आज वे मायके चली गयीं हैं ..और इससे उपजे अहसास पर सोचा एक पोस्ट चेप दूं .यह भीड़ जुटाऊ श्रेणी की पोस्ट है . कभी कभार की ऐसी पोस्टों से ब्लॉगर की मौजूदगी का शिद्दती अहसास दीगर ब्लागरों में बना रहता है ...अगर यह पोस्ट ज्यादा टिप्पणियाँ नहीं जुगाड़ेगी तो महज इसलिए कि भीड़ जुटाने की बात मैंने बेबाकी से कह डाली है ..लोग आयेगें तो मगर टिप्पणियाँ करने में संकोच कर सकते हैं ..मगर मैं मुतमईन हूँ मेरे चाहने वाले जरुर आयेगें और अपने प्रेरणा पुष्पों को सदैव की भांति यहाँ बिखेर जायेगें ...स्टैट काउंटर आने वालों की संख्या भी बतायेगा ही .. मगर पहले की ही तरह कुछ लोग जलेगें भुनेगें मगर यह उनकी नियति है तो मैं क्या कर सकता हूँ ..मैं तो भीतर से सभी का शुभाकांक्षी हूँ -मगर लोग बाग़ आँखें तरेरे रहें तो मैं करूं भी क्या? बहरहाल वे आज मायके गयीं हैं .. जाने की प्रस्तावना विविध रूप रंगों से कई दिन से बना रही थीं -मैं इस बार निरुत्तर और निरपेक्ष था ..पत्नी को मायके जाने से रोकने वाला कलियुग में घोर पाप का भागी बनता है ..सुना पढ़ा है ऐसे पतियों को कुम्भीपाक नरक नसीब होता है ..और अब वानप्रस्थ का समय निकट आता जा रहा है तो मुझे भी परलोक की चिंता होने लगी है -यह तो रही बाहर की बात -एक अन्दर की बात भी है ..जरा कान करीब लाईये न..बताते हैं ....(खुसर पुसर ) ....
पत्नी के मायका गमन से एक परम शान्ति ,सकून और आजादी का अनुभव भी होता है ....यह आप लोगों में से श्रेष्ठ और गुणी पुरुषों ने अनुभव भी किया होगा ....दरअसल घर स्त्री का ही होता है ...एक गृहिणी ब्लॉगर ने इसी बात को अभी हाल में अपनी एक लम्बी कविता में समझाया भी है और मैं उनकी इस बात से पूरा इत्तेफाक भी करता हूँ -दरअसल यह भोगा यथार्थ मेरा भी है..घर पर तो गृहणी की ही चलती है -वह तानाशाह होती है ...लेडी आफ द हाउस या गृह मंत्रालय जैसे नामकरण इसकी पुष्टि भी करते हैं ..अब मैं प्राणी व्यवहार का अध्येता रहा हूँ तो किसी भी व्यवहार का उदगम ढूंढता फिरता रहता हूँ -आखिर गृह स्वामिनी इतनी कड़क क्यों होती हैं ? घर पर अपना अकेला अधिपत्य क्यों समझती हैं? घर स्त्री का होता है और घर बिल्ली का भी होता है ...आपको क्या पता है कि बिल्लियाँ जिस घर में होती हैं उनका गृह स्वामी/स्वामिनी के बजाय घर से लगाव होता है और कुत्ते घर के बजाय अपने स्वामी /स्वामिनी से गहरे जुड़े होते हैं ....आप किसी मकान को छोड़ जाएँ और वर्षों बाद लौट आयें तो आप ताज्जुब कर सकते हैं अपनी पुरानी पाली हुयी बिल्ली को वहां देखकर ..मगर कुत्ता स्वामी/स्वामिनी के साथ ही घर छोड़ जाएगा नहीं तो जान दे देगा ...
