रविवार, 22 फ़रवरी 2009

लिंगार्चन -उदगम से उत्स तक (३)


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लिंग पूजा -एक वैज्ञानिक विवेचन!

लिंगपूजा :उदगम और उत्स (वैज्ञानिक विवेचन -२)

अब आगे -

फ्रायड की मानव स्वप्नों के सम्बन्ध में मान्यता थी कि कोई भी लम्बी कठोर वस्तु चाहे वह निर्जीव हो या सजीव लिंग का ही प्रतीक होती है। ``द ह्यूमन जू´´ में डिजमंड मोरिस ने यथार्थ जगत में भी लिंग प्रतीकों की एक लम्बी सूची का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है। यथार्थ जगत में विज्ञापकों, कलाविदों एवं लेखकों ने जाने-अनजाने लिंग के प्रतीकों का व्यापक प्रयोग किया है। तीर, टाई, मोमबत्ती, छड़ी, केला, कन्दमूल, मछली, साँप-क्या निर्जीव क्या सजीव, लिंग प्रतीकों में सभी कुछ हैं। मछली एवं साँप अपने आकार-प्रकार के कारण, गेंडा उत्थित सींगों के कारण तथा पक्षी अपने ``गगनभेदी´´ उड़ान के कारण लिंग का प्रतीक हो मानव कल्पना में स्थायित्व प्राप्त कर चुके हैं।

यहाँ तक कि अस्त्र-शस्त्र भी अपने ``शरीरोच्छेदन´´ के गुण के कारण, लिंग के प्रतीक बन गये हैं। यही नहीं बीयर और शैम्पेन की बोतल का खुलते ही ``स्खलित´´ होने लगने की प्रक्रिया ने उसे लिंग-प्रतीकों की लम्बी सूची में ला दिया हैं इसह तरह, ``चाभी´´ भी अपने गुण के कारण कहीं-कहीं लिंग का प्रतीक है।

आधुनिक व्यवहारविदों (इथोलाजिस्ट्स और बिहैवियरिस्ट्स) का मानना है कि खेलकूद में प्रयुक्त होने वाले कई उपकरण भी लिंग प्रतीकों की सूची में हैं। स्पोर्टसकारें, लम्बी, चिकनी, चमकदार और प्राय: लाल होती हैं। तीव्रशक्ति एवं द्रुतगति से आगे बढ़ती हैं। इन विशेषताओं ने ही उन्हें लिंग का प्रतीक बना दिया हैं। संगीत शास्त्र और स्थापत्य कला में भी लिंग प्रतीकों के भरपूर उदाहरण मिलते हैं। मन्दिर , मिस्जद व गिरजाघरों में शिखरों एवं अट्टालिकाओं के उध्र्वभाग प्रत्यक्षत: लिंग प्रतीकों का आभास देते हैं।

वनस्पति जगत में भी, लिंग प्रतीकों की भरमार है। ऐसी वनस्पतियाँ जिनकी जड़ों के आकार लिंग सदृश हैं, विश्व की कई संस्कृतियों में आज भी पूजित हैं। विदेशों की मैन्ड्रेक लता (विशाखमूल) की जड़ और हमारे यहाँ के कन्दमूलों में एक विशिष्ट लाल प्रजाति (शकरकन्द) अपने लैंगिक आकार के कारण अनेक तीज त्यौहारों पर पूजित होते आये हैं। यह सचमुच दिलचस्प है कि उत्तर प्रदेश के पूर्वान्चल में शिव और पार्वती से जुड़ी लोक कथाओं में लाल कन्द की अपनी विशेष भूमिका है। स्त्रियों के प्रमुख त्यौहारों में लाल प्रजाति के कन्द को विधिवत् पूजा जाता है। भाद्र कृष्ण पक्ष में स्त्रियों का एक प्रमुख त्यौहार हलषष्ठी (ललही छठ) होता है, जिसमें स्त्रियाँ लाल कन्द को पूजती हैं, शिव पार्वती को लक्ष्य कर छह कहानियाँ मनोयोग से कही सुनी जाती हैं, जिसमें लाल कन्द ``लिंगरूप´´ में विर्णत होता है।

आज का सभ्य मानव जब क्रोध में अपने आदि मूलावस्था में पहुँच जाता है, तब उसकी सहज प्रवृत्तियाँ मुखर हो उठती हैं। वह गाली-गलौज के स्तर पर पहुँच जाता है। उसकी हर गाली का तीक्ष्ण बाण लिंग से संयुक्त हो जाता है। अपने नजदीकी पशु रिश्तेदारों (कपि बानर बान्धवों) की भाँति अपनी दबंगता प्रगट करने के लिए वह भी पूर्वकथित "उत्थित लिंग´´ के प्रदर्शन जैसा ही वातावरण सृजित कर आतंक पैदा कर देता है। अंगूठा दिखाना भी इसी प्रक्रिया की एक अपेक्षाकृत शिष्ट अभिव्यक्ति हैं।

