यह सवाल मैंने मित्रों से पूछा कि क्या ब्लागिंग महज अभिव्यक्ति का एक माध्यम भर है या इसकी कुछ विधागत विशिष्टतायें भी हैं ...अभी भी मुझे संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया है ..इसलिए इस प्रश्न पर विचार मंथन के लिए आप सभी को निमंत्रण ...पहले हम अपनी अल्प समझ को यहाँ प्रस्तुत कर दें ..मीडिया शब्द के उल्लेख से हमारे सामने प्रिंट मीडिया ,ब्राडकास्ट मीडिया ,डिजिटल मीडिया की एक तस्वीर उभरती है....और जब हम विधा की बात करते हैं तो कविता ,कहानी ,नाटक ,निबंध ,रूपक ,साक्षात्कार,समाचार लेखन /वाचन आदि आदि का बोध हो उठता है .... अब हमारे पारम्परिक प्रिंट या ब्राडकास्ट माध्यमों में इन्ही विधाओं की ही परिधि में जन संवाद होता है ...उद्येश्य चाहे मनोरंजन हो या ज्ञानार्जन . अपने इन्ही पारम्परिक माध्यमों को मुख्य मीडिया /मेनस्ट्रीम मीडिया कहा जाता रहा है .अब जिस मीडिया का नया परचम लहराने लगा है वह डिजिटल मीडिया है ....और इस नए माध्यम ने पारम्परिक माध्यम के कान काटने और पर कतरने शुरू कर दिए हैं ..फिर भी इसे वैकल्पिक मीडिया का संबोधन मिला है.
आज सोशल नेटवर्क -फेसबुक ,ट्विटर ,ब्लॉग जगत ,चैट समूह सभी द्रुत और दुतरफा संवाद के माध्यम बन चले है. आपसी विचार विमर्श का स्कोप यहाँ बहुत विकसित हो चला है और दिन ब दिन यह और समर्थ और सशक्त होता जा रहा है क्योकि यह नया मीडिया बेहतर तरीके से प्रौद्योगिकी क्षम है ..एक नया समाज मूर्तमान हो रहा है जहाँ संवाद के मायने ही बदल गए हैं ...जहाँ सम्वाद के नए नियम ,नए शिष्टाचार विकसित हो रहे हैं और जहाँ भौगोलिक सीमा रेखायें मिट चुकी हैं ....१९७७ में जान बर्गर ने वेबलाग शब्द का संबोधन अंतर्जाल पर 'लगभग बिना दमड़ी लगाये, कुछ लिख कर छापने (के पृष्ठों) के लिए' किया ,,,,पीटर मेर्होल्ज़ ने १९९९ में इन्हें ब्लॉग का नाम दे दिया .माना जाता है कि सोशल नेट्वर्किंग भी एक तरह की माईक्रो ब्लागिंग है -मगर फेसबुक ने तो अब अपने यूजरों को बहुत स्पेस उपलब्ध करा दिया है ...अब यह ट्विटर सरीखा ही नहीं है जहां शब्दों पर तगड़ा सेंसर है -मगर हाँ यहाँ मेसेज ही मीडिया बन बैठा है -ट्विटर को लोग 'मेसेज मीडिया' के नाम से भी पुकारने लगे हैं!
ब्लागिंग भी एक अंतर्जालीय मीडिया है जिसके जरिये निजी या दीगर जानकारियाँ ,सन्देश, विचार ,दृष्टिकोण लोगों से साझा किये जा रहे हैं ....यहाँ सब कुछ अपने हाथ में है -'कम खर्च वालानसी' का मामला है ...और चित्र ,वीडियो ,पोडकास्ट सभी सुविधाओं से लैस है ...गावों में भी अब इसकी पहुँच तेजी से बढ़ रही है .....एकल ब्लागों के अलावा अनगिनत सामुदायिक ब्लॉग,विषयाधारित ब्लॉग भी आज वजूद में है ...अभिव्यक्ति का एक पूरा इन्द्रधनुषी साम्राज्य मुखरित हो चला है ..मगर क्या ब्लॉग महज अभिव्यक्ति के माध्यम ही हैं या फिर अपनी अभिव्यक्ति की विशिष्टता के चलते ये एक विधा का भी बोध करा रहे हैं? ...ब्लॉग का मतलब बस पारम्परिक विधाओं को मंच देना भर है या ब्लागिंग की अपनी भी कोई खास खूबी है? ....जैसे ट्विटर पर मेसेज ही मीडिया बन उठा है .....
