शुक्रवार, 8 अगस्त 2008

तुलसी जयन्ती के अवसर पर ......

आज तुलसी जयन्ती है -एक महाकवि के धरावतरण का पुण्य और शुभ दिन .इस अवसर पर मेरी इस महान मेधा को काव्यांजलि -श्रद्धांजलि मेरे स्वर्गीय पिता डॉ राजेन्द्र प्रसाद मिश्र की इन पंक्तियों में अर्पित है -
निगमागम वाद अरण्य में
मतमतांतर द्वेशज शर्वरी ,
विवशता बन मृत्यु रता यदा
अरुण दीप शिखा तुलसी हुए

विविध दर्शन की सलिला सुधा
प्रवाहमान निरंतर विश्व में ,
सब समाहित 'मानस 'में सदा
सुसरिता इव तीरथ राज में

सरसता समता व्यवहारिता
त्रिपथगा बन काव्य प्रदेश की
शिवम् सत्यम लोक हितैषिणी
सुरुचि सूक्ति प्रवाहित सर्वदा

सफल मानव जीवन संहिता
फलित राज व्यवस्था राम की
सुलभ तो अन्यत्र कहीं नहीं
परम सूक्ष्म विवेचन धर्म का

सुकवि श्रेष्ठ सुनायक संत से
उरिन भारत सम्भव है नहीं
सुमन वन्दित यह श्रद्धांजलि
पद नख छवि ज्योतित रज बने
स्वर्गीय पिता जी जो तुलसी के अनन्य प्रेमी थे की यह कालजयीं पक्तियां आज तुलसी जयन्ती के अवसर पर उनकी ओर से ही महान कवि को सादर समर्पित -
त्वदीय वस्तु गोविन्द तुभ्येव समर्पयामि ..........

8 टिप्‍पणियां:

  1. कविता बहुत सरस एवं गेय लगी। तुलसी-जयन्ती का स्मरण दिलाने के लिये साधुवाद!

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  2. सच कहूँ तो पूरी कविता तो समझ में नहीं आई (ये निश्चय ही मेरी अज्ञानता है) पर जितनी भी समझ पाया बहुत अच्छी लगी.
    आभार.
    ब्लाग के नाम का अर्थ भी बताये तो थोड़ा ज्ञान वर्धन हो.

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  3. सफल मानव जीवन संहिता
    फलित राज व्यवस्था राम की
    सुलभ तो अन्यत्र कहीं नहीं
    परम सूक्ष्म विवेचन धर्म का
    महान लोकनायक के जन्म दिवस पर एक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार।

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  4. आभार इस बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए.

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  5. तुलसी जयन्ती के बहाने यह जानकारी मिली कि आपके पिताश्री एक उच्चकोटि के कवि थे। पर आश्चर्य यह कि आपमें कविता के अंकुर क्यों नहीं फूटे?

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