हम तो गए थे बेटे के एक संस्थान में दाखिले के चक्कर में -मतलब गए तो थे कपास ओटने और अनुभव हो गए अनिर्वचनीय हरि मिलन के ..यह भाग्य कहिये (जो अपुन के मामले में ज़रा दुबला पतला ही रहा है ) या फिर ऋषि पुरुषों का पुण्य प्रताप कि इस बार मेरी रेल यात्रा तो निरापद और निर्विघ्न रही ही( घोर आश्चर्य ..!) , बंगलूरू का यह अल्प प्रवास भी यादगार बन गया .इसका श्रेय बिना लाग लपेट के एक ऋषि -व्यक्तित्व को ही है -प्रवीण पाण्डेय जी को जो इन दिनों कहीं एक और विश्वामित्र की भूमिका में दिख रहे हैं . इस ऋषि -पुरुष का ही प्रताप रहा कि मेरी कोई ट्रेन (संघमित्र सुपर फास्ट ) जीवन में पहली बार निर्धारित समय से पहले प्रस्थान के स्टेशन (मुगलसराय )पर आई और समय के पहले ही गंतव्य (बंगलूरू ) तक पहुँच गयी ....मानो प्रवीण जी पूरी अवधि ट्रेन पर नजर रखे हुए हों ..और वापसी यात्रा भी एक पुस्तकीय सटीकता लिए इसी ट्रेन से संपन्न हुई ! इसे आप क्या कहेगें -महज एक संयोग? या फिर एक ऋषि का पुण्य प्रताप ? हम बंगलौर स्टेशन के ही माईलस्टोन रेल यात्री विश्राम गृह में रुके ,सौजन्य प्रवीण जी का ही -जब कोई ब्लॉगर ही हो रेल -कोतवाल तो फिर चिंता काहें की ....और फिर आई वह शाम -१० मई ,१० की शाम जो बंगलूरू के एक ब्लॉगर मीट के नाम सुनहरे यादगार का पल सजों गयी ....
चाय की प्याली और ब्लागिंग का तूफ़ान
प्रवीण जी के चित्रों में उनकी आखों की चमक मन में गहरे उतरती है ..बंगलूरू जाने की संभावना बनते ही यह संकल्प पक्का हो गया कि मन को संस्पर्शित करने वाली आँखों वाले इस ब्लॉगर से जरूर मिलना है ...बंगलूरू का कपास ओटना जैसे ही पूरा हुआ मैंने प्रवीण जी को सूचित किया ..ठीक पांच बजे उनकी कार आ गयी हमें लेने -और अगले ही कुछ पलों में हम उनके आफिस में पहुंच गए ...बड़े अफसर का बड़ा आफिस --इहाँ कहाँ ब्लॉगर का वासा ? मेरी चोर दृष्टि यही भाप रही थी ..मैंने विजिटिंग कार्ड चपरासी को थमाया ..जो ब्लॉगर के लिए नहीं बल्कि एक अफसर को इम्प्रेस करने के लिए टेलर मेड है मगर मानों वहां एक ब्लॉगर ही पलक पावडे बिछाए राह तक रहा था ...प्रवीण जी कुछ ऐसे लपक कर मिले कि रंभाती गाय का अपने बछड़े से मिलन या अपने नाटी इमली के भरत मिलाप की याद हो आई ....हम सहमे सकुचाये ही रहे ...थोडा सहज और थोडा असहज सा , एक आला अफसर और एक ब्लॉगर का फर्क भापते रहे ...बहुत शीघ्र ही असहजता की दीवारे ढह गयीं ..और दो ब्लॉगर मुखातिब हो गए ....