जाहिर है आज के मनुष्य में भी कतिपय इन्ही पशु प्रवृत्तियों का ही विस्तार तो हुआ है ....पत्नी घर छोड़ना नहीं चाहतीं मगर बिचारी मायके के मोह में विवश हो जाती हैं ...किन्तु जब घर पर इस तानाशाह की मौजूदगी रहती है तो पति निषेध कार्यक्रम बदस्तूर जारी रहता है - यह न करो वह न करो ..ये तौलिया यहाँ क्यों रखा ...ये सामान यहाँ क्यों छोड़ा ..ये गन्दगी यहाँ क्यों की ..डेजी (कुतिया ) की चेन यहाँ क्यों रखी?अखबार यहाँ क्यों पड़ा है? चप्पलें यहाँ क्यों निकाली? डिटाल की शीशी खुली क्यों पडी है?मतलब नाक में दम!-लगता है हे भगवान ये तो पूरी जिन्दगी ही तबाह हो गयी है ...इसलिए गृह स्वामिनी के घर छोड़ते ही परम सुख की सहज स्वयमेव तत्काल प्राप्ति हो जाती है ....अब तो सबै भूमि गोपाल की ..जहां कहीं भी मन हो निढाल हो रहिये ..जो भी जैसा भी करिए ...कोई बोलने वाला नहीं ...परम सुतंत्र न सर पर कोई ..एक दिव्यानुभूति! घर की ऐसी तैसी! वैसे भी कुत्तामना पुरुष घर को ठेंगे पर ही रखता है ..हाँ दूसरे आस पड़ोस के घरों के बारे में और गृह वासियों के बारें में उसका ख़याल तनिक जुदा सा होता है ...वह तो मुए अंतर्जाल ने पुरुषों को भी घर से चिपका रखा है अब, नहीं तो हमसे पहले की पीढी के मर्द घर पर रहते ही कहाँ थे -...
उस विरहिणी नायिका का आर्तनाद सुना है आपने? -कहवाँ बिताई सारी रतिया ,पिया रे सांच कहो मोसे बतिया ....या फिर ..तुम जाओ जाओ मोसे ना बोलो सौतन के संग रहो....भोर भये आये हो द्वारे ये दुःख कौन सहे .... अब मैं होता तो बिचारी विरहणी को ढाढस देता छोडो ऐसे कुत्ता (आ)चारी पिया को वे ऐसे ही होते हैं ..उन्हें आदिकाल से पड़ोस ही अच्छा लगता आया है ...जीनों की विरासत है जो ...अब इतनी जल्दी तो बदली नहीं जा सकेगी ..रफ्ता रफ्ता एकाध लाख साल तो लग ही जाएगा ..हाँ नारीवादी थोडा जोर लगा लें तो एकाध हजार साल कम भी हो सकता है ....अब विरहिणी घर को छोड़ नहीं सकती -उसका प्राण बसा है उसी में ...और लोग भी न जाने कैसे कैसे मुहावरे गढ़ डाले हैं -डोली और अर्थी का गहरा रिश्ता पिया के घर से जोड़ते भये हैं ...मगर मुआ मर्द वह तो चिर स्वतंत्र है ..कुत्ता है कुत्ता ..न घर का न घाट का -घाट घाट का पानी पीने के लिए भटकता रहता है ताउम्र ....तब भी उसकी प्यास नहीं बुझती ..छिः कुत्ता कहीं का .....
बहरहाल मैं परम स्वतंत्रता का अनुभव कर रहा हूँ और आज की और आगे की भी ..कुछ दिनों की इस स्वयमेव अर्जित आजादी को सेलिब्रेट करने की कार्ययोजना बना रहा हूँ -सरकारी मानुष हूँ कार्ययोजनायें बना लेता हूँ ...एक मित्र तो अभी पहुँचने वाले हैं ..हम उन्हें बुलावा भेजे हैं ..घर से निकल चुके हैं ..उन्हें भी कहीं बाहर खुली हवा में सांस लेने की दरकार है ....गुजरेगी खूब जब आज मिल बैठेगें दो यार ..कई दिल्ली के दोस्तों की भी बरबस याद आ रही है -काश वे होते यहाँ ! न न भाई ..अब इत्मीनान से मार्च के बाद आईयेगा अभी तो यह टेम्पररी मुक्ति है ...पता नहीं कब घर की मालकिन टपक पड़ें ! खतरा तो है ही! फिलहाल तो घर पर मेरा कब्ज़ा है ..परसों नरसों तक वे फिर काबिज हो जायेगीं -मगर सच कहूं तो न घर उनका न घर मेरा यह तो बस इक रैन बसेरा है ....
हंसी /मजाक हल्का फुल्का यह लेबल अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंहम तो आते-आते रुक गए। भाभी जी हैं, नहीं, चाय-पानी को कौन पूछेगा?
आ जाएं तो बता दीजिएगा। तभी आएंगे।
मनोज भाई यह खाकसार किसलिए है ...आईये आईये!
हटाएंहंसी /मजाक हल्का फुल्का यह लेबल अच्छा लगा।
हटाएंहम तो आते-आते रुक गए। भाभी जी हैं, नहीं, चाय-पानी को कौन पूछेगा?
