सोमवार, 5 अगस्त 2013

चन्द्रकान्ता के लोक में -एक सैर विजयगढ़ दुर्ग की .....(सोनभद्र एक पुनरान्वेषण - 7)


बाबू देवकी नंदन खत्री की अमर तिलिस्मी कृति चन्द्रकान्ता के प्रेरणा स्रोत रहे एक अद्भुत फंतासी की दुनिया के मौजूदा ध्वंसावशेष और आज भी रहस्यमयी विजयगढ़ दुर्ग पर कल हमने ट्रेकिंग कर ही लिया -किला फतह हुआ एक बार फिर कुछ साधारण से मनुष्यों द्वारा . देवकी नंदन खत्री के चन्द्रकान्ता उपन्यास की नायिका बेहद सुन्दरी राजकुमारी चंद्रकांता यहीं विजयगढ़ की थीं -इस कृति को दूरदर्शन ने काफी ख्याति दिलाई और कुछ और भी कल्पनाशीलता का  सहारा लिया . जिन्होंने यह धारावाहिक देखा होगा उन्हें याद होगा कि विजयगढ़ के पास के ही नौगढ़ ( जो आज चंदौली जनपद में है ) के राजकुमार वीरेंद्र सिंह की प्रेम कथा में विजयगढ़ दरबार का  ही क्रूर सिंह विलेन बना और अपने मकसद में सफल न होने पर समीपवर्ती चुनारगढ़ (अब मिर्जापुर ) के राजा शिवदत्त को विजयगढ़ पर आक्रमण के लिए उकसाया .खैर यह सब तो फ़साना है मगर हकीकत भी कुछ कम रोमांचकारी और रहस्यभरा नहीं है .

 अभी तो आधा रास्ता भी नहीं हुआ 
यहाँ सोनभद्र में आने के बाद देखे जाने वाली जगहों की सूची में विजयगढ़ का दुर्ग भी था मगर मुश्किल यह थी की यह चार सौ फीट ऊंचाई पर एक पहाड़ पर स्थित  है . और काफी चढ़ाई है . एक तरफ से तो करीब पांच किमी ट्रेकिंग करनी पड़ती है जो किले के मुख्य दरवाजे से प्रवेश दिलाता है मगर एक वाहन का रास्ता भी कालान्तर में वजूद में आ गया जो किले की एक खिड़की (गवाक्ष ) के नीचे तक जा पहुंचाता है. मगर यहाँ से सीधी चढ़ाई है और कोई व्यवस्थित मार्ग भी नहीं है -बस पत्थरों पर पैर रखते हुए सीधे खिड़की तक पहुँच जाईये - मैं इसी से घबरा रहा था -शरीर और उम्र का तकाजा ........मगर इस किले के रहस्य ने उत्साह भरा और चन्द्रकान्ता का नाम ले हम भी आखिर दुर्ग में प्रवेश कर ही लिए.भारतीय लिहाज से यह एक एडवेंचर यात्रा रही।
 जन श्रुतियों का साक्षात रामसागर 
राबर्ट्सगंज के नगवां ब्लाक में मुख्यालय से करीब तीस किमी पर  मऊकलां गाँव में यह दुर्ग सबसे ऊंचे पहाड़ पर है।  मऊकलां गाँव में बुद्ध से जुड़े अवशेष , गुफा चित्र भी  हैं और अब यहाँ एक संग्रहालय भी है जिसे हम अगली बार देखने के लिए छोड़ कर आगे बढे। वाहन वाले रास्ते को चुना और खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों को  देखते हुए किले के पीछे की खिड़की के ठीक नीचे जा  पहुंचे। सिर उठा कर ऊंचाई देखी तो एक बार गहरी निराशा हो आयी।किले ऐसे ही सुरक्षित बनते थे ताकि दुश्मन की फौजे कहीं से भी आसानी से चढ़ न पायें।  प्रियेषा सबसे पहले आगे बढीं मगर जोर से चिल्ला कर आगाह किया कि पापा आप चढ़ नहीं  पायेगें। आज के युवा  अपने बुजुर्ग पीढी को ऐसे ही अंडरइस्टीमेट करते हैं.हुंह! मैंने तत्क्षण चढ़ने का फैसला कर लिया।कुछ मत पूछिए, साँसे धौकनी हुई और  एक  दो जगहं  बैठ गए तो बैठ गए। मैं, पत्नी और डेजी बुजुर्ग थे और डेजी तो  मनुष्य की उम्र के हिसाब से एक सौ  चालीस साल यानि चौदह साल की। प्रियेषा ने डेजी को गोंद में  ले लिया और अब उसके लिए भी चढ़ाई मुश्किल हो गयी थी। आखिरकार हम खिड़की तक पहुँच गए और चौखट डांकते ही एक विशाल मैदान सामने था -थोड़ी देर तो भ्रम सा हो आया कि हम पहाड़  पर वाकई थे -यह इस इलाके का सबसे ऊंचा पहाड़ था।
 चढ़े तो हम पिछवाड़े की खिड़की से मगर मुख्य दरवाजे तक आ पहुंचे 
यद्यपि किले की प्राचीनता के बारे में बहुत प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती मगर कहते हैं कि इसका निर्माण पांचवी शती में कोल राजाओं ने कराया था।  इतिहासकारों का दावा है कि इसका निर्माण पंद्रह सौ  वर्ष पूर्व में ही भट्ट शासकों द्वारा हो चुका था।  कालांतर में अन्य राजाओं ने इस पर अधिपत्य किया। काशी के राज चेत सिंह  अंग्रेजों के समय तक इस पर काबिज थे. चंदेलों द्वारा भी यहाँ से राज काज संभालने का उल्लेख  है. यहाँ के सप्त सरोवर आज भी दर्शनीय हैं - इतने ऊपर होने के बाद भी इनमें पानी कहाँ से आता है और कैसे दो सरोवरों में आज भी पानी सूखता नहीं विस्मित करता है।  इनमें से एक राम सागर को लेकर तो कई दन्त कथायें प्रचलित हैं।  कहते हैं कभी इसमें हाथ डालने पर  बर्तन  मिल जाते थे और लोग उसी में खाना  बनाते थे।  ये इतने गहरे हैं कि इनकी गहराई आज तक  पता न लग पाने की  बात कही जाती है.
रानी बुर्ज -एकमात्र यही संरचना कुछ ठीक है
आज दुर्ग बहुत खराब स्थिति में है।  यहाँ पता नहीं कब एक मजार बन गयी और पास में ही एक कमरे का  शिव मंदिर और एक तालाब हिन्दू का हो गया और एक मुस्लिम का। और एक ओर  सालाना उर्स तो दूसरी ओर सावन में कांवरियों का मेला -आज बस दुर्ग की यही पहचान रह गयी है।  कुछ और स्थापत्य के नमूने - बुर्ज रनिवास ,कचहरी ,शिला लेख आदि भी हैं। जनश्रुति यह भी है कि यह किला महज एक तिलस्मी भूल भुलावा है -एक दूसरा किला  इस किले में  छुपा  है। काश मल्हार वाले सुब्रमन्यन साहब या राहुल सिंह जी भी साथ होते।
 हिल टाप पर बसा है किला - एक लांग शाट 
हम पहाड़  की चोटी पर चहलकदमी करते हुए किले के मुख्य दरवाजे पर जा पहुंचे। यहाँ से विशाल नयनाभिराम धन्धरौल जलाशय और चुर्क की कई किमी दूर की सीमेंट फैक्ट्री भी दिखती है. किले के मुख्य द्वार पर झाड झंखाड़ उगे हैं -एक काला नाग हमारे सामने  से सरसराता गुज़र गया।  प्रियेषा  ने फोटो तो ली मगर  उसका आधा हिस्सा गायब हो चुका था।  मुख्य द्वार के समीप की  प्राचीन कचहरी में उर्स के भंडारे की इंतजामिया कमेटी का  कब्ज़ा है. बगल में हजरत मीर शाह बाबा की मजार है और उससे लगा प्राचीन तालाब मीर सागर। यहाँ प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह में उर्स का भारी मेला लगता है। अब तक हम काफी थक चुके थे अतः वापस चल  पड़े।  किले से उतरना भी कम दुष्कर नहीं है -सीधी चढ़ाई के बजाय सीधी उतरन में ज्यादा सावधानी की जरुरत रहती है।
फिर आयेगें विजयगढ़ !
 यह पूरा क्षेत्र - मऊ कलां गाँव पुरातात्विक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।भारत सरकार का पुरातत्व विभाग इधर ध्यान दे यह अपेक्षा है! प्राचीन इतिहास के छात्रों के लिए यह एक महत्वपूर्ण भ्रमण स्थल है।  हमें मुक्खा फाल भी  देखना था जो विपरीत दिशा में करीब अस्सी किमी दूर था इसलिए हम डेढ़ बजे दोपहर के बाद किले से आगे चल पड़े ! 


41 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर प्रदेश में इतनी सुन्दर और ऐतिहासिक स्थान भी हैं ,स्वयं उत्तर प्रदेश के निवासी भी नहीं जानते होंगे..सरकारी तंत्र कभी इन पर्यटन स्थलों का प्रचार क्यों नहीं करता ,समझ नहीं आता ..वैसे भी प्रचार कर के कुछ होने वाला नहीं है ..ताजमहल विश्प्रसिद्ध है लेकिन उस के आस पास का, उस शहर का उद्धार आज तक नहीं हुआ तो इन जगहों का ये लोग क्या कर सकेंगे!आगरा हो का राने वाले लोग वहां की गन्दगी आदि देखकर निराश ही होते हैं.
    चंद्रकांता बहुत अच्छे से याद है..तिलिस्मी कहानी थी..किले के अंदर किला? कुछ तो कहीं सत्य होगा..इतिहास खंगालना होगा.दुर्ग वहां सरोवरों के होते हुए ही बनाया गया होगा..इतनी ऊँचाई पर पानी का होना और अब तक होना...वाकई आश्चर्यजनक है.इस स्थान /दुर्ग की देखरेख ..सम्भाल की अपेक्षा सरकार से करना बेकार है.बहुत अच्छे चित्र हैं,,,हरा रंग उस दिन का ड्रेस कोड था ?.इस स्थान के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता है.आभार.

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    1. ड्रेस कोड संयोगात ही था :-) सचमुच बहुत कुछ जानना शेष है इस किले के बारे में !
      जो दिख रहा है लगता है छलावा ही है और असली किला हमेशा लोगों से छुपा रहा है -रणनीतिक कारणों से
      यह छुपा रहा लगता है !

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    2. याद कीजिए, यदि आपने यह यात्रा बुधवार को की थी तो ड्रेसकोड संयोगात नहीं था।

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  2. बढ़िया खोजी ट्रिप रही ये तो....
    बेहतरीन तस्वीरें..आनंद आया देख कर!!

    सादर
    अनु

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  3. दुर्गम स्थल लगता है.
    कुछ और दृश्यों की तस्वीरों की अपेक्षा थी.

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    1. एक बार और जायेगें कभी तब आपली हसरत पूरी हो जायेगी डॉ साहब -वैसे आपकी फोटोग्राफी के सामने इस खाकसार की क्या औकात है !

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  4. रोमांचित हुआ. हम साथ होते तो मुक्खा फाल तो कतई नहीं जा पाते "किले से उतरना भी दुष्कर नहीं है" के बदले "किले से उतरना और भी दुष्कर रहा" होना चहिये.

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    1. किले पर आप आसानी से चढ़ जायेगें -आमंत्रित है ,राहुल जी को भी पकडे लाईयेगा

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  5. बढ़िया यात्रा वृत्‍तांत। हरियाली के बीच हरे रंग के परिधान उसी तरह से रहस्‍यमय लगे जैसे किले के अन्‍दर किले वाली बात।

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  6. पढ़ने और चित्र देखने में तो आनंद दायक है मगर चढ़ने-उतरने के नाम से पसीना छूट रहा है।

    आपका वर्णन भी खूब तिलस्मी है..वाह!

