इन दिनोंअपने हिन्दी ब्लॉग जगत में हिन्दी के स्तर को लेकर बहस मुबाहिसों का महौल गरम है -बाहर के ४५ डिग्री सेल्सियस से भी शायद ज्यादा गरम .कुछ ब्लागरों ने तो धमकी तक दे डाली है कि वे कथित " क्लिष्ट " हिन्दी के ब्लागों से गुरेज करने में भी नही हिचकेंगें ! ! मजे की बात है की सबसे पहले मुझे क्लिष्ट जैसे 'क्लिष्ट 'शब्द की जानकारी ही एक ऐसे सज्जन से हुयी थी जिनकी हिन्दी बस माशा अल्लाह ही थी ! तब मैंने उनसे पूंछा था कि जब उन्हें हिन्दी के कठिन (?) शब्दों से परहेज है तो वे "क्लिष्ट" शब्द ही इतनी सरलता से कैसे जान गए हैं ! क्योंकि यह तो स्वयं में ही एक क्लिष्ट शब्द है ! इसका सरल समानार्थी है कठिन ! और मैंने जब उनसे यह जानना चाहा था कि जैसे उन्होंने क्लिष्ट शब्द को जिह्वाग्र कर डाला है दूसरे कथित कठिन शब्दों को क्यों नही सीखते जाते -क्योंकि शब्द के अर्थ को जब ठीक से आत्मसात /हृदयंगम कर लिया जाता है तो वे फिर कठिन रह ही कहाँ जाते हैं ? मुझे याद है कि मेरे सवाल का माकूल उत्तर न देकर वे बगले झाकने लग गए थे !
स्तरीय हिन्दी से आप में से अधिकांश बिदकने वाले लोगों की भी कहानी वैसी ही है जो क्लिष्ट जैसे क्लिष्ट शब्द को तो हिन्दी से अपनी आलस्य जनित दूरी बनाये रखने के ढाल स्वरुप सहज ही सीख लेते हैं और धडल्ले से आत्मरक्षा में इसका इस्तेमाल करते फिरते हैं मगर "स्तरीय " हिन्दी सीखने की ओर एक भी कदम नही उठाते ! ठीक है हिन्दी के बोलचाल की भाषा के हिमायती बहुत हैं ,मैं भी हूँ ! तुलसी ने तो यहाँ तक कह डाला -भाषा भनिति भूति भल सोयी ,सुरसरि सम सब कर हित होई ! ( भाषा ,कविता यश -प्रसिद्धि वही अच्छी है जिससे गंगा नदी की भांति सबका हित हो ! ) मगर ख़ुद तुलसी के भाषाई पांडित्य पर क्या कोई उंगली उठा सकता है ? वे संस्कृत के भी प्रकांड विद्वान् थे ! संदेश साफ़ है किसी भी भाषा को गहराई तक जानिए मगर जन सामान्य के लिए उनसे उनकी ही बोली भाषा में संवाद कीजिये ! इन दिनों हिन्दी को भ्रष्ट करने की मानो एक मुहिम ही चल पडी है ,कई विद्वान् भी चलताऊ भाषा की पुरजोर वकालत कर रहे है ! हिंगलिश का बोलबाला है ! पर इससे हिन्दी के रूप सौन्दर्य और भाषाई शुचिता का कितना नुकसान हो रहा है -क्या कोई भाषा विज्ञानी बता सकेंगें ? बात क्लिष्ट और सरल हिदी की नही है -बात भाषा के नाद सौन्दर्य का है -वह बनी रहे भले ही उसमें कथित क्लिष्ट शब्द हो या न हों ! मैंने प्रायः देखा है कि विज्ञता के अभाव में सरल शब्दों का इस्तेमाल करने वाले लोग भाषा का कबाडा कर देते हैं और दंभ भरते हैं कि वे सरल हिन्दी के प्रति प्राणपण से समर्पित हैं -वहीं ऐसे भी ब्लॉग लेखक हैं जो सहज हो भाषाई प्रयोग करते हैं और इस बात को लेकर जरा भी असहज नही होते कि वे क्लिष्ट या सरल शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं -फलतः भाषा का एक सहज स्वरुप कल कल बहती नदी या झरने सदृश आ उपस्थित होता है -मन मोह लेता है ! ओह भूमिका लम्बी हो गयी ! मैंने यह विमर्श ( यह भी शब्द प्रचलन में कोई एक डेढ़ दशक से ही ज्यादा है ) एक खास मकसद से शुरू किया था ! वह बात ऐसी है न कि इन दिनों शादी व्याह का मौसम है तो तरह तरह के रंग बिरंगे निमंत्रण कार्ड मिल रहे हैं और वे भी जिनका भषाई सरोकार से कुछ भी लेना देना नही है ऐसे लच्छेदार भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं कि बस कुछ मत पूछिए !
