आप में से कई लोगों के ब्लॉग के टिप्पणी बाक्स में
जीन जेल (
जो कहती हैं कि उन्हें आप खुद खोजिये ,आखिर दुधमुहे बच्चे तो हैं नहीं आप -और एक दिलखीन्चू मजाकिया सा इशारा-Its your job to discover, cannot spoonfeed you.....) की टिप्पणी दिखी होगी ....इनका कोई ब्लॉग नहीं है मगर इनकी टिप्पणियाँ ही किसी ब्लॉग से कम नहीं है .आखिर कौन हैं
जील जेन ? इसका जवाब उन्होंने एकाध जगहं केवल इसलिए दिया कि लोग उन्हें बेनामी न समझ बैठें! सबसे पर्याप्त जवाब उन्होंने दिया
नवोत्पल पर,एक थर्ड परसन के रूप में ....
"Her name is Divya, She is born and brought up in Lucknow. Medical education from BHU-Varanasi. After spending some time in Lucknow, Faizabad, Gwalior, Indore and Delhi, She is now settled in Bangkok."(इसका हिंदी अनुवाद जरूरी नहीं लगता !) इनका ही एक क्षद्म /निक नाम भी है -जील जेंन ! लोरेटो कान्वेंट लखनऊ की पढी हैं .आंग्ल भाषा पर कमांड है -देवनागरी में नहीं लिखतीं मगर हिन्दी मातृभाषा होने के नाते अच्छी तरह जानती हैं ..यह तो उनका एक स्थूल परिचय हुआ -मगर मैं यहाँ उनकी चर्चा उनके विचारों और सोच की स्पष्टता के लिए करना चाह रहा हूँ ....उनमें भारतीयता के बोधक संस्कार कूट कूट के भरे हुए हैं और वे मानवीय मूल्यों के प्रति सचेष्ट दीखती हैं ...उन्हें नर नारी की उन्मुक्त स्वच्छन्दता नहीं भाती ...उन्हें उन्मुक्त वर्जनाहीन समाज से चिढ सी लगती है .....मेरे मन में काफी दिनों से था कि मैं उनकी टिप्पणियों का एक संकलन प्रस्तुत करुँ और मैं यह सोच ही रहा था कि
प्रतुल वशिष्ठ जी ने बाजी मार ली ...उन्होंने अपने ब्लॉग पर दिव्या जी की एक टिप्पणी का पूरा हिन्दी अनुवाद ही छाप दिया .और अनुवाद भी इतना त्रुटिहीन और प्रवाहपूर्ण -कि मैं उसे यहाँ उधृत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ -
"मेरा पूर्ण विश्वास है कि लज्जा नारी का सौन्दर्य है किन्तु यह उसकी सुरक्षा नहीं है. एक स्त्री का रक्षात्मक कवच उसकी बुद्धिमत्ता तथा सजगता है जो कि शिक्षा, लालन-पालन एवं सचेतना से परिपूर्ण होता है.
आनंदानुभूति के लिये स्त्री को किसी प्रकार के "अलंकरण" की आवश्यकता नहीं होती है. पुरुष द्वारा, स्त्री को मूर्ख बनाए जाने की परम्परा सदियों से जारी है. चाटुकारिता, अनुशंसा, प्रशंसा आदि के द्वारा पुरुष नारी को मानसिक तौर पर कमज़ोर बनाकर उसे अपनी ओर करने का प्रयास करता रहता है. और यह विरले ही देखने में आता है कि वह अपनी बुद्धि का प्रयोग पुरुष को पहचानने में करे.
उसका लज्जा रूपी कवच ही उसका शत्रु बन जाता है. ऐसे में केवल उसकी बुद्धिमत्ता ही उसे भावावेग से दूर रखते हुए उसकी सुरक्षा कर सकती है.
"बुद्धि" एक सचेत एवं समझदार स्त्री का सर्वोपरि गुण है जो जीवन को हर परिस्थिति में उसकी सुरक्षा करता है. उसे जीवनयापन हेतु किसी प्रकार के अलंकरण की आवश्यकता नहीं होती है.
उसे अपनी स्थिति का आभास होना आवश्यक है. स्त्री को शिक्षा, ज्ञान तथा सजगता, सचेतता का अर्जन अवश्य ही करना चाहिए. उसे अपने साथ पर गर्व होना चाहिए, उसे स्वयं की प्रशंसा करनी चाहिए उसे स्वयं से प्रेम होना चाहिए. जब कोई स्वयं से प्रेम करता है तो उसे किसी अलंकरण की आवश्यकता नहीं रह जाती है.
वैसे भी कहा जाता है "सुन्दरता निहारने वाले की दृष्टि में होती है" केवल धीर-गंभीर व सभ्य पुरुष ही नारी में "लज्जा" का भाव उत्पन्न कर सकता है. क्योंकि नारी में नारीत्व जागृत करने की क्षमता केवल एक परिपूर्ण पुरुष [पुरुषत्व से परिपूर्ण] में ही होती है. पुरुष, नारी से सदैव समर्पण चाहता है जो कि उसमें [नारी के प्रति] अन्मंस्यकता का भाव जागृत करता है अथवा ये उसके क्रोध का कारण बन जाता है और वह [नारी] इनकार कर देती है. किन्तु इसके विपरीत प्रेम और परवाह करने वाला [loving and caring] पुरुष नारी को प्रेम की अनुभूति देता है जो नारी को स्वयं समर्पण के लिये उत्प्रेरित करता है, जिसमें समाहित होता है पुरुष के प्रति पूर्ण अटूट विश्वास.
"survival of the fittest " वही है जिसके पास बुद्धि है और जो सजग है. अतः मात्र "बुद्धिमत्ता" ही मनुष्य का "कवच" है फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष".
आप देखिये कि किस तरह उन्होंने नारी के बारे में परम्परागत सोच के बजाय नारी का आभूषण केवल लज्जा न मानकर शिक्षा और बुद्धि को मान्यता दी है .... और लगे हाथ उन्होंने एक नारी की दृष्टि में एक श्रेष्ठ पुरुष की आकांक्षा को भी चिन्हित किया है ...वे नारी को पुरुषों के द्वारा अपने वश में करने के हथकंडों के प्रति भी यत्र तत्र आगाह करती चलती हैं -मुझे लगता है कि उनके विचार नर नारी के दैनिक आचरण और जीवन दर्शन की दिशा में महत्वपूर्ण हैं ...उन्हें इस बात की कोफ़्त भी है कि उनकी बातों पर बहुत से चिट्ठाकारों ने अपेक्षित ध्यान नहीं दिया है या संवाद को बनाने /बढ़ाने में रूचि नहीं ली है ..मगर दिव्या जी को यह समझना चाहिए कि यह हिन्दी ब्लॉग जगत है -यहाँ ज्यादातर बात -व्यवहार हिन्दी में है -अगर अभी तक वे व्यापक तौर पर यहाँ संवाद नहीं बना पाई हैं तो इसका कारण केवल इतना है कि वे देवनागरी में संवाद नहीं करतीं ...हिन्दी के कई आग्रही ऐसे हैं (जो अनुचित भी नहीं है ) जो अंगरेजी को जानते हुए भी हिन्दी में संवाद पसंद करते हैं ..मुझे दिव्या जी की अंगरेजी बहुत प्यारी और प्रवाहमयी लगती है -उन लोगों की तरह नहीं जो कई बार यह जताने के लिए अंगरेजी में लिखते/लिखती हैं कि मुझे भी अंगरेजी आती है -मुझे हल्के में मत लो ..(जैसे मैं ) .....दिव्या जी की अंगरेजी सहज है हिन्दी भी वे बहुत अच्छा लिखती हैं मगर रोमन में ..जो कि बहुत से लोगों को ,उचित ही नहीं भाती ...मुझे खुद भी जबकि मैं चैट प्रायः रोमन हिन्दी में ही करता हूँ -खुद को कोसता हूँ -मगर जब आप औपचारिक संबोधन करें तो रोमन वाली हिन्दी निश्चित ही खटकने वाली है ...मैंने दिव्या जी से वायदा किया है कि मैं उनकी टिप्पणियाँ हिन्दी भावानुवाद करके संकलित करूंगा! यह श्रम साध्य कार्य है -उनकी यत्र तत्र बिखरी टिप्पणियाँ बटोरना खाली समय की मांग करता है .
आपसे यह गुजारिश है कि यदि आपके पास उनकी कोई टिप्पणी हो तो कृपा कर टिप्पणी में अथवा मुझे मेल से भेजने का अनुग्रह करें -मैंने दिव्या जी से भी यही आग्रह किया तो उनकी रूचि इसमें नहीं दिखी -नारी मन का भी कोई थाह नहीं मिलता ....वे सदैव की तरह अबूझ पहेलियाँ ही रही हैं ..कभी कभी तो लगता है सृजनकर्ता ब्रह्मा ने उनके मन -सृजन की प्रोग्रामिंग कुछ ऐसी कर दी कि खुद ही पासवर्ड भूल गए और अपनी इस भूल को उन्होंने पुरुषों में आरोपित कर दिया -आज तक बिचारा पुरुष उसी पासवर्ड को खोजने में हैरान परीशां रहा है -यह सिमसिम सहजता से खुलता नहीं दिखता -हैकरों के बस का ही है -....और हैकरों को मैं मानवीय नहीं मानता ....
मुझे आपकी टिप्पणियों और मेल में दिव्या जी की टिप्पणियों का इंतज़ार रहेगा जो इस पोस्ट की अगली कड़ी बन सकेगी ..