गुरुवार, 7 जनवरी 2010

मन का ट्रांसप्लांट!

न जाने क्यूं नए वर्ष की पूर्व संध्यां से मन  बहुत क्लांत ,खिन्न खिन्न सा है -बेबस, व्यग्र और अधीर सा -गुस्साया हुआ सब पर और खुद पर भी. सुबह ही अचानक एक ब्लॉग मित्र से चैट पर ही कह बैठा -मैं निजात चाहता हूँ इस बेहूदे मन से जो इन दिनों हर वक्त भुनभुनाया हुआ है परायों से ही नहीं अपनों से भी -क्या इसका ट्रांसप्लांट नहीं कराया  जा सकता ? मित्र भौचक! हा हा हा .दैया रे! अब क्या मन  का भी ट्रांसप्लांट होगा ?क्यूं  नहीं ? अगर मन  ऐसा सोच सकता है तो ऐसा हो भी सकता है. आखिर मैं सोचता  हूँ तो इसका मतलब ही  है कि मैं हूँ ,मेरा वजूद है. तो अगर मन ऐसा सोचता है कि उसका ट्रांसप्लांट हो सकता है तो क्यूं नहीं हो सकता -चलिए आज नहीं तो कल होगा और कल नहीं तो परसों होगा ,परसों नहीं तो नरसों..होगा जरूर -आखिर ययाति ने जब अपने बेटे से जवानी उधार ले ली और खूब जीभर कर जवानी जी भी ली तो यह भी  तो  कुछ ऐसा ही मामला है. अब जब भेजा तंग करने लगे तो उसे गोली थोड़े ही मार दी जायेगी -खालिस और भोंडे बालीवुड   स्टाईल में-गोली मारो भेजे में भेजा तंग करता है -हाऊ फुलिश! ये कोई  मानवीय तरीका है समस्या से निजात का ..हाँ मन  जब बहुत उधम करे तो दुष्ट का ट्रांसप्लांट ही क्यूं  न करा लो. मुफीद ,निरापद तरीका लगे हैं यह मुझे !

मगर फिर किसका मन ट्रांसप्लांट के लिए निरापद होगा ? शर्तियाँ किसी मासूम से बच्चे का ..मगर मैं वो लेने सा रहा ,अब इतना स्वार्थी और अमानवीय भी नहीं है मेरा मन  कि किसी मासूम का भविष्य ही खराब हो जाय .फिर किसी नारी का ? चल सकता है क्योंकि कहते हैं नारियों का मन बहुत सुकोमल होता है -यहाँ ब्लागजगत में भी कईं हैं न  -बिलकुल सच्ची -नो पन -आपकी कसम. हाँ नारीवादी मन न हो -बहुत डर लगता है ऐसे मन का और न जाने मेरे तन का भी वह क्या हाल कर डाले ....मगर ऐसी मनफेक कौन होगी नारी यहाँ सभी तो मुझसे खार खाए बैठी हैं -भला  वे क्यों देने लगी अपना मन  मुझे -कुछ पा  जायं ठांव कुठाँव तो भुरकुस बना डालें मेरे मन तन का -तो वहां से पूरी ना  उम्मीदी ही है ...फिर पुरुष मनों पर मन  जाता है तो कई नादान दिखते हैं और कई दानेदार भी हैं .वे देने को भी तैयार हो सकते हैं मगर मेरा मन ही उनका ट्रांसप्लांट नहीं चाहता दुष्ट -सहसा ही श्रेष्टता बोध से ग्रस्त हो उठता है -कहता है जो भी हैं उनसे तो मैं खुद ही हर हाल में अच्छा हूँ .तब आखिर हे दुष्ट तुम्हे कैसा मन  चाहिए जल्दी से बोल और मेरी जिन्दगी को और नारकीय मत बना!

