संगम की नगरी इलाहाबाद जाना मेरे लिए हमेशा अतीत की पगडंडियों पर चहलकदमी करने जैसा होता है ..यादें यादें बस यादें .जो आज भी तरोताजा और खुशनुमां हैं और हों भी क्यों नहीं यह नगरी मेरे इल्म की मां है ,अल्मा मेटर है.सोच की दशा और दिशा को बदलने में इस नगरी का बड़ा योगदान रहा है.अभी उसी दिन माननीय उच्च न्यायालय में एक विभागीय पैरवी के सिलसिले में वहां गया तो एक बड़ी ख़ास मुलाक़ात से मैं रोमांचित हो उठा.जिन्हें भी उच्च न्यायालयों /सर्वोच्च न्यायालय के परिसर/ खासकर भीतर न्यायालय कक्षों के आस पास जाने का मौका मिला होगा वे वहां की गरिमापूर्ण परिवेश से अभिभूत हुए बिना नहीं रहे होंगें.अगर सम्मान -प्रतिष्ठा/गरिमा को कहीं मूर्तिमान बना देखना हो तो एक बार किसी भी माननीय न्यायमूर्ति के न्यायकक्ष और वहां की कार्यवाही का अवलोकन अवश्य करें.यह जीवन के कुछ बहुत ख़ास और अलग अनुभवों में से एक है -यह शायद हमारे अवचेतन में एक उस मिथकीय धर्मराज /दंडाधिकारी की मौजूदगी के अहसास का स्फुरण भी है जो जीवन और मृत्यु के फैसले किया करता है .....जो धर्मराज है और प्रकारांतर से वही यमराज भी है ....
उस अलौकिकता की अनुभूति के बावजूद भी मैंने न्यायमूर्ति यतीन्द्र सिंह जी से उन्ही के चैंबर में निजी मुलाक़ात का साहस जुटाया और उनके निजी सहायक के पास जाकर मिलने की अर्जी पकड़ा दी -उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे कुछ इस तरह घूरती आँखों से देखा कि मुझे पहली बार अपने मानव प्रजाति का होने पर गंभीर आशंका उत्पन्न हो गयी -मैंने तत्क्षण खुद अपना आत्मावलोकन कर डाला और पाया कि मैं होमो सेपियेंस सेपियेंस ही हूँ,भले ही नस्ल का कुछ अंतर हो गया हो.जब सहायक महोदय अपने प्राणि- निरीक्षण का कार्य निपटा चुके तो मैंने विनम्र बने रहने की दिशा में सारी ऊर्जा लगाते हुए अनुरोध किया कि वे बस माननीय न्यायविद महोदय को यह चिट भर दे दें बस..अगर वे मना करते हैं तो कोई बात नहीं.उन्होंने बड़ी अनिच्छा से कहा कि चिट पर 'परपज' लिखिए मैंने तुरंत अनुपालन किया,लिखा "साईंस फिक्शन इन इंडिया".'आपको न्यायमूर्ति साहब जानते हैं?' "हाँ", मुझे कहना ही पड़ा ....तब कहीं जाकर कुछ अनिश्चय की सी मानसिकता में वे मेरी चिट और कुछ अन्य कागजातों के साथ लेकर न्यायमूर्ति के कक्ष में प्रविष्ट हो गए...
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अगले कुछ पल मुझे युगों से प्रतीत हुए मगर वे बस कुछ पल ही थे....बमुश्किल एक भी मिनट नहीं बीता था कि सहायक ने आकर वह उद्घोषणा कर ही दी जिसका मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था ....जाईये बुलाया है उन्होंने आपको ,और भीतर उनके उपस्थिति स्थान आदि परिप्रेक्ष्य के बारे में यह संक्षिप्त जानकारी भी कि वे निर्धारित चेयर पर नहीं बल्कि पी सी पर बैठे हैं ....लिहाजा मैंने भी इस महत्वपूर्ण सूचना के हिसाब से खुद की मनस्थिति बनाकर कक्ष में घुसा -न्यायमूर्ति महोदय कक्ष में घुसते ही दायीं ओर पी सी पर विराजमान थे..मैंने देखते ही अतिरिक्त शिष्टाचार के साथ दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन किया ....वे उठ खड़े हुए अभिवादन का जवाब वैसे ही हाथजोड़ कर दिया ....
.हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान् और शान्तिनिकेतन के शिक्षक हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने एक जगह लिखा है कि 'व्यक्ति वह महान होता है जिसके संसर्ग में आकर किसी साधारण व्यक्ति को भी अपने महत्व का बोध होने लगे .." उनके साथ बिताये लगभग दस मिनट मुझे खुद को महत्वपूर्ण होने का अनुभव दिलाते रहे ...आश्चर्य मिश्रित आनंद सहसा तब आया जब उन्होंने हिन्दी ब्लागिंग के बारे में कतिपय पृच्छायें कीं और प्रतिवर्ष किसी एक पुरस्कार की स्थापना ,जैसे बेस्ट ब्लॉगर ....पर बल दिया और इसके लिए संस्थागत सहयोग की भी आश्वस्ति दिलाई ...मैंने उनसे अनुरोध किया है कि प्रश्नगत संस्था से मुझसे संपर्क करने को कहें ...साईंस फिक्शन पर वार्ता तो हुई ही ..वे विज्ञान कथाओं के चतुर चितेरे रहे हैं .....अभी अमेजन द्वारा प्रचारित पुस्तक साईंस फिक्शन इन इंडिया में उनका एक लेख है -'साईंस फिक्शन -द पाईड पाईपर आफ साईंस' यह लेख उनकी इस विधा की गहन और सूक्ष्म जानकारियों /पकड़ का द्योतक है ....एक न्यायमूर्ति का उनके कार्यावधि में अधिक समय लेने का दुस्साहस मैं नहीं कर सकता था ..अतः बिना मन के उठ खड़ा हुआ और इसके पहले मैं उनसे विदाई नमस्कार करता उन्होंने खुद हाथ जोड़ दिए ....एक न्यायमूर्ति से इनके निजी कक्ष में न्याय व्यवस्था से सर्वथा इतर विषय पर बात कर इतराते हुए मैं बाहर निकल फिर दुनियादारी में लग गया ....
एक और ख़ास मुलाकात अभी बाकी है .......तनिक धीरज रखिये ...
रोचक. आपका सीना कितना और चौड़ा हुआ होगा इसकी कल्पना कर रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंरुचिकर वार्ता ....
जवाब देंहटाएंआशा है कि इस मुलाकात से ब्लोगिंग को फायदा होगा !
शुभकामनायें आपको !
बहुत ही रोचक प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंआपने ब्लॉगिंग की चिंतन को माननीय न्यायमूर्ति कक्ष में भी ज़ाहिर की,इससे पता चलता है कि किस काया के बने हैं आप ? जो ठान लेते हैं,कर ही डालते हैं चाहे कोई ठिकाने ही लग जाए !
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग को ज़रूर आज भले ही पुरस्कार की नहीं पर न्याय की ज़रुरत है,आज कई लोग इसे मनमानी,मनचाही दिशा में ले जाने को उद्यत हैं.स्वस्थ मनोरंजन और सार्थक लेखन की कमी को शिद्दत से महसूस जाने लगा है,यह अच्छी शुरुआत है !
आपकी 'इलाहाबाद के पथ पर' दूसरी किश्त का धीरज धरे हुए हैं !
'व्यक्ति वह महान होता है जिसके संसर्ग में आकर किसी साधारण व्यक्ति को भी अपने महत्व का बोध होने लगे ..'
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी बात।
यतीन्द्र जी विज्ञान कथा से जुडे हैं, यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। अभी अमेजन पर जानकर उनका लेख पढता हूं।
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मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर..
अच्छा लगा इस मुलाकात का विवरण। विद्वानों से मिलते रहना चाहिये।
जवाब देंहटाएं'व्यक्ति वह महान होता है जिसके संसर्ग में आकर किसी साधारण व्यक्ति को भी अपने महत्व का बोध होने लगे ..'
गहरी बात, गिलहरी भी लंकासेतु बनाने लगे, यह पुरुषोत्तम राम के सान्निध्य का ही प्रभाव है।
फिर पढ़ते-पढ़ते किसी सौम्य ,सुन्दर नगरी की सैर हो गयी. अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंमुबारक डॉ अरविन्द भाई साहब !जीवन में कम ही पल छिन आतें हैं जब महान क्या सलीके से अपने होने का बोध होता है .उसकी वजह बनतें हैं साक्षात्कार कुछ श्रेष्ठ जनों से .जब आपसे डॉ दराल साहब और मीठे सक्सेना साहब से दिल्ली में गत दिनों मिले थे तब हमें भी अपने सही आदमी होने का बोध हुआ था .भले वह खाम ख्याली जीवन का नखलिस्तान रहा हो ऐसे पल दो ही आतें हैं जब हम मन ही मन मुस्कातें हैं .आदाब और एक बार फिर न्यायमूर्ति से अप्रतिम भेंट मुबारक !
जवाब देंहटाएं"व्यक्ति वह महान होता है जिसके संसर्ग में आकर किसी साधारण व्यक्ति को भी अपने महत्व का बोध होने लगे .."
जवाब देंहटाएंऔर इस पर अनुरागजी का गिलहरी द्वारा रामसेतु बनाने का उदाहरण ...सौ प्रतिशत शुद्ध!
"व्यक्ति वह महान होता है जिसके संसर्ग में आकर किसी साधारण व्यक्ति को भी अपने महत्व का बोध होने लगे .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
अरविन्द जी , आपकी मुलाकात और इस पोस्ट से हमें भी कई बातें सीखने को मिली हैं . प्रयास रहेगा , अनुकरण करने का .
जवाब देंहटाएंशानदार मुलाकात की शानदार प्रस्तुति .
सामने वाले को महत्व का अनुभव कराना महानता का गुण है।
जवाब देंहटाएंइलाहाबाद का उच्च न्यायालय हमारे मकान के समीप ही था.. इस शहर का नाम सुनते ही एक "यादों की बारात" सा समां बांध जाता है.
