अपने (अ ) लोकप्रिय से चिट्ठाकार चर्चा स्तम्भ में अभी अभी मैंने कुश की चर्चा की .इस पर अनूप शुक्लजी ने अपने स्वभावानुकूल सहज ही यह टिप्पणी की -
"बहरहाल अरविन्दजी ने कुश के बारे में चर्चा की। इसके पहले भी मिश्रजी ने कई चिट्ठाकारों की चर्चा की है। उनका अपना अंदाज है। उस पर सवाल उठाना उचित नहीं होगा। लेकिन एक पाठक की हैसियत से जो मैंने महसूस किया वह यह है कि उनके प्रस्तुतिकरण में चिट्ठाकार से उनका खुद का तुलनात्मक वर्णन प्रमुखता लिये रहता है। अगले की तारीफ़ करने के लिये अपनी बुराई करना जरूरी तो नहीं। किसी को बुद्धिबली, प्रतापी बताने के लिये खुद को बुड़बक, भकुआ सा जाहिर करना जरूरी है क्या?
अरविन्दजी का यह आत्मप्रक्षेपण का अंदाज उनकी हर चिट्ठाकार चर्चा में मैंने देखा है। जैसा महसूस किया वह बता रहा हूं।"
.....और उनके द्बारा सायास या अनायास यह स्पष्ट भी कर दिया गया कि उक्त टिप्पणी पाठकीय हैसियत से की गयी है ! बहुत अच्छी बात ,बिल्कुल स्वीकार्य ! अब मेरी मुश्किल यह है कि -किसी के बारे में कोई भी चर्चा परिप्रेक्ष्यों और संदर्भों में ही तो की जा सकती है -उनसे पृथक (आईसोलेट ) करके तो नही ! भगवान् राम के चरित गायन के लिए जरूरी है रावण को दुर्धर्ष दुष्ट दिखाया जाना -वह जितना ही क्रूर करमा दिखेगा भगवान् राम का उतना ही उदात्त चरित सामने लाया जा सकेगा ! बहरहाल आज की दुनिया और संदर्भों में मैं राम रावण की खोज कहाँ करुँ ?और किसे बलि का बकरा चुनूं ! सो मैंने ख़ुद का ही बलिदान देना उचित समझा -भला और किसकी बलि दूँ ? किससे तुलना करुँ ? क्या अनूप जी से ही तुलना करना शुरू कर दूँ ? मैंने बिल्कुल यही टिप्पणी भी प्रश्नगत चिट्ठाचर्चा में कर दी और अपनी वापसी पोस्ट में अनूप जी ने ऐसी हिमाकत न करने के लिए मुझे चेता भी दिया -"भाई हमसे काहे की तुलना करेंगे? हर व्यक्ति अपने में खास होता है। उसकी किसी से तुलना क्यों की जाये?"
अनूप जी मुझे यह मालूम था कि आप या कोई और भी छीछालेदर की ऐसी अनुमति मुझे क्यों देने लगें , इसलिए मैंने अपनी पसंद के ब्लागर की तुलना ख़ुद से करना समीचीन समझा ! अब मेरे इस विवशता पर भी दूसरों को क्यों कष्ट हो गया -बात कुछ हजम नही हुई ! अनूप जी ने अपनी पहली वाली टिप्पणी में यह भी लिखा है -"अगले की तारीफ़ करने के लिये अपनी बुराई करना जरूरी तो नहीं। किसी को बुद्धिबली, प्रतापी बताने के लिये खुद को बुड़बक, भकुआ सा जाहिर करना जरूरी है क्या?अरविन्दजी का यह आत्मप्रक्षेपण का अंदाज उनकी हर चिट्ठाकार चर्चा में मैंने देखा है। "
क्या ये दोनों वाक्य परस्पर विरोधाभासी नही लगते ? अब कोई अगर ख़ुद को बुडबक कह रहा है तो यहाँ तो आत्मदया (maudlin ) की बात मानी जा सकती है मगर आत्म प्रक्षेपण ( सेल्फ प्रमोशन ) ? यह कैसा नजरिया है भाई ? अगर ख़ुद को दूसरों के ख़ास गुणों के परिप्रेक्ष्य में दीन हीन मानना आत्म प्रक्षेपण है तो फिर मध्ययुगीन संत कवि तुलसीदास ने भी तो यही किया है -मैं उस महान संत कवि के पद नख के धूल कण के बराबर भी नही हूँ ( आत्म प्रक्षेपण ! ) मगर देखिये तो वे क्या कहते हैं -
कवि न होऊँ न वचन प्रवीनूं ,सकल कला सब विद्या हीनू ( मैं न तो कवि हूँ और न ही वक्तृता में कुशल ,दरअसल मैं सब कलाओं और विद्या से रहित हूँ !)
