बनारस की सुबह और अवध (लखनऊ) की शाम का अलौकिक अहसास है.कल शाम तक लखनऊ में था ...एक पूरी शाम और एक अधूरी शाम वहां गुजारने को मिली .....आपसे शामे अवध के चंद अहसासात साझा करने हैं ....परसों की शाम तो सचमुच यादगार थी ....मैं बनारस के उस नवाबी संकुल में था जो वहां की पारम्परिक संस्कृति का महक लिए हुए थी .....एक ओर ललित कला अकादमी ,सामने राष्ट्रीय कत्थक संस्थान और इसके विपरीत दिशा में भारतेंदु नाट्य अकादमी और बिलकुल बीच में आज का समारोह स्थल -जयशंकर प्रसाद सभागार जो ठसाठस भरा हुआ था ....अवसर था रवीन्द्र प्रभात जी की नव प्रकाशित पुस्तक 'हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास' के विमोचन का जिसमें मैं भी आमंत्रित था .....कार्य्रक्रम अपने उरूज पर था और मैं कार्यक्रम और तकरीरों की माईक्रोब्लागिंग फेसबुक पर निरंतर करता जा रहा था .....मैंने जब लिखा की हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास पुस्तक का अभी अभी विमोचन प्रख्यात हिन्दी साहित्यकार मुद्राराक्षस द्वारा किया गया तो अभिषेक मिश्र ने दन से टिपियाया कि क्या हिन्दी ब्लागिंग इतनी पुरानी हो गयी है कि उसका इतिहास लेखन भी शुरू हो गया?
जाने माने साहित्यकार मुद्रा राक्षस द्वारा 'हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास' का विमोचन
सवाल सहज था ...मैंने जवाब दिया-इतिहास का मतलब दिक्कालीय परिवेश और घटनाओं के दस्तावेजीकरण का है और इसके लिए इंतज़ार किया जाना प्रमाणिकता को बनाए रखने के लिहाज से जरुरी नहीं है ...इतिहास द्रष्टा द्वारा सीधे खुद लिखने के बजाय जब भी कालान्तर में लोगों द्वारा बिखरे हुए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर लिखा जाता है प्रमाणिकता के साथ समझौता करना पड़ता है .....अकबर महान थे यह हमें पाठ्य पुस्तकें और दरबारी इतिहास से मालूम होता है मगर लोकगीतों में आज भी अकबर को अत्याचारी बताया गया है ....कहना केवल यह है कि इतिहास का वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण उसके समकालीन दस्तावेजीकरण से ज्यादा सटीक तरीके से हो सकता है ..अभिषेक जी बड़े जल्दी ही इस गूढ़ वाणी को शिरोधार्य कर लिए ..इसलिए फेसबुक पर आगे बहस रुक गयी मगर सभागार का कार्यक्रम चलता रहा ....रवीन्द्र प्रभात जी की मेधावी पुत्री द्वय ने बहुत ही सुन्दर पावर प्वाईंट प्रेजेंटेशन के जरिये हिन्दी ब्लागिंग के अद्यावधि इतिहास की मनोरम झांकी मय मील के पत्थरों सहित प्रस्तुत की .....पूरा सभागार मंत्रमुग्ध सा था ...पिन ड्राप वाला सन्नाटा ...और प्रस्तुति के ख़त्म होते हुए ही भरपूर करतल ध्वनि ....
निश्चय ही एक अविस्मरणीय अनुभव था .....इसी अवसर पर एक विचार मंथन सत्र भी वैकल्पिक नव -मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर था और साहित्य के छ्टे हुए चिन्तक उस पर विचार विमर्श कर रहे थे-मुझे आश्चर्य यह लगा कि ब्लागिंग पर बोलने के लिए वहां सब खाटी के साहित्यकार-प्रिंट मीडिया के धुरंधर ,साहित्यकार आलोचक तो थे मगर ब्लॉगर न थे -शायद इतिहास लेखन ने रवीन्द्र जी को यह शिद्दत से अहसास दिला दिया हो कि ब्लॉगर अभी साहित्यकार के सामने बौना है -और शायद यह सच भी है ...मुझे भी जब आमंत्रण दिया गया था तो यह भी बता दिया गया था कि मुझे वहां बोलना नहीं है ....मैं वैसे भी इन मामलों में वीतराग ही रहता हूँ मगर तब मुझे यह खटका भी था फिर मुझे आमंत्रित करने का मकसद क्या है ....क्या केवल मित्रगत सदाशयता?