जवाब देंहटाएंएक न्यायमूर्ति से न्यायेतर बात करना सचमुच अच्छी बात है.. किन्तु ध्यान दें इस ब्लॉग जगत में तो हर सफल ब्लोगर (चाहें तो सफल को इनवर्टेड कोमा के अंदर रख सकते हैं) अपने विषय से इतर ही काम कर रहा है!!कितने ही इंजीनियर, वैज्ञानिक और प्रशासनिक सेवक इससे जुड़े हैं, इसमें जुते हैं!!
बहुत ही रोचक प्रस्तुति|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत ही श्रेष्ठ्तम मुलाकात रही ये, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपका संस्मरण पढकर कुछ गणनायें करने को मजबूर हुआ हूं किसी निष्कर्ष तक पहुंचूं तो प्रतिक्रिया दूं !
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ० अरविन्द मिश्र जी माननीय न्यायमूर्ति श्री यतीन्द्र सिंह जी लेखकीय कौशल से आपने जन सामान्य से परिचय कराकर आपने बहुत ही उत्कृष्ट कार्य किया है |आपका बहुत -बहुत आभार
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर
जवाब देंहटाएंगज़ब..! बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबढ़िया और वाकई यादगार प्रसंग,विद्वान न्यायमूर्ति महोदय से मिल कर बहुत खुशी हुई.
जवाब देंहटाएंयतीन्द्र जी को हमारी भी नमस्ते!
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने...बड़े (गुण से) लोगों का संपर्क व्यक्ति में गुरुता भरता है...
प्रेरक और सुखद लगा सब..
कानून के साथ-साथ विज्ञान की बारिकीयों से भी जुड़े व्यक्तित्व के बारे में जान खुशी हुई. अच्छा लगता है ऐसे किसी विशिष्ट व्यक्तित्व से मिलना. मैं खुद भी ऐसे अवसर छोड़ना नहीं चाहता, यदि समक्ष खड़े व्यक्ति को अपनी महानता से आंशिक समझौता करने में ऐतराज न हो. और सौभाग्य से अब तक ऐसे लोग ही अधिक मिले हैं.
जवाब देंहटाएं'व्यक्ति वह महान होता है जिसके संसर्ग में आकर किसी साधारण व्यक्ति को भी अपने महत्व का बोध होने लगे’ > ऐसे वाक्य अनुभव की बीथी में लिये जाते हैं, हजारी जी ने कितने जीवनों को जिया होगा तब मोती आये। शांति-निकेतनी मोती।
जवाब देंहटाएं.
इस मुलाकात से रू-ब-रू कराने के लिये आभार।
धीरज को रोक के रखे हुए हैं. उसे चाय पानी पिलाना पड़े उससे पहले लिखिए. :)
जवाब देंहटाएंहम भी पढ़ बांचके गौरवान्वित हुए .चुनौती माना है मोटापा !अच्छाकदम !हमतो ला परवाह बने हुए हैं ,ज़िन्दगी आराम से बैठने न दे .
जवाब देंहटाएंन्यायमूर्ति से ब्लोगिंग पर चर्चा ... बहुत ही रोचक ... सच कहा उच्च पद और व्यक्तित्व वाले तभी सफल व्यक्ति है जब वो दूसरे को सहज होने दें ...
जवाब देंहटाएंतरकश के द्वारा किये गये आयोजनो पर, न्यास के द्वारा सहयोग किया गया था। यदि हिन्दी में अच्छे विज्ञान या विज्ञान कथा को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ आयोजन होता है तब न्यास को उसमें सहयोग करने में प्रसन्नता होगी।
जवाब देंहटाएंतो.... बेस्ट ब्लागर की हमारी सीट पक्की मानकर चलें! :)
जवाब देंहटाएंधन्य हैं मिश्र जी आप न्याय की मूर्ति से मिल लिए हम तो अभी तक फिल्मों में ही देख पाए हैं |अगली मुलाकात का इंतजार रहेगा ......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विवरण.... आपके ज़रिये हम भी मिल ले रहे हैं....आभार
जवाब देंहटाएं"...सम्पादक said...
जवाब देंहटाएंतरकश के द्वारा किये गये आयोजनो पर, न्यास के द्वारा सहयोग किया गया था। यदि हिन्दी में अच्छे विज्ञान या विज्ञान कथा को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ आयोजन होता है तब न्यास को उसमें सहयोग करने में प्रसन्नता होगी।..."
रचनाकार (http://rachanakar.blogspot.com) पर पहले व्यंग्य लेखन पुरस्कार आयोजन हुआ था जो बेहद सफल रहा था. न्यास के सहयोग से रचनाकार के जरिए विज्ञान कथा लेखन पुरस्कार आयोजन कर हमें हार्दिक प्रसन्नता होगी. इस हेतु कृपया rachanakar@gmail.com पर संपर्क करें.
यतीन्द्र सिंह जी ने हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यन्यायाधीश का पद ग्रहण किया है. उन्हें बधाई व शुभकामनाएं.
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