आज ईद के त्यौहार का खुशनुमा माहौल चारो ओर था ..खुशियाँ उमड़ी पड़ रही थीं ..बहुत अच्छा लग रहा था..बेटी ने भी इस खुशी को अपने तरीके से सेलिब्रेट करने के लिए मुझसे निकट के माल में चलने की खुशामद की ....वहां भी भीड़ उमड़ी पड़ रही थी ..चारो ओर उमंग और खुशियों से लबरेज दृश्य ..सचमुच ईद एक ऐसा ही त्यौहार है ....बेटी ने मैकडानेल से कुछ खाने का आर्डर दिया ..वही सब जंकी स्टफ ..बच्चों का टेस्ट भी कैसा है -मगर वे कहाँ मानते हैं ....लिहाजा बर्गर ,कोल्ड ड्रिंक्स मैक पिजा वगैरह ...मैं भी बेटी का मन रखने को साथ दे रहा था -रेस्तरां में बहुत भीड़ थी ...ईद के रंग मैकडानेल के संग! ओर तभी मैंने महसूस किया कि मेरे पीछे की कुर्सी पर बैठा एक ५-६ साल का बच्चा बड़ी चाहत से बिटिया के कोल्ड ड्रिंक को निहार रहा है ....जब हम कुर्सी पर बैठ रहे थे तो लगा कि वह एक समूह के साथ है ..मैंने फिर चेक किया ..सचमुच उसकी आँखे ललचाई सी थीं ...मतलब साफ़ था ..वह अकेला था ओर उसके पास पैसे भी नहीं थे शायद! मैंने उससे पूछा बेटे तुम्हारा नाम क्या है? मुहम्मद आजम ..उस भोली सूरत के होठ बुदबुदाए .....क्यों तुम्हारे साथ कोई आया नहीं क्या? नहीं ..बड़ी मायूसी थी उसके जवाब में ....मैंने पूछा कुछ खाओगे ..उसने हसरत से जवाब दिया -हाँ ....और कोल्ड ड्रिंक की भी फ़रियाद कर दी ....मैंने उसकी इस छोटी सी साध को तुरंत आज्ञाकारी जिन की तरह पूरा कर दिया ...ईद की मुबारकबाद दी और हम वहां से चले आये ..
.नन्हे मियाँ मुहम्मद आजम
अब लौटने पर जो टिप्पणियाँ मिलीं वे बड़ी मिली जुली सी थीं ...नहीं करना चाहिए था यह ..कुछ लोगों ने पेशा बना लिया है ..बच्चों से भीख मंगवाते हैं ..हो न हो वह पाकेटमार रहा हो ..हद है ईद का दिन ..एक नन्हे मियाँ ..हम उन्हें एक सबसे न्यारे और प्यारे त्यौहार पर छोटी सी गिफ्ट न दे सके तो लानत है हमारी मानवीय संवेदना पर ..मैं तो आज उसके चेहरे के संतोष को देखकर अपनी ईद मानो मना ली ...नन्हे मियाँ पूरी तरह नए परिधान और खूबसूरत जूते में नमूदार थे वहां ..मुहल्ले की भीड़ के साथ मैकडानेल में आ गए थे..मगर खलीता तो खाली था सो मायूस से बैठे थे ..बहरहाल अल्लाह मियाँ ने इन नन्हे मियाँ की सुन ली .....
मैं यह पोस्ट इसलिए लिख रहा हूँ कि हम कर सके तो ऐसा करना चाहिए और नेकी कर दरिया में डाल के भाव से करना चाहिए -यह कोई आत्म प्रचार नहीं है -यह आप सबसे अपेक्षा है ....ऐसा पुण्य आपको मंदिर मस्जिद में जाने से भी नहीं मिलेगा ..कभी मौका मिले तो चूकिएगा नहीं -और नसीब वालों को{ :) } ऐसे मौके मिलते ही रहते हैं ....
आपने अनुकरणीय काम किया है, एक बच्चे को त्यौहार के दिन खुशियाँ देकर !
जवाब देंहटाएंइस प्रकार के उदाहरण औरों को प्रेरित करने के लिए होते हैं और यह स्वागत योग्य हैं ! शुभकामनायें आपको !
Bahut achha anubhav aapne saajha kiya hai!
जवाब देंहटाएंहम कर सके तो ऐसा करना चाहिए और नेकी कर दरिया में डाल के भाव से करना चाहिए
जवाब देंहटाएं--- आमीन ---
अच्छा किया, दुबारा भी कीजियेगा।
जवाब देंहटाएंवैसे अभाव ग्रस्त हामिद हैं समाज में, पर जो हामिद होता है उसमें गजब का स्वाभिमान भी होता है।
जवाब देंहटाएंयह भी है कि अगर पता हो नेकी करते समय आदमी को कि यह नेकी दरिया में जायेगी तो आदमी नेकी शायद ही करे, यह तो बाद में खुद को खुश रखने को गालिब खयाल अच्छा है!
ईद मुबारक सभी को..!
