इन दिनोंअपने हिन्दी ब्लॉग जगत में हिन्दी के स्तर को लेकर बहस मुबाहिसों का महौल गरम है -बाहर के ४५ डिग्री सेल्सियस से भी शायद ज्यादा गरम .कुछ ब्लागरों ने तो धमकी तक दे डाली है कि वे कथित " क्लिष्ट " हिन्दी के ब्लागों से गुरेज करने में भी नही हिचकेंगें ! ! मजे की बात है की सबसे पहले मुझे क्लिष्ट जैसे 'क्लिष्ट 'शब्द की जानकारी ही एक ऐसे सज्जन से हुयी थी जिनकी हिन्दी बस माशा अल्लाह ही थी ! तब मैंने उनसे पूंछा था कि जब उन्हें हिन्दी के कठिन (?) शब्दों से परहेज है तो वे "क्लिष्ट" शब्द ही इतनी सरलता से कैसे जान गए हैं ! क्योंकि यह तो स्वयं में ही एक क्लिष्ट शब्द है ! इसका सरल समानार्थी है कठिन ! और मैंने जब उनसे यह जानना चाहा था कि जैसे उन्होंने क्लिष्ट शब्द को जिह्वाग्र कर डाला है दूसरे कथित कठिन शब्दों को क्यों नही सीखते जाते -क्योंकि शब्द के अर्थ को जब ठीक से आत्मसात /हृदयंगम कर लिया जाता है तो वे फिर कठिन रह ही कहाँ जाते हैं ? मुझे याद है कि मेरे सवाल का माकूल उत्तर न देकर वे बगले झाकने लग गए थे !
स्तरीय हिन्दी से आप में से अधिकांश बिदकने वाले लोगों की भी कहानी वैसी ही है जो क्लिष्ट जैसे क्लिष्ट शब्द को तो हिन्दी से अपनी आलस्य जनित दूरी बनाये रखने के ढाल स्वरुप सहज ही सीख लेते हैं और धडल्ले से आत्मरक्षा में इसका इस्तेमाल करते फिरते हैं मगर "स्तरीय " हिन्दी सीखने की ओर एक भी कदम नही उठाते ! ठीक है हिन्दी के बोलचाल की भाषा के हिमायती बहुत हैं ,मैं भी हूँ ! तुलसी ने तो यहाँ तक कह डाला -भाषा भनिति भूति भल सोयी ,सुरसरि सम सब कर हित होई ! ( भाषा ,कविता यश -प्रसिद्धि वही अच्छी है जिससे गंगा नदी की भांति सबका हित हो ! ) मगर ख़ुद तुलसी के भाषाई पांडित्य पर क्या कोई उंगली उठा सकता है ? वे संस्कृत के भी प्रकांड विद्वान् थे ! संदेश साफ़ है किसी भी भाषा को गहराई तक जानिए मगर जन सामान्य के लिए उनसे उनकी ही बोली भाषा में संवाद कीजिये ! इन दिनों हिन्दी को भ्रष्ट करने की मानो एक मुहिम ही चल पडी है ,कई विद्वान् भी चलताऊ भाषा की पुरजोर वकालत कर रहे है ! हिंगलिश का बोलबाला है ! पर इससे हिन्दी के रूप सौन्दर्य और भाषाई शुचिता का कितना नुकसान हो रहा है -क्या कोई भाषा विज्ञानी बता सकेंगें ? बात क्लिष्ट और सरल हिदी की नही है -बात भाषा के नाद सौन्दर्य का है -वह बनी रहे भले ही उसमें कथित क्लिष्ट शब्द हो या न हों ! मैंने प्रायः देखा है कि विज्ञता के अभाव में सरल शब्दों का इस्तेमाल करने वाले लोग भाषा का कबाडा कर देते हैं और दंभ भरते हैं कि वे सरल हिन्दी के प्रति प्राणपण से समर्पित हैं -वहीं ऐसे भी ब्लॉग लेखक हैं जो सहज हो भाषाई प्रयोग करते हैं और इस बात को लेकर जरा भी असहज नही होते कि वे क्लिष्ट या सरल शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं -फलतः भाषा का एक सहज स्वरुप कल कल बहती नदी या झरने सदृश आ उपस्थित होता है -मन मोह लेता है ! ओह भूमिका लम्बी हो गयी ! मैंने यह विमर्श ( यह भी शब्द प्रचलन में कोई एक डेढ़ दशक से ही ज्यादा है ) एक खास मकसद से शुरू किया था ! वह बात ऐसी है न कि इन दिनों शादी व्याह का मौसम है तो तरह तरह के रंग बिरंगे निमंत्रण कार्ड मिल रहे हैं और वे भी जिनका भषाई सरोकार से कुछ भी लेना देना नही है ऐसे लच्छेदार भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं कि बस कुछ मत पूछिए !