मजे की बात है कि अंतर्जालीय मीडिया की प्रौद्योगिकीय गति इतनी तीव्र हो चली है कि यहाँ जवाब पहले मिल रहे हैं सवाल बाद में पूछे जा रहे हैं ....मैं तो ब्लॉग को अभिव्यक्ति की एक नयी विधा भी मानता हूँ ..मेरे लिए ब्लॉग कम कहे में अधिक समझना है ,तीव्रतर संवाद की मारकता लिए है ,प्रस्तुति में नूतनता लिए है ,कलेवर में अपूर्व सुन्दरता लिए हैं ...क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति...... दूसरे ब्लागों को लिंक कर एक नयी पद्धति -अर्थगामिता की पहल है .....तो फिर यह एक नवीन विधा क्यों नहीं है -हम क्यों इसे बस अभिव्यक्ति का एक माध्यम कहकर इसकी असीम सम्भावनाओं को खारिज किये दे रहे हैं ....कल्चर कैट की उद्घोषणा उल्लेखनीय है " a poem is a genre and a sonnet is a subgenre; a blog is a genre and a warblog is a subgenre.'
आज फिलहाल इतना ही,आगे आपके विचार एक नयी चर्चा,नयी बहस की भावभूमि तैयार करेगें -यही उम्मीद है!
मेरे ख्याल से ब्लॉग्गिंग की कोई सीमा नहीं.यह हर बंदिश से परे है. इसलिए इसे किसी भी एक रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.यह ऑल इन वन है..यही इसकी खासियत है.
जवाब देंहटाएंसर बहुत ही वैचारिक और उम्दा पोस्ट बधाई |इस बहस का प्रभाव महत्वपूर्ण होगा |आभार
जवाब देंहटाएंवाकई ब्लॉगिंग एक विधा का ही रूप लेती जा रही है, जिसकी अहमियत पारंपरिक मीडिया भी स्वीकर कर चुका है. चाहे नवभारत टाइम्स की तरह पाठकों को अपने ब्लॉग से जोड़ कर या इसके विरोध में अपनी कुंठा निकाल कर. हाँ मगर हमारे यहाँ ब्लॉग अभी भी किसी विषय पर केंद्रित होने की तुलना में फिलहाल अपनी अभिव्यक्ति के लिए ही ज्यादा प्रयुक्त हो रहा है, मगर इसमें सुधार की काफी संभावनाएं भी हैं.
जवाब देंहटाएंमौलिक कोई अपना विचार दे सकने की असमर्थता के चलते मैं शिखा का समर्थन करता हूँ.
जवाब देंहटाएंसबकी अपनी अपनी परिभाषायें हो सकती हैं ....
जवाब देंहटाएंमुझे तो एक व्यक्तिगत डायरी सी लगती है , खलता तब है, जब विपरीत विचार वाले व्यक्तिगत पसंद, नापसंद पर किसी भी हद पर आ जाते हैं !
शुभकामनायें आपको !
ब्लाग पर कविता, कहानी, लेख, ज्ञान-विज्ञान सब कुछ है, फिर इसको विधा मानने का कोई औचित्य नहीं है.
जवाब देंहटाएंकविता, निबंध, हास्य, व्यंग्य,यात्रा, इतिहास, विज्ञान, भाषा, विचार आदि तमाम विषयों के भरमार देखते हुए ब्लॉगिंग की तुलना समुन्दर से करना ठीक रहेगा। समुन्दर जहां पर कि तमाम तरह के झिंगे, पम्फलेट, शार्क....केकड़े, सीप, मोती, तेल, पादप, कवक सब कुछ पाये जाते हैं। अब यह तो मछुआरे पर डिपेंड करता है कि उसके हाथ ब्लॉगिंग का कोई मोती लगता है या केकड़ा प्रजाति का ब्लॉगर :)
जवाब देंहटाएंजो मोती पा जाता है वह और भी गहरे मोती खोजता जाता है फलत: तमाम वैचारिक और लेखकीय क्षमता की श्रीवृद्धि करने में सफल होता है और जिसके हाथ केकड़ा लगता है वह अपने गुटीय केकड़ापंती में ही रह जाता है :)
मेरे विचार से ब्लॉग विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का एक माध्यम है । कविता ,कहानी ,नाटक ,निबंध ,रूपक ,साक्षात्कार,समाचार लेखन /वाचन आदि भी अभिव्यक्ति ही हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि ब्लोगिंग एकरस नहीं है । यहाँ सभी विधाएं देखने पढने को मिल जाती हैं । सब अपनी रूचि अनुसार ही ब्लॉग पढ़ते हैं ।
जवाब देंहटाएंसाथ में कई बार महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलना एक बोनस सा लगता है ।
अंत में यह एक सोशलाइज करने का माध्यम तो है ही ।
अपनी सीमित दृष्टि से मैं तो इसे अभिव्यक्ति के एक माध्यम के रूप में ही देखता रहा हूँ। हाँ, इंटरनैट ने न केवल कार्य करने के तरीकों को नया कलेवर दिया है, उनकी स्थापित क्षमताओं को बढाया है और साथ ही नयी क्षमतायें पैदा की हैं। कुछ हद तक लेखन/प्रकाशन के इस माध्यम में भी कुछ नई खूबियाँ हैं जो पुराने माध्यमों में नहीं थीं। फिर भी है तो एक माध्यम ही।
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग को किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता ...अपनी सहज अभिव्यक्ति के रूप में कोई प्रेम तो कोई नफरत , तो कोई अपनी कुंठा उजागर कर रहा है !
