अभी उसी दिन मेरे कानों तक यह नारी कंठ -स्वर आ पहुंचा -अनुमानतः बगल के फ़्लैट में चल रही दूरभाष वार्ता का कुछ अंश खिडकियों को लांघता मुझ तक आ पहुंचा था और संभवतः पड़ोसन अपनी माँ से दुखवा सुखवा बाँट रही थीं -बरबस ही मेरे होठों पर मुस्कान थिरक आयी -यह एक आम शिकायत है जो भारतीय पत्नियों को अपने पति से रहती है.... हम आप सभी गाहे बगाहे इस आरोप के घेरे में आते रहते हैं ..कुंकडू कूँ पतियों (हेंन पेक हस्बैंड्स ) को छोडिये वे अलग ही प्रजाति हैं ...मुझे याद है मेरे देवरिया (पूर्वी उत्तर प्रदेश ) पोस्टिंग के दौरान मेरे पहचान के एक दुखियारे पति लगभग सभी घरेलू कामों यहाँ तक कि बर्तन मांजने ,आंटा गूंथने ,साग सब्जी काटने, घर की साफ़ सफाई ,कपडे साफ़ करने आदि में पत्नी का हाथ ही नहीं बटाते बल्कि प्रायः यह सब पूरा काम ही उनके जिम्मे रहता और बिचारे बाहर के कामों -दफ्तर आदि से भी निपटते रहते ...जाहिर है बहुत व्यस्त रहते थे -कई दिन तो उनके दर्शन भी दुर्लभ हो जाते थे....मेरी पत्नी अक्सर मुझे ताने देती और कहतीं देखो यही हैं एक आदर्श पति -और मैं उस आदर्श पति पर मन ही मन कुढ़ता ....
इस लिहाज से तो मैं कभी भी एक आदर्श पति नहीं बन पाया -और आज भी मुझे यह ताना सुनने को मिलता रहता है ....वैसे भी मैं कभी भी एक अच्छा अढवा टिकोर (errand ) और पत्नी टहल करने वाला इंसान नहीं बन पाया हूँ और ऐसे इंसानों से बेहद ईर्ष्या करता हूँ ...कभी कभी इन्हें खूब गरियाने का मन कहता है .....अपुन का मानना यही है कि आम तौर पर एक गृहिणी का कार्य क्षेत्र घर के भीतर का है और पुरुषों को बाहरी फ्रंट संभालना है ...यह कोई नयी बात तो नहीं -इस व्यवस्था की जड़ें हमारी जीनों में हैं -और जीनों में तब्दीली लाख लाख वर्षों में जाकर होती है कोई हजार वजार साल में नहीं -आज भी पुरुष अपनी उसी पुरानी शिकारी की भूमिका में है -उसका शिकारगाह उसका कार्यक्षेत्र है और शिकार उसके कार्य और परियोजनाएं हैं जिन्हें साधने के लिए वह एक रणनीति बनाता है रोज रोज .....वह हजारो साल पहले की ही भांति आज भी घर से बाहर निकल पड़ता है ...'शिकार ' खेलने और शाम को जब लौटता है तब प्रायः शिकार की सफलताओं -असफलताओं पर गर्वित या दुखी मन घर की देहरी में प्रवेश करता है -अब ऐसे वक्त मोहक मुस्कान के बजाय उसे सब्जी काटने या आंटा गूथने की थाल पकड़ा दी जाय तो ? मैं तो न करूँ यह सब!
मैं अक्सर शाम घर लौटने पर कुछ न कुछ खाने को ले आता रहा हूँ -मिष्ठान्न वगैरह -अब भी ऐसा ही करता हूँ जबकि अब बच्चे भी घर पर नहीं हैं -मुझे यह परम्परा अपने पितामह के समय से ही याद है -यह भी मुझे शिकार गाह से लौटते वक्त हाथ में गर्वीली ट्राफी की प्रतीति कराता है ...खाली हाथ मतलब आज शिकार नहीं मिला -शिकार मिलने या न मिलने दोनों ही स्थितियों में कोई भी कामकाजी पति घर लौटते ही सब्जी काटने या आंटा गूथने का आफर कैसे सहज हो स्वीकार कर सकता है? क्या गृहणियां इत्ती सी बात को भी नहीं समझ पातीं? अब रही घर में रहने के दौरान का समय तो यह समय श्रेष्ठ पतियों का आमोद प्रमोद में क्यों न बीते? साहित्य पठन,सृजन ,ब्लागिंग भी तो है .....अब ऐसे में इन क्षुद्र कामों की फ़रियाद ....न बाबा न मुझसे नहीं होता यह सब ..बाहर भी सम्भालूँ और घर के भीतर भी .....
