सबसे पहले आप सभी मित्रों को ,सुधी पाठकों को नववर्ष की मंगल कामनाएं! यह वर्ष आप सभी के लिए और हिन्दी ब्लॉग जगत के लिए नव हर्ष ,नव उत्कर्ष ,नित नव विमर्श लेकर आये! मगर क्या नव वर्ष सचममुच एकदम से पूरा खलास ही हो गया ?-बोले तो डेड इंड! मथुरा कलौनी जी का विचार कुछ और हैं!अपने ब्लॉग कच्चा चिट्ठा पर वे लिखते हैं-
"सब लोग पीछे देख रहे हैं। लेखा जोखा कर रहे हैं कि इस गुजरते साल में क्या क्या हुआ। कौन सी फिल्म हिट रही। कौन सी हीरोइन सेक्सी रही। यह सब हमें ऐसे बताया जा रहा है जैसे कि दिसंबर के जाते न जाते उस हीरोइन की सेक्स अपील समाप्त हो जायेगी। तो हमने भी साहब पीछे देखना शुरू किया......"(आगे आप वहीं पढ़ लें!.)..गया वर्ष भी एक तरह का हैंग ओवर होता है जो यकबयक नहीं धीरे धीरे जाता है ...कभी कभी तो ऐसा भी गुजर जाता है कुछ कि यह लम्बे समय तक टीसता जाता है ,स्मृति कोशाओं में रच बस सा जाता है जैसे किसी परम मित्र का किया गया विश्वासघात ,किसी की स्तब्ध कर देने वाली कृतघ्नता ..कहाँ जल्दी भूलती हैं सब -ऐसी दुखद यादों ,समय के घावों के लिए भी चाहिए किसी का स्नेहिल सानिध्य ,घाव पूज जाए ऐसा आत्मीय संस्पर्श .....या फिर कोई ऐसा अभिन्न जिससे दुःख का साझा किया जा सके ....ऐसा किसी का न मिलना भी एक बड़ा दुःख है .. कासे कहूं पीर जिया की माई रे ......मगर हम ब्लॉगर तो बहुत खुशनसीब हैं ,यहाँ कोई न कोई ही नहीं बहुतेरे हैं जो दुःख दर्द बाँट सकते है -बिना किसी 'सेकेण्ड थाट' के,बिना किसी प्रत्युपकार की भावना के ....और मुझे ऐसा ही अनुभव हुआ और जबरदस्त हुआ. मैंने व्यग्र और अपमानित क्या महसूस किया मित्रगण आ गए ढाढस देने ,दुःख बाटने -यह सचमुच एक नई दुनिया के वजूद का अहसास दिलाने वाला है -यह पुरानी दुनिया सरीखा नहीं है जहाँ संवेदनाएं तेजी से लुप्त हो रही हैं ,भाईचारा मिट रहा है .....किसी को दूसरे के दुखदर्द से कोई मतलब नहीं रह गया है -मगर यह नई दुनिया तो बिलकुल बदली बदली सी है -शायद नए और पुराने का फ़र्क भी यही है ....इस नई दुनिया का रोमांच तो बस अनुभव ही किया जा सकता है ,पूरी तरह शायद शब्दों में व्यक्त करना संभव भी नहीं है ....