जवाब देंहटाएंयह आत्माभिव्यक्ति के साथ साहित्य की तमाम विधाओं और मिडिया का रोंल भी अदा कर रहा है, ...अंतहीन सीमायें है इसकी !
सतीश पंचम जी की टिप्पणी रोचक और वास्तविक है!
ब्लाग, चौराहे पर रखा सबका अपना अपना ब्लैकबोर्ड भर है... बस्स.
जवाब देंहटाएंमेरी अल्प-बुद्धि सोचती है कि ब्लॉगिंग एक माध्यम भी है और विधा भी.प्रिंट-मीडिया और इलेक्ट्रोनिक-मीडिया की तरह यह एक स्व-नियंत्रित माध्यम है और पारम्परिक कथा,कविता से कहीं आगे नै तरह की विधा भी,जिसमें आप नए और अनूठे प्रतिमान गढ़ सकते हैं !
जवाब देंहटाएंपोस्ट अभिव्यक्ति है, कमेंट अभिव्यक्ति का असर जानने का मीटर। अभिव्यक्ति से एक कदम आगे, जिसके द्वारा ब्लॉगर अपनी अभिव्यक्ति का मुल्यांकन कर सकता है। कुल मिलाकर ब्लॉगिंग मगजमारी की वह नई विधा है जो हम घर बैठे अपने अनुकूल समय में, अपनी मर्जी के अनुसार कर सकते हैं। इसे सार्थक बनाना, लाभ उठाना या व्यर्थ का समय जाया करना सब कुछ स्वयम् ब्लॉगर के ऊपर निर्भर करता है।
जवाब देंहटाएं@ब्लागरान,
जवाब देंहटाएंविभाजित विचार हैं -कोई कह रहा है कि यह विधा भी है तो कोई इस दावे को सिरे
से ही नकार दे रहा है ....यह तो बहस का मुद्दा हो गया अब !
माध्यम भी है अभिव्यक्ति का और विधा भी है। एक समय में किसी विषय का एक पक्ष ही स्थापित हो पाता है। विचार श्रंखला के लिये अभी उपयुक्त नहीं दिख पा रहा है।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar, sanyik evam sambandhit vishya par chintan.....
जवाब देंहटाएंbramhand me har doosra vastu(object)
pahle se juda hota hai.......yse hi
blog/blogger/blogging, apne kisi
sapeksh vastu se alag hai.....
jahan tak iske(blog)sadhan ya shaili
hone ka prashn hai......mere vichar
me "ye naya sadha aur nayi shaili hai"........
pranam.
हर ब्लोग्गर का ब्लॉग उसके लिए कुछ है. किसी के लिए विधा तो किसी के लिए नहीं. मैं अपने ब्लॉग को 'बकवास' विधा के अंतर्गत रखता हूँ :) उसी तरह बाकी लोग कविता, कहानी, कालजयी, बवालजयी टाइप का मानते हैं :)
जवाब देंहटाएंहाँ, डॉ साहेब, हमारे जैसों को भी बक बक करने का मुफ्त का मीडिया मिल गया है.
जवाब देंहटाएं@...मैं तो ब्लॉग को अभिव्यक्ति की एक नयी विधा भी मानता हूँ ..मेरे लिए ब्लॉग कम कहे में अधिक समझना है ,तीव्रतर संवाद की मारकता लिए है ,प्रस्तुति में नूतनता लिए है ,कलेवर में अपूर्व सुन्दरता लिए हैं ...क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति...... दूसरे ब्लागों को लिंक कर एक नयी पद्धति -अर्थगामिता की पहल है .....तो फिर यह एक नवीन विधा क्यों नहीं है -हम क्यों इसे बस अभिव्यक्ति का एक माध्यम कहकर इसकी असीम सम्भावनाओं को खारिज किये दे रहे हैं.
जवाब देंहटाएंसही है आज ब्लागिंग नवीन विधाओं को जन्म दे रही है.अभिव्यक्ति के मामले में यह अब पीछे है.
मुझे तो ब्लाग अपने साथ समय बिताने जैसा लगता है जिसके द्वारा ख़ुद को और अच्छे से समझने में मदद मिलती है ,वरना तो औरों को समझने के प्रयास में ही उम्र तमाम होती है .......
