रविवार, 30 नवंबर 2008

एक रायशुमारी -क्या भारत को बिना ऑर समय गवाए पी ओ के के आतंकी ठिकानों पर हमला कर देना चाहिए?

मित्रों ,मैंने यह रायशुमारी केवल आपकी भावनाओं को मुखर करने और आपके सलाह मशवरे के लिए की है .चूंकि इसके लिए जो गजेट ब्लॉग के हाशिये पर है उसमें केवल हां या ना का ही आप्शन है अतः यह सहायक पोस्ट भी इसलिए कि ब्लॉग दुनिया कुछ और भी तफसील से कहना चाहे तो कह सके ताकि एक जनमत बन सके और हमारे आका जो पता नहीं इस समय क्या कर रहे हैं जन भावनाओं से परिचित हो सकें ।
मेरा तो दृढ मत है कि अब तक भारतीय वायुसेना को यह आर्डर मिल जाने चाहिए थे कि वह पाक अधिकृत आतंकी ठिकानों पर बेलौस पूरी शक्ति के साथ आक्रमण कर दे -पर हमारा नेतृत्व फिर नपुंसकता ,क्लैव्यता की राह पकड़ रहा है -हमारे ऊपर आक्रमण हुए कई दिन बीत रहे -आखिर इन सत्ता भोगियों को स्पष्ट राजनीतिक निर्णय लेने में क्या अड़चन आ रही है?
पूरा देश इस समय अपमान की घूँट पिए ,कुछ न कर पाने के आक्रोश में डूबा है -क्या जन भावनाएं हमारे ही चुने हुए नेताओं की समझ में नहीं आतीं .आज याद आ रही है इंदिरा जी की जिन्होंने ऐसे ही मौकों पर तुंरत सटीक निर्णय लिए और अपने देश के शौर्य और प्रतिष्ठा को पूरी दुनिया में बनाए रखा .एक काबिल बाप की काबिल बेटी तो थी हीं वे और उससे बढ़ कर एक लौह महिला ,प्रधानमंत्री भी थीं ! आखिर हमारा वर्तमान नेतृत्व क्यों उनसे कुछ सीख नही लेता ! क्या हमारे प्रधान मंत्री सचमुच ही वही है जो वे दीखते हैं ? यानी ब्रिह्न्नला ? वे आखिर कर क्या रहे हैं ?क्या उन्होंने इस मसले पर फौरन राष्ट्रपति से बात की ? और हमारी श्रद्धेय राष्ट्रपति जी क्या कर रही है ?? मुझे एक नागरिक होने के नाते यह जानने का हक़ है -मगर मुझे कुछ पता नहीं चल रहा है ? क्या आपको पता है ? क्या वे अभी भी अपनी रोजाना की दिनचर्या में ही व्यस्त हैं ? यदि हम राजनीतिक -सरकारी निर्णय में किन्ही कारणों से हो रही देर की बात को इग्नोर भी कर दे तो क्या राष्ट्रपति जी की भी ऐसी ही कोई विवशता है जो यह राष्ट कभी समझ पायेगा ? क्या हमारे राष्ट्रपति जी ने सेना अध्यक्षों को बुलाकर उनसे सलाह मशविरा किया ? और यदि हाँ तो फिर देर क्यों ? क्यों अमूल्य समय गवायाँ जा रहा है ? यह निर्णायक क्षण है -सरकार को जन भावनाओं के अनुरूप कार्यवाही से क्या रोक रहा है ? पूरा देश साथ है -टक टकी बांधे दिल्ली की ओर ताक रहा है -निर्णय में विलंब क्यों ? क्या अमेरिका और ब्रिटेन हमारा युद्ध लडेंगे ? क्या हम आज इतने वेवश और शक्ति हीन हैं -हम शक्ति और तकनालोजी के मामले में पूरी दुनिया में अग्रपंक्ति में आज खड़े हैं .हम इतना दीन हीन क्यों दिख रहे हैं ? हे सोनिया ,हे मनमोहन अगर तुम्हे अपनी लाज ,देश की लाज और अपनी डूबती पार्टी की लुटिया बचानी है तो सामने आकर हमारा नेतृत्व करो नहीं तो दिल्ली को खाली करो ! समय बहुत कम है. कूटनीतिक गतिविधियाँ शुरू हो चुकी हैं -और देरी तुम्हे एक सही निर्णय से रोक देगी और तुम सब इतिहास से सबक न लेने की भूलों की फेहरिस्त में एक और इजाफा कर खुद कालातीत हो जाओगे !
पता तो चले कि देर क्यों हो रही है -क्या इसलिए कि पाकिस्तान जवाबी हमला कर देगा ? क्या इसलिए कि यह युद्ध नाभकीय हो जायेगा ? कि इसलिए कि मुस्लिम वोट बैंक खिसक जायेगा ? ऐसा कौन सा मुस्लिम है जो अपने देश पर हुए हमले के परिताप को सह पा रहा है -यह तुम्हारे नपुंसक सलाहकारों की गलत् राय है -पूरा देश साथ है !
इस समय न हम हिन्दू है ना मुसलमान ,न सिख ना ईसाई -हम एक राष्ट्र है -यह पूरा राष्ट्र अपील कर रहा है मरो या करो !

55 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बहुत ही सधे हुए शब्दों में अपनी बात कह दी है. वैसे मुझे लगता है - कि नाभिकीय युद्ध का डर. और हो सकता है कि भारत की जो अभी अमेरिका के साथ संधि हुई है, वो भी खटाई में पड़ जाए.