जो भी हो मैं पिछले वर्ष दिल्ली के परिकल्पना सम्मान में नहीं जा पाया था तो कुछ नैतिक आग्रह भी बलवती हो उठा था कार्यक्रम में पहुंचने का और फिर रवीन्द्र प्रभात जी का निरंतर अनुरोध कि मैं अवसर और सभागार की शोभा बढाऊँ.....मगर ब्लागिंग पर आयोजित इस कार्यक्रम में नामचीन साहित्यकारों ,आलोचकों के जमावड़े में मैं अपनी लघुता का अहसास शिद्दत से करता रहा ....वक्ताओं के क्रम में अयाचित इंट्री दिलाने के लिए रवीन्द्र जी एक बार मेरे पास आकर धीरे से फुसफुसाए भी कि संक्षिप्त में कुछ बोलना हो तो बोलिए ..मगर तब तक मैं लघुता के बोध से इतना धराशायी हो चुका था कि सर आवर्ती दोलन की मुद्रा में हिल उठा ...हिम्मत ही नहीं बची थी ...हालत यह थी कि सभागार की शोभा बढ़ाने की कौन कहे मैं अब खुद सभागार की गुरुता से शोभित हो रहा था -लोगों ने बड़ी विचारणीय बाते कहीं .....भ्रष्टाचार की आवाज बुलंद करने में,दलित और सताए लोगों की पीड़ा मुखरित करने में वैकल्पिक मीडिया की भूमिका रेखांकित की गयी ....अंतर्जालीय जानकारियों की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता का मुद्दा भी उठाया गया ....और सम्पादन और अंकुश की तरफदारी भी की गयी और वह भी एक सम्मानित सम्पादक द्वारा जो ब्लागिंग में भी सक्रिय रहे हैं ...
कुल मिलाकर एक यादगार अनुभव रहा .. हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास बकौल रवीन्द्र प्रभात पर उस रात ही एक सरसरी नजर डाली -निश्चय ही इस ऐतिहासिक कृति के लिए घोर परिश्रम किया गया है ...रवीन्द्र जी साधुवाद के पात्र हैं ..उन्होंने इतिहास लेखन के साथ ही लखनऊ के पारम्परिक मीडिया में ब्लागिंग का परचम फहरा दिया है ..हम भी उन्ही के झंडे तले ही हैं -पुस्तक की मैंने पहले से ही एडवांस बुकिंग करा रखी थी ताकि विमोचन के बाद एक प्रति हासिल करने में किसी तरह की असहजता न महसूस हो ....किसी की चिरौरी विनती न करनी पड़े ......पुस्तक पर आगे लिखूंगा ..अभी तक के लिए केवल इतना ही कि पुस्तक में तथ्यों का समावेश करने में लेखक की पारखी दृष्टि से कई सूक्ष्म प्रेक्षण भी छूटा नहीं हैं -पढ़ते वक्त यह आनन्दित करती है और ज्ञानवर्धन तो करती ही है ....हिन्दी ब्लागिंग का यह समकालीन दस्तावेजीकरण एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान है और वह भी एक एकल योगदान ........एक काबिले तारीफ़ काम!
जो भी हो मैं पिछले वर्ष दिल्ली के परिकल्पना सम्मान में नहीं जा पाया था तो कुछ नैतिक आग्रह भी बलवती हो उठा था कार्यक्रम में पहुंचने का और फिर रवीन्द्र प्रभात जी का निरंतर अनुरोध कि मैं अवसर और सभागार की शोभा बढाऊँ.....मगर ब्लागिंग पर आयोजित इस कार्यक्रम में नामचीन साहित्यकारों ,आलोचकों के जमावड़े में मैं अपनी लघुता का अहसास शिद्दत से करता रहा ....वक्ताओं के क्रम में अयाचित इंट्री दिलाने के लिए रवीन्द्र जी एक बार मेरे पास आकर धीरे से फुसफुसाए भी कि संक्षिप्त में कुछ बोलना हो तो बोलिए ..मगर तब तक मैं लघुता के बोध से इतना धराशायी हो चुका था कि सर आवर्ती दोलन की मुद्रा में हिल उठा ...हिम्मत ही नहीं बची थी ...हालत यह थी कि सभागार की शोभा बढ़ाने की कौन कहे मैं अब खुद सभागार की गुरुता से शोभित हो रहा था -लोगों ने बड़ी विचारणीय बाते कहीं .....भ्रष्टाचार की आवाज बुलंद करने में,दलित और सताए लोगों की पीड़ा मुखरित करने में वैकल्पिक मीडिया की भूमिका रेखांकित की गयी ....अंतर्जालीय जानकारियों की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता का मुद्दा भी उठाया गया ....और सम्पादन और अंकुश की तरफदारी भी की गयी और वह भी एक सम्मानित सम्पादक द्वारा जो ब्लागिंग में भी सक्रिय रहे हैं ...
रवीन्द्र प्रभात जी बहुत बहुत बधाई!
आयोजन के सह आयोजक रणधीर सिंह सुमन को विशेष आभार जिन्होंने मेरा बहुत ख़याल रखा और मुझे बहुत बढियां नाश्ता कराया ..