आ जाएं तो बता दीजिएगा। तभी आएंगे।
मनोज भाई एक मर्तबा मेरी बीवी घर में नहीं थी ,मैं प्लेटें धौ रहा था हमारे एक मित्र आये वो कहने लगे क्या बात है भाभी जी घर में नहीं हैं ,हमने कहा भाई साहब भाभी जी और प्लेट के धोने क्या अंतर सम्बन्ध है .प्लेट धोना एक नित्य कर्म है .
अब वही बात आप कर रहें हैं -भाभीजी हैं नहीं चाय वे कौन पूछेगा .भाभीजी क्या चाय बनाने की मशीन हैं ?आप को चाय बनानी भी नहीं आती ?तो मनोज भाई अपने फंडे ठीक कीजिए .किसकी कम्पनी में रहतें हैं आप ?
बीवी के कहीं भी जाने से एक रिजिडिटी तो टूटती है रूटीन की लेकिन आदमी पत्ते में ही अच्छा लगता है .खुला घूमता अच्छा नहीं लगता .
मनोज भाई एक मर्तबा मेरी बीवी घर में नहीं थी ,मैं प्लेटें धौ रहा था हमारे एक मित्र आये वो कहने लगे क्या बात है भाभी जी घर में नहीं हैं ,हमने कहा भाई साहब भाभी जी और प्लेट के धोने क्या अंतर सम्बन्ध है .प्लेट धोना एक नित्य कर्म है .
हटाएंअब वही बात आप कर रहें हैं -भाभीजी हैं नहीं चाय वाय कौन पूछेगा .भाभीजी क्या चाय बनाने की मशीन हैं ?आप को चाय बनानी भी नहीं आती ?तो मनोज भाई अपने फंडे ठीक कीजिए .किसकी कम्पनी में रहतें हैं आप ?
बीवी के कहीं भी जाने से एक रिजिडिटी तो टूटती है रूटीन की लेकिन आदमी पट्टे में ही अच्छा लगता है .खुला घूमता अच्छा नहीं लगता .बेशक रिजिडिटी किल्स ए पर्सन .खर्ची देकर बीवी को इधर उधर भेजते रहिये .उम्र बढ़ जायेगी .
खर्ची देकर बीवी को इधर उधर भेजते रहिये .उम्र बढ़ जायेगी .
हटाएंये लाइन राम राम भाई का नुस्खा है या तजुर्बा ... हा हा ...
आज सेंट पेट्रिक्स डे है. खूब सेलिब्रेट करें.
जवाब देंहटाएंइस दिवस के महात्म्य पर भी तो तनिक प्रकाश डालें!
हटाएंhttp://www.bizarrocomics.com/?p=3082
हटाएंWow! Exactly the way it rs described in the given link-post we celebrated the day!:)What a coincidence!:)
हटाएंकाश हम भी होते....
जवाब देंहटाएंआभार यद् रखने के लिए भाई जी !
टैम्परेरी मुक्ति = परम स्वतंत्रता
जवाब देंहटाएंमार्च के बाद = खुदा खैर करे :)
जवाब देंहटाएं♥
मौज ?
रहने दीजिए भाईजी !
गृह स्वामिनी के घर छोड़ते ही परम सुख की सहज ही तत्काल प्राप्ति हो जाती है
सब भाभीजी द्वारा दी गई छूट का नतीज़ा है…
लेकिन कब तक ? दिल बहलाने को ग़ालिब ख़याल अच्छा है…
हां, प्रविष्टि रोचक है… इसका श्रेय अवश्य है आपको !
…और हमारा इंतज़ार न कीजिएगा अभी , हम तो भाभियों की ग़ैर मौज़ूदगी में कहीं जाते ही नहीं …
चाय-पानी के लिए मित्र/भाई ऊपरी मन से पूछलें तो भी बहुत , जबकि भाभी मनुहार सच्चे मन से करती हैं
.
जवाब देंहटाएंय्य्ये लोऽऽ…
यहां भी कमेंट ग़ायब होने की परेशानी चालू है…
जवाब देंहटाएं♥
मौज ?
रहने दीजिए भाईजी !
गृह स्वामिनी के घर छोड़ते ही परम सुख की सहज ही तत्काल प्राप्ति हो जाती है
सब भाभीजी द्वारा दी गई छूट का नतीज़ा है…
लेकिन कब तक ? दिल बहलाने को ग़ालिब ख़याल अच्छा है…
हां, प्रविष्टि रोचक है… इसका श्रेय अवश्य है आपको !
