गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

ब्लागिंग की जूतम पैजार और एग्रीगेटरों की भूमिका -ये लोग हिन्दी ब्लागिंग की बैंड बजा देंगे !

इन दिनों अपनी हिन्दी ब्लागिंग में  जूतम पैजार की स्थति है !जहां भी देखो  असहिष्णु पोस्टें ,टिप्पणियों ,अहम् की टकराहट ,चौधराहट यानि जितनी भी मानवीय कमजोरियां हो सकती हैं सभी खुले खेल फरुखाबादी के तर्ज पर सामने आ गयी हैं -देखते देखते सौहार्दपूर्ण माहौल न जाने कहाँ लोप हो गया है . साम्प्रदायिकता का भी  दौर दौरा है और धर्मों की श्रेष्ठता दांव पर लगा दी गयी है ! प्रकाशन का जिम्मा जब खुद अपने हाथ में आ जाय तो यह तो होना ही था ! गुणवत्ता पर ग्रहण लगना ही था ! कभी कभी लगता है कि जिस तरह अपना हिन्दुस्तान लोकतंत्र के लिए बिना परिपक्व हुए ही लोकतांत्रिक प्रणाली का प्रसाद पा गया और आये दिन हमारे चुने प्रतिनिधि इसका अहसास कराते रहते हैं ,ठीक वैसे ही खुद की पत्रिका और खुद ही लेखक ,प्रकाशक बन जाने का एक मौका ब्लॉग लेखन ने यहाँ  थमा दिया है उनको भी जिनकी शायद   ही कोई रचना ,धर्मवीर भारती ,मनोहर श्याम जोशी या समकालीन प्रभाष जोशी की सम्पादकीय से पास होती ! वे मूंगफली बेच रहे होते या नून तेल  की दूकान चला रहे होते !


लोग कहेगें कि मैं भी क्या अनुचित बात ले बैठा हूँ -ब्लॉग तो निजी डायरी है -जो भी लिखो डंके की चोट पर लिखो कौन ****वाला है रोकने वाला ? किसी भी के ** बाप का क्या जाता है ? मगर भाई रुकिए जरा थोडा दिमाग पर जोर डालिए न ! क्या ब्लॉग का माध्यम सचमुच आपको निजी डायरी सा लगता है ? किसी ने ब्लॉग के आगमन के साथ यह बात कह दी थी तो क्या वह ब्रह्मा की लकीर बन गयी ? आप खुद सोचिये क्या ब्लॉग सचमुच निजी डायरिया ही हैं ? अगर हाँ तब हम इन्हें सार्वजनिक किये क्यों घूम रहे हैं ? एक साथ निजी भी और सार्वजनिक भी -यह तो विरोधाभास हुआ ! निश्चय ही अंतर्जाल के ब्लॉग हमारी पारम्परिक डायरियों से भिन्न हैं -पारम्परिक डायरियां हम लोगों से छुपाते थ और इन डायरियों को दिखाने को लालायित रहते हैं ! मतलब अंतर्जाल की  ये डायरियां अब अपने प्राचीन रोल से अलग एक नया स्वरुप ले चुकी हैं -ये अब पूरी तरह सार्वजनिक हैं और ज़ाहिर हैं सार्वजानिक हैं तो इन्हें सार्वजनिक सरोकारों ,श्रेष्ठ मानवीय संस्कारों से भी जुड़ना होगा ! हम यह  लेखन गैर जिम्मेदारी से नहीं कर सकते !


और यही भूमिका आती है ब्लॉग एग्रीग्रेटरों की -वे अब महज चिट्ठों पर उड़ेली जा रही गंदगी को ढोते जाने को ही अभिशप्त क्यों हों ? मेरे विचार से वे चिट्ठों के संकलन में चयन का जिम्मा भी संभाल सकते हैं ! मतलब वह एक यांत्रिक काम न होकर जिम्मेदारी का काम हो और महज संकलन न होकर वह संचयन हो जैसे मधुमखी चुन चुन कर पराग कणों को इकठ्ठा करती है  और सोमरस सरीखे मधुकोष का निर्माण करती है ! मुझे खुशी है कुछ सामाज सेवा का जज्बा लिए समर्पित लोग इस काम में जुट गए हैं ! हिन्दी ब्लागिंग को अगर गर्त से उबारना है  तो यह जिम्मेदारी हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटरों को उठानी होगी ! नहीं तो मेरे एक मित्र के शब्दों में समाज के गंदगी ब्लॉग जगत में फैलाने वालों को ,
"यकीनन  रोकना होगा वरना ये लोग हिन्दी ब्लागिंग की बैंड बजा देंगे."

51 टिप्‍पणियां:

  1. आपके कथ्य से पूरी तरह सहमत हूँ। बहुत ही समयोचित बिषय आपने उठाया है। अगर ब्लागिंग को सही दिश - दशा देना है तो हम सबको अपनी अपनी भूमिका गम्भीरता से निभानी ही होगी।

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  2. एग्रीग्रेटरों की भूमिका कभी कभी अपनी दिशा से भटक जाती है और दोहरी मानसिकता का शिकार हो जाते है जिसके फलस्वरूप वे अपने दायित्वों का निर्वहन अच्छी तरह से नहीं कर पाते है .. अपनी ढपली अपना राग अलापने की आदत भी कभी कभी उन्हें विवादग्रस्त बना देती है .

