tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post2159829855890474882..comments2024-03-13T17:50:52.287+05:30Comments on क्वचिदन्यतोSपि...: मेरे पति मेरे कामों में बिलकुल भी हाथ नहीं बटाते!Arvind Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comBlogger35125tag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-56234535240667668682011-06-01T23:19:21.074+05:302011-06-01T23:19:21.074+05:30देर से आया हूँ लेकिन अपनी बात जरूर बताना चाहूँगा।
...देर से आया हूँ लेकिन अपनी बात जरूर बताना चाहूँगा।<br /><br />कक्षा आठ से लेकर बी.ए. में हॉस्टल मिलने तक विद्यार्थी जीवन में स्वपाकी रहा हूँ। तब भोजन बनाने की कला थोड़ी बहुत सीख लेने का अवसर मिल गया था। नौकरी मिलने के बाद शादी हुई तो गृहकार्यदक्ष पत्नी मिली। स्वादिष्ट और सुरुचिपूर्ण भोजन बनाने वाली और घर को सजाकर साफ-सुथरा रखने वाली।<br /><br />मतलब यह कि मैं आराम से नौकरी करते हुए घर उनके जिम्मे छोड़कर मजे कर सकता था। लेकिन सच्चाई यह है कि इस तरह दो विभागों में बँटकर रहने पर वह मजा नहीं मिलता है जो एक-दूसरे के काम में रुचि लेने, हाथ बँटाने और सहयोग करने में मिलता है। घर के भीतर ऐसे बहुत से काम हैं जिनमें पति थोड़ा सा ध्यान दे दे तो पत्नी उसपर लट्टू हो जाय। वह बच्चों को नहलाकर बाथरूम से निकाले और आप उन्हें तौलिए से पोंछकर कपड़े ही पहना दें। फल और सब्जियों की टोकरी उसके हाथ से लेकर खुद काटने बैठ जाय और वह चाय बना लाये, या वह किसी काम में व्यस्त हो और आप अपने साथ उसकी चाय भी बनाकर साथ बैठ जाय। उसके द्वारा धुले गये कपड़े यदि आपने निचोड़कर बाहर फैला भी दिए तो वह बहुत राहत महसूस करेगी। <br /><br />शायद इन छोटे-छोटे (क्षुद्र नहीं) कार्यों के बदले उसके मन के भीतर से आपके लिए जो प्रेम उमड़ेगा उसका स्वाद बहुत ही नैसर्गिक और अनोखा होगा। आशा है इसका अनुभव आपको जरूर हुआ होगा। मैं तो उस एक मुस्कान पर ही कुर्बान जाता हूँ जो मेरे द्वारा करीने से काटी और धोयी गयी सब्जी को देखकर मेरी पत्नी के चेहरे पर खिल जाती है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-39862694048641659192011-05-29T18:48:31.483+05:302011-05-29T18:48:31.483+05:30आपके इसी कौशल की तो मैं कायल हूँ .आपके द्वारा कुरे...आपके इसी कौशल की तो मैं कायल हूँ .आपके द्वारा कुरेदा मुद्दा और करारा प्रहार .कहाँ दर्द ज्यादा हो सकता है आपको बखूबी पता होता है .. मुझे तो आपकी हर-एक पोस्ट में कुछ गहरा ........दिखता है.अच्छा लगा ..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-49945084874848075262011-05-28T11:17:55.947+05:302011-05-28T11:17:55.947+05:30सर, शिकार क्या करना है? हमें घर से आफिस जाकर काम ह...