शनिवार, 10 अप्रैल 2010

ब्लॉग जगत की व्यथित करने वाली बातें!

पहली बात तो बेनामियों की है मगर इस पर कई बार कई किस्तों/किश्तों  में चर्चा हो चुकी है ...बेनामियों के पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर जबर्दस्त दलीले हैं -बेनामी हों या क्षद्म्नामी बात लगभग एक सी ही है .लोग बेनामी क्यों होते होगें ?-अपने ओहदे को छिपाते हुए वैचारिक समन्वय संवाद में हिस्सेदारी  की भी चाह एक कारण हो सकती  है -अब जैसे कोई माननीय न्यायविद हैं तो उन्हें ब्लॉग जगत में खुले तौर पर आना निजी परेशानी का सबब बन सकता है -तो मुझे लगता है उन्हें सेवाकाल में ब्लॉग जगत में आने की भी कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए -वैसे शायद कोई क़ानून ऐसा नहीं है जो किसी न्यायविद को ब्लॉग लिखने से रोकता हो -इस लिहाज से उनकी ब्लॉग में हिस्सेदारी  यह एक लाभ का पद  हुआ -यानि बेस्ट आफ बोथ द वर्ल्डस ! एक तरफ  अनाम बने रहो -पदीय गरिमा का सुख भोगो और दूसरी ओर ब्लॉग की ऊष्मा और सुषमा भी .... एक सज्जन ऐसे ही अनाम हैं  जिनका वस्तुतः मैं बहुत आदर करता हूँ मगर मुझे बार बार यह बात कोचती है कि वे अनाम क्यों बने हुए हैं ...बाकी तो ऐसे भी अनाम हैं जिनकी वास्तविक दुनिया में कहीं कोई पूछ नहीं है मगर यहाँ शेर बन कर आते हैं और दहाड़ते हैं --फिर मांद  में घुस जाते हैं ..बीच बीच में दहाड़ कर अपने होने का अहसास दिला देते हैं ...असली मुसीबत यह है कि इनके साथ का आप कोई भरोसा नहीं कर सकते ..ये आपके बारे में तो सब कुछ जानते जायेगें मगर अपने बारे में बेनामी होने का पूरा फायदा लेकर गुमनामी के दायरे में बने रहेगें -यह भी है कि कई सनामी भी बेनामी बनकर अपना एक या अनेक  दूसरा आभासी वजूद बनाए  हुए हैं और कई बेवकूफियों को अंजाम दे रहे हैं -गोलबंदी किये हुए हैं .यह सम्पूर्ण जगत कहने को तो सब माया है मगर यह आभासी जगत तो माहामाया है -माया महा ठगिनी हम जानी !

आखिर इन निरंकारी और मायावी बेनामियों से कैसे कोई सार्थक दुतरफा संवाद किया जा सकता है ...रहे रहे गायब  हो गए ..छोड़ गए बालम हाय अकेला छोड़ गए ..अब आप ढार ढार टेंसू गिरायिये बंदा तो गया ...ये बेनामी क्या हैं गुजरे जमाने के परदेशी हो गए हैं -परदेशियों से न अँखियाँ मिलाना ......मुझे तो इन बेनामियों से चिढ है इसलिए कि ये भरोसेमंद  नहीं है कब आपका साथ छोड़ चल दें ....और  चौबीस घन्टों आपका साथ देने की भी कोई आश्वस्ति नहीं है! न कोई चेहरा न फोन -आखिर तात्कालिकता में आप इनके दीदार को केवल दीवार से सर फोड़ सकते हैं ..निराकार से क्या सरोकार ! मुझे तुलसी बाबा की यह बात इसलिए ही बड़ी भली लगती है कि 'तुलसी अलखै का लखे राम नाम भज नीच ! ' अरे जो साकार है उसमें मन  लगाओ निराकार के पीछे काहें  समय गवां रहे  हो ....और इन बेनामियों ने ब्लॉगजगत के माहौल को भी काफी खराब किया है -ज्यादातर ब्लागों पर माडरेशन इनके ही भय से तो लगा है .

 एक और बड़ी समस्या  हिन्दी ब्लॉग जगत को तिल तिल कर कमजोर करती जा रही है वह है साम्प्रदायिकता का उफान और यहाँ भी उसी रफ़्तार से क्षद्म धर्मनिर्पेक्षियों की उपस्थिति ....ब्लोगवाणी और चिट्ठाजगत से गुजारिश है कि यहाँ वे अपने विवेक  से हस्तक्षेप कर एक आने वाले खतरे /संघात को कुछ कमतर कर सकते हैं ...यद्यपि यह उनकी बला  नहीं है ... 
जब बात बेनामियों की हो रही हो तो कुछ सनामियों की भी चर्चा क्यों पीछे रहे ?मैंने यह पाया है कि कुछ सनामी तो बेनामियों से भी बदतर