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो युं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
जवाब देंहटाएंकोल्ड ड्रिंक की फ़रियाद या हसरत.
जवाब देंहटाएं@अगर पता हो नेकी करते समय आदमी को कि यह नेकी दरिया में जायेगी तो आदमी नेकी शायद ही करे
जवाब देंहटाएंऐसी मति अभ्यास से आती है और इसलिए यह सीख बन गयी है -नेकी कर दरिया में दाल ...और दरियादिली बिना भी यह संभव नहीं -बिना प्रतिदान की भावना से किये गए दान ही श्रेयस्कर माने गए हैं !
@आशीष,
जवाब देंहटाएं@घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो युं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए!
अवचेतन में यह पंक्ति सोई रह रह हुलस रही थी ....
जिसको करने में सुकून मिले वह कर ही डालना चाहिये। फ़िर कोई कुछ कहे।
जवाब देंहटाएंमुहावरा भी बदलना चाहिये भाई! नेकी कर दरिया में डाल की जगह होना चाहिये- नेकी कर ब्लाग में डाल। :)
@अनूप जी,
जवाब देंहटाएंनेकी अब ना कोऊ करे सब दूजे को समझाय
बलिहारी इस ब्लॉग की जिसने दिया दिखाय :)
यह वाकई अनुकरणीय है,इसे तो सदा जारी रखना चाहिए.
जवाब देंहटाएंएक कवि हृदय और लेखक ही ऐसा उत्कृष्ट कार्य क्र सकता है |आपको बधाई सर हमें आप पर गर्व है |
जवाब देंहटाएं@जयकृष्ण भाई ,
जवाब देंहटाएंअब तो शर्मिंदा कर रहे हैं :)
करोड़ों बदहाल बच्चे , बर्बाद नस्लें ! किसे फ़िक्र है ?
जवाब देंहटाएंसरकारें बनती और बिगड़ती हैं फिर चन्द लोग आबाद बने रहते हैं !
इस प्रकरण में आपका एटीट्यूड सही है जो ईश्वर की कृपा को आपने ईश्वर में बाँट दिया !
मोहम्मद आज़म के कितने ही रूप हैं ,उपकृत सचमुच दाता होता है .हम पंजाब यूनिवर्सिटी परिसर में गत दिनों बेटी के साथ शाम की सैर पर थे जो नजदीकी सेकटर १५ डी में रिहाइश बनाए हुई थी ,उमस और घोट ने हमें बे- तरह थका दिया था .महीन चीनी स्टाइल गले वाला एक दम से हल्का टी शर्ट भी पसीने में कमर से चिपक गया था .रिक्शे वाला हमारे नजदीक से गुजरा हमने उसे पुकारा-रिक्शा ! और बैठ गए ,बेटी कहने लगी -दस रूपये देंगें भैया ,पास ही तो है मार्किट में ही तो हम उतर जायेंगें .वह बीस मांग रहा था ,जो हमें एक दम से वाजिब क्या कम ही लगा ,भारीभरकम हम अस्सी किलो के और बिटियाभी बाप की बेटी सी .खैर पहुंच गए मार्किट जूस वाले की दूकान पर रिक्शा रुकवाया ,हमारे पास पांच सौ का नोट था सो झट उतरकर नोट दूकान दार को पकडाया और उससे बीस रूपये और एक ग्लास मेंगोशेक कब्जाया ,दो ग्लास का ऑर्डर और किया ,हमारे हाथ में बीस रूपये और मेंगो शेक का ग्लास था जो हमने उसे थमाते हुए कहा , पानी पियो तो हम बोतल लायें पानी की ?
जवाब देंहटाएंवह सहमा हुआ था .पसीने से तरबतर ,गैर यकीनी के साथ उसने ग्लास थामा .और चुपचाप खाली करके शांत भाव से चला गया .जब तक हम उसका नाम पूछे वह जा चुका था .जोर का झटका लगा चेतना को -क्या रिक्शे वाले का भी कोई नाम होता है ?हम बुलातें हैं उसे -रिक्शा! रिक्शा !.उसके चेहरे का वह अविश्वासी भाव ,हतप्रभ होना उसका हमें अब भी याद है .
आज़म भाई ने वह प्रसंग ताज़ा कर दिया .लेकिन एक फर्क है उस खुद्दार ने कहा था नहीं बाबूजी हम नहीं पियेंगें ,हमने उसके गाल लाड से खींचे थे और ग्लास उसे थमा दिया था .उसकी आँखें विस्फारित थीं .और हम सुख से भर गये थे .
सुन्दर शिक्षा . गणेशोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएँ .
जवाब देंहटाएंडा.साब जी आप की इस प्रकार की शख्शियत के तो हम पहले से ही दीवाने हैं
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत मे आप का नन्हे मिया यानी कि मै आप से बिना फ़रियाद किये बहुत कुछ पा गया.
आपका धन्यवाद ....
