वे कहने भर के इलाहाबादी हैं, हैं बनारसी,यहीं बनारस में शिक्षा दीक्षा हुयी और अब रोजी रोटी के चक्कर में इलाहाबाद में रम गए हैं ....शिक्षा-दीक्षा के लिहाज से मैं भी इलाहाबाद का शुक्रगुजार हूँ मगर रोजी रोटी का जुगाड़ फिलहाल बनारस में है -इस तरह यह एक रेसिप्रोकल फार्मूले का रिश्ता है जो जयकृष्ण राय तुषार जी से कायम हुआ और अभी जब मैं पिछले दिनों माननीय हाईकोर्ट गया तो इस युवा रचनाकार /ब्लॉगर से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ....जहां ये राज्य विधि अधिकारी के पद को सुशोभित कर रहे हैं ...इनके दो ब्लॉग हैं सुनहरी कलम से और छान्दसिक अनुगायन -इन दोनों ब्लागों पर एक नज़र डालते ही आप समझ जायेगें कि ये पक्के साहित्यिक ब्लॉग हैं और कई नामी गिरामी कवि और कवयित्रियों की रचनाएं वहां आपको रसास्वादन के लिए मिल जायेगीं....
मगर मेरी ब्लॉग- मुलाकात इनसे इनके ब्लॉग पर एक संस्मरण से हुयी थी जिसमें इन्होने मेरी एक विश्वविद्यालयीय सीनिअर और अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राणी शास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर डॉ. अनिता गोपेश जी के विदेश संस्मरण को प्रकाशित किया था-इस संस्मरण के पढने और उस पर मेरे कमेन्ट को भी पढने की सिफारिश कर रहा हूँ ... अगर नारीवाद का मेरा कोई पहला परिचय हुआ था तो इन्ही डॉ. गोपेश जी के व्यक्तित्व से ही जो पिछली सदी के आठवें दशक में रोबीली, एक बिंदास महिला की इमेज लिए हम सभी सहपाठियों से मिली थीं -बड़ी उन्मुक्त विचार की थीं और आज भी हैं ...मैं उनसे तब भी डरता था और आज भी डरता हूँ जबकि मुझे मालूम है मुझे वे बड़ा सम्मान देती हैं बावजूद इसके कि मैं उनका जूनियर हूँ -उस दिन भी जयकृष्ण जी ने उनसे जब मोबाईल पर बात करायी थी तो उनके बातों से उसी स्नेह-सम्मान की अनुभूति हुयी थी-मजे की बात यह कि हम घोर विज्ञान के छात्र होने के नाते उस समय यह नहीं जानते थे कि उनका कार्य व्यवहार एक सच्चे नारीवाद का प्रतिबिम्बन कर रहा था -वह तो ब्लॉग जगत में आकर ही यह मालूम हुआ कि मैडम जी जो भी थीं या अभी भी हैं उसी को एक सच्चा नारीवादी कहते हैं ...उन्हें एक अतिरिक्त सलाम ..मैंने उनसे एक ब्लॉग बनाने का अनुरोध किया है और वे अगर आ गयीं तो पक्का समझिये यहाँ की कई छद्म नारीवादियों की छुट्टी हो जायेगी -सूरत और सीरत में यहाँ उनसा न कोई(उनके ऊपर-लिंकित संस्मरण पृष्ठ पर जाकर खुद देख लीजिये न ) !जयकृष्ण भाई ने मुझसे वादा किया है कि उनका ब्लॉग वे जरुर बनवायेगें -एक ब्लॉगर का वादा रहा यह!
हमीं से रंज ,ज़माने से उसको प्यार तो है
चलो कि रस्मे मोहब्बत पे एतबार तो है
मेरी विजय पे न थीं तालियाँ न दोस्त रहे
मेरी शिकस्त का इन सबको इंतजार तो है
हजार नींद में एक फूल छू गया था हमें
हजार ख़्वाब था लेकिन वो यादगार तो है
गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है
तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है
अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है
हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
तुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है
बहुत बहुत शुभकामनाएं जयकृष्ण जी .....