अब इन्ही बातों को लेकर शुरू हो जाती है पति पत्नी की अनवरत चलने वाली नोंक झोंक -अभी अभी हुए एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि अमूमन पति पत्नी के बीच ऐसे ही मामलों को लेकर रोज औसतन सात और वर्ष भर में ढाई हजार बार नोक झोंक हो जाती है -इसमें वह 'प्रोवर्बियल' मायके चली जाऊँगी का ब्रह्मास्त्र भी शामिल है .....बात की जड़ और होती है मगर बतडंग होते देर नहीं लगती -आपने जूता सही जगह नहीं निकाला ,कपडे ठीक से सूखने को नहीं डाले .....पहनने के पहले कपडे नहीं झटके ..कमरा छोड़ने के पहले बत्ती नहीं बुझायी ...बाथरूम का दरवाजा ठीक से नहीं बंद किया ....किचेन में जो सामान जहाँ से उठाया वहां क्यों नहीं रखा ....बाप रे ..कभी कभी तो जी इतना आजिज आ जाता है कि मन हिमालय आरोहण को तैयार होने लगता है ....
...
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:):):)
pranam.
आज कल पत्नियाँ भी पति के साथ शिकार पर जाने लगी हैं ..तो वो भी तो यही अपेक्षा करती होंगी ...
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंये बात मैंने भी देखी है की कुछ पुरुष घरेलु काम काज में हाथ बटाते हाँ और कुछ घर के किसी भी काम में बिलकुल भी हाथ नहीं लगते. मुझे लगता है की इसके लिए उनकी ज्योतिषीय राशी जिम्मेदार होती है. नाम के हिसाब से आप मेष राशी के हैं जोकि एक पुरुष राशी है. इस राशी में पैदा हुयी स्त्रियाँ भी पुरुषोचित कार्य करने से हिचकती नहीं हैं. जो पुरुष स्त्री राशी के होते हैं जैसे की मीन राशी उनमे घरेलु काम काज में हाथ बटाने के गुण होते हैं और अगर उनकी पत्नियाँ किसी पुरुष राशी में पैदा हुयी हों तो वो बड़ी सहजता से अपने पति की सहायता स्वीकार करती हैं. पुरुष राशी में पैदा हुयी स्त्रियों को अपने पति से अपेक्षा करती हैं की वे उनका घरेलु काम काज में हाथ बटाएं. (ये बातें मेरे अपने सोच विचार का नतीजा हैं. ज्योतिष ऐसा मनाता है या नहीं ये बात किसी क्वालिफाइड ज्योतिषी से ही पूछे )
वैसे यदि कोई स्त्री कामकाजी है तो मैं सोचता हूँ की उसके पति को भी घरेलु कार्यों के पूरी भागीदारी निभानी चाहिए परन्तु यदि पत्नी घर ही सम्हालती हैं तो उनका पति से घरेलु कामों में सहायता की उम्मीद करना ठीक नहीं. उन्हें अपने पति से गृहस्थी के सिर्फ एक कार्य में मदद लेनी चाहिए और वो है बच्चे पैदा करना :-)))