काम की बात: "हम कर सके तो ऐसा करना चाहिए"
जवाब देंहटाएंइस तरह से सामने वाले की भावनाओं का ख्याल करते हुए आगे बढ़कर उसे यथासंभव खुशी पहुंचाना अनजाने में ही खुद को भी सुकून पहुंचाता है।
जवाब देंहटाएंनेकी करते समय यह देखना भी ज़रूरी है कि दान कुपात्र को तो नहीं कर रहे ।
जवाब देंहटाएंएक बूढ़े भिखारी से मैंने कहा , बाबा
आज बायाँ , कल तो दायाँ हाथ बढाया था ।
भिखारी बोला , बेटा बूढा हो गया हूँ
अब याद नहीं रहता , कल किस हाथ में प्लास्टर चढ़ाया था ।
आपकी दरियादिली अपनी जगह सही है अरविन्द जी ।
शुभकामनायें ।
काफी अच्छा किया आपने.
जवाब देंहटाएंपिछले दिनों ट्रेनिंग के दौरान कनाट प्लेस में एक मैक्दानेल प्रेमी मित्र के कारण रोज जाना पड़ता था. खाता तो वो था, मगर बाहर एक भिखारी को टैक्स मुझे देना पड़ता था. लगता था मानो ऐसी जगहों पर वो कुछ लोगों की भावनाओं को कैश करने भी खड़े रहते हैं. सभी के साथ ऐसा है यह मैं नहीं कह सकता, मगर ईद पर आजम की ईदी तो बनती ही थी. :-)
true... we get very few moments like this in our lives :)
जवाब देंहटाएंऐसे मौकों पर मेरी माताजी कहा करती हैं, "उसकी करनी उसके आगे, हमारी करनी हमारे आगे"
जवाब देंहटाएंजो भी हो, आपने अच्छा काम किया, मन को सुकून मिला होगा।
ज़रूर.. आपकी कही बात याद रखी जाएगी.....
जवाब देंहटाएंऐसे जिन्न सबको मिलें, ईद मुबारक ।
जवाब देंहटाएंआजम के बहाने खुदा ने आपका ईद मनाने का अवसर दिया। यही तो ईद है।
जवाब देंहटाएंमियाँ मुहम्मद आजम के साथ आपको भी ईद की मुबारकबाद!
जवाब देंहटाएंमन प्रसन्न हुआ!
अनुकरणीय है। सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छा किया आपने ...बस एक ही बात अखर रही है कि ईद पर मीठी सेंवई खानी चाहिए थी , पिज्जा- बर्गर तो वर्ष भर खाए जा सकते हैं!
जवाब देंहटाएंमनभावन पोस्ट.
जवाब देंहटाएंचलो अच्छा हुआ,आपने ईद मनाई और 'ईदी' भी दी.
जवाब देंहटाएंदर-असल ,यह नेक काम ईद के दिन ही ठीक था,नहीं तो आजकल 'सुपात्र' को भी 'कुपात्र' की दृष्टि से देखा जाता है,फिर भी,अपने मन को जिसमें संतुष्टि हो,वह काम करना चाहिए!
बिना लाग-लपेट के यह भी अनूपजी ठीक कह रहे हैं कि ' नेकी कर,ब्लॉग में डाल'.कम-से-कम इसी बहाने नेकी कर लो भाई !
हाय! अब तो त्योहार के पकवान भी बिदेसी हो गए!!! कहां वो शीर-खोर्मा,हलीम और बिरियानी और कहां ये मेडोनॉल्ड के जंक फ़ुड :)
जवाब देंहटाएंबस यही यादगार पल ज़िन्दगी को खुशनुमा बना देते हैं..
जवाब देंहटाएंअब लौटने पर जो टिप्पणियाँ मिलीं वे बड़ी मिली जुली सी थीं ...नहीं करना चाहिए था यह ..कुछ लोगों ने पेशा बना लिया है ..बच्चों से भीख मंगवाते हैं ..हो न हो वह पाकेटमार रहा हो ..हद है ईद का दिन ..एक नन्हे मियाँ ..हम उन्हें एक सबसे न्यारे और प्यारे त्यौहार पर छोटी सी गिफ्ट न दे सके तो लानत है हमारी मानवीय संवेदना पर ..मैं तो आज उसके चेहरे के संतोष को देखकर अपनी ईद मानो मना ली ...नन्हे मियाँ पूरी तरह नए परिधान और खूबसूरत जूते में नमूदार थे वहां ..मुहल्ले की भीड़ के साथ मैकडानेल में आ गए थे..मगर खलीता तो खाली था सो मायूस से बैठे थे ..बहरहाल अल्लाह मियाँ ने इन नन्हे मियाँ की सुन ली .
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आप की यह पंक्तियाँ हमारे समाज की सही तस्वीर दिखा गयीं. आप की महानता को दर्शाता है आप का उस बच्चे की भावनाओं को समझना.
एक अलग सा सुकून देता पोस्ट बढ़िया बन पड़ा है .क्या कहूँ..?बस सोच रही हूँ ...
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