शनिवार, 1 मई 2010

मिलन के क्षण!

मिलन- विछोह ,पीड़ा  -आनंद ,निकटता  और दूरी की पारस्परिक विपरीत अनुभूतियाँ तो आनी जानी रहती हैं इस फानी जीवन में ..एक कब गयी और दूसरी कब आई इसका भी क्या लेखाजोखा रखा जाय ..बस यही समझ लीजिये कि अगर इन जोड़ों में से कोई एक साथ है तो दूसरा भी ताक लगाये बस आ पहुचने को तैयार है ..इसलिए महापुरुषों ने मनुष्य को हर स्थिति में उदासीन बने रहने के लिए निरंतर मानसिक अभ्यास करने की ताकीद की है ..सुख दुखे समा कृत्वा लाभालाभौ जयाजयः ..इन् पर हमारा वश नहीं है ...हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ .....दशकों से मैं इस प्रशिक्षण में पूरे आत्मानुशासन से लगने की कोशिश में लगा हूँ -पर  सफलता अब भी दूर लगती है -आज लम्बे समय बाद दिल्ली  से बेटी का  आगमन और आत्मीय डॉ शिवेद्र दत्त शुक्ल का  अमेरिका से आना और उनसे मिलने के क्षणों की  ऐसी ही  अनुभूतियाँ हुई हैं  ..आज मेरी कार्यालयींन   व्यस्तता भी पूरे चरम पर रही है ..मगर समय का यथा संभव यथेष्ट प्रबंध करके बेटी को स्टेशन से रिसीव करना और फिर आज ही कुछ घंटो  के अन्तराल से घर पर आये अपने बड़े धर्मभ्राता (साले ) से मिलने का सुख लाभ हुआ! 

 मिलन के क्षण ...मैं ,डॉ. शिवेंद्र शुक्ल  , श्रीमती आशा  शुक्ला ,श्रीमती संध्या मिश्रा ,पीछे प्रियेषा और कौस्तुभ 
डॉ .शिवेंद्र दत्त शुक्ल जी सपरिवार घर पर पधारे ...वे एक वी वी आई पी हैं .....प्रखर मेधा के धनी ...बी एच यू के गोल्ड मेडेलिस्ट और लीवरपूल विश्वविद्यालय से डाक्टरेट और इन दिनों मिसौरी   विश्वविद्यालय  अमेरिका में मेडिकल फार्माकोलोजी और फिजियालोजी में प्रोफ़ेसर और एक समर्पित शोधार्थी .....साथ में उनकी पत्नी और भाभी श्रीमती आशा शुक्ल भी आयीं ..हमने साथ में क्वालिटी क्षण जिए ..पूरे दो घंटे -१२ बजे  से २ बजे तक हाहा ठीठी हुई -अमेरिका ,मनरेगा ,अवतार (फिल्म ) ईजोफिजोजोकुल ज्वालामुखी से ब्रिटेन में कुहराम और हवाई आवागमन की बाधाओं आदि विषयों पर चर्चा होती रही ...हम सब बहुत आनंदित  हुए ...फिर वे अपने पैतृक निवास मिर्जापुर चले गए ...अभी भारत प्रवास १८ मई तक है ....इस बीच पत्नी का मायका भी जाना हो ही जायेगा --मायका मिलन पर तो एक अलग पोस्ट की गुंजायश है ...
                                                फोटो सेशन में एक पोज यह भी ....

'अज्ञेय ; जैसे विचारक और कवि ने क्षणवाद की बहुत सिफारिश की है -मनुष्य दरअसल क्षणों में जीता है ...क्षणों की सघनता में  जीता है -इसलिए कहा जाता है कि मिलन की घडी में  समय की लम्बाई नहीं अनुभूतियों की गहनता ज्यादा मायने रखती है ....मुझे भी लगता तो ऐसा ही है मगर क्या भारतीय मनीषा इस क्षणवाद के समर्थन में रही है -यहाँ तो लोग जीवन के बाद भी जीवन के मुन्तजिर हैं -इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में मिलन की चाह रखते हैं ...क्षण में ही नहीं समय की चिरन्तनता -वंश परम्परा और अपनी सुकीर्ति काया में  मृत्य के उपरान्त भी बने रहने की तमन्ना रखते हैं -एक नहीं चौरासी लाख योनिओं में भ्रमण का खाका खीचे बैठे हैं ....यहाँ क्षण भर को जी लेने के बाद निर्वाण की चाह किसे हैं ? बहरहाल आप कुछ चित्रों को देखें और इन सवालों पर भी गौर करें !

21 टिप्‍पणियां:

  1. मिलन की घडी में समय की लम्बाई नहीं अनुभूतियों की गहनता ज्यादा मायने रखती है ...

    बहुत सही कहा मिस्र जी । जो पल ख़ुशी प्रदान करें , उन्हें समेत लेना चाहिए । फिर बाद में उनकी यादों के सहारे भी बहुत सकून मिलता है।

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  2. बहुत ही सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है! बहुत अच्छी तस्वीर है! मिलन के कुछ वक़्त का समय हमारे पूरे जीवनभर यादगार बना रहता है और हम उन पलों को याद करके ख़ुशी से जीते हैं!