आपको यदि याद हो तो बावर्ची फिल्म में एक दृश्य है जिसमें कि राजेश खन्ना किसी से बतियाते हुए कहते हैं कि बर्तन मांजते समय यदि पति हाथ बंटाने लगे तो पत्नी जरूर कहेगी कि चलिये हटिये यहां से, जबकि मन ही मन सोचेगी कि 'रहते तो' अच्छा होता.....। यह 'रहते तो' वाला भाव, श्रम में हाथ बंटाने की एवज में नहीं, बल्कि आपस की स्नेहिल बतियों से उपजे प्रेमभाव से है :)
जवाब देंहटाएंबाकि तो... मेरा मानना है कि पुरूष द्वारा थोड़ा बहुत हाथ बंटाना गलत नहीं है। लेकिन 'हरदम' स्त्रैव गुणों के साथ घरेलू काम में हाथ बंटाते हुए डटे रहना 'गलत जरूर है' :)
आदर्श पति बनने के प्रयास में जीवन बजने लगता है।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी , यह बात वहां तो लागु हो सकती है जहाँ पति बाहर काम करे और पत्नी घर संभाले । लेकिन जब पति पत्नी दोनों काम पर जाएँ और बराबर कमायें , तो भला यह कैसे हो सकता है कि पत्नी घर के सारे काम भी अकेले ही करे ।
जवाब देंहटाएंऐसे में तो भैया जी , पति को भी रोटी सोटी बेलनी पड़ सकती हैं । और इसमें बुराई भी कोई नहीं ।
हाथ तो बटाना ही चाहिये। ये जरूर है कि आजकल मेरी प्रेक्टिस छूट गई है!
जवाब देंहटाएंआपने जमाने का दर्द तो बयान कर दिया अब मैं कमेंट क्या लिखूं ! चलिए इस विषय में लिखी अपनी ही एक कविता पढ़ा देता हूँ....शीर्षक है..
जवाब देंहटाएंमेरी श्रीमती
प्रश्न-पत्र गढ़ती रहती है
वह मुझसे लड़ती रहती है।
मुन्ना क्यों कमजोर हो गया ?
शानू को कितना बुखार है ?
राशन पानी खतम हो गया
अब किसका कितना उधार है ?
दफ्तर से जब घर जाता हूँ
वह मुझको पढ़ती रहती है।
सब्जी लाए ? भूल गए क्या!
चीनी लाए ? भूल गए क्या!
आंटा चक्की से लाना था
खाली आए ? भूल गए क्या!
मुख बोफोर्स बनाकर मुझ पर
बम-गोले जड़ती रहती है।
प्रश्नों से जब घबड़ाता हूँ
कहता अभी थका-मांदा हूँ
कहती कैसे थक सकते हो
तुम नर हो, मैं ही मांदा हूँ !
मुझको ही झुकना पड़ता है
वह हरदम चढ़ती रहती है।
पूरे घर की प्राण वही है
हाँ मेरी भी शान वही है
हीरो-होण्डा दिल की धड़कन
चेहरे की मुस्कान वही है
बनके सतरंगी रंगोली
आँगन में कढ़ती रहती है।
प्रश्न-पत्र गढ़ती रहती है
वह मुझसे लड़ती रहती है।
..................
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जवाब देंहटाएंबर्तन मांजना भी हाथ बटाना होता है क्या ??