…और हमारा इंतज़ार न कीजिएगा अभी , हम तो भाभियों की ग़ैर मौज़ूदगी में कहीं जाते ही नहीं …
चाय-पानी के लिए मित्र/भाई ऊपरी मन से पूछलें तो भी बहुत , जबकि भाभी मनुहार सच्चे मन से करती हैं
@@जाहिर है भाभियों के आप ये वे आपकी प्रिय हैं ! :)
हटाएंपत्नी के मायके जाने का सुख मैंने पहली बार पिछले साल ही जाना। कुछ दिनों के लिये अपना राज वापस आ गया। मैं बिस्तर पर लैपटॉप रखकर काम कर सकता था, जितनी मर्जी देर इंटरनेट पर लगा रह सकता था, आदि-आदि।
जवाब देंहटाएंआप तो ऐसे न थे...!
हटाएंबढ़िया है....कुछ समय ऐसे भी गुजारना चाहिये :)
जवाब देंहटाएंइस दौरान बर्तनों को मांजने में भी एक किस्म की कला नज़र आती है :)
http://safedghar.blogspot.in/2010/11/blog-post_07.html
यह जीवन का एक विशेष सत्र होता है, जिसे स्वतंत्रता की तरह महसूस कर छड़े होना का अहसास देती है।
जवाब देंहटाएंहमें बस तीन दिन सुहाता है,
जवाब देंहटाएंउसके बाद दिन रात सताता है..
सच है ,तीन आईडियल नंबर है -लगभग हर गृह स्वामी के लिए !:)
हटाएंअस्थायी आजादी मुबारक हो। :)
जवाब देंहटाएंक्या यह कहना उचित होगा कि आजाद होते ही वैज्ञानिक चेतना संपन्न ब्लॉगर कुत्ते बिल्लियों के उपमा संसार में विचरण करने लगा। :)
टेम्पलेट नया है सो कुछ जम सा रहा है।
यही तो है वैज्ञानिक चेतना सम्पन्नता -सोचने का इक अलग नजरिया
हटाएंयही तो है वैज्ञानिक चेतना सम्पन्नता -सोचने का इक अलग नजरिया
हटाएंचांदनी चार दिन की...
जवाब देंहटाएं:(
हटाएं@ काजल कुमार, चांदनी चार दिन भी सर्विस टैक्स के दायरे में आ गयी। :)
हटाएंअनूपजी...अब तो राखी सावंत और पूनम पाण्डेय पर भी सर्विस-टैक्स लगेगा !!
हटाएं:) आज़ादी सेलीब्रेट कीजिये
जवाब देंहटाएंजी हाँ , घर तो गृहणी का ही होता है , और हो भी क्यों नहीं.... ?
लो हम तो आ ही गए टिपियाने।
जवाब देंहटाएंये पता है कि ये आजादी अस्थाई है। फिर भी तीसरे नहीं तो चौथे दिन तो काटने लगेगी, गारंटी से कह रहा हूँ।
ख़ाक मौज ! बिना उनके घर कैसा !
जवाब देंहटाएंऐसा क्या? आप अपने उनके के बारे में कह रही हैं न :) पर उनका क्या कहना है? :)
हटाएंचिठ्ठी पढ़ कर मजा आ गया जी ....
जवाब देंहटाएं...हमें तो गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार रहता है.बच्चों के साथ पूरा घर गाँव चला जाता है और मैं अकेला,निर्दुन्द इधर-उधर मुँह मारता फिरता हूँ.सच पूछिए,दो-तीन दिन बाद ही अक्ल ठिकाने आ जाती है,उनकी,बच्चों की याद सताती है.खाना तो बना लेता हूँ पर अब आलस आता है.उनके रहने पर कम्प्यूटर पर बैठे-बैठे नाश्ता-चाय मिल जाता है,उसका क्या ?
जवाब देंहटाएं...और हाँ,तनी अपना कान मुँह के पास लाइए...."टेम्परेरी मुक्ति तो अभी मिल जायेगी पर परमानेंट मुक्ति तो उनके आने पर ही मिलेगी".
पत्नी भी क्या खूब है! हरदम देती मौज
जवाब देंहटाएंवो जाये तो मौज है, वो आये तो मौज।
:-):-)
हटाएंक्या बात है कवि जी :)
हटाएंवाह वाह ..
जवाब देंहटाएंनेट पर आपका लिखा कहीं से भी पढा जा सकता है .. ध्यान रहे !!
संगीता जी ,यही डर तो मुझे भी सताये जा रहा है :(
हटाएंहाथी के दांत?... :)
जवाब देंहटाएंनहीं आइवरी चिंतन ! :)
हटाएंहा हा हा ! मियादी आज़ादी मुबारक हो !
जवाब देंहटाएंअब आप सबसे पहले तो ज़िब्रिश कीजिये ।
और फिर जमकर आज़ादी का जश्न मनाइये ।
हमारी भी गई होती तो हम भी आ जाते । :)
जो भी हो मगर प्रेरणा तो आप सरीखे श्रेष्ठ जन ही सुलभ कराते हैं!
हटाएंवैसे बड़े बड़े शहरों में यह शुभ घड़ी मुश्किल से ही नसीब होती है । :)
जवाब देंहटाएंआज 18/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
lol that was fun..
जवाब देंहटाएंenjoy your temporary freedom with your friends... !!!
वाह....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
मइके भौजी क्या गईं, निकले बच्चू पंख ।
जवाब देंहटाएंपड़ा खुला दरबार है, फूँक बुलाते शंख ।
फूँक बुलाते शंख, जमा हों संगी साथी
आज जमेगा रंग, नहीं कुछ प्रवचन पाथी ।
जासूस बड़े ही खास, जमे जैसे मनमौजी ।
मोबाइल का नाश, फाट पड़ती है भौजी ।।
१)दुःख भरे दिन बीते रे भैया ,अब सुख आयो रे ,
जवाब देंहटाएंरंग जीवन में नया लायो रे ....
(२)दूसरा रंग :
हमारे पास फ्रिज है ,कूलर है ,टी .वी. है ,तुम्हारे पास क्या है ?
हमारे पास -
बीवी है .
वह तो हमारे पास भी है और एक नहीं कई- कई हैं ,
आप !अपनी से परेशान हैं , तो इधर दे दीजिए ,
बदले में ,एक फ्रिज कूलर या टी. वी .ले लीजिए -
नहीं जनाब !
हमारी बीवी सुबह फ्रिज, दोपहर को कूलर, रात को टी. वी है ,
हमारे पास सिर्फ बीवी है .
(३)तीसरा रंग :
रहिमन बीवी राखिये बिन बीवी सब सून ........
:)
हटाएंघर तो घरवाली का ही रहेगा ,कभी पट्टे के साथ , कभी बिना पट्टे भटकने की नियति जिनकी है , भटकते रहें :)
जवाब देंहटाएंचलिए मजाक-मजाक में ही सही खुले दिल से स्वीकारोक्ति और भी बहुत कुछ कह रही है .
जवाब देंहटाएंवैसे कभी पत्नियों से भी पूछा जाये कि ये पति लोगों का मायका क्यों नहीं होता :)कभी ये अस्थाई आजादी उन्हें भी नसीब हो :):)
जवाब देंहटाएंमजाक के अलावा. एन्जॉय :)
जश्न मनाइए .... एक - दो दिन खुश हो लीजिये ..... बीवी ज्यादा दिन के लिए चली जाये तो यह खुशी जल्दी ही समाप्त हो जाती है ... बाकी घर तो घरवाली से ही होता है ...
जवाब देंहटाएंमेरी टिप्पणी फिर गायब ही :( :(
जवाब देंहटाएंजश्न मनाइए .... दो चार दिन बाद याद सताने लगेगी ... बाकी घर तो घरवाली से ही है ...
जवाब देंहटाएंkuwarapan mubarak ho...
जवाब देंहटाएंapun bhi padha....temparary mouj urai jai.....
जवाब देंहटाएंpranam.
लगता है सुख भरे दिन आयो रे भईया आयो रे ... ताश मंडली को इकठ्ठा कीजिये ...
जवाब देंहटाएंऐसा चैन किसी और बात पे भी मिलता है जितना बीबी के जाने का बाद ... अब जब वो आयें तो क्या बीतेगी इस बात को सोचिये और अनुभव जरूर बताइयेगा ...
रोचक पोस्ट ! मगर कहीं आपकी श्रीमती जी तक बात न पहुच जाये........क्योंकि नेट तो हर जगह है , उनके मायके में भी होगा
जवाब देंहटाएं@हाँ मुकेश जी ..पढ़ चुकी हैं :( किसी तरह महाभारत बचाई है :)
जवाब देंहटाएंOh Arvind darling....you are really honest man..love u darling...take care.
जवाब देंहटाएंभाभीजी को तो आपने अभी से मिस करना शुरू कर दिया, इसीलिये उस उपजे हुए शून्य को भरने के लिए इतने सरंजाम जुटा रहे हैं :)
जवाब देंहटाएंभीड़ जुटाओ पोस्ट :P
जवाब देंहटाएंआप आईं कसम से मजा आ गया।
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