बचपन में शादी के निमत्रण कार्डों का यह मजमून आज भी रटा हुआ सा है -
भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हे बुलाने को
हे मानस के राजहंस तुम भूल न जाना आने को
कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है -मगर अब इस तरह का भाषाई व्यवहार थोडा आउट डेटेड सा है ! बैकवर्ड सा ! क्यों ?
मगर भावों की सुन्दरता आज भी इन पंक्तियों में वैसी ही है ! अब जो यह नही जानते या जानने की कोशिश नही करेंगें कि आमंत्रित को मानस का राजहंस क्यों कहा जा रहा है, वे भला इन पंक्तियों का आनंद कैसे उठा सकते हैं ? -अब इसमें कहाँ कोई क्लिष्ट शब्द है -पर हमारी एक साहित्यिक मान्यता यहाँ विद्यमान है जिसमें मानस के हंस में नीर क्षीर विवेक की क्षमता दिखायी गयी है ! नीर क्षीर की क्षमता बोले तो विद्वता का उत्कर्ष !
ऐसे ही इन दिनों गरमी में बार बार के बिजली के चले जाने से उत्पन्न असहायता और खाली समय के कुछ सदुपयोग के लिहाज से मैंने निमंत्रण कार्डों पर एक नजर डाली है ! अब उपर्युक्त सरीखे दोहे तो प्रचलन में नही हैं -अब ज्यादातर गणेश जी से जुड़े संस्कृत के श्लोकों से काम चलाया जा रहा है ( फिर वे तो और भी क्लिष्ट हुए ) ! मगर जरा निमंत्रण के इस भाषाई सौन्दर्य पर भी तो दृष्टिपात कीजिये - " ........के पावन परिणयोत्सव की मधुर बेला पर पधार कर अपने स्नेहिल आशीर्वाद से नवयुगल को अभिसिंचित कर हमें अनुगृहीत करें......" या फिर इधर गौर फरमाएं - " ...के पाणिग्रहण ( कैसा क्लिष्ट शब्द है ?) संस्कार में आनंद और उल्लास के इस मांगलिक अवसर पर उपस्थित होकर हमें आतिथ्य का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें ..." या फिर ....." ....के मंगल परिणयोत्सव की मधुरिम बेला में पधार कर अपने आशीर्वाद की मृदुल ज्योत्स्ना से नव युगल के जीवन पथ को आलोकित करें ॥"
ये सभी " क्लिष्ट शब्द ही तो हैं मगर देखिये तो वे हमारे मांगलिक क्षणों की साथी हैं ! पता नही कैसे वे लोगों को क्लिष्ट लगते हैं ! मतलब तो समझ लीजै श्रीमान ! जब आप सीखने का जज्बा लायेंगें तो यही शब्द आपको अच्छे लगने लगेगें ! हाँ बहुत से बुद्धिजीवी अब यह कहते भये हैं कि आडम्बर पूर्ण भाषा का इस्तेमाल न किया जाय ! मगर भाषा हमारी जीवन शैली ,रीति रिवाजों -मतलब संस्कृति से गहरी जुडी है ! यदि हम भाषा को क्लिष्टता के सतही आधार पर खारिज करेंगें तो शायद हमें अपने कई अनुष्ठानों , कार्यों से भी तौबा करना या काफी बदलाव करना होगा !
और अंत में मैंने एक मांगलिक अवसर पर आज यूँ स्नेहकामना की है -
परिणय दशाब्दि जयंती पर एकनिष्ठ दाम्पत्य की अनंत शुभकामनाएं !
क्या अब भी आप इसे क्लिष्ट मानते हैं ?
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
भाषा को क्लिष्ट लिखने के हिमायती भाषा से प्रेम नहीं, भाषा पर स्वामित्व जताते हैं।
जवाब देंहटाएंक्लिष्ट लेखन उच्छिष्ट लेखन है!