जवाब देंहटाएंआपके समर्थन में ही शायद वसीम बरेलवी ने लिखा है:
जवाब देंहटाएंथके हारे परिंदे जब बसेरे के लिये लौटें
सलीका मंद शाखों का लचक जाना जरूरी है।
बाकी सब तर्क लचर हैं। तथाकथित शिकार से लौटा पति यह अपेक्षा करे कि घर में वह कोई सहयोग नहीं करेगा यह बहुत खराब सोच है। घराणी भी तो शिकार करती रहती है दिन भर। बाहर का शिकार बंद हो जाये हफ़्ते भर तो कोई फ़रक नहीं पड़ेगा लेकिन घर का काम काज एक दिन के लिये बन्द हो जाये तो बारह क्या चौदह बज जायेंगे शिकारगाह से लौटते शिकारी के। :)
मुझे तो वर्ष की सर्वाधिक विवादास्पद पोस्ट्स में से एक के बनने के आसार नजर आ रहे हैं इस पोस्ट के. :-)
जवाब देंहटाएंकुछ पतिदेव शायद "कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना" को भी चरितार्थ करें. :):)
ज़ान की हिफ़ाज़त दी जाये सरकार,
जवाब देंहटाएंमेरा आपसे नाइत्तेफ़ाक़ी का दौर चल रहा है ।
मैं आपकी पोस्ट से असहमत रहने के अपने कारण देखता हूँ ।
तेजी से भागते इस कामगर समाज में ऎसी सोच का कोई स्थान नहीं है ।
बल्कि ग्रांमीण परिवेश में भी पति-पत्नी बराबरी से काम निपटाते देखे जा सकते हैं ।
पूर्वोत्तर राज्यों में बाहर के कामों पर स्त्रियों का वर्चस्व है, वह पति के ’शिका्र’ जाने या लौटने की प्रतीक्षा नहीं किया करतीं । ऎसी स्थिति को आपका सामाजिक अध्ययन किस रूप में देखता है, अतएव अपनी सोच से जुड़े व्यवहार को आप सार्वभौमिक नहीं मान सकते, न ही इनके सार्वभौमिक होने की अपेक्षा ही करनी चाहिये ।
मेरी पत्नी मेरी इच्छानुसार ’हाउस-वाइफ़’ ही हैं, फिर भी मैं उनके कामों में अक्सर हाथ बँटाता ही रहता हूँ । स्त्री-सुलभ प्रवीणताओं में हाथ न डालते हुये, अपने बस के हल्के फुल्के कामों में सहारा दे देने में मुझे ऎसी कोई हेठी नहीं दिखती । आजकल मैं अपेक्षाकृत ’फ़्री’ हूँ, अतः मधुलिका डाट कॉम से पढ़ कर कई तरह के आम के अचार, करेले का अचार, हरी मिर्च का अचार डाल चुका हूँ । मुझे प्रसन्नता है कि मैं अपनी सहधर्मिणी की मदद कर सकता हूँ । परस्पर प्रेम में एक दूसरे का ग़ुलाम होना कोई ऎसी बात नहीं जिससे ’हेन-पेक्ड’ जैसा कोई मुहावरा तैयार किया जा सके ।
In fact, Hen-pecked husaband is invention of bourgeois theory... an I refute it !
ज़ान की हिफ़ाज़त दी जाये सरकार,
मेरा आपसे नाइत्तेफ़ाक़ी का दौर चल रहा है ।
थकान और समय की कमी के कारण घर के कामों में हाथ ना बटाये , ये तो समझ आता है , मगर क्षुद्र काम समझ कर नहीं किया जाए , यह ठीक नहीं लगता !
जवाब देंहटाएंशिकार पर यदि पत्नियाँ भी सहचरी हों तो ..
जवाब देंहटाएंकोई भी तथ्य सार्वभौमिक तो नहीं है. परिवर्तन होते ही रहते हैं और फिर शायद यह जीनों में तब्दीली का हजारवाँ नही लाखवाँ वर्ष हो. परिस्थितिजन्य और आवश्यकताजन्य व्यवहार ही सार्थक है
देर से आया हूँ ...क्षमा प्रार्थी हूँ !
जवाब देंहटाएंहमसे एक ही काम नहीं हो पाता की किचिन में घुस पायें ....पूरे जीवन में १० -१२ बार ही याद हैं, वह भी चाय आदि के लिए, श्रीमती जी के बीमार होने पर बाहर से मँगा कर खाना पसंद है !
यह पोस्ट लीक से हट कर लगी .... रुचिकर तो है ही :-)
शुभकामनायें !
फिल्म कथा का एक दृश्य था...
जवाब देंहटाएंएक बुज़ुर्ग महाशय हाथ में सब्ज़ियों के बड़े थैले लटकाए हुए चाल की सीढ़ियां चढ़ रहे होते हैं...
उनके एक परिचित पूछते हैं...क्यों जनाब, भाभी जी की मदद हो रही है...
बुज़ुर्ग महाशय तमक कर जवाब देते हैं...क्यों वो मेरी मदद नहीं करती बर्तन मांजने में...
जय हिंद...