आयोजन के सह आयोजक रणधीर सिंह सुमन को विशेष आभार जिन्होंने मेरा बहुत ख़याल रखा और मुझे बहुत बढियां नाश्ता कराया ..
नवाबों के शहर में मेरे दूसरे दिन की आपबीती अभी बाकी है ......
सराहनीय योगदान।
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.
देव,
निराश करते हैं आप कभी कभी... कहाँ हम आपको एक खाँटी ब्लॉगर के रूप में जानते-मानते हैं... और कहाँ आप लग लिये स्वयंभू-स्वघोषित इतिहास निर्माताओं, ऐतिहासिक किरदारों और साहित्य के लंबरदारों की लाईन में ???... :(
मुझे तो अबके बरस आपको एकाधिक पुरस्कार मिलने की दिव्य परिकल्पनायें आ रहीं हैं बारंबार... ;))
...
एक nice सचित्र रिपोर्ट अन्यत्र भी पढने को मिली, बधाई हो.
जवाब देंहटाएंशाम -ए-अवध आपके आने से और गुलज़ार हुई,
जवाब देंहटाएंसुबह-ए-बनारस से उसकी भेंट हुई ,बात हुई!
न्योता तो हमें भी मिला था,पर हमने अपनी असमर्थता जता दी थी .रविन्द्र प्रभात का इस तरह का प्रयास किसी न किसी बहाने ब्लोगिंग के लिए मुफीद ही होगा !
लगता है आप लखनऊ-यात्रा में कुछ अपने लिए भी उम्मीद लेकर आए थे,थोड़ा इंतज़ार करो ,आप भी ब्लॉगर से बड़का-ब्लॉगर(मठाधीश नहीं कहूँगा) और फिर साहित्यकार बनने की प्रक्रिया में हैं!
अच्छी रिपोर्टिंग का आभार,जल्द ही दूसरी झेलने को आतुर !
@प्रवीण शाह ,
जवाब देंहटाएंकैसे हैं बन्धु,सब कुशल मंगल तो है ..बड़े दिन बाद दिखे ....
आपके तंज पर बस यही कह सकता हूँ -
कोई तो वजह रही होगी
वरना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता ...
मुला बात सम्मान पुरस्कारों की तो ..
आप बजा फरमाते हैं ....आप के मुंह में घी शक्कर! :)
@संतोष त्रिवेदी,
जवाब देंहटाएंपूत के पाँव पालने से बाहर दिखने लगे हैं
पूतना के दिन शायद फिर बहुरने लगे हैं ...
बाकी "रविन्द्र प्रभात का इस तरह का प्रयास किसी न किसी बहाने ब्लोगिंग के लिए मुफीद ही होगा! "
जे बात ........यही निचोड़ है !
ये लो,आपकी अधूरी बात पूरी किये देता हूँ,बड़ा बन जाता हूँ :
जवाब देंहटाएं"लौटा है कोई शाम-ए- अवध गुजारकर,
मिला भी होगा कोई,बाहें पसारकर !"
एक बेबात और वाहियात टिप्पणी ,
जवाब देंहटाएंआप शारीरिक रूप से घुमक्कडी के एडिक्ट ब्लागर हैं शराफत से बनारस में एक जगह टिक कर ब्लागिंग क्यों नहीं करते :)
एक शेर बतर्जे संतोष त्रिवेदी जी ,
जवाब देंहटाएंअरविन्द जो जाइये अवध तो खूब सोचकर
कोई जान ना ले ले वहां तुमको दबोचकर :)
"लौटा है कोई शाम-ए- अवध गुजारकर,
जवाब देंहटाएंमिला भी होगा कोई,बाहें पसारकर !"
क्या बात है संतोष जी,अली भाई ...
मगर हकीकत तो यह है ..
दोनों जहाँ किसी की मुहब्बत में हारकर
लौट आया है कोई शामे अवध गुजारकर
Are.
जवाब देंहटाएंLucknow me ye event ho gayi.
Ham to jaan hi na sake..
Bahaehal badhai ravindra prabhat ji
अली सा का शेर पढ़ कर मगन हूँ...
जवाब देंहटाएंवैसे आपके लखनऊ पहुचने की सूचना पहले मिलती तो मैं पहुच ही जाता.
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
अच्छी खबर, नाश्ता मुबारक.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा जानकर ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअली साहब की नज़र :
जवाब देंहटाएंआयें अवध बेख़ौफ़ होके,अरमां भी पूरे कर लें,
हरसूँ हुस्न है बिखरा,ले जाएँ समेटकर !
मिसिरजी की नज़र :
होती होगी सुबह-ए- बनारस भी असरदार,
शाम-ए-अवध सबको, भेजती निहाल कर !
आइये फिर कभी,लखनऊ की गोद में,
गेसुओं से खेलो, जिंदगी से दुलारकर !
