मंगलवार, 12 मई 2009

चिट्ठाकार समीर लाल -जैसा मैंने देखा !

कितने "क्यूट ' हैं समीर जी , अभी उसी दिन तो एक महिला ब्लागर मित्र ने मुझसे कहा !
अब समीर लाल से भला इस चिट्ठाजगत में कौन अपरिचित है ! वे सर्व प्रिय हैं .सर्व व्याप्त हैं .सबके लिए सहज और सुगम हैं !

उनके बारे में लिखना क्या और न लिखना क्या ? कितने कितने लोगों ने लिख डाला है उन पर ! पर मगर फिर भी ऐसा लगता है कहीं कुछ छूट सा रहा है ! मगर वह जो छूट सा रहा है उसे पकड़ने में फिर कुछ छूट सा जाता है -समीर जी का व्यक्तित्व ही मानों कुछ ऐसा है ! और इसलिए ही बार बार उन पर लिखने की जद्दोजहद जारी है -मैं भी इस मुहिम में अपना स्नेह अर्पण कर दूँ -यह (हरि ) इच्छा प्रबल हो उठी है ! इच्छा तो काफी पहले से ही थी मगर उनके नए काव्य संग्रह ने मानों इसमें नव स्फुरण /नवोत्प्रेरण का का काम कर दिया हो !

समीर जी चिट्ठाकार तो अप्रतिम हैं हीं जिस कारण इस समय भी बधाईयाँ हलोर रहे हैं ! वे कवि भी हैं ! और कवि ही नहीं बल्कि यूँ कहिये की वे कवि हृदय हैं -कवि तो कोई भी हो सकता है -यहाँ ( ब्लागजगत ) ,वहाँ ( भवसागर ) में एक ढूंढों तो हजार मिल जायेंगें की स्टाईल में ! पर कवि ह्रदय वाली सहृदयता भला कितनों में होती है ! कवि होना आसान है कवि हृदय होना दुर्लभ ! उनमें गुण भी है तो गुण ग्राहकता भी और वह भी माशा रत्ती तौल में बराबर ! उनकी रचनाएं मन मोहती हैं -गंभीर से गंभीर बात को भी मनोविनोद के लहजे में सहज ही कह देना यह क्षमता तो बस समीर जी ही की थाती है ! सबके वश की बात नहीं ! कभी अगले जनम मुझे बेटवा न कीजो तो पढ़ कर देख लीजिये ! वही अकेले एक ब्लॉगर हैं जिनकी रचनाएं मैं परिवार के साथ बैठ कर बांचता सुनता हूँ ! उनके आब्जर्वेशन ऐसे सटीक और पैने होते हैं कि वाह क्या कह डाला इन्होने ! और प्रेक्षण की यह क्षमता निश्चित ही गाड गिफ्टेड ही है -जिसके लिए एक खास किस्म की संवेदनशीलता और सुरुचिपूर्णता की दरकार होती है जिससे समीर जी लबरेज हैं !

मस्त मौला हैं समीर जी ! अपनी शर्तों पर जिन्दगी जीने के शौकीन ! चिंतन भी हाई और जीवन शैली भी ! जिन्दगी आखिर है भी कितने दिनों की ! सीरत ये रही और सूरत में भी अपने समीर भाई कुछ कम कहाँ ठहरते हैं -भले ही वे लाख दिखाएँ की उनका दैहिक जुगराफिया और नाक नक्श गोल मोल बेडौल है पर उनकी प्रशस्त काया किसी बडमनई का ही बोध कराती है वे नाहक ही वन मानुष सा अपने को दिखाने का यत्न करते हैं ! मैं राज की बात बताऊँ मेरी कुछ महिला ब्लॉगर मित्रों की नजर में समीर जी सेक्सी ( मतलब अच्छे ! अब यह शब्द इसी अर्थ में ही प्रयुक्त होता है न ! ) लगते हैं मगर उनकी कोफ्त यह है कि समीर जी का ध्यान कहीं और लगा हुआ रहता है -मतलब कुछ कुछ उस जुमले की तरह कि ' तेरा धयान किधर है ,तेरा सामान तो इधर है ! ' के तर्ज पर ! पर ऐसी विडम्बनायें तो अक्सर कवि और संवेदनशील लोगों के साथ होती ही रहती है -कविता तभी तो उपजती है ना ! इन्ही विडम्बनाओं और विसंगतियों से ही !