बचपन में शादी के निमत्रण कार्डों का यह मजमून आज भी रटा हुआ सा है -
भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण प्रियवर तुम्हे बुलाने को
हे मानस के राजहंस तुम भूल न जाना आने को
कितनी सुंदर अभिव्यक्ति है -मगर अब इस तरह का भाषाई व्यवहार थोडा आउट डेटेड सा है ! बैकवर्ड सा ! क्यों ?
मगर भावों की सुन्दरता आज भी इन पंक्तियों में वैसी ही है ! अब जो यह नही जानते या जानने की कोशिश नही करेंगें कि आमंत्रित को मानस का राजहंस क्यों कहा जा रहा है, वे भला इन पंक्तियों का आनंद कैसे उठा सकते हैं ? -अब इसमें कहाँ कोई क्लिष्ट शब्द है -पर हमारी एक साहित्यिक मान्यता यहाँ विद्यमान है जिसमें मानस के हंस में नीर क्षीर विवेक की क्षमता दिखायी गयी है ! नीर क्षीर की क्षमता बोले तो विद्वता का उत्कर्ष !
ऐसे ही इन दिनों गरमी में बार बार के बिजली के चले जाने से उत्पन्न असहायता और खाली समय के कुछ सदुपयोग के लिहाज से मैंने निमंत्रण कार्डों पर एक नजर डाली है ! अब उपर्युक्त सरीखे दोहे तो प्रचलन में नही हैं -अब ज्यादातर गणेश जी से जुड़े संस्कृत के श्लोकों से काम चलाया जा रहा है ( फिर वे तो और भी क्लिष्ट हुए ) ! मगर जरा निमंत्रण के इस भाषाई सौन्दर्य पर भी तो दृष्टिपात कीजिये - " ........के पावन परिणयोत्सव की मधुर बेला पर पधार कर अपने स्नेहिल आशीर्वाद से नवयुगल को अभिसिंचित कर हमें अनुगृहीत करें......" या फिर इधर गौर फरमाएं - " ...के पाणिग्रहण ( कैसा क्लिष्ट शब्द है ?) संस्कार में आनंद और उल्लास के इस मांगलिक अवसर पर उपस्थित होकर हमें आतिथ्य का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें ..." या फिर ....." ....के मंगल परिणयोत्सव की मधुरिम बेला में पधार कर अपने आशीर्वाद की मृदुल ज्योत्स्ना से नव युगल के जीवन पथ को आलोकित करें ॥"
ये सभी " क्लिष्ट शब्द ही तो हैं मगर देखिये तो वे हमारे मांगलिक क्षणों की साथी हैं ! पता नही कैसे वे लोगों को क्लिष्ट लगते हैं ! मतलब तो समझ लीजै श्रीमान ! जब आप सीखने का जज्बा लायेंगें तो यही शब्द आपको अच्छे लगने लगेगें ! हाँ बहुत से बुद्धिजीवी अब यह कहते भये हैं कि आडम्बर पूर्ण भाषा का इस्तेमाल न किया जाय ! मगर भाषा हमारी जीवन शैली ,रीति रिवाजों -मतलब संस्कृति से गहरी जुडी है ! यदि हम भाषा को क्लिष्टता के सतही आधार पर खारिज करेंगें तो शायद हमें अपने कई अनुष्ठानों , कार्यों से भी तौबा करना या काफी बदलाव करना होगा !
और अंत में मैंने एक मांगलिक अवसर पर आज यूँ स्नेहकामना की है -
परिणय दशाब्दि जयंती पर एकनिष्ठ दाम्पत्य की अनंत शुभकामनाएं !
क्या अब भी आप इसे क्लिष्ट मानते हैं ?
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले