पंच कह रहे हैं कि बहुत भूमिका हो ली ( भाग -१,भाग -२) अब आगे बढा जाय ! बहुत से लोग वैसा ही समझते हैं जैसा मैं पहले समझा करता था कि श्रृंगार रस केवल सजने सवरने ,आभूषण और अलंकारिकता की सुखानुभूति से ही सम्बन्धित है -बस आनंदम आनंदम ! मगर ऐसा है नहीं ! श्रृंगार रस अपने में वियोग की अकथ पीडा भी समेटे हुए है -यह संयोग और वियोग दोनों का ही साझा संबोधन है ! अब श्रृंगार के संयोग और वियोग के पहलुओं पर शास्त्रों और साहित्य में बहुत पन्ने स्याह सफ़ेद हो चुके हैं -यहाँ हम उनकी पुनरावृत्ति नहीं करेगें ! हम यहाँ नायक और नायिका भेद पर आपसे चर्चा करेगें जिनका आधार ही श्रृंगार का संयोग और वियोग पक्ष रहा है -मतलब प्रकारांतर से हम यदि नायक और नायिका भेद को भलीभांति समझ गये तो संयोग और वियोग के भावों से भी एक साक्षात्कार कर ही लेगें -उनके मूल भावों को अन्तस्थ कर सकेगें और शायद कुछ भाग्यशाली और कुछ कम भाग्यशाली जन उन विवरणों से खुद को जोड़ भी सकेगें !मतलब आयिडेन्टीफाई भी कर सकेगें !
अब मुश्किल यह है कि हम पहले नायिका भेद से शुरू करें या नायक भेद से ! पहले इस मुद्दे को लेकर मेरे विज्ञान ब्लॉग पर काफी लानत मलामत हो चुकी है और इसलिए मेरे मन में किचित संकोच और डर भी है ! अब इस बात में भी दम है कि यह सारा साहित्य चूंकि प्रमुखतः पुरूषों द्वारा लिखा गया है अतः यह एक ख़ास सोच और मनःस्थिति का परिचायक हो सकता है ! मेरा इस बात से इनकार नहीं है -मगर विनम्र अनुरोध केवल इतना है कि आज किसने रोका है कि प्रबुद्ध नारियां मौजूद साहित्य को समयानूकूल नारी की दृष्टि से संशोधित्त या परिवर्धित न करें ! फिलहाल तो जो जैसा है वैसा है के रूप में हमें झेलना होगा ! मगर संशोधन की गुन्जायिश तो है ही -मगर क्या कोई प्रतिबद्धता के साथ आगे आयेगा ? जो भी हो मुझे पूरा विश्वास है कि काव्य और कला के सहज प्रेमी जन और नाट्य कला /शास्त्र मे रूचि रखने वाले सुधी जन इसे सकारात्मक रूप से लेगें !
चलिए मैं पहले नायिका भेद से ही शुरू करता हूँ ! इस विषय पर मुझे विस्तृत साहित्य के अवगाहन पर यही लगा कि डॉ .राकेश गुप्त जिनसे आप इस श्रृखला के पार्ट एक में मिल चुके हैं इस विषय के अद्यतन अधिकारी अध्येता रहे है और उनकी डी. लिट .भी इसी विषय पर है ! उन्होंने उपलब्ध साहित्य के आधार पर हिन्दी साहित्य की नायिकाओं बोले तो हीरोईनों को १६ भेदों में बाटां है -कई उपभेद भी हैं ! और यह वर्गीकरण नायिकाओं के नायकों के मिस /निमित्त रागात्मक सम्बन्धों , उनके मनोभावों ,विभिन्न अवस्थाओं और परिस्थितियों पर आधारित है !
एक बार फिर कुछ श्रृंगारिक हिन्दी साहित्य के पारिभाषिक शब्दों को आत्मसात कर ले जिससे नायिका-भेद समझने में आपको सुभीता रहे !
अनूढा -पुरुष विशेष से प्रेम करने वाली अविवाहित नारी अनूढा है .
स्वकीया -अपने पति से एकनिष्ठ प्रेम करने वाली विवाहित नारी स्वकीया है .
परकीया -पति से इतर पुरुष से प्रेम करने वाली विवाहित नारी परकीया कहलाती है .
ये शब्द संज्ञा के साथ ही विशेषण रूप में भी प्रयुक्त हो सकते हैं जैसे परकीया या स्वकीया प्रेम आदि !
आज बस इतना ही ......तनिक धीरज रखें !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
ईतना पढने के बाद धीरज रखना थोडा मुस्किल है...इन्तजार है अगली कडी का
जवाब देंहटाएंरीतिकालीन हिंदी साहित्य में नायिका भेद पर वृहद चर्चा है | लेकिन नए प्रोफेसरों व्दारा यह बढे हिकारत के भाव से पढाया जता है | यहाँ इस विषय पर यह स्वथ्य अप्रोच अच्छा लगा !
जवाब देंहटाएंअनूढा -पुरुष विशेष से प्रेम करने वाली अविवाहित नारी अनूढा है .
