हो उठा ! कई प्रश्न जेहन में तैर उठे -क्षमां करें वे आपके मन   में भी उठेगें ही और आप भी क्लांत हो उठेगें मगर फिर भी न जाने क्यों इसे आपसे बाटने को मन हो आया है -और प्रेम पत्रों की मूंगफली के ठोगों तक की नियति भी कोई कम   
दुखदायी है ? प्रेम पत्रों से दुनिया का साहित्य समृद्ध हुआ है -साहित्य का एक पहलू इनमें जीवंत होता है ,दस्तावेज बनता है ! तो यह ब्लॉग जगत भी उससे अछूता क्यों रहे और क्वचिदन्यतोअपि भी ! लीजिये पढ़ लीजिये -

ऐसा क्या है प्रिये  जो मैं चाहता हूँ और तुम दे नहीं सकती  ? वह क्या है जिस पर एक मानव सम्बन्ध की बलि आसन्न /अपरिहार्य  दिखती है ? देह को तुमने पवित्र कुरान बना लिया है  ! जबकि मन का एक क्षणिक समर्पण भी देह की अनंत आहुतियों के आगे गौण है ! तुमने खुद स्वीकार किया है कि क्षण भर के लिए तुम विचलित होती हो ,मनुष्य होती हो और फिर अगले ही पल दानवता के आगे घुटने टेक देती हो ! अज्ञेय का क्षणवाद पढों -उन्होंने मानव जीवन की उच्चता को इसी क्षणिकता के अहसास से अनुभूत किया था !

तुम समझ नहीं रही हो तुम कितनी बड़ी हिंसा और अत्याचार पर उतर आई हो ! हर चीज की एक सीमा होती है -बहुत सी बातें इस क्षुद्र मनुष्य के वश में नहीं हैं -मैं लाख न चाहूं लेकिन खुद  ही बोझ बनते जा रहे सम्बन्ध स्वयं इतिश्री को प्राप्त हो ही जाते हैं -यही प्रक्रति का विधान रहा है ! बोझ बनते संबंधो की नियति ही है यही -कोई चाहे या न चाहे !  मैं अपराजेय और अपौरुषेय शक्तिओं का स्वामी नहीं हूँ -समस्त मानवीय कमजोरियों का ही एक सहज प्रस्तुतीकरण हूँ ! और अपवाद नहीं हूँ ! तुम शायद हो ! 


तुम्हे परिणय सम्बन्धों  की सहज परिणति स्वीकार्य नहीं है  तो रोज रोज का बवाल टंटा बंद करो =जिस तरह तुमने उस दिन  बात की मैं अशांति और पीडा से कराहता रहा  -सुबह हो गयी  ! लगा कि नहीं नहीं तुमसे आख़िरी बात कर ही लेनी  चाहिए ,नहीं तो मैं ही इस आरोप का भागी क्यों बनूँ कि "सखि वे मुझसे कह कर जाते "

तुम देह को पवित्र काबा और कुरान बनाए रखो -मुल्लों   की कमी नहीं है इस देश में  ! उन्ही का हक़ ज्यादा है इन पवित्रतम चीजों पर -और वे इनके लिए मरने मारने के लिए भी उतारू  रहते हैं ! मुझे तो त्याग के  आनंद का पूर्व अनुभव भी है -बहुत असहज नहीं  रह गया है त्याग मेरे लिए ! पर चिंता तुम्हारी है -तुम्हे अकेला छोड़ देने की सोच से ही आत्मा कांप उठती है ! मगर शायद मनुष्य के इतिहास  में पुरुष की इस मनोंनुभूति को ठीक से उभारा  नहीं जा सका ,समझा भी नहीं जा सका -कारण कि पाषाण होना  मनुष्यता का पर्याय मान  लिया गया  -पुरुषार्थ मान    लिया गया है ! कहीं खुद  राम का दिया कोई स्पष्टीकरण नहीं मिलता और नहीं यह अपेक्षा की गयी कि जाना जाय कि सीता के  परित्याग पर उन पर क्या बीती होगी -उनकी मनोदशा क्या थी ? तब टीवी के रिपोर्टर नहीं होते होंगें  शायद ..... .!