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  3. @महेंद्र जी अपने उन्हें चेताया है यह जरूरी है -ताकि वे निरंकुश भी न होने पायें ! शुक्रिया !

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  4. आप सही कह रहे हैं. स्व-विवेक की बात करना अब बेकार सा हो गया है.

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  5. Satya hi to hai !!

    mere khyal se ek had tak taang khichai ka bhi apna hi anand hai....


    ...na baba na mujhe ismein shaml na maan jaiye !!

    par phir bhi 'ninda ras' ke baare main to bade bade lekhak 'badi badi' baatein likh gaye hain.

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  6. अपने देश में तो प्रधानमंत्री को भी एक फैसला लेने से पहले दस सलाहें करनी पड़तीं हैं यह एग्रीगेटर किस खेत की मूली है...

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  7. सही कहा है आपने |

    मैं वैसे किसी चुनाव प्रक्रिया के किलाफ था पर धर्म प्रचार वाले ब्लोगों की सडांध देख कर लगता है की अग्रीगाटर को अब लेखों को filter करना चाहिए |

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  8. मिसर जी...बहुत सटीक मुद्दा उठाया आपने.....मैं खुद हैरान हूं...क्योंकि मेरा मानना है कि जो इतना पढ लिख रहा है..उसमें संवेदनशीलता न हो ऐसा कैसे हो सकता है..रही बात एग्रीगेटर्स की तो इस तरह की अपरिपक्व व्यवहार वाली हिंदी ब्लोग्गिंग में यदि वे अपना दायित्व निभा रहे हैं ..तो निसंदेह: कमाल ही कर रहे हैं....

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  9. मज़हब प्रचार वाले पागलों का इलाज उपेक्षा और बहिष्कार में है। जाने क्यों लोग समझते नहीं !

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  10. बहुत बेहतर बात उठाई है आपने। अपने भीतर झाँकने का पाठ हमारे यहाँ सदियों से पढाया जाता रहा है।

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  11. सही है ब्लॉग लेखन स्वांत:सुखाय नही है ।

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  12. ब्लॉग लिखना निजी डायरी कुछ थोडा सा हिस्सा हो सकता .... जिसे सार्वजनिक किया जा सकता है ...पर इससे पहले हित अहित का विचार जरुर किया जाना चाहिए ..
    हिंदी ब्लोगिंग की बैंड बजने से पहले सब ठीक ठाक हो जाये ...
    बहुत शुभकामनायें ...!!

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  13. यदि निजी डायरियाँ भी मान लें तो क्या कोई स्वानुशासन नहीं ! ’स्व” की अनगढ़ ही सही, पर सहज उद्दाम अभिव्यक्ति क्या ’पर’ के अनुभवों का संचयन को समो नहीं लेती अपने भीतर !

    यह भी पैटर्नाइज्ड हो रहा है क्या अन्य माध्यमों की तरह ?
    निश्चिततः एग्रीगेटर्स को अपनी भूमिका के प्रति सचेत रहते हुए रचनात्मक और प्रासंगिक चिट्ठों का संकलन करना चाहिये , और अभिव्यक्ति के अभिनव माध्यम को उसके श्रेष्ठ स्वरूप में विकसित होने में सहायता देनी चाहिये ।

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  14. बहुत धन्यवाद ..कि आपने निहायत ही जरुरी बात उठाई. पर क्या आपको लगता है कि सभी ऐसा ही करते हैं? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो मैं आपसे सहमत नही हूं.

    ये जो गंदगी फ़ैलाई जा रही है इसके पीछे गिने चुने अहंकारी लोग हैं और यकीन मानिये कि ऐसा हर क्षेत्र मे होता है और ये रेशियो तो शायद हमेशा रहेगा. चूंकि आप ज्यादा नजदीक से जुडे हैं तो आप इसे देख पा रहे हैं.

    ऐसे मे इन सब बातों को छोडकर हम अपने मौलिक लेखन मे ध्यान दें तो हम अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दे पायेंगे.

    और आपकी बात सही है अगर हम गंभीरता पूर्वक देखे तो यह स्थिति डराती भी है.

    रामराम.

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  15. नयी संस्कृतियाँ किस चीज़ का बैंड नहीं बजा रही हैं.........कोई नहीं रोक सका होनी को.........
    कानून भी नहीं रोक सके अपराध को, वो बस सजा दे सकते हैं......... सभी प्रयास तब तक निरर्थक , जब तक हममें सवा अनुशासन नहीं आता, हम दुसरे से प्यार करना और उसका सम्मान करना नहीं सीखते.........

    वैसे भी जब इन्सान अत्यधिक बेबस और कुकर्मी अत्यधिक अधर्मी हो जाता है , प्रकृति स्वतः निस्तारण का बीड़ा उठाती है.....
    यही शाश्वत सत्य है............
    जो हो रहा है, उसे रोकना मुश्किल है, ये हमें स्वीकारना होगा और बचते-बचाते अपने अनुरूप रास्ते हमें स्वतः ही तलाशने होंगें...........