ब्लॉगर प्रवीण जी का छोटा,प्यारा परिवार
आफीसर के कक्ष और वहां की आबो हवा में तो अफसरी थी ही ..जो नाश्ते पानी के रूप में भी दिखी ..जोरदार नाश्ते के बाद हम जल्दी ही ब्लॉगर प्रवीण जी के घर में सुशोभित होने चल पड़े ....दरवाजे पर पद -पनहियाँ उतारी गयीं ...कोई स्पष्टीकरण की दरकार नहीं थी मगर प्रवीण जी ने इस शिष्टाचार के बारे में विनम्रता के साथ कुछ बताया भी ..और यह तो एक अच्छी सी शिष्ट परम्परा है -हायिजिन के नाते भी....घर में बच्चे दौड़े आये पापा से मिलने ...देवला और पृथु ....और ब्लॉगर की प्रेरणा ...प्रशस्त लेखनी की अजस्र ऊर्जा -स्रोत श्रीमती श्रद्धा पांडे जी भी ....अरे यहाँ पापा के साथ दो जन और ? पृथु तो अपनी बाल सुलभ कुतूहल रोक नहीं पाए और भोलेपन से पूछ ही बैठे ,आप लोग रात में यही रुकेगें क्या ? एक पल तो हम असहज से हो उठे पर अगले ही पल ठठा कर हँसे ....प्रवीण जी ने भी ठिठोली की ..हाँ बेटे ये तुम्हारे कमरे में ही रुकेंगे .....सशंकित पृथु तो खिसक लिए मगर देवला हमारा सूक्ष्म बाल सुलभ आकलन करती रहीं -और जब आश्वस्त हो गयीं तो अपना आर्ट बुक लाईं हमारे निरीक्षण के लिए और अपनी गुडिया भी मिलाने लाईं जो उनकी ही तरह भोली भाली क्यूट सी सुन्दर थी ....फिर दो ब्लॉगर मशगूल हो गए अपनी चर्चाओं में ....
गुजरी खूब जब मिल बैठे ब्लॉगर दो
मुझे सहसा ही आभास हुआ कि श्रद्धा जी भी आ गयीं थीं ब्लागरों की बातों को सुनने और फिर जल्दी ही सक्रिय भागेदारी भी हो गयी उनकी हमारी चर्चाओं में ..यह मेरे लिए एक अलग अनुभव सा था ..सामान्यतः ब्लॉगर पुरुषों की सहचरियां ब्लॉग चर्चाओं से दूर रहती हैं और कहीं कहीं तो अलेर्जिक भी ....मगर यहाँ तो आलम ही दूसरा था ...प्रवीण जी को यह स्वीकारोक्ति करने में देर नहीं लगी कि ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग पर बुधवासरीय उनकी पोस्टों की पहली पाठक वही हैं और बिना उनके अनुमोदन के कोई भी पोस्ट प्रकाशित नहीं होती ...यह हुई न कोई बात ..मैंने श्रद्धा जी को नारी समूह से अलग विशिष्टता प्रदान करती इस खूबी के लिए तुरंत बधाई देने का मौका नहीं गवाया! जो पति की ब्लागरी में सहयोग करे ऐसी श्रेष्ठ नारियां कितनी कम हैं न इस संसार में .....