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंविल्सन के साथ सात सालों से रिश्ते में होने के बाद, मैंने सबकुछ संभव किया, मैं उसे हर तरह से प्राप्त करना चाहता था, मैंने वादे किए कि मैंने ऑनलाइन किसी को अपनी समस्या समझाई और उसने सुझाव दिया कि मुझे एक जादू कैस्टर से संपर्क करना चाहिए जो मुझे एक कास्ट करने में मदद कर सकता है मेरे लिए जादू करो, लेकिन मैं वह प्रकार हूं जो जादू में विश्वास नहीं करता था, मेरे पास कोशिश करने से कोई विकल्प नहीं था, मेरा मतलब है कि डॉ। अखेर नामक एक जादू कास्टर और मैंने उसे ईमेल किया, और उसने मुझे बताया कि कोई समस्या नहीं है कि सब कुछ ठीक रहेगा तीन दिन पहले, कि मेरा पूर्व तीन दिनों से पहले मेरे पास वापस आ जाएगा, उसने दूसरे दिन में जादू और आश्चर्यजनक रूप से डाला, यह लगभग 4 बजे था, मुझे बहुत पहले आश्चर्य हुआ, मैं बहुत हैरान था, मैंने फोन का जवाब दिया और उसने कहा कि वह जो कुछ हुआ उसके लिए खेद है, कि वह मुझे इतना प्यार करता है। मैं बहुत खुश था और तब से उसके पास गया, मैंने वादा किया है कि किसी को पता है कि रिश्ते की समस्या है, मैं उसे एकमात्र असली और शक्तिशाली जादू कैस्टर बनने में मदद करना चाहता हूं जिसने मुझे अपनी समस्या से मदद की और कौन है वहां सभी नकली लोगों से अलग किसी को भी जादू कैस्टर की मदद की आवश्यकता हो सकती है, उसका ईमेल: AKHERETEMPLE@gmail.com
हटाएंया
कॉल / व्हाट्सएप: +2349057261346 अगर आपको अपने रिश्ते या कुछ भी मदद की ज़रूरत है तो आप उसे ईमेल कर सकते हैं। अब तक अपनी सभी समस्याओं के समाधान के लिए संपर्क करें
AKHERETEMPLE@gmail.com
या
कॉल / व्हाट्सएप: +2349057261346
भाषा लालित्य के लिए सदैव प्रयत्नशील रहें.
हटाएंनिज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
जवाब देंहटाएंबिनु निज भाषा ज्ञान के मिटै न हिय को सूल॥भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भाषा की जैसी उन्नति चाही थी वैसा पाने के लिए वही दृष्टिकोण होना जरूरी है जैसा आपने इस आलेख में बताया है।
अच्छी भाषा वही है जो अच्छे शब्दों से समृद्ध हो। कामचलाऊ शब्द और भाषा के प्रति कामचलाऊ दृष्टिकोण इसके विकास में सर्वथा बाधक हैं।
कठिन शब्द वे हैं जिनका प्रयोग हम नहीं करते। अभ्यास से कठिन शब्द सरल लगने लगते हैं और अभ्यास छूट जाने पर साधारण शब्द भी पहाड़ से लगते हैं। जिन्हें हिन्दी से प्यार है और जो इसकी उन्नति चाहते हैं उन्हें हिन्दी शब्दों के प्रयोग का अभ्यास करना चाहिए।
आपने अच्छा विषय उठाया। साधुवाद।
बड़ी जान लेवा भूमिका थी सर जी. आपने एक बात सही कही है कि शब्दों को आत्मसात कर लिया जावे तो फिर वे क्लिष्ट नहीं लगेंगे. ज्ञान दत्त जी की उस बात से भी हम सहमत है कि कुछ लोग अपनी पंडिताई जताने के लिए भी असहज भाषा का प्रयोग करते देखे गए हैं. विनम्रता से हम केवल यह कहना चाहेंगे कि जो भी लिखा जावे उस से भाषाई बोझ निर्मित न हों.
जवाब देंहटाएंक्लिष्ट का मापदंड क्या है ? कौन से शब्द क्लिष्ट माने जाने चाहिए और कौन से नहीं ? एक के लिए जो क्लिष्ट है वही दूसरे के लिए सामान्य हो सकता है | उदाहरण के लिए 'क्वचिदन्यतोअपि' क्लिष्ट है या नहीं ? यदि क्लिष्ट है तो क्या ब्लॉग का यह नाम बदल देना चाहिए ? क्या यह नाम एक आकर्षण पैदा नहीं करता ? मेरे मत से भाषा की क्लिष्टता या सरलता बहुत कुछ विषय पर भी निर्भर करती है | एक कहानी लिखने में जिस भाषा का प्रयोग किया जाएगा एक गंभीर साहित्यिक लेख लिखने में उसका उपयोग नहीं किया जा सकता |
जवाब देंहटाएंगज़ब समा बाँध कर बात कही है. पढ़ता कौन है इन दीगर बातों को कार्ड पर सिवाय दिनाँक, समय और भोजन सॉरी आयोजन स्थल जानने के. :)
जवाब देंहटाएंवो पंक्ति की हिन्दी कैसी लगी जिसमें आजकल लिखा होता है:
जवाब देंहटाएंमेले मामा की छादी में जलूल आना...