    वैसे जायज़ बात उठाने का हार्दिक आभार.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर.
    www.cmgupta.blogspot.com

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  16. इस मुगालते में न रहें कि कोई ब्लॉगिंग (हिन्दी!!) की बैंड बजा देगा. दरअसल (उन्हें नहीं मालूम कि,) वो खुद अपना बैंड बजा रहे होते हैं :)

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  17. ब्लाग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। निजी डायरी पेश करें या सार्वजनिक लेखन यह तो इसके प्रयोग करने वाले पर निर्भर है।

    संकलक की अपनी सीमायें होती हैं। उनको समझने की कोशिश की जानी चाहिये। रोज छप रहे सैकड़ों लेखों में अच्छा/खराब कैसे छांटा जा सकता है यह भी बताते चलिये जरा! क्या कोई संकलक या कुछ लोग ऐसा कर सकते हैं? संभव है कि कोई पोस्ट मुझे बहुत अच्छी लगे लेकिन वही आपको घटिया लगे।

    ब्लाग आम लोगों की अभिव्यक्ति के लिये उपलब्ध एक माध्यम है। इसका उपयोग आप लोग करते हैं। इसमें अभिव्यक्ति भी वैसी ही होगी जैसी आम लोगों की सोच होती है। अब कोई कहे कि घर-परिवार के लोग एक मंजे हुये साहित्यकार की सी भाषा में ही लिखें तो उसकी समझ की बलिहारी है।

    जिन महान साहित्यकारों की बात की आपने वे लोग जो पत्रिकायें निकालते थे उनकी तुलना ब्लाग से करना दो असमान चीजों की तुलना करना है। जो रेंज आज ब्लाग की है उस रेंज के मुकाबले वे पत्रिकायें कहीं नहीं ठहरतीं। ब्लाग में बहुत कुछ कूड़ा है, होगा भी आगे लेकिन यह भी सच है कि बहुत कुछ ऐसा भी है ब्लाग में जो किसी पत्रिका में नहीं दिखता।

    अच्छे और खराब में चुनाव करना और केवल अच्छे को सामने लाना कुछ कुछ सर्वश्रेष्ठ को बचाकर घटिया को खतम कर देना जैसा है। ऐसा करना मतलब ब्लागिंग की मूल प्रवृत्ति (सबको अभिव्यक्ति का मौका) को खतम करना होगा। स्वयं सरस्वतीजी भी इनका चुनाव करेंगी उसमें भी पक्षपात का आरोप लगेगा।

    यह मात्र संयोग ही है कि मैंने जब ब्लागिंग शुरू की तब कोई संकलक नहीं था। ब्लागिंग के इत्ती सुविधायें नहीं थी। बाराहा और अन्य सुविधाओं के अभाव में कट-पेस्ट लेखन टिप्पणी होती थी। तबसे आज तक मैंने ब्लागिंग को लगातार समृद्ध होते ही देखा है। गाली-गलौज और जूतम पैजार भी हमने कम नहीं देखी। एक से एक घटिया ब्लाग देखे लेकिन वे आये ,चमके और चले गये। आज उनमें से बहुतों के नाम नहीं जानते लोग।

    संकलक की भूमिका बेहतरीन रही है ब्लागिंग की समृद्धि में। लेकिन यह भी याद रखना होगा कि ब्लागर और ब्लाग है तो संकलक हैं। ब्लाग के कारण संकलक है न कि संकलक के कारण ब्लाग। पिछले दिनों ब्लागवाणी के बंद होने कारण जो हाहाकार मचा उसको देखकर मुझे किंचित आश्चर्य भी हुआ कि आम जनता को यह जानकारी नहीं कि दो संकलक और चल रहे हैं! किसी संकलक की बेहतरीन सु्विधाओं के बावजूद उसका बंद होना मतलब ब्लागिंग बन्द हो जाना को जिस तरह प्रचारित किया गया उससे आश्चर्य हुआ।

    मेरी समझ में फ़िलहाल तो न किसी ब्लागर की ताकत है और न किसी संकलक की औकात जो हिन्दी ब्लागिंग का बैंड बजा सके। इसमें तो अभी श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर सामने आना है!

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  18. "वे मूंगफली बेच रहे होते या नून तेल की दूकान चला रहे होते !"

    मूँगफली बेचना क्या अपराध है ? संभव है मूँगफली बेचने को आप बहुत छोटा काम समझते हों, पर हम इसके लिए आपकी प्रशंशा नहीं कर सकते !

    आप किसी मूँगफली बेचने वाले के घर जन्मे होते तो शायद इस अहंकार की भाषा का प्रयोग न करते ! पैर जमीन पर रखिये हवा में न उड़िए जी, समय बड़ा बलवान है !

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  19. @@अनूप जी ,आपने मन से अपने विचार व्यक्त किये ,आभार ! यही तो है- वादे वादे जायते तत्वबोधः! (आप इतनी संस्कृत तो समझते ही हैं न, जाने क्यों इस देवभाषा से एलर्जी है आपको !) बहरहाल ,यह हिन्दी संकलकों पर छोडिये की वे गुणवता का निर्धारण कैसे कराते /करते हैं -यह श्रमसाध्य है तो मगर असम्भव नहीं -आगे चल कर कुछ ऐसे गैजेट भी बन ही जायेगें जो आपत्तिजनक वाक्य वाक्यांशों पर स्वतः ही सक्रिय होकर उन्हें रिव्यू में दाल देगें ! आज नेट पर नक़ल की हुयी सामग्री को ढूँढने का भी उपाय है -यह काम भी टेक्नोलॉजी ही संभाल लेगी ! वर्ड प्रासेसर ,ट्रांस्लीटेरेशन ,अनुवाद का काम बेहतर होता जा रहा है !
    तो हम आवश्यकता समझें तो तरीका भी उपलब्ध हो ही जाएगा -देर सबेर !

