बुधवार, 18 मई 2011

धन्य रे कर्कशा नारि!

नारी का यह रौद्र वीभत्स रूप भी तनिक देखिये ..रोंगटे खड़े हो जायेगें .बात अपने जौनपुर की है ..घटना दिल दहलाने वाली है ...पहले पूरा समाचार जो अपने जिले जवार जौनपुर का ही है -बड़े बड़े मंसेधू(पति ) ऐसी नारी से  पार न पायें - ..

"जेवर कम देख भड़की मां कुएं में कूदी

May 17, 10:08 pm

बरईपार (जौनपुर): मछलीशहर थाना क्षेत्र के भाऊपुर गांव में आयी एक बारात में सोमवार की रात से लेकर मंगलवार की सुबह तक जमकर हंगामा हुआ। जिसमें बेटी के जेवर वर पक्ष द्वारा कम लाये जाने से भड़की मां ने कुएं में छलांग लगा दी।
बताया जाता है कि प्रतापगढ़ जनपद से एक बारात भाऊपुर गांव में आयी थी। रात में द्वारचार के बाद बारातियों ने भोजन किया और विवाद के लिए मण्डप लग गया। जिसमें बैठे वर पक्ष के लोगों ने जब दुल्हन के लिए लाये गये जेवर सबके सामने रखा तो तय वादे के मुताबिक कम जेवर देख दुल्हन की मां भड़क गयी। विवाह तो किसी तरह हो गया लेकिन मां की जिद थी कि न तो दुल्हन विदा होगी और न ही कन्या पक्ष द्वारा तय किया हुआ कोई सामान वर पक्ष के साथ जाएगा।
सुबह दुल्हन की मां को आस-पास न देख लोगों ने सामान को गाड़ी में लादना शुरु किया। इसी बीच अचानक वह पहुंच गयी और सबके ऊपर भड़क गयी। अपनी बात न मानते देख दुल्हन की मां ने घर के पास ही स्थित कुएं में छलांग लगा दिया। जिससे घरातियों-बारातियों में हड़कम्प मच गया। गनीमत तो यह था कि कुएं में मात्र चार फिट ही पानी था और लोगों ने काफी मशक्कत के बाद उनको बाहर निकाला।
इसके बाद देर तक पंचायत हुई और तय हुआ कि सिर्फ दुल्हन ही विदा होगी, जिसके साथ एक अन्य युवती भी जाएगी। उसके साथ कोई सामान नहीं जाएगा। वही यह शर्त भी रखी गयी कि एक दिन बाद दुल्हन वापस अपने मायके आ जाएगी। इस बात पर किसी तरह मामला शांत हुआ और विदाई की रस्म अदा की गयी। घटना को लेकर क्षेत्र में तरह-तरह की चर्चाएं व्याप्त है।"

 आपको अजब लग सकता है लेकिन मेरा अब तक का जीवन ही ऐसी नारी गाथाओं को करीब से  देखते सुनते बीता है.  भला ऐसी नारियों से कौन पार पा   सकता है जिसे न तो अपने परिवार और न ही बेटी के परिवार वालों की मान मर्यादा का ख़याल रहा -सब शर्म से पानी पानी हुए!का न अबला कर सके का न सिन्धु समाय!
  मुझे बचपन की पढी कविराय की कुण्डलियाँ याद आयीं -एक आपसे साझा कर रहा हूँ -

मरे बैल गरियार मरे वह अड़ियल टट्टू 
मरे कर्कशा नारि मरे वह खसम निखट्टू 
बाभन सो मरि जाय हाथ ले मदिरा पीवे 
पूत सोई मरि जाय जो कुल को दाग लगावे 
बे नियाव राजा मरे तबे नीद भर सोईये
बैताल कहें विक्रम सुनो इते मरे न रोईये  
गरियार=ऐसा बैल जो कृषि कर्म के दौरान बैठ जाता हो और पैना (चाबुक ) 
मारने पर भी न उठता हो ... 
निखट्टू =कोई काम न करने वाला 
बेनियाव =अन्यायी 

47 टिप्‍पणियां:

  1. Woman! when I behold thee flippant, vain,Inconstant, childish, proud, and full of fancies.



    JOHN KEATS, "Woman! When I Behold Thee"

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  2. जिसने कविता यहीं तक पढ़ी वो बच गया और जो आगे गया वो तो फिर गया ही गया :-))

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  3. माया महाठगिनी हम जानी.