जानकारी देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएं@.......एक काबिले तारीफ़ काम!
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र प्रभात जी बहुत बहुत बधाई! ..
---हमारी तरफ से भी.
अली जी का शे'र और ललितजी की टिप्पणी जोड़ कर पढ़ी ...
जवाब देंहटाएंबहुत दिनो बाद खुल कर हँसना हुआ !
रविन्द्र जी के ऐतिहासिक कार्य और आपके पुरस्कार की बधाई और शुभकामनायें !
सराहनीय. शामे अवध तो कहीं शबे मालवा.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएं@ प्रवीण शाह ,
@ " निराश करते हैं आप कभी कभी..."
हिंदी भाषा की कठोर एवं असंवेदनशील जगह पर, रवींद्र प्रभात जी ने काफी कार्य किया है , और स्वाभाव अनुसार, हम सारे ब्लोगर उनकी सराहना नहीं कर सकते !
अपने अपने हिसाब से ब्लोगिंग के इतिहास में कमियां निकालेंगे अपने आपको उसमें न पाकर कोसेंगे और अपने अथवा अपने मित्रों को न पाकर उसे कूड़ा मात्र ठहराएंगे !
और उसमें कमियाँ न हों यह संभव भी नहीं होगा ...
रवींद्र प्रभात एक मानव मात्र हैं उनमें भी मानव जनित द्वेष और स्नेह होगा अपने मित्रों और अमित्रों के प्रति !
कम से कम रवींद्र प्रभात ने एक गंभीर काम करने में अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज कराई है !
और यकीनन वे हमसे लाख गुने अच्छे हैं जिन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया....
जवाब देंहटाएंइतिहास में अब तक ऐसी कौन सी रचना की गयी है, जिसे सबकी सराहना मिली हो ?
यहाँ ऐसे काफी लोग हैं जो अपने आपको ब्लोगिंग का कर्णधार कहते हैं
उन्होंने कभी ब्लोगिंग के भले के लिए कोई काम ही नहीं किया सिर्फ अपना कालर संवारते रहे ....
ब्लोगिंग में अक्सर गैरों के प्रति प्रसंशा भाव की कमी पायी जाती है
अक्सर ईमानदारी का अपमान किया जाता है और लोग तमाशबीनों की तरह मुंह देखते रहते है !
कई बार नाच नाच कर तालियाँ भी बजायीं जाती हैं..
हमें अपनी और देखना आना चाहिए !
हम सर्व गुण संपन्न नहीं हैं !
"in safhon ka shor hamesha sunai deti
जवाब देंहटाएंhai.....lekin jor ab ja ke laga hai......"
alochnatmak/pratyalochanatmak/samalochanatmak jo bhi ho...................
'hindi-blogging ka itihas ab yahi hoga'........
pranam.
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं------
जै हिन्दी, जै ब्लॉगिंग।
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
यहाँ यह कहना प्रासंगिक नहीं होगा कि हिंदी ब्लॉगिंग में कौन क्या कर रहा है, कम से कम मैं कुछ लोगों का नाम अवश्य ले सकता हूँ जो सकारात्मक ब्लॉगिंग से जुड़े हैं . इस कड़ी में लंबी फेहरिश्त है, किन्तु जिन लोगों के द्वारा इस माध्यम को स्थायित्व दिया जा रहा है उसमें रवीन्द्र प्रभात जी महत्वपूर्ण हैं, किन्तु रवि रतलामी जी,अरविन्द मिश्र जी, समीर लाल जी,जाकिर भाई,सतीश सक्सेना जी, खुशदीप जी, अविनाश वाचस्पति जी आदि ने भी हिंदी ब्लॉगिंग को प्राण वायु देने का कार्य किया है . वहीँ यदि किसी ब्लॉगर ने अपने शरारती कृत्यों से सबसे ज्यादा नुकसान हिंदी ब्लॉगिंग का किया है तो मेरे समझ से पहला नाम अनूप शुक्ल का लिया जा सकता है और दूसरा नाम डा. अनवर ज़माल का . खैर हिंदी ब्लॉगिंग एक परिवार है और इसमें हर मानसिकता के लोगों का निवास है. परेशान होने की जरूरत नहीं नकारात्मकता धीरे-धीरे लुप्त हो जायेगी हिंदी ब्लॉगिंग से .
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र प्रभात जी के इस सफल आयोजन का मैं भी साक्षी रहा हूँ और मैं इस कार्यक्रम की भव्यता पर मुग्ध हूँ !