-सोनू
बली ऊल दलूल लगती है।
हटाएं'सबसे पहले मुझे क्लिष्ट जैसे 'क्लिष्ट 'शब्द की जानकारी ही एक ऐसे सज्जन से हुयी थी जिनकी हिन्दी बस माशा अल्लाह ही थी !'
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया. अधिकतर लोगों की स्थिति वास्तव में ऐसी ही है. अंग्रेजी के 20 अक्षरों के हिज्जे वाला शब्द तो लोगों को कठिन नहीं लगता, लेकिन हिन्दी का तीन अक्षरों का शब्द कठिन लगने लगता है.
भाषा पढने में सहज हो तो बेहतर है. प्रेमचंद की एक-एक कहानी को मैंने दसियों बार पढ़ा है पर आचार्य चतुरसेन और जयशंकर प्रसाद भी कभी बोझिल नहीं लगे. हाँ कई बार समझने में माथा पच्ची जरूर करनी पड़ी पर उसकी अपनी खूबसूरती है. 'वैशाली की नगरवधू' पढ़ के लगा की 'वाह क्या किताब है !' कई (क्लिष्ट) शब्दों का सही प्रयोग लेखन-पठन में खूबसूरती ला देता है.
जवाब देंहटाएंआपने मेरे मनोनुकूल विषय को उठा दिया । जो वास्तविक हिन्दी को क्लिष्ट हिन्दी की संज्ञा देते हैं, यदि सचमुच की हिन्दी लिखने लगें तो यह क्लिष्टता-सरलता का अन्तर ही खो जाय । हिन्दी के नाम पर अ-हिन्दी लिखने वाले लोगों को हिन्दी क्लिष्ट ही प्रतीत होती है । अपनी वास्तविक प्रकृति की हर क्षण प्रतीति ही तो सहजता है, स्वाभाविकता है । मैं हिन्दी की सहजता और उसके भाषागत सौन्दर्य को कृत्रिम नहीं बनाना चाहता ।
जवाब देंहटाएंवैसे यहाँ सभी टिप्पणियाँ हिन्दी में ही तो आ रही हैं !
इस मामले में मैं ज्ञान जी से सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंबिजली जाने के फ़ायदे……:)
जवाब देंहटाएंताज्जुब इस बात का है कि हमें हिन्दी के कठिन शब्द कठिन लगते हैं .. जबकि अंग्रेजी के कठिन शब्द कठिन नहीं लगते .. सब दृष्टिकोण का फर्क है .. मेरे क्ष्याल से जहां जैसे शब्द उचित हों .. वहां वैसे ही प्रयोग किए जाने चाहिए।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !
जवाब देंहटाएंभारतीय विवाह निमँत्रण पत्रोँ की बानगी आपक लेखन से पता चल रही है
जवाब देंहटाएंये लोगोँ को अपने व्यक्तिगत निर्णय तथा सोच को जग जाहीर करने की बेला है
- लावण्या
hindi ko rozgaar parak janoopyogi bhaashaa banaane ke liye agar koi itihaas likhaa gayaa to aapkaa naam bgee swaran akhshron main likhaa jaayegaa.saadhuvaad.
जवाब देंहटाएंjhallevichar.blogspot.com
बेहतरीन पोस्ट। इस शब्द चिंतन को आपने विवाहोत्सवी माहौल में सामयिक भी बना दिया!
