गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

शादी व्याह के निमत्रण पत्रों की हिन्दी !

इन दिनोंअपने हिन्दी ब्लॉग जगत में हिन्दी के स्तर को लेकर बहस मुबाहिसों का महौल गरम है -बाहर के ४५ डिग्री सेल्सियस से भी शायद ज्यादा गरम .कुछ ब्लागरों ने तो धमकी तक दे डाली है कि वे कथित " क्लिष्ट " हिन्दी के ब्लागों से गुरेज करने में भी नही हिचकेंगें ! ! मजे की बात है की सबसे पहले मुझे क्लिष्ट जैसे 'क्लिष्ट 'शब्द की जानकारी ही एक ऐसे सज्जन से हुयी थी जिनकी हिन्दी बस माशा अल्लाह ही थी ! तब मैंने उनसे पूंछा था कि जब उन्हें हिन्दी के कठिन (?) शब्दों से परहेज है तो वे "क्लिष्ट" शब्द ही इतनी सरलता से कैसे जान गए हैं ! क्योंकि यह तो स्वयं में ही एक क्लिष्ट शब्द है ! इसका सरल समानार्थी है कठिन ! और मैंने जब उनसे यह जानना चाहा था कि जैसे उन्होंने क्लिष्ट शब्द को जिह्वाग्र कर डाला है दूसरे कथित कठिन शब्दों को क्यों नही सीखते जाते -क्योंकि शब्द के अर्थ को जब ठीक से आत्मसात /हृदयंगम कर लिया जाता है तो वे फिर कठिन रह ही कहाँ जाते हैं ? मुझे याद है कि मेरे सवाल का माकूल उत्तर न देकर वे बगले झाकने लग गए थे !

स्तरीय हिन्दी से आप में से अधिकांश बिदकने वाले लोगों की भी कहानी वैसी ही है जो क्लिष्ट जैसे क्लिष्ट शब्द को तो हिन्दी से अपनी आलस्य जनित दूरी बनाये रखने के ढाल स्वरुप सहज ही सीख लेते हैं और धडल्ले से आत्मरक्षा में इसका इस्तेमाल करते फिरते हैं मगर "स्तरीय " हिन्दी सीखने की ओर एक भी कदम नही उठाते ! ठीक है हिन्दी के बोलचाल की भाषा के हिमायती बहुत हैं ,मैं भी हूँ ! तुलसी ने तो यहाँ तक कह डाला -भाषा भनिति भूति भल सोयी ,सुरसरि सम सब कर हित होई ! ( भाषा ,कविता यश -प्रसिद्धि वही अच्छी है जिससे गंगा नदी की भांति सबका हित हो ! ) मगर ख़ुद तुलसी के भाषाई पांडित्य पर क्या कोई उंगली उठा सकता है ? वे संस्कृत के भी प्रकांड विद्वान् थे ! संदेश साफ़ है किसी भी भाषा को गहराई तक जानिए मगर जन सामान्य के लिए उनसे उनकी ही बोली भाषा में संवाद कीजिये ! इन दिनों हिन्दी को भ्रष्ट करने की मानो एक मुहिम ही चल पडी है ,कई विद्वान् भी चलताऊ भाषा की पुरजोर वकालत कर रहे है ! हिंगलिश का बोलबाला है ! पर इससे हिन्दी के रूप सौन्दर्य और भाषाई शुचिता का कितना नुकसान हो रहा है -क्या कोई भाषा विज्ञानी बता सकेंगें ? बात क्लिष्ट और सरल हिदी की नही है -बात भाषा के नाद सौन्दर्य का है -वह बनी रहे भले ही उसमें कथित क्लिष्ट शब्द हो या न हों ! मैंने प्रायः देखा है कि विज्ञता के अभाव में सरल शब्दों का इस्तेमाल करने वाले लोग भाषा का कबाडा कर देते हैं और दंभ भरते हैं कि वे सरल हिन्दी के प्रति प्राणपण से समर्पित हैं -वहीं ऐसे भी ब्लॉग लेखक हैं जो सहज हो भाषाई प्रयोग करते हैं और इस बात को लेकर जरा भी असहज नही होते कि वे क्लिष्ट या सरल शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं -फलतः भाषा का एक सहज स्वरुप कल कल बहती नदी या झरने सदृश आ उपस्थित होता है -मन मोह लेता है ! ओह भूमिका लम्बी हो गयी ! मैंने यह विमर्श ( यह भी शब्द प्रचलन में कोई एक डेढ़ दशक से ही ज्यादा है ) एक खास मकसद से शुरू किया था ! वह बात ऐसी है न कि इन दिनों शादी व्याह का मौसम है तो तरह तरह के रंग बिरंगे निमंत्रण कार्ड मिल रहे हैं और वे भी जिनका भषाई सरोकार से कुछ भी लेना देना नही है ऐसे लच्छेदार भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं कि बस कुछ मत पूछिए !

बचपन में शादी के निमत्रण कार्डों का यह मजमून आज भी रटा हुआ सा है -
भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हे बुलाने को
हे मानस के राजहंस तुम भूल जाना आने को
कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है -मगर अब इस तरह का भाषाई व्यवहार थोडा आउट डेटेड सा है ! बैकवर्ड सा ! क्यों ?
मगर भावों की सुन्दरता आज भी इन पंक्तियों में वैसी ही है ! अब जो यह नही जानते या जानने की कोशिश नही करेंगें कि आमंत्रित को मानस का राजहंस क्यों कहा जा रहा है, वे भला इन पंक्तियों का आनंद कैसे उठा सकते हैं ? -अब इसमें कहाँ कोई क्लिष्ट शब्द है -पर हमारी एक साहित्यिक मान्यता यहाँ विद्यमान है जिसमें मानस के हंस में नीर क्षीर विवेक की क्षमता दिखायी गयी है ! नीर क्षीर की क्षमता बोले तो विद्वता का उत्कर्ष !

ऐसे ही इन दिनों गरमी में बार बार के बिजली के चले जाने से उत्पन्न असहायता और खाली समय के कुछ सदुपयोग के लिहाज से मैंने निमंत्रण कार्डों पर एक नजर डाली है ! अब उपर्युक्त सरीखे दोहे तो प्रचलन में नही हैं -अब ज्यादातर गणेश जी से जुड़े संस्कृत के श्लोकों से काम चलाया जा रहा है ( फिर वे तो और भी क्लिष्ट हुए ) ! मगर जरा निमंत्रण के इस भाषाई सौन्दर्य पर भी तो दृष्टिपात कीजिये - " ........के पावन परिणयोत्सव की मधुर बेला पर पधार कर अपने स्नेहिल आशीर्वाद से नवयुगल को अभिसिंचित कर हमें अनुगृहीत करें......" या फिर इधर गौर फरमाएं - " ...के पाणिग्रहण ( कैसा क्लिष्ट शब्द है ?) संस्कार में आनंद और उल्लास के इस मांगलिक अवसर पर उपस्थित होकर हमें आतिथ्य का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें ..." या फिर ....." ....के मंगल परिणयोत्सव की मधुरिम बेला में पधार कर अपने आशीर्वाद की मृदुल ज्योत्स्ना से नव युगल के जीवन पथ को आलोकित करें ॥"

ये सभी " क्लिष्ट शब्द ही तो हैं मगर देखिये तो वे हमारे मांगलिक क्षणों की साथी हैं ! पता नही कैसे वे लोगों को क्लिष्ट लगते हैं ! मतलब तो समझ लीजै श्रीमान ! जब आप सीखने का जज्बा लायेंगें तो यही शब्द आपको अच्छे लगने लगेगें ! हाँ बहुत से बुद्धिजीवी अब यह कहते भये हैं कि आडम्बर पूर्ण भाषा का इस्तेमाल न किया जाय ! मगर भाषा हमारी जीवन शैली ,रीति रिवाजों -मतलब संस्कृति से गहरी जुडी है ! यदि हम भाषा को क्लिष्टता के सतही आधार पर खारिज करेंगें तो शायद हमें अपने कई अनुष्ठानों , कार्यों से भी तौबा करना या काफी बदलाव करना होगा !