    ये जो कूटनीति होती है न, बहुत पहुँची हुई चीज़ होती है. अगर इसमें विदेशियों का हाथ है, तो बहुत ही सोच समझकर किया गया है. जब उन्होंने ये प्लान किया होगा तो ये सब सोच के ही किया होगा. इसी को कूटनीति कहते है, कि ऐसी परिस्थिति बना दो, कि वो अगर आक्रमण करना चाहे तो उसको इन तमाम नुक्सान सहने पड़े.

    लिहाजा.. मैं कोई एक्सपर्ट नहीं हूँ. पर ये तो कह सकता हूँ, कि कुछ चीजें उनके ऊपर ही छोड़ देनी चाहिए. वैसे एक बात से तो आप सहमत होंगे, कि जासूसी इसीलिए बहुत जरूरी होती है, कि उससे युद्ध होने से बचते हैं.

    युद्ध से किसी को फायदा नहीं है आज के समय में. तमाम ऐसे तरीके हैं, जिससे उस देश को पंगु किया जा सकता है. सबसे कारगर तरीका है, उसके बिसनेस पे चोट करो, एक्पोर्ट - इंपोर्ट पे कंट्रोल करो. देखो कि बाहर से उसको आर्थिक मदद न मिले.

    अब ज्यादा लिखूंगा... तो बात बढ़ जायेगी... वैसे आप अच्छा सोचते हैं.... और अच्छा लिखते हैं.. गुस्सा मत हुआ करिए.. मैं भी बनारस से हूँ, और आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हूँ.. गुस्सा मत करें.. सब ठीक हो जायेगा...

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  2. ये राय शुमारी बेमानी है । प्रजातंत्र के ढकोसले [मतदान] में भी ऎसी ही आधी अधूरी रायशुमारी के बूते देश के दलाल और गद्दार सत्ता हथिया लेते हैं । कोई और तरीका सोचिए ,य्दि देश को लेकर वाकई चिंतित हैं तो.....?

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  3. इस तरह के काम रायशुमारी से नहीं होते।

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  4. डॉ दिनेश जी ,
    काम की बात तो आगे आयेगी आपकी अमूल्य राय चाहिए थी मुझे !

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  5. पाकिस्थान स्थित आतंकवादी अड्डों पर हमला करने का अवसर हमने "संसद पर हमले" के समय ही खो दिया तब हमें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का भी समर्थन मिल सकता था लेकिन अब इस घटना पर सम्भव नही |
    और दुश्मन देश स्थित आतंक के अड्डों पर हमले के लिए इजरायल जैसी राजनैतिक ईच्छा-शक्ति और प्रतिबधता चाहिए जो बिना किसी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की परवाह किए अपने देश हित में कार्यवाही करता है इस तरह की ईच्छा शक्ति और प्रतिबधता वाला नेता हमारे देश में कोई नही है |
    रही बात पाकिस्थान पर हमला करने की, मेरी नजर में पाकिस्थान पर हमला करना इस समस्या का समाधान नही है , इसके लिए हमें अपने घर की सुरक्षा व गुप्तचर प्रणाली दुरस्त करनी होगी साथ आतंकवाद के खिलाफ जंग में राजनितिक और सम्पर्दायिक सरोकारों से बचना होगा | तभी हम यह जंग जीत सकते है |

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  6. क्या दोनों परमाणु परिक्षण रायशुमारी से हुए थे? सीधे युद्ध से हमारा भी बहुत बड़ा नुकसान है. छायायुद्ध का जवाब भी वैसा ही होना चाहिए, अगर शिकायत और खुन्नस है किसी देश से तो पूरी रणनीतिक और कूटनीतिक ताकत झोंक दो उसे और उसकी जनता को भूखे मारने में. जैसा की स्तालिन ने किया था. अमेरिका को किसी तरह मानाने पर विवश करो की वो पाकिस्तान को अफगानिस्तान और कराची की तरफ़ से हांके, और पाकिस्तानी असलहे (परमाणु केन्द्रों सहित) पर पूरा कंट्रोल कर ले. दुश्मन अपने आप घुटनों पर आ जाएगा, भूख और मजबूरी क्या नहीं करवाती? चीन को मदद देने से बचने के लिए हमें अमेरिका की ही मदद लेनी होगी, रूस भी इस्लामिक जगत में काफी दखल रखता है, वह भी काम आएगा.

    बस हम दबाव में न आयें, जैसे की इंदिरा ने बांग्लादेश युद्ध के समय बिना अपने पक्ष में संधि करवाए सैम मानेकशा द्वारा जीता पाकिस्तान वापस दबाव में आकर कर दिया था. और इसके लिए कोई मर्द चाहिए, जो भारत में लुप्तप्रायः प्रजाति है.

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  8. पुनः एक अपील
    कृपया बाईं और के गैजेट पर वोट भी करते जायं !

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  9. पाकिस्तान एक नही कई बार ये हरक़त कर चुका है।और फ़िदायीन हमले भी क्या है,है तो हमारी सहिष्णुता,हमारी स्वतंत्रता पर हमला ही? ऐसे मे एक बार भारत को भी उसी अंदाज़ मे जवाब देना चाहिये और तमाम कूट्नीतिक और ग्लोबल पालिटिक्स के लिये एक बार पाक की तरह पाकि बेशर्मी ओढी जा सकती है।मगर ये सब तब संभव है जब शीर्ष नेतृत्व को देश की अस्मिता पर बार-बार हो रहे हमले से थोड़ा बहुत बुरा लगे। आपसे सहमत हूं मिश्रा जी। आपकी भावनाओं को सलाम करता हूं।

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  10. bilkul arvind ji ham sab ko koi naa koi raay jarur banaani hogee, baar baar marney sae ek baar aamane samney yudh karna aur marna behtar haen

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  11. अरविन्द मिश्र जी, हम सभी हताशा के शिकार हैं हममें से कुछ की हताशा उन वीरों के गौरवगान में निकल जायेगी जो युद्धस्थल से दूर बिना एक भी गोली चलाये हादसे के शिकार हो गये. कुछ अपने आतंकवाद को पवित्र और दूसरे के आतंकवाद को बुरा बता कर अपनी हताशा मिटायेंगे.
    सच्चाई यही है कि हम बुरी तरह हारे हैं और हमारी सीमा में घुसकर हमें पीटा गया है जिन्हें हमने देश और आतंरिक सुरक्षा का भार दिया था वह एकदम नाकारा साबित हुये हैं इनमें हमारे गैर सैनिक सुरक्षाबल भी शामिल हैं.

    इस हताशा में हम गलत कदम न उठा कर अभी तो सोचे उन कारणों को जिनके कारण हमारी हार हुई और ईमानदारी, पूरी ईमानदारी से यह जानें कि हुआ क्या था, बिना झूठे गौरवगान के, इस युद्ध के अपराधी कौन कौन है, इन्हें चिन्हित करें फिर कोई फैसला करें

    और हो सके तो हम इस समय हितोपदेश पढ़े, चारों भाग सहित, मन से
    अभी सीधा युद्ध? मेरी ओर से पूर्ण असहमति

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  12. मुझे लगता है कि भारत सामरिक रूप से तैयार नहीं है। पर तैयारी प्रारम्भ करनी चाहिये।

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  13. और यहाँ घरों में जो उपद्रवकारी हैं, उनका क्‍या करेंगे? नक्‍सलवादी शरणार्थी शिविरों में रहने वाले सैकड़ों लोगों को निशाना बनाते हैं, वहाँ गश्‍त करते पुलिसवालों की गाड़‍ियों को उड़ा देते हैं, उनका क्‍या? यहाँ किसने आक्रमण करने से रोका है। क्‍या मुंबई और ताज को लेकर आपका गुस्‍सा इसलिए तो नहीं कि उसमें फ़ाइवस्‍टार लोग फँसें हैं।

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  14. "मेरा तो दृढ मत है कि अब तक भारतीय वायुसेना को यह आर्डर मिल जाने चाहिए थे कि वह पाक अधिकृत आतंकी ठिकानों पर बेलौस पूरी शक्ति के साथ आक्रमण कर दे -पर हमारा नेतृत्व फिर नपुंसकता ,क्लैव्यता की राह पकड़ रहा है -हमारे ऊपर आक्रमण हुए कई दिन बीत रहे -आखिर इन सत्ता भोगियों को स्पष्ट राजनीतिक निर्णय लेने में क्या अड़चन आ रही है?"

    मैं अपनी बात आपके उपरोक्त कथन से शुरू करूंगा ! पहली बात तो ये की आपने यह आलेख बहुत सटीक और आज जनता की भावनाओं के अनुरूप लिखा है ! इसके लिए आपको धन्यवाद !

    आज के परिदृश्य में सीधे हमले के आदेश किसी भी तरह सम्भव नही है ! सीधा हमला करने के लिए आज अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन होना बहुत जरुरी है जो की हासिल करना इतना आसान नही है !

    ताऊ बुश ने भी बड़ी जद्दोजहद के बाद आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्धों में समर्थन प्राप्त किया था ! और आज ये जो हमला हुआ है ये सीधे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और खासकर अमेरिका पर हमला है ! आप इसके शिकार लोगो की लिस्ट देखे ! सारे विदेशी समुदाय, विशेषकर नारीमन हाउस में यहुदीयों को निशाना बनाना ! सब जानते है की यहूदी पक्के अमेरिका समर्थक हैं ! आतंकियों द्वारा होटल में फिरंगी विशेस समुदाय के लोगो को छाँट कर अलग करना !

    ये ऐसा हमला नही था की चाहे जहाँ बम प्लांट कर दिए और गरीब बेआसरा लोगो को निशाना बना लिया !

    स्व. इंदिराजी की हिम्मत काबले तारीफ़ थी ! एक इंसान का पैदायशी जूनून होता है कुछ भी ! उनका जीवन बहुत संघर्ष मय रहा ! उनमे अच्छा या बुरा.. कुछ भी करने का जूनून था ! चाहे १९७१ रहा हो या १९७५ में इमरजेंसी थोपना रहा हो ! उनकी खासियत थी की निर्णय लेना ! निर्णय का परिणाम अच्छा या बुरा .. दोनों में से कुछ भी हो सकता है !

    हमारा आज का नेतृत्व निर्णय विहीन है ! पोलिटिकल मजबूरी भी कह सकते हैं पर ध्यान रखिये इदिराजी के समय की राजनैतिक स्थिति भी कभी उनके फेवर में नही रही ! याद कीजिये कांग्रस अध्यक्ष निजलिंगप्पा , कामराज और संजीव रेड्डी का चुनाव ! और राजनीति हर काल में ऎसी ही रही है ! भले आप नंद के शासन काल को पढ़ ले या इतिहास के किसी भी काल खंड में चले जाए !