वो सब तो ठीक है पर यह अडोस-पडोस में ताख-झांक क्या है? और फिर, उसका ढिंढोरा भी :)
जवाब देंहटाएंआपने तो पहले पैराग्राफ में हम जैसे पतियों को अलग प्रजाति का कह दिया दूसरे पैराग्राफ में आपने हमे गरियाने का भी मन बनाया कुकडूु कू के बाद भी साहब हमें तो दही बडा या कचैारी कुछ न कुछ लेकर आना ही पडता था। चौथे पैराग्राफ की सर्वे रिपोर्ट सही है और यह भी सही है कि दफतर जाते जाते पेपर पत्रिकाये कितावें पलंग पर हम लोग एैसे फैला देते है जैसे अभी हाल ही यहां से कुत्ते लड कर गये हो। हम क्रिकेट मैच देखते है तो चार वार चाय बनवाते है और खाना भी सोफे पर टीवी के सामने बैठ कर ही खाते है। खैर आपका व्यंग्य की पुट देता आलेख अच्छा लगा
जवाब देंहटाएं---बर्तन मांजने ,आंटा गूंथने ,साग सब्जी काटने, घर की साफ़ सफाई ,कपडे साफ़ करने ...
जवाब देंहटाएंवाह नारियों की तो बल्ले बल्ले आज :)
’हेन-पेक्ड’ शब्द से एतराज है
जवाब देंहटाएंहिमालय आरोहण :)मन हिमालय आरोहण को तैयार होने लगता है
जवाब देंहटाएंहिमालय आरोहण ...... रसोई आरोहण का रास्ता मापिये ... अच्छा लगेगा :)
पत्नी पीड़ित ,पत्नी -शाषित और पत्नी अवमानित में फर्क है भाई साहब .वैसे पत्नी पालना अपने आप में जान जोखों में डालने वाली बात है .मंहगा शौक तो अपने आप में है ही .खतरनाक भी है चौबीसों घंटा आदमी स्केनर के सामने रहता है .रोग निदान आखिर आखिर तक भी नहीं हो पाता .
जवाब देंहटाएंकई ब्लोगर -भाई ,गले लगा गए अरविन्दजी की "जोग लिखी "को .वैसे मैं ऐसा मानता हूँ आदमी सिर्फ अपने जीवन खण्डों ,जीवन इकाइयों का जमा जोड़ मात्र नहीं है जिन पर बे -वफाई से लेकर आतंकी होने का तमगा लगा दिया जाता है .नेचर एंड नर्चर का योग हैं आप .और आपका "आपा "।
जवाब देंहटाएंवैसे शोषण करता पति अकसर पूँजी वादी भाषा बोलता है -पत्नी -पीड़ित इसी पूँजी वादी सोच से निकला शब्द प्रयोग है .होम मिनिस्टर भी ।शमिता मौलिक शब्द है .एहसासों से रिसा है पति के साथ रहते रहते किसी शोषिता के मुख से .
भाई साहब कहा यही गया है "पति -पत्नी घर गृहस्थी के दो पहिये हैं "चार कहना चाहो चार कह लो आदमी चौपाया बन जाता है शादी के बाद .एक पहिये से गाडी कैसे आगे बढ़ेगी .और ज़रा हिन्दुस्तान से बाहर आजाइए -ये ताज़ा गरमा गरम खाना ,सब हवा हो जाएगा .दस घंटे काम के बाद कैसी और क्यों अपेक्षा रखियेगा आप पत्नी से और पत्नी पति से ।
वर्ण आश्रम व्यवस्था भाई साहब अपनी मौत मर चुकी है .ये स्साला पति (छोटी इ )उसी का अवशेष दिखता है .इसका आनुवंशिक अध्ययन होना चाहिए .किस ख़याल में रहता है .ब्लोगिया बनगया तो क्या आसमान एक करेगा ।?
गुस्ताखी मुआफ हो भाई किसी को भी बुरा लगा हो तो .जो लिखा है बेलाग लिखा है बे -पहरा लिखा है .ब्लॉग लिखी के लिए माफ़ी .
आपस की बात और आपसी अनुभव क्यों सार्वजनिक किये जाएँ.