और अंत में मैंने एक मांगलिक अवसर पर आज यूँ स्नेहकामना की है -

परिणय दशाब्दि जयंती पर एकनिष्ठ दाम्पत्य की अनंत शुभकामनाएं !

क्या अब भी आप इसे क्लिष्ट मानते हैं ?

रविवार, 26 अप्रैल 2009

शुक्र है शुक्र दिखा मगर चाँद नदारद !

प्रातः दर्शनीय शुक्र और बृहस्पति -शुक्र उदय हो रहा है!
सौजन्य -अस्ट्रोनोमी गो गो
गत्यात्मक ज्योतिष के दावे की जांच के लिए मैं अपने ग्राम्य प्रवास की २४ अप्रैल की ब्राह्म बेला में उठा और तुरत फुरत पूर्वाकाश को निहारने भागा ! पूर्व दिशा में दो तारे बहुत ही तेज आभा बिखेर रहे थे ! अरे ये तारे नही दो ग्रह थे -बृहस्पति/जुपिटर ( देवताओं के गुरु ) और शुक्र /वीनस ( राक्षसों के राजा ) जिन्हें आम तौर पर इवेनिंग स्टार ( misnomer ! ) कहा जाता है क्योंकि ये अक्सर लोगों को शाम के समय दीखते हैं !

मैं पूर्वाकाश में इन दोनों ग्रहों के दृश्य सौन्दर्य से स्तंभित सा रह गया ! गत्यात्मक ज्योतिष के दावे के अनुसार चाँद को भी दिखना था मगर चाँद तो सिरे से नदारद था और सुबह होने तक उसका अता पता नही था ! जबकि दावा यह किया गया था कि यह शुक्र के साथ सुंदर युति बनाएगा ! महज पत्रा-पंचांग देख कर आकाशीय भविष्यवाणियों का कभी कभी यही हश्र होता है ! बहरहाल चाँद का न होना मेरे लिए तो छुपा हुआ वरदान ही साबित हुआ क्योंकि उसकी रोशनी न होने से शुक्र और बृहस्पति और भी दीप्तिमान हो रहे थे !

बृहस्पति जल्दी ही उदित होकर क्रान्तिवृत्त ( जिस तलपट्टी पर सारे ग्रह सूर्य की परक्रमा करते हैं ,क्रान्ति वृत्त है !यह आसमान में ऊत्तर पूर्व क्षितिज से एक रेखा में दक्षिण -पश्चिम क्षितिज तक विस्तारित है जिस पर सारे ग्रह चलते दीखते हैं ! ) की पट्टी पर काफी आगे निकल चुके थे ,आख़िर देवताओं के राजा जो ठहरे और शुक्र उनके नीचे मानों उनका तेजी से पीछा कर रहे हों ,ऐसे दिखे !


गावों में पूर्व में शुक्र को उगने को किसी महापर्व से कम नही माना जाता -लोक जीवन में शुकवा का यही उदय कई मांगलिक कामों खासकर व्याह शादी की शुरुआत की उद्घोषणा माना जाता है ! आजकल के फलित ज्योतिषी आसमान में न देखकर पत्रा में देखकर ही शुक्र उदय की घोषणा करते है और यह कैसी विडम्बना है कि वह आसमान में कहीं ज्यादा स्पष्ट और सुंदर दीखते है ! यह बहुत अजीब सा लगता है कि एक ओर तो शुक्र भारतीय मिथकों में राक्षसों के राजा हैं तो फिर वे लोकजीवन में मांगलिक कामों के मसीहा क्योंकर हुए ! किसी फलित ज्योतिषी से पूँछिये तो वह ऐसे सवालों का बस उल जलूल उत्तर देने लगेगा !


दरअसल आज की हमारी संस्कृति विभिन्न संस्कृतियों के मेल से विकसित एक मिश्रित और अपने में न जाने किन किन देशों के रीति रिवाज और यहाँ तक कि परस्पर विरोधी मान्यताओं को भी समेटे हुए है ! शुक्र (शुक्राचार्य ) हमारे यहाँ भले ही राक्षसों के राजा हैं वे यूनान में स्त्रीलिंग हो प्रेम की देवी के रूप में पूजित हैं ! अब कौन नहीं जानता की भारत के फलित ज्योतिष पर यूनानी और बेबीलोन सभ्यताओं की भी गहरी छाप है ! तो हमने इन दोनों मान्यताओं जिसमें एक ओर शुक्र दैत्यों के गुरुदेव हैं और दूसरी और प्रेम की देवी के रूप में प्रतिष्ठित भी हैं के बीच समन्वय कर लिया है ! आज जब शुक्रोदय से व्याह शादी के मूहूर्त तय होने लगते हैं तो बहुत संभव है की हम शुक्र के प्रेम की देवी वाले रूप के ही स्मृति शेष का स्तवन कर रहे होते हैं !

कृष्ण ने तो गीता में यहाँ तक कह दिया है -" कविनाम उसना कविः " -शुक्र के कई नाम हैं जिसमें एक नाम उसना भी है ! अब देखिये कृष्ण स्वयं कह रहे हैं की वे कवियों में शुक्राचार्य हैं -जैसे कि राग रंग .कविताई सभी आसुरी वृत्तियाँ हों ! मजे की बात है कि राग रंग नाचना गाना इस्लाम में वर्जित सा है ! क्या कभी कोई ऐसी विचारधरा भी भारतीय मनीषा में उपजी जिसने आमोद प्रमोद कविता कला ,अन्य विभिन्न कलाओं का प्रतिषेध किया हो -जैसे वे मानव के अंतिम अभीष्ट /श्रेय के मार्ग में रोड़ा अटकाती हों ! क्यों नहीं , इस्लामी मान्यताओं में ऐसा ही तो है ! प्रकारांतर से ये आसुरी वृत्तियाँ कही गयीं ! अब भला राक्षसों के गुरू शुक्राचार्य में इन का परिपाक क्यों न हुआ हो ! तो क्या प्रकारांतर से इस्लाम के अनुयायी असुर नहीं हैं -आदि देवता हैं ? कितना घालमेल है ना ? तभी कृष्ण यह उदघोषित कर देते हैं कि वे कविताई में शुक्राचार्य हैं ! बस इस्लामी मान्यता हो गयी तिरोहित ! अब कृष्ण भी हमारे पूज्य हैं तो उनकी हर बात हमें पूज्य है ! जाहिर है भारतीय चिंतन मनीषा में इसलामी विचारधारा को नकारने का यह भी एक प्रयास रहा होगा जब गाने बजाने को ,कविताई और आमोद प्रमोद को मुख्य धारा में समाहित कर लिया गया -भले ही वह आसुरी वृत्ति रही हो -इस्लाम विरुद्ध हो !