सर, शिकार क्या करना है? हमें घर से आफिस जाकर काम ही तो करना है. वहां से घर ही तो आना है. घर पहुंचकर टीवी ही तो देखना है. ब्लॉग ही तो लिखना है. टिप्पणी ही तो देनी है. साहित्य ही तो पढ़ना है. इसमें कौन सा तीर-तलवार चला रहे हैं? या फिर हम किसी के ऊपर एहसान कर रहे हैं? इन सब ठाट के बीच घर में कुछ करना हो तो उसे काम का नाम देकर नहीं करना चाहते. <br /><br />मेरा कहना यह है की घर का काम छोड़कर बाकी सबकुछ हमारी हॉबी है:-)Shivhttps://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-88837245985910777932011-05-27T11:01:20.869+05:302011-05-27T11:01:20.869+05:30आपकी थियरी और प्रक्टिकल दोनों से असहमति. घरेलू काम...आपकी थियरी और प्रक्टिकल दोनों से असहमति. घरेलू काम को नीचा समझ ही पुरुष उन्हें करने से बचता है. यह तो सरासर गृहिणी का अपमान है. आप जैसे लोग शान से कह सकते हैं कि कभी रसोई में नहीं गए, क्योंकि हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की और उसके बाद शादी हो गयी. इसीलिये आपको घर का काम ना करने की आदत है और ना ही इसे सभी के लिए स्वाभाविक समझने की, पर उन लड़कों का क्या, जिन्हें कई सालों तक बाहर संघर्ष करने के दौरान खुद खाना बनाना पड़ता है. इनके लिए तो ये स्वाभाविक ही है, खुद अपने हाथ से अपने कपड़े धोना, बर्तन मांजना और खाना बनाना. क्या आप उन्हें भी स्त्रैण कहेंगे? <br />घरेलू काम मेरे ख्याल से सभी के लिए थोड़ा बहुत आना ज़रूरी होता है क्योंकि सभी घर में रहते हैं, इसे स्त्री-पुरुष के खाँचे में बाँटकर उपेक्षा से देखना सही नहीं है. इस मामले में मैं प्रवीण जी से और वाणी जी से सहमत हूँ.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-45188533064669079902011-05-26T08:59:00.051+05:302011-05-26T08:59:00.051+05:30नेहा जी,
अच्छा हुआ जो टहलते हुए इधर आ गयीं -मुझे भ...नेहा जी,<br />अच्छा हुआ जो टहलते हुए इधर आ गयीं -मुझे भी बस इंतज़ार ही था :) <br />आपकी बात और उसके पहले मीनू खरे जी की बात का बस इत्ता ही जवाब है कि <br /> काम में हाथ न बटाने से उपजे रोष के कारण पति पत्नी की जो नोक झोंक होती है उसमें ऊपर के<br />जुमले भी हैं -जो कई बार गैर जरुरी होते हैं -अब जूते का दो इंच इधर उधर होने पर आसमान सर पर लेने की क्या जरुरत है ?<br />कपडे क्यों झाड कर पहने जायं जब पता है कि उसमें कोई कीरा गोजर नहीं आया होगा !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-84780829695163144052011-05-26T08:30:27.674+05:302011-05-26T08:30:27.674+05:30मिश्रा जी यूँ ही ब्लोगों में टहलते हुए यहाँ आ गई थ...मिश्रा जी यूँ ही ब्लोगों में टहलते हुए यहाँ आ गई थी...यहाँ आकर पता चला कि आप तो अब भी वो शिकार करने..ट्रॉफी लाने वाले ज़माने की सोच में अटके हैं....जब औरतें बाहर जाकर घरखर्च चलाने में आपका सहयोग कर रहीं हैं....तो पुरुष उनका हाथ क्यूँ नहीं बटा सकते....? मुझे भी नहीं लगता कि पुरुषों को सब्जी काटने, आटा लगाने जैसे काम,जो की उन्हें निहायत ही औरतों के काम लगते हैं...करना चाहिए (मैं मना तो नहीं कर रही हूँ...अगर कोई करना चाहता ही हो तो शौक से करे) लेकिन कम से कम अपना सामान जैसा की आपने ही जिक्र किया...जूता सही जगह रखना,कपडा सलीके से निकलना...वगैरह....अब आप लोग इतना भी नहीं कर सकते....ये तो अपनी ही काबिलियत पर शक करने जैसी बात हो गयी...करके देखिये तो सही...फिर पुरुष ये भी कहते सुने गए हैं कि तुमसे अच्छी तरह से तो मैं कपडे अलमारी से निकलता हूँ..नेहाhttp://s4soch.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-16317161989550010782011-05-25T18:19:15.137+05:302011-05-25T18:19:15.137+05:30" आपने जूता सही जगह नहीं निकाला ,अगर आलमारी स..." आपने जूता सही जगह नहीं निकाला ,अगर आलमारी से एक कपडा निकलने गए तो सारा आलमारी रौंदकर बिगाड़ दिया....ड्राइंग रूम से बेडरूम बाथरूम तक सब कुछ तितर बितर अस्तव्यस्त कर दिया .... कमरा छोड़ने के पहले बत्ती नहीं बुझायी ...बाथरूम का दरवाजा ठीक से नहीं बंद किया .... घर या किचेन में से जो सामान जहाँ से उठाया वहां क्यों नहीं रखा .."<br /><br />बस इतनी ही तो अपेक्षा रखती है कोई पत्नी...यह पति से काम करवाना नहीं बल्कि ,घर साफ़ सुथरा व्यवस्थित रख पाने में पति से सहयोग की अपेक्षा है....इससे पुरुष को आपत्ति नहीं होनी चाहिए....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-43702201674944717192011-05-24T11:44:38.841+05:302011-05-24T11:44:38.841+05:30खाना बनाना सबसे दुर्गम कामों में से एक है पर प्यार...खाना बनाना सबसे दुर्गम कामों में से एक है पर प्यार के कुछ स्नेहिल क्षण अगर इसी बहाने साथ बिताए जा सकें तो इसमें कोई बुराई नहीं है.. मैं तो मानता हूँ कि पति को सहयोग करना चाहिए..Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-25326964156094822192011-05-23T17:21:01.541+05:302011-05-23T17:21:01.541+05:30hmesha kee tarah mazedar lekhani Arvind ji ki...mu...hmesha kee tarah mazedar lekhani Arvind ji ki...muskurane ka ek bahana mil gaya.<br />Anoop ji ke comment me sher bahut achcha laga.Meenu Kharehttps://www.blogger.com/profile/12551759946025269086noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-75015122255400137132011-05-23T12:06:15.846+05:302011-05-23T12:06:15.846+05:30क्या आप हमारीवाणी के सदस्य हैं? हमारीवाणी भारतीय ब...क्या आप हमारीवाणी के सदस्य हैं? हमारीवाणी भारतीय ब्लॉग्स का संकलक है.<br /><br /><br />अधिक जानकारी के लिए पढ़ें:<br /><a href="http://www.hamarivani.com/news_details.php?news=34" rel="nofollow">हमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि</a> <br /><br /><br /><a href="http://www.hamarivani.com/news_details.php?news=41" rel="nofollow">हमारीवाणी पर ब्लॉग प्रकाशित करने के लिए क्लिक कोड लगाएँ</a>हमारीवाणीhttps://www.blogger.com/profile/02677178735599301399noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-82034589831875287372011-05-22T23:40:14.988+05:302011-05-22T23:40:14.988+05:30आपस की बात और आपसी अनुभव क्यों सार्वजनिक किये जाएँ...आपस की बात और आपसी अनुभव क्यों सार्वजनिक किये जाएँ.Sushil Bakliwalhttps://www.blogger.com/profile/08655314038738415438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-29692251099573825312011-05-22T23:13:45.496+05:302011-05-22T23:13:45.496+05:30कई ब्लोगर -भाई ,गले लगा गए अरविन्दजी की "जोग ...कई ब्लोगर -भाई ,गले लगा गए अरविन्दजी की "जोग लिखी "को .वैसे मैं ऐसा मानता हूँ आदमी सिर्फ अपने जीवन खण्डों ,जीवन इकाइयों का जमा जोड़ मात्र नहीं है जिन पर बे -वफाई से लेकर आतंकी होने का तमगा लगा दिया जाता है .नेचर एंड नर्चर का योग हैं आप .और आपका "आपा "।<br />वैसे शोषण करता पति अकसर पूँजी वादी भाषा बोलता है -पत्नी -पीड़ित इसी पूँजी वादी सोच से निकला शब्द प्रयोग है .होम मिनिस्टर भी ।शमिता मौलिक शब्द है .एहसासों से रिसा है पति के साथ रहते रहते किसी शोषिता के मुख से .<br />भाई साहब कहा यही गया है "पति -पत्नी घर गृहस्थी के दो पहिये हैं "चार कहना चाहो चार कह लो आदमी चौपाया बन जाता है शादी के बाद .एक पहिये से गाडी कैसे आगे बढ़ेगी .और ज़रा हिन्दुस्तान से बाहर आजाइए -ये ताज़ा गरमा गरम खाना ,सब हवा हो जाएगा .दस घंटे काम के बाद कैसी और क्यों अपेक्षा रखियेगा आप पत्नी से और पत्नी पति से ।<br />वर्ण आश्रम व्यवस्था भाई साहब अपनी मौत मर चुकी है .ये स्साला पति (छोटी इ )उसी का अवशेष दिखता है .इसका आनुवंशिक अध्ययन होना चाहिए .किस ख़याल में रहता है .ब्लोगिया बनगया तो क्या आसमान एक करेगा ।?<br />गुस्ताखी मुआफ हो भाई किसी को भी बुरा लगा हो तो .जो लिखा है बेलाग लिखा है बे -पहरा लिखा है .ब्लॉग लिखी के लिए माफ़ी .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-41655706190755300022011-05-22T22:49:09.035+05:302011-05-22T22:49:09.035+05:30पत्नी पीड़ित ,पत्नी -शाषित और पत्नी अवमानित में फर्...पत्नी पीड़ित ,पत्नी -शाषित और पत्नी अवमानित में फर्क है भाई साहब .वैसे पत्नी पालना अपने आप में जान जोखों में डालने वाली बात है .मंहगा शौक तो अपने आप में है ही .खतरनाक भी है चौबीसों घंटा आदमी स्केनर के सामने रहता है .रोग निदान आखिर आखिर तक भी नहीं हो पाता .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-31213162714282702252011-05-22T18:59:39.389+05:302011-05-22T18:59:39.389+05:30हिमालय आरोहण :)मन हिमालय आरोहण को तैयार होने लगता ...हिमालय आरोहण :)मन हिमालय आरोहण को तैयार होने लगता है <br /><br />हिमालय आरोहण ...... रसोई आरोहण का रास्ता मापिये ... अच्छा लगेगा :)रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-70539515549760691112011-05-22T17:33:43.774+05:302011-05-22T17:33:43.774+05:30’हेन-पेक्ड’ शब्द से एतराज है’हेन-पेक्ड’ शब्द से एतराज हैNeerajhttps://www.blogger.com/profile/11989753569572980410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-19953926575265707752011-05-22T16:51:05.650+05:302011-05-22T16:51:05.650+05:30---बर्तन मांजने ,आंटा गूंथने ,साग सब्जी काटने, घर ...---बर्तन मांजने ,आंटा गूंथने ,साग सब्जी काटने, घर की साफ़ सफाई ,कपडे साफ़ करने ...<br /><br />वाह नारियों की तो बल्ले बल्ले आज :)Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-48952418679565348462011-05-22T15:53:39.844+05:302011-05-22T15:53:39.844+05:30आपने तो पहले पैराग्राफ में हम जैसे पतियों को अलग प...आपने तो पहले पैराग्राफ में हम जैसे पतियों को अलग प्रजाति का कह दिया दूसरे पैराग्राफ में आपने हमे गरियाने का भी मन बनाया कुकडूु कू के बाद भी साहब हमें तो दही बडा या कचैारी कुछ न कुछ लेकर आना ही पडता था। चौथे पैराग्राफ की सर्वे रिपोर्ट सही है और यह भी सही है कि दफतर जाते जाते पेपर पत्रिकाये कितावें पलंग पर हम लोग एैसे फैला देते है जैसे अभी हाल ही यहां से कुत्ते लड कर गये हो। हम क्रिकेट मैच देखते है तो चार वार चाय बनवाते है और खाना भी सोफे पर टीवी के सामने बैठ कर ही खाते है। खैर आपका व्यंग्य की पुट देता आलेख अच्छा लगाBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-64528314796319414272011-05-22T14:50:55.826+05:302011-05-22T14:50:55.826+05:30वो सब तो ठीक है पर यह अडोस-पडोस में ताख-झांक क्या ...वो सब तो ठीक है पर यह अडोस-पडोस में ताख-झांक क्या है? और फिर, उसका ढिंढोरा भी :)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-3686172504370914502011-05-22T08:08:03.263+05:302011-05-22T08:08:03.263+05:30फिल्म कथा का एक दृश्य था...
एक बुज़ुर्ग महाशय हाथ ...फिल्म कथा का एक दृश्य था...<br />एक बुज़ुर्ग महाशय हाथ में सब्ज़ियों के बड़े थैले लटकाए हुए चाल की सीढ़ियां चढ़ रहे होते हैं...<br /><br />उनके एक परिचित पूछते हैं...क्यों जनाब, भाभी जी की मदद हो रही है...<br /><br />बुज़ुर्ग महाशय तमक कर जवाब देते हैं...क्यों वो मेरी मदद नहीं करती बर्तन मांजने में...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-64150000320543674642011-05-22T07:46:49.851+05:302011-05-22T07:46:49.851+05:30देर से आया हूँ ...क्षमा प्रार्थी हूँ !
हमसे एक ही ...देर से आया हूँ ...क्षमा प्रार्थी हूँ !<br />हमसे एक ही काम नहीं हो पाता की किचिन में घुस पायें ....पूरे जीवन में १० -१२ बार ही याद हैं, वह भी चाय आदि के लिए, श्रीमती जी के बीमार होने पर बाहर से मँगा कर खाना पसंद है ! <br />यह पोस्ट लीक से हट कर लगी .... रुचिकर तो है ही :-)<br />शुभकामनायें !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-72976620384205263112011-05-22T07:37:37.768+05:302011-05-22T07:37:37.768+05:30शिकार पर यदि पत्नियाँ भी सहचरी हों तो ..
कोई भी तथ...शिकार पर यदि पत्नियाँ भी सहचरी हों तो ..<br />कोई भी तथ्य सार्वभौमिक तो नहीं है. परिवर्तन होते ही रहते हैं और फिर शायद यह जीनों में तब्दीली का हजारवाँ नही लाखवाँ वर्ष हो. परिस्थितिजन्य और आवश्यकताजन्य व्यवहार ही सार्थक हैM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-22802601703645915342011-05-22T06:39:50.409+05:302011-05-22T06:39:50.409+05:30थकान और समय की कमी के कारण घर के कामों में हाथ ना ...थकान और समय की कमी के कारण घर के कामों में हाथ ना बटाये , ये तो समझ आता है , मगर क्षुद्र काम समझ कर नहीं किया जाए , यह ठीक नहीं लगता !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-48569133783139349662011-05-21T23:51:37.351+05:302011-05-21T23:51:37.351+05:30ज़ान की हिफ़ाज़त दी जाये सरकार,
मेरा आपसे नाइत्तेफ़ाक़ी...<i>ज़ान की हिफ़ाज़त दी जाये सरकार,<br />मेरा आपसे नाइत्तेफ़ाक़ी का दौर चल रहा है ।<br />मैं आपकी पोस्ट से असहमत रहने के अपने कारण देखता हूँ ।<br />तेजी से भागते इस कामगर समाज में ऎसी सोच का कोई स्थान नहीं है ।<br />बल्कि ग्रांमीण परिवेश में भी पति-पत्नी बराबरी से काम निपटाते देखे जा सकते हैं ।<br />पूर्वोत्तर राज्यों में बाहर के कामों पर स्त्रियों का वर्चस्व है, वह पति के ’शिका्र’ जाने या लौटने की प्रतीक्षा नहीं किया करतीं । ऎसी स्थिति को आपका सामाजिक अध्ययन किस रूप में देखता है, अतएव अपनी सोच से जुड़े व्यवहार को आप सार्वभौमिक नहीं मान सकते, न ही इनके सार्वभौमिक होने की अपेक्षा ही करनी चाहिये ।<br />मेरी पत्नी मेरी इच्छानुसार ’हाउस-वाइफ़’ ही हैं, फिर भी मैं उनके कामों में अक्सर हाथ बँटाता ही रहता हूँ । स्त्री-सुलभ प्रवीणताओं में हाथ न डालते हुये, अपने बस के हल्के फुल्के कामों में सहारा दे देने में मुझे ऎसी कोई हेठी नहीं दिखती । आजकल मैं अपेक्षाकृत ’फ़्री’ हूँ, अतः मधुलिका डाट कॉम से पढ़ कर कई तरह के आम के अचार, करेले का अचार, हरी मिर्च का अचार डाल चुका हूँ । मुझे प्रसन्नता है कि मैं अपनी सहधर्मिणी की मदद कर सकता हूँ । परस्पर प्रेम में एक दूसरे का ग़ुलाम होना कोई ऎसी बात नहीं जिससे ’हेन-पेक्ड’ जैसा कोई मुहावरा तैयार किया जा सके । <br /><br />In fact, Hen-pecked husaband is invention of bourgeois theory... an I refute it ! <br />ज़ान की हिफ़ाज़त दी जाये सरकार,<br />मेरा आपसे नाइत्तेफ़ाक़ी का दौर चल रहा है ।<br /></i>डा० अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09556018337158653778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-46737185315754993332011-05-21T21:03:04.965+05:302011-05-21T21:03:04.965+05:30मुझे तो वर्ष की सर्वाधिक विवादास्पद पोस्ट्स में से...मुझे तो वर्ष की सर्वाधिक विवादास्पद पोस्ट्स में से एक के बनने के आसार नजर आ रहे हैं इस पोस्ट के. :-)<br />कुछ पतिदेव शायद "कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना" को भी चरितार्थ करें. :):)अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8597911904720918143.post-76344068955045582662011-05-21T20:54:47.551+05:302011-05-21T20:54:47.551+05:30आपके समर्थन में ही शायद वसीम बरेलवी ने लिखा है:
थक...आपके समर्थन में ही शायद वसीम बरेलवी ने लिखा है:<br /><b>थके हारे परिंदे जब बसेरे के लिये लौटें<br />सलीका मंद शाखों का लचक जाना जरूरी है।</b><br /><br />बाकी सब तर्क लचर हैं। तथाकथित शिकार से लौटा पति यह अपेक्षा करे कि घर में वह कोई सहयोग नहीं करेगा यह बहुत खराब सोच है। घराणी भी तो शिकार करती रहती है दिन भर। बाहर का शिकार बंद हो जाये हफ़्ते भर तो कोई फ़रक नहीं पड़ेगा लेकिन घर का काम काज एक दिन के लिये बन्द हो जाये तो बारह क्या चौदह बज जायेंगे शिकारगाह से लौटते शिकारी के। :)अनूप शुक्लhttp://hindini.com/fursatiyanoreply@blogger.com