अब समीर जी कितने सरल और सहज हैं एक वाक़या सुनिए ! उन्होंने किसी कवि सम्मलेन में शिरकत की और बड़े उत्साह में अपनी आवाज में वह कविता पॉडकास्ट कर दी -अब उनकी रचनाओं का मुरीद मैं उनकी आवाज से प्रभावित न हो उनसे शिकायत ही कर बैठा ( अब मेरी अशिष्टता तो देखिये !) मगर वाह रे समीर लाल उन्होंने उसका ज़रा भी बुरा न माना बल्कि मुझे अपनी ही ध्रिष्टता पर शर्मसार होना पड़ा ! बल्कि तबसे उनसे मेरे सम्बन्धों में सामीप्य का एक नया चैप्टर खुल गया ! आज ब्लॉग जगत में जितनी सहजता बिना आमने सामने मिले मेरी समीर जी से है शायद वह किसी एक को छोड़कर किसी के साथ नही है ! मतलब एक रूहानी सा रिश्ता ! उन्होंने मुझसे वादा किया था कि भारत आने पर मुझे सस्वर काव्य पाठ सुनाने मेरे गरीबखाने पर वे आयेंगें ( ताकि मैं समझ सकूं और वह दोष निवारण हो सके कि आख़िर इस अप्रतिम सर्जक का स्वर यंत्र कहाँ फंस रहा है ! हा... हा ) पर वे आ न सके और इसलिए जाते वक्त मेरे मनो मालिन्य को दूर करने " बिखरे मोती " की एक प्रति के साथ मुझसे बाकायदा क्षमा याचना की ! मैं कृत कृत्य हो गया ! ऐसी विनम्रता ,विशाल हृदयता अब कहाँ और कितनों में है !

बिखरे मोती मैं पढ़ चुका हूँ बल्कि इसी कृति ने यह पोस्ट लिखने पर मानों मुझे विवश कर दिया ! अब अपने प्रिय चिट्ठाकारों की चर्चा मैं यहाँ करता ही हूँ तो तय पाया कि इसी के बहाने ही समीर जी को जैसा मैंने देखा पाया यहाँ व्यक्त कर दूँ और साथ ही बिखरे मोती की एक पाठकीय समीक्षा भी करता चलूँ ! पर लगता है बिखरे मोती की चर्चा आज की पोस्ट में सम्भव नहीं -इसके लिए इस चिट्ठाकार की चर्चा अब दो पोस्ट में ही संपन्न हो पायेगी ! मतलब अभी एक पोस्ट और भी ! और यह समीर जी की शख्सियत को देखते हुए तो बहुत कम है ! उनकी श्री चर्चा तो हरि अनंत हरि कथा अनंता है !

जारी .....

48 टिप्‍पणियां:

  1. हां आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, समीर जी को एक दो पोस्ट मे समेटना आसान नही है, हर बार कुछ ना कुछ छूटा सा लगता है.

    आखिर व्यक्तित्व ही इतना विराट है. बहुत धन्वाद अब आगे भी लिखिये.

    रामराम.

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  2. समीर जी को कौन नहीं जानता! हाँ 'बिखरे मोती' के बारे में जानने का इंतजार रहेगा. समीर जी की 300 वीं पोस्ट पर यह भी एक तोहफा ही है शायद.

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  3. JI BILKUL SAHI FARMAAYAA AAPNE SAMEER JI BAHOT CUTE HAI...


    ARSH

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  4. हम सभी के आदरणीय है समीर जी |माफी चाहूँगा पर जब भी मैं समीर जी को
    देखता हूँ, मुझे अचानक से तहकीकात के गोपी अंकल की याद आ जाती है |
    और एक भावनात्मक जूदाव महसूस करने लगता हूँ | समीर जी की टिप्पणी का हर कोई बेसब्री से इंतजार करता है पर जिसकी किस्मत तेज़ होती है आशीर्वाद उसी को नसीब होता है |

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  5. समीर जी के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है ..कुछ नया नया फिर उनके बारे में जानने को मिल जाता है ..मैंने भी उनके बिखरे मोती पढ़ी है ..बहुत कुछ और नया जाना है उस किताब से उनके बारे में ..आपकी पोस्ट का इन्तजार रहेगा शुक्रिया