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  20. @विवेक जी कम से कम व्यंजना की समझ तो रखिये,आप ब्लाग जगत के घोषित कवि हैं -वैसे भी ,मैंने कब कहा की मूंगफली बेंचना खराब है -यह तो आपके कवि मन ने भ्रम उपजाया है !
    मूंगफली बेचना ब्लॉग लेखन से तो मुनाफे का ही धंधा है आपको आजमाना चाहिए ! याहं क्या धरा है और इसे श्रेष्ठ कह कौन रहा है दूसरे काम काज की तुलना में !
    +थोड़ी व्यस्तता है नहीं तो आपके ब्लॉग पर भी टिप्पणियाँ कर रहा होता -पहले नियमित नहीं करता था क्या !

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  21. बहुत बढ़िया ! गाँधी जयंती की शुभकामनायें!

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  22. आपका कहना सही है. मगर यह कैसे तय होगा कि गन्दगी कौन उड़ेल रहा है और इसका पैमाना क्या है? अगर यह नियम पक्षपात की भेंट चढ़ गया तो???????????

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  23. किन शब्दों को ब्लाक करेंगे सोफ्टवेयर जरा बताइए अरविन्द जी ....ऐसा संभव नही है. एक शब्द का अर्थ उसकी वाक्य में उपस्थिति से इतर कुछ मायने रखता है?

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  24. @ लवली जी मैं कोई गाडफादर या बिलगेट्स तो नहीं हूँ पर इतना तो कह ही कह सकता हूँ दूसरे साफ्टवेयर इंजीनियर आपकी इस यथास्थितिवादिता से सहमत न हो -
    मुझे यह लगता है की जिस तरह की तीव्रता के साथ प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है ऐसे गजेट्स तो साफ्टवेयर इंजीनियरों के लिए बच्चों का खेल होना चाहिए !
    गंदे शब्दों को तो साफ़्टवेयर डिटेक्ट कर सकें यह साफ्टवेयर क्यों नहीं बन सकता अभी फिलहाल शुरुआती दौर में !
    स्पैम फिल्टर का इस्तेमाल तो हम कर ही रहे हैं !

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  25. @अरविन्द जी - जी बिलकुल "ऐसे गजेट्स तो साफ्टवेयर इंजीनियरों के लिए बच्चों का खेल" ही हैं ..पर शायद आप मेरा प्रश्न समझे नही, मैं पूछ रही हूँ ..कई शब्दों के अर्थ अलग -अलग वाक्यों और परिप्रेक्ष्य में बदल जाते हैं उनके बारे में आप क्या कहेंगे ?
    और दूसरी बात यहाँ तथाकथित अच्छे और वरिष्ठ ब्लोगर भी "चूतिया" और " ***** के पीछे लात " जैसे विशेषणों का प्रयोग धड़ल्ले से करते नजर आते हैं... उनके बारे में क्या ख्याल है ? आपकी टिप्पणियाँ भी वहां सुशोभित हो ही रही है.

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  26. समाज की गन्दगी ब्लॉग जगत में अगर फ़ैल रही है तो इसमें अजूबा कैसा? ब्लॉगर भी तो इसी समाज से आता है. दूसरी बात यह है अरविन्द जी, कि अगर आपको यह लगता है कि आप और साथ में आपके दोस्त बाकी ब्लॉगर से अलग हैं तो आपको उन ब्लॉगर का नाम, ग्राम, पता और उनके कर्म लिखने चाहिए जिन्हें आप गन्दा समझते हैं. गन्दगी से अगर किसी भी समाज का सफाया किया जा सकता या फिर बैंड बजाया जा सकता तो कब का बज जाता. किसी की इतनी हैसियत नहीं कि वो हिंदी ब्लागिंग (या फिर किसी और ब्लागिंग) का बैंड बजा दे.

    गन्दगी फैलाने की कोशिश करने के लिए पोस्ट और टिप्पणियां ही तो लिखी जायेंगी. चार पोस्ट अगर गन्दगी फैलाने के लिए लिखी जाती हैं तो उसका जवाब चार अच्छी पोस्ट से हमेशा दिया जा सकता है. अगर कोई केवल इस ध्येय से ब्लॉग लिखता है कि उसे केवल गन्दगी फैलाने के लिए ब्लागिगं करनी है तो मुझे नहीं लगता कि वो गन्दगी फैलाने वाली पोस्ट हमेशा लिखता जाएगा. ज्यादा गन्दगी फैलाएगा तो उसे अपनी गन्दगी में ही सांस लेना मुश्किल हो जाएगा और वह यहाँ से निकल लेगा.

    असल समस्या यह है कि हम अपनी सुविधा के हिसाब से चीजों को देखते हैं. अपने ही ब्लॉग पर हम कभी इस बात पर पोस्ट लिख कर खुश होते हैं कि ब्लागिंग बहुत अच्छा माध्यम है अभिव्यक्ति का क्योंकि इसमें हम जो लिखते हैं उसे छापने के अधिकारी भी हम ही हैं. लेकिन जब समय आएगा तो हम यह भी लिखने के लिए तैयार रहते हैं कि हमें खुद का लिखा छापने की आजादी मिली इसलिए हमारे लेखन की गुणवत्ता के साढ़े बारह बज गए. इससे अच्छा तो होता कि हम जो लिखते हैं, वह एक सम्पादक की कैंची के नीचे से गुजरता.