प्रवीण जी के बारे में हमने तय पाया कि उनका हम ब्लाग जन अब तक महज "टिप ऑफ़ आईस बर्ग " जैसा ही परिचय प्राप्त कर पाए हैं ..एक आत्ममुग्ध ब्लॉगर ने अभी कहीं कमेन्ट किया कि ' प्रवीण जी आप कवितायेँ भी अच्छी लिखने लगे हैं " अब उन्हें क्या पता कि प्रवीण जी एक पक्के कवि और जन्मजात कवि ह्रदय दोनों हैं .....उनकी अब तक की २०० से ऊपर की कवितायें एक संकलन के प्रकाशन का बाट जोह रही हैं ,,मगर विनम्रता ऐसी कि उन्हें लगता है कि अभी संकलन के योग्य उनकी कवितायें नहीं हुईं .....मैंने उनसे जिद कर उनकी भीष्म कविता का सस्वर पाठ सुना .....कोई भी एक नजर में देख सुन सकता है कि ऐसी भाषा ,भाव और शिल्प की रचना नौसिखियेपन की देन नहीं हो सकती ....प्रवीण जी ब्लागिंग की तीव्र और तीव्रतर होती प्रोद्योगिकी के भी साथ हैं ...इनस्क्रिप्ट आफलाइन हिन्दी टाईपिंग उनका प्रिय शगल है -उनका मोबाईल माइक्रोसाफ्ट वर्जन के सार्थ हिन्दीयुक्त है और लैपटाप और मोबाईल का कंटेंट -विनिमय सहजता से होता है ...प्रवीण जी बहुत अच्छा गाते हैं -बिलकुल किशोर दा की आवाज ...मैंने उनके गानों की साउंड ट्रैक पर इनका गायन सुना -मंत्रमुग्ध हुआ ....कितनो की तो छुट्टी कर सकते हैं महाशय ....मगर विनम्रता भी आखिर कोई चीज होती है जो इस दंपत्ति में कूट कूट कर भरी है ....श्रद्धा जी रसायन शास्त्र में पोस्ट ग्रेजुयेट हैं और उनकी लैंडस्केपिंग में बड़ी रूचि है ..मुझसे एक आदर्श लैंडस्केपिंग प्लान में मछली के तालाब की जगह निर्ध्रारण और उसकी उपयोगिता पर जब उन्होंने चर्चा शुरू की तो लगा जैसे मैं एक विषयवस्तु विशेषग्य से बात कर रहा होऊँ -क्योंकि मुझे खुद एक विषय विशेषज्ञ की भाषा शब्दावली अपनानी पडी थी ...बाद मे उन्होंने बताया कि लैंडस्केपिंग मे उनकी रूचि महज एक अमेच्योर की ही है और अपने झासी प्रवास के दौरान उन्होंने कुछ ऐसे प्रयास किये थे... मैंने उनसे आग्रह किया है कि वे भी ब्लागिंग का श्रीगणेश करें और मुझे पूरा विश्वास है कि वे निराश नहीं करेगीं ....मैंने उन्हें एक अप्रतिम प्रतिभा के सहचर का साथ मिलने के सौभाग्य पर दुबारा बधायी दी ....
मैं आरक्षण / टिकट विंडो तक को देख तक नहीं सका वहां तक पहुँचने की बात तो दूर थी ....ये सारे कटु अनुभव दूर हो गए उस यादगार शाम के चलते जिसे प्रवीण जी ने हमारे नाम कर दिया था ....बंगलूरू की यह जीवंत शाम कभी न भूल पायेगें हम .....बतरस और सुस्वादु भोजन ...मनचाहे मित्र /ब्लॉगर ..सज्जन सत्संग कितना दुर्लभ है न यह सब आज की इस उत्तरोत्तर स्वार्थी और आत्मकेंद्रित होती दुनिया में .....हम तो धन्य हुए .... गुडिया और खिलौने के साथ देवला
मेरा यह तीसरा बंगलौर भ्रमण था . इसके बंगलूरू होने के पहले दो लम्बे अंतरालों पर मैं एक बार १९७९ और फिर १९९३ में इस खूबसूरत शहर में आया था ...लेकिन तब के और अब के बंगलोर में बहुत बड़ा अंतर है -अब यह शहर जनसंख्या के भार से कराहता सा लगा -हर जगह लम्बी लम्बी लाईने ,लोगों की उमड़ती भीड़ और साफ़ सफाई भी वैसी नही-साफ़ सफाई की मामले में समीपवर्ती मैसूर बाजी मार ले गया है ...बंगलौर रेलवे स्टेशनके यात्री जन सैलाब को देखकर तो मैं स्तंभित रह गया
प्रवीण जी की कविता 'भीष्म 'उन्ही के स्वरों मे -
...बहुत सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया प्रवीण जी और उनके परिवार से आपके मिलन का वृतांत पढकर.
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी की कविता सुनी...अद्भुत!! आशा करता हूँ शीघ्र उनका संकलन आये और हमें ससम्मान फ्री कॉपी मय हस्ताक्षर मिले.