    मैं असल में कहना यह चाहता हूँ की इंदिराजी में एक "किल्लर इंस्टिक्ट" था जो और किसी राजनेता में उनके बाद देखने में नही आया ! हमेशा ये सोच सही भी नही होती ! और इसीका जीता जगता रूप स्व. संजय गांधी जरुर थे !

    आज हमें इसी सोच वाले नेतृतव की जरुरत है ! आपके सामने जब सोच आजायेगा तो आगे के रास्ते अपने आप मिल जाते हैं ! ये सोच यहूदियों का और ताऊ बुश का बिल्कुल स्पस्ट है ! हम तो गाल बजाने में अपना सोच स्पष्ट रखते हैं जो बड़ा दुखद है !

    अपनी बात मैं इजरायल को संदर्भित करते हुए समाप्त करूंगा-- जिन यहूदियों को हिटलर ने नेस्तनाबूद कर दिया , जिनको एक सुखी बंजर का टुकडा रहने के लिए मिला, आज वो कौम कृषि यन्त्र और खासकर सिंचाई यंत्रो में विश्व में अग्रणी है !
    उन पर एक गोली चलाओ -- जवाब में वो आप पर पुरी मैगजीन खाली कर देंगे !

    आज सिर्फ़ दृढ़ सोच वाले नेतृतव की जरुरत है ! दुर्भाग्य से वो आज हमारे पास नही है ! हम तीन दिन रो लिए .. हम युद्ध की ड्यूटी पर हैं ... शोक नही... ! फ़िर अगली बार आप युद्ध की ड्यूटी पर चढ़ जाना ! आपको तो गाल बजाने की आदत है ! जिनके कलेजे के टुकड़े मारे जाते हैं ..सिर्फ़ उनको युद्ध याद रह जाते हैं ! बाक़ी तो अब सब सामान्य हो चला है .. चार दिन अन्टसन्टात्मक लेखन बंद था .. अब फ़िर वही रामदयाल और वोही गधेडी ...

    जिनके कलेजे के टुकड़े मर गए ..उनके भी आंसू तो आख़िर सूख ही जायेंगे ...

    स्पस्ट रूप से जब हमें इसी महाद्वीप में रहना है तो इजरायल वाली नीती ही कारगर होगी.. जैसे को तैसा ....

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  15. किस खुशफहमी में जी रहे हैं, एक लाख सैनिक पकडने के बाद भी हार गये हम, लचर विदेश नीति जिसे नेहरू जी के समर्थक सबसे बेहतर बताते हैं. बीच वाले को, जो न इधर का न उधर का, क्या कहते हैं, उसे जानते हैं न. न देश हिन्दू रहा न मुसलमान बना धर्मनिरपेक्ष, कितने धर्मनिरपेक्ष हैं, इस दुनिया में बताइये, जरा. न इस के साथ गये, न उस के, फिर मदद के लिये सबके आगे हाथ फैलाते रहे. कोई उम्मीद नहीं, कम से कम नक्शे से कश्मीर का ऊपरी हिस्सा ही हटा दें. नेहरू जी ने चीन से एक-एक इन्च जमीन वापस लेने की घोषणा संसद में की थी. कांग्रेस वाले जवाब देंगे.

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  16. अरविंद जी हम हमला भी बोल देंगे पर चलिये पहले हिन्दी ब्लाग जगत को आतंकवादियो से मुक्त करवाये। यहाँ छदम और असली नाम से बहुत से लोग है जो देश के खिलाफ खुलकर बोलते और लिखते है। अफलातून, फिरदौस खान, एक हिन्दुस्तानी जैसे लोग जो लाल झंडे वाले भी कहलाते है यदि आप उनके ब्लाग को देखे तो आप जान जायेंगे इनका उद्देश्य क्या है। ये विदेशो से जुडे लगते है। एक छात्र जब एक देश द्रोही पर थूकता है तो इस ब्लाग जगत से एक फर्जी नाम से लिखने वाला मास्टर देश द्रोही के पक्ष मे लिखता है। खुलेआम। जब मुम्बैई मे अटैक होता है तो अफलातून सबसे से अपने ब्लाग पर एक गीत सुनने को कहते है। ये मंजे हुये लोग है जो देश के विरुद्ध साजिश मे शामिल है। आपने लेख लिखा है। चलिये अब देश सेवा करते है। ब्लागर से कहते है कि देश के विरुद्ध लिखने वालो को प्रतिबन्धित करे या फिर हम ही ब्लागर और दूसरे ब्लाग का तिरस्कार करते है। क्या हम भूल गये कि कैसे पुण्य प्रसून ने एक काश्मीरी आतंकवादी से मिलकर देश के विरोध मे खुला लेख लिखा था। बहुत हो गयी विचारो की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। अब इनको सरेआम पीटा जाये ताकि देश के खिलाफ एक शब्द भी न निकले इन मक्कारो के मुँह से-----। यह हमारी सहनशीलता है जो अरुन्धती राय जैसे लोगो को बर्दाश्त करते है जो रहते तो मेरे देश मे है पर समर्थन आतंकवादियो का करते है। हम जानते है कि इंडियन आइडोल मे बैठा जावेद अख्तर (और उसकी बीबी भी) समय-समय पर देश के विरुद्ध बात करता है फिर क्यो हम यह कार्यक्रम देखते है। क्यो नही हमारे देश की जनता इसका बहिष्कार करती है? क्यो भाजपा के सिध्हू और शत्रुघ्न जैसे तथाकथित देशभक्त लोग पाकिस्तानी कलाकारो की बातो पर पेट पकडकर हँसते है। भगाओ सालो को यहाँ से। कल मुम्बई की घटना दौरान भारतीय चैनलो पर पाकिस्तानी कलाकार छाये हुये थे। और चैनल वाले देशभक्ति की बात कर रहे थे।

