आखिर बनारस सुपर फास्ट ट्रेन छूट गयी ...और हम खड़े खड़े ,प्लेटफार्म पर जड़े जड़े गुजर गयी ट्रेन का हिसाब जोड़ते रहे ! मुझे जो समय ट्रेन के छूटने का मालूम था ,वह था ११.४० और ट्रेन ठीक दो घंटे पहले बिलकुल सुई की नोक के ९.४० पर पहुँचते ही छूट चुकी थी ! आखिर यह गफलत हुई कैसे ? बहुत सी स्थितियां जिम्मेदार रहीं इसकी ! बल्कि सारी परिस्थितियाँ ट्रेन के छूट जाने की ही ओर अग्रसर होती रहीं और मैं उनसे बेखबर सम्मलेन और अन्य बातों की ओर बकलोल सा ध्यान केन्द्रित किये रहा ! एक वार्षिक त्रासदी या जश्न के रूप में रेल विभाग द्वारा इस बिना पर कि ट्रेन के समय बदले जा रहे हैं सम्बन्धित स्टेशन से ट्रेन का प्रस्थान का समय टिकट पर न लिखा होना ,मेरे द्वारा स्वयं ट्रेन का प्रस्थान का समय फिर से चैक न किया जाना ,औरों के इन्फार्मेशन पर ही निर्भर रह जाना-ये सब घातक कारण एकजुट हो लिए थे ! (
नसीहत -३,खासकर नवम्बर माह में यात्रा से जुडी ट्रेनों का निर्धारित स्टेशन पर आगमन और प्रस्थान यात्रा आरंभ के ठीक पहले खुद अवश्य चैक कर लें ! जाकिर ने तो नेट से अपनी ट्रेंन पुष्पक के टाईम टेबल का पूरा चार्ट ही प्रिंट आउट कर रखा था ) .पता नहीं अभी भी टाईम टेबल छपा कर आया या नहीं ! शायद ज्ञानदत्त जी प्रामाणिक जानकारी दे सकें !
मेरी वापसी की यात्रा तो उसी दिन ही शंकाओं के घेरे में आ गयी थी जब लोकमान्य तिलक टर्मिनस -वाराणसी एक्सप्रेस २१६५ में आरक्षण के समय ही यानि २० अक्टोबर ०९ को २ ऐ सी में वेटिंग १ की असहज स्थिति उत्पन्न हुए थी . लोग बार बार आश्वस्त करते रहे कि अरे एक ही तो वेटिंग है , शर्तिया कन्फर्म हो जायेगा -मगर मुझे पहले का एक और दृष्टांत याद आ जाता रहा जब शिमला यात्रा के समय ऐसी ही स्थति में ज्ञानदत्त जी के आश्वासन के बावजूद भी यात्रा के एक दिन पहले ही मैंने टिकट निरस्त करा कर दूसरी कम महत्वपूर्ण ट्रेन में आरक्षण करा लिया था ! मगर इस बार कई व्यस्तताओं और अन्य किसी ट्रेन के उपलब्ध न होने के कारण (
हाय रे मुम्बई- बनारस रूट !) मैं हाथ ही मलता रह गया और वापसी का दिन भी अ पहुंचा ! जब यात्रा का केवल एक दिन ही रह गया तो मेरा धैर्य जवाब देने लगा -उधर कांफ्रेंस अपने उरूज पर थी और इधर मेरा मन आरक्षण की अनिश्चिता से उद्विग्न था !