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  7. रहस्यमय किले को देखने का दिल है , देखते हैं कभी आपके पास आने को !

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  8. रोमांचक यात्रा वृतांत...... सुंदर चित्र

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  9. कोई बहुरूपिया तो नहीं मिला वहाँ..सुन्दर चित्र और रोचक वर्णन।

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  10. बहुत ही सुन्दर चित्र ,सधा हुआ आलेख सरकार को नेक सलाह सबकुछ अद्भुत |आभार सर

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  11. शरीर और उम्र के तकाजे के साथ उत्साह की जुगलबंदी होती रहे। :)

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  12. beautiful creation...

    meri nayee post pe aapka swaagat hai :

    http://raaz-o-niyaaz.blogspot.in/2013/08/blog-post.html

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  13. इस प्रदेश में भी अतुल्य पुरासम्पदा है , आपने भी कुछ नया ढूंढ लिया।
    ऐतिहासिक महत्व की संपत्तियां कब धर्मों की भेंट चढ़ जाती है , प्रशासन को निगरानी रखनी चाहिए।
    परिवार के साथ अच्छा समय और रोमांचक सफ़र मुबारक !

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  14. रोचक वर्णन ... इतिहास के पात्रों के साथ साथ, रहस्मयी यात्रा में उत्सुकता बना के रक्खी है आपने ... अपने देश की अकूत संपदा का, इसकी विरासत का किसी सरकारी तंत्र को क्यों ख्याल नहीं आता ... सुन्दर चित्रों और शब्दों से किले के हर पहलू को बाँधा है आपने ...

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  15. पूरे विवरण को पढकर चंद्रकांता संतति की याद आगई, किले के रास्ते में कहीं भूतनाथ से भी मुलाकात हुई या नहीं?

    रामराम.

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  16. Chandrakanta.. I remember that :)
    specially the title song..

    you're quite an explorer.. liked the details u added in teh post.

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  17. सुन्दर यात्रा वृतांत और पारिवारिक भ्रमण के लिए बधाई

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  18. मैं तो इसे फिक्शन ही मानता था अभी तक। आपका हृदय से आभार

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  19. ४७ बरस पहले पढ़ी चंद्रकांता......आपके रिपोतार्ज को पढ़कर पुनः यादों में उतर आयी। तिलस्मी किले के रोमांचक किस्से आज भी रोंगटे खड़े कर देते हैं। इस किले की गहरी खोज-बीन होंनी चाहिये। अगली बार चित्रों के माध्यम से ज्यादा करीब से दर्शन कराऎं ।

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  20. हाँ इस बात की खोज तो होनी ही चाहिए कि इस किले की भीतर जो दूसरे किले के छुपे होने की बात कही जाती है और जो तार्किक भी है कहाँ तक सच है !

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  21. प्रकृति इतिहास और पुरातत्व से एक साथ साक्षात्कार और साथ में हरित परिधान लगता है आप तीनों भी प्रकृति ही हो गए और वह हतप्रभ देजी।

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  22. आपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

    कृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा

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  23. Naugarh vijaygarh chunargarh dekhne ke lie kitna time chahie or guide bhi milte hai yahan rehne ke bare kya suvidhae uplabdh hai kirpya batae

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  24. अपनी टिप्पणी लिखें...bahut sundar jankari mili vaise to ham chandauli se hai lekin hamare yaha se 120 km ki duri h ham jayege group ke sath byke se

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  25. Mere ghar she vijaygarh durg 30 km Ki during Pr h.

    Yha par ke kai rahsya to aise hai. Jinka andaja lagaya to ja sakta hai. Pr gov. dwara pratibandhit hone me karan kuchh bhi khoj nhi kiya ja sakta. Puratatva vibhag ko is pr sarvey karke project banana chahiye

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  26. Sawal to ab bhi wahi hai
    Kya sach me chandra kanta or virendra vikram the ya fir ye sab kahani k hi patra hain
    Yadi the to kya thi unki sachchi kahani..
    Bahot interesting jagah hai..
    I wanna know more abt that placa and story..

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  27. बहोत सारी सचाइयों को आपके द्वारा नही बताया गया

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