यह भी देखिये -
कवि विवेक एक नही मोरे ,सत्य कहऊँ लिख कागद कोरे ( मैं तो कवि के विवेक से सर्वथा वंचित हूँ यह कोरे कागज़ पर लिख कर देता हूँ )
और यह भी -
बंचक भगत कहाई राम के ,किंकर कंचन कोह काम के
तिन में प्रथम रेख जग मोरी ,धींग धरमध्वज धंधक धोरी
( जो भगवान राम के भक्त कहकर लोगों को ठगते हैं और जो धन क्रोध और काम के गुलाम हैं -और इस कारण धींगामुश्ती करने वाले और धर्म की झूठीं ध्वजा फहराने वाले हैं उनमें सबसे पहले तो मेरी ही गिनती है )
इसलिए -
जौ अपने अवगुन सब कहऊँ .बाढहिं कथा पार नहि लहऊँ
ताते मैं अति अलप बखाने थोरे महुं जानिहहिं सयाने
( अगर मैं अपने सब अवगुणों को कहने लगूं तो यह कथा बहुत बढ़ जायेगी और मैं पार नही पा सकूंगा ! इसलिए अपने अवगुणों का बहुत कम वर्णन किया है -बुद्धिमान लोग थोड़े में ही समझ लेगें )
कोई भी बताये कि यह क्या तुलसी का आत्म प्रक्षेपण है -यह हमारी मानसिकता हो सकती है कि हम उस कवि के इस आत्म कथ्य को उसका आत्म प्रक्षेपण मान लें क्योंकि आज उसे एक विश्व कवि होने का दर्जा प्राप्त है -मगर जब इन पंक्तियों को तुलसी लिख रहे थे तो उनकी मनोदशा क्या रही होगी ?
अनूप जी , यह विनम्रता है ,शालीनता है ,कुलीनता है -इसे पहचानने में कदापि भूल नही होनी चाहिए -मुझे आत्म प्रवंचना करने को यही विरासत उकसाती है -इसी विराट व्यक्तित्व का अनुकरण कर पाने को मैं विवश हो जाता हूँ ! तो अगर मैं आत्म प्रक्षेपण की आप द्वारा कथित विकार का दोषी हूँ तो इसके जिम्मेदार वही बाबा तुलसी हैं -वही जानें ! उनका स्मरण करके मैं आपका यह प्रसाद ग्रहण कर ले रहा हूँ !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूँगा कि आपकी शालीनता और बड़प्पन का अंदाजा तो वो ब्लौगर्स स्वयं ही लगा सकते हैं, जिनकी चर्चा गाहे-बगाहे आपने की है, या जिसे आपसे मिलने का अवसर भी मिला हो.