उधर जाकिर को भी लौटने का आरक्षण पुष्पक में, ऐ सी में नहीं मिल सका था मगर उन्होंने न जाने कहाँ कहाँ से फोन वोन कर स्लीपर में एक बर्थ का जुगाड़ कर ही लिया ! और मुझे आमंत्रित किया कि अगर आपका टिकट कन्फर्म नहीं होता तो आप भी एक ई टिकट लेकर मेरे साथ ही लखनऊ चले और वहां से वाराणसी चले जाईयेगा ! कोई विकल्प भी नहीं सूझ रहा था ,मेरा ऐ सी टू का वेटिंग
१ अभी भी बरकरार था ,मानो मेरा मुंह चिढा रहा हो ! हजार किलोमीटर से भी दूर का सफर बिना आरक्षण कैसे संभव होगा ,सोच सोच कर दिल बैठा जा रहा था ! ज़ाकिर के सुझाव में दम दिखा और मैंने उनके ट्रेन यात्रा ज्ञान पर मुग्ध होते हुए बगल के साईबर कैफे से स्लीपर का का एक ई टिकट हथिया ही तो लिया ! वेटिंग १९७ ! जाकिर बोले फिकर नाट मेरे ही बर्थ पर डबलिया लीजियेगा ! टिकट तो रहेगा ही ! बहरहाल ,ई टिकट लेने के बाद कुछ राहत तो हुई ! मगर सबसे बड़ी राहत तब मिली जब अगले ही घंटे मोबाईल से सूचना मिल गयी कि पहले का वेटिंग लिस्ट आखिरकार कन्फर्म हो गया और १७ अंम्बर सीट भी अलाट हो गयी ! हो सकता है यह मेरे मित्र और कभी रेलवे विजिलेंस में रहे देवमणि को sos भेजने का असर रहा हो !
अब मन फिर एक बार गंगा यमुना तीर हो गया था ! स्थानीय चीजों में सहसा ही फिर से एक नवीन रूचि उत्पन्न हो गयी थी -वगैरा वगैरा ! अरे हाँ याद आया वह ई टिकट तो वापस कर देना था अब कुछ पैसे ही जु(ग )ड़ जायेगें ! ! हाँ हाँ क्यों नहीं जाकिर ने भी हामी भरी ! शातिर साईबर कैफे वाले ने चुपचाप टिकट लिया ,की बोर्ड पर कुछ टिपियाया और कहा इसे जरा पढ़िए तो !वहां प्रदर्शित सूचना में साफ़ साफ लिखा था कि चूंकि अब चार्ट तैयार हो गया है अतः रिफंड नहीं हो सकता ! जाकिर उग्र हुए ,मैंने रोका और कहा कि जाकिर यह ऐसा ही है -अब कुछ नहीं हो सकता ! ४३० रूपये डूब चुके थे! साईबर कैफे वाले को सब पता था ,उसने चीट किया था !(
नसीहत-४ ,ई टिकट को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरतें और चार्ट तैयार होने के काफी समय पहले ही अगर ऐसी स्थिति आये तो निरस्त करा लें !नहीं तो जैसे मेरे डूबे आपके भी डूबेंगें-रेल विभाग इन्ही हराम की कमायियों से धन्ना सेठ बना बैठा है ! )
बहरहाल यह तो एक दिन पहले का चूना लगने का वृत्तांत रहा ! हाय कन्फर्म ऐ सी आरक्षण होने और वहीं स्टेशन तक समय से पहुँच जाने के बावजूद भी मेरी ट्रेन आखिर छूट गयी ! अब क्या किया जाय !अगले तीस मिनट में पुष्पक यानि जाकिर की ट्रेन भी आने वाली थी और अब बस वही डूबने वाले का एकमात्र तिनका सहारा थी -मगर टिकट ? हम स्ट्राली वाली खींचते खांचते स्टेशन के बाहर भागे -एक लाईन में मैं जा चुकी ट्रेन का टिकट रद्द कराने और दूसरी में ज़ाकिर मनमाड से चारबाग लखनऊ का चालू टिकट लेने लग ही तो लिए ! मुझे विंडो बाबू ने कुल ७२८ रूपये काट के थमाए रूपये ७२७ और मैंने यंत्रवत नए टिकट के लिए उसी में से ज़ाकिर को थमाए ३३४ रूपये ! अभी भी ओवर ब्रिजों को क्रास कर आने से सांसे धौकनी की तरह चल ही रही थीं और फिर पुष्पक भी न छूट जाये इसलिए हमने फिर एक दौड़ लगाई और गिरते पड़ते आखिर ट्रेन के आगमन तक प्लेटफार्म पर जा ही पहुंचे ! इस बार कोई चूक नहीं होनी थी -अभी अभी तो दूध के जले थे हम !
धडधडाती हुई पुष्पक आ गयी और हम बकौल शशि थरूर के कैटिल क्लास में लद लिए ! मरता क्या न करता ......
जारी .......