तो हे ब्लॉगर मित्रों ,शुक्र दर्शन ने मेरे मन में चिंतन की यह आंधी भी चलायी जिसके चपेट में आप भी आ गए ! हाँ अनुरोध यह है कि गत्यात्मक ज्योतिष की अधिष्ठात्री संगीता जी अपने काम को और भी मनोयोग और उत्तरदायिता के साथ करें ।

उनसे यह अनुरोध भी है और शुभकामना भी ! हाँ उनका मैं बहुत आभारी हूँ कि वही हेतु बनीं हैं इस शुक्र दर्शन और चिंतन का !

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

पालिटिक्स की बातें और आकाश दर्शन !

मतदान का दूसरा चरण भी पूरा हो गया -आज गाँव से वोट डालकर लौटा हूँ ! गाँव में पहुच सायास वोट डालने के अपने अभियान और इस के पीछे के हेतु की चर्चा कल ही कर चुका हूँ ! आप कई ब्लागर मित्रों के बहुत ही प्रोत्साहन भरे विचार भी जानने को मिले ! खुशी की बात है कि हम निरर्थक बौद्धिक मीमांसा में न पड़ कर इस स्थापना में लगे है कि वोट देना लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है -बुद्धिजीवियों की सबसे बड़ी खामी यही है कि वे तटस्थ होकर बिना समरांगण में आए बौद्धिक जुगाली कर रहे होते हैं ओर देश की तकदीर पर ढार ढार आंसू बहाते रहते है, वोट तक भी देने को घर के बाहर नहीं निकल पाते ! नतीजा यह रहता है कि बी एच यू जैसे विश्व प्रसिद्द विद्या के प्रतिष्ठान में भी परिसर के भीतर ही मतदान बूथ होने के बावजूद बमुश्किल १८ फीसदी मतदान हो पाता है !

मैंने कल जिस मतदान स्थल पर जाकर अपना पहला मत डाला और लोगों को अपने अनुज मनोज मिश्र के साथ निरंतर उत्प्रेरित किया तो ४५ डिग्री के तापक्रम के बावजूद भी लोगों ने बढ़ चढ़ कर मतदान में हिस्सा लिया !जौनपुर जिले का औसत मतदान का आंकडा भले ही ४५ के पास सिमट गया ( फिर वही ढांक के तीन पात !),अपने गाँव के बूथ पर हम लोग ६२ फीसदी के मतदान के आंकडे तक पहुच गए ! १०५० मतदाताओं में ३२३ पुरुषों ने और सुखद आश्चर्य कि ३२२ महिला मतदाताओं ने मतदान का रिकार्ड स्थापित कर दिया ! महिलाओं का उत्साह प्रशंसनीय रहा ! गाँव के पुरूष और महिला के अनुपात १०० /८९ के लिहाज से तो महिलाओं ने मतदान में आनुपातिक बढ़त हासिल कर ली ! मेरा गाँव पहुंचना सार्थक रहा !

इतने उत्साहपूर्ण मतदान के बाद यह सहज ही था कि शाम को चौपालं बैठे-मुझसे मिल कर बातचीत करने को ,बनारस के चुनाव परिणामों पर जहाँ से मुरली मनोहर जोशी जी अपनी तकदीर आजमा रहे हैं पर वार्ता के लिए लोग उत्सुक थे ! विचार मंथन की प्रस्तावना शुरू हुई !
थोड़ा अवधी बोली भी जरा झेलिये तो -

" भैया ई बात त तय बा कि यहि दाईं (मतलब इस बार ) ब्राहमण लोग मायावती के साथे पिछली दाईं के मुकाबले नाई बाटें ! "
" का बोलत हया यार ,तब केकरे साथ हैन बताव ?"
" बी जे पी के साथ और केकरे साथ "
"जौनपुर में त कांग्रेस आपन कौनों उम्मीद्वारै नाय खडा केहेस इंहीं के नाते बी जे पी यहि दायं बढिया लड़त बाटे !"
"मुसलमान भी यहिं दायं मुलायम का साथ छोडिन देहेन -ऊ कल्याण वाला मामला रहा न ! "

"हाँ लागत ब अब मुसलमान लोग मायावती के साथ जुड़े जात बाटें ! "

हाँ भइया देखात त इहै बा ! "

साधारण से ग्रामीणों की इन बातों को सुन कर मैं उनकी तुलना तथाकथित राजनैतिक पंडितों ,मीडिया विशषज्ञों के बौद्धिक विवेचनों से करने में लग कर कहीं खो सा गया और नजरे अंधियारी रात के आसमान पर उठ गयीं ! उधर चर्चा में तेजी आती गयी और मैं सप्तर्षि मंडल के सातों तारों -पुलह, क्रतु ,पुलस्य ,अत्रि ,अंगिरस ,वशिष्ठ, मारीच की ओर ध्यान लगाते हुए ध्रुव तारे तक पहुच गया और फिर पुलत्स्य से दक्षिण की ओर एक सीधी रेखा में थोड़ी दूर व्योम विहार करते हुए सिंह राशि में जा पहुचा जो सर के ठीक ऊपर विराजमान दिखी .उधर पोलिटिक्स की चर्चा जोर पकड़ती गयी और मैं व्योम विहार का लुत्फ़ उठाता रहा ! मैंने पुलह से दक्षिण पश्चिम दिशा में एक लम्बी सीधी रेखा पर मृग नक्षत्र के दर्शन भी किए ! कहते हैं गरमी में यही मृग नक्षत्र धरती को तपाता है -मतलब यह गरमी में बहुत प्रामिनेंट दिखता है ! कभी साईब्लाग में आपको व्योम विहार पर साथ ले चलूँगा ! गाँव में और वह भी अंधियारी रात में आकाश दर्शन का भला क्या कहना ! बस मौजा ही मौजा !

मेरा व्योम विहार और उधर पालिटिक्स की बातें अपने उरूज पर थी कि अचानक उद्घोषणा हुई कि अहरा ( इन्डियन बार्बिक्यू ) पर खाना तैयार है -और सब दाल बाटी चोखे पर टूट पड़े -दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद यह स्वाभाविक ही था !

नीद भी बस बिस्तर पर आते ही लग गयी मगर मेरी आँखें ४ बजे सुबह ही खुल गयीं -गत्यात्मक ज्योतिष की एक घोषणा का सत्यापन जो करना था ! मतलब एक और व्योम विहार ! जिसकी चर्चा अब कल !
* सप्तर्षि मंडल को ही उरसा मेजर या बिग डिपर भी कहते हैं जिसे इस समय आकाश में सहज ही देखा जा सकता है ! आप लिंक के सहारे दिए गए वीडियो से इसे सहज ही आसमान में ढूंढ सकते हैं !

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

गाँव आया और वोट दिया !