जवाब देंहटाएं’अनूप जी’ की टिप्पणी का अन्तर्विरोध (जिसकी ओर आपने संकेत किया है) शायद इस आशंका से उपजा है कि एक तरफ दिखा तो रहे हैं आप अपनी हीनता, प्रस्तुत तो कर रहे हैं स्वतः को अकिंचन, पर आप ऐसे हैं नहीं । शायद यह आपकी खेचरी मुद्रा है । तो उस चिट्ठाकार के बरक्स खड़ा करके अपने आप को, और वह भी अकिंचन अपने आपको, आप कहलवाना चाहते हैं हर मुख से यह कि "नहीं, नहीं, आप तो ऐसे नहीं ।" शायद यह भी कि जिस चिट्ठाकार की चर्चा आप कर रहे हैं वही आकर चीख-चीख कर यह कहे कि नहीं आप उससे श्रेष्ठ हैं ।
जवाब देंहटाएंमैं जहाँ तक समझता हूँ कि अनूप जी की यह आशंका कुछ ज्यादा ठीक नहीं । वस्तुतः आपका (अरविन्द जी का) यह आत्म-दैन्य मुझे आत्म-प्रक्षेपण नहीं, आत्म-परीक्षण या आत्मावलोकन ज्यादा जान पड़ता है । यह तो हमारे शील का एक गुण है, जिसमें ’स्व’ का दैन्य ’पर’ की विराटता को प्रतिबिम्बित करने लगता है । अथवा साहित्य की दृष्टि में इसे रचना विधान का एक विशेष गुण कह लीजिये जिसमें हम इस प्रकार के आत्म-दैन्य से भावान्वय का सम्मुख प्रेक्षण तथा अर्थान्वय का पृष्ठावलोकन करने लगते हैं ।
तो क्या यह न कह दिया जाय कि साहित्य में जिसे विरोध चमत्कार कहते हैं, उसे अरविन्द जी ने शब्दों के धरातल से उठाकर भावों के धरातल पर पहुँचा दिया है ।
एक बात और, हिन्दी ब्लॉगिंग में तो यह विरोध चमत्कार ज्यादा ही प्रचलित है । अनूप जी से ज्यादा इसे कौन जानता है ! विचारिये कि यह फुरसतिया क्या सच में फुरसतिया है !
अरविन्दजी, आपने लिखा अगर ख़ुद को दूसरों के ख़ास गुणों के परिप्रेक्ष्य में दीन हीन मानना आत्म प्रक्षेपण है तो फिर मध्ययुगीन संत कवि तुलसीदास ने भी तो यही किया है मैंने आपकी तमाम पोस्टें और टिप्पणियां पढ़ीं हैं। वे सब की नेट पर मौजूद हैं। आप उनको फ़िर से देखें और देखें कि आपकी दीनता-हीनता स्वाभाविक गुण की तरह प्रकट हुई है या एक समझदार ’डिफ़ेन्स मेकेनेज्म’की तरह।
जवाब देंहटाएंचिट्ठाकारों के परिचय के आपके अंदाज के बारे में बहुत सारी बातें लिखने को थीं लेकिन आपकी कल की चर्चा में की गई टिप्पणी "कल voyarism पर भी बहुत चर्चा हुई। यह विचार करने की बात है कि चिट्ठाकार के बारे में लिखने के लिये यह सब लिखना क्या जरूरी था (आज भी वह दस्तावेज मेरे पास अभिलेखित है निजी हैं इसलिए शेयर नही कर रहा हूँ -पर सच मानिये बहुत मजा आया -मगर फिर थोड़ी कोफ्त हुयी ख़ुद पर -इतना जल्दी रिएक्ट करने की क्या जरूरत थी ?) कि चिट्ठाकार गलत समझे जाने की संभावित असहजता से बचने के लिये वह सब खुद जाहिर कर दे जिसे आप निजी, उत्तेजक बता रहे हैं तथा शेयर न करने का एहसान कर रहे हैं।"
चलिए टिप्पणी कर ही देता हूँ -क्या अब कुछ ब्लॉगर यह तय करेंगें की कोई ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर क्या लिखे -मैं ऐसी मानसिकता के प्रति घोर आपत्ति दर्ज करता हूँ और यह टिप्पणी यहाँ छोड़ता हूँ ताकि यह मेरी अभियक्ति की सनद रहे ! बशर्ते यह मिटा न दी जाय !