और इसकी आवश्यकता ही नहीं समझी गयी ! कौन कहता है दुनिया पुरुषों की ,पुरुषों के लिए और पुरुषों द्वारा   ही बनायी गयी है ! राम के मन  का झंझावत सीता ने भी नहीं समझा हो शायद !   मैं भी अपने मन के इस झंझावत को आखिर किससे  बांटू ? तुम्हे सुनना नहीं है और एक और असहज ,अनचाहे परित्याग की पृष्ठभूमि पुनः  तैयार हो रही है ! मनुष्यता की पीडा की एक कथा फिर दुहराव पर है !  कहते हैं न कि इतिहास खुद को इसलिए ही दुहराता है कि हम उससे सीख नहीं लेते !


(आगे का अंश गायब है ....शायद यह सिलसिला खत्म न हुआ हो  ! मूंगफली का सीजन अभी शुरू ही तो हुआ है अब रोज शाम को मूंगफलियाँ खरीदता हूँ -शायद वांछित अंश मिल  ही जाय ! मैं पागलपन की हद तक आशावादी हूँ ! )

29 टिप्‍पणियां:

  1. मूंगफली के बहाने बहुत काम की बातें कर दीं आप ने।

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  2. इंटर्नेट पर चल रहे इंसानी पापों का घड़ा भरने को है।
    इस लिंक पर जाएँ:

    http://be-shak.blogspot.com

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  3. क्षमा चाहता हूँ ..बहुत देर से पहुंचा इस प्यारे से ब्लॉग पर ....
    आपके लेखन को नमन...
    अब तो नियमित आना पड़ेगा .....

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  4. किसी साहित्यकार का पत्र प्रतीत होता है.

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  5. प्रेम पत्रों से दुनिया का साहित्य समृद्ध हुआ है -साहित्य का एक पहलू इनमें जीवंत होता है ,दस्तावेज बनता है ...jee bilkul sahi kaha hai aapne....

    कहीं खुद राम का दिया कोई स्पष्टीकरण नहीं मिलता और नहीं यह अपेक्षा की गयी कि जाना जाय कि सीता के परित्याग पर उन पर क्या बीती होगी -उनकी मनोदशा क्या थी ? yahan hum sirf kalpana hi kar sakte hain..... ki unki manodasha kya rahi hogi....? aise hi URMILA ke baare mein bhi hamein sochna chahiye..... jab Shri.LAXMANji ko Shri Ram ji ke saath vanwaas jana pada tha.....

    कहते हैं न कि इतिहास खुद को इसलिए ही दुहराता है कि हम उससे सीख नहीं लेते ! yeh aapne achcha analysis kiya....aur ekdum sahi hai yeh....

    bahut achcha achcha laga ...आपके लेखन को नमन...

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  6. डाक्साब अब तो मूंगफ़लियां खरीदना ही पड़ेगा।

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  7. यह बढ़िया रहा .मूंगफली खरीदते रहिये ..अगला भाग भी इसका मिल ही जाएगा

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  8. मूंगफ़ली खरीदते रहिये शायद आगे का अंश मिल जाये। हम भी आशावादी हैं....

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  9. अब मूंगफली खाना शुरू करता हूं। लेकिन, इस तरह के कागजों पर लपेटकर मूंगफली बेचने वाले यहां नोएडा में तो मिलने से रहे:) शानदार

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  10. "ऐसा क्या है प्रिये जो मैं चाहता हूँ और तुम दे नहीं सकती ..."
    सरल सा उत्तर है - दिल:)

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  11. बहुत दिलचस्प। यकीनन आपका आशावाद फलीभूत होगा। मूंगफलियों के ठोंगे खरीदते रहिए या फिर जहां से वह रद्दी खरीदता है, वहां तलाशिये। बाकी हिस्सा शायद वहां मिले।
    पंगेबाज ब्लागजगत से विदा हो गए, वर्ना ऐसी अधूरी चीजें पूरी करने के पंगे वे लिया करते थे:)

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  12. अरविन्द जी,

    एक निजी लेकिन भावनाओं से भरा प्रेमपत्र पढ़वाने के लिये आपका आभार। हो सकता है कि यह पत्र अपने गंतव्य तक पहुँचा ही ना हो? क्या स्थिति हुई होगी उस बेचारे की जिसका की पत्र अब मूंगफली के साथ आपके पास पहुँचा और फिर हम तक।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  13. टिप्पणी लिखने बैठा तो नई आदत ने जोर मारा इसलिए एक पोस्ट ही बन गई। आप यहाँ देख लीजिए। गलती सही मुआफ करिएगा।

    http://girijeshrao.blogspot.com/2009/10/blog-post_04.html

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  14. अब शेष क्या रह गया, सब कुछ तो कह दिया आप ने इस प्रेमप्त्र मै. चलिये कल देखे क्या निकलता है मुगफ़ली के लिफ़ाफ़े मै??