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आभार अरविन्द जी, आपने मेरा विनम्र आमंत्रण स्वीकार किया ! इतिहास की यह पुस्तक एक प्रारंभिक प्रयास है, संपूर्ण नहीं ,किन्तु आगे यदि कोई ब्लॉगिंग को लेकर गंभीर होगा तो निश्चित रूप से सन्दर्भ के रूप में उन्हें इस पुस्तक से काफी मदद मिलेगी. मेरी भी कोशिश रहेगी कि प्रत्येक वर्ष की नवीनतम गतिविधियों को इस पुस्तक में शामिल करते हुए संस्करण प्रकाशित करता चलूँ ताकि आगे भी शोधार्थियों के लिए यह उपयोगी बनी रहे. काम मुश्किल जरूर है मगर दुरूह नहीं . ऐसा मेरा मानना है. संतोष जी, सतीश जी आप न आये इसका मुझे मलाल है, यह उधार रहा आगे कोई बहाना नहीं चलेगा .
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ने बताया कि कार्यक्रम में ब्लॉगर कम दिखें, मैं मानता हूँ कि कम थे मगर जो भी उपस्थित थे महत्वपूर्ण थे, जैसे अरविन्द जी स्वयं,जाकिर अली रजनीश जी, कुवंर कुशुमेश जी, सुशीला पूरी जी,हेमंत जी,सुरेन्द्र विक्रम जी, अमित ओमजी,मनोज पाण्डेय जी आदि . जैसा कि आपने कहा और मैं मानता भी हूँ कि सभागार पूरा खचाखच भरा था, जिसमें भरपूर मात्रा शहर के बुद्धिजीवी और प्रवुद्ध साहित्यकार थे. उन्हें बुलाने का मेरा मकसद यह था कि वे भी हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े .
मनोज जी, अनूप शुक्ल जी के बारे में ऐसा न कहें वे ब्लॉगिंग में आपके वरिष्ठ हैं . यह अलग बात है कि आप मुझे सम्मान देते हैं किन्तु आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि दूसरों के लिए अपमान भरा शब्द प्रयोग न करें . अनवर ज़माल भी अपने हिसाब से अच्छा कार्य कर रहे हैं, कभी-कभी भटक जाते हैं किन्तु उनके इस भटकाव पर नाराज होकर अनुचित बात न की जाए तो वेहतर होगा. सब अच्छे हैं,सब सम्मानित हैं ...सबको सम्मान मिलना चाहिए !
हिंदी दिवस की अनंत आत्मिक शुभकामनाओं के साथ एक बार पुन: आप सभी का आभार !
और हाँ इस कार्यक्रम में दो महत्वपूर्ण ब्लॉगर और थे सरबत ज़माल साहब और अलका मिश्रा जी !
जवाब देंहटाएंबधाई हो सभी को.
जवाब देंहटाएंबहुते बढिया, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं......
जवाब देंहटाएंवाह! आपके साथ-साथ इस आयोजन से जुड़े सभी हिंदी सेवकों को बहुत बधाई। हिंदी ब्लॉग जगत में कितना कुछ अच्छा हो रहा है!
जवाब देंहटाएंतीन-चार वर्ष पहले तक तो मैं केवल आदरणीय रवि रतलामी जी और अनुज शैलेश भारतवासी को ही जानता था। आज भी मंत्र मुग्ध रहता हूँ ब्लॉगिंग के जरिये उनके द्वारा निरंतर की जा रही हिंदी की सेवा को देखकर। फिर ताऊ की पहेलियों में ऐसा उलझा कि आदत सी हो गई शाम होते ही ब्लॉग खोलने की। धीरे-धीरे सभी को पढ़ता गया, जानता गया और लगता है कि अभी बहुत कुछ जानना शेष है।
हम या हमारे जैसे बहुत से ब्लॉगर ऐसे हैं जिनके लिए कहा जा सकता है कि सिर्फ कॉलर टाइट करने के सिवा कुछ नहीं कर पाये लेकिन एक बात मुझे लगती है कि यदि हिंदी ब्लॉगिंग है तो इसमे सभी तरह के पाठकों का भी अपना महत्व है। जैसे कि अनूप शुक्ल जी के लेखों का मैं फैन हूँ और उनको पढ़ना मुझे अच्छा लगता है। व्यक्तिगत रूप से कौन क्या है और किसने किसके साथ क्या किया इन सब बातों को जानना भी नहीं चाहता।
शुभकामनाएँ...जय हिंदी..जय ब्लॉगिंग।
जहाँ ब्लोगिंग में सबको मिलकर काम करने की चर्चा हो वहाँ सबका अपनी -अपनी तरह का योगदान है इसलिए हम नाहक व्यक्तिगत आलोचना से परहेज करें तो उचित होगा !मनोज पाण्डेय जी को अनूपजी के बारे में ऐसी टीप करने से बचना चाहिए था.उनका लेखन का अंदाज़ बेलौस और मौखिक है और हम उसके मुरीद हैं !
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी को उनके स्नेह और योगदान के लिए आभार !