जवाब देंहटाएंपूरी पोस्ट से सहमत हूं और ज्ञानजी ने आपकी कही बात का सार उक्ति की तरह पेश कर दिया है।
भाई मिश्राजी आप सही कह रहे हैं. पर हम तो कार्ड पर, भगवान झूंठ ना बुलवाये..और आपसे तो झूंठ बोलना भी क्यों?..सिर्फ़ यह देखते हैं कि डिनर किस जगह और कितने बजे हैं? और जगह के हिसाब से लिफ़ाफ़ा जेब मे रख निकल पडते हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
भाषा में कठिन-सरल का सोच नहीं होना चाहिये बल्कि 'सम्यक भाषा' की बात की जानी चाहिये। इससे मेरा मतलब है-
जवाब देंहटाएं*सरल शब्दोंके चक्कर में अभिव्यक्ति को संकट में नहीं डालना चाहिये।
*जहाँ सम्भव हो वहाँ कठिन के बजाय सरल शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिये। (पर अभिव्यक्ति को बिना संकट में डाले)
*भाषा और शब्दावली, विषय और श्रोता(गण) के भाषायी स्तर के साथ न्याय करती हुई होनी चाहिये।
अपनी भाषा ही मुश्किल लगेगी तो क्या कह सकते हैं ...आज के बच्चे तो सामान्य बोलचाल की भाषा ही समझने में समय लेते हैं .. हिन्दी दिवस मनाया जाता है ..तो यह भाषा तो क्लिष्ट लगेगी ही ..
जवाब देंहटाएंभाषा कैसी भी हो सरल अथवा क्लिष्ट अगर वह समझ में आती है तो उसमें कोई आपाती नहीं होनी चाहिए! जैसे कि तुलसीदास जी ने रामायण लिखी है भाषा बिलकुल सरल है और अधिकतर चौपाईयाँ साधारण तथा कम पढ़े लिखे लोग भी आसानी से समझ लेते हैं!
जवाब देंहटाएंक्लिष्ट होते हुए भी अगर पुराने समय के निमंत्रण पत्र की पंक्तियाँ "भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हे बुलाने को
हे मानस के राजहंस तुम भूल न जाना आने को"
को पढ़ने पर उनकी मिठास समझ में आती है! बहुत ही अच्छा लेख है! आपको साधुवाद!
कुछ लोगों की ये आदत ही होती है।
जवाब देंहटाएं----------
सावधान हो जाइये
कार्ल फ्रेडरिक गॉस
केशव दास जी को कठिन काब्य का प्रेत कहा गया वह शायद इसलिए कि उन्होंने कई स्थानों पर ऐसे शब्दों को प्रयोग में लाया जिस शब्द को उसके चाल -चलन की भाषा में लिखा जा सकता था जैसे अनेकशः उन्होंने धनुष के लिए कोदंड शब्द का प्रयोग किया है परन्तु इसका मतलब यह भी नहीं है कि हिन्दी को हिंगलिश बना दिया जाय .हिंदी सम्पूर्णता में बनी रहे वही हिन्दी और हिन्दी भाषियों के लिए उचित है नकि हिन्दी को हिंगलिश बनानें में . हिन्दी का अपना एक समृद्ध शाली इतिहास रहा है ,आज अफ़सोस इस बात का है कि वह इतिहास लाइब्रेरी तक सिमट गएँ हैं जहाँ अब समयाभाव के चलते लोग कम पहुंच रहें हैं .आपकी यह पोस्ट बहुत ही विचारणीय एवं नवीन है .बधाई .
जवाब देंहटाएंलडकी की शादी के निंमनत्रण मे छपा था " हमारी कुटिया की लतिका के विछोह बेला मे विरह वेदना की इस घढी मे हमे ढाढस बधाने हेतु आपकी उपस्थिती प्रार्थनीय है. दर्शना भिलाषी स्वर्गीय श्री राम लाल गुप्ता
जवाब देंहटाएंअब हम स्वर्ग मे दर्शन कैसे देकर आये ये आप ही बताये जी
'क्लिष्ट 'shbd/bhasha क्या है??..
जवाब देंहटाएंवही --जो हमें समझ में न आये..shayd वही किसी और के लिए saral shabd hon?
aap ne kahaa-
bahut se likhne walon ki rahcnaon mein भाषा का एक सहज स्वरुप कल कल बहती नदी या झरने सदृश आ उपस्थित होता है -मन मोह लेता है !
------------
aap ki is baat se poori sahmati rakhti hun--
यदि हम भाषा को क्लिष्टता के सतही आधार पर खारिज करेंगें तो शायद हमें अपने कई अनुष्ठानों , कार्यों से भी तौबा करना या काफी बदलाव करना होगा '
--
पढ़ा जाने के लिये लेखन सहज , प्रवाहपूर्ण होना चाहिये।
जवाब देंहटाएंदिलचस्प चर्चा अरविंद जी...
जवाब देंहटाएं"परिणय दशाब्दि" ने मन मोह लिया....
दुष्यंत जी की रचनाओं की असीम लोकप्रियता और किस वजह से है?