तूने मुझे कहाँ फंसा दिया ..न ब्लोगिंग छोड़ने दे रहा है और न वह करने जो करने मैं यहाँ आया था ..जहां हरी घांसे हैं वहां कोई घास नहीं डाल रहा ...जहां बियाबान है वहां गधे तू जाना नहीं चाहता. आखिर क्या चाहता है तू बोल दे आज -सुना है इस ब्लागजगत में बहुत सहृदय भी हैं तेरी मनसा पूरी कर देगें -अपना मन  देकर तेरा पीछा तुझसे छुडा देगें -पर बेअक्ल तूं कहा जायेगा ? तुझ सड़े गले गलीज को तो कोई लेने को तैयार नहीं होगा.  चलो अपने किसी वैज्ञानिक मित्र से बात करते हूँ वे तुम्हे तबतक किसी जीवन दायक घोल में रखेगें जब तक तूं फिर तरोताजा ,नया सा नहीं हो जाता जैसा तूं चालीस वर्ष पहले हुआ करता था -उमंगों ,चाहतों से लबरेज .दुनिया को बदल डालने के जज्बे से भरा हुआ -प्राणी  मात्र से प्रेम की आकांक्षा लिए हुए ...
अब तो तू बिलकुल दुष्ट हो चुका है -सारा ब्लागजगत भी तुझे शरारती मान चुका है -इसलिए अब तूं छोड़ साथ मेरा और यह सोच किसके मन से तुझे ट्रांसप्लांट करुँ -जल्दी कर ,ढूंढ ढांढ बता दे -फिर उससे निगोशिएट किया जाय -हो सकता है बात बन ही जाय .

49 टिप्‍पणियां:

  1. हमारा वाला चल जायेगा क्या?? न्यू इयर की सेल पर लगा है, सस्ता पड़ेगा. :)

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  2. यहाँ सभी तो मुझसे खार खाए बैठी हैं -भला वे क्यों देने लगी अपना मन मुझे -कुछ पा जायं ठांव कुठाँव तो भुरकुस बना डालें मेरे मन तन का -तो वहां से पूरी ना उम्मीदी ही है
    हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा " ये तो कुछ नाइंसाफी है अरविन्द जी"......पर वो क्या है न कहते हैं न गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है हा हा हा हा तो अपनी तो हालत कुछ ऐसी ही लग रही है हा हा हा हा ......"

    regards

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  3. हा हा हा हा हा हा हा हा हा पर जो भी है बिचारे मन की व्यथा जायेज है...
    regards

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  4. अरविन्द जी ! हम भी कोशिशे कर रहे हैं ...आपके लिए एक ठो मन ढूँढने के वास्ते !


    जय हो!

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  5. दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है?

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  6. आपकी तुलना तो श्रीकृष्ण से होनी चाहिए जिन्होंने कहा था : ऊधौ मन न भए दस बीस !
    और उन्हें शरारती भी कहा गया है

    आप तो महान हैं !

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  7. ये बेचारगी शुरू में ही दिखा दी होती ...सारे झंझट से बच जाते ....:):):):)

    मगर मन के ट्रांस्पलांट का आईडिया अच्छा है ...अपने आपको अपने मन से अलग होकर देखने का ... आपका एक्सपेरिमेंट और परिणाम देखने के बाद बहुत लोगों का किया जाएगा ....जबरन ...!!

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  8. उधर गोपियां भी विचलित थीं ,उन्हें सूझा ही नहीं की मन ट्रांसप्लांट भी संभव है ! बेचारियां ऊधो को अपनी व्यथा ही कहती रह गई ! विकल्प सूझा भी तो केवल इतना की काश मन दस बीस होते ! अरे भैय्या यहां एक ही नाक में दम किये हुए है और उन्हें ज्यादा चाहिए थे ! ऊधो नें कितना समझाया पर प्रेम किसी को कुछ समझने कहां देता है ! बावली गोपियां ..उन्हें नहीं समझना था तो नहीं ही समझीं पर ऊधो निपट(समझ)गए !