वास्तव में, दार्शनिक-वैज्ञानिक धरातल पर शिवपुराण का यह कथन कि पूरा जगत ही लिंगमय है, असंगत नहीं लगता। ऐसा लगता है कि लिंग पूजा की समझ में मनुष्य का एक असीम सत्ता के समक्ष नतमस्तक होते जाने का सत्य भी छुपा है जिसका उसने अपनी सांस्कृतिक विकास की यात्रा में निरंतर सुरुचिपूर्ण तरीके से अनुष्ठानीकरण किया है और आर्यावर्त में वह हमारे सामने पूरे विधि विधान के साथ शिवलिंग पूजा के बहुत ही आदरणीय और मांगलिक रूप में प्रस्तुत है !
(समाप्त )

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उपयोगी और विस्तृत जानकारी दी है आपने। आभार।

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  2. ज्ञानवर्धक लेख. आप ने लकुलीश की मूर्ति कहीं देखी होगी. कुछ मूर्तियों में वक्ष स्थल पर लिंग को प्रर्दशित किया गया है. इसका क्या उद्देश्य रहा होगा. आभार.

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  3. इस प्रकार की जानकारी सामान्य तौर पर पढने को नही मिलती, धन्यवाद इस ज्ञानवर्धक लेख के लिए।

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  4. निहायत ही सुंदर और उपयोगी जानकारी.

    रामराम.

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  5. शिवरात्रि के ठीक पहले इस आलेख का समापन लिंग-पूजा के प्रति हमारे दृष्टिकोण को व्यापक बनायेगा.
    महाशिवरात्रि की शुभकामनायें .

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  6. लिंग उर्जा का प्रतीक है। हमारे परमाणू संयत्र का आकार लिंग की आकृति का ही है। इस पर जल चढाते है और ऐटमी प्रोसेस में हेवी वाटर का प्रयोग होता है। क्या हम इनको इस प्रक्रिया से जोड कर कुछ समझ सकते है। अधिक कहने पर लोग इसे धर्म से जोड कर देखने लग जाएंगे। इसलिए.....:)

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  7. बहुत ही अच्छी जानकारी मिली.
    धन्यवाद

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  8. ज्ञानवर्धक लेख है । आपकी लेखन शैली बहुत ही शालीन व उत्क्र्ष्ट है। धन्यवाद इस अच्छे लेख के लिये ।

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  9. लिंगपूजा को दुनिया भर के धर्मों में अलग-अलग तरीके से स्थान दिया गया है तो इसका तात्पर्य यही है कि प्रजनन की प्रक्रिया इस धरा धाम पर जीवन के आविर्भाव के मूल में निहित है जिसके बिना यह सृष्टि अस्तित्व में ही नहीं आने वाली थी।

    आपकी यह लेखमाला बहुत ही उपयोगी संग्रहणीय है।

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  10. लिंग-पूजा का सम्बन्ध शक्ति के सम्मुख नतमस्तक होने से तो है ही ,लिंग के साथ योनि-पूजा सृजन की शक्ति का सम्मान करना भी है.हमारे देश में शैव तथा शाक्त सम्प्रदाय में लिंग और योनि की पूजा होती है तथा इन्हीं संप्रदायों में मातृशक्ति की पूजा का प्रचलन भी है .यदि हम लिंगपूजा के विषय में बात करते हैं तो योनि को प्रायः उपेक्षित कर देते हैं .

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  11. फिल्म दिल्ली 6 में तो निर्देशक राकेश मेहरा ने इसे एक रॉकेट के रूप में दिखाया है.. हालाँकि ये दृश्य होली वुड की फिल्म से प्रेरित है.. जिसमे संभोग की पूरी प्रक्रिया को विभिन्न प्रतीको द्वारा दिखाया है..

    आपकी इस लेख शृंखला से कई बाते पता चली.. आशा है इसी प्रकार कई ज्ञान वर्धक लेख आपके द्वारा मिलते रहेंगे... आभार

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  12. "वैज्ञानिक धरातल पर शिवपुराण का यह कथन कि पूरा जगत ही लिंगमय है." बिलकुल सही. सच कहा आपने और साबित कर दिया आपने कि तीन लोक से न्यारी काशी के ही रहने वाले हैं. मुझे बाबा के लिंगार्चन की एक वजह यह भी लगती है कि उन्होने समूचे ब्रह्मान्ड की सारी दुनियादारी को हमेशा अपने अहर्निश उत्थित लिंग पर ही रखा. बोलिए : हर-हर-महादेव.........

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  13. रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी ..शुक्रिया

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  14. बहुत ही जानकारी भरा लेख .
    कई नई बातों के बारे में मालूम हुआ.

    धन्यवाद.

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  15. वैज्ञानिक द़ष्टिकोण के आधार पर लिंग पूजा का विवेचन प्रशंसनीय है। इस पुराने आलेख को पाठकों तक लाने हेतु हार्दिक आभार।

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  16. आपकी पोस्ट लीक से हट कर सोचने का नजरिया देती है। प्रशंसनीय।

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  17. पाषाण काल के महापाषाण भी 'लिंग' के ही प्रतिक थे. इनमें एक मेरी तस्वीर के साथ भी है.

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  18. बेहतरीन जानकारी,,,,,,आगे भी हमारा मार्गदर्शन करते रहे...

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  19. बहुत ही ज्ञानवर्धक सामग्री प्रस्तुत कर रहें हैं आप...........आभार

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  20. पूर्वान्चल में शिव और पार्वती से जुड़ी लोक कथाओं में लाल कन्द की अपनी विशेष भूमिका है। स्त्रियों के प्रमुख त्यौहारों में लाल प्रजाति के कन्द को विधिवत् पूजा जाता है। भाद्र कृष्ण पक्ष में स्त्रियों का एक प्रमुख त्यौहार हलषष्ठी (ललही छठ) होता है, जिसमें स्त्रियाँ लाल कन्द को पूजती हैं, शिव पार्वती को लक्ष्य कर छह कहानियाँ मनोयोग से कही सुनी जाती हैं, जिसमें लाल कन्द ``लिंगरूप´´ में विर्णत होता है.....

    purvanchal ki acchi jankari di aapne...aabhar...!!

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  21. आपने तो पूरा वातावरण ही लिंगमय कर दिया है पति के व्रत आदि में दूसरे दिन ब्राह्मणों को दान आदि में ऐसे ही लिंगमय रूपको वाली वस्तुओं के दान की महिमा शास्त्रों में बताई गयी है वस्तुतः मेरे मत से सृजन की श्रंखला बनाये रखने की दृष्टि से लिंग की supermacy बनाने हेतु पुरुष प्रधान समाज ने इस प्रकार के लिंगोद्द्रेक वस्तुओं की महानता को रूपायित करना प्राम्भ कर दिया होगा कुछ लोगों ने तंत्र के नाम पर विपरीत लिंग यानि योनी पूजा को पञ्च मार्ग साधना में अपनाया होगा
    आपके लिंगात्मक evolution शोध के जज्बे को सलाम

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  22. लिंग की पूजा से जुड़े तीनों लेख पढ़े, काफ़ी कुछ नया जानने को मिला, जैसे लिंग के प्रतीकों की पूजा। हम इसे विकासात्मक मनोविज्ञान से जोड़ कर देख रहे हैं। विकासात्मक मनोविज्ञान के मूल में है कि संसार में हर जीवित प्राणी, जीव जन्तु, वनस्पति सिर्फ़ एक ही मकसद से पैदा होती है और वो है अपनी नस्ल को आगे बड़ाना, स्वभाविक है कि क्या बन्दर और क्या हम सभी अवचेतन रूप से इसी प्रिंसिपल से प्रेरित हो काम करते हैं और लिंग पूजा भी इसी प्रिंसिपल को मानने का एक तरीका है।
    एक और बात जो मन में उठी वो ये कि आप ने कहा कि क्रोध दिखाने का एक तरीका था/है कि विरोधी के मुंह के सामने लिंग प्रदर्शन। हम सब जानते हैं कि ब्लातकार ताकत दिखाने का एक जरिया है तो क्या ब्लातकार भी इसी प्रिंसिपल से प्रेरित है?…।
    माफ़ किजिएगा मेरी हिन्दी बहुत अच्छी नहीं है और सोच अक्सर अंग्रेजी में या कहूं हिन्गलिश में हो जाती है।

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  23. शुक्रिया अनिता जी ,
    इधर भयंकर व्यस्तता के चलते नेट उपयोग की अवधि कम हो गयी है -बहुत आभार आपने समय निकाल कर मेरे परिश्रम से तैयार शोध लेख को पढा -एक अकादमिक रुचि के व्यक्ति (त्व -'ब्रेन ' ) से परिचय के यही फायदे हैं आपका रचना कर्म पीयर रिव्यूड भी हो जाता है !
    आपकी हिदी बहुत अच्छी है अतः इसे लेकर किसी तरह का बोध न पाले ! जहां तक आपके बलात्कार के सम्बन्ध में पृच्छा है तो लगता है कि इसके मूल में आक्रामकता ही अधिक है न कि यौन भावना /वासना ! यह अपमान या उपेक्षा के शमन की एक अभिव्यक्ति भी हो सकती है ! मकसद नीचा दिखाना ही है .पर यह निश्चित तौर पर एक असहज और असामानय व्यवहार ही है !
    हम इस पर आगे भी चर्चा कर सकते हैं -मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं ? आप का क्या मानना है ?

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  24. सुंदर और जानकारी से भरी लेखमाला के लिए आभार।

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