मतदान के दूसरे चरण में यानि आज २३ अप्रैल ०९ को जौनपुर जिले में अपने पैतृक निवास जो राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५६ पर स्थित है के बूथ संख्या ११७ मिडिल स्कूल चूड़ामणिपुर के लिए मैं कल ही रात बनारस से सार्वजनिक परिवहन का उपभोग कर वोट देने आया .मन में क्षोभ था कि बनारस जैसी बुद्धिजीवियों की नगरी में महज ४४ प्रतिशत लोगों ने मतदान किया .विश्वविख्यात शिक्षा के केन्द्र बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के परिसर में ही बने मतदान केन्द्र पर भी केवल १८ फीसदी लोगों -प्रोफेसरों ने मतदान किया जहाँ एक आदरणीय ब्लॉगर अफलातून जी भी रहते हैं ।
इन स्थितियों से उपजे क्षोभ ने मुझे आत्मपीडा भी सहकर वोट देने को वह भी एक सामान्य मतदाता के रूप मे मजबूर कर दिया .लिहाजा मैं भयंकर चिलचिलाती धूप में अप्रैल माह की इस बार की रिकार्ड तोड़ गर्मीं ४५ डि. से. में और वह भी बस द्वारा बनारस से चला और बुद्धत्त्व को प्राप्त होते होते ७५ किमी की यात्रा ४ घंटे में पूरी कर निवास पर पहुँच ही आया और आज सुबह मतदान स्थल पर पहुँच कर पहला मतदान किया .उससे मिलने वाले अनिर्वचनीय आनंद की एक झलक आप मेरे चेहरे पर आए आत्ममुग्धता के भाव से पा सकते हैं ।

बेटे और बेटी का इम्तहान होने से वे और उनकी माँ मेरे साथ नही आ सके पर यहाँ मेरी माता जी और अनुज मनोज मिश्र तथा उनकी पत्नी डॉ छाया मिश्र ने मेरे अनंतर अपने वोट डाले .मैंने तो एक राष्ट्रीय पार्टी के पक्ष में मतदान किया है मगर परिवार के दूसरे लोगों ने किस के पक्ष में मतदान किया यह मुझे नही मालूम है -मतदान की गोपनीयता बरकरार है और इस गोपनीयता का सम्मान भी किया जाना चाहिए .मतदान से लौट कर आने पर मनोज के सौजन्य से उनके ही लैपटाप पर आप तक यह रिपोर्ट प्रेषित कर रहा हूँ .मेरी फोटो भतीजी स्वस्तिका ने उतारी है .

वह मेरे बगल मे बैठ कर मेरे साथ ही आपसे भी अनुरोध कर रही है कि कृपया आप सभी भी मतदान कर केन्द्र में एक स्थायी सरकार के गठन का मार्ग अवश्य प्रशस्त करें ,प्लीज !

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

चंदन की फिर चांदी !

निर्विघ्नं कुरुमे देव .............
बनारस में मतदान बीता -चुनावी व्यस्तताओं से निजात मिली मगर करीब दो महीने से छूटे नैत्यिक विभागीय काम अब सर चढ़ बोल रहे हैं ! ऐसे ही फाईलों में सर खपाए था कि एक मिमियाई आवाज सुनाई पडी,'सर मैं अन्दर आ सकता हूँ ' आगन्तुक को बिना देखे फाईलों में सर खपाए हुए ही मेरा स्टीमुलस बाउंड सा जवाब था -हाँ आ जाओ ! और ऐसा अनुभव हुआ की एक क्षीण सी काया सरकती हुयी मेरे पास तक पहुँच आयी है ! मजबूरन सर ऊपर करना पडा ! ओह तो यह मेरे ही विभाग का चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी चंदन था ! वह अपने हाथ में निमंत्रण कार्ड लिए हुए था ! हूँ ,तो यह एक और सीजनल कार्ड था और औपचारिकता वश अनुनय भरे शब्द बस सुनाई ही पड़ने वाले थे -दिमाग ने तुरत फुरत सोचा ! मैंने भी औपचारिकतावश चन्दन से पूंछ लिया कि क्या उसकी बहन की शादी का कार्ड है !

" नहीं सर यह मेरी शादी का कार्ड है ?"

"क्या " अचकचा कर मेरे मुंह से अकस्मात निकल पडा और दिमाग में मानों विचारों की एक आंधी सरपट दौड़ लगा गयी ! मैं प्रत्यक्षतः तो उसकी शादी में जरूर शरीक होने के अनुनय विनय को सुनने की भाव भंगिमा बनाए रहा मगर परोक्ष में मन मष्तिक पर कई दृश्य कौंधने लग गए थे ! अरे अभी बमुश्किल से दो वर्ष ही तो हुआ था जब इसकी शादी हुयी थी और साल भर भी नहीं बीता था कि नवविवाहिता ने कथित रूप से जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी ! पुलिस जांच में मामला और उलझ गया था ! और प्रथम दृष्टया यह बात मालूम हुयी थी कि फांसी मृतका ने ख़ुद नहीं लगाई थी बल्कि उसे फांसी किसी और के द्बारा दी गयी थी ! पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आते आते मामला और भी उलझ गया था -क्योंकि विसरा की जांच से जहर खाने की पुष्टि हुयी थी ! तो क्या मृतका ने ख़ुद जहर खाया था ! तो फिर वह ख़ुद फांसी पर क्यों चढ़ने लगी ? कहीं ऐसा तो नहीं था कि पहले उसे जहर दिया गया हो और फिर बाद में फांसी लगाई गयी हो ! चन्दन की नियुक्ति एक अनुकम्पा नियुक्ति थी -जो उसे उसके पिता की सरकारी सेवा में मृत्यु के कारण फोकट में ही मिल गयी थी ! बस केवल १८ वर्ष की ही उम्र में ! कच्ची उम्र के बिगडे हुए नौजवानों के तमाम दुर्गुण उसमे रहे हैं -लखैरागीरी ,नक्शेबाजी ,नशेबाजी ,बिना खून पसीना बहाए कमाई को यार दोस्तों में बस उडाते रहने का बुरा शौक -सारा आफिस उससे तंग रहता आया है ! उसके सुधार के सारे प्रयास विफल होते जा रहे थे ! कितनी बार मुझे उसे मजबूरन अर्थ दंड भी देना पडा था ! पर एक छुपी आस तो रहती थी कि शायद व्याह शादी के बाद यह सुधर जायेगा ! और आख़िर जल्दी ही उसका व्याह भी धूमधाम से निपट गया था ! तो क्या इसी नराधम ने अपनी सद्य परिणीता की हत्या कर डाली थी ? इतनी बड़ी क्रूरता ?

