इन दिनों एक दुर्लभ किस्म की आजादी का लाभ उठा रहा हूँ....जो शादीशुदा लोगों के लिए वरदान है मगर प्रत्यक्ष नहीं छुपा हुआ वरदान ...पत्नी मायके गयी हुयी हैं ....पिछली पोस्ट पर इस आजादी की उद्घोषणा कर चुका हूँ ...तब से बनारसी गंगा का लाखो टन पानी राजघाट से आगे निकल गया है ...और अब आजादी का समापन भी नज़दीक आन पहुंचा है ....आम दुनियावी शिष्टाचार में गृहिणी के घर से लम्बे समय तक बाहर रहने पर लोग बाग़ सबसे पहले यही पूछ लेते हैं कि भई खाना पानी कैसे हो रहा है ..जैसे हम कोई ढोर गंवार हैं जिसे सानी पानी चोकर भूसा कोई और देगा तभी जिन्दा रहेंगे -हम खूंटे में बंधे कोई जनावर तो हैं नहीं .....यह बात भी आपत्तिजनक है कि लोग अर्धांगिनी को केवल खाना बनाने की अपरिहार्यता के रूप में देखते हैं -बस जैसे पत्नी का केवल यही एक काम हो ..भारतीय सोच समाज बदलने से रहा ....
मुझे पता है कि कुछ मित्र मन में सोच रहे होंगे कि मैं फिर वही पकाऊ विषय लेकर बैठ गया ...भैया अगर भोगा हुआ यथार्थ ही असली साहित्य का स्रोत है तो मुझे साहित्यिक सेवा से काहें रोक रहे हैं ..? इन दिनों अपने खालिस अनुभवों को आपसे साझा कर मुझे कुछ तो साहित्यिक अवदान का पुण्य लेने दें :) अब बात लम्बी न खींच कर इसी विषय पर फेसबुक परिचर्चा का उल्लेख कर दूं जिसे मैंने मित्रों के बीच आयोजित किया था और ढेरो छुट्टा विचार प्राप्त हुए थे....विषय था - "पत्नी का मायके में रहना पति के लिए छुपा हुआ वरदान है"... गिरिजेश भोजपुरिया ने विषय देखते ही एक लिंक पकड़ा दिया और परिचर्चा से फारिग हो लिए ....ढेर सारे मित्रों ने बड़े उर्वर विचार रखे ....मजे की बात यह कि जिन्होंने सबसे गूढ़ और विस्तृत विचार रखे वे खुद शादी शुदा नहीं हैं -मैंने पूछा प्रभु बिना सेब का स्वाद चखे इतना विषद और सुदीर्घ अनुभव आपको कैसे हुआ तो उन्होंने बड़े फिलासिफियाना अंदाज में जवाबा दिया कि अंतर्बोध और अंतर्ज्ञान भी कुछ चीज होती है ...मुझे अंतर्बोध पर व्याख्यान नहीं सुनना था इसलिए उनके द्वारा उछाले गए इस विषय को हठात परे धकेलते हुए मूल परिचर्चा के विषय पर ही लोगों को फोकस करने की गुजारिश की ....आप भी कुछ अनमोल विचार ग्रहण करें ...सबसे पहले तो उन्ही मित्र महानुभाव के विचार जो अभी तक कुंवारे हैं -गदह पचीसी के आस पास हैं ..आप इनके विचार पढ़कर भारत की युवा शक्ति से वाकिफ हो सकते हैं. नाम है ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ..कृतित्व की बानगी यहाँ मिल ही जायेगी व्यक्तित्व से उनके फेसबुक प्रोफाईल पर जाकर परिचय प्राप्त कर सकते हैं -
"वैसे ये बात कभी पति पत्नी के सामने स्वीकार नहीं कर सकता की पत्नी का घर जाना वरदान है अतः इसे छुपा हुआ कहना ही सही होगा ........ अब ये वरदान है, इस की पुष्टि के लिए पति को मिलने वाली निम्नलिखित स्वतंत्रता उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत है...........
१. पत्नी घर पर हो तो पड़ोस की भाभी जी से हंस कर बात करना, दफ़ा ३०७ के तहत आता है........ न हो तो अच्छा है.२. घर पर रोजाना उपयोग के समान ढूढ़ने नहीं पड़ते या इसके लिए पत्नी को चिल्ला कर आवाज़ नही लगानी पड़ती, ये सारे समान (कंघा, बनियान, तौलिया आदि) बिस्तर पर उपलब्ध होते है....... या सामने मेज या कुर्सी पर उपलब्ध होते है.
३. किसी भी मित्र (म./पु.)को घर पर बुलाने की स्वतंत्रता....... अगर सुरा की इच्छा हो तो घर पर ही माहौल बन सकता है.
४.खाना बनाने मे थोड़ी दिक्कत होती है, पर इसी बहाने सही पड़ोस वाली भाभी जी हाल चाल ज़रूर पूंछ लेती है. और उनसे जान पहचान बढ़ाने का मौका मिल जाता है. और उनकी सहानभूति भी मिलती है. अब बात होगी तो आगे भी बढ़ेगी.
५. वैसे कुछ दिनों बाद पत्नी की याद भी आती है, खास करके जब कपड़ों का हुजूम इकठ्ठा हो जाता है........ पर लगता है की कुछ और दिन मज़े ले लिए जाए पता नही ये दिन कब आए, .......... और ये तो सोने पर सुहागा हो जाए अगर वो देर से आए......... एक तो एंज़ोय करने कुछ और दिन.. उसपर उसको घुड़की पिलाने का मौका मिल जाए."
किस नतीजे पर पहुंचे आप? मतलब ज्ञानेंद्र जी के अंतर्बोध के मामले में? ...अपने पुराने संगी राज भाटिया जी भी विषयाकर्षण से बंच नहीं पाए ,देखिये कैसे दुखती रंग पर उंगली धरते भये ....
" पत्नी मायके गई हे तभी वरदान है जब घर के काम काज के लिये अपनी छोटी बहिन को छोड गई हों ....:) वर्ना तो आफ़त है ... और मेरे जैसे के लिये तो बिना पत्नी के रहना नामुमकिन है ... क्योकि मुझे अपने किसी भी समान का कुछ पता नही.... " ...
मित्र अजय त्यागी ने तो एक कविता ही ठोक दी ....
पत्नी गयीं मायके
ओये मौजा ही मौजा
भाई मौजा ही मौजा
ऍमये ओम्मे करिए
भाई मौजा ही मौजा
पड़ोसन आये रोटी लाये
संग बैठकर वो बतलाये
भाई मौजा ही मौजा
दिन बीता और रात हो आये
घुटना मोड़ पेट में सोये ...
बीवी जब वापस आये
सास की भेजी मिठायी लाये
भाई मौजा ही मौजा
आप भी इस परिचर्चा में भाग लेना चाहेंगे? :)
ज़िन्दगी कुछ ही दिनों में ढर्रे पर आ जाती है चाहे अकेले रहना हो या दुकेले
जवाब देंहटाएंदोनों भाग पढ़ा।
जवाब देंहटाएंजो नहीं लिखा है वह भी पढ़ा। और यह शे’र गुनगुनाया
आंधी की आशंका, पत्थर का डर है
बालू की नींव और शीशे का घर है
उपवन को थोड़ी बारीकी से देखो तो
हरियाली के भीतर बैठा पतझर है ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहे हे ! ऊपर गलत स्माइली चिपक गई थी, इसलिए कमेन्ट मिटाना पड़ा. इस पोस्ट पर मेरी प्रतिक्रिया :P
जवाब देंहटाएंपंडित जी! चार दिन की चांदनी है फिर तो चाँद पर चांदनी बरसेगी!!
जवाब देंहटाएंपरिचर्चा में आनंद ही आनद है..!!
शुभकामनायें आपको भाई जी :-))
जवाब देंहटाएंmain bhi kaafi samaye ke liye ja rahi hoon mayke ... :)
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंहुंअ ........
तो मौज मस्ती चालू है अभी ...
लूट लीजिए दो दिन आप भी
फिर वही मैदान वही घोड़े हैं
~*~नव संवत्सर की बधाइयां !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
एक तरह से तो हम यही कह सकते हैं कि आप पत्नी-वियोग से पीड़ित हैं.चाहे फेसबुक हो या ब्लॉगर हो,आप उन्हीं को लेकर चर्चा में व्यस्त हैं.यह उनकी याद ही है जो फेसबुक में पकवान और ब्लॉगिंग में चर्चा-परिचर्चा आयोजित हो रही है.
जवाब देंहटाएंरही बात पत्नी के मायके जाने की,तो वह क्षणिक आनंद की अनुभूति होती है !
जय हो आप की!
जवाब देंहटाएंपत्नी के मायके जाने से आजादी मिलती है. अर्थात पत्नी कैद का सृजन करती है?
एक रोचक परिचर्चा ..अंतर्बोध का खिलंदरा सम्प्रेषण..
जवाब देंहटाएंकभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ,
जवाब देंहटाएंपता नहीं यह परिचर्चा किनके लिए है...
(1)
वे जिनके एक पत्नी और पड़ोस में आत्मीयता भरी संभावनायें हैं !
(2)
वे जिनकी पत्नी भाटिया जी जैसा वैकल्पिक सालीय प्रावधान करके जायें !
(3)
वे जो पत्नी के रहते,बाहर मुंह मारते फिरते हैं और अब घर में मुंह मारने की संभावनायें प्रबल हैं !
(4)
वे जिन्होंने एक और पत्नी किसी और घर में भी रखी हुई हैं !
(5)
वे जिन्हें अपनी बुढौती पे आख़िरी चांस लेने का अवसर दिखाई दे ,मतलब दिया बुझने से पहले के अवसर !
(6)
वे जो पत्नी से प्रतिदिन पिटते पिटते थक चुके हों और जिन्हें कुछ क्षण दैहिक आराम चाहिए !
(7)
वे जो पड़ोसी पति की पत्नी के मायके जाने वाले दिनों का बदला पड़ोसी से चुकाना चाहते हों !
पर वे क्या करें जिनके एकाधिक पत्नियां हों :)
और वे...
जिनकी पत्निया स्वयं ही मायके वाले , पड़ोस / स्कूल / कालेज के दिनों वाली आत्मीयताओं को पुनः जीना चाहती हों :)
फिलहाल मुक्ति जी की टिप्पणी से सहमति :)
@काजल कुमार:...हम्म ...
जवाब देंहटाएं@मनोज कुमार :अच्छा लगा आपने सतरों के बीच के अलिखे को भी पढ़ा :)
@मुक्ति: यह कैसी प्रतिक्रिया ...किसी का प्रतिनिधित्व ?
@सलिल बाबू : इधर अभी चान्द का चानस नहीं रे बाबू ..फोटो देख इत्तिला कर लो न !
@सतीश जी ,इन दिनों बस शुभकामनायें देते फिर रहो मित्रवर? काहें ? सब कुशल मंगल तो है ?
@क्षितिजा,
जवाब देंहटाएंहे, फिर कहाँ अभी अभी तो आये हो :)
@राजेन्द्र जी ,
घोड़े बोले तो हुसेन के घोड़े याद आये .. :)
@परम संतोष जी ,पति वियोग भी होता है क्या कुछ ?
@दिनेश जी ,हाँ कोई शक ?
@राहुल जी ,बड़ी गूढ़ बात कह दी है :)
@अली भाई .
कभी तो इतना विश्लेषणात्मक न हुआ करिए :)
दुखता है ...और मुक्ति की टिप्पणी ?
गृहिणी के घर से लम्बे समय तक बाहर रहने पर लोग बाग़ सबसे पहले यही पूछ लेते हैं कि भई खाना पानी कैसे हो रहा है
जवाब देंहटाएंये सवाल तो नमस्कारी-नमस्कारा टाइप सवाल हैं! ऐसे जैसे सचिन से पूछा जाये कि आप सन्यास कब ले रहे हैं। :)
हाय ...बड़े दुखी रहते हैं सब पत्नी के साथ रहने से..... पर ये ख़ुशी लम्बी तो नहीं टिक सकती.....
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट में पड़ोसन पर कुछ ज्यादा ही ध्यान केन्द्रित है .
जवाब देंहटाएंयह न भूलें की पडोसी की पत्नी भी मायके जा सकती है :)
वैसे अली जी ने सारे पतियों की पोल खोल कर रख दी .
हालाँकि P का मतलब ??
short remissions enhance the love , long absence kills it .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंवियोग की सात्विक आंच ही संयोग का श्रृंगार करती है .बीती न बिताई रैना ,बिरहा की जाई रैना ,जागी हुई अंखियों को रास न आई रैना ...
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 21 मार्च 2012
गेस्ट आइटम : छंदोबद्ध रचना :दिल्ली के दंगल में अब तो कुश्ती अंतिम होनी है .
हमारी श्रीमती जी बहुधा बच्चों को छोड़कर जाती हैं, हमारा कार्य बहुत बढ़ जाता है तब।
जवाब देंहटाएंवाकई मौजा ही मौजा... :-)
जवाब देंहटाएंकल 18/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंik muskurahat tair gyee:)
मुझे तो लगता है सब चार दिन की चाँदनी और फिर अंधेरी रात जैसी बातें हैं।
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