आपका दिया लिंक http://aikrishnaraitushar.blogspot.com/ "j" का भी मोहताज है :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय अग्रज डॉ० अरविन्द मिश्र जी यह सब मेरा हुनर नहीं बल्कि आपकी महानता है कि आपने अपने से बहुत कनिष्ठ को इतना मान -सम्मान दिया |अभी मुझे बहुत कुछ करना है आपका स्नेह और मार्गदर्शन हमें मिलता रहे बस यही कामना है |
जवाब देंहटाएंसर मई २००९ में नया ज्ञानोदय के अंक जो मंटो पर विशेषांक भी है चुनाव पर पेज न० २१ पर मेरी एक गज़ल छपी एक दिन मैं कोर्ट में था तभी शहरयार साहब का फोन आया और बड़ी शालीनता सेमैं आपकी गज़ल से खुशी भी हूँ और दुखी भी हूँ |पूछने पर उन्होंने बताया कि खुश इसलिए हूँ कि गज़ल बहुत अच्छी है दुखी इसलिए हूँ कि देश की हालत इतनी खराब नहीं है |
जवाब देंहटाएंनए ब्लॉगर का परिचय बढ़िया लगा.इस तरह आपसी मेल-मिलाप हमारी इस ब्लॉग-दुनिया में ज़रूर रंग लाता है. आप उनसे मिल पाए उनका हौसला बढाया ,इससे हमें भी उम्मीद बढ़ी है कि हमरा भी फ़ोटू कहीं और कभी छपेगा ! आपका लेखकीय-कर्म प्रशंसनीय है ! आभार !
जवाब देंहटाएंअरविंद जी, डॉ गोपेश जी की प्रतीक्षा है ब्लॉग पर। तुषार जी को शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबाप रे...! एक डुबकी में कितने मोती बटोर लेते हैं आप..!!
जवाब देंहटाएंहाँ...गज़ल की तारीफ करना तो भूल ही गया। बेहतरीन गज़ल है। तुषार जी को अभी यहीं बधाई, फुर्सत से पढ़ेंगे उनके ब्लॉग भी।
जवाब देंहटाएंसाथ ही बड़े स्तरीय सुधीजनों को भी ढूढ़कर लाते हैं।
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जवाब देंहटाएंजयकृष्ण राय जी को पढता रहा हूँ , बेहतरीन हिंदी साहित्यकार हैं !
उनके दोनों ब्लॉग, हिंदी के बेहतरीन ब्लॉग में से एक हैं !सुनहरी कलम में उनके द्वारा, विद्वान रचनाकारों का परिचय देने का अंदाज़, एक अनूठा कदम रहा है !
इस लेख के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूँ !
तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
जवाब देंहटाएंहमारे दौर में भी एक शहरयार तो है
अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है
वाह वाह ।
जयकृष्ण जी से मिलवाने का बहुत आभार ।
यदि डॉ. गोपेश जी ने ब्लॉग खोला तो अवश्य पढना चाहूंगी ।
जवाब देंहटाएंतुषार जी के बारे में एक बात और है कि आप
जवाब देंहटाएं"सच को सच कहने के साथ साथ झूठ को झूठ कहने वाले व्यक्तित्व के स्वामी है"
आज के चाटुकार जमाने में सच को सच को सभी कह देंगे परन्तु झूठ को झूठ कहना हर किसी के लिए बड़ा मुश्किल है (मेरे लिए भी)
तुषार जी की यह ग़ज़ल उनसे सुन चुका हूँ
आपके ब्लॉग के माध्यम से तुषार जी को पुनः बधाई देता हूँ
सुनहरी कलम में छपने के लिए इनके पास नियमित कवियों के फोन आते हैं परन्तु यदि स्तरीय रचनाकार न हों तो ये रिश्तेदारों और परिचितों को भी स्पष्ट मना कर देते हैं
इनकी इस स्पष्टवादिता की वजह से ही मैं इनका मुरीद बन गया हूँ
निश्चित ही आपने भी यह बात अनुभव की होगी
इलाहाबादी अनुभव साझा करने के लिए धन्यवाद
जयकृष्ण जी से yahan मिलवाने का बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंजयकृष्ण जी और अनीता जी के परिचय के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंदोनों के लिए बहुत शुभकामनायें!