जवाब देंहटाएंक्या आप हमारीवाणी के सदस्य हैं? हमारीवाणी भारतीय ब्लॉग्स का संकलक है.
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hmesha kee tarah mazedar lekhani Arvind ji ki...muskurane ka ek bahana mil gaya.
जवाब देंहटाएंAnoop ji ke comment me sher bahut achcha laga.
खाना बनाना सबसे दुर्गम कामों में से एक है पर प्यार के कुछ स्नेहिल क्षण अगर इसी बहाने साथ बिताए जा सकें तो इसमें कोई बुराई नहीं है.. मैं तो मानता हूँ कि पति को सहयोग करना चाहिए..
जवाब देंहटाएं" आपने जूता सही जगह नहीं निकाला ,अगर आलमारी से एक कपडा निकलने गए तो सारा आलमारी रौंदकर बिगाड़ दिया....ड्राइंग रूम से बेडरूम बाथरूम तक सब कुछ तितर बितर अस्तव्यस्त कर दिया .... कमरा छोड़ने के पहले बत्ती नहीं बुझायी ...बाथरूम का दरवाजा ठीक से नहीं बंद किया .... घर या किचेन में से जो सामान जहाँ से उठाया वहां क्यों नहीं रखा .."
जवाब देंहटाएंबस इतनी ही तो अपेक्षा रखती है कोई पत्नी...यह पति से काम करवाना नहीं बल्कि ,घर साफ़ सुथरा व्यवस्थित रख पाने में पति से सहयोग की अपेक्षा है....इससे पुरुष को आपत्ति नहीं होनी चाहिए....
मिश्रा जी यूँ ही ब्लोगों में टहलते हुए यहाँ आ गई थी...यहाँ आकर पता चला कि आप तो अब भी वो शिकार करने..ट्रॉफी लाने वाले ज़माने की सोच में अटके हैं....जब औरतें बाहर जाकर घरखर्च चलाने में आपका सहयोग कर रहीं हैं....तो पुरुष उनका हाथ क्यूँ नहीं बटा सकते....? मुझे भी नहीं लगता कि पुरुषों को सब्जी काटने, आटा लगाने जैसे काम,जो की उन्हें निहायत ही औरतों के काम लगते हैं...करना चाहिए (मैं मना तो नहीं कर रही हूँ...अगर कोई करना चाहता ही हो तो शौक से करे) लेकिन कम से कम अपना सामान जैसा की आपने ही जिक्र किया...जूता सही जगह रखना,कपडा सलीके से निकलना...वगैरह....अब आप लोग इतना भी नहीं कर सकते....ये तो अपनी ही काबिलियत पर शक करने जैसी बात हो गयी...करके देखिये तो सही...फिर पुरुष ये भी कहते सुने गए हैं कि तुमसे अच्छी तरह से तो मैं कपडे अलमारी से निकलता हूँ..
जवाब देंहटाएंनेहा जी,
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ जो टहलते हुए इधर आ गयीं -मुझे भी बस इंतज़ार ही था :)
आपकी बात और उसके पहले मीनू खरे जी की बात का बस इत्ता ही जवाब है कि
काम में हाथ न बटाने से उपजे रोष के कारण पति पत्नी की जो नोक झोंक होती है उसमें ऊपर के
जुमले भी हैं -जो कई बार गैर जरुरी होते हैं -अब जूते का दो इंच इधर उधर होने पर आसमान सर पर लेने की क्या जरुरत है ?
कपडे क्यों झाड कर पहने जायं जब पता है कि उसमें कोई कीरा गोजर नहीं आया होगा !
आपकी थियरी और प्रक्टिकल दोनों से असहमति. घरेलू काम को नीचा समझ ही पुरुष उन्हें करने से बचता है. यह तो सरासर गृहिणी का अपमान है. आप जैसे लोग शान से कह सकते हैं कि कभी रसोई में नहीं गए, क्योंकि हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की और उसके बाद शादी हो गयी. इसीलिये आपको घर का काम ना करने की आदत है और ना ही इसे सभी के लिए स्वाभाविक समझने की, पर उन लड़कों का क्या, जिन्हें कई सालों तक बाहर संघर्ष करने के दौरान खुद खाना बनाना पड़ता है. इनके लिए तो ये स्वाभाविक ही है, खुद अपने हाथ से अपने कपड़े धोना, बर्तन मांजना और खाना बनाना. क्या आप उन्हें भी स्त्रैण कहेंगे?