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  15. वाह, फीड में आता ये यह प्रेमपत्र (?) और नीचे आता है "नानापुराणनिगमागम सम्मतं यद..."
    :-)

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  16. वाकई में मूंगफली खाना बहुत ही सुखद रहा ....आपके लिए........


    आपने इतने सधे हुए अंदाज से प्रस्तुत किया है कि .........


    अगर कभी इस प्रेमपत्र का बाकी कोई अंश मिले तो आशा है कि आप बिना आलस्य किये तुरंत प्रकाशित करेंगे............

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  17. अरविंद जी!

    आपके ब्लाग पर देरी से आने के लिए स्वयं पर क्षोभ हो रहा है......

    आपकी साहित्यिक टिप्पणीयों से पूर्व परिचय था( एक आलसी का चिट्ठा पर....)


    आशा है कि आप के साहित्यिक सानिध्य का लाभ मुझे मिलेगा......


    सादर


    गंगेश राव

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  18. प्रेम-यूँ ही अबूझ न हुआ होगा । जब तक पढ़ रहा था, तब तक मुग्ध था, अब पढ़ चुका तो मौन होकर इसकी ध्वनि महसूस कर रहा हूँ अपने अन्तर्जगत में ।

    अज्ञेय का प्रबल विश्वास है कि हृदय का भाव जब तक सलामत है तब तक दो प्रेमी एक दूसरे से पृथक नहीं हो सकते । बस एक भावतंतु मात्र ही उनके स्नेह को अम्लान रख सकता है, रखता है ।

    मैं पागलपन की हद तक आशावादी हूँ ! इस दुर्निवार आस्था के लिये नत हूँ !

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  19. वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव रस का कटु प्याला है
    वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहनकारी हाला है
    मैनें विदग्ध हो जान लिया अंतिम रहस्य पहचान लिया
    मैनॆं आहुति बनकर देखा..ये प्रेम यज्ञ की ज्वाला है॥

    ज्यादा नहीं कहूँगा...

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  20. हिमांशु जी की राय से पूर्णत: सहमत...प्रेम एक अबूझ पहेली ही है...इस प्रेमपत्र को पढ़कर काफी समय तक सोचता रहा...वाह !! आपकी मूंगफली खरीदने औए उसमे बचे हुए प्रेमपत्र के अंश का हमें भी इंतज़ार रहेगा

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  21. mungfali ke sath chne khridte to shayd prempatr poora ho jata .
    khair bhut achhi post
    abhar

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  22. ऐसा पत्र तो कोई प्रेमी साहित्यकार ही लिख सकता है ...शेष अंश मिलने में आपकी आशावादिता के भागीदार और भी हैं ...दिल को छूती भावविह्वल करने वाली रचना के लिए बहुत आभार ...!!

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  23. बहुत सुंदर भाव हैं, आपको ये पत्रांश ही नहीं मूंगफली भी हमेशा याद रहेंगी।
    काश हमें भी कोई ऐसा पत्र मिलता।
    Think Scientific Act Scientific

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  24. दद्दा रे! लगता है जासूस लगाने पड़ेंगे इस कवि-ह्रदय दुखी-पति/प्रेमी को ढूँढने के लिए.

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  25. अभी भी प्रेमपत्र लिखे जाते हैं और वो भी ऐसे? और वो भी मूंगफली वाले के हाथ लग जाते हैं ! मूंगफली बेचना चालु कर दें तो एक ठो किताब ही छपवा लेंगे :)

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  26. डॉ. साहब ! आपके ब्लॉग पर शायद पहली बार आई हूँ और इतनी रोचक सामग्री देखने को मिली की समझ नहीं आया की क्या पढूं पहले..फिर इस पोस्ट के शीर्षक ने ध्यान आकर्षित किया .वाह मूंगफली खाना कभी कभी कितना सार्थक हो सकता है..इसी बहाने बहुत बड़ी बात कह दी आपने...बाकि रचनाएँ पढने फिर आऊँगी.आभार.

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  27. उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़!

    ये पोस्ट कैसे छूट गयी थी मुझसे। धन्य हो आप!

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