उस दिन तो सुबह सुबह यह समाचार पढ़कर दिल धक् से रह गया जब मेरे ही विभाग के कर्मी द्वारा पत्नी को मार दिए जाने की खबर स्थानीय अखबारों में प्रमुखता से छपी थी ! अरे यह तो चन्दन ही था ! अभी शादी के जुमा जुमा कुछ माह ही तो बीते थे ! क्या ऐसा नृशंस काम इस नराधम ने सचमुच कर डाला था ! पुलिस रिकार्ड में दहेज हत्या का मामला दर्ज हुआ था और इसके साथ ही सारा परिवार -माँ ,छोटा भाई सभी जेल के सींखचों के अन्दर जा चुके थे ! समय बीतता गया -जेल में होने के कारण यह निलम्बित भी हो गया ! बड़े दुर्दिन आए उस पर ! करनी का फल तो मिलना ही था ! और एक दिन वह जेल से छूट गया ! सुनाई दिया कि मृतका के पिता ने कुछ ले दे कर समझौता कर लिया था -बाकी थोड़ा बहुत पुलिस को समझाने बुझाने में खर्चा हुआ ! और मामला रफा दफा ! यह है समाज और व्यवस्था का एक और घिनौना चेहरा ! निलम्बन भी उच्चाधिकारियों ने बहाल कर दिया ! और वह फिर मेरे ही आफिस मे पोस्ट कर दिया गया ! मेरी और मेरे पूरे परिवार की उससे दूरी स्पष्ट हो चली थी ! मैंने उससे सरकारी काम भी लेना बंद सा ही कर दिया था ! समूचा आफिस उससे दूरी बना चुका था ! आखिर वह एक मुलजिम तो हो ही चुका था ! लोगों ने कुछ और गहराई से पूंछ तांछ की तो एक नयी कहानी सामने आयी ! यह कि जहर तो उसकी मृत पत्नी ने ख़ुद खाया था मगर इन बुद्धिहीनों ने उसे फांसी द्बारा ह्त्या दिखाने का कुचक्र रच डाला था !पता नही किस अंतर्बोध से ! बहरहाल !

उसकी शादी ,पत्नी की रहस्यमय स्थितियों में मौत ,उसका जेल जाना और सेवा से निलम्बित होना और फिर जेल से रिहा हो जाना और नौकरी पर बहाल हो जाना -ये सारे घटनापूर्ण दृश्यक्रम केवल दो वर्ष की अवधि में सिमटे हैं और आज फिर वह ख़ुद अपनी ही शादी का निमंत्रण पत्र मुझे यह अनुनय करके सौंप गया है कि मैं उसकी शादी में जरूर चलूँ ! और मेरे मन में अभी भी बहुत संताप भरा हुआ है -मन बिल्कुल नहीं है उसकी शादी में जाने का ! मगर परस्पर विरोधी विचार भी मन को बोझिल कर रहे हैं ! बच्चन जी की कविता भी मन में उमड़ घुमड़ रही है- नीड़ का निर्माण फिर ! पर ऐसे आततायियों के हाथ फिर कहीं कोई दुष्चक्र न रचा जाय ! पत्नी बोल रही हैं -कैसी बातें कर रहे हैं शुभ शुभ बोलिए ! पर मन है कि आशंकाओं से भरा जा रहा है !

मन हो उठा कि यह झंझावात आपसे थोड़ा बाँट लूँ तो जी हल्का हो जाए !

सोमवार, 13 अप्रैल 2009

मतदाता ब्लागर्स के लिए कुछ टिप्स !



मुझे जानकारी नहीं है कि ब्लागर्स के उम्र वर्ग का कोई अध्ययन उपलब्ध है या नही मगर अनुमान तो यही है कि ज्यादातर ब्लॉगर अट्ठारह वर्ष के ऊपर ही होंगें ! लोकसभा सामान्य निर्वाचन के पहले चरण में कई प्रान्तों में दिनांक १६ अप्रैल को मतदान होने जा रहा है ! ऐसे ही मन में बात आ गयी कि क्यों न मतदान करने की प्रक्रिया की जानकारी को आपसे साझा किया जाय ! वैसे तो भारत निर्वाचन आयोग मतदाताओं को भी मतदान प्रक्रिया की जानकारी देने में सक्रिय रहा है-मगर मतदान के प्रोसीजर को लेकर थोड़ी अज्ञानता लोगों में बनी रहती है -और बहुत से लोग इसे झन्झट का काम मानकर वोट ही देने नही जाते !भला ऐसी बेरुखी से लोकतंत्र की जड़ें कैसे मजबूत रह पाएंगीं ? बहुत से पढ़े लिखे लोगों में भी मतदान करने के प्रति अनिच्छा का भाव ही देखा जा रहा है ! क्या लोकतंत्र के लिए यह शुभ लक्षण है ?

जहाँ तक वोट देने /मतांकन की प्रक्रिया की बात है वह बहुत ही सरल है ! बस आप यह सुनिश्चित कर लें कि आपका नाम मतदाता सूची (इलेक्टोरल रोल ) में है ! अब १६ अप्रैल को जहाँ पहले चरण का मतदान है और आगे के चरणों में भी मतदान के समय जो ज्यदातर जगहों पर सुबह सात बजे है से थोड़ा पहले -१० मिनट पहले ही जिस मतदान स्थल (पोलिंग स्टेशन ) के लिए आपका नाम मतदाता सूची में हो वहाँ पहुच जायं ! जितना देर करेंगें आपको धूप गर्मीं में लाईन में खडा होना पड़ सकता है ! वैसे ७ बजे सुबह से से पाँच बजे शाम तक मतदान अनवरत चलेगा और अपनी सुविधानुसार आप इस अवधि में कभी भी मतदान कर सकते हैं !

आप जब निर्धारित मतदान स्थल के लगभग दो सौ मीटर दूर ही रहेंगें आपको विभिन्न दलों द्वारा स्थापित चुनाव कैम्प सहजता से दिख जायेंगें जो दरअसल मतदाताओं यानि आपकी सहायता के लिए ही होते हैं -आप अपना मतदान जो गोपनीय है किसी को करें लेकिन विभिन्न पार्टियों के द्वारा लगाए गए किसी भी पार्टी के कैम्प में जाकर अपना नाम मतदाता सूची में खोजने में उनकी मदद ले सकते हैं -वे आपको एक सफ़ेद पर्ची भी देंगें जिसमें केवल आपका नाम और मतदाता सूची में आपका क्रमांक लिखा होगा ! इसमें पार्टी या प्रत्याशी का नाम या चुनाव चिन्ह भी नही होता ! इसे लेकर या बिना इसके भी आप मतदान स्थल के मुख्यद्वार पर बेहिचक पहुँच जायं ! अपने साथ कोई अस्त्र शस्त्र न रखें और ना ही मोबाईल फोन ! यह जमा किया जा सकता है ! साथ ही आपके पास किसी भी पार्टी की ऐसी कोई भी प्रचार सामग्री बिल्ला ,टोपी आदि नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह मतदान स्थल के १०० मीटर की परिधि -मतदान परिसर में मान्य नहीं है !

मुख्य द्वार से अन्दर घुसते ही आपको मतदान अधिकारी प्रथम (पोलिंग आफीसर फर्स्ट ) एक मतदाता सूची में आँख गडाए दिख जायेंगें ! यह मातादाता सूची जो इस अधिकारी के पास होती है वह मतदाता सूची की चिह्नित प्रति (मार्केड कापी आफ इलेक्टोरल रोल ) कहलाती है ! मार्क्ड कापी इसलिए कि इसमें मतदाता का नाम मिल जाने पर उसके नाम पर चिह्न लगा दिया जाता है ! यह अधिकारी आपका नाम यदि आप पर्ची ले गएँ हैं तो उससे या फिर आप से सीधे पूंछ कर मतदाता सूची में ढूंढेगा ! वह आपका मतदाता फोटो पहचान पत्र -इपिक ( इलेक्टोरल फोटो आईडेनटिटि कार्ड ) भी देखेगा या उसके न होने पर कई और पहचान के विकल्प जैसे आपका पासपोर्ट / ड्राविंग लाईसेंस /पासबुक /पैन कार्ड /आपकी नियोक्ता संस्था द्बारा जारी परिचय पत्र /आर्म्स लाईसेंस /आदि वैकल्पिक पहचान पत्रों से आपकी पहचान सही मतदाता के रूप में करेगा और अपने सामने रखे मतदाता सूची में आपके नाम के बॉक्स में एक लाल तिरछी रेखा बना देगा और अगर आप महिला हैं तो वह तिरछी रेखा के साथ ही आपके मतदाता क्रमांक को लाल रंग से राउंड भी कर देगा ! मतलब आपकी पहचान स्थापित हो गयी !

