यह तो अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति है -तमाम चरमानंद इसके आगे फेल .मैं तो अभिभूत और थोडा हतप्रभ भी हूँ कि एक ही झोंकें में चिट्ठाजगत के कितने ही पुरोधाओं की टिप्पणी एक साथ झोली में आ टपकी .जिनसे टिप्पणी पाने को कितने ही अहकते रहते हैं .और पाकर चहक उठते हैं . दोस्तों की मनुहार और थोडा ना नुकर चल ही रही थी कि बुजुर्गों का आदेश मिला - सीमा पर वापस लौटो ,छुट्टी आवेदन रद्द! वैसे जनाब वह भी तो एक सांकेतिक हड़ताल ही थी मगर सच मानिए चिट्ठाजगत की जीवन्तता ने मुझे आत्म बोध का मार्ग दिखा दिया .यह पूरा मामला ही संदर्भीय महत्त्व का बन गया है .मैंने आपना काम संभाल लिया है और अब वक्त है टिप्पणियों के लिए आभार प्रदशन का .......
तरुण भाई की टिप्पणी पहले मिली . मुआफी चाहता हूँ दोस्त आप तक कभी न पहुँच पाने का .....आप भी कभी हमें अपने यहाँ दिखे नहीं पर आपका अवदान उल्लेखनीय लगता है -अब आपको शिकायत नही होगी .मुश्किल है आप केपरिचय पृष्ठ पर ढेर सारे चिट्ठों का उल्लेख है -कस्मै देवाय हिविषा विधेम ?अपना सक्रिय ब्लॉग बताएं !
दूसरी टिप्पणी लवली जी की थी उन्होंने मुझसे सुंदरियों का नाम बताने का आग्रह कर डाला -मैंने उन्हें बताया कि ब्लॉग लिखते समय जिन सुदारियों का नाम जेहन में था उनमें वे नहीं हैं, निष्ठुरता की इंतिहा यह देखिये कि मेरे चीत्कार पर जहाँ नामचीन हस्तियों के भी सिंहासन डोल गए लक्षित सुंदरियां अभी भी मानिनी बनी बैठी हैं .यह है नायिका का गरूब और ठसक -जिसने उर्दू साहित्य की शेरो शायरी की एक लम्बी परम्परा की नींव डाली .लवली जी आप क्यों टटपुजियाँ हों , टटपुजिये हों आपके दुश्मन और मेरे सरीखा बिना सूरत सीरत वाला ब्लॉगर .. डॉ अमर कुमार जी की टिप्पणी एक पञ्च बन कर आयी -उनकी शैली ऐसी है कि जान कुर्बान जाऊं मगर लब्बो लुआब उनकी बात का क्या होता है मेरी अल्प बुद्धि देर में समझ पाती है -सुगम अगम मृदु मंजु कठोरे किस्म वाली उनकी सधुक्कडी भाषा का आस्वादन अभी हाल ही मैंने शुरू किया है -मैं यह समझ नही पाया कि वे व्यंग पर उतारू हैं या उन्होंने मेरी पीडा को स्वर दिया है !
ज्ञान जी ने बिना लाग लपेट के इस नग्न यथार्थ को रेखांकित कर डाला कि एक अपर और दूसरा अंडर क्लास यहाँ ब्लॉग जगत में भी है -अब वे रहे केन्द्र सरकार के अफसर और मैं ठहरा राज्य सरकार का एक वह कर्म्चारीनुमा अदना सा अफसर जिसकी अफसरी मौलानों -मायावियों के दौर में जाती रही और जो रोजाना ही जूतम पैजार का शिकार होरहा है और लोकतंत्र की परिभाषा पूरी शिद्दत के साथ समझ रहा है - वह सलून वाले अफसर के सामने मुंह खोल भी नही सकता .अवज्ञा की गुस्ताखी मैं कर नही सकता, लिहाजा उनकी अभिजात्य क्लास वाली बात मान ले रहा हूँ -उन्होंने कितना सुन्दर शब्द दिया प्लेबिएन -ब्लॉग जगत के दलित -कुचले लोगों के लिए -उनका 'सुवर्ण 'प्रेम प्रमाणित .