जवाब देंहटाएंस्वकीया -अपने पति से एकनिष्ठ प्रेम करने वाली विवाहित नारी है स्वकीया है .
परकीया -पति से इतर पुरुष से प्रेम करने वाली विवाहित नारी परकीया कहलाती है .
डेफीनेशन बढ़िया लगी. ...आभार
@ श्रृंगार रस अपने में वियोग की अकथ पीडा भी समेटे हुए है -यह संयोग और वियोग दोनों का ही साझा संबोधन है ।
जवाब देंहटाएंसत्य कथन। उर्दू शायरी भी हिज़्र-वस्ल के इर्द-गिर्द ही टहलती पाई जाती है। एक बात जबर्दस्त लगी। नायिका भेद में उनकी बात क्यों नहीं की गई, जो पुरुषों से प्रेम नहीं करतीं..बोले तो वे कॉलेजगामिनी नायिकायें किस श्रेणी में आती हैं, जो हर प्रेम-प्रस्ताव को नकार कर प्रेमी हृदयों को विदीर्ण करती हैं..?
@ श्रृंगार रस अपने में वियोग की अकथ पीडा भी समेटे हुए है -यह संयोग और वियोग दोनों का ही साझा संबोधन है ।
जवाब देंहटाएंसत्य कथन। उर्दू शायरी भी हिज़्र-वस्ल के इर्द-गिर्द ही टहलती पाई जाती है। एक बात जबर्दस्त लगी। नायिका भेद में उनकी बात क्यों नहीं की गई, जो पुरुषों से प्रेम नहीं करतीं..बोले तो वे कॉलेजगामिनी नायिकायें किस श्रेणी में आती हैं, जो हर प्रेम-प्रस्ताव को नकार कर प्रेमी हृदयों को विदीर्ण करती हैं..?
ये तो मुल्ला की हिन्दू ला की जैसी किताब हो गयी। पहले ही परिभाषाएँ। पर वकील तो पहले प्रोविजन पढ़ते हैं वहाँ तकनीकी समस्या आ जाने पर ही परिभाषा पढ़ा करते हैं।
जवाब देंहटाएंतीसरे ही ओवर में मैच का पहला छक्का हो गया।
@कार्तिकेय ,श्रृंगार के मान्य स्थापनाओं के अनुसार पुरुष से प्रेम न करने वाली नारी नायिका नहीं हुयी !
जवाब देंहटाएंअरविंद जी,
जवाब देंहटाएंवैसे तो मैं आयु और अनुभव में आप विद्वत्जनों से काफी छोटी हूँ, परन्तु चूँकि डी.फिल. में मेरा शोध-विषय भी इससे सम्बन्धित था और यह मेरी रुचि का विषय भी है. अतः यह लेखमाला मेरे लिये अत्यधिक उपयोगी होगी. मैं इस पर अपने दृष्टिकोण से टिप्पणी भी करुँगी आशा है कि एक सकारात्मक बहस होगी.
हर हर देव।
जवाब देंहटाएंआदि गुरु अर्धनारीश्वर को नमन।
सामान्यत: व्यास पीठ से आचार्य गण वन्दना से प्रारम्भ करते हैं। यहाँ यह श्रोता वन्दना से प्रारम्भ कर रहा है। विषय गूढ़ है। इसलिए यह आवश्यकता आ पड़ी। हम गम्भीर श्रोता हैं।
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@ आज किसने रोका है कि प्रबुद्ध नारियां मौजूद साहित्य को समयानूकूल नारी की दृष्टि से संशोधित्त या परिवर्धित न करें !
भैया शुरुआत में ही ललकार दिए?
आज तो शुरू होने के पाहिले ही ख़त्म होने सा लगा... थोडा और लिखिए.
जवाब देंहटाएंबहुत खुब ...
जवाब देंहटाएंयहां तक पहुंचना ही था।
जवाब देंहटाएंनायिका भेद और उनकी परिभाषा ...अच्छा है नारियों को समझने में सहायता होगी ...हमारी नजर में तो हर नारी नायिका ही है ..अब इस परिभाषा की दृष्टि से भी देखेंगे ...प्रबुद्ध नारियों से तो श्रृंगार साहित्य अपनी नजर सी लिखनी की अपील आप कर ही चुके...काश की हम भी प्रबुद्ध की परिभाषा में खरे उतरते
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी ...!!
ये तो बडी मनोरंजक और रोचक श्रंखला शुरु कर दी आपने. भगवान विघ्न संतोषियों से बचाये और यह निर्बाध गति से आगे बढती रहे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर! श्रृगार रस असुन्दर हो ही नहीं सकता!
जवाब देंहटाएंहम तो बहुत कुछ पा गये यहाँ आते-आते। इंटर के बाद हिन्दी विषय छूट जाने का मलाल जाता रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंगुरु जी ने पात्र-परिचय करवाया और फिर छोड़ दिया पाठकों को कल्पना करने के लिए...कुछ अदाएं आप पर भी भारी पड़ने लगी हैं...धीरज तो आप भी रखियेगा...:)
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