जवाब देंहटाएंब्लाग एक माध्यम भी है, एक विधा भी है और एक आपसी ताल-मेल का साधन भी है। कभी इसे आभासी दुनिया का नाम दिया जाता था; परंतु डॉ.अमर कुमार ने साबित कर दिया कि हम कितना निकट से जुडे हुए हैं, भले ही हम कभी न मिले हों॥
जवाब देंहटाएंBlogging to sarv smaveshak hai!
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति की विधा तो ज़रूर है...पर शायद इसे स्तरीय बना कर रखना मुश्किल है.... कुछ भी कैसा भी लिखा जाये तो स्थिति अज़ब ही होने वाली है या यूँ कहें की है..... बहुत अच्छा और विचारणीय विषय है यह ...इस विचार होना ही चाहिए .....
जवाब देंहटाएंबहुत पहले कभी ब्लॉगिंग को 'मधुशाला' और 'पाकशाला' का नाम दिया था आज सतीशपंचम जी की टिप्पणी दिलचस्प लगी...वैसे मोती अगर शोभा बढ़ाते हैं तो केकड़े बेचारे भी हमारी सेहत के लिए जान गँवा देते हैं...
जवाब देंहटाएंअब आपने पूछा है तो सही ही बताना पडेगा, क्योंकि झूंठ से हमको सख्त नफ़रत है.
जवाब देंहटाएंहमारे हिसाब से ताई से चार लठ्ठ खाने के बाद जो कुंठा उपजती है उससे उबरने का साधन है ब्लागिंग.:)
रामराम.
अभिव्यक्ति का नया माध्यम : ब्लॉग- रविरतलामी के हिसाब से ब्लाग तो अभिव्यक्ति का एक माध्यम ही माना जाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंअब ब्लागिंग के बारे में क्या कहा जाये? लेखन की सभी विधायें इसमें शामिल हैं। क्या इसे अभिव्यक्ति की एक नयी विधा माना जा सकता है? :)
हम ब्लॉग को ब्लॉग ही बनाये रखें और उसे पारम्परिक विधाओं से एक अलग पहचान दें -जैसे ब्लॉगर आज नयी कटेगरी है -कवि,लेखक ,सम्पादक ,निबंधकार से आगे की एक नयी जमात जो अपने कथ्य की विशिष्टता के खातिर जानी जाती है .....बेलौस बिंदास कहने की क्षमता के कारण जो अपना पहचान बना रही है ॥यहाँ पारम्परिक विधाओं की आरोपित,बंधनयुक्त शिष्टता नहीं है बल्कि स्वयंस्फूर्त विचार विनिमय का उल्लास है .....और जो अभी भी ब्लागिंग के इस तेवर/क्षमता को नहीं पहचान पा रहे हैं वे इस पावरफुल माध्यम /विधा का समुचित दोहन नहीं कर पा रहे हैं....वैसे भी जब डायरी लेखन साहित्य की एक स्थापित विधा है तो फिर अंतर्जाल -डायरी लेखन क्यों नहीं?
जवाब देंहटाएंएक स्वतंत्र विधा है ब्लॉग और ब्लोगिंग ,जिसने हर विचारशील प्राणि को एक नै परवाज़ दी है .अपने ही प्रतिमानों के पार जाने की ऊपर और ऊपर उड़ते जाने की ।
सार्थक विमर्श को प्रेरित करती पोस्ट .
कुछ विद्वानों की मानें तो वन संरक्षण का माध्यम है ब्लॉगिंग. वरना लिखास पीड़ा से निजात पाने कितने कागज बर्बाद होते, कितने वृक्ष काटे जाते उन कागजों के लिए!!
जवाब देंहटाएंब्लाग वह प्लेटफ़ार्म प्रदान करता है जो किसी भी अच्छे लेखक को साहित्य जगत से जुड़ने का मौका प्रदान करता है। आपका लेखन फ़िर किसी संपादक की जी हुजुरी और निगाहे करम का मोहतज नही पाठक सीधे आपको पसंद या नापसंद कर सकता है। हां इसमे बाधा आती है कि ब्लाग जगत मे समालोचना का कॊई स्थान नही कमेंट संख्याबल या सक्रियता मात्र प्रदर्शित करते हैं। लेकिन यह लेखक को उसकी कमियों से शायद ही रूबरू कराते हैं आरोप विवाद पैदा करने के लिये ही लगाये जाते हैं स्वस्थ आलोचना कहीम नजर नही आती सो नये फ़ूल और पुराने गुलदस्तों को भी निखारने वाला कोई नही
जवाब देंहटाएंश्री राहुल सिंह जी की बात से सहमति। एक पूरा संसार कैसे विधाओं में बँटे?
जवाब देंहटाएंसोच को विविध आयाम देता पोस्ट..
जवाब देंहटाएं