उम्मीद का दामन थामें...सादर
समीर लाल
आप काफी दिनो से अंतर्ध्यान थे सो उम्मीद यही थी कि संस्मरण रिपोर्ट के साथ वापसी होगी ! पान्डेय परिवार के बारे मे जानकर अच्छा लगा ...वैसे बच्चे को आशंकाओ मे डालकर आप दोनो ब्लागर्स ने उचित नहीं किया बालमन आपकी रवानगी के बाद ही चैन पाया होगा !
जवाब देंहटाएंबंगलूरु प्रवास सुखद और सफल रहा जानकर प्रसन्नता हुई किंतु एक शिकायत भी है कि आप अधिकारी और बड्के ब्लागर्स से भेंट मिलाप के सिलसिले के दरम्यान अनाधिकारी*(*गिरिजेश जी से नज़र बचाकर लिख रहा हूँ वर्ना वे शब्द सुधार देंगे ) और छुटके ब्लागर्स से सौजन्य भेंट का अवसर कब निकालेंगे :)
...तो आँखों पर आप भी नज़र रखते हैं :)
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी का व्यक्तित्त्व ऐसा है जिससे कई सीखें लेनी चाहिए। प्रतिभा का प्रकाश कहीं छिपता है भला ? प्रवीण जी अब मेरे ब्लॉग पर नियमित से हो चले हैं और इनकी टिप्पणियाँ अनूठी होती हैं। इस विभूति के व्यक्तित्त्व के इतने पहलुओं से परिचय कराने के लिए आभार। .. छिपे रुस्तम ..
IME का उपयोग मैं भी करता हूँ ऑफलाइन टाइपिंग के लिए। बहुत सुविधाजनक है।
@ बिना उनके अनुमोदन के कोई भी पोस्ट प्रकाशित नहीं होती - सेंसर ? यह ठीक नहीं है ! :)...
... यहाँ भी नारी प्रकरण ?
@ प्रवीण जी आप कवितायेँ भी अच्छी लिखने लगे हैं - इस आत्ममुग्ध को ढूढ़ता हूँ ;)
___________________________
अनिर्वचनीय - अनिवर्चनीय
निर्ध्रारण - निर्धारण
संघमित्र - संघमित्रा
बंगलूरू - बेंगळुरू
माईल - माइल
आफीसर - अफसर या ऑफिसर
आफलाइन - ऑफलाइन
प्रोद्योगिकी - प्रौद्योगिकी
टाईपिंग - टाइपिंग
विशेषग्य - विशेषज्ञ
अंत में 'सुस्वादु भोजन' को मैंने नोट कर लिया है :)
श्रद्धा जी से मिल कर अच्छा लगा। उन्हें अपना ब्लॉग प्रारम्भ करना चाहिए। लैण्डस्केपिंग पर जानने को मिलेगा।
जवाब देंहटाएंआप की यह पोस्ट प्रवीण जी की कविता 'भीष्म' के उन्हीं के स्वरों में पाठ के लिए सदैव स्मरण रहेगी।
जवाब देंहटाएंमन को छू लेने वाली पोस्ट/ ब्लॉग को सही मायने में सही दिशा देने की सार्थक कोशिस ब्लॉग ऐसे ही सोच से आगे बढेगा /
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रवीण जी से फोन पर बात करने का सौभाग्य मुझे भी मिला है। उसी के आधार पर मैं आपकी बातों की गवाही दे सकता हूँ। सरलता, सौम्यता, और शिष्टाचार उनके व्यक्तित्व और लेखन दोनो में झलकता है। आपने उनके और उनके परिवार से बहुर सुन्दर ढंग से परिचित कराया। अतः हमारी ओर से आभार ज्ञापन।
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया!
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी सच में चमत्कृत करने वाले व्यक्तित्व के स्वामी हैं.
पता नहीं उनसे मिलना कब होगा :*(
बहुत बढ़िया रहा ये संस्मरण
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा। बहुत सही कहा
जवाब देंहटाएंमनचाहे मित्र /ब्लॉगर ..सज्जन सत्संग कितना दुर्लभ है न यह सब आज की इस उत्तरोत्तर स्वार्थी और आत्मकेंद्रित होती दुनिया में
bahoot khoob!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी के मुस्कुराते चहरे से नूर टपकता है और विनम्रता उनकी आँखों से ...उनके लेख उनकी विद्वता के परिचायक होते हैं. उनके और उनके परिवार के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएं@ "सामान्यतः ब्लॉगर पुरुषों की सहचरियां ब्लॉग चर्चाओं से दूर रहती हैं और कहीं कहीं तो अलेर्जिक भी ....मगर यहाँ तो आलम ही दूसरा था ..." इस बात से जहां एक और श्रद्धा जी के व्यक्तित्त्व का परिचय प्राप्त होता है वहीं दूसरी और प्रवीण जी के भी...क्योंकि वे स्वयं अपने ब्लोगिंग के अनुभव उनसे बाँटते होंगे तभी उनकी भी रूचि बनी रहती होगी.
आपकी लेखनशैली इस पोस्ट में बहुत ही रोचक और जीवंत लगी, विशेषकर बालसुलभ चेष्टाओं के वर्णन में.
@ गिरिजेश जी ,सादर --- बाकी सभी शब्द तो आपने सही सुधारे हैं पर "अनिर्वचनीय" ही सही शब्द है, न कि "अनिवर्चनीय" .
My best wishes to Praveen ji and his family.
जवाब देंहटाएंNice post !
Regards,
बहुत ही सुन्दर वर्णन था और एक साँस में पढ़ डाला । सच में विश्वास ही नहीं होता कि आप मुझ जैसे साधारण को इतने रुचिकर ढंग से प्रस्तुत कर देंगे । आपकी लेखनी को निश्चय ही कोई महत् प्रश्रय मिला हुआ है । श्रद्धाजी के कुछ सम्बन्धी आज सुबह आये और पोस्ट पढ़कर भावातिरेक में पहुँच गये । जो जादू आपके लेख ने कर दिया वह कदाचित मेरी कई दिनों की आवाभगत भी न कर पाती ।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह मेरे लिये जो उच्च स्तर निर्धारित कर के गया है उसको प्राप्त करने का प्रयास अनवरत रहेगा ।
सादर
प्रवीण
अरे वाह! बडा प्यारा लगा प्रवीण जी से आपकी मुलाकात के बारे मे पढना.. उनकी ’भीष्म’ कविता मेरी वन ओफ़ द फ़ेवरिट मे से है.. उनकी आवाज मे सुनकर तो जैसे आनन्द आ गया.. :)
जवाब देंहटाएंपृथु और देवला की बातो से दिल बाग बाग हो गया.. :) प्रवीण जी ने दोनो की एक शरारती तस्वीर अपनी एक पोस्ट मे रखी थी..
अच्छा रहा इस मीट के बारे मे पढना..
भीष्म तुम निर्णय सुनाओ…
जवाब देंहटाएंकविता जितनी अच्छी लगी उतनी ही उसका पाठ भी।
प्रवीण जी को अब तक जितना भी पढ़ा है उसके आधार पर कह सकता हूं कि उन्हें अपना ब्लॉग शुरु करना ही चाहिए।
शुक्रिया उनसे सपरिवार इस तरह मिलाने का।
वाह! बहुत खूब वर्णन!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मुक्ति जी। संस्कृत सन्धि के नियमों की उपेक्षा कर अपने ग़लत उच्चारण पर भरोसा करने से ऐसा हुआ । आप ने एक साथ दो सुधार कर दिए :)
जवाब देंहटाएं@ अली जी
अनधिकारी होना चाहिए ;) वैसे यह उस अर्थ को सम्प्रेषित नहीं कर पाता जो आप कहना चाह रहे हैं।
मुक्ति जी अपनी राय बताएँ।
अरे, बेंगलुरु हो आये!
जवाब देंहटाएंचलिए आपकी इस यात्रा का फायदा यह हुआ कि इसी बहाने प्रवीण जी के बारे में इतना कुछ जानने को मिल गया। आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छा तभी तो हम कहें कि आप गायब कहाँ हो गयें , बढ़िया लगा मुलाकात विवरण ।
जवाब देंहटाएंप्रवीणजी की स्माइल वाला पोज क्लासिक लगता है... उनके कॉलेज मित्रों की इस पर टिपण्णी कहीं से मिले तो. हा फोटो में वही स्माइल. यूँ ही उत्सुकता है :)
जवाब देंहटाएंबाकी कुछ ब्लोग्गर्स हैं जिनकी पोस्ट पसंद आती ही है... अपनी सी बात लगती है. प्रवीणजी उनमें से एक हैं. सुखद रहा उनके बारे में जानना.
एक ठो निम्बू मिर्ची लटका दीजिये इस पोस्ट पर नजर ना लगे किसी की :)
प्रवीण जी और श्रद्धा जी के बारे में जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई।
जवाब देंहटाएंYakeen janiye, aapne isi bahane Praveen ji ka mureed bana diya. Unki baaten aur milansarita ka jawab nahee. Haan, kavita bhi jordar hai.
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉगर भेंटवार्ता के बारे में जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। चलिए इसी बहाने यह भी पता चल गया कि प्रवीण जी इतने मिलनसार व्यक्ति हैं।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी!
जवाब देंहटाएंनमस्कार। आप को बहुत-बहुत धन्यवाद, कृतज्ञ हूँ। जब अपने ही किसी की तारीफ़ सुनने को मिले, वह भी मुक्तकण्ठ से - और बिना किसी अन्यथा उद्देश्य के - तो बहुत अच्छा लगता है। आपकी सशक्त लेखनी से सहजता के साथ सजीव वर्णन ने हमें भी उन क्षणों का जीवन्त सहभागी ही बना लिया।
प्रवीण जी के बारे में छोटी सी मुलाक़ात में आपने जितना जाना, काफ़ी है।
एक बात मैं भी जोड़ना चाहूँगा, जो छोटी भेंट में जान पाना संभव नहीं है। प्रवीण ऐसे चरित्र के धनी व्यक्तित्व के स्वामी हैं, जो मूल्यों से समझौता नहीं करते, उसके बदले "जो हो सो हो"।
कालिदास ने इन्हीं के लिए कहा था जैसे - "वज्रादपि कठोराणि, मृदूनि कुसुमादपि"
आभार…
@हिमांशु जी,
जवाब देंहटाएंउनके लिए ऋषि शब्द इसलिए ही तो सरस्वती जी प्रेरणा से सहज ही निकल पडा -मैं तो खुद ही अपना लिखा पढ़ रहा हूँ!
बहुत सुंदर विवरण लगा, चित्र भी मन्मोहक ओर प्रवीण जी के बारे आप ने बहुत अच्छा लिखा, कभी मोका मिला तो हम भी मिलेगे.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
प्रवीण जी और उनके परिवार से परिचय कराने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा ये संस्मरण,प्रवीण जी के बारे में और जान कर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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वाकई आनन्द आ गया प्रवीण जी और उनके परिवार से आपके मिलन का वृतांत पढकर, कविता पढ़ चुका हूँ और काफी लम्बी टीप भी दी थी उस पर, लेखक के स्वर में उसे सुनना अच्छा लगा ।
आभार!
प्रवीण जी के परिवार के बारे में इतनी जानकारी एक साथ। आप तो सचमुच धन्यवाद के पात्र हैं। और अब तो आपसे ईर्ष्या भी हो रही है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक संस्मरण....प्रवीण जी,श्रद्धा जी और खासकर उनके बच्चों की तस्वीरें और उनसे मुलाक़ात के विवरण के लिए शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंप्रवीन जी का परिचय पढ्कर मन नहीं भरा। लगता है कुछ छूट गया है, फिर भी आप बधाई के फत्र तो हैं ही।
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण है। बहुतै बढिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर! सच कहा आपने...आजकल कहाँ मिलते हैं ऐसे लोग. मेरे एक करीबी रिश्तेदार, जो की रेलवे में उच्च पद पर कार्यरत हैं, बहुत ही अपमानजनक व्यवहार किया था! माँ भी साथ में थीं....बहुत तकलीफ हुई थी. तुरंत उनके घर से उठ कर चले आये थे हमलोग....
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी निस्संदेह एक अच्छे लेखक /कवि हैं ....(डरती हूँ आजकल तारीफ़ करने में ...भगवान् बुरी नजरों से बचाए ..) ...एक अच्छे इंसान भी हैं ...उनके स्वयम के लेखन अलावा आपके दिए परिचय से भी जाना ...
जवाब देंहटाएं@ जो पति की ब्लागरी में सहयोग करे ऐसी श्रेष्ठ नारियां कितनी कम हैं न इस संसार में .....
ह्म्म्म....उनके पति को धन्यवाद देना चाहिए जो ब्लोगरी में अपनी पत्नी के सहयोग का मान करते हैं और उसे व्यक्त भी करते हैं ...ऐसे पति भी तो कम ही होते हैं ना ....
@एक अप्रतिम प्रतिभा के सहचर का साथ मिलने के सौभाग्य पर दुबारा बधायी दी...
श्रद्धा जी पति के साथ और सहयोग करने के अलावा प्रतिभावान भी है ....बधाई के पात्र दोनों ही हैं ...
प्रवीणजी की कविता के लिए बहुत आभार ....!!
बंगलौर के कब्बन पार्क का मछलीघर एक दर्शनीय स्थल था ..अब है या नहीं ,पता नहीं ...इसका जिक्र नही किया आपने ....
जवाब देंहटाएंअच्छी संतुलित सार्थक सुन्दर शब्दों की इस प्रविष्टि के लिए बहुत आभार एवं बधाई ...!!
@कुछ ही नहीं बहुत कुछ छूटा है विनोद जी ! ब्लॉग पोस्ट और वैयक्तिक सामर्थ्य की सीमाएं भी तो होती हैं न !
जवाब देंहटाएं@स्तुति ऐसे तो ढेरों हैं ,मगर मैं तो उनका भी ऋणी हूँ ,वही तो प्रवीण का फर्क और शिद्दत से कराते हैं !
जवाब देंहटाएं@गिरिजेश जी ,
जवाब देंहटाएंकिसी ने मेरी आँखों पर नजर रखा तभी से मैं भी आँखों का मुरीद हुआ -कितनी जानदार होती हैं न आँखें ?
ब्लोगर होने का यह भी एक सार्थक उपयोग है । प्रवीण जी से मुलाकात का विवरण पढ़कर रेगिस्तान में ओअसिस देखने जैसा लग रहा है।
जवाब देंहटाएंपंडितजी यह वृतांत बहुत ही आनंदायी रहा। प्यारी बिटिया देवला खूब भाई। श्रद्धाजी और प्रवीणजी की खू़बियों से रूबरू होना अच्छा लगा जी। भीष्म कविता वाक़ई सुन्दर है और उन्होंने पढ़ी भी उम्दा। कौन कहता साहित्य मर चला है, उसने तो बस कलेवर बदला है।
जवाब देंहटाएंनिःसन्देह प्रवीण जी के स्वर में उनकी महनीय़ कविता भीष्म... का पाठ इस प्रविष्टि को स्थायी महत्व देता है !
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचनाशीलता के समर्थ व्यक्तित्व से यह मिलन रोचक रहा होगा !
प्रविष्टि का आभार !
प्रवीन जी के परिवार से मिल कर अच्छा लगा।
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