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  3. आप न जाने कैसे अपनी कार्यालयीन व्यस्तता में उलझे रहे। अपना काम तो बंद हो गया होता। आखिर सारी खुदाई एक तरफ ......

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  4. मिश्रा जी आप का लेख पढ कर बहुत कुछ याद आ गया, हम भी जब भारत आते है तो बहुत सी अच्छी, बुरी यादे साथ ले कर आते है, ओर फ़िर उन्ही यादो को खोजने दोवारा भारत आते है. धन्यवाद

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  5. अज्ञेय की ये बात मुझे बहुत अच्‍छी लगती है- मिलन की घडी में समय की लम्बाई नहीं अनुभूतियों की गहनता ज्यादा मायने रखती है ...
    उनकी रचनाऍं भी काफी पसंद आती हैं- शेखर, अपने-अपने अजनबी।
    आपने इस क्षण का आनंद तो लि‍या ही।

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  6. अपनों से मिलने का आनंद ही कुछ और होता है। ऐसे क्षण हमेशा यादों की अलबम में चस्पाँ हो जाते हैं।

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  7. हम्म ! खूब एन्ज्वॉय किया होगा न ? क्षण-क्षण को जीना ही असल में जीना होता है... पता नहीं हम भारतीय उस लोक और उस जन्म की चिन्ता में क्यों घुले जाते हैं, जिसे किसी ने नहीं देखा... खैर जो भी हो.
    चित्र देखे. बिटिया बड़ी प्यारी है. भाभी जी तो हमेशा की तरह सुन्दर और आप थोड़े दुबले लग रहे हैं.

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  8. @ अरविन्द जी ...देखिये छाया चित्र के अनुसार सर्वाधिक प्रसन्नता और नैसर्गिक हास्य हमें केवल बिटिया के चेहरे पर दिखा ...पर आपने इतनी विनम्रता सी क्यों ओढ़ी हुई है क्या दिनेश राय द्विवेदी जी की टिप्पणी में कुछ सच भी है ! शुक्ल और मिश्र पक्ष के आत्मीय मिलन में ये पता नहीं चल पाया कि धर्मभ्राताओं में ज्येष्ठ कौन है ? स्वजनता और शुभता के क्षण दीर्घायु हों एकमेव कामना है !

    @ मुक्ति जी ...अरविन्द जी की कृशकाया की चिंता हमें भी है किन्तु ध्यान दीजियेगा इस प्रकार की चिंताओं के लिए ग्रीष्म ऋतु को उचित नहीं माना जाता है :)

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  9. हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ ...
    होहियें वही जो राम रची राखा ...इसलिए संतुलन बनाये रखने के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता क्यों ...?
    समय की लम्बाई से अनुभूतियों की गहनता मायने रखती है ...बहुत सही ...
    जीवन के बाद जीवन कल्पना है जबकि हर पल को उसी पल में पूरी तरह जी लेना ...यथार्थ है ...जीवन यथार्थ और कल्पना का सम्मिश्रण ही तो है ...
    @ मुक्ति ...
    सिर्फ दुबले ही नहीं ..डरे हुए भी ...:)

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  10. 'मनुष्य दरअसल क्षणों में जीता है ...क्षणों की सघनता में जीता है'

    - हम जिस क्षण में जो करते हैं,हम बाध्य वही हैं करने को
    हंसने के क्षण पाकर हंसते, रोते हैं पा रोने के क्षण
    -(हरिवंश राय "बच्चन")
    ( "बच्चन" के साथ हरिवंश राय लिखना जरूरी था अन्यथा आज की पीढी इसे अमिताभ बच्चन की पंक्तिया मान लेती.)

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  11. क्षणों की सघनता या समय से परे हो जाने का सुख । जो भी कहें पर आते रहें ।

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  12. Badi sukun bhari anubhuti de gaya ye aalekh/sansmaran!

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  13. मिलन की घडी में समय की लम्बाई नहीं अनुभूतियों की गहनता ज्यादा मायने रखती है --- सच कहा..तस्वीरों में सबके चेहरों की मुस्कान इस बात का प्रमाण है...

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  14. सबसे मिल कर अच्छा लगा।
    @ दुबले लग रहे हैं।
    :)
    क्षणवाद अपने आप में एक व्यवस्थित विचारधारा है। कुछ सन्दर्भ बताइए।

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  15. मिलन की घडी में समय की लम्बाई नहीं अनुभूतियों की गहनता ज्यादा मायने रखती है.
    --कितनी गहन बात कही है..
    -सुखद स्मृतियाँ समेटे हुए चित्र.
    enjoy each and every moment!Thanks for sharing these beutiful moments with us.
    sab ko namaste kahiye.

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  16. @सुन्दर विचार और शुभकामनाओं के लिए आप सभी का आभार !

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  17. यह पल यूँ ही यादों में हमेशा बसे रहते हैं ..खूब लफ़्ज़ों में बाँधा आपने इस पल को ...

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  18. मतलब आजकल अननद ही आनंद है ! बढ़िया.
    इस बीच एक और पोस्ट आ गयी है... बाद में पढने आता हूँ उसे.

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  19. मिलन की घडी में समय की लम्बाई नहीं अनुभूतियों की गहनता ज्यादा मायने रखती -सत्य वचन प्रभु!!


    सबसे मिलकर अच्छा लगा.

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