मेरी तकनीकी अल्पज्ञता से यह पोस्ट जो नाग पंचमी के दिन प्रकाशित भी हुयी थी डिलीट हो गयी जबकि इस पर सुधी मित्रों की टिप्पणियाँ भी मिली थी .....पुनः इसे यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ ताकि यह अभिलिखित रहे .अफसोस यह कि मित्रों की बहुमूल्य टिप्पणिया तो छूट ही गयीं .
भारत में थोड़े बहुत सांस्कृतिक परम्पराओं के हेर फेर से नाग पंचमी हर जगह अनायी जाती है .दरअसल यह त्यौहार सापों के प्रति हमारे भय का ही एक इजहार है .यह सावन में इसलिए भी मनाया जाता है कि इसी समय सांपो का जनन काल होने से वे बहुधा आदमी से टकराते हैं -सबसे अधिक सर्पदंश से मौते इसी समय होती आई हैं ।
मगर साँप और नाग ये अलग अलग शब्द क्यों ?अंगरेजी में तो इनके लिए बस स्नेक ही प्रचलित है ।
गीता में स्वयम कृष्ण कहते हैं कि वे सापो में वासुकि और नागों में अनंत हैं .क्या फन वाले साँप नाग हैं और बिना फन वाले महज साँप ? कोबरा को हिन्दी में नाग कहते हैं और किंग कोबरा को नागराज .ऐसी कथा है कि जन्मेजय के सर्प नाश यग्य में भी कुछ पहचान का ऐसा ही संकट उत्पन्न हो गया था जब डुन्डूभि नामक साँप ने आर्तनाद करते हुए कहा कि
"अन्य ते भुजगा राजन ये दशन्तीह मानवान ".....मजेदार मामला यह भी कि मनुष्यों में भी एक नाग वंश हुआ है .इतिहास के प्रेमी इस नाग वंश के बारे में बखूबी जानते हैं आज
भी नाग उपनाम के लोग हैं -इनका रेंगने वाले सरीसृप साँप से क्या कोई सम्बन्ध हो सकता है ? मतलब नामकरण और इतिहास का -वैसे भला कहाँ साँप कहाँ आदमी -दूर दूर का जैवीय रिश्ता भी नही है इनमे ।भारत रत्न डॉ पांडु रंग वामन काणे ने धर्मशास्त्र नामक अपने सन्दर्भ ग्रन्थ मे लिखा है कि पश्चात् कालीन वैदिक काल से ही नाग की एक पृथक मनुष्य जाति होने का वर्णन मिलाने लगता है .
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में आज ही एक विचित्र रस्म निभायी जाती है -लडकियां गुडिया लेकर उन्हें संभवतः मृत समझ तालाब में फेक देती हैं और लडके रंग बिरंगे डंडों से उन्हें खूब छपाक छपाक पीटते हैं -कोई सुधीजन बता सकते हैं कि इस रस्म के पीछे क्या कहानी छुपी है ?क्या इसका नाग पंचामीं से कोई सम्बन्ध है ?
भविष्य पुराण में नागों की माता कद्रू और विनता इन दोनों बहनों का बड़ा ही रोचक किंतु क्रूरता से भरा किस्सा है -इन दोनों में ऐसी लाग डाट लगी कि कद्रू ने अपने ही बेटों को जन्मेजय के सर्प यग्य में भस्म हो जाने का श्राप दे दिया ।
सापो के भारतीय सन्दर्भों पर वोगेल की इन्डियन सर्पेंट लोर एक पठनीय पुस्तक है ।
सर्प आदि देव शंकर के आभूषण हैं तो विष्णु उन्हें शैय्या बनाए बैठे हैं -साँप समुद्र मंथन से ही हमारी साथ हैं -हमारे अनगिनत दंतकथाओं के हीरो और विलेन हैं -एक बाला लखंदर की दर्दीली दास्ताँ बंगाल लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक कही सुनी जाती है .आपने कभी सुनी बला लखंदर की किहिनी ?