संतोष जी,अब वो जमाना गुजर गया जब साहित्यकारों के निजी जीवन में झाँकने का प्रतिषेध था ..अब पारदर्शिता का जमाना है ..एक अच्छा ब्लॉगर होने के लिए केवल लिखने में पारंगत होने से काम नहीं चलेगा -इस नए सामाजिक तबके में दिल से भी अच्छा होना पड़ेगा ..कवि तो ठीक है ,कवि ह्रदय होना उससे भी बड़ी बात है ....
जवाब देंहटाएंवाह वाह , अरविन्द जी । शामे अवध और प्रवीण शाह और संतोष त्रिवेदी जी की खट्टी मीठी टिप्पणियां ! जैसे --
जवाब देंहटाएंइक शोर सा उठा है मयखाने में
फिर कोई दीवाना होश खो बैठा !
लीजिये एक हमने भी ठेल दिया ।
वैसे हमने तो कुछ और ही सुना था । क्या अगली पोस्ट तक इंतजार करना पड़ेगा ?
@"अरविन्द जी ने बताया कि कार्यक्रम में ब्लॉगर कम दिखें, मैं मानता हूँ कि कम थे मगर जो भी उपस्थित थे महत्वपूर्ण थे, जैसे अरविन्द जी स्वयं,जाकिर अली रजनीश जी, कुवंर कुशुमेश जी, सुशीला पूरी जी,हेमंत जी,सुरेन्द्र विक्रम जी, अमित ओमजी,मनोज पाण्डेय जी आदि ."
जवाब देंहटाएंऔर हाँ इस कार्यक्रम में दो महत्वपूर्ण ब्लॉगर और थे सरबत ज़माल साहब और अलका मिश्रा जी !
@रवीन्द्र जी,
असली उपस्थति तब ही होती है जब उनके मुखारविंद से कुछ सुनने को मिले ..बस देखने भर से काम कहाँ चलता है ..सूरत ही नहीं सीरत भी दिखने का प्रबंध होना चाहिए ...आपसे जोरदार अपील है भविष्य में भविष्य में कोई भी ऐसे कार्यक्रम हों तो ब्लागरों को भी अभिव्यक्त होने का मौका अवश्य मिले ....मेरा मकसद इस और आपका ध्यान दिलाना था .....
रोचक संस्मरण...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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@ आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
मेरी टीप आदरणीय अरविन्द मिश्र जी से हल्की फुल्की चुहल सी है उन्होंने उसे इसी भाव से लिया भी है... निश्चित रूप से कोई भी 'सर्व गुण सम्पन्न' नहीं हो सकता पर इस 'न होने' के चलते अपने इर्द गिर्द की चीजों को देख, पढ़, समझ उन पर अपनी प्रतिक्रिया जताने का हक कोई खो नहीं देता, मैं भी इस हक को अपने पास बरकरार रखना चाहता हूँ, अपनी तमाम गुण-विपन्नताओं के बावजूद भी...
...
जवाब के लिए आभार प्रवीण भाई !
जवाब देंहटाएंआप उन लोगों में से हैं जिन्हें मैं विशिष्ट मानता हूँ ! अगर आप विपन्न हैं तो हम जैसों को रास्ता कौन दिखाएगा ....
शुभकामनायें आपको !
शामे अवध से सुबहे बनारस का सफर और वो भी एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम से गुजरते हुए !
जवाब देंहटाएंब्लौगिंग का इतिहास तो इस डॉक्युमेंटेशन से तो विद्रूप होने के खतरे से बाहर ही है, मगर वर्तमान जो डोल रहा है, उसपर भी ध्यान देने की जरुरत है.
nice to know all this. Have great time.
जवाब देंहटाएंnice to know all this...have great time,
जवाब देंहटाएंGopal
www.achhikhabar.com
.मगर ब्लागिंग पर आयोजित इस कार्यक्रम में नामचीन साहित्यकारों ,आलोचकों के जमावड़े में मैं अपनी लघुता का अहसास शिद्दत से करता रहा ....वक्ताओं के क्रम में अयाचित इंट्री दिलाने के लिए रवीन्द्र जी एक बार मेरे पास आकर धीरे से फुसफुसाए भी कि संक्षिप्त में कुछ बोलना हो तो बोलिए ..मगर तब तक मैं लघुता के बोध से इतना धराशायी हो चुका था कि सर आवर्ती दोलन की मुद्रा में हिल उठा ...हिम्मत ही नहीं बची थी ...हालत यह थी कि सभागार की शोभा बढ़ाने की कौन कहे मैं अब खुद सभागार की गुरुता से शोभित हो रहा था -लोगों ने बड़ी विचारणीय बाते कहीं .....भ्रष्टाचार की आवाज बुलंद करने में,दलित और सताए लोगों की पीड़ा मुखरित करने में वैकल्पिक मीडिया की भूमिका रेखांकित की गयी ....अंतर्जालीय जानकारियों की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता का मुद्दा भी उठाया गया ....और सम्पादन और अंकुश की तरफदारी भी की गयी और वह भी एक सम्मानित सम्पादक द्वारा जो ब्लागिंग में भी सक्रिय रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंअरविन्दजी आपकी आँखिन देखी सदैव ही जीवन्तता लिए होती है .सार्थक और सटीक भी .बहुत सही विश्लेषण और सूक्ष्म व्यंग्य प्रस्तुत है इस रिपोर्ट में ,सामने वाला चाहे तो समझे .