    इधर हमारे मिसिर जी भी दुखी हैं ,होना भी चाहिए भला कोई मर्द बच्चा 'शरारती' कहे तो किसको अच्छा लगेगा ? ये अजित वडनेरकर इतना भी नहीं समझे की "शरारती कहीं के " किसके मुंह से सुनना अच्छा लगता है ! जरा नाम बदल के ही टिपिया देते ? चलो कोई बात नहीं अब जो हो गया सो हो गया ! जुबान है सो फिसल गई 'जब माँ का लाडला फिसल सकता है' तो जुबान का क्या ? मिसिर जी आप उदास मत होइए हम शरारती का मतलब "शरारती कहीं के" जैसा ही समझते हैं ! 'बदमाश' जैसा नहीं ! उम्मीद है की आप हमारी भावनाओं को समझ रहे होंगे ! वैसे आपका ये ख्याल हमें बहुत बढ़िया लगा की मन का ट्रांसप्लांट काहे न किया जाये ! बिलकुल किया जाये ! जरुर किया जाये ! इस तरह से तो मन माफिक टिप्पणी लेना आसान भी हो जायेगा और अपन कई कई ऊधो मेरा मतलब ब्लागरों को 'निपटा' देंगे ! पर एक बात ध्यान रहे 'निपटा' देंगे का एक ही मतलब है ठीक वैसे ही जैसे गोपियों नें रंग डाला ऊधो को प्रेम के रंग में !


    ( मित्र दुनिया में बहुत कुछ एक साथ होता है ! जैसे वे जिनसे हम दुखी हैं और वे भी जिन पर हम मोहित हैं ! आप प्रेम बांटों उन्हें हलाहल त्यागने दो ! अंततः किसी दिन हम सब एक से हो जायेंगे )

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  9. आदरणीय अरविन्द सर ,
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    मैंने तो पहने ही आपसे निवेदन कर दिया था कि आप मुख्य धारा में वापस आ जाइये जहाँ आप नें दशकों गुजारें हैं ,आम लोंगों के लिए फिर से लिखना शुरू करिये ,यहाँ ब्लॉग जगत में सभी खास है ,
    उन्हें आप जैसों का बिंदास और मौलिक लेखन पसंद न आएगा.
    मन के आवेंगों को बेबाकी के साथ शब्द देने के लिए धन्यवाद .
    बेहतरीन पोस्ट.
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  10. समीर जी का कॉमेंट पढ़ कर हँसी रोके नहीं रुक रही...
    -अरविंद जी आप की पोस्ट aaj to सीधा दिल से कीबोर्ड पर उतरी लगती है..
    -पूरी सहानुभूति है..Advice-सब से सही तरीका है जीवनदायक घोल में डाल दें कुछ दिन.
    [P.S-सच कहते हैं अजीत जी आप के बारे में....:)....!]

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  11. अरे अरे यह क्या हुआ ...सर्दी मौसम का असर नजर आता है ...इस मौसम में अक्सर यह भावनाएं पनपने लगती है शोध कर डालिए इस पर ..आपके साथ कई का भला हो जाएगा ..:)

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  12. डाँ. ताऊनाथ हास्पीटल मे पधारिये. वहां पर सबसे रामप्यारी से कैट स्केन करवा जायेगा.

    तदुपरांत आपका मन कुछ कमजोर पाया जाने पर ट्रांसप्लांट कर दिया जायेगा.

    समय सुबह १० से शाम को ४ बजे तक.

    कृपया : आने से पुर्व अपाईंटमैंट अवश्य लेले.


    रामराम.

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  13. भाई साब मैं भी तंग आ चुका हूं अपने मन से देखियेगा अदला-बदली का विचार हो तो बताईयेगा ज़रूर,मुझे तो आपका मन अपने मन से ज्यादा अच्छा लगता है।

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  14. ताऊ जी (पद और उम्र ) दोनों में ही वरिष्ठ है,इनकी सलाह आँख मूँद कर मान लेनी चाहिए.

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  15. उधो मन नाहीं दस बीस
    एक हतो सो गयो ......................

    सूरदास जी कह गए है .अब हमारे पास होता तो दे न देता ?
    .................और ' उड़न तश्तरी ' की सेल-वेळ के चक्कर में न आईएगा . ट्रांसप्लांट के चक्कर में आपका ओरिगिनल भी ले उड़न छू हो जायेंगे . किडनी खोर डाक्टरों की तरह .

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  16. पंडित जी मन तो सत्रह प्रकार का होता है कहाँ कहाँ ट्रांस प्लांट कराएँगे ..... ये सोच भी कुछ हटकर लगी ...