के बाद कुछ लिखना बेकार है। जब आप अपने लिखे पर टोंकने को एक आपत्तिजनक मानसिकता मानते हैं तो आपके लेखन पर कुछ सवाल करना उचित नहीं लगता।
@ शुक्ल जी ,
जवाब देंहटाएंमेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि कुश ने तो इंगित पहलू पर कुछ नहीं कहा -उनके मन में में तो कोई विकार नहीं आया -बात हंसी मजाक की थी और ईसी रूप में मैंने और कुश ने इसे ले लिया ! पर अब अब युवा दिमाग को क्यों कांटामिनेट और प्राम्प्ट करने के सायास प्रयास हो रहे हैं -कहीं हम अपनी उम्र तो कुश पर नहीं थोपना चाहते ! कुश ने सहजता से स्वीकार कर लिया -हाँ उनका एक मित्र से चैट चल रहा था ! यह सहज है ! हम काम विषयक टैब्बुओं में पीढियों को झोक चुके हैं -इससे उबर नहीं सकते क्या ? यह क्षद्म नैतिकता का पाठ हम नयी पीढी को क्यों पढाना चाहते हैं !
मेरा यह भी कहना है कि कोई ब्लॉगर किसी दूसरे को यह न सिखाये कि उसे अपने ब्लाग में क्या लिखना चाहिए क्या नहीं ? जबतक ऐसा याचित न किया गया हो ? यह तो टर्म डिक्टेट करने वाली बात हो गयी ! यह उचित नहीं -हाँ ब्लॉग लेखन की कोई आचार संहिता बनाने की दिशा में आप आचार्यों द्वारा कोई पहल हो गयी होती तो बहुत भला हुआ रहता ! हिन्दी चिट्ठाकारिता सच में अभी प्रसूत काल में ही दिखती है !
आईये हम पूर्वाग्रह रहित हो इसे स्नेह संस्पर्श दें और उन्मुक्त परिवेश का आशीर्वाद भी ! हम अपने बोझ और व्यामोहों को इस पर न लादे !
विनम्रता तो मानव का सहज गुण होना चाहिए ,हमारे यहाँ अंहकार तो दानवों का गुण माना गया है .आपके शैली में भारतीय परम्परा की मिठास है ,आपको यह कभी नहीं सोचना चाहिए की कोई क्या सोचता है ,आपको केवल अपना कर्म करना चाहिए .मैं तो नहीं सोचता की वर्तमान समय में आप जैसे कुछ चंद लोग ही हैं जो कि ब्लॉग जगत में में इतना धीर -गंभीर और ज्ञानवर्धक ज्ञान दे रहें है , . मुझे नहीं लगता कि आप जैसा स्तरीय और राष्ट्रीयस्तर पर स्थापित लेखक जो कि पिछले २५-३० वर्षों से देश के सभी राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में लगातार
जवाब देंहटाएंलिख रहा हो उसे किसी प्रकार की दिशा दिखाने की जरूरत है .
इसलिए -
जौ अपने अवगुन सब कहऊँ .बाढहिं कथा पार नहि लहऊँ
ताते मैं अति अलप बखाने थोरे महुं जानिहहिं सयाने
( अगर मैं अपने सब अवगुणों को कहने लगूं तो यह कथा बहुत बढ़ जायेगी और मैं पार नही पा सकूंगा ! इसलिए अपने अवगुणों का बहुत कम वर्णन किया है)
गोस्वामी जी के इस विचार को भी बहुत लोग नहीं समझ पाएंगे क्योंकि यह दुर्भाग्य है की हम लोग ज्ञानी होने का दावा तो करतें हैं परन्तु हम लोंगों में से बहुत कम लोग हैं जो कि आज तक गोस्वामी तुलसी दास जी या भारतीयता को प्रतिबिंबित करते और महाकाब्यों का सम्यक अध्ययन किये हों ,या सम्यक तरीके से पढें हों .
हर ब्यक्ति किसी चीज को अलग-अलग नजरिये से देखता है .आप अपनी धुन में रमे रहिये ,कोई क्या सोचता है यह उसका सोच है ,हमें तो आपको को ही पढने में मज़ा आता है .