    हम बहुत सुविधावादी हैं. और मूल समस्या यही है. एक बार फिर से वही कहूँगा कि किसी की इतनी औकात नहीं है कि वह हिंदी ब्लागिंग की बैंड बजा सके. न किसी व्यक्ति की और न ही किसी समुदाय की. न ही किसी चौधरी की और न ही किसी तथाकथित गुटबाज की.

    "हिंदी ब्लागिंग अपने शैशवकाल में है", यह कहने वाले असल में अपने शैशवकाल से नहीं निकल सके हैं. शायद चाहते भी नहीं.

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  27. बैण्ड बजे या तुरही। किसी सम्पादक के हत्थे चढ़ने का कोई इरादा नहीं!

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  28. ब्लॉग एग्रीगेटर शुरू करना ओर चलाना बड़ा भारी काम है ....चिठ्ठा जगत ओर ब्लोग्वानी वाले लोग वाकई मेहनती लोग है जो बिना किसी आर्थिक फायदे के रोज कई एक्स रे से गुजर रहे है .....खास तौर से जब... जब वे किसी ओर पेशे से जुड़े लोग है ...ब्लॉग एग्रीगेटर कभी भी कोई ऐसा पैमाना नहीं बना सकता जो तय करे अच्छी ओर बुरी पोस्ट कौन सी है ...वो तो एक न्यूट्रल प्लेयर है जिसका कम ब्लोगों को एक मंच पे इकठ्ठा करना है जिससे एक आम पाठक को ये सहूलियत हो .ओर वो अपने आप तय करे उसे क्या पढना है ओर क्या नहीं ....
    ब्लॉग लेखन आप के लिए क्या है ..ये आपने ही तय करना है ....इसकी सीमाये भी आपने तय करनी है ...ओर लक्ष्मण रेखा भी ...ओर आम तौर पे सभ्य समाज में रहने वाले बाशिंदे जिस तरह से एक सभ्य आचरण करते है वैसा है यहां भी अपेक्षित है ....जाहिर है लिखित नियम कुछ नहीं है .....ओर कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले एक समाज के ऐसे तबके का प्रतिनिधित्व करते है जो आम समाज से ज्यादा पढ़ा लिखा है ......तो उनसे ज्यादा अपेक्षा है .....
    आखिर में ....एक ही बात कहूँगा..जो अच्छा लगे उसे पढिये ....बाकी को भूल जाइए ...आखिर टी वि में भी तो रिमोट होता ही न

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  29. @बहुत अच्छे विचार आ रहे हैं -एक सार्थक बहस ! शुक्रिया शिवकुमार जी ! लवली जी, एक रायशुमारी हो ही जाय शब्दों को लेकर ! मुझे भी ऐसे शब्द मालूम हैं , जिस धड़ल्ले से आप एक शब्द का इस्तेमाल कर गयीं, मैं करुँ तो स्तब्ध रह जायेगीं आप और साथ ही और भी लोग ,मगर संस्कार रोकते हैं ! अब मैं यह नहीं कह रहा की मेरे संस्कार बाकी दुनिया से अच्छे है ! अच्छा बुरा सापेक्ष है और संस्कार राग एक आत्मतोषी वृत्ति है ! मगर है तो है !
    अगर बहुमत बन जाए तो ऐसे शब्दों को चिह्नित कर उन्हें अलविदा ही कह दिया जाय -तकनीक के जरिये और आप आई टी के लोग मदद करें (मदद करो संतोषी माँ की स्टाईल में हा हा ) ! यह पहला चरण हो -फिर आगे तो तकनीक अभिवयक्ति को भी पहचानने लग जायेगी !
    दीपावली करीब है आईये कूड़ा साफ़ करें ब्लॉग जगत का -साथी हाथ बढ़ाना साथी रे !

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  30. मैं स्तब्ध अब नही होती कारन हिंदी ब्लोगिंग ने मेरी आँखें खोल दी है ...और ऐसा भी नही है किसी असम्मानित ब्लोगर ने ऐसा लिखा हो जो मैंने पढ़ा .. चाहती तो लिंक दे सकती थी ..पर देना नही चाहती ..यह सब क्लांत करता है मुझे अगर आपको भी तब आप टिप्पणी कैसे करते हैं उन पोस्टों पर जहाँ यह सब लिखा होता है ?
    यह दोहरी मानसिकता क्यों है? जब तक आपको समस्या न हो सब ठीक है ...जैसे ही हुई, हम लगे सुविधावादी बनने ...मुझे भी इन शब्दों से एतराज है ..पर लोगों ने अब तक चुप्पी कैसे साध रखी है ..कैसे इन शब्दों को अपने सहयोगिओं द्वारा बोले जाने पर लोग खुस होते रहे हैं? और जब बात खुद पर आती है हमें बुरा लगाने लगता है, ऐसा क्यों है?