मगर इस दुनिया में भी हैं तो उसी दुनिया से आये लोग ..तो अभी भी कुछ पुरानापन सा भी तारी है ...और पुरानी आदते भीं हैं जो जायेगीं मगर गए साल की तरह नहीं, बस जाते जाते जायेगीं. ...यहाँ भी है फालतू संकोच ,कुछ कुछ नवाबी नफासत ,कुछ श्रेष्ठता बोध ,व्यामोह जनित भाव विह्वलता ,अनावश्यक तटस्थता , परले दर्जे की निहसन्गता, हेकड़ी दिखाता हीनता बोध ,सनसनीखेजप्रियता ,थोड़ी टुच्चई ,थोड़ी लुच्चई भी ..और यह सहज है -यह हमारी पुरानी दुनिया का प्रतिविम्बन है.इन सब वृत्तियों की झलक आपको इस ब्लॉग की ठीक पिछली पोस्ट की टिप्पणियों में मिल जायेगीं .और उसी अनुभव ने मुझे यह पोस्ट लिखने को मानो विवश सा कर दिया है -
यह पिछले वर्ष का हैंगोवर सरीखा सा ही कुछ है! मैंने थोडा अपमान क्या महसूस किया , मित्रों की ऐसी गलबहियां मिली कि दुख दर्द जाता रहा - भावनाओं का आवेग टिप्पणियों के रूप में ऐसा घनघोर बरसता रहा कि मुझे एकाध बार लगा जैसे मैं कोई उस खाली रूट का स्टेशन मास्टर होऊँ जहां किसी अन्य रूट पर दुर्घटना के चलते सारी ट्रैफिक मोड दी गयी हो और दनादन ट्रेने धडधडाती चली आ रही हैं -किसे हरी झंडी दिखाऊं और किसे लाल -एकाध बार लगा कि यह विवेक भी जाता रहा है इस प्रेशर के चलते ....लगा कि अब बड़ी दुर्घटना हुई या तब और निर्णय भी तुरंत ही लेना था क्योंकि पीछे का ट्रैफिक ठांठे मार रहा था ....उसी क्षण वो कहावत भी याद आई कि मासूम दोस्त से दानेदार दुश्मन अच्छा होता है. बात अपने मासूम मित्र महफूज की है जिनसे अभी जुमा जुमा चंद रोज की दोस्ती है मगर लगे है बन्दा यारो का यार है ...उनकी अकेले २३ टिप्पणियाँ डिलीट की मैंने .....बाप रे क्या थीं वे ,पूरी की पूरी न्यूट्रान बम ....ऐसी है नादाँ दोस्तों की सोहबत .....मेरे बाबा जी अक्सर कहते थे....बच्चों की दोस्ती ढेलों की सनसनाहट ....मगर फिर भी नाज है महफूज आप पर मुझे ..यदि इतनी टिप्पणियाँ मैंने किसी नामचीन की मिटाई होती तो बन्दा तूं तूं मैं मैं पर उत्तर आता ...,मगर बच्चू ने उफ़ तक नहीं कि ...वैसे उफ़ तो शायद समीर भाई और आदरणीय ज्ञानदत्त जी सर ने भी न की हो जिनकी टिप्पणियाँ भी मैंने न चाहते हए भी जी कड़ा कर डिलीट किया और केवल इसलिए कि समीर जी ने टिप्पणी के नाम पर केवल एक आह्वान चेप दिया था जो इन दिनों वे सार्थक रूप से चहुँ ओर ज्ञापित कर रहे हैं और ज्ञानदत्त जी ने सुमन टाईप 'नाईस' लिख कर प्रकरण से अपनी निहसंगता दिखला दी थी ..अब यह क्या कहना पड़ेगा कि जब बड़ों से नीर क्षीर करने की अपेक्षा हो तो वे केवल मानसरोवर के तट से ही वापस क्यों हो लें ? यह तो वही दृश्य हुआ जब विदेशी आक्रान्ता भारत भूमि पर आक्रमण दर आक्रमण कर रहे थे तो महात्मा बुद्ध के अनुयायी बुद्धम शरणं गच्छ का नारा लगाते तटस्थ हो वन विचरण करने लग गए थे -किसी भी सरोकार से कटे,बिलकुल अलग थलग -ऐसे में तो भारत को गुलाम बन ही जाना था .और दुर्भाग्य से वह बना भी......कुछ रोमांच प्रेमी मुझसे चैट कर , ईमेल भेज शाबाशी देने में लग गए कि अरे वाह आपकी तो टी आर पी बढी जा रही है ......वह कितना दुखद क्षण था मेरे लिये ....यह टिप्पणियों की भूख क्या इतनी टुच्ची हो गयी है ? हम गलत सही मौके का विवेक खो बैठे हैं ? क्या ब्लागजगत में रहने का मतलब केवल टिप्पणियाँ पाना रह गया है ?
जागो ब्लागरों जागो ......इक दूसरे ज्ञान जी की जितनी टिप्पणियाँ प्रकाशित हुईं है उससे थोडा ही कम रिजेक्ट भी -कारण उन्होंने मेरे दुःख के साथ खुद के दुःख का तादात्म्य बना लिया था ! आज सोचता हूँ अगर उस दिन माडरेशन न हुआ रहता तो क्या होता -सोच कर ही रूहं सी कांप जाती है! मगर मैं प्रकाशित सभी टिप्पणियों को एक सहज स्वयंस्फूर्त प्रवाह मानता हूँ और इस दृष्टि से उचित भी -हमें उन कारणों को देखना होगा कि टिप्पणियों का वह सैलाब, वह जलजला आखिर आया क्यों ?