आपको तो पता ही है कि आजकल हम ब्लागजगत में ज़रा बे-ध्यान सा विचंरण कर पा रहे हैं इसके बावजूद राज्य विधि अधिकारी साहब कहीं ना कहीं देखे हुए से लग रहे हैं !
जवाब देंहटाएंशायद किसी ब्लॉग एग्रीगेटर पर या फिर किसी खास चिट्ठे में ?
इस गज़ल की तरह राय साहब भी नेक इंसान निकलें बस यही दुआ है !
बकौल प्रवीण पाण्डेय जी आप "बड़े स्तरीय सुधीजन" ढूंढ कर लाते हैं :)
जवाब देंहटाएंहम तो सुधीजनों को केवल सुधीजन ही मानते आये हैं लेकिन अब सुधीजनों के अन्य स्तरों की कल्पना रोमांचित कर रही है :)
जयकृष्ण जी "तुषार" को पढा है। उन्हें यहाँ देखकर प्रसन्नता हुई। ये मुलाक़ातें यूँ ही चलती रहें। शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंगज़ल के शब्दों से इनके व्यक्तित्व और भावनाओं की भी झलक मिलती है. 'तुषार जी' को शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंडॉ. अनिता गोपेश जी के ब्लॉग की भी प्रतीक्षा रहेगी.
आपने पढवाया तो पता चला कि तुषार जी कितने अच्छे शायर और ग़ज़लकार हैं ।
जवाब देंहटाएंवर्ना अपना प्रथम परिचय तो बड़ा ठहाकेदार रहा था । :)
ओह! डॉ. अनीता गोपेश का मैंने भी बड़ा नाम सुना है, हाँ, जयकृष्ण जी से पहली मुलाक़ात है. आपका आभार इनसे परिचय कराने के लिए. ब्लॉग बाद में देखूँगी, लेकिन यहाँ दी हुयी गज़ल बहुत स्तरीय है.
जवाब देंहटाएंऔर प्रभु, क्षद्म नहीं, छद्म सही शब्द है.
बहुत आभार आपका, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
तुषार जी पढता रहा हूँ उन्हें देखकर प्रसन्नता हुई
जवाब देंहटाएंजयकृष्ण जी से मिलवाने का बहुत आभार ।
तुषार जी पढता रहा हूँ उन्हें देखकर प्रसन्नता हुई
जवाब देंहटाएंजयकृष्ण जी से मिलवाने का बहुत आभार ।
जयकृष्ण राय तुषार जी से परिचय कराने के लिये शुक्रिया। कभी पढा नहीं उन्हें किंतु यहां लिखी उनकी पंक्तियां अच्छी लगीं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शख्स से रूबरू करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंपरिचय कराने के लिये शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंjai baba banaras....
तआरुफ़ के लिए शुक्रिया॥
जवाब देंहटाएं@ Dr. Daral तुषार जी को 'तब' हमने भी हल्के में लिया था,पर मिश्राजी के हिसाब से काफी 'वज़नी' हैं !!
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी ..
जवाब देंहटाएंजयकृष्ण राय जी से परिचय करवाने का शुक्रिया ..
ek achha kavi hi nahi,tushar ek jindadil insan bhi hai,usse judna hum sab ke liye ek nayab ratn ko pane jaisa hai,isliye aapka bhi abhar-vinay
जवाब देंहटाएंbadhiya hai...kabhee hum se bhee mulaakaat kariye guru jee
जवाब देंहटाएंतुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
जवाब देंहटाएंहमारे दौर में भी एक शहरयार तो है....
may i say...j k rai tushar to hai"
pranam.
प्रभावी पोस्ट .तुषार जी को पढ़ना अच्छा लगता है. आपको धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंहमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
जवाब देंहटाएंतुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है
भाई साहब गलती का शिद्दत से एहसास हुआ ,देरसे आपके ब्लॉग पोस्ट पे आना हुआ .कृपया "सदी"शुद्ध रूप लिखलें आपकी नजर से छूट गया है और नामी गिरामी कर लें नमी गिरामी छप गया है .
जै कृष्ण तुषार जी से इस तरह तारुफ्फ़ आपकी कलम से अच्छा लगा .
हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
तुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है
achha lga umda gazal hai ,soch vi achhi hai
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