अब आप आगे बढ़ें -बगल में ही मतदान अधिकारी द्वितीय आपको दिखेंगें जो झटपट आपकी बाईं तर्जनी ( इंडेक्स फिंगर ) पर अमिट स्याही लगा देंगें जो तुंरत ही सूख कर जल्दी न मिटने वाला निशान बना देती है ! यही अधिकारी आपके बारे में एक रजिस्टर में जानकारी भरेगा और आपके हस्ताक्षर कराने के साथ आपके पहचान पत्र के अन्तिम चार अंकों को भी उसमें लिखेगा और आपको एक पर्ची भी उसी के आधार पर बना कर देगा ! इस काम में दो मिनट से ज्यादा वक्त नही लगता ! आप उस पर्ची को लेकर मतदान अधिकारी तृतीय के पास जायेंगें जो आपसे वह पर्ची लेकर इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ई वी एम् ) के अपने सामने के कंट्रोल यूनिट के नीले बैलट बटन को दबा कर मशीन को आन कर देगा और आप से कहेगा कि आप वोटर कम्पार्टमेंट में जाकर अपने पसंद के प्रत्याशी को वोट दे दें !

वोटर कम्पार्टमेंट चारो ओर से ढंका रहेगा और आप गोपनीय तौर पर सामने बैलट यूनिट में अपनी पसंद के मतदाता सामने नाम और उसके चुनाव चिन्ह के सामने की नीली बटन को दबा दें -एक बीप की लम्बी आवाज आयेगी ! बस हो गया आपका मतदान ! और आप निकास द्वार से बाहर हो लें ! बस यही तो करना है मतदान में ! बिल्कुल न हिचकें और मतदान में जरूर हिस्सा लें ! सुरक्षा की भी अभूतपूर्व व्यवस्था हो रही है -लगभग सभी मतदान स्थल पर केन्द्रीय पुलिस फोर्स को तैनात किया जा रहा है !




मतदान प्रक्रिया के बारे में आपकी किसी भी जिज्ञासा का स्वागत है !

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

अनूप शुक्ल जी की टिप्पणी और तुलसीदास का आत्म प्रक्षेपण !

अपने (अ ) लोकप्रिय से चिट्ठाकार चर्चा स्तम्भ में अभी अभी मैंने कुश की चर्चा की .इस पर अनूप शुक्लजी ने अपने स्वभावानुकूल सहज ही यह टिप्पणी की -

"बहरहाल अरविन्दजी ने कुश के बारे में चर्चा की। इसके पहले भी मिश्रजी ने कई चिट्ठाकारों की चर्चा की है। उनका अपना अंदाज है। उस पर सवाल उठाना उचित नहीं होगा। लेकिन एक पाठक की हैसियत से जो मैंने महसूस किया वह यह है कि उनके प्रस्तुतिकरण में चिट्ठाकार से उनका खुद का तुलनात्मक वर्णन प्रमुखता लिये रहता है। अगले की तारीफ़ करने के लिये अपनी बुराई करना जरूरी तो नहीं। किसी को बुद्धिबली, प्रतापी बताने के लिये खुद को बुड़बक, भकुआ सा जाहिर करना जरूरी है क्या?

अरविन्दजी का यह आत्मप्रक्षेपण का अंदाज उनकी हर चिट्ठाकार चर्चा में मैंने देखा है। जैसा महसूस किया वह बता रहा हूं।"

.....और उनके द्बारा सायास या अनायास यह स्पष्ट भी कर दिया गया कि उक्त टिप्पणी पाठकीय हैसियत से की गयी है ! बहुत अच्छी बात ,बिल्कुल स्वीकार्य ! अब मेरी मुश्किल यह है कि -किसी के बारे में कोई भी चर्चा परिप्रेक्ष्यों और संदर्भों में ही तो की जा सकती है -उनसे पृथक (आईसोलेट ) करके तो नही ! भगवान् राम के चरित गायन के लिए जरूरी है रावण को दुर्धर्ष दुष्ट दिखाया जाना -वह जितना ही क्रूर करमा दिखेगा भगवान् राम का उतना ही उदात्त चरित सामने लाया जा सकेगा ! बहरहाल आज की दुनिया और संदर्भों में मैं राम रावण की खोज कहाँ करुँ ?और किसे बलि का बकरा चुनूं ! सो मैंने ख़ुद का ही बलिदान देना उचित समझा -भला और किसकी बलि दूँ ? किससे तुलना करुँ ? क्या अनूप जी से ही तुलना करना शुरू कर दूँ ? मैंने बिल्कुल यही टिप्पणी भी प्रश्नगत चिट्ठाचर्चा में कर दी और अपनी वापसी पोस्ट में अनूप जी ने ऐसी हिमाकत न करने के लिए मुझे चेता भी दिया -"भाई हमसे काहे की तुलना करेंगे? हर व्यक्ति अपने में खास होता है। उसकी किसी से तुलना क्यों की जाये?"

अनूप जी मुझे यह मालूम था कि आप या कोई और भी छीछालेदर की ऐसी अनुमति मुझे क्यों देने लगें , इसलिए मैंने अपनी पसंद के ब्लागर की तुलना ख़ुद से करना समीचीन समझा ! अब मेरे इस विवशता पर भी दूसरों को क्यों कष्ट हो गया -बात कुछ हजम नही हुई ! अनूप जी ने अपनी पहली वाली टिप्पणी में यह भी लिखा है -"अगले की तारीफ़ करने के लिये अपनी बुराई करना जरूरी तो नहीं। किसी को बुद्धिबली, प्रतापी बताने के लिये खुद को बुड़बक, भकुआ सा जाहिर करना जरूरी है क्या?अरविन्दजी का यह आत्मप्रक्षेपण का अंदाज उनकी हर चिट्ठाकार चर्चा में मैंने देखा है। "

क्या ये दोनों वाक्य परस्पर विरोधाभासी नही लगते ? अब कोई अगर ख़ुद को बुडबक कह रहा है तो यहाँ तो आत्मदया (maudlin ) की बात मानी जा सकती है मगर आत्म प्रक्षेपण ( सेल्फ प्रमोशन ) ? यह कैसा नजरिया है भाई ? अगर ख़ुद को दूसरों के ख़ास गुणों के परिप्रेक्ष्य में दीन हीन मानना आत्म प्रक्षेपण है तो फिर मध्ययुगीन संत कवि तुलसीदास ने भी तो यही किया है -मैं उस महान संत कवि के पद नख के धूल कण के बराबर भी नही हूँ ( आत्म प्रक्षेपण ! ) मगर देखिये तो वे क्या कहते हैं -

कवि न होऊँ न वचन प्रवीनूं ,सकल कला सब विद्या हीनू ( मैं न तो कवि हूँ और न ही वक्तृता में कुशल ,दरअसल मैं सब कलाओं और विद्या से रहित हूँ !)