और हम कई छोटे बड़े भाई बंधुओं ,मित्रों से साग्रह अनुरोध करते हैं कि कृपाकर वे न्यायाधीश न बने ...ब्लागजगत का कोई न्यायाधीश अभी चुना नहीं गया और न्याय ही देखना हो तो आईये पुरानी दुनियां में वहां एक न्याय व्यवस्था पहले से ही वजूद में है ....यहाँ कौन कितना अच्छा है कौन कितना बुरा ? ढिढोरा पीटने की क्या जरूरत है ...?..
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
5 वर्ष पहले
अब यह क्या कहना पड़ेगा कि जब बड़ों से नीर क्षीर करने की अपेक्षा हो तो वे केवल मानसरोवर के तट से ही वापस क्यों हो लें ?
जवाब देंहटाएं-पहली बार फायदा हुआ अपने अदना होने का, वरना इसी में लिपट जाते. :)
वैसे आपने बताया नहीं कि इतना सब कहने सुनने का निष्कर्ष क्या निकला??( याने साथ देने और तटस्थ हो जाने वालों की पहचान का नाप तौल छोड़ कर)
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो
उँगलियाँ उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ
चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
कांपते हाथों पे भी फ़िक़रे कसे जायेंगे
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
आदरणीय अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगलमय हो
आपसे बहुत शिकायतें हैं ......... कहते हैं कि शिकायत भी अपनों से होती हैं ! अब आप बड़े हो जाईये ..... लड़कपन नहीं सुहाता ! ये छोटा सा गाँव सरीखा ब्लॉग जगत .......... उँगलियों पे गिनने लायक कुछ लोग हैं जिनसे मैं प्रभावित हूँ !
पिछले कुछ दिनों से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आप मजमे का जवाब मजमा लगाने से दे रहे हों ! क्या मैं इसको शक्ति प्रदर्शन मान लूं ? जैसे विधान सभा के चुनावों में बाहुबली लोग करते दिखाई देते हैं ?
आप जैसे बुद्धिजीवी से ब्लॉग जगत को बहुत आशाएं हैं !
नये वर्ष की शुभकामनाओं सहित
जवाब देंहटाएंआपसे अपेक्षा है कि आप हिन्दी के प्रति अपना मोह नहीं त्यागेंगे और ब्लाग संसार में नित सार्थक लेखन के प्रति सचेत रहेंगे।
अपने ब्लाग लेखन को विस्तार देने के साथ-साथ नये लोगों को भी ब्लाग लेखन के प्रति जागरूक कर हिन्दी सेवा में अपना योगदान दें।
आपका लेखन हम सभी को और सार्थकता प्रदान करे, इसी आशा के साथ
डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
जय-जय बुन्देलखण्ड
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाऍं !
जवाब देंहटाएंनववर्ष आप के लिए मंगलमय हो!
जवाब देंहटाएंनया साल नई खुशियाँ ले कर आए!
आप ने ठीक समीक्षा कर दी है घटना-दुर्घटना की।
नए वर्ष में नया आरंभ करें। कुछ ज्ञान बाँटें आपस में।
अरविन्द जी, आपकी पिछली पोस्ट पर आयी टिप्पणियों से मेरा मन तो इतना आहत हो गया कि मेरे नये साल का सारा आनंद जाता रहा. मैं अकादमिक क्षेत्र से हूँ, शायद इसीलिये किसी के व्यक्तित्त्व के ऊपर इतनी छिछली टिप्पणियाँ सुनने और पढ़ने की आदत नहीं है. किसी से समर्थन या विरोध जताने के शिष्ट तरीके भी हो सकते हैं.
जवाब देंहटाएंवैसे आपका यह लेख भी अन्य लेखों की तरह अत्यधिक रोचक है. नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!!
:) :) :)
जवाब देंहटाएं"इस नई दुनिया का रोमांच तो बस अनुभव ही किया जा सकता है ,पूरी तरह शायद शब्दों में व्यक्त करना संभव भी नहीं है ...."
जवाब देंहटाएंसत्य है ! पर कुछ-कुछ झलक दे गये हैं आप उस रोमांच की इस आलेख में ! पिछली पोस्ट की टिप्पणियों से यह आलेख स्वतःस्फूर्त निकल आना सहज ही था ! यह आया और आश्वस्ति हुई !