अरविन्दजी, अपनी बात सही साबित करने के आपके अपने तर्क हैं हम उनमें दखल देने के अधिकारी नहीं हैं। लेकिन जो आपने लिखा कुश ने सहजता से स्वीकार कर लिया -हाँ उनका एक मित्र से चैट चल रहा था ! यह सहज है ! सच उससे अलग है। कुश द्वारा सहज स्वीकार सहजता के चलते नहीं बल्कि संभावित असहजता से बचने के लिये किया गया स्वीकार है। यह बताने के लिये किया गया स्वीकार है कि आप जिसे वोयेरिज्म बता रहे हैं वह यह है। लोग रसीले/चटखारेदार कयास लगायें कि क्या-क्या बातें हुई होंगी उस असहज स्थिति से बचने के लिये किया गया उद्घाटन है।
जवाब देंहटाएंबाकी जैसा मैंने लिखा आपके अपने तर्क हैं। उनके हिसाब से अपनी लिखे को सही साबित करना आपका अधिकार है। लेकिन एक पाठक की हैसियत जैसा मैंने समझा वह लिखा। अब चूंकि आप इसे आपत्तिजनक मानते हैं इसलिये इस मसले पर आगे कुछ नहीं लिखूंगा।
शुक्ल जी ,
जवाब देंहटाएंठीक है आपकी बात को मैं गंभीरता से नोट कर रहा हूँ और तदनुसार अमल का प्रयास भी करूंगा ! मगर आप या कोई अन्य किस अधिकार से कुश के प्रवक्ता बन रहे हैं -क्या कुश खुद मुखर नही हैं -यदि कुश यही बात कह दें तो मैं उनसे क्षमा मांग लूंगा ! बिना शर्त ! मुझमें कोई सीनियरिटी भाव नहीं है -बच्चे को मुखर कीजिये ! कब तक उसका मुंह दबाये रखियेगा ! उचित है अब "बच्चा'ही बोले ! चच्चा लोग तनिक चुप रहें !
अरविन्दजी, जब आप एक पाठक की हैसियत की गयी मेरी प्रतिक्रिया को कुश के प्रवक्ता की तरह की गयी प्रतिक्रिया के रूप में देख रहे हैं और कुश और हम लोगों में बच्चा-चच्चा के संबंध बता रहे हैं तो अब और कुछ कहना बेवकूफ़ी होगी।
जवाब देंहटाएंअरविन्दजी, जब आप एक पाठक के हिसाब से की गयी टिप्पणी को कुश के प्रवक्ता की तरह की गयी टिप्पणी मान रहे हैं , हमारे और कुश के बीच बच्चा-चच्चा के संबंध बता रहे हैं तो और कुछ लिखना बेकार है।
जवाब देंहटाएंशुरुआत हुई थी अरविंद जी के आत्म-प्रक्षेपण से. मैं अरविन्द जी के विनम्रता को उनका गुण बताना चाहूँगा.
जवाब देंहटाएंमैं तो इस पर एक कविता भी कर चुका.
http://paricharcha.wordpress.com/2009/04/08/whats-going-on/
अब क्षमा मांगता हूँ.
शायद असली बात अब उभर कर सामने आयी है कि किसी की निजता को आप संसार पर प्रगट क्यों करें. अनूप जी का यह कष्ट स्वाभाविक है. रही बात अनूप जी के प्रवक्ता बनने की तो मैं उसमे मैं कुछ भी गलत नहीं समझता. ऐसे लोग होते हैं जो स्वयं पर हुए किसी घटना का प्रतिकार न कर के शांति से बात को आयी-गयी हो जाने देते हैं. पर ऐसी घटनाएँ संसारविदित हो तो स्वाभाविक है कि कोई तीसरा टोका टाकी कर दे. अब यहाँ अनूप जी हैं तो आप इसे संबंधों पर न ले जाएँ.
मतभेद हो तो अच्छा है इसे मनभेद न बनने दें.