यह भी देखिये -

कवि विवेक एक नही मोरे ,सत्य कहऊँ लिख कागद कोरे ( मैं तो कवि के विवेक से सर्वथा वंचित हूँ यह कोरे कागज़ पर लिख कर देता हूँ )

और यह भी -
बंचक भगत कहाई राम के ,किंकर कंचन कोह काम के
तिन में प्रथम रेख जग मोरी ,धींग धरमध्वज धंधक धोरी

( जो भगवान राम के भक्त कहकर लोगों को ठगते हैं और जो धन क्रोध और काम के गुलाम हैं -और इस कारण धींगामुश्ती करने वाले और धर्म की झूठीं ध्वजा फहराने वाले हैं उनमें सबसे पहले तो मेरी ही गिनती है )
इसलिए -
जौ अपने अवगुन सब कहऊँ .बाढहिं कथा पार नहि लहऊँ
ताते मैं अति अलप बखाने थोरे महुं जानिहहिं सयाने

( अगर मैं अपने सब अवगुणों को कहने लगूं तो यह कथा बहुत बढ़ जायेगी और मैं पार नही पा सकूंगा ! इसलिए अपने अवगुणों का बहुत कम वर्णन किया है -बुद्धिमान लोग थोड़े में ही समझ लेगें )

कोई भी बताये कि यह क्या तुलसी का आत्म प्रक्षेपण है -यह हमारी मानसिकता हो सकती है कि हम उस कवि के इस आत्म कथ्य को उसका आत्म प्रक्षेपण मान लें क्योंकि आज उसे एक विश्व कवि होने का दर्जा प्राप्त है -मगर जब इन पंक्तियों को तुलसी लिख रहे थे तो उनकी मनोदशा क्या रही होगी ?

अनूप जी , यह विनम्रता है ,शालीनता है ,कुलीनता है -इसे पहचानने में कदापि भूल नही होनी चाहिए -मुझे आत्म प्रवंचना करने को यही विरासत उकसाती है -इसी विराट व्यक्तित्व का अनुकरण कर पाने को मैं विवश हो जाता हूँ ! तो अगर मैं आत्म प्रक्षेपण की आप द्वारा कथित विकार का दोषी हूँ तो इसके जिम्मेदार वही बाबा तुलसी हैं -वही जानें ! उनका स्मरण करके मैं आपका यह प्रसाद ग्रहण कर ले रहा हूँ !

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

चिट्ठाकार चर्चा में आज कुश !

शायद ही कोई गंभीर या अगम्भीर चिट्ठाकार हो जो कुश को न जानता हो ! कितनों को तो इन्होने पानी ...अर्रर काफी पिला डाला है ! और तभी से मैं भी इनसे एक कप काफी पीने को तरसता रहा हूँ ! और इस प्रतिभाशाली युवा ब्लॉगर के करतूतों की सूक्ष्म पड़ताल /या पर्यवेक्षण करता रहा हूँ -और पाया है कि इनकी (सु ) कृतियों का.....पुण्य का घडा तिल तिल कर भरता ही रहा है और आज वह मुचे मुच्च भर गया सा लगा -पाप का घडा तो फूट जाता है ,मगर पुण्य का घडा लबरेज होने पर हिरण्यगर्भ बन जाता है और दिग् दिगंत को अपनी आभा से आलोकित करता है ! तो कुश का पुण्य का घडा जब भर गया तो इन्द्र का सिंहासन भी डगमग डगमग होने लग गया ! और मेरी कहाँ बिसात कि इस प्रतापी ब्लॉगर की और उपेक्षा कर पाता ,लिहाजा आज वे चिट्ठाकार चर्चा में शामिल हो गए हैं ! उगते सूरज को कब तक अनदेखा किया जा सकता है ?

आईये कुश के पुण्य प्रताप सी जुडी बाद की बातों को पहले ले लेते हैं और पहले की बातों को बाद में ले ही लेंगें ! अभी उसी दिन ही तो एक ब्लॉग पर कुछ चित्र विकृतियों की पहेली के जरिये यह पूंछा जा रहा था कि वे किस ब्लॉगर से सम्बन्धित हैं या वह कौन सा ब्लागर है -यह एक मौलिक सूझ थी ,मगर माडर्न चित्रकला की तरह ही अस्पष्ट ,विषयनिष्ठ (सब्जेक्टिव ) और कुछ हद तक मेरे जैसे विज्ञान से जुड़े अकल्पनाशील व्यक्ति के लिए प्रथम दृष्टया वाहियात भी -मगर दाद देनी होगी बन्दे (कुश ) की कि उन्होंने उन अस्पष्ट रेखाओं और रंगों में भी सही ब्लागर का चेहरा पहचान लिया ! मैं इम्प्रेस हुआ ! यह एक विलक्षण क्षमता है जिसे पेरिडोलिया के नाम से जानते हैं -अस्पष्ट और बेतरतीब चित्र प्रारूपों में भी काम का पैटर्न ढूंढ निकालना ! यह वही क्षमता है जिससे घने जंगलों के वासी झाडियों में छिपे बाघ या अन्य हिंस्र पशुओं का आभास कर लेते हैं और उनकी जीवन रक्षा हो जाती है -ब्लागजगत के इस विस्तीर्ण वियाबान में कुश की यह अनुवांशिकीय क्षमता मुझे चमत्कृत कर गयी ! उनमें पेरिडोलिया के जीन अभी भी सक्रिय हैं जबकि शहरी जीवन में मनुष्य की कई अन्तर्निहित क्षमताएँ क्षीण होती जा रही हैं ! कुश एक आधुनिक आदिम जीव हैं -हा हा -दोनों दुनिया के मजे लूटते हुए ! बोले तो इन्ज्योइंग बेस्ट आफ द बोथ वर्ल्ड ! ईर्ष्या होती हैं ना ?

एक हालिया घटना तो पहली अप्रैल की भी है -कोई मुझे दिन भर नही बना पाया ! और मैं अति आत्मविश्वास से लबरेज निश्चिंत सा कि अब तो रात आयी बात गयी, लगा चिटठा चर्चा पढने -कुश की ही लिखी हुयी और ये लीजिये वाटर लू का अनुभव हो गया -मैं इत्मीनान से अप्रैल फूल बन चुका था ! कोई संख्या भी दिखी -अप्रैलफूल नम्बर ७८ शायद -मुझे काटो तो खून नही ! हतप्रभ रह गया ! वाह रे मछेरे कितनी फान्सें तूने लगाई थीं और कितने चारों में ! मैं सोलहो आने मूर्ख बन चुका था और बुडबक सा , भकुए सा सामने की अप्रैल फूल की उदघोषणा को देख रहा था ! एक बुद्धिबली ,प्रतापी ने परास्त कर दिया था ! पहले तो 'लानत है इस बुद्धि पर' जैसा आत्म प्रवंचना भाव मन में उठा- पर तुंरत ही कुश की बुद्धिमता पर उमड आए प्रशंसा भाव ने मेरे उस प्रवंचना भाव को तिरोहित कर दिया -कोई कुश सा मूर्ख बनाये तो ..हम बार बार मूर्ख बनने को तैयार हैं ! कोई सलीके और सम्मान से ...बनाये तो !

अब थोड़ा पीछे चलते हैं .कुश की नैसर्गिक प्रतिभा है स्क्रीन प्ले -पटकथाएं लिखने की ! जोरदार लिखते हैं कलम तोड़ ! और कई बार बिल्कुल प्रोफेसनल ! कुश हैं तो उम्र में छोटे मगर दिल के बड़े (बस शास्त्री जी से जुड़े एक मामले के अपवाद को छोड़कर जिसे सुधी जन जानते ही हैं ! ) -मैंने उनकी एक पटकथा पर खीझ कर टिप्पणी कर दी कि क्या ऐसे ही पिटी पिटाई पटकथा (क्लीश ) की उम्मीद आपसे है ? मेरी आशंका के विपरीत उन्होंने झट से मेरी आलोचना को सकारात्मक लहजे मे लिया और स्वीकार कर लिया किया कि हाँ वह पटकथा जरूर थोड़ी बासी स्टाईल की थी ! इस घटना ने भी मेरे मन में इस युवा ब्लागर की एक अच्छी छवि बनाई ! पर लगभग उन्ही दिनों के आस पास एक एंटी क्लाईमैक्स घटित हो गया !

अब जहाँ कुश हैं वहां "लव " को तो होना ही है -और इसकी जानकारी एक दिन मुझे अनायास ही हो गयी ! ऐसे ही एक दिन मैं अंतर्जाल पर था -एक खिड़की सहसा खुल आयी -अचानक कुछ रम पम पम सा और आती क्या खंडाला टाईप ध्वनियाँ (ओह उस दिन मेरा स्पीकर भी काफी लाउड था ) आने लगीं -देखा चैट की एक खडकी खुली है और कुश अपनी करामत पर हैं -मैं अकस्मात कुछ समझ नही पाया तो कुश को हेलो किया -कुछ क्षण अप्रत्याशित शान्ति छाई रही और फिर कुश ने एपोलोजायिज किया और अंतर्ध्यान हो गए ! तो यह क्रॉस चैटिंग का मामला था ! आज भी वह दस्तावेज मेरे पास अभिलेखित है निजी हैं इसलिए शेयर नही कर रहा हूँ -पर सच मानिये बहुत मजा आया -मगर फिर थोड़ी कोफ्त हुयी ख़ुद पर -इतना जल्दी रिएक्ट करने की क्या जरूरत थी ? कुछ वोयेरिज्म का आनंद मैं भी उठाता ! भला राग दरबारी के रंगनाथ सा तुंरत रिएक्ट कर जाने की क्या जरूरत थी जो मूर्खता उन्होंने उस समय की थी जब यह जानने के लिए कि उनके बड़े भाई पहलवान घर की छत पर कैसी दंड बैठकें करने जाते हैं की उत्कंठा लिए वे छत पर पहुंचे थे तो कोई और ही वहा प्रतीक्षारत रत थ (ई ) .और वे हडबडा कर वहाँ से चल दिए और शेष जीवन उस जल्दीबाजी के लिए ख़ुद को कोसते रहे ! पर मैंने तो जल्दी ही मन को मना लिया कि बच्चों की लीलाओं में हम बड़े बूढों को ज्यादा दिलचस्पी नही दिखानी चाहिए ! बहरहाल कुश इस मामले का विस्तार कर सकते हैं -आप उनसे ख़ुद ही क्यों नही पूंछ लेते ! हो सकता है मैं ही अनावश्यक कल्पनाशील हो रहा हूँ और वैसा कुछ भी कुश के साथ न हुआ हो !

थोड़ा और पहले चलते हैं .जिसने कुश की काफी पी है वह भी और जिसने नहीं भी पी उनका मुरीद हो गया है -उन्होंनेयह शर्त रख दी कि मैं उन्हें क्वचिदन्यतोअपि का मतलब बता दूँ और वह उनके समझ में भी आ जाय तो वे मुझे भी काफी पिला देंगें ! वह तो मैंने उन्हें कब का बता दिया पर अभी भी वे मुझे उसी तरह टरकाए चल रहे हैं जैसे डॉ अमरकुमार जैसे बुजुर्ग को ! अब उनकी उम्र का तकाजा भी ऐसा ही है कि उम्रदराज लोगों में उनकी स्थाई रूचि हो भी कैसे सकती है .डॉ साहब नाहक ही नारदमोह में पड़े हैं !

कुश की प्रेक्षण क्षमता भी सटीक है ,बोले तो पर्यवेक्षण क्षमता -वे पर्यवेक्षण से नाम तो मेरा जोड़ते हैं मगर इस कला में माहिर हैं ख़ुद ! वे ब्लागरों को उनके रंग ढंग से पहचानते हैं -उडती चिडिया के पर भी पहचान लेते हैं -उडी उडाई बात यह भी कि वे लोगों को फोन पर तंग भी करते हैं बिना यह जाने कि तंग होने पर कुछ तंगदिल लोग इसकी शिकायते दूसरों से कर देते हैं -अब दूसरे कैसे तंग होते हैं यह अहसास दिलाने के लिए मैंने एक दिन उन्हें ख़ुद फोन किया -दरअसल वे इन दिनों एक विज्ञान प्रेम कथा में मुब्तिला हैं -उस पर काम कर रहे हैं ! इसी बहाने से मैंने उन्हें फोन किया .बड़ी गर्मजोशी से मगर धीरे स्वरों में जैसे कि मीटिंग के दौरान लोगों की आवाज सुनाई देती है वे बोले , नाम के आगे जी मत लगाईये .अब कुश मैं आपको कैसे समझाऊँ के हम लोग एक जी कल्ट चला रहे हैं और विदेशी तक उसे स्वीकार कर चुके हैं , यहाँ तक कि विदेशी मुझे भी मेरे नाम के आगे जी जोड़कर ही संबोधित करने लगे हैं.ये बातें अभी कुछ ही आगे बढ़ी थी कि जल्दी ही कुश कह पड़े कि अभी मैं आफिस में हूँ -आफिस के बाद बात करता हूँ ! मैंने मुस्कराते हुए कनेक्शन आफ किया -उन्हें तंग करने का अहसास दिलाना भर था मुझे ! ओनली बियरर नोज व्हेयर शू पिंचेज !

उनके रिटर्न काल का मुझे अभी भी इन्तजार है !

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

वोट मांगने की यह स्टाईल पसंद आयी !

आज मुझे ही नही वाराणसी संसदीय क्षेत्र के तमाम मतदातातों को उनके मोबाईल फोन पर यह एस एम् एस मिला -
एक बात पते की -
सेवा-श्रवण से
मित्रता -किशन से
मर्यादा -राम से
तपस्या -महावीर से
दान -कर्ण से
लक्ष्य -एकलव्य से
अहिंसा -बुद्ध से
बनारस का विकास -फलां प्रत्याशी से !
अब आप अगर भारतीय पुराकथाओं की जानकारी या रूचि नहीं रखते तो यह विवरण आपके किसी काम का नहीं ! मगर यदि आपकी इस विषय की जानकारी पुख्ता है तो फिर इसे पढ़ कर आपको जरूर आनंद आया होगा ! क्या आप इस फेहरिस्त में कुछ और भी जोड़ सकते हैं !

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