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  31. मेरा लिखा अच्छा और दूसरे का लिखा सफाई के लायक से हट कर अगर मुद्दों पर अच्छा बुरा सही ग़लत हो और सम्मिलित रूप से उन लोगो को बाध्य की या जाए की वो आपत्तिजनक शब्दों का इस्तमाल ना करे जो किसी भी लिंग , समूह या व्यक्ति के विरूद्व हो तो कुछ सार्थक होगा
    ब्लोगवाणी के बंद होने से ब्लोगिंग बंद होगी ये सोचना बहुत ग़लत हैं । लेकिन फ्री मे कोई आप की पोस्ट को दिखा रहा हैं और एक दिन दिखना बंद करदे तो शिकायत क्यूँ ? और अगर शिकायत हैं तो सम्मिलित रूप से पैसा देकर क्यूँ नहीं किसी ऐसी सुविधा को शुरू किया जाए जिसमे वो सब हो जो हम चाहते हैं { क्या ये सम्भव हैं }
    हिन्दी ब्लॉगर और हिन्दी लेखक अलग अलग हैं इस बात को मान लेने मे क्या हर्ज़ हैं । ब्लोगिंग एक समाज हैं और उस समाज को हिन्दी के लेखक अगर हथियाना चाहते हैं तो क्या वो सही हैं ?
    अपनी अपनी सोच होती हैं , व्यक्तिगत रूप से आप ने कई जगह नारी ब्लॉग को ऐसा मंच बताया जहाँ केवल वैमनस्य बढाया जाता हैं क्यूँ ? क्युकी वहा निरंतर हिन्दी ब्लॉग जगत पर जेंडर ब्यास से लिप्त बातो को हाईलाईट करके ब्लॉगर के नाम के साथ दिया जाता हैं । नारी ब्लॉग की ये कोशिश क्या सफाई नहीं समझी जा सकती । विरोध करने का सबका अपना तरीका होता हैं ।
    शब्दों से क्या फरक हैं डॉ अरविन्द उनके पीछे के मंतव्य क्या कहते हैं ये भी जरुरी हैं और उस से भी ज्यादा जरुरी हैं की हम जब कोई सही हो तो अपने ब्यास भूल कर उसका साथ दे ताकि ब्लॉग ही नहीं मानसिकता स्वच्छ हो सके

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  32. वैसे इन्ही रोकेगे भे तो कैसे ?

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  33. बहिष्कार करना ही एक तरीका है और कुछ नहीं. कुछ स्वच्छता वाले ब्लॉग मैंने भी देखे. सोचा कुछ टिपण्णी की जाय वहां भी... फिर ख्याल आया... 'मुर्ख को उपदेश देना उसके क्रोध को बढ़ाना है'. उस तरह के ब्लॉग यही चाहते हैं कि आप उनके पोस्ट पर टिपण्णी करें उन पर विरोधी पोस्ट लिखें. उनको इगोनोर करके निकलने में ही मुझे तो समझदारी दिखती है !

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  34. @रचना जी ,कोई एका बन सके इस दिशा में आपकी पहल का स्वागत है -छोटी मोटी खटर पटर होने में बुराई नहीं है ,बल्कि यह जीवन्तता दर्शाती है मगर मुश्किल तब होती है जब हम शिष्ट समाज के कतिपय सर्वकालिक , सार्वभौमिक और सार्वजनिक आचार शास्त्र (मैनेरिज्म एंड एटिकेट्स ) का जाने अनजाने उल्लंघन कर जाते हैं -अगर भूल भी हो गयी तो सारी तक नहीं कहते !हम उस दुनिया में जी रहे हैं जहाँ सार्वजनकि स्थल पर किसी अनजान से तनिक भी स्पर्श हो जाने में मुंह से अकस्मात सारी निकल आता है -मगर इस आभासी जगत में हम क्या क्या कह जाते हैं और उस पर भी ठस बने रहते हैं यह विचार के योग्य है !
    शुक्रिया !

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  35. @रचना जी ,आपका यह विचार भी स्वागत योग्य है की हम एग्रेगेटर सेवा का कुछ मूल्य चुकता करें -मगर वह नामिनल हो और लोगों की अच्छी तरह से पड़ताल और उनकी पहचान असंदिग्ध रूप से हो जाने पर ही स्वीकारी जाय -नहीं तो प्रायोजित मकसद वाले और धर्म प्रचारक अच्छा खासा पंजीकरण शुल्क देकर चौडे से अपना एजेंडा लागू करेगें ! आपके कुछ और बिंदु भी लोगों के काबिले गौर हैं -

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  36. बहुत अच्छी बहस शुरू हुई है.
    -१-ब्लॉग पूरी तरह निजी डायरी नहीं, मगर निजी डायरी के वे पन्ने हो सकते हैं जिन्हें सार्वजानिक किया जाने लगा है.
    विरोधाभास!
    -२-अग्रीग्रेटर एक मंच हैं को निस्वार्थ सेवा आकर रहे हैं उनका मान रखना चाहिये.
    ३-जिस तरह का शोर' पिछले दिनों देखने को मिला उस से ब्लॉग्गिंग से मन हट सा गया है और यह बात कहने के लिए आप की यह पोस्ट सही लगी..
    उन दिनों अगर आप देखें तो संबंधित विषय वाली दो विरोधी पोस्ट में टिप्पणीकर्ता ऐसे लोग भी थे जो थाली के बैंगन वाली कहावत को चरितार्थ कर रहे थे.यह देख कर एक साफ़ सुधरी सशक्त छवि थी हिंदी ब्लॉग्गिंग की जो धूमिल हो गयी है.ऐसा लगा की जैसे सड़क पर उपद्रवी इकट्ठा हो गए हैं..
    -४-कहीं सुनी और पढ़ी भी थी---की मुफ्त की निजी दी गयी सेवाएँ हों या सरकारी सेवाएँ उनका दुरूपयोग करना भारतियों को खूब आता है यह बात फिर ताज़ा हो गयी..मन दुखी हुआ की अगर पढ़े लिखे लोग ऐसा बर्ताव कर सकते हैं इस तरह से झगड़ते हैं तो कथित अनपढ़ नासमझ के बारे में क्या कहें?
    ब्लॉग्गिंग में आनेवाले लोगों को पढ़े लिखे संभ्रांत ,उच्च वर्ग का माना जाता है.. इसलिए क्यों की इन्टरनेट -कंप्यूटर इस्तमाल करना अभी झुग्गी झोपडी में सामन्य नहीं हुआ है.
    -५- पिछले कुछ प्रकरण सोचने पर बाधित करते हैं की ऐसी ब्लॉग्गिंग का क्या फायदा जहाँ इन बातों में समय की बर्बादी होती हो.
    6-हिंदी ब्लॉग्गिंग का भविष्य?संगीता जी बताएं?
    mere khyal se-जनमानस ki मानसिकता में सकारात्मक बदलाव के बिना इसे सार्थक आगे ले जाना अब मुश्किल ही दिखाई देता है.

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  37. त्रुटी सुधार-
    २-अग्रीग्रेटर वो मंच हैं जो निस्वार्थ सेवा रहे हैं, उनका मान रखना चाहिये.

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  38. हम तो इस मजेदार बहस को पढ़कर मजे के साथ अपना ज्ञान वर्धन कर रहे है जी !

    आखिर ये ही कहेंगे बहस बहुत सार्थक हो रही है

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  39. @थाली के बैंगन -हा हा हा !
    नाऊ चीयर अप अल्पना जी ,इसीलिये तो यह शांति प्रयास है !

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  40. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  41. आप बिल्कुल ही सच बात कह रहे है..कुछ तो होना चाहिए..

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  42. बैन्ड तो शादियों में बजता है न, जी ।
    जरा बजवाईये तो सही, गँदगी में लोट कर जी ऊब गया ।
    इसी बहाने जरा हम भी कूद फाँद कर लेंगे ।
    मैंने तो पैरोडी भी बना लिया है,
    " एग्रीगेटर बना है दूल्हा, और पोस्ट खिले हैं सज के..
    ओ मेरी भी पोस्टिया सज जाये वहाँ, ये जुगाड़ करो सब मिल के "

    वईसे ताऊ की उक्ति और शिवकुमार मिश्र जी कटोक्ति में भी दम है ।
    यह बहस और चिन्ता बेमानी है, जिसको जैसा ठेलना है वह तो ठेलबे करेगा
    विवेक को आप कहाँ तक ललकारते फिरेंगे !

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  43. हम टीवी तो देखते हैं न...टीआरपी के खेल से भी परिचित हैं। जिस तरह के कार्यक्रम से एक बार टीआरपी मिल गई तो वही बार-बार ठेला जाता है। अब समझिए कि टिप्पणियां, ब्लॉ़ग की टीआरपी मीटर हैं। दिलचस्प ये कि मैंने अक्सर 'उस तरह' के ब्लॉग्स पर ज़्यदा टिप्पणियां देखी हैं, वे बारंबार पढ़े भी जाते है (ब्लॉगवाणी का डेटा तो कम से कम यही दिखाता है)ये भी सही है कि ज़्यादातर टिप्पणियां उन्हें ये बताने के लिए ही लिखी होती हैं कि भैया, ये ब्लॉग को काहे इतना प्रदूषित करने में लगे हो। लेकिन उनका काम तो बन ही गया। ख़ूब पढ़ा गया और जम कर टिप्पणी मिलीं।
    तो मेरी समझ से हल ये है कि हमें कमोबेश पता लग ही गया है कि कहां किस तरह का लेखन हो रहा है। उन ख़ास ब्लॉग पर न तो हम जाएं, न टिप्पणी करें। जब खाद-पानी नहीं मिलेगा तो ऐसे ब्लॉग अपने आप बंद हो जाएंगे। बस, याद रखिए टीआरपी थ्योरी!!!

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  44. @LOvely श्लील अश्लील का नीर क्षीर विवेक एग्रेगेटर पर ही छोड़ दिया जाय -उनकी एक कमेटी कर लेगी यह !

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  45. इन दिनों अपनी हिन्दी ब्लागिंग में जूतम पैजार की स्थति है !जहां भी देखो असहिष्णु पोस्टें ,टिप्पणियों ,अहम् की टकराहट ,चौधराहट यानि जितनी भी मानवीय कमजोरियां हो सकती हैं सभी खुले खेल फरुखाबादी के तर्ज पर सामने आ गयी हैं -देखते देखते सौहार्दपूर्ण माहौल न जाने कहाँ लोप हो गया है . साम्प्रदायिकता का भी दौर दौरा है और धर्मों की श्रेष्ठता दांव पर लगा दी गयी है ! प्रकाशन का जिम्मा जब खुद अपने हाथ में आ जाय तो यह तो होना ही था ! गुणवत्ता पर ग्रहण लगना ही था ! कभी कभी लगता है कि जिस तरह अपना हिन्दुस्तान लोकतंत्र के लिए बिना परिपक्व हुए ही लोकतांत्रिक प्रणाली का प्रसाद पा गया और आये दिन हमारे चुने प्रतिनिधि इसका अहसास कराते रहते हैं ,ठीक वैसे ही खुद की पत्रिका और खुद ही लेखक ,प्रकाशक बन जाने का एक मौका ब्लॉग लेखन ने यहाँ थमा दिया है उनको भी जिनकी शायद ही कोई रचना ,धर्मवीर भारती ,मनोहर श्याम जोशी या समकालीन प्रभाष जोशी की सम्पादकीय से पास होती ! sahmat hoon 100%......

    असहिष्णु पोस्टें ,टिप्पणियों ,अहम् की टकराहट ,चौधराहट..... yeh sab dekh ke pareshani to hoti hi hai.... par inlogon ko ap aur hum badal nahi sakte...

    हिन्दी ब्लागिंग को अगर गर्त से उबारना है तो यह जिम्मेदारी हिन्दी ब्लॉग एग्रीगेटरों को उठानी होगी ! नहीं तो मेरे एक मित्र के शब्दों में समाज के गंदगी ब्लॉग जगत में फैलाने वालों को ,
    "यकीनन रोकना होगा वरना ये लोग हिन्दी ब्लागिंग की बैंड बजा देंगे.
    waaqai mein band baja denge sab...... par inko roka kaise jaye? waise mere ek mitr hain IIT Kanpur mein.... IT Dept. mein seniour pravakta hain........ wo kahte to hain ki wo aisa aggregator banaa sakte hain.... jo ulti seedhi poston ko rok saktin hain..... par shayad yeh sambhav nahi hai..... kahna aasaan hota hai....implemnetation mushkil...... haan! ek solution hai ki nazarandaaz kar diya jaye...bas domain support karna chahiye....aap ne yeh bahut hi achcha mudda uthaya hai.....

    लोग कहेगें कि मैं भी क्या अनुचित बात ले बैठा हूँ -ब्लॉग तो निजी डायरी है -जो भी लिखो डंके की चोट पर लिखो........ nahi bilkul bhi anuchit baat nahi hai..... har cheez pe censor hai..... to blog pe kyun nahi? niji kuch bhi nahi hota.... niji agar hai to kaagaz pe likhiye aur file bana kar rakh lijiye...... aapse sahmat hoon ki .... ki blog pe censor hona chahiye.....

    ek achcha mudda uthane ke liye dhanyawaad....

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  46. बहस मजेदार जा रही थी... शब्दों पर न भी जाया जाये तो भी ऐसे कई तंत्र विकसित किये जा सकते हैं जिनसे गलत तरह की पोस्टों का सफाया हो जाये, जैसे गूगल में 'फ्लैगिंग' कि सुविधा है. अगर कोई पोस्ट कई बार फ्लैग की जाये तो उसे 'मॉडरेशन' में डाला ही जा सकता है..

    सुझाव कई हैं इस तरह के, दिक्कत होगी स्वीकारोक्ती की... सेन्सरशिप बड़ी मुश्किल डगर है, इस पर चलने वाले का फिसलना हुआ ही हुआ.

    बचते-बचाते भी डंडा बजा दिया जाता है.

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  47. @भाई कोई है जो मेरी मदद कर दे और इस पोस्ट की चर्चा का दस्तावेजीकरण कर दे ताकि सनद रहे और मौके पर काम आये !

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  48. " क्या ब्लॉग का माध्यम सचमुच आपको निजी डायरी सा लगता है ? "
    ब्लागजगत उससे कहीं आगे बढ गया है और अब वह साहित्य की धरोहर का कार्य भी कर रहा है। रही बात अच्छे और बुरे लेखन की, तो उसे पाठक के बुद्धिबल पर छोड दें। जो अच्छा है, वो टिकेगा, जो बेकार है, खुद-ब-खुद लुप्त हो जायेगा॥

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  49. अच्छा लगा यह देखकर कि अरविंद जी ने जिस व्यक्ति का कोटेशन हेडिंग में लगाया था, उसका भी कमेंट यहां आ गया। दरअसल यह चर्चा शुरू ही क्यों हुई, चाहकर भी अरविंद जी उसका जिक्र नहीं कर सके। और यही सही तरीका है, क्योंकि वाकई उपेक्षा ही गलत चीजों को रोकने का उपाय है। पर मेरी समझ से एग्रीगेटर एक काम तो कर ही सकते हैं। और वह है रजिस्ट्रेशन, जिसमें फोटो, पते के साथ मेल आईडी और मोबाइल नं० भी मांगा जाय। और मेल आईडी और मोबाईल नं० दोनों के द्वारा कन्फर्मेशन होने के बाद ही किसी ब्लॉग को एग्रीगेटर पर दिखाया जाए, ताकि किसी प्रकार की गडबडी होने पर उस व्यक्ति को चेताया जा सके। इससे उत्पाती लोगों को काफी हर तक रोका जा सकेगा। और मेरी समझ से एग्रीगेटर पर अपनी पोस्ट दिखाने के लिए लोग इतनी कीमत तो अदा ही कर सकते हैं।

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  50. अच्छी बहस चली। एग्रीगेटर्स की भूमिका महत्वपूर्ण है।
    मैं भी इस धारणा से हमेशा परेशान रहा हूं-ब्लॉग तो निजी डायरी है -
    ब्लागिंग इससे बहुत आगे की चीज है और आगे निकल चुकी है।

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