शायद इसे ही कहते हैं बात का बतंगड़। मामला तो पिद्दी भर का था लेकिन अब खामख़ा की बमचक हो रही है। एक वरिष्ठ ब्लॉगर के रूप में अनूप जी के विचार आदरणीय और विचारणीय ही हैं। जब यह बात मानी जा चुकी है कि हमारा प्रत्येक लेखकीय कृत्य किसी न किसी रूप में हमारा आत्म-प्रक्षेपण ही है तो अनूप जी की टिप्पणी में कोई आरोप या आपत्ति नहीं खोजनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी को अनूप जी की टिप्पणी कुछ ज्यादा ही खल गयी लगती है। मेरे खयाल से इतना जबरदस्त प्रतिकार किए बिना भी काम चल सकता था। इस समय तो विषयों की कमी नहीं है जिसपर लिखा जा सकता है। वैसे मन की गाँठ खोलकर अरविन्द जी ने भी कोई ऐसा गलत काम नहीं कर दिया जिससे आदरणीय अनूपजी को नो कमेण्ट की मुद्रा अपनाने पर बाध्य होना पड़े।
इस विचार मन्थन के सागर में लहरें उठती रहें तभी तो उनका आनन्द लिया जा सकेगा।
शांति ऊँ शांति!!!
जवाब देंहटाएंशायद इसे ही कहते हैं बात का बतंगड़। मामला तो पिद्दी भर का था लेकिन अब खामख़ा की बमचक हो रही है। एक वरिष्ठ ब्लॉगर के रूप में अनूप जी के विचार आदरणीय और विचारणीय ही हैं। जब यह बात मानी जा चुकी है कि हमारा प्रत्येक लेखकीय कृत्य किसी न किसी रूप हमारा आत्म-प्रक्षेपण ही है तो अनूप जी की टिप्पणी में कोई आरोप या आपत्ति नहीं खोजनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी को अनूप जी की टिप्पणी कुछ ज्यादा ही खल गयी लगती है। मेरे खयाल से इतना जबरदस्त प्रतिकार किए बिना भी काम चल सकता था। इस समय तो विषयों की कमी नहीं है जिसपर लिखा जा सकता है। वैसे मन की गाँठ खोलकर अरविन्द जी ने भी कोई ऐसा गलत काम नहीं कर दिया जिससे आदरणीय अनूपजी को नो कमेण्ट की मुद्रा अपनाने पर बाध्य होना पड़े।
इस विचार मन्थन के सागर में लहरें उठती रहें तभी तो उनका आनन्द लिया जा सकेगा।
वाह, हम कितने छुद्र घोंघा हैं। हमारे पल्ले कुछ पड़ नहीं रहा! :)
जवाब देंहटाएंअरे दइया रे इ का कर रहे हैं भाई
जवाब देंहटाएं@वाह, हम कितने छुद्र घोंघा हैं। हमारे पल्ले कुछ पड़ नहीं रहा! :)-
जवाब देंहटाएंचिट्ठाजगत में भुनगों (कैटरपिलर ) और निरे घोंघों (लिम्पेट्स ) की बढ़ती संख्या पर एक पोस्ट ही लिखनी न पड़ जाय शायद !
अनुमोदन है ? हा हा !
खेद और क्षमा याचना !
जवाब देंहटाएंदुर्भाग्यपूर्ण संवादहीनता के चलते इस प्रकरण /प्रसंग से अनूप जी और आप कितने ही संवेदनशील मित्रों को संताप पहुंचा होगा -यह मैं समझ सकता हूँ -मैंने आपका दिल दुखाया ! मैं खुद संतप्त हूँ -यह सब अपने आप इतना अकस्मात और निर्बाध गति से हुआ की मैं भी स्तब्ध हूँ -सभी से क्षमा याचना !
एयरटेल का एक एड है जो शहर के किसी भी होर्डिंग पर देखा जा सकता है.. जिसमे लिखा है बातें गिरा देती है फासलों की दीवारे.. मुझे भी यही लगता है कि कमुनिकेशन गैप की वजह से बात कुछ बिगड़ गयी.. चच्चा बच्चा संबोधन व्यक्तिगत रूप से मुझे ठीक नहीं लगे.. पर इसकी कोई शिकायत नहीं है.. कथित विवाद पर मैं पहले ही अरविन्द जी की पिछली पोस्ट पर टिपण्णी कर चुका हु..