मुझे तेज आवाजे सुनाई दे रही हैं -छोटे गुरू को लो बड़े गुरू को लो ........आज आप भी सर्प दर्शन मत भूलियेगा .......!
Alarma sobre creciente riesgo de cyber ataque por parte del Estado Islámico
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Un creciente grupo de hacktivistas está ayudando Estado Islámico difundir
su mensaje al atacar las organizaciones de medios y sitios web, una empresa
de se...
9 वर्ष पहले
मैं बचपन से ही साँपों को देखती रही हूँ, इनके बीच पली हूँ। मुझे साँप मनुष्य से अधिक सुरक्षित व विश्वसनीय लगते हैं। मुझे उनसे कोई भय नहीं है। वे तब ही डसते हैं जब स्वयं को असुरक्षित समझते हैं।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
आप ने नागो के बारे तो बहुत बताया हे, सुना हे नागिन बदला लेने के लिये पीछे पड जाती हे
जवाब देंहटाएंक्या यह सच हे,अगर हां तो उन से पीछा केसे छुडाया जाता हे,ओर सुना हे यह रुप धारी भी होते हे, क्या यह सब अफ़गाहे हे या सच, जरुर जानकारी दे, धन्यवाद
बहुत रोचक जानकरी.नागपंचमी के पर्व पर आपको बधाई एवं शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंaur jankari chahiye.yah bahut kam hai puri lekhmala likhe
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक जानकारी.
जवाब देंहटाएंघुघूती जी के कमेन्ट से एक कविता याद आ गई. कुछ अधूरी से लगे तो माफ़ी चाहूँगा क्योंकि काफ़ी पहले पढ़ी थी.
" सांप तुम शहरों में तो बसे नहीं
फ़िर विष कंहा से पाया और
डसना कंहा से सिखा."
बहुत ही रोचक जानकारी.
जवाब देंहटाएंघुघूती जी के कमेन्ट से एक कविता याद आ गई. कुछ अधूरी से लगे तो माफ़ी चाहूँगा क्योंकि काफ़ी पहले पढ़ी थी.
" सांप तुम शहरों में तो बसे नहीं
फ़िर विष कंहा से पाया और
डसना कंहा से सिखा."
गुडिया पीटने का रिवाज आज भी यहाँ प्रचलित है, जो गाँव और शहर दोनों जगह देखा जा सकता है। पर उसमें जो गुडिया पीटी जाती हैं, वे मृत स्वरूप में होती हैं, यह पहली बार पता चला। एक बात और नागपंचमी से इस प्रथा का क्या लिंक है, यह भी क्लियर नहीं हुआ। कभी मौका लगे, तो इसपर रौशनी डालिएगा।
जवाब देंहटाएंआधी अधूरी...बिखरी-बिखरी जानकारी का क्या लाभ ....कुछ भी स्पष्ट नहीं है....
जवाब देंहटाएंआधी अधूरी...बिखरी-बिखरी जानकारी का क्या लाभ ....कुछ भी स्पष्ट नहीं है....
जवाब देंहटाएंलिक देख कर ही लग गया था कि यह पोस्ट तो पहले पढ़ी है !
जवाब देंहटाएंपुराणों का सूक्ष्मता से अध्ययन करना होगा
जवाब देंहटाएंइस विषय पर काफी अध्ययन और शोध की संभावना है...
जवाब देंहटाएंBole to yeh post to shuru hote hi khatam ho gayee. Dr. Saheb, please elaborate about Naag vansh in ancient India.
जवाब देंहटाएंRest, always a pleasure to read your posts.
Regards,
Neeraj
आभार पढ़ने के लिए नीरज जी -वो नाग वंश का मामला ही अलग है -नृवंशविदों और इतिहासवेत्ताओं का क्षेत्र -हमतो यहाँ निरीह नागों की चर्चा करते हैं ! नाग वंश का एक इतिहास भी है!
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