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  6. समीर जी को कितनी ही पोस्टों में भी समेटना संभव नहीं है।

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  7. who is he ? i think you should write about contemprory bloggers . he is obselete

    i am sure he will agree to it and i am waiting for his reply

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  8. समीर जी अभी भी हवा के ताजे झोंके की ही तरह हैं!!
    कभी मस्त मौला तो कभी गाड फादर की तरह दीखते हुए भी अधिकतर वह ब्लॉग जगत में घूम घूम कर विचरण करते दिखलाई पड़ते हैं /

    और वह वैसे एक बार में कहीं समाते नहीं?? सो आपकी क्या बिसात ?? कि उनको एक बार में ही निपटा दें!!

    हमलोग अगली कड़ी के इन्तजार में!!!

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  9. बिलकुल सही कहा बन्धु आपने. सचमुच बहुत ही सहज और संवेदनशील व्यक्ति हैं समीरलाल जी. यह बात मैं उनसे मिले बग़ैर ही कह सकता हूं.

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  10. कवि तो कोई भी हो सकता है .. पर कवि ह्रदय वाली सहृदयता भला कितनों में होती है ..बिल्‍कुल सही .. फिर उनके आब्जर्वेशन ऐसे सटीक और पैने होते हैं .. अन्‍य पहेलियों की तो बात छोड दें .. रचना जी की पहेलियां बूझना आसान नहीं .. जिसे भी हमेशा जीतते आए हैं वो .. ब्‍लाग जगत से उनके जुडाव को प्रमाणित करता है .. सचमुच गजब व्‍यक्तित्‍व है उनका।

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  11. @रचना जी ,
    क्या आप समझती हैं कि समीर लाल अब समकालिक नहीं रहे -वे अब सन्दर्भेणीय नहीं रह गये हैं जहाँ तक चिट्ठाकारों की चर्चा की बात है यह मेरे सामर्थ्य और मेरी सीमाओं से जुड़ा मामला है ! मैं तब तक किसी के बारे में नहीं लिखता जब तक उसका पूरा व्यक्ति(त्व ) चित्र मेरे मानस पटल पर पूरा नहीं हो जाता ! मैंने कई नये (समकालीन तो सभी हैं जो नेट पर हैं ) चिट्ठाकारों की भी चर्चा की है और यह क्रम तो चलता ही रहता है !

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  12. रूबरू तो नहीं मिले पर फोनिया मुलाकात हुई है...हमारे टेस्ट के है....उम्र में बड़े है पर अहसास होने नहीं देते...उनका सेंस ऑफ़ ह्यूमर गजब का है.......मै उन्हें हिंदी ब्लॉग का एक आवश्यक अंग मानता हूँ...ओर ये भी की अगर वे गंभीर लेखन भी करेगे तो सफल होगे.....

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  13. """"वे कवि भी हैं ! और कवि ही नहीं बल्कि यूँ कहिये की वे कवि हृदय हैं -कवि तो कोई भी हो सकता है -यहाँ ( ब्लागजगत ) ,वहाँ ( भवसागर ) में एक ढूंढों तो हजार मिल जायेंगें की स्टाईल में ! पर कवि ह्रदय वाली सहृदयता भला कितनों में होती है ! कवि होना आसान है कवि हृदय होना दुर्लभ ! उनमें गुण भी है तो गुण ग्राहकता भी और वह भी माशा रत्ती तौल में बराबर ! उनकी रचनाएं मन मोहती हैं -गंभीर से गंभीर बात को भी मनोविनोद के लहजे में सहज ही कह देना यह क्षमता तो बस समीर जी ही की थाती है !........"""""
    बहुत सही लिखा है आपनें ,समीर जी ब्लॉगजगत ही नहीं अपितु सामाजिक सहभागिता में भी सदा अव्वल रहेंगे और हमेशा हम सभी के लिए आदरणीय और सम्माननीय .

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  14. कवि होना आसान है कवि हृदय होना दुर्लभ

    गंभीर से गंभीर बात को भी मनोविनोद के लहजे में सहज ही कह देना यह क्षमता तो बस समीर जी ही की थाती है !

    sach hai !!

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  15. बिलकुल सही कहा बन्धु आपने. सचमुच बहुत ही सहज और संवेदनशील व्यक्ति हैं समीरलाल जी

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  16. यह चिट्ठाकार चर्चा पढ़कर बिखरे मोती पढ़ने की तीव्र इच्छा हो रही है । समीर जी की संवेदनशीलता और सुरुचि तो ख्यात ही है । हर ब्लॉग पोस्ट मँजी हुई ।
    आभार इस चर्चा के लिये । अगली कड़ी की प्रतीक्षा भी ।

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  17. समीर लाल इज वर्थ हिज वेट इन गोल्ड!

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  18. I too, Vote for him.
    Be him obsolete, so what ?
    His creations are very much contemporary.

    and... Mind every visitor here, No writer in this world has ever been obsolete.
    Why do we still enjoy
    " And smale foules maken melodie,
    That slepen alle night with open eye,
    So priketh hem nature in hir corages;
    Than longen folk to gon on pilgrimages.
    Chaucer:Canterbury Tales. Prologue. Line 9. " or Far from madding crowd or anybook from medival era, i.e. Padmavat, Shakuntalam, !
    I strongly disagree with this obsolete observance, albeit I take Rachna's comment as differing just to differ.

    If weighed by his built and a plethora of talents, He deserves my MULTIPLE VOTES !

    नहीं हम मिसाल-ए-उनका लेकिन
    शहर शहर इश्तेहार है अपना

    जिसको तुम आसमाँ कहते हो
    दरअसल दिलों का गुबार है अपना
    - मीर

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  19. अरविँद भाई साहब,
    सभी टीप्पणीकर्ताओँ के स्नेह से
    समीर भाई का व्यक्तित्त्व
    आज आप के इस पन्ने के साथ
    जुड गया !
    हमेँ तो समीर भाई की ज़िँदादिली और साफगोई पर नाज़ है !
    यहाँ उनकी चर्चा कर,
    हमेँ, उनकी लिखी बातोँ को
    पुन: याद कराने के लिये
    आपका आभार !
    - लावण्या

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  20. समीर जी का परिचय और आपकी लेखनी-दोनों अनूठा "काकटेल" साबित हुआ।

    प्रतिक्षा है अगले पोस्ट की।

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  21. एक और शानदार व्यक्तित्व से मुलाकात। धन्यवाद अरविंदजी। आपका चयन जबर्दस्त है और परिचय का अंदाज़ भी। निर्विवाद रूप से समीर जी बेहतरीन ब्लागर हैं। ब्लागिंग की परिभाषा के हिसाब से भी। वैसे भी लोग कब तक ब्लागिंग को वेब-लॉग यानी यानी डायरी लेखन से जोड़ते रहेंगे? ब्लागिंग उन सीमाओं से भी बाहर निकल चुकी है। मेरी निगाह में वेब लाग में डायरी नहीं बल्कि आपकी मौलिक अभिव्यक्ति आ रही है। यही है इसका भाव। डायरी लेखन से ही ब्लागिंग को समझना हो तब मेरे जैसे शब्दों का सफर लिखनेवाले के लिए तो ब्लागिंग में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। मैं तो बस गूगल द्वारा प्रदत्त मुफ्त के स्पेस का दुरुपयोग ही कर रहा हूं:)
    क्या कहते हैं अरविंद जी?

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  22. सही लिखा आपने लेकिन अभी बहुत कुछ रह गया। इंतजार रहेगा समीर जी के बारे में कुछ और भी जानने का।

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  23. भाई साहब अरविन्दजी
    चिट्ठाकार समीर लाल -जैसा मैंने देखा ! क्वचिदन्यतोअपि..... पर आप द्वारा लिखित ३७ लाईने पढने के लिऐ आया था पर who is he ? यह ढाई आखर पर लोगो का ध्यान केन्द्रित हो गया। वैसे मै एक बात कहता हू जैसे फूल का महत्व उसमे बसी सुगन्ध से है, उसी तरह आदमी का महत्व भी ईश्वर प्रदत उसके भीतर रची-बची ६४ कलाओ कि खुशबु से है- अब तक समीरलाला जी कि आपने कुछ कलाओ का ही जिक्र किया है। समीरजी के बारे मे क्या कहने- "ग्रेट प्रसनाल्टि" । वो कविकार है, या लेखक है, या फिर कुछ भी, सबसे पहले वो भले नेक सेवा समर्पण वाले इन्शान है जो हमारे लिऐ एक आदर्श पुरुष या हिन्दी ब्लोग जगत के "महापुरुष" कहु तो कोई अतिशयोक्ती नही।
    ..........................................
    लालाजी!!!! हे प्रभुज लव यू।
    ..........................................
    आज रोज कि तरह विनोबा भावे कि आत्म कथा पढ रहा था, उसमे कुछ अच्छे व्याक्य मिले जो मुझे मेरे जीवन उपयोगी लेगे। मैने मेरी डायरी मे भी लिखे। जो मै आपके साथ शेयर करना चाहता हू।

    विनोबा भावे

    * घर और परिवार मे दो ही बाते दिखती है-शिकायते एवम स्पष्टिकरण- विनोबा भावे ।
    ..........
    * महापुरुष सार्वजनीन होते है। किसी वर्ग या जाति- या उपमा विशेष की सीमा मे बन्धकर नही रहते- विनोबा भावे ।
    ........
    * तर्क भी ज्ञान-प्राप्ति मे बहुत सहयोगी और आवश्यक तत्व है। पर उसकी एक सीमा है। उसक अतिक्रमण घातक है, भटकाने वाले है
    -विनोबा भावे।
    ........
    * केवल मनुष्य ही रोता हुआ जन्मता है,शिकायते करता हुआ जीता है,और निराश मरता है
    - विनोबा भावे।
    . ............
    * साथ जन्म नही सकते, साथ मर नही सकते,पर साथ जी तो सकते है-विनोबा भावे।
    .........
    हे प्रभु यह तेरापन्थ
    मुम्बई टाईगर
    ............

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  24. अरविन्द भाई

    इतना सम्मान और स्नेह देने के लिए बहुत बहुत आभार. आपकी नजर से ’बिखरे मोती’ देखने को लालायित हूँ. सभी साथियों का भी इस स्नेह हेतु बहुत आभार. बनाये रखिये, लिखने का हौसला बना रहेगा.

    अब रचना जीवो तो कठिन वाली अंग्रेजी में कुछ लिखी हैं और हम ठहरे ठेठ हिन्दी के ब्लॉगर. मगर हम तो उनके अनुज हैं, तो ऐसा लग रहा है जरुर तारीफ देखकर खूब खुश होकर आशीष दी होंगी और तारीफ के चार ठो शब्द और जोड़ दी होंगी. कठिन अंग्रेजी समझ लेते तो आज कितना खुशी ले रहे होते हम अपनी तारीफ सुनकर रचना जी के मूँह से.

    हमारे स्कूल में भी एक गुरुजी थे, जब खूब गुस्सा हों या खूब खुश याने भावना पर आपा खो दें, तो बड़ी जबरदस्त अंग्रेजी बोलते थे फर्राटे में, रचना जी जैसे.

    हम तो तबहो न समझ पाये और न ही अबहो.

    अब तारीफ तो की ही होंगी तो हमारा तो फर्ज है कि आभार प्रकट करें. त धन्यबाद, रचना जी. ऐसे ही स्नेह बनाये रखिये आगे भी.

    -

    अब अगली पोस्ट का इन्तजार.

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  25. Obsolescence is the state of being which occurs when a person, object, or service is no longer wanted even though it may still be in good working order. Obsolescence frequently occurs because a replacement has become available that is superior in one or more aspects.


    In hindi bloging sameer is the only blogger who has been continuing his " sadhuvaad " . many a times he has been critisized on may a post for this habit of his and people have even said that he has formed a "cult" of commenting where nothing but appreciation comes up.
    Now since people have over grown { as per many psots that i have read } his cult of commenting as blogger he has become "Obsolete"
    and as a sibling i love to call him obsolete rather than "maonument" as By PN because that will make him a Heritage property of hindi blogging

    And if ar arvind and dr amar have no problems in accepting him as monument then why should obelete be of any problems

    compliments are compliments and they can come in any form or shape

    and sameer stop fooling others that you dont know english we all know your qualfications

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  26. समीर जी से मिल कर अच्छा लगा पर यह पंक्ति सबसे बेहतरीन, सबसे नीतिनिपुण,
    "आज ब्लॉग जगत में जितनी सहजता बिना आमने सामने मिले मेरी समीर जी से है शायद वह किसी एक को छोड़कर किसी के साथ नहीं है!"
    यह सब को आभास कराती है कि वह भाग्यशाली व्यक्ति उसके अतिरिक्त कोई अन्य नहीं।

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  27. समीर जी को यदि कोई हिन्दी ब्लॉगर जानता ही न हो तो वह ऐसे ही है जैसे धरती पर रहने वाला चाँद-सूरज को न जानता हो। वह भी तब जब उसे स्वयं दो साल से अधिक बीत गये हों हिन्दी में ‘प्रोफ़ेशनल ब्लॉगिंग’ करते हुए।

    आदरणीय समीरलाल जी ने अनेक नये लोगों को अंगुली पकड़कर इस दुनिया में चलने के लिए प्रोत्साहित किया है। मैं स्वयं उनमें से एक हूँ। उनकी सदाशयता, विनम्रता, और विनोदशीलता अनुकरणीय है। उन्होंने मुझे भी बिखरे मोती भेंट किया था। पढ़कर बहुत आनन्द आया। उन्होंने मेरी प्रतिक्रिया की अपेक्षा की थी लेकिन मैंने अपने को इस बड़े कवि की समीक्षा करने के लायक नहीं समझा और इसपर कोई टिप्पणी करने की हिम्मत नहीं जुटा सका। कितना अच्छा तो लिखते हैं। हम तो बस रसास्वादन करके मस्त हो लेते हैं।

    उन्हँ यहाँ चर्चा का विषय बनाने के लिए आपको कोटिशः बधाई।

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  28. मेरे खाना मसाला ब्लॉग पर टिपण्णी देने की लिए धन्यवाद!
    बहुत ही अच्छा लगा आपका ये ब्लॉग! बिल्कुल सही कहा आपने की समीर जी बड़े ही क्यूट हैं! उनका व्यक्तित्व इतना विशाल है और साथ में महान भी हैं!

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  29. समीर जी ,मेरे ख्याल से सभी नए -पुराने ब्लागरों के चहेते हैं.
    एक बहुत ही प्रभावशाली वक्तित्व -जो बिरला ही देखने को मिलता है..
    अरविन्द जी..आप ने उनके बारे में बताया ,उनका यहाँ जिक्र किया और भी जानने को मिला..अभी हाल ही मैं उनका साक्षात्कार पढ़ा था ताऊ जी के ब्लॉग पर--एक बेहद जिंदादिल इंसान से परिचय हुआ .
    आप का आभार.
    समीर जी की विनम्रता ही उनकी व्यक्तित्व की सब से बड़ी खूबी है.उनकी कविताओं में उनकी संवेदनशीलता और उनके लेखन में कभी व्यंग्य तो कभी गाम्भीर्य[एक बुजुर्ग की diary..याद है??] के दर्शन भी होते हैं..उनके संस्मरण लेखन में उनकी लेखनी जिस सफाई से दृश्य बनाती चलती है..वह भी काबिले तारीफ़ है..मैं भी यहाँ बहुत पुरानी ब्लॉगर नहीं हूँ लेकिन हर पोस्ट पर समीर जी की टिप्पणी की प्रतीक्षा तो करती हूँ ही..चाहे kitni bhi टिप्पणियां aa jayen !

    शायद समीर जी से हमें अभी बहुत कुछ सीखना है..हर नए ब्लॉगर की शंकाओं का निवारण करने ,होसला देने केलिए हमेशा तैयार रहना..किस के पास इतना समय है??लेकिन मैं ने देखा है समीर जी सभी की मदद के लिए यथा संभव सहयोग देते हैं.ब्लॉग जगत में समीर जी मील का पत्थर हैं .बहुत बहुत शुभकामनाओं सहित-

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  30. भाई हमको एक चीज समझ मे नही आई कि जब स्पेलिंग ही कन्फ़्युजिया रही है तो काहे से अम्गरेजी मे टिपिया रहे हैं? ब्लागरी हिंदी मे कर रहे हैं तो हिंदी मे लिखिये ना जिससे हम जैसे मूढों के भी कुछ समझ मे आये.

    अब जब हम अंगरेजी समाझ ही नही रहे हैं तो हम यहां अपनी गर्दन कैसे घुसाये? और बिना गर्दन घुसाये हमारी गर्दम मे दर्द होण लाग रया है.

    आदरणीय अरविंद मिश्राजी : आपसे निवेदन है कि आप यहां की जो भी अंगरेजी की टिपणीयां हैं उनका हिंदी अनुवाद उपलब्ध कराने की कृपा करें, जिससे हमारे जैसे बिना पढे लिखों की मुल्यवान राय भी आपको मिल सके.

    बाकी आप जाने..ब्लाग स्वामी आप हैं..आपकी आज्ञा सर्वोपरी है.

    रामराम.

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  31. और किसी का कमेन्ट आपके ब्लॉग पर हो ना हो पर समीर जी का जरुर मिलेगा.. रु ब रु तो हम भी नहीं मिल पाए बस फोनिया पे ही बात हुई.. आवाज़ से तो मुझे २५ साल के नौजावान लगे.. बाकी बहुत कुछ तो आपने लिख ही दिया है..

    एक बात तो हम भी लिख देते है.. जब टोस्ट विद टू होस्ट में अमर कुमार जी के लिए कुछ लिखने के लिए उनसे विनती की गयी तो उन्होंने त्वरित रूप से मुझे मेल की थी.. ये हमें बहुत भाया था

    वैसे जिसे देखो यही कह रहा है कि समीर जी 'बिखरे मोती' की एक प्रति दे गए है.. लेकिन अपने पास तो आई नहीं.. शायद उन्हें ऐसा लगा हो कि मेरी समझ के बाहर की किताब हो.. खैर जो भी हो हम तो यही बैठे है सीक्वल देखने के लिए..

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  32. sehmat hai,sameer ji ki udan tashtari mein muskan ki potli hai,jo wo apne jadu bhare shabdon se blog pe bikherte hai.aisi stress bhari zindagi mein zindadil rehna hamesha tariiff ki baat hai.

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  33. आपने सही कहा- गंभीर से गंभीर बात को भी मनोविनोद के लहजे में सहज ही कह देना क्षमता समीर जी में बेजोड़ है।
    वे लि‍खते हुए हमेशा ध्‍यान रखते हैं कि‍ पाठकों की रूचि‍ कैसे बनाए रखी जाए। बाकी सर्वव्‍याप्‍त टि‍प्‍पणीकार तो हैं ही।

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  34. वर्तनी भूल सुधार :

    अम्गरेजी = अंगरेजी

    समाझ = समझ

    गर्दम = गर्दन

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  35. सत्य वचन।
    समीरजी का जवाब नहीं। उडनतश्तरी बनकर न जाने कहां कहां लोगों का होसला बढाने पहुंचते रहते हैं।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  36. @जी हाँ अजित जी अब ब्लॉग महज निजी डायरी के पन्ने नहीं रह गए हैं ! इनका फलक बहुत व्यापक हो चुका है !
    @मुम्बई टाईगर-बहुत मार्के की बाते कही हैं आपने ! याद कर लिया मैंने !
    @ ताऊ , मुझसे अनुवाद न करायिये मुआफी चाहता हूँ ,पर मैं भी हिन्दी के ब्लॉग पर अंग्रेजी में कमेन्ट की प्रवृत्ति पसंद नहीं करता -कभी तकनीकी कारणों से ऐसा हो तो टीक भी है -मगर डॉ अमर जी जैसी अंगेरेजी तो हर हाल में पसंद आ जाती है ! रचना जी पता नहीं क्यों अग्रेजी में ही ज्यादा टिपियाती हैं और ज्यादातर स्पेलिंग गलत लिखती हैं -कम से कम दो बार उनकी गलत स्पेलिंग के चलते बवेला मच चुका है ! नो मोर प्लीज !

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  37. इनका नाम ही है समीर और छद्म नाम है उड़न तश्तरी। ये दोनों कब-कहाँ-किधर-किस पोस्ट को छू कर निकल जायें कोई ठिकाना नहीं।

    ये दोनों ही चीजें कभी obselete नहीं होतीं बस वर्तमान और भविष्य के संदर्भ में ताजा, रहस्यमयी तथा ज़रूरतमंद बनी रहती हैं।

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  38. जीतेन्द्र चौधरी के बाद समीरलाल जी होंगे जिनसे मैंने काफ़ी मौज ली है। तमाम पोस्टे हैं। लोग उनसे और उनके लिखे से सहमत,असहमत,खुश ,नाराज होंगे लेकिन उनकी उपस्थिति हिन्दी ब्लागजगत की आवश्यक उपस्थिति सी है। नियमित लिखने के साथ-साथ तमाम लोगों की हौसला आफ़जाई करना और करते रहना काबिले तारीफ़ काम है। जो भी नियमित ब्लागर हैं उनके ब्लाग पर उनकी टिप्पणी अवश्य मिलेगी। हम तो कहते भी हैं कि कई बार समीरलाल टिप्पणी पहले लिखते हैं पोस्ट बाद में आती है।

    रही बात रचनासिंह जी की टिप्पणी की तो उनके मन के सहज उद्गार के रूप में उनकी टिप्पणी स्वीकार करनी चाहिये। हरेक की अपनी राय होती है उसको रखने का उसका हक है।

    रचनाजी की टिप्पणी के जबाब में हमने जो जबाब सुझाया था समीरलालजी को वो मारे स्मार्टनेस के उनको पसंद नहीं आया था। हमने सुझाया-रही बात रचनाजी की बात का जबाब देने की तो हमारी समझ में हर बात का जबाब देना भी कोई अच्छी बात नहीं होती। बहुत बार कोई जबाब न देना भी एक जबाब होता है। और अगर बहुतै मन हुड़क रहा है जबाब देने का तो एक जबाब ये दिया जा सकता है रचना जी की इस बात का जबाब मैं अपनी चार सौवीं पोस्ट लिखने के बाद दूंगा।

    लेकिन समीरलाल जी को यह जबाब पसंद नहीं आया और वे मारे स्मार्टनेस के हिंदी/अंग्रेजी के अखाड़े में उतर गये जहां कि रचनाजी ने उनको दौड़ा लिया यह लिखकर and sameer stop fooling others that you dont know english we all know your qualfications

    हमें तो बहुत मजा आया।

    समीरलाल जी के बारे में आगे की पोस्टों का इंतजार है ताकि हमें भी उनमें से मौज लेने का मसाला मिल सके।

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  39. रचना जी पता नहीं क्यों अग्रेजी में ही ज्यादा टिपियाती हैं
    so to bhyaiaa tumhun tipyaatey ho lo link hazir haen
    http://bloggarpehchan.blogspot.com/2009/03/blog-post.html

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  40. को नहीं जानत है जग में :-)

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  41. जी समीर जी के सेंस ओफ़ ह्युमर और लेखन शैली के हम भी कायल हैं

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  42. यानी कौन समीर ??
    यानी कौन समीर !!!!
    अब हिन्दी ब्लॉगर मे जब मै सीरियस लिखती हूँ तो भी समझ नहीं आता { अनूप को हा हां ही ही पर भी शोभ था } और जब मज़ाक मै प्रशन करती हूँ पर जान कर !!! नहीं लगती तब भी समझ नहीं आता । अब तो मज़ा आने लगा हैं आप सब को इस प्रकार दो लाइन के कमेन्ट के पीछे डंडा लेकर भागते देखने मे ।
    समीर अगर मेरा अनुज हैं तो उसके साथ मे ठिठोली करू या ना करू ये मेरा और उसका मामला ठहेरा , अनूप के लिये तो ये यही कहूँगी काजी जी क्यूँ दुबले शहर के अंदेशे से ।

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  43. আমি জানতেছিলাম, এঈ বলবে আমার বোন !
    मैं जानता था, कि बहन यही बोलेंगी ।
    I knew that, it will end like it !

    डँडे का क्या है, रचना बहन ! डँडा भी तो मज़ाकै मा उठावा रहा !
    याद है न, " भैया मेरे.. .. लाठी से बन्दर को भगाना " गाया करती थीं ?

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  44. सबकी सुन ली .कुछ जान भी ली .हम तो शुरु से ही कहते रहे हैं .ई उडन तश्तरी नहीं आनन्द का उडन खटोला ही है . तो चलो भैया विवाद कैसा . बस एक बात डा. अनुराग की बहुतैयि अनुचित लगी / समझ मा नाहीं आयी .............." अगर वे गम्भीर लेखन भी (भी ?) करेन्गे तो सफ़ल होन्गे ...."

    हम बहुत कन्फ़्यूस हैं . अबयि तक तो हम इस उडन छू को गम्भीरता से ही पढे . लगता है कौनौ गल्ती हो गयी . फ़िर से पढ कर देख्ता हूं इस लाल बहादुर को !

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  45. कवि हृदय समीर जी को प्रणाम एवं प्रणाम आपकी लेखनी को भी!

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