अच्छी खबर बधाई
जवाब देंहटाएंमनोज पाण्डेय की बात से सहमत! वैसे यह बात हम तब कह चुके थे (21 सितम्बर, 2009) जब मनोज पाण्डेय ब्लाग जगत में अवतरित
जवाब देंहटाएं(नवम्बर, 2010) भी न हुये थे। मनोज पाण्डेय की ब्लाग बर्थ के एक साल दो महीना पहले लिखी पोस्ट में अनूप शुक्ल की पोलपट्टी खोली गयी थी:
भये छियालिस के फ़ुरसतिया
ठेलत अपना ब्लाग जबरिया।
मौज मजे की बाते करते
अकल-फ़कल से दूरी रखते।
लम्बी-लम्बी पोस्ट ठेलते
टोंकों तो भी कभी न सुनते॥
कभी सीरियस ही न दिखते,
हर दम हाहा ठीठी करते।
पांच साल से पिले पड़े हैं
ब्लाग बना लफ़्फ़ाजी करते॥
मठीधीश हैं नारि विरोधी
बेवकूफ़ी की बातें करते।
हिन्दी की न कोई डिगरी
बड़े सूरमा बनते फ़िरते॥
गुटबाजी भीषण करवाते
विद्वतजन की हंसी उड़ाते।
साधु बेचारे आजिज आकर
सुबह-सुबह क्षमा फ़र्माते॥
चर्चा में भी लफ़ड़ा करते
अपने गुट के ब्लाग देखते।
काबिल जन की करें उपेक्षा
कूड़ा-कचरा आगे करते॥
एक बात हो तो बतलावैं
कितने इनके अवगुन भईया।
कब तक इनको झेलेंगे हम
कब अपनी पार लगेगी नैया॥
भये छियालिस के फ़ुरसतिया
ठेलत अपना ब्लाग जबरिया।
अरविंद जी को ’कट्टा’ कानपुरी का यह शेर पेशे टिप्पणी है:
वो इतनी ज़ोर से तड़पा, भन्नाया,बड़बड़ाने लगा,
जी किया उसके सर पे हाथ फ़ेर के पुचकार दूं!
रवीन्द्र प्रभात को किताब छपाने और उसके विमोचन के लिये बधाई!
सुन्दर विमोचन.
जवाब देंहटाएंबधाई.
पुस्तक के संबंध में और भी जानकारियाँ अपेक्षितहैं।
जवाब देंहटाएंशिशु के पैदा होने के दिन से ही उसका इतिहास बनता जाता है। इतिहास को लिपिबद्ध करने के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं>मनोज पांडेय जी, नाम गिनाने में यही तो चूक हो जाती है कि हम कुछ विशेष लोगों के नाम गिनाना भूल जाते हैं... अब देखिए ना! आपने हमारा नाम ही नहीं लिया:))
रवीन्द्र जी को बढ़े और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबढे के स्थान पर बधाई पढ़ें
जवाब देंहटाएंअनूप शुक्ल जी,
जवाब देंहटाएंआपने मेरी प्रशंसा की मुझे बहुत अच्छा लगा . लेकिन अभी तक नहीं समझ पाया की आपने ये बातें दिल से कही है या दिल के बाहर से ....हा हा हा. मोगैंबो खुश हुआ !
रवीन्द्र जी,
आपने कहा की अनूप जी ब्लॉगिंग में मेरे वरिष्ठ हैं , इसमें कोई शक नहीं,मगर पता नहीं क्यों बिना सोचे-समझे सच उगलने की मेरी आदत है, कोशिश करता हूँ की आगे से सयंमित भाषा का प्रयोग करू. लेकिन यह तभी तक संभव है जब तक कोई मुझे उकसाए न !
चंद्रमौलेश्वर जी,
यही हिंदी ब्लॉगिंग की सबसे बड़ी कमी है की हम केवल और केवल अपने बारे में सोचते हैं, दूसरों के ऊपर कभी-कभी छोड़ दिया करें की वह आपके बारे में क्या सोचता है ?
मनोज पाण्डेय,
जवाब देंहटाएंमैंने आपकी बात का समर्थन किया है। प्रशंसा नहीं!