जवाब देंहटाएंघरेलू काम मेरे ख्याल से सभी के लिए थोड़ा बहुत आना ज़रूरी होता है क्योंकि सभी घर में रहते हैं, इसे स्त्री-पुरुष के खाँचे में बाँटकर उपेक्षा से देखना सही नहीं है. इस मामले में मैं प्रवीण जी से और वाणी जी से सहमत हूँ.
सर, शिकार क्या करना है? हमें घर से आफिस जाकर काम ही तो करना है. वहां से घर ही तो आना है. घर पहुंचकर टीवी ही तो देखना है. ब्लॉग ही तो लिखना है. टिप्पणी ही तो देनी है. साहित्य ही तो पढ़ना है. इसमें कौन सा तीर-तलवार चला रहे हैं? या फिर हम किसी के ऊपर एहसान कर रहे हैं? इन सब ठाट के बीच घर में कुछ करना हो तो उसे काम का नाम देकर नहीं करना चाहते.
जवाब देंहटाएंमेरा कहना यह है की घर का काम छोड़कर बाकी सबकुछ हमारी हॉबी है:-)
आपके इसी कौशल की तो मैं कायल हूँ .आपके द्वारा कुरेदा मुद्दा और करारा प्रहार .कहाँ दर्द ज्यादा हो सकता है आपको बखूबी पता होता है .. मुझे तो आपकी हर-एक पोस्ट में कुछ गहरा ........दिखता है.अच्छा लगा ..
जवाब देंहटाएंदेर से आया हूँ लेकिन अपनी बात जरूर बताना चाहूँगा।
जवाब देंहटाएंकक्षा आठ से लेकर बी.ए. में हॉस्टल मिलने तक विद्यार्थी जीवन में स्वपाकी रहा हूँ। तब भोजन बनाने की कला थोड़ी बहुत सीख लेने का अवसर मिल गया था। नौकरी मिलने के बाद शादी हुई तो गृहकार्यदक्ष पत्नी मिली। स्वादिष्ट और सुरुचिपूर्ण भोजन बनाने वाली और घर को सजाकर साफ-सुथरा रखने वाली।
मतलब यह कि मैं आराम से नौकरी करते हुए घर उनके जिम्मे छोड़कर मजे कर सकता था। लेकिन सच्चाई यह है कि इस तरह दो विभागों में बँटकर रहने पर वह मजा नहीं मिलता है जो एक-दूसरे के काम में रुचि लेने, हाथ बँटाने और सहयोग करने में मिलता है। घर के भीतर ऐसे बहुत से काम हैं जिनमें पति थोड़ा सा ध्यान दे दे तो पत्नी उसपर लट्टू हो जाय। वह बच्चों को नहलाकर बाथरूम से निकाले और आप उन्हें तौलिए से पोंछकर कपड़े ही पहना दें। फल और सब्जियों की टोकरी उसके हाथ से लेकर खुद काटने बैठ जाय और वह चाय बना लाये, या वह किसी काम में व्यस्त हो और आप अपने साथ उसकी चाय भी बनाकर साथ बैठ जाय। उसके द्वारा धुले गये कपड़े यदि आपने निचोड़कर बाहर फैला भी दिए तो वह बहुत राहत महसूस करेगी।
शायद इन छोटे-छोटे (क्षुद्र नहीं) कार्यों के बदले उसके मन के भीतर से आपके लिए जो प्रेम उमड़ेगा उसका स्वाद बहुत ही नैसर्गिक और अनोखा होगा। आशा है इसका अनुभव आपको जरूर हुआ होगा। मैं तो उस एक मुस्कान पर ही कुर्बान जाता हूँ जो मेरे द्वारा करीने से काटी और धोयी गयी सब्जी को देखकर मेरी पत्नी के चेहरे पर खिल जाती है।