जवाब देंहटाएंरही अनूप जी की पाठक की हैसियत से टिपण्णी करने वाली बात तो उनका निराकरण आवश्यक है.. अपने पाठको, प्रशंसको ऑर आलोचकों के कमेन्ट का स्वागत हमें करना चाहिए.. यदि अनूप जी को कुछ गलत लगता भी है तो मुझे यकीन है अरविन्द जी अपनी लेखनी से अगली चिटठाकार चर्चा में अनूप जी की ये शिकायत भी दूर कर देंगे..
वैसे एक घटना याद आ गयी.. जब मैं छोटा था अक्सर दोपहर में खेलते खेलते खेलते हम दोनों भाइयो में झगडा हो जाता था.. पिताजी तब ऑफिस में होते थे.. उन्हें कुछ पता नहीं होता था पर शाम को हमारे मुरझाये चेहरे देखकर वो हमसे पूछते थे कि क्या हुआ? हम नहीं बताते तो माताजी से पूछते.. कभी कभी तो दोस्तों से भी पूछ लेते और हम दोनों भाइयो कोसमझाकर सुलह करवा देते..
ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि पिताजी ने कहा हो भई मुझे तो कुछ पता ही नहीं तुम क्यों झगड़ रहे हो इसलिए मैं कुछ नहीं कहूँगा..
बस यही कहना था..
@बच्चा -चच्चा अभिधात्मक नहीं विनोद भरा -अंगरेजी का इन लाईटर वीन था ! यहाँ न कोई बच्चा है न चच्चा -हर कोई यहाँ सच्चा है !
जवाब देंहटाएंपटाक्षेप हो चूका है इस अप्रिय प्रसंग का !
अरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंये हर जगह बात का बतंगड़ क्यों बनता जा रहा है उधर मोहतरमां मेरे ब्लॉग पे धरना दिए बैठी हैं इधर भी वही सिलसिला चल रहा है ...मैंने तो हर जगह आपके सुलझे विचारों को ही पाया है ..कहीं भी आपकी टिपण्णी हो सटीक और मननीय लगी ....!!
यूं तो तुलसी बाबा ने हनुमान जी से भी कहलवा दिया है
जवाब देंहटाएंकपि चंचल सबही गुन हीना..... पर हमने हनुमान जी पूजा करनी इससे बन्द थोड़े ही कर दी. पर यह उस समय की बात हो सकती है. अब यह बात ज़रूरी नहीं है. अब तो नए ज़माने के हिसाब से चलना चाहिए. जहां सब अपने को महान बताते हैं. यह जानते हुए भी कि वे कितने महान हैं. फिर आप क्यों ख़ुद को हीन बता रहे हैं? इस मुद्दे पर आपसे मैं भी असहमत हूं. मेरी असहमति दर्ज़ करें.
@सांकृत्यायन जी ,
जवाब देंहटाएंशिरोधार्यम .....आपने जूता पुराण क्या शुरू किया यह विश्वमारी -ब्लाग्मारी का भी रूप लेता जा रहा है -जनपथ से राज पथ और ब्लोग्पथ सब जगह जूते ही जूते -ऐसा लगता है यह सम्पूर्ण जगत ही जूता मय हो चला है -अपनी माया बटोरो हे जूता पुंगव !
वोयेरिज्म पर कुछ और जानकारी दे रेही हूँ शायद कामआजाए ??
@इसकी वस्तुतः कोई जरूरत नहीं रह गयी थी रचना जी ,तथापि शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंLIFE is larger than LOGIC.
जवाब देंहटाएंविनम्रता और शालीनता बडी मुश्किल से मिलते हैं। बस इतना जानिए, कि ये गूंगे का गुड है और कुछ नहीं।
जवाब देंहटाएं-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन