बहुत दिन बीते चिट्ठाकार चर्चा में किसी सुधी चिट्ठाकार की चर्चा नहीं हो पाई ..एक नीरवता सी छाई रही है यहाँ...यह नीरवता अकारण नहीं है ...एक तो शायद वह शुरुआती उमंग रोमांच नहीं रहा ब्लागिंग का -अर्थशास्त्र के ला आफ डिमनिशिंग रिटर्न की भांति इस विधा की अब वह शुरुआती चाहना नहीं रही और कुछ इस टैब्बू से मैं आशंकित रहा जिसमें एक मोहतरमा बलागर ने सरे आम मुझे यह कह डाला था कि मैं जिसे भी चिट्ठाकार चर्चा में शामिल करता हूँ उससे मेरे सम्बन्ध ख़राब हो जाते हैं -मुझे भी हैरत हुयी जब मैंने सिंहावलोकन में आंशिक रूप से इस बात को सच पाया . मैं इतना ही कहूँगा कि मानव जीवन ,भावनाएं और व्यवहार बहुआयामी और बहुत जटिल हैं ...अब किसी की प्रोफाईल को सम्मिलित करने का मतलब यह भी नहीं कि उसके साथ मेरा कोई सप्तपदी का अनुबंध हो गया और मैं आजीवन उससे बड़ा ही उदारतापूर्ण, सहिष्णु सम्बन्ध बनाए ही रखूँ ...और सारी बात का ठीकरा मेरे ही सर पर फोड़ दिया जाय यह भी कहाँ का न्याय है ....दूजे यह बात भी है कि कुछ ऐसे भी मित्रगण रहे हैं जिनसे मेरे टाप के और गहन सम्बन्ध रहे मगर उन्हें मैं अन्यान्य कारणों से अपने इस प्रिय स्तम्भ में नहीं ले पाया हूँ -कुछ तो ब्लागजगत को भी छोड़ चुके हैं और इस धरा पर कहाँ हैं अब यह भी नहीं मालूम -गुमनामी की अंधियारे में खो गए ..और मुझे बच्चन जी की यह सीख याद कराते रहते हैं,जो बीत गयी से बात गयी ...और नीड़ का निर्माण फिर फिर .....ओह प्रस्तावना इत्ती लम्बी क्यों हो रही है ..लाजिमी है इतना दिन का अंतराल रहा है जो ...मगर आज उस अंतराल की पूरी भरपाई करने ब्लागजगत की एक खालिस कवयित्री आयी हैं ....अमृता तन्मय....
मगर किंचित संकोच भी है कि चिट्ठाचर्चा में इस चिट्ठा -कवयित्री को शामिल करने की सहमति/अनुमति उनसे नहीं ले पाया ....क्योकि उनसे संपर्क का कोई सूत्र नहीं मिला ..उनका ब्लॉगर परिचय पृष्ठ केवल उनका नाम बताता है और वह भी शायद उनका काव्य नाम है ,वास्तविक नहीं ..फिर उनका जेंडर फीमेल बताता है और लोकेशन पटना, इण्डिया बताता है ...आशा है ये विवरण सही हैं ...उन्हें चिट्ठाकार चर्चा में लेने का एक गूढार्थ भी है -अब चूंकि उनसे कोई खतो किताबत,चर्चा परिचर्चा नहीं है इसलिए सम्बन्ध खराब होने की संभावना भी नहीं है ...और यह भी कि इस तरह मेरे इस स्तम्भ से जुडा टैब्बू ख़त्म हो जाय सो इस कवयित्री का यहाँ शामिल होना एक शुभकारी टोटका -अनुष्ठान भी है ....
मेरी हे कवयित्री कविता आपने पढी होगी ..उससे दीगर अगर कुछ कवयित्रियाँ यहाँ है तो उनमें एक अमृता तन्मय भी है ...इनकी कविताओं में मैंने श्रृंगार वियोग से अलग का फ्लेवर पाया है और वह इनके काव्यकर्म को एक पृथक पहचान देता है -आध्यात्मिक भाव का संस्पर्श ...और प्रकृति के कई बिम्बों को लेकर भावाभिव्यक्ति! उनकी यह ताजी कविता, बस कोई पढ़ते ही मन में सहसा ही कौंधा कि क्यों न मैं इस काव्य कर्म प्रवीण कवयित्री का सादर आह्वान यहाँ अपने इस लम्बे समय से नीरवता ओढ़े स्तम्भ में करूं.. आलोच्य कविता में एक बहुव्यापी रिक्तता की ओर कविमन संकेत करता है -मतलब कहीं न कहीं कोई, कुछ सूक्ष्म सी अपूर्णता है जो सम्पूर्णता के, समुच्चय के सुख की चरमता को हठात रोके हुए हैं ..अगर वह सूक्ष्म अपूर्णता पूरी हो जाय तो बस बात ही बन जाय ..यह एक अकेली कविता ही कवयित्री के काव्य कर्म को एक समादृत स्थान दिलाने में समर्थ है -इसमें भाव प्रवणता तो है ही मगर शिल्प और साहत्यिक बोध के आधार पर भी यह एक अद्भुत और लम्बे समय तक याद रखी जाने वाली कविता है .....
मेरे पूर्व के चिट्ठाकार चर्चा में व्यक्तित्व निरूपण को एक अनिवार्य घटक के रूप में लिया जाता रहा है ..मैंने स्वीकार किया है कि चिट्ठाकार चर्चा की अभ्यर्थता में मात्र कृतित्व ही नहीं व्यक्तित्व का समावेश मेरे लिए अपरिहार्य रहा है ...मगर आज की चिट्ठाकार चर्चा इस अर्थ में भी अपवाद है ..मुझे कवयित्री के व्यक्तित्व का कुछ अता पता नहीं ...मात्र किसी के रचना कर्म से उसके व्यक्तित्व का निरूपण एक जोखिम भरा काम है और ऐसा कोई जोखिम उठाने का कोई मतलब भी नहीं ...एक आशंका भी रहती है कि महान कवि कवयित्रियों में कृतित्व और व्यक्तित्व का साम्य प्रायः नहीं पाया गया है ....और ऐसी कोई प्रत्याशा भी शायद अनौचित्यपूर्ण है ....वो देशी कहावत है न -आम खाने से मतलब होना चाहिए आम के पेड़ से नहीं!
अमृता तन्मय को मैंने चिट्ठा कवि लिखा है -मतलब वे ब्लागजगत में और शायद अन्यत्र भी किसी अन्य विधा में योगदान नहीं कर रहीं ,यहाँ तक कि अपने काव्य चिट्ठे पर आयी टिप्पणियों का जवाब भी नहीं देती..महज कवितायें ही लिखती हैं.. यही उनका मुख्य व्यसन /टशन है . और हाँ वे क्वचिदन्यतोपि की नियमित पाठिका हैं ..और इसलिए भी मेरी कृतज्ञता आखिर उनके प्रति क्यों न हो ....
अन्य ब्लागों पर भी अमृता की सार्थक अभिव्यक्तिपूर्ण टिप्पणियाँ देखने को मिलती रहती हैं ...वे एक सजग पाठिका भी हैं ..केवल आत्मकेंद्रित, आत्म मुग्धा ब्लॉगर ही नहीं ....मैं उन्हें उदीयमान कवयित्री कहने से हिचक रहा हूँ क्योकि मेरी दृष्टि में वे काव्य कर्म के उस मुकाम पर पहुँच गयी हैं जहां किसी को महज उदीयमान कहना उचित नहीं .....वे लम्बे समय से ब्लागजगत में अविकल साहित्य सेवा कर रही हैं और आपमें से अधिकाँश उनके काव्य लालित्य से परिचित भी होंगे ....मैं अमृता की कई कवितायें आपको पढाना चाहता हूँ मगर उन्होंने अपने ब्लॉग पर ताला जड़ रखा है -मैं कापी पेस्ट नहीं कर पा रहा हूँ ...मगर सर्दियों में उनकी लिखी एक और कविता पढने की जोरदार सिफारिश करते हुए इस संभावनाशील कवयित्री के काव्य कर्म के आस्वादन का आह्वान करता हूँ ....
शुभकामनाएं अमृता!
तथ्य पूरक |
जवाब देंहटाएंमहाराज यह बहुत अच्छा किये कि बहुत दिनों बाद चिट्ठाकार-चर्चा की सुध आई.
जवाब देंहटाएंअमृता तन्मय का नाम सुना हुआ लगता है.कुछ जगहों पर टिप्पणियां देखी हैं उनकी.आपने उनके इकहरे रूप 'कृतित्व' से परिचित कराया है,अच्छा होता कि कुछ मानवीय पहलू भी जानने को मिलते.किसी भी कृतिकार के लिए ज़रूरी है कि जो कुछ वह रचता है,उसके आस-पास तो होना भी चाहिए.व्यक्तिगत जीवन-धर्म और रचना-धर्म दोनों एक दूसरे से बिलकुल अलग नहीं होने चाहिए.हम यही समझ लेते हैं कि जिस तरह की संवेदना,सन्देश उनकी कविताओं से निसृत होते हैं,निश्चय ही वे एक कल्पनाशील और संवेदनशील कवयित्री हैं.
आपकी सिफारिश पर 'सर्द रातें' पढ़ी और वाकई सुखद अनुभूति हुई !
अमृता जी के लिए शुभकामनाएँ कि वह अपने रचना-अमृत से इस ब्लॉग-जगत को सिंचित करती रहें !
मै भी अमृता तन्मय जी के ब्लोग की नियमित पाठिका हूँ और आपने उनका बहुत कुशलता से परिचय दिया ………वो मुझे भी यही लगता है अध्यात्मिक दृष्टि से उस शिखर को छू चुकी हैं जो मानव का प्रथम और अन्तिम लक्ष्य होता है।
जवाब देंहटाएंअमृता जी जैसी कल्पनाशील और संवेदनशील कवयित्री के बारे में जानकर अच्छा लगा। आभार।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं!!
जवाब देंहटाएंऐसी कवितायें विरल होती जा रही हैं!!
्अमृताजी को नियमित पढ़ने का यत्न करता हूँ, कवितायें सदा ही स्तरीय रहती हैं।
जवाब देंहटाएंअमृता तन्मय जी को पढते रहे हैं.बहुत खूबसूरत लिखती हैं.
जवाब देंहटाएंमैं भी अमृता जी का नियमित पाठक हूँ लेकिन हाय! जिस कविता का आपने लिंक दिया है वही छूट गई लगती है। ब्लॉग जगत में लेखक और पाठक के रूप में सक्रिय रहने वाली श्रेष्ठ कवयित्री की चर्चा की है आपने।
जवाब देंहटाएंअमृता जी के बारे मैं जान कर बहुत अच्छा लगा ... उम्का ब्लॉग फोल्लो कर लिया है .. :)
जवाब देंहटाएंदिल से खूबसूरत व्यक्तित्व का बड़ी खूबसूरती से परिचय कराया है आपने. आभार.
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा!!
जवाब देंहटाएंअमृता जी व्यक्तित्व और रचनात्मकता के बारे में जानकर आनन्द हुआ!! शुभकामनाएँ!!
I'd love to read her :)
जवाब देंहटाएंstraight going to her weblog !!
खूबसूरत चिट्ठाकार चर्चा!
जवाब देंहटाएंआपका आभार अमृता जी को हमारे समक्ष रखने का . आपके माध्यम से हम उनके ब्लॉग पर गए और उनकी रचनाएँ पढ़ आत्मविभोर हुए . 'बस कोई' में पोस्ट लिंक की जगह आपके ब्लॉग का लिंक लग गया है .
जवाब देंहटाएंअमृताजी की रचनाएँ प्रभावित करती हैं..... उनके ब्लॉग पर अक्सर जाना होता है .....अच्छी रही चिट्ठाकार चर्चा
जवाब देंहटाएं@आभार मिथिलेश जी ,त्रुटि सुधार कर लिया गया है!
जवाब देंहटाएंबस कोई ....अमृता तन्मय .
जवाब देंहटाएंसत्यश :
जो जैसा है ,
समर्पित है ,
स्वयं सत्य को ,
बस
कोई
प्रमाण देने वाला चाहिए .
सुना है रोशनी तो पलक पर ही विराजती है ,
बस कोई ,दक्ष दस्तक देने वाला ,चाहिए .
गिरी पर गर्भिणी गंगोत्री में ,दिखती नहीं गंगा ,
बस कोई सूक्ष्म नयन ,देखने वाला चाहिए ,
कुछ बूंदे, जैसे तैसे, हाथ तो लगीं हैं ,बस कोई सागर का पक्का पता बताने वाला, चाहिए .
कहतें हैं काव्य में मधुरता और मादकता होती है ,बस कोई संज्ञा सिद्ध करने वाला चाहिए .
अभी भी बस एक ज़रा सी कड़ी खोई -खोई सी है,
बस कोई एक आखिरी बात जोड़ने वाला चाहिए .
एक और बानगी उनके कवितांश की -
कई-कई पर्तों में वही एक घाव
उभर -उभर कर चला आता है
कई पाटों में पिस-पिस कर भी
साबूत का साबूत बच जाता है .
एक और बानगी उनके कवितांश की -
जवाब देंहटाएंमन के हस्तिनापुर में हमेशा बिछी रहती है द्युत बिसात ,
तार्किक अडचनों में उलझा अर्जुन चुप है ,हारे हुए हर दाव की ऊंची लगती बोली पर ,
और शातिर के पक्ष में घोषित ,शातिर परिणाम पर -
फिर भी इस द्वंद्व युद्ध में गांडीव उठाकर ,कर रहा है वह ,कृष्ण की प्रतीक्षा, जो कहीं मगन है अपनी ही रास लीला में .
रेंडम डबल ब्लाइंड ट्रायल सा है उनकी कविताओं का यह चयन .अब जी भर समीक्षा करें आप .
अभिनव शब्द प्रयोग और अर्थ का एक नाम है अमृता तन्मय .
जवाब देंहटाएंइत्तेफाक से आप भी वही सोच रहे थे जो हम । :)
जवाब देंहटाएंसमय मिलने पर अमृता तन्मय जी को ज़रूर पढना चाहूँगा ।
बढ़िया मिलवाया गुरुदेव आपने !!!!
जवाब देंहटाएंआज से अमृता जी को पढना शुरू कर दिया है !!!!
स्तब्ध हूँ , कृतज्ञता प्रकट करने में भी संकोच सा हो रहा है बस शब्द मेरी जो पहचान बना दे या शब्द ही पहचानी जाने लगे ख़ुशी होगी . आगे क्या कहना चाहिए ...सोच नहीं पा रही हूँ .
जवाब देंहटाएंअमृता का मैं नियमित पाठक हूँ ...वे प्रभावित करती हैं !
जवाब देंहटाएंउनकी चर्चा के लिए आपका आभार !
बहुत अच्छी चर्चा .... और बहुत सुंदर रचना को पढ़वाने के लिए आभार ... वैसे मैं उनकी नियमित पाठिका हूँ ...फिर भी कभी कभी कुछ बहुत अच्छा छुट जाता है पढ़ने से ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंअमृताजी की कवितायेँ हमेशा ही लुभाती है ,हर बार अलन रंग ..
जवाब देंहटाएंउनसे यहाँ मिलना अच्छा लगा .
veerubhaiMar 24, 2012 08:18 PM
जवाब देंहटाएंअभिनव शब्द प्रयोग और अर्थ का एक नाम है अमृता तन्मय .
आपकी चर्चा आज यहाँ भी है -
क्वचिदन्यतोSपि...
अर्थात मेरे साईंस ब्लागों से अन्य,अन्यत्र से भी ....
Saturday, 24 March 2012
चिट्ठाकार चर्चा की नीरवता को तोड़तीं अमृता तन्मय!
http://mishraarvind.blogspot.in/
जहां तक मुझे याद पड़ता है मेरे ब्लॉग पर इस युव प्रतिभा की टिपण्णी की मार्फ़त आप होमियो -पैथिक चिकित्सा में दखल रखतीं हैं .इसी लिए स्थितियों की इतनी सूक्ष्म पड़ताल उनकी रचनाओं में देखेंको मिलती है .
अमृता जी की कुछ रचनायें पढ़ी हैं. उनके संबंध में विस्तृत चर्चा का धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा ...
जवाब देंहटाएंअमृता जी कि सभी रचनाएँ बहुत तन्मयता से पढ़ी हैं ...बहुत अच्छा लिखती हैं |उनकी हर नई कविता का इंतज़ार रहता है ...!!
अमृता जी से पहली बार परिचय हुआ..अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएं.....
स्तंभ की नीरवता समाप्त हुई..शुभ संकेत हैं.
....