वैसे आपकी बिना सोचे-समझे सच उगलने की आदत काबिले तारीफ़ है! :)
@अनूप शुक्ल,
जवाब देंहटाएंव्यक्ति के परिवेश का प्रभाव उसके सृजन कर्म पर पड़ना सहज है -कट्टा कवि का जन्म आर्डिनेंस फैकट्री में हो जाना सहज संभाव्य है ....
बने रहिये आत्मतोषी,स्वयं भू ,स्व प्रचारक! अंगरेजी की एक बहु उद्धृत कहावत है हमेशा सभी को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता ...
आपके कट्टा फट्टा के जवाब में बाबा की यह अर्द्धाली -
उघरहिं अंत न होई निबाहू कालनेमि जिमी रावण राहू
मैं तो सोचती हूँ कि ये दुनियादारी और मजबूरियां हमारे लिए ही होती हैं ..ख़ुशी हुई कि ... एक खुबसूरत आगाज़ है इसतरह का प्रयास.. मुझे उम्मीद है इस जगत से कि आने वाले समय में इसका अतुलनीय स्थान सुरक्षित रहेगा.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो रवीन्द्र प्रभात जी से क्षमा याचना कर लूँ। उन्होंने जोर देकर कार्यक्रम में बुलाया था और मैंने पूरा मन बनाया था कि जरूर पहुँचुंगा, लेकिन ऐन वक्त पर ऐसी पारिवारिक बाधा आ पड़ी कि सब चौपट हो गया। उस समय कुछ ऐसा उलझा कि आज यह पोस्ट पढ़ने के बाद इधर ध्यान जा सका है।
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी को बारम्बार बधाई। निश्चित ही हिंदी ब्लॉगिंग के लिए उनका यह आयोजन बहुत ही उत्साहवर्द्धक है।
मनोज पांडेय जी को यह समझना चाहिए कि साहित्य जगत की तरह हिंदी ब्लॉगिंग में भी सभी प्रकार के मत-मतान्तर के लिए पर्याप्त स्थान रहना चाहिए व इसकी पूरी गुन्जाइश भी है। यहाँ हर किसी को पर्याप्त विस्तार लेने की पूरी छूट है। जिसमें जितना दम हो वह उतना आगे बढ़ सकता है, वह भी बिना किसी दूसरे को ठेले धकेले। यहाँ नकारात्मक हुए बगैर भी अपनी जगह बनायी जा सकती है। बस बिन्दास लिखते रहिए।
अनूप जी ने या अरविन्द जी, आपने अपने लिए जो जगह बनायी है वह बहुत कम लोग कर पाये हैं। आप दोनो की दिशाएँ भले ही आपसी भिड़न्त वाली हों लेकिन इसमें किसी से किसी को अवरोध नहीं है। यह इस माध्यम की सबसे बड़ी शक्ति है। यहाँ गोलबन्दी की कोई जरूरत ही नहीं है। सभी आगे बढ़ सकते हैं। साथ-साथ या अकेले...।
आप लखनऊ आकर बिना बताये चलते बने, यह बात मुझे खल गयी है।
लग रहा है हम सब तो इतिहास जमा हो गये ।
जवाब देंहटाएं@वकौल अनूप शुक्ल
जवाब देंहटाएंमनोज पाण्डेय,
मैंने आपकी बात का समर्थन किया है। प्रशंसा नहीं!
अनूप जी,
अभी आप छेयालिस-संतालिस साल के हैं जिस दिन साठ के होंगे शायद उसी दिन आप समझ पायेंगे कि समर्थन और प्रशंसा में क्या फर्क है ? हमारी सनातन संस्कृति में साठा में पाठा की कहावत प्रचलित है ! वैसे शायद ही कोई ब्लोगर आपसे प्रशंसा की उम्मीद करता होगा, क्योंकि सभी जानते हैं कि प्रशंसा करना आपकी फितरत में शामिल ही नहीं ! कारण जो मेरे समझ में आता है वह यह है कि प्रशंसा वाही कर सकता है जिसका ह्रदय और मन बड़ा हो,व्यक्तित्व विशाल हो और ये तीनों ही आपके पास नहीं है फिर आप कैसे किसी की प्रशंसा कर सकते हैं ?
अरविन्द जी,
मैं तो यही कहूंगा कि आप महाराज अनूप जी को कट्टा संस्कृति का पक्षधर बने रहने दीजिये,वहीँ ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के बगल में चमड़े का कारखाना भी है जिससे प्रशंसा पत्र बनाके कोई न कोई उनके गले में पहना देगा ! जैसी सोच वैसा सम्मान !
रवीन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंआपने दो और ब्लोगर का नाम लेना भूल गए जो आपके कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे ...लीजिये मैं ही बता दे रहा हूँ विजय माथुर और यशवंत माथुर, आपको एक सफल कार्यक्रम के लिए पुन: बधाईयाँ !