मुक्ति जी ने एक प्रासंगिक कविता लिखी है, पहुँचिये वहाँ !
यह आलेख, इसके लिखने का सहज-स्फूर्त भाव और इसके पीछे की संवेदना - यही आपको बड़ा बनाते हैं हम जैसों के लिये !
अनाम मित्र ,मुक्ति ,हिमांशु ,
जवाब देंहटाएंमैं समझ सकता हूँ .....अभी भी आपको मुझमें आशायें दिखती हैं ..क्या करिये..एक उस बेल्ट से हूँ कबीलाई मन और काबिलियित की रेखा टूट सी जाती है कभी कभी ...हम राम कहाँ हो पायेगें ..?लक्षमणवत हो जाना एक संस्कार का प्रभावी हो जाना है यदा यदा ...दुखी मैं भी हूँ इसलिए की मेरे कुछ मित्र दुखी हैं ...मगर फिर वही संस्कार ....अब लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक क्यों काट ली थी ? और विषाद यह कि राम की भी उसमें सहमति रही ....वह भी शायद रचनाकार का मानसिक उद्वेग ही रहा हो ....या फिर कुछ घटा हो वर्णित से भी अधम .....या नहीं भी .....नाक कटना तो एक मुहावरा ही है न ?
बाकी आपका मुझमें विश्वास मुझे संबल देता है और विश्वास कीजिये आपको निराश नहीं करूँगा .......
इंगित कविता मैंने पढ़ ली है -कमेन्ट भी वही छोड़ आया हूँ आज भी मन बहुत विषन्न है रोना सा आ रहा है ....
कोई तो मुझे समझे .....
वाद विवाद भी वहीं होता है जहाँ हम मन से किसी को नहीं समझ पाते और एक संवादहीनता तिर आती है सम्बन्धों में !
आईये हम मनसे एक दूसरे को समझने की एक चेष्टा तो करें ...विवाद किस बात का ?
आपकी पिछली पोस्ट पर टिपण्णी बढ़ने पर टी आर पी बढ़ने का एक उलाहना मेरा भी था ....मगर वह किसी रोमांच को अनुभव कर नहीं किया गया था ...जिसमे दुःख , क्रोध और सहानुभूति भी शामिल थी ...लाख असहति के बावजूद आप यह तो मानेगे ही ना ...
जवाब देंहटाएंराम लक्ष्मन और शूर्पनखा पौराणिक कहानियों के पात्र हैं जो मानव के अच्छे और बुरे चेहरे की इन्गिति मात्र हैं ...दरअसल प्रत्येक पुरुष में राम और रावण एक साथ मौजूद होते हैं , वही यह भी कह सकते हैं कि एक ही महिला में सीता और शूर्पनखा दोनों के ही गुण अवगुण एक साथ मौजूद हो सकते हैं ...मगर क्या जरुरी है सारा फोकास अवगुणों पर डाला जाए ...आखिरकार आदम सभ्यता को हम बहुत पीछे छोड़ आये हैं ...
आपकी विद्वता पर हमें कोई संदेह ना पहले था और ना अभी है ...मगर सोच कर बताएं कि हम अपने परिजनों को दुर्व्यवहार से बचने की सीख देते है या नहीं ...अभिभावक के रूप में हमारी कोशिश यही तो होती है कि हम उनके भीतर के रावण को उनके राम तत्त्व पर हावी ना होने दे ...और जिन पर हमें अपार स्नेह हो , उनकी उद्दंडता के लिए टोकना हमारा कर्तव्य ही तो है ...
नए वर्ष में नायक वर्णन पर शीघ्रातिशीघ्र आपकी प्रविष्टियों का इन्तजार रहेगा ....अपने मन से विषाद मिटायें और अपनी रचनात्मता पर ध्यान केन्द्रित करे ....
बहुत शुभकामनायें ...!!
आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं!!!!!
जवाब देंहटाएंऔर हम तो
जवाब देंहटाएं:)
और
nice
लिख पाने की हिम्मत ना कर सके?
सो उनका क्या?
चलिए कुछ नया आरंभ करें......