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  17. आपका सवाल अधूरा पूछा गया है, इसका जवाब सिर्फ हाँ या ना में नहीं दिया जा सकता। फिलहाल भारत को पहले सामरिक ढंग से तैयार होना पडेगा, अगल-बगल घेरना पडेगा, अपनी स्थिती पुख्ता करनी होगी तब जाकर हमले की बात की जा सकती है। इस समय यह कहना कि भारत को बिना समय गवाए पी ओ के पर हमला करना चाहिये, कुछ कच्चा सवाल लग रहा है।
    रही बात हमला करने या न करने की तो यह तय है कि बिना हमला किये बात बनने वाली नहीं है।

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  18. सही है. अब और इंतजार नहीं किया जा सकता, देश की एकता और अखंडता भी तो कोई मुद्दा है ?

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  19. साठ वर्ष से इन्तेज़ार ही तो कर रहे हैं। क्या एक शतक का समय चाहिए?????????

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  20. हम एक राष्ट्र है -यह पूरा राष्ट्र अपील कर रहा है मरो या करो ! -sahi hai kar dena chaheeye 'Aar ya Paar'---lekin kargil ke samay kyon nahin kar di gayee thi yah 'safayee'???kyun itne dhmakon ka intzaar tha??
    ab bhi samay hai-jaag jayen to behtar hai.
    mujhey dar hai na jaane kitne aur aatanki desh mein aa chuke hain aur kis-kis jagah ki ab baari hai???
    charon tarf se to ghirey hue hain aur kitna intzaar-??

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  22. अर्विन्द जी हम कमजोर नही, ना ही डरपोक है, हमला उसे कहते है जो ललकार कर किया जाये, यह तो एक कमीना पन था, निहथे लोगो को माराना, डराना, शायद इस मे इन सुयरो की कोई चाल हो हमे उकसाने की.. इस लिये एक दम से हमले का समय निकल गया, वो समय था जब संसद पर हमला हुआ, जब कंधार कांड हुया,बाकी मै भी सतीश पंचम जी ओर ताऊ राम पुरियाओर panchayatnama जी की बात से सहमत हू,
    धन्यवाद

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  23. मुगालते में न रहियेगा जनाब। देखियेगा आप, अगले एक महीने में ही हो सकता है कि पाकिस्तान पर हमला हो जाये और फ़िर से सारी जनता अपना समर्थन(?) देते हुए कांग्रेस को सत्तारूढ़ कर देगी, मौके का फ़ायदा उठाना कांग्रेस खूब जानती है, aव्ह जानती है कि इस समय "तवा गरम है" अंतर्राष्ट्रीय समर्थन तो हासिल है ही, "देश की जनता का दिल जीतने के लिये इस समय पाकिस्तान पर हमला सबसे बेहतरीन चुनावी गोटी है…" यदि कुछ हासिल हुआ तो भी ठीक और यदि हासिल नहीं भी हुआ तो बाद में कहा जा सकता है कि भाजपा के दबाव के कारण पाकिस्तान पर हमला किया गया लेकिन वहाँ एक भी आतंकी कैम्प नहीं मिला…

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  24. हमला वह भी तुरंत?
    अकूटनीतिक हल है।

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  25. main poori tarah se aap se sahamat hun.
    inko inki aukat batane ka sahi samay yahi hai.
    aur phir wo jamin hamari hai hai to daya ka koi prashn hi nahi khada hota.
    mujhe aapke lekh ne kafi prabhavit kiya. aur sabhi comment bhi bahut hi sadhe hue sabdo me diye gaye hai lekin ab rajniti ki nahi dridh ichcha sakti ki jyada jaroorat hai.

    mera vote bhi maine darj kar diya hai aur ye haan hai hai
    bina samay gawaye pakistan tak ka namo nisa mitana hi sahido ko sachchi bhav bhini shradhanjali hogi

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  26. हमला ... हा हा हा ... हमला करने के लिये निर्णय लेना होगा .. निर्णय लेने के लिये हिम्मत होना चाहिए, जो हमारे नेताओं में है ही नहीं !

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  27. कहते है की इतिहास हमेशा अपने आप को दोहराता है.जब मोहम्मद गौरी/महमूद गजनबी जैसे आक्रमणकारियों का ये देश कुछ नहीं बिगाड पाया, जो कि सत्रह-सत्रह बार इस देश को मलियामेट करके चलते बने, तो ये लोग अब क्या उखाड लेंगे.
    वैसे भी ये बापू का देश है(भगत सिहं का नाम किसी साले की जुबान पे नहीं आयेगा). अहिंसा परमो धर्म:

    अब और क्या कहें, सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की हो या मनमोहन सिंह की, आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।

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  28. जनता की भावनाओं के अनुरूप लिखा है ! इसके लिए आपको धन्यवाद

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  29. अभी सीधा युद्ध....... भारत सामरिक रूप से तैयार नहीं है......पर तैयारी प्रारम्भ करनी चाहिये।

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  30. Attack on militant camps in pok would mean outright war between India and Pakistan and it is for the government to take a decision!

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  31. मुझे भी लगता है, एकदम से युद्ध करने के लिए शायद हम उतने तैयार ना हों।
    दिवाकर जी की टिप्पणी भी एकदम सही है, निर्णय लेने की हिम्मत हमारे नेताओं में है ही कहाँ,। देख लीजियेगा ये नेता एकाद दिन में फिर से भारत-पाक दोस्ती का राग अलापने लगेंगे।

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  32. वाकई स्तब्ध और शोकाकुल है दुनिया मगर अपनी रास्त्रपति को कोई दुःख ही नही,समझ नही आरहा के क्या होने वाला है इस देश का जब मुखिया ही जाम छलका रहा हो जिसके देश में लोगो खून की holi khel रहे हो .... वाकई ये तो सचमुच का चमत्कार है ..... पता नही अल्लाह क्या चाहता है ..... क्या हम फ़िर से गुलामी की तरफ़ बढ़ रहे है....

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  33. सत्य है कि बिना हमला किये कुछ नहीं होगा-बातचीत बहुत हो ली. मूर्ख हैं जो अब भी आई एस आई के चीफ को दावत का निमंत्रण दे रहे हैं.

    बस, अपनी तैय्यारी पुख्ता करो. यू एन भी तुरंत परमिशन देगा ऐसी स्थिति में और शुरु हो जाओ.

    यह मात्र त्वरित प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक समयकाल से दबा ज्वालामुखी है जो अब फूटने को तैयार होना चाहिये.

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  34. जब तक हम उठ कर पुरुषार्थ नहीं करेंगे, और जब तक हम अपने दुश्मनों को मटियामेट नहीं कर देंगे, तब तक ऐसा होता ही रहेगा.

    आतंकियों के ठिकानों को ठिकाने लगाना हमारी सेना के लिये कठिन नहीं है -- यदि आदेश भर दे दिया जाये!

    सस्नेह -- शास्त्री

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  35. ताऊ की इजराइल वाली बात से पूर्णतया सहमति... बहुत दिन तक सोये रहे हैं हम. अब तो एक दृढ़ नेत्रित्व की जरुरत है ही.

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  36. वैसे मैंने तो चौक-चौराहों पर अधिकांश लोगों को यह कहते हुए सुना कि अच्‍छा होता कि संसद भवन पर जोरदार आतंकी हमला होता और सारे के सारे नेता खत्‍म हो जाते। कई लोगों को मैंने सेना द्वारा तख्‍तापलट की कामना करते हुए भी सुना।

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  37. मनमोहन सिंह की बाड़ीलैन्गवेज़ देखनें के बाद भी यह कह रहे हैं?जोश में होश खोनें वाली बात है।किन्तु तैयारी तुरन्त शुरु होनी चाहिये और पख्तूनिस्तान और बलूचिस्तान को समर्थन दिया जाना चाहिये।लेकिन उसके पहले लालू मुलायम पासवान अमरसिह जैसे दो तीन सौ लोगों के मुँह में टेप लगाना या जेल में रखना पड़ॆगा।

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  38. मुंबई काण्ड के लिए हम सब में निःसंदेह गम व गुस्सा है. और अगर हमारा बस चले तो इसके दोषियों को बीच चौराहे पर खींचकर फांसी पर लटका दें. अब हमारा क्या एक्शन होना चाहिए, इसके लिए बहुत से रास्ते हैं हमारे पास. लेकिन किसी भी एक्शन से पहले यह ज़रूर सोचना होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं हम उसी रास्ते पर जा रहे हों जिधर देश के नेता अपनी कमजोरी छुपाने के लिए हमें ले जाना चाहते हों.( जैसा की पहले भी कई बार हुआ है.)
    जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ पकिस्तान पर हमले की. कुछ आतंकवादी पकिस्तान से चलते हैं, पूरा समुन्द्र पार करते हैं. फ़िर नरेन्द्र मोदी जैसे 'जांबाज़' नेता के राज्य से गुज़रते हुए सीधे होटल ताज में घुस जाते हैं. उनके पास हथियारों और गोला बारूद का भण्डार भी है.( ज़रा आप बिना हेलमेट के शहर की मुख्य सड़क पर थोडी दूर चलकर दिखा दीजिये.) पकिस्तान पर हमले से पहले हमें ख़ुद के गरेबान में झांकना होगा. वास्तविकता यह है की आज देश की अधिकाँश संख्या अपने ख़ुद के स्वार्थों के हाथों बिक चुकी है. किसी भी चेक पॉइंट पर बीस-पचास रुपये फेंकिये और हर तरह का माल इधर से उधर कर दीजिये. पैसा फेंकिये और नकली नामों से असली पासपोर्ट बनवा लीजिये. कोई ऐसा सरकारी दफ्तर बता दीजिये जहाँ रिश्वत के बिना काम हो जाता हो. उसके बाद हमें जातिवाद भी चाहिए, क्षेत्रवाद भी चाहिए, तो फिर आतंकवाद भी कबूल करिए. पकिस्तान पर हमले से क्या मिलने वाला? वह तो ख़ुद ही आतंकवाद से जूझ रहा है. हाँ दोनों देश अपने स्वार्थ को परे रखकर संयुक्त रूप से इसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करें, एक संयुक्त सेना बनाएं तब शायद कुछ हल निकल आए.
    एक सज्जन ने टिप्पणी की है कि सारे मुसलमानों को वोट के अधिकार से वंचित कर देना चाहिए. बहुत खूब. यानी ये देश आप ही कि बपौती है. टीपू सुलतान, हैदर अली, अब्दुल हमीद, अशफाकुल्लाह तो देश के बाहर बसते थे. कुछ मुसलमान नाम काण्ड में आ जाएँ तो सारे मुसलमान दोषी और आप उड़ीसा में कत्लेआम करें तो बहुत बड़े देशभक्त.
    हेमंत करकरे की शहादत का सबसे बड़ा गम तो मुसलमानों को ही है. वही बेचारा तो यह समझाने की कोशिश में था कि आतंकवादी न मुसलमान होता है न हिंदू. पाकिस्तान और इराक में कौन मर रहा है आतंकवादियों के हाथों? सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमान. बेगुनाह बेकुसूर. अपने देश में भी आतंकवाद से सबसे बड़ा नुक्सान मुसलमान का ही तो हो रहा है. अब उसे हर जगह शक की निगाहों से देखा जाता है. नौकरियों के रास्ते उसके लिए बंद हो रहे हैं. यहाँ तक की कोई उसे किराए पर घर भी नहीं देना चाहता. ऐसे में वह क्यों कर आतंकवाद की हिमायत करेगा?
    खैर ज्यादा कुछ कहने से फायेदा नहीं. इस समय देश को ज़रूरत है देशभक्तों की. सबको मिलजुलकर आतंकवाद से लड़ने की. और हर व्यक्ति को अपने बारे में यह सोचने की कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अपने स्वार्थों के चक्कर में कहीं न कहीं ख़ुद आतंकवाद का साथ दे रहा हो.

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  39. आततायिनाम आयान्तम अन्यादेओविचारातः
    आतताई को मारने में कोई बुराई नहीं है
    मनु के इस कथन को अपनाने में कोई बुराई नहीं है किंतु याद करें अमेरिका जैसे देश को भी अफगानिस्तान के विरूद्ध लडाई छेड़ने में भी वक्त लगा था हम इस्राइल नहीं है और न ही उस कोटि का प्रचंड राष्ट्रवाद ही हमारे देश में है आज क्लैव्य नेताओं की भरमार है रही बात इंदिरा जी की तो उमकी कूटनीति मंजी हुई थी आज कल के नेता पेपर पामेरियन हैं जो आँचल के पल्लू में भौन्कतें है
    दुर्भाग्य से आँचल की कोई कमी भी नहीं है मेरे विचार से आक्रमण के दो अवसर हमने खोये हैं याद करें कारगिल और संसद पर हमला लेकिन आर पार की लडाई का घोष करने वाले भीस्म पितामह अटल जी घुटने खिंच लिए और नहीं तो ५ महीनों तक सेना को सीमा पर अटका कर उनका मानसिक शारीरिक धर्य का परिक्षण करते रहे कारगिल के युध्ध में जिस प्रकार से नचिकेता विमान ले कर सीमा पार चला गया था उसी प्रकार से कुछ बमबारी होनी चाहिए थी लेकिन कुछ नहीं हुआ शब्द वाण के आलावा कुछ नहीं था इन तथाकथित राष्ट्रवादी नेताओं के पास हाँ यदि गृह युद्ध करना हो तो इन सारे नेताओं के पास तमाम शक्ति और इच्छा शक्ति आ जायेगी जब कारगिल पर हमला हुआ था तब आक्रमण के सारे रास्ते खुले थे लिकिन इसी ऊहापोह में इन लौह पुरुषों ने अपनी मिटटी पलीद करी तथा उसमे जितने सैनिकों का वलिदान हुआ उतने १९७१ के युद्ध में नही हुआ था फ़िर ये कारगिल के नाम पर चंदा इकठे करने लगे | युद्ध तो होगा ही लेकिन पहले जयचंदों को तो छांट कर बाहर करें जो इन्हे पनाह दे रहे है

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  40. We need to fix it inside our borders first before going to faraway places. Else, we would be bombing entire world without ever being able to fix the problem.

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  41. हमला करने से नाभिकीय युध्द का खतरा तो है ही पर पाकिस्तान के खिलाफ सबूत जुटा कर उसको आतंकी देश घोषित करवाया जाना चाहिये और उसका हुक्का पानी बंद करवाना चाहिये । पर यह भी काफी मुश्किल काम है हमारी कूटनीति कितनी कारगर हो सकती है यह देखना होगा क्यूं कि इसमें भी उसके आका अडचने डालेंगे । शायद ओबामा के शासन में यह संभव हो ।

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  42. संसद पर हमले के वक्त भी भावनाओं का यही ज्वार उठा था। लोग सवाल पूछने लगे थे कि आखिर कब होगा पाकिस्तान पर हमला। पाक पर हमले की उम्मीद जब टूटी तो लोग कहने लगे कि कम से कम पाक अधिकृत कश्मीर के आतंकी ठिकानों पर तो भारत को हमला कर ही देना चाहिए। पर कुछ नहीं हुआ। तब हम सीमा के पार एक गोला भी नहीं दाग पाए। तब जो वजहे हैं, वह अब भी कायम है।
    हालांकि आपका सवाल है हमला होना चाहिए या नहीं। इसलिए होगा या नहीं की बातें न ही करें तो बेहतर। दरअसल दिल तो तब भी यही कह रहा था और अब भी कह रहा है, आतंकियों के ठिकानों को मटियामेट किया ही जाना ही चाहिए। एक बार तो हम बताएं, कि हम सीमा पार भी आतंक का फन कुचलने में समथॆ हैं।
    हालांकि, बात फिर वहीं आ जाती है। ये सारी बातें मन के लड्डू जैसी ही लगती हैं। जिसके बारे में पता हो कि यह चीज हमें नहीं मिल सकती, उसकी उम्मीद क्यों करें।

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  43. Zaroor.
    Taau ka aaklan bhi zordaar hai.
    Ek Salah- ho sake to Anonymous comment band kar den, uska durupyog ho raha hai.