आप की इस बात पर मुस्कुराता जा रहा हूँ कि "मजे की बात है की सबसे पहले मुझे क्लिष्ट जैसे 'क्लिष्ट 'शब्द की जानकारी ही एक ऐसे सज्जन से हुयी थी जिनकी हिन्दी बस माशा अल्लाह ही थी..."
जो बात समझ में आये वो सरल और जो न समझ में आये वो कठिन। अपनी तो इसी शैली से काम चल जाता है।
जवाब देंहटाएंVaastav mein 'Hinglish' ko 'Hindi' par tarjih dene ka koi kaaran nahin. Hindi swayn mein hi saral aur sundar hai.
जवाब देंहटाएंआया तो था कुछ पढने और इस गंभीर विषय पर कमेन्ट करने ! पर हाय रे ताऊ जी ......... उनका कमेन्ट पढ़कर ठहाके लगा रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंदिलचस्प चर्चा
जवाब देंहटाएंनेट पर कुछ ढूँढते हुए यह पोस्ट पकड़ में आ गई।
जवाब देंहटाएंपढ़कर अच्छा लगा। वैसे एक बात आपने नोट की होगी कि गाँवों में अक्सर किसी के सरकारी नौकरी में होने पर या किसी ओहदे से जुड़े होने पर उसे काफी बोल्ड अक्षरों में ब्रेकेट देकर छापा जाता है। मसलन -
मुन्नर सिंह (बड़े बाबू)
जवाहिर मौर्य ( एडवोकेट )
रामआसरे यादव ( प्रा.शिक्षक, बक्सां)
राजमणि पांडे (अमीन, धर्मापुर ब्लॉक )
मनोहर श्रीवास्तव ( पूर्व ग्राम प्रधान, चकिया )
ऐसे ही कई जगह कुछ मजेदार सबटाईटल्स थे....इस समय याद नहीं आ रहा। निमंत्रण पत्रों को खंगालिए। इस मुद्दे पर तो अच्छी खासी मजेदार पोस्ट बन सकती है।
2009 के लेखन को पढने का अवसर 2016 मे मिला,पर लगता है ये 100 साल बाद भी प्रासंगिक रहेगी।
जवाब देंहटाएंसदाशिव !!
विल्सन के साथ सात सालों से रिश्ते में होने के बाद, मैंने सबकुछ संभव किया, मैं उसे हर तरह से प्राप्त करना चाहता था, मैंने वादे किए कि मैंने ऑनलाइन किसी को अपनी समस्या समझाई और उसने सुझाव दिया कि मुझे एक जादू कैस्टर से संपर्क करना चाहिए जो मुझे एक कास्ट करने में मदद कर सकता है मेरे लिए जादू करो, लेकिन मैं वह प्रकार हूं जो जादू में विश्वास नहीं करता था, मेरे पास कोशिश करने से कोई विकल्प नहीं था, मेरा मतलब है कि डॉ। अखेर नामक एक जादू कास्टर और मैंने उसे ईमेल किया, और उसने मुझे बताया कि कोई समस्या नहीं है कि सब कुछ ठीक रहेगा तीन दिन पहले, कि मेरा पूर्व तीन दिनों से पहले मेरे पास वापस आ जाएगा, उसने दूसरे दिन में जादू और आश्चर्यजनक रूप से डाला, यह लगभग 4 बजे था, मुझे बहुत पहले आश्चर्य हुआ, मैं बहुत हैरान था, मैंने फोन का जवाब दिया और उसने कहा कि वह जो कुछ हुआ उसके लिए खेद है, कि वह मुझे इतना प्यार करता है। मैं बहुत खुश था और तब से उसके पास गया, मैंने वादा किया है कि किसी को पता है कि रिश्ते की समस्या है, मैं उसे एकमात्र असली और शक्तिशाली जादू कैस्टर बनने में मदद करना चाहता हूं जिसने मुझे अपनी समस्या से मदद की और कौन है वहां सभी नकली लोगों से अलग किसी को भी जादू कैस्टर की मदद की आवश्यकता हो सकती है, उसका ईमेल: AKHERETEMPLE@gmail.com
जवाब देंहटाएंया
कॉल / व्हाट्सएप: +2349057261346 अगर आपको अपने रिश्ते या कुछ भी मदद की ज़रूरत है तो आप उसे ईमेल कर सकते हैं। अब तक अपनी सभी समस्याओं के समाधान के लिए संपर्क करें
AKHERETEMPLE@gmail.com
या
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