डाक्टर साहब ये तो मानना ही पड़ेगा कि सुमन जी नें ब्लाग्स में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए जो "तरीका" अपनाया है वह काफी लोकप्रिय हो चला है! आप ही बतायें कि सभी प्रकार की प्रविष्टियों में दर्ज ये "टिप्पणी संमभाव" लेखक के प्रति 'स्थितिप्रज्ञता'है या फिर कुछ और ?
जवाब देंहटाएंनये साल की रामराम तो हो ही चुकी है. जो कुछ घटनाक्रम और माहोल चल रहा है उससे सिवाय दुखित होने के कुछ नही किया जा सकता. नंगो की बारात मे आपके कपडे कब तक बचेंगे? बहुत दुखद है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अर्विंद जी , आप ही नही हम सब इन्हे बहुत समय से सहन करते आ रहे थे, सोच रहे थे कि चलो कोई ऎसा करता है तो करे ,कही हम से ना किसी का दिल ना दुखे, लेकिन हम सब की सहन शक्ति को कोई हमारी कमजोरी समझे तो फ़िर इस के सिवा कोई अन्य रास्ता नही, वेसे ताऊ ने सही लिखा है कि नंगो की बरात मै कपडे वालो का क्या मान, हम भी एक दुसरे के लेखो पर आलोचक टिपण्णिया देते है लेकिन आनदर से या बेहुदगी से नही, धमकी रुप से नही, चलिये जो हुया सो उस से अब उन्हे सबक लेना चाहिये, ओर हमे भी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
नये साल की समस्य शुभकामनायें मिश्र जी!
जवाब देंहटाएंबेनामी टिप्पणी अपनी-सी लगी। कुछ-कुछ अपने से ही भाव....
दोस्ती एक बहुत प्यारा रिश्ता है, वो रिश्ता जिसे हम बनाते है..आपकी सारी बात सही लेकिन एक अच्छा दोस्त वो है जो आपको आपकी कमियो के बारे मे बताये, अच्छाइयो पर appreciate भी करे..
जवाब देंहटाएंग्यान जी की चिन्ता भी कुछ ऐसी ही है न कि हिन्दी ब्लाग्स मे हम एक दूसरे के दोस्त और दुश्मन बनते जा रहे है और इससे ग्रुपिज़्म हो रहा है...और इससे जो अच्छे और होनहार ब्लागर्स है उन्हे इतने लोग विजिट नही करते जितना इन ग्रुप वाले ब्लागर्स को..
kshama करियेगा, आज मन बडा kshubdh है ये पोस्ट भी पढी आज ही-
http://murakhkagyan.blogspot.com/2009/10/blog-post_13.html
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
जवाब देंहटाएं-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
समीर जी की टिप्पणी में से "बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे..." पूरी रचना ही उड़ा कर रख ली है, अब इस उम्दा मिठाई को बच्चों की तरह बाद में चटखारे ले-ले कर खाउंगा...
जवाब देंहटाएंकाजल कुमार से सहमत
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
इस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंभगवान सुबुद्धि दें।
जवाब देंहटाएंचलिए, मॉडरेशन कहीं तो काम आया।
जवाब देंहटाएं--------
लखनऊ बना मंसूरी, क्या हैं दो पैग जरूरी?
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन चालू है।
:(
जवाब देंहटाएंअब यह क्या कहना पड़ेगा कि जब बड़ों से नीर क्षीर करने की अपेक्षा हो तो वे केवल मानसरोवर के तट से ही वापस क्यों हो लें ?
जवाब देंहटाएंयह तो मैंने बहुत ही शिद्दत से महसूस किया है...और सोचा है अंततः..मानवीय कमजोरियों से कहीं गहरे मे कोई भी बच नही पाता है.वरिष्ठ और भी ज्यादा गरिष्ठ भाव मन के भीतर छुपाए रहते हैं..!
नव वर्ष की अन गिन शुभकामनायें...! आपके हर लेख प्रासंगिक होते हैं और हमेशा उनका एक विशेष व्यापक प्रयोजन भी होता है..यही बात मुझे आपको नियमित रूप से पढ़ने के लिए लालायित रखती है.
जवाब देंहटाएंपिछली टिप्पणी अस्पताल से ही की थी दोस्त, बहुत कुछ कह न सका, अक्षम था । अब कहने से कोई लाभ नहीं.. अस्सी के तीर से बहुत सारा पानी बह चुका है ।
Nice post.
जवाब देंहटाएंFriendship Quotes for Best Friend.