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  44. यथार्थ यही है कि अभी प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में ऐसी ही ज्वाला धधक रही है और ऐसे ही विचार मन में आ रहे हैं,परन्तु आप ही सोचिये ,जो तंत्र इन हादसों तक को नियंत्रित करने की क्षमता नही रखता ,वह क्या अभी युद्ध के लिए तैयार है.ऐसा नही है की भारत के पास अस्त्र शास्त्र या संसाधनों की कमी है,पर आज हमारे जननायक इस कोटि के हैं कि इतने बड़े कदम उठाने के बाद सैन्य बल को सही दिशा निर्देश तक दे सकें........
    हमारे शत्रु केवल ये पकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ही नही भारत में फैले नक्सलवाद,माओवाद और न जाने कितने ही वादी जो आए दिन देश के किसी न किसी भाग में नरसंहार और विध्वंश मचाये हुए हैं,वे भी तो हैं.आज ताज प्रकरण हुआ तो सब बौखलाए,असाम,झारखण्ड,कश्मीर जैसे राज्यों में जहाँ नित प्रति नरसंहार हो रहे हैं,ऐसी खबरें लोग चाय की चुस्किया लेते हुए पढ़ जाते हैं.सरकार अपने अन्दर के दुश्मनों से तो निपट नही पा रही ,बहरी ताकतों से कैसे निपटेगी ?
    आज गरीबी बेरोजगारी, महंगाई ने जो आम जनता का हाल कर रखा है,क्या देश अभी तैयार है युद्ध की स्थिति में इन बदतर स्थितियों के और भी बदतर हो जाने पर झेलने के लिए.???????

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  45. bilkul ab tak to ho jana chahiye tha prntu phir hamne ek mauka chuuk gaye.

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  46. पकिस्तान का समर्थन करने वाले आज चुप क्यों हैं .आज जब देश की जनता में उबाल है तो क्यों नहीं उसके पक्छ में सफाई देते .और तो और कुछ तथाकथित ध्र्मनिर्पेक्छ्ता का पाठ पड़ने वाले लोग अकबारों में फिर सक्रिय हैं कि इस देश के मुसलमानों को शक के निगाहों से देखा जा रहा है आज ही के दैनिक हिन्दुस्तान में एक रिपोर्ट दिल्ली से है .तो हे भाई साहेब लोंगों इस देश के मुसलमानों की भी जिम्मेदारी बनती है की वे अपने ऊपर लगे कलंक को धोने के लिए ख़ुद आगे आयें वोलोग ख़ुद क्यों नहीं पाकिस्तान के विरूद्ध जेहाद का एलान करते .वे क्यों नहीं दुनिया से कहते कि इस्लाम का मतलब आतंक नहीं है .जब तक इस देश का ३० करोड़ मुसलमान इस आतंक का खुल कर दिल से बिरोध नहीं करता तो आप बताएं कि शक कैसे खत्म होगा .

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  47. me aap ki batoo se puran roop se shmat huu.
    me aap ke sath huu.
    is samay bharatvasiyo ki soch aap jese honi chaiye

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  48. दुश्मन देश स्थित आतंक के अड्डों पर हमले के लिए इजरायल जैसी राजनैतिक ईच्छा-शक्ति और प्रतिबधता चाहिए जो बिना किसी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की परवाह किए अपने देश हित में कार्यवाही करता है
    जिन यहूदियों को हिटलर ने नेस्तनाबूद कर दिया , जिनको एक सुखी बंजर का टुकडा रहने के लिए मिला, आज वो कौम कृषि यन्त्र और खासकर सिंचाई यंत्रो में विश्व में अग्रणी है !
    उन पर एक गोली चलाओ -- जवाब में वो आप पर पुरी मैगजीन खाली कर देंगे ! स्पस्ट रूप से जब हमें इसी महाद्वीप में रहना है तो इजरायल वाली नीती ही कारगर होगी.. जैसे को तैसा ....

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  49. अफलातून, फिरदौस खान, एक हिन्दुस्तानी जैसे लोग जो लाल झंडे वाले भी कहलाते है यदि आप उनके ब्लाग को देखे तो आप जान जायेंगे इनका उद्देश्य क्या है। ये विदेशो से जुडे लगते है। एक छात्र जब एक देश द्रोही पर थूकता है तो इस ब्लाग जगत से एक फर्जी नाम से लिखने वाला मास्टर देश द्रोही के पक्ष मे लिखता है। खुलेआम। जब मुम्बैई मे अटैक होता है तो अफलातून सबसे से अपने ब्लाग पर एक गीत सुनने को कहते है। ये मंजे हुये लोग है जो देश के विरुद्ध साजिश मे शामिल है।

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  50. तैयारी तुरन्त शुरु होनी चाहिये और पख्तूनिस्तान और बलूचिस्तान को समर्थन दिया जाना चाहिये।लेकिन उसके पहले मुलायम और अमरसिह जैसे दो तीन सौ लोगों के मुँह में टेप लगाना या जेल में रखना पड़ॆगा।

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