अनुशयाना के भानुदत्त के तृतीय प्रभेद को लेकर राकेश गुप्त जी ने कितना मार्मिक काव्य वर्णन किया है ,आप भी देखें -
लता कुञ्ज से पड़ा कान में
मृदु वंशी -रव जब श्यामा के,
विकल अधीर हुए तन मन सब
पिया- मिलन को तब कामा के ;
दारुण दृष्टि ननद की उलझी
बेडी बन पग में भामा के ;
पीती रही विवश हो ,बाहर
गिर न सके आंसू श्यामा के
पुनश्च:यह श्रृंखला अभी समाप्त नहीं हुई है- अभी चंद नायिका उपभेद रह गए हैं ! तत्पश्चात पंचो की राय पर नायक भेद भी चर्चा में आएगा ही और तब जाकर उपसंहार के बाद यह श्रृखला समाप्त होगी ! लिहाजा धैर्य बनाये रखेगें !
आशना हो तो आशना समझे
जवाब देंहटाएंहो जो नाआशना तो क्या समझे?
अरविंद भैया- बहुत बढिया जानकारी दे रहे हैं नायिका के वि्षय मे, जब नायिका भेद सम्पुर्ण हो जाएगा तो मैं इन नायिकाओं के विषय मे दो चार लाईन लिखना चाहुंगा, बहुत बढिया विषय है। आभार
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति और राकेश जी की पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइति प्रथमोsध्याय:।
जवाब देंहटाएंशंख ध्वनि।
अनुशयाना शब्द की व्युत्पत्ति भी बता दीजिए।
ई गुप्ता जी बड़े रसिया रहे होंगे। अहो गुप्त लोगों की गुप्त बातें !
पीती रही विवश हो ,बाहर
जवाब देंहटाएंगिर न सके आंसू श्यामा के
श्यामा का बन जाना अनुशयाना भी खूब है ...!!
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
Hamara Dhairya kaayam hai.
जवाब देंहटाएंमिश्र जी की जय हो!
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों तक अनुपस्थित क्या रहा...ये भेद कितने आगे चले गये। अभी एक-एक करके पढ़ा है।
राकेश जी की उद्धृत कविताओं ने मन मोह लिया है। कुछ जानकारी दें तो कृपा हो कि क्या ये कवितायें पुस्तक की शक्ल में उपलब्ध हैं? यदि हैं तो प्रकाशन आदि का जो पता चल जाये तो असीम कृपा होगी इस अकंचन पर।
अनुशयाना का वर्णन मैंने पहली बार देखा. अच्छा लगा. यह जानकर भी खुशी हुयी कि आप नायक-भेद पर भी लिखने वाले हैं. तो प्रतीक्षा रहेगी. और आप भी तैयार रहियेगा क्योंकि उस पर बड़ी तीखी टिप्पणियाँ मिलने वाली हैं हमारी ओर से.
जवाब देंहटाएंपुनश्च, किसी ने अनुशयाना की व्युत्पत्ति पूछी है तो मूलशब्द "अनुशयान" की व्युत्पत्ति है = अनु+शी+शानच् , खेद प्रकट करता हुआ, इसका स्त्रीलिंग शब्द है= अनुशयाना, जो कि एक नायिका-भेद है. वह नायिका, जो कि अपने प्रेमी से न मिल पाने के ख्याल से खिन्न रहती है.
वाह भाई ..
जवाब देंहटाएं'' बहुत कठिन है डगर पनघट की ..''
उस पर भी ..
'' ननदी मुरहिया मुस्की मारे .. ''
फिर भी कुशलता ..
'' पीती रही विवश हो ,बाहर
गिर न सके आंसू श्यामा के ''
.........गुप्ता जी तौ बड़े ताडू साबित भये ..
आभार ,,,,,,,,,,
bahut hi badhiya dhang se prastut kiya hai.
जवाब देंहटाएंइस भेद का भी अपना सौन्दर्य है।
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya dhang se prastut kiya hai.
जवाब देंहटाएंgyaanwardhan huaa
जवाब देंहटाएंdhanywaad
एक और नायिका जो दुखी है. क्या अधिकांश नायिकाओं के प्रारब्ध में दुख ही हैं????
जवाब देंहटाएंaap ne kabhi khud...naayikaa hoker dekhaa hai...
जवाब देंहटाएंnaayikaa honaa kabhi khud bhi mahsoos kiyaa hai...
mere blog pe ek baar aayein...