अनाम लोगों की बात को गंभीरता से क्या लेना एक भाई मुझे ब्लागिंग जगत का बोझ बताते भये हैं .अब कुछ कहूं तो वह आत्मश्लाघा की बेशर्मी हो जायेगी !
पी सी रामपुरिया जी दोस्तों के दोस्त लगे -सलाम दोस्त! जिन्होंने एक दोस्त की गुहार को सही लेटर और स्पिरिट में लिया .
नीलिमा जी ने एक और ज्यादा टिप्पणी वाले ब्लॉगर का संकेत तो किया पर बताया नही -कृपा कर बताएं !
दूसरे अच्छे वाले अनाम भाई ने यह दुरुस्त फरमाया कि टिप्पणियों से टिप्पणी करने वाले के बौद्धिक स्तर का पता चलता है
.ब्लागजगत के बादशाह अनूप जी जिनकी मैं बहुत आदर करता हूँ ( उनका रामचरित मानस का संकलन ही अकेले पर्याप्त है उन्हें आदर देने के लिए ) भी दिखे मगर मुझे अपनी एक पहले की पोस्ट को पढ़ने की सलाह दे गए जिसे मैंने पढा भी था और टिप्पणी भी की थी -देखिये बादशाह रियाया को कैसे भूलता है .
जितेन्द्र भगत जी ने अपनी व्यस्तता का विन्म्त्र्ता भरा जिक्र किया -ठीक है जितेन्द्र जी एक शब्द की टिप्पणी ही बहुत है .
मुझ पर पलट टिप्पणियाँ न करने का ग़लत आरोप लगा - बात सिरे से ही ग़लत मुड गयी -मैंने केवल प्रति टिप्पणी न करने वालों को जगाना चाहा था -मैं उन सभी टिप्पणी कारों जो मेरे ब्लॉग पर आने का अनुग्रह करते है अवश्य ही आभार प्रगट करने उन उनके ब्लागों पर जाता हूँ और कुछ अपनी पसंद के दीगर ब्लागों पर भी .यह अब सम्भव नही रहा कि कोई सब ब्लागों पर टिप्पणी करे .
उन्मुक्त जी ने बिल्कुल दुरुस्त बात कही कि टिप्पणी का टिट्टिभ रोदन हमें छोड़ना चाहिए -पर उन्मुक्त जी जब अगला पूरी निष्ठा के साथ आपके ब्लॉग पर आए दिन टिप्पणी कर रहा है तो इतनी सौजन्यता तो होनी चाहिए कि एक बार उसके ब्लॉग जाकर उसे रेसिप्रोकेट किया जाय !
समीर जी - टिप्पणी संग्राहक सम्राट जो मुझे लगे रहो मुन्नाभाई के गांधीवादी तरीके की सलाह दे रहे है ताकि जो एकाध भूली भटकी कापी राईट टिप्पणियाँ मुझे नसीब हो रही हैं वे भी उन तक चली जाय .मैं उनके बहकावे में नही आने वाला .सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी ने मार्के की बात कही है कि टिप्पणी की प्रत्याशा नही की जानी चाहिए .चलिए यह भी जिद छोड़ते हैं -सभी को आभार !
छपते .......छपते .....
राज भाटिया जी का भी सुझाव आ गया कि टिप्पणी के फेर में न पडा जाय ,लिखने का काम जारी रखा जाय -वही तो कर रहा हूँ सर !
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
-
Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
मस्त रहा जाये। बादशाही -वादशाही सब न जाने कौन जमाने की बात है भैया। बादशाहों के वंशज आजकल चाय बेचते हैं/पंचर बनाते हैं। हमारी पोस्ट पढ़ी थी फ़िर भी टिप्पणी के लिये हलकान रहे। इसका मतलब पढ़े नहीं खाली टिपिया दिये। या गुने नहीं। बहरहाल मजा आय ये पोस्ट बांच के।
जवाब देंहटाएंअजी एक ही परिवार में कब तक चुप बैठेंगे आप.. जानकार खुशी हुई.. की आप होलू लू लू से वापस आ गए.. आरू आपकी टिप्पणिया चाहे किसी को मिले ना मिले हमे तो टाइम पर मिल जाती है.. और इसके लिए आभार शब्दो में व्यक्त नही किया जा सकता..
जवाब देंहटाएंसोचते सब यही है.. आपने बस लिख डाला अपने ब्लॉग पर.. आपकी हिम्मत की दाद देता हू.. अवकाश पर जाने के लिए... और सबकी माँग पर वापस आने के लिए..
अब आए है तो बस टीपियाते चलिए..
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जवाब देंहटाएंअरविन्द भाई, व्यंय्ग लिखता नहीं हूँ, अफ़सोस बस यह है कि मेरा लिखा ही व्यंग बन जाता है,या व्यंग समझा जाता है ।
दूसरी त्रासदी कुछ निजी किसिम की है, कबीर के देश में कबीर को बाँचने वाले भी व्यंगकार को विदूषक का ही दर्ज़ा देते हैं । भारत इस मामले में बहुत ही पीछे है, हमें आज भी अपने लिखे को सैटायर ( Satire ) कह कर काम चलाना पड़ता है ।
तीसरी त्रासदी यह कि यह क्यों परिभाषित न हो सका कि लेखक बनता है, या बना दिया जाता है ? फिर भी मैं लिख रहा हूँ और लिखूँगा ।
यहाँ फ़लसफ़ा पढ़ने पढ़ाने का माहौल नहीं है, सो हल्के रूप में ही सही, हल्का तो होना ही है ।वस्तुतः ब्लागर पर सभी हल्का होने ही आते हैं ।
छपास की आँधी मुझ पर से गुज़र चुकी है, इसलिये कोई दबाव भी नहीं है, बस इतना ही तो ? फ़लसफ़े और नसीहतों को आप Angry Amar पर पढ़ सकते हैं, 2005 से चल रहा है । यहाँ उन ज़नाब को मैं साँकल में बंद करके ही आता हूँ..
सबसे बड़ी त्रासदी तो.... अरे, कुछ ज़्यादा हो रहा है, ये सब अपने ब्लाग पर ले जा रहा हूँ !
स्वागत है आपकी वापसी का ..
जवाब देंहटाएं"ha ha ha interesting to read your article, welcome back sir"
जवाब देंहटाएंRegards
चलिए इसी बहाने एक ठहरे हुए तालाब में हलचल तो हुई।
जवाब देंहटाएंवापस आया देख मन खिल उठा. यह लिजिये हड़ताल वापसी का मोसंबी ज्यूस और लग लिजिये अब काम पर. हमारा षड़यंत्र तो नाकामयाब कर दिया आपने बात न मान कर. फिर कभी कुछ और पैंतरा लगायेंगे. :)
जवाब देंहटाएंस्वागत। वैसे देखा पिछली पोस्ट पर जम कर टिप्पणी-बौछार थी!
जवाब देंहटाएंअजी थोडी थोडी देर बाद आप अवकाश की घोषाणा कर दिया करे...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
वापसी की आमद सुखद हो......
जवाब देंहटाएंaaj pahali bar aapke blog pr yatra kr rha hoon pr yh jaankr ki abhi aap awakash se abhi abhi aaye hain to sabase pahale is prangan men aapka swagat hai .
जवाब देंहटाएंसर जी बहुत बढिया नुस्खा पकडा दिया है !
जवाब देंहटाएंऔर टेस्ट भी हो चुका , सो बख्त जरुरत
इस्तेमाल में भी डर नही ! :) आपका धन्यवाद !