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  4. मेरा अब तक का जीवन ही ऐसी नारी गाथाओं को करीब से देखते सुनते बीता है

    अफ़सोस जनक। लेकिन अगर यह सच है तो आपकी सौंन्दर्यचेतना कैसे विकसित हुई? :)

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  5. अफसोसजनक घटना ...यह हमारे सामाजिक माहौल का भी प्रतिबिम्ब है.....

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  6. का न अबला कर सके का न सिन्धु समाय!

    सहमत हूँ ....शुभकामनायें !

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  7. अरे इस को दोबारा कुये मे डाल कर ऊपर से ओर पानी भर देना चाहिये था,आफ़त को जितनी जल्दी खत्म करो अच्छा हे:) बाप रे ऎसी सास तो ... सास क्या यह तो मां भी अच्छी नही होगी जो अपनी बिटिया का घर ही बसने से पहले ढा देना चहती थी, राम बचाये ऎसी आफ़त से

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  8. चूँकि वहाँ आमरण अनशन की सँभावनायें क्षीण थीं
    अतएव प्रतिरोध का यह त्वरित गाँधीवादी तरीका अपनाया गया ।
    स्तुत्य हैं ऎसी आत्मबलिदानी नारियाँ !

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  9. इसे क्या समझा जाये
    इस समाचार में वर्णित महिला को अन्य के साथ रखना गलत है . हो सकता है वो मनो रोगी हो . इस कथन पर असमत हूं कि "आपको अजब लग सकता है लेकिन मेरा अब तक का जीवन ही ऐसी नारी गाथाओं को करीब से देखते सुनते बीता है. भला ऐसी नारियों से कौन पार पा सकता है जिसे न तो अपने परिवार और न ही बेटी के परिवार वालों की मान मर्यादा का ख़याल रहा -सब शर्म से पानी पानी हुए!का न अबला कर सके का न सिन्धु समाय! "

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  10. असमत हूं को असहमत हूं बांचिये

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  11. निष्कर्ष यह निकलता है कि प्रति-दहेज प्रताडना कार्यक्रम को निरस्त करने के लिये कुओं के जलस्तर को वापस पुरानी मात्रा तक लाने की आवश्यकता है।

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  12. तिरिया चरित ब्रहम्मा जी भी कहाँ समझ पाए

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  13. @अनूप शुक्ल,
    श्रेय ऐसी नारियों को ही है जिन्होंने अपने से उलट एक यूटोपिया मेरे मन में नारी के लिए बनाया जो मेरी रचनाओं
    ,मेरे आंतरिक जगत में मेरी सहचरी है .....
    हाँ ऐसी नारियां भी है जो उस यूटोपिया को छूने तक तो पहुँचती हैं -मगर .....

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  14. ek kadvaa sach hai ye samaj ka.

    kamobesh isi tarah ke charitron se bhare naari pradhan TV serials ki bharmar hai aur badi sankhya me darshak bhi hain nariyaan ! naari ki dushman naari ! dukh hota hai!

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  15. फिर भी लोग माने बैठे हैं कि नारियों को समाज में दबा कर रखा जा रहा है...

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  16. दहेज के लिए महिला प्रताडित होती रही है। एक यह महिला है जो अपनी बेटी के लिए जान की बाज़ी लगा दी तो...... कर्कशा नारी कैसे भई?:)

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  17. पजामे में नारा और परिवार में नारी, इन दोनो को कसकर रखना बहुत जरुरी होता है नहीं तो इज्ज़त का फालूदा बनते देर नहीं लगती !!!

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  18. एक माँ ने अपनी बेटी के स्त्री धन के लिये जो उसे सही लगा किया इसमे वो कर्कशा कैसे होगई ??
    क्या केवल इस लिये क्युकी वो बेटी के अधिकार की दुहाई दे रही थी
    आप स्वयम उत्तर प्रदेश के हैं और जानते हैं की बहु के लिये जो जेवर और कपड़े ससुराल से आते हैं उसके लिये तिलक मे लड़की वाले कैश दे देते हैं . तिलक शादी से पहले ही होता हैं और जो जितना कैश देता हैं उसकी बेटी की ससुराल से उस अनुसार ही सामान आता हैं अगर आप ना जानते हो तो पता करियेगा . ये सामाजिक बार्टर हैं जो सदियों से चला आ रहा हैं और बेटी वाले पिताओं को अवश्य इसके बारे मे पता होना चाहिये क्युकी भारत मे बेटियाँ बिना दान दहेज़ के नहीं ब्याही जाती .
    अब जो पैसा एक लड़की के मायके से आया और तय हिसाब से कम गहना देख कर माँ ने आपत्ति दर्ज की तो क्या गलत किया
    क्या अब लड़की वालो को इतना भी अधिकार नहीं हैं और ये सब लिखने से पहले सामाजिक रीति रिवाज जो प्रचलित हैं उन पर जरुर नज़र डाल लेनी चाहिये
    किसी को कर्कश बताने से पहले वो भी देख ले की स्थिति के पीछे का सच क्या हैं

    और परम प्रिय टिपण्णी कारो जो नारी को दोषी मान रहे हैं अपने अपने अन्दर झाँक ले , सब वो जो शादी शुदा हैं कितना लिया दिया गया था उस समय जब शादी हुई थी लड़की के मायके से क्या क्या आया था और ससुराल से क्या गया था उसके लिये . हिसाब लगा ले तब टंच कसे तो बेहतर होगा
    और हिमांशु गुप्ता जी मे तुलसीदास बनने के पूरे गुण हैं मेरी शुभकामनाए

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  19. जो भी तय हुआ होगा उतना जेवर तो वर-पक्ष द्वारा कन्या के लिए ले जाना चाहिए था. अपनी बेटी का भला कौन नहीं चाहता? मुझे लगता है माँ द्वारा इस कदम के पीछे यह कारण भी रहा होगा कि उसकी बातों ज्यादा महत्व नहीं दिया गया होगा या फिर उसे अनसुना कर दिया होगा. वर-पक्ष अभी भी कन्या-पक्ष को दबा कर तो रखता है इसमें कोई दो राय नहीं.

    व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर व्यक्तिगत निष्कर्ष निकाले जाने चाहिए:-)

    हम उस काल से बहुत आगे निकाल आये हैं जब कुण्डलियाँ, कवित्त वगैरह के माध्यम से बातों का समान्यीकरण कर दिया गया था.

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  20. नारी का रौद्र वीभत्स रूप.... रौंगटे खड़े हो जाएँग़े.. कुछ ज़्यादा नहीं कह गए !!!! माँ क्यों न कहा...
    एक माँ, जिसकी बेटी सदा के लिए उससे विदा हो जाएगी...उसकी बेटी एक अंजाने माहौल में जाने कैसे अपने आप को सँभाल पाएगी...कौन जाने माँ के मन में कम जेवर लाने की ही बात थी या ऐसे परिवार से डर जिसने पहली ही बार वादे से मुकर कर अपना परिचय दे दिया...उस घर परिवार में अपनी बेटी की सुरक्षा का डर...आपने ने एक माँ के डर..उसके दर्द को न समझा....!!!

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  21. नारी, नर से क्या फर्क पड़ता है। क्रोधातिरेक में कुछ भी करने वाले पुरुष भी बहुतेरे हैं!

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  22. ab is me balak kya kahe........shiv
    bhaijee se sahmat ho leta hoon.....

    pranam.

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  23. @@राज भाटिया साहब ,
    सचमुच ऐसी अशोभनीय हरकत अचम्भित और स्तंभित करती है
    @गिरीश मुकुल जी ,
    असहमति का कारण कृपया बयान करिए -इत्ती आसानी से तो हम असहमति नहीं प्रदान करेगें :)
    @डॉ .अमर जी ,
    बहुत कूटनीतिक जवाब है सर जी
    @सी एम जी,
    कर्कशा कर्मणा भी होती हैं ,मात वाचा ही नहीं मैं मौके पर तो था नहीं
    हो सकता वाचा -कर्कशा भी रही हो यह उद्धार नारी
    @शिव ji ,
    अगली बार आपके व्यक्तिगत अनुभवों से मैं अपनी बात करूंगा -मंजूर ?
    क्या ऐसी नारी को अपनी पत्नी बनाना स्वीकार करेगें ?
    @रचना जी ,
    आपकी जानकारी दुरुस्त है -मगर ऐसा अशोभनीय आचरण और वह भी मांगलिक अवसर पर ?

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  24. bahut sahi kiya kudane se pahale aag aur laga letee tab aur sunder hota ..........................................

    yahi to maradan naari hai jo apne adhikaro ke liya jaan ki baazi laga detee hai......yahi adhikar inco chahiye .........

    jai baba banaras.......

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  25. अरविन्द मिश्र जी
    मांगलिक अवसर पर अशोभनिये काम तो वर पक्ष ने किया हैं प्रतारित उनको करिये आप अपना नारी विरोध एक बेबस माँ पर क्यं उतार रहे हैं वो तो पहले से ही पीड़ित हैं और अपनी बात को मनवाने के लिये कुयें मे कूद पड़ी कहीं आप की पोस्ट पढ़ लेती तो फांसी ही लगा लेती
    उसने अपनी बेटी का मंगल देखा ना की मांगलिक क्षण देखा
    बहुत अफ़सोस होता हैं जब लोग बिना बात नारी को दंश देते हैं

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  26. शिव जी ,
    आपकी माने तो सारे पारम्परिक ज्ञान सब कूड़ा करकट हैं क्यों?
    वैसे भी उन्हें अक्षरशः मामने की कौन कह रहा है -
    कई ऐसे प्रोटोटायिप/स्टीरियो टाईप हैं जो आज भी नहीं बदले हैं ...
    जैसे निखट्टू खसम और कर्कशा नारियां ....

    @ज्ञानदत्त जी ,
    आज तक कुएं में इस तरह कूदते किसी पुरुष के बारे में सुना है ?

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  27. @रचना जी,
    अमांगलिक तो अब हुआ ..लडकी अपना क्या मुंह दिखायेगी ससुराल में
    लोग कहेगें वज्र की माई है इसकी कूएं में कूद पडी
    किसी त्याग की भावना से नहीं पूरी नंगई करके वो कुएं में कूदी ...
    कुछ नारियों की यह कोई नयी प्रवृत्ति नहीं हैं -पुराणों में भी इस प्रवृत्ति का जिक्र है -
    सती अपने पिता के ही यज्ञ कुंड में कूद पडीं थीं ....आई डोंट लाईक सच ड्रामा !

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  28. आप को ये ड्रामा लग रहा हैं जबकि मामला हैं धोखा देने का एक वरपक्ष का जो पैसा लेने के बाद जेवर लाने से मुकर गये
    और बेटी ससुराल मे क्या मुह दिखाएगी कहना गलत हैं कहना चाहिये ससुराल वाले क्या मह लेकर बहूँ ले गए . समाज मे उनकी कितनी भद्ध हुई हैं मुह तो उनको छुपाना चाहिये लेकिन
    हमेशा की तरह मुहं छुपाने की बात बेटी और उसके परिवार पर हैं
    एक रुढ़िवादी सोच जहां बेटी की माँ होने का मतलब हाथ बाँध कर सिर झुका कर खड़े होना होता हैं वर्ना बेटी ससुराल मे क्या मुहं दिखायेगी
    उफ़ क्या हम २०११ मे हैं ??
    and if you dont like drama many dont like the nautanki that depicts woman in a bad taste

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  29. सती अपने पिता के ही यज्ञ कुंड में कूद पडीं थीं
    i wish "sati" had better sense then thinking about her husbands prestige

    no husband will jump out of his fathers home even if his wife is insulted day in and day out

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  30. कोई कुछ भी कहे नारी का यह चंडालिनी स्वरूप मुझे कतई पसंद नहीं -
    भाटिया जी की भावना बिलकुल सही व्यक्त हुयी -पूरे कुएं में और पानी भरवा देना था !

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  31. भैया जी , दुल्हन की मां को पता होगा कि कुँए में ४ फुट पानी ही है । हमारे पास ऐसे मरीज़ बहुत आते हैं जो ऐसी नौटंकी करते हैं ।
    बहरहाल , पुराने रीति रिवाज़ अभी भी हावी रहते हैं कुछ घरों में ।

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  32. क्या कहा जाये ऐसी मानसिकता पर.

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  33. शायद सबकुछ आर्थिक लाभ हानि के ईर्द गिर्द ही आकर ठहरा हुआ है. माँ बेटी के हित के लिये मानसिक उद्वेग को नहीं सम्भाल पायी होगी. यह डिप्रेशन की एक अवस्था हो सकती है....

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  34. आश्चर्य ! मनो-"वैज्ञानिक" सोच नारी और पुरुष में इस कदर भेद करती है। (ऐसे हिस्टीरिकल स्थितियां में पुरुषों को भी सरे-आम देखा जा सकता है।)

    ज्ञानी और पंडितों की सभा में, समस्या का इतना सरलीकृत विश्लेषण हज़म नहीं हुआ।

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  35. न तो वरपक्ष ने कन्यापक्ष की मर्यादा का ख्याल किया और न ही कन्यापक्ष ने बेटी के वैवाहिक भविष्य का।

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  36. नारी बेचारी भी क्या करे? कभी-कभी तो दुर्गा-रूप दिखाने का मौका मिलता है.बात अगर गहने की हो तो वो मान-मर्यादा से भी ज्यादा प्यारी है .मैं आप से सहमत हूँ..मुझे भी आश्चर्य होता है नारी के ऐसे रूप पर ..मैं भी करीब से इन चीज़ों को देखती हूँ ..

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  37. विवाह आदि के अवसर पर इस तरह के झगड़े टंटे होते रहते हैं। कबी वर पक्ष भारी पड़ता है तो कभी वधू पक्ष।

    ये विवाह ही होता है जहां कि किसी बाराती के पैर में थोड़ी सी बाल्टी क्या छू जाती है - पूरे गाँव को ही अंधा घोषित कर दिया जाता है कि सालों को बाल्टी रखने के लिये जनवासे का यही स्थान मिला था :)

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  38. आपकी पोस्ट और टिप्पणिया पढ़ी. ये घटना ग्रामीण क्षेत्र की है जहा इस तरह की बाते आम तौर से होती रहती है और वो लोग ऐसी बातो को ज्यादा दिन ध्यान नहीं रखते है वो तो हम तथाकथित पढ़े-लिखे लोग है जो एक बार किसी ने कुछ कह दिया तो जिन्दगी भर उसको मन में रखते है. इसलिए दुल्हन के लिए ये बात ज्यादा दिन तकलीफ वाली नहीं रही होगी. ग्रामीण एवं निम्न वर्गीय जनता बच्चो की तरह होती है जो लड़-झगड़ कर फिर एक हो जाते है.

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  39. ज्ञानदत्त पाण्डेय जी से सहमत ...
    हिमांशु गुप्ता जी की टिपण्णी पर सख्त आपत्ति ...

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  40. मुझे तो अंतिम में कविराय की कुण्डलियाँ मजेदार लगीं ;)

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