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  17. @समीर भाई ,देखिये न राज साहब क्या कह रहे हैं हमें तो उनके देश विदेश के सुदीर्घ अनुभवों का लाभ उठाना चाहिए .
    -अनुराग भाई मामला मन का है दिल मेरा ठीक ठाक है ,शुक्रिया .\-
    -विवेक जी ,गोपियों ने कहा कृष्ण ने नहीं कृष्ण के तो अनन्त मन थे और तन भी तभी महारास रचा लिए -यहाँ तो एक मन ही भारी पद रहा है .मुझे अच्छा लगा अब अप मुझे अंडरस्टैंड कर रहे हैं .स्वागत !
    -वाणी जी और अली जनाब एक साथ ही समान नतीजे पर पहुंचे हैं -ताज्जुब है इस साम्य संभाव्यता पर .
    -तनु ,धर्मसंकट यही है कि प्रजातंत्र में आम को ख़ास बनने में देर नहीं लगती ,इसलिए भी यहाँ हूँ .वैसे आपकी बात पर इधर गंभीरता से विचार कर रहा हूँ .
    -अब आप भी मुझे शरारती दो बार दो जगहों पर कह चुकी हैं -अब तो इस मन का ट्रांस प्लांट कर ही दूंगा -हा हा ,डर भी है की कहीं जीवन भर न डूबा रहजाए मेरा मन उस घोल में -बाद में नरभक्षी वैज्ञानिकों (ख़ास कर ,महिला वैज्ञानिक के) ..के आचार मुरबबा के मर्तबान की शोभा बढाए .

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  18. @ताऊजान ,मनोज ,पहले मुझे दिखवायिये कि किस किस का मन है ताऊ के भंडारा में ,किसी नारीवादी का मन तो नहीं है -इसकी गारंटी कौन देगा ,केवल रामप्यारी पर भरोसा नहीं कर सकता -अगर उन मोहतरमा का कहीं मन ट्रांस प्लांट हो गया तो फिर जीते जी मौत हो जायेगी मेरी ! गारंटी चाहिए .

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  19. @पुसडकर भाई ,
    मैं तैयार हूँ मगर अदला बदली के लिए -मन विनिमय के लिए ,आपका मन रिजेक्ट नहीं होगा पूरी उम्मीद है .

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  20. @महेंद्र जी ,आप बीस में से तीन जो घटा कर सत्रह प्रकार के मन बताये हैं तो निश्चित ही उनके, उनके और उनके हटाये होगें !

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  21. @ऊपर के कमेन्ट में यह अल्पना जी के लिए था सारी तनु !
    " अब आप भी मुझे शरारती दो बार दो जगहों पर कह चुकी हैं -अब तो इस मन का ट्रांस प्लांट कर ही दूंगा -हा हा ,डर भी है की कहीं जीवन भर न डूबा रहजाए मेरा मन उस घोल में -बाद में नरभक्षी वैज्ञानिकों (ख़ास कर ,महिला वैज्ञानिक के) ..के आचार मुरबबा के मर्तबान की शोभा बढाए ".

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  22. @ डाँ. अरविम्द मिश्र अंकल

    हमारे हास्पीटल मे सब तरह के मन उपलब्ध हैं. बाबा, फ़कीर, डकैत, लुटेरे, ऊठाईगिरे घोडे गधे यानि आप जिसका भी नाम लेंगे उसी का मन उप्लब्ध करा दिया जायेगा.

    बस कीमत अदा करनी पडेगी. आप कहें तो रेट लिस्ट भिजवा देती हूं. वैसे आजकल सबसे ज्यादा रेट ऊठाईगिरों के चल रहे हैं.

    पर सबसे कैट स्केन करके देखना पडेगा कि आपको किसका मन सूटेबल रहेगा? तो कब आरहे हैं कैट स्केन के लिये?

    सादर

    राम की प्यारी मिस. रामप्यारी.

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  23. @बस बेटे ,नारी वादी का छोड़कर किसी का भी चलेगा -हाँ अप्वायिंतमेंट याद है .

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  24. ख्याल अच्छा है अरविन्द जी
    लेकिन कहीं ऐसा न हो कि अदला-बदली के फेर में जो पास है उससे भी हाथ धो बैठें !
    परीक्षण-निरीक्षण आवश्यक है

    वैसे आप जरा पता करें 'एडवांस टेक्नोलाजी' का ज़माना है
    शायद बिना 'मन' के रहने की तकनीक भी आ चुकी है :)

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  25. कृत्रिम नहीं मिलेगा क्या? कस्टमाइज्ड़ :)

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  26. @प्रकाश जी ,अभिषेक जी ,
    बेमन से बिना मन के और कस्टमायिज्द से भी काम चल सकता है -शुक्रिया
    केवल पुसदकर साहब ने अदलवन बदलवन की बात की है -नहीं तो इस सड़े गले लिजलिजे मन की कौन पूंछेगा ?

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  27. इस मन में अपने को एनलाइटेन करने का सारा मसाला है।
    रामकृष्ण परमहन्स की शरण जायें मित्र! हम वहीं बैटरी चार्ज करते हैं!

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  28. इस मन में अपने को एनलाइटेन करने का सारा मसाला है।
    रामकृष्ण परमहन्स की शरण जायें मित्र! हम वहीं बैटरी चार्ज करते हैं!

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  29. आडिया वाकई लाजवाब है, विज्ञान कथाकार जो ठहरे। वैसे अली भाई का कमेंट पढ़ कर लाजवाब हो गया।
    कोई मनमाफिक मिले, तो बताइएगा, इधर भी सोचा जा सकता है।
    --------
    बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
    क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?

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  30. खाली ये बताईये कि मन ऐसा चाहिए न जो ब्लोग्गिंग से दूर भागे या भगाए ........इहां मुश्किल है जी । डा साहब चलिए कहीं दूर ढूंढा जाए .....

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  31. मगर ऐसी मनफेक कौन होगी नारी यहाँ सभी तो मुझसे खार खाए बैठी हैं.....


    आप फ़िक्र न कीजिये..... कोई न कोई ज़रूर मिलेगी..... पहले खार होता है बाद में प्यार होता है.... जो खार खाता है वही प्यार भी करता है.... फ्यूचर इस ब्राईट... ऑन फेस गेट सम लाईट..... अब तो बहार ही बहार होगी .....

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  32. ई घड़ियाली आंसू हैं कि सचमुच का है :):):):)
    और अब तनी देर नहीं हो गयी है...मन खोजने जो निकले हैं....और जो मिलेगा उ मन कौन हालत में होगा ई भी तो सोचिये...:):)
    समीर जी दे रहे हैं ले लीजिये...सस्ता भी है...:):)

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  33. मन रे , तू काहे न धीर ---
    ओ निर्मोही ---
    कहाँ इस निर्मोही के चक्कर में पड़ गए मिस्र जी।

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  34. अर्विंद जी अगर इन सब का मन पसंद नही तो, मेरी जानपहचान के बहुत से गोरे गोरिया है, बोलो इन से बात करूं.... लेकिन एक नारी है आप से मन बदलने को बेताब... तकरार की मत सोचे, उस का मन (दिल) तो मर्दो से भी बडा है, आम जन को तो कुछ समझती नही, आप को भी मजबुत दिल चाहिये, जल्दी जबाब देवे

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  35. मन को दोष न दें, महोदय. मन तो वह करता है जो दिमाग कहता है, वहीं जाता है जहाँ दिमाग ले जाता है. तो इसी मन को को समझाइये.

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  36. रुकते रुकते रुकेंगे आँसू
    ये रोना है, हँसी खेल नहीं।

    तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
    क्या गम है जिसको छुपा रहे हो।

    होता है होता है।
    कभी कभी लंठ भी रोता है।

    बस दुआ है कि इस रोने से आँखें और साफ हों। ब्लॉगरी ही सब कुछ नहीं, और भी ग़म हैं जमाने में।

    हँसी और हल्केपन के नीचे आह भरते भारीपन को महसूस कर सकता हूँ। अब कोई बेईमान भी कहेगा।
    अच्छा हो कि इस दफे गच्चा खा गया होऊँ!
    ________________________

    वैसे 'शरारती कहीं के' जानदार बात होगी।
    हम जैसे तो यही कहेंगे।

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  37. मैं यह मानकर टिप्‍पणी कर रहा हूँ कि यह मजाक नहीं है ।
    मन का ट्रांसप्‍लांट तो होने से रहा क्‍योंकि वस्‍तुत: मन एक भ्रम है । जो चीज होती ही नहीं उसका ट्रांसप्‍लांट भी नहीं हो सकता ।
    फिर भी हम मन हीं हैं इसलिए मन जिस शरीर में जायेगा वह शरीर ही हम हो जायेंगे । इसलिए स्‍थानांतरण हो सकता है , प्रतिस्‍थापन नहीं ।

    फिर भी उत्‍तर आधुनिक समय में शायद मनुष्‍य की सारी स्‍मृतियों को डाउनलोड करना संभव हो सके ।

    मुझे लगता है कि आपको साई ब्‍लॉग पर ज्‍यादा सक्रिय होना चाहिए । वहां पर आप अपना बेहतरीन देते हैं । रचनात्‍मक । साथ ही दूसरों की प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा अपने लेखन पर ज्‍यादा ध्‍यान केंद्रित करें ।

    यह एक विनम्र सुझाव है । शुभकामनाएँ ।

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  38. अब हम क्या कहें? आपको किसी नारीवादी का मन तो चाहिये नहीं और हम तो घोषित नारीवादी हैं.
    हाँ, आपका ये "भुरकुस" शब्द सुनकर बड़ा मज़ा आया. बहुत दिनों बाद सुना. बचपन में अम्मा जब बहुत नाराज़ होती थीं तो भुरकुश बना डालने की धमकी देती थीं.

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  39. डॉक्टर साहब,

    मन के ट्रांसप्लांट की तो नहीं कह सकता...हां मन का रेडियो बजाना है तो आप ज़रूर हिमेश रेशमिया से संपर्क कर सकते हैं...लेकिन उसके बाद आपको भी नाक से बोलने की शिकायत हो जाए तो मुझे दोष मत दीजिएगा...

    जय हिंद...

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  40. मिश्र जी !
    रहीम की मान लें .. शायद कोई बुराई नहीं है ..
    '' रहिमन या मन की व्यथा मन ही रखो गोय |
    सुनी इठीलैहैं लोग सब बाँट न लैहैं कोय || ''
    .
    .
    '' हा हा हा हा हा हा हा हा हा पर जो भी है ....''
    ----------- यह हहारव भी कुछ ऐसा ही कह रहा है ...

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  41. @अर्क्जेश जी,
    बड़े अन्तर्यामी हो प्रभु -जान गए कि मैं टिप्पणियों के लिए ही लेखन करता हूँ .इस प्रसाद पूर्ण टिप्पणी और आदेश के लिए आभारी हूँ .
    @मुक्ति ,अपवाद तो हर जगह होते हैं ,
    @ गिरिजेश ,काश गच्चा खाए होते बच्चू आप ! मजा आता ....

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  42. ’हहारव’- पोस्ट के बहाने नया शब्द !

    बाकी गिरिजेश जी के आगे-पीछे ही चलते हैं हम !

    क्या-क्या नहीं आता आपके मन में ! इसके जैसा विकल्प कहाँ !

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  43. इस मन को ही तो सारे बाबा लोग वश में करने को कहते है ट्रांसप्लांट करने से बेहतर है अपना मन अपने ही वश में कर लिया जाय क्योकि आपके ममफिक मन मिलने से तो रहा?

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  44. अगर कोई उपाय मिलता हो तो हमें भी बताइयेगा मिश्र जी!

    वैसे पोस्ट तो लिख ही देंगे आप।

    जितनी दिलचस्प पोस्ट थी, उतनी ही रोचक टिप्पणियां भी...

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  45. आप भी ना अरविन्द भाई साहब ...
    २०१० के इस नये साल में ,
    पिछले सालों से भी बढ़िया ,
    + ज्ञानवर्धक लिखें --
    जैसे ओबामा जी ने महामंत्र दिया था -
    " You can Do it " :)
    मंगल कामना सह:
    - लावण्या

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  46. थोड़े शरारती तो आप हैं ही, वादनेरकर इतने भी गलत नही पिछली पोस्ट में...:)

    मन तो चंचल ही है पर यही इसकी सुंदरता भी तो है..तन गंभीर वालों का मैंने तो अक्सर ही मन ज्यादा ही चंचल देखा है..इसलिये किसी भी गंभीर से दिखाने वाले से मै घबराता नहीं...:)

    ज्ञानदत्त जी ठीकी कह रहे हैं..किसी आध्यात्मिक स्रोत के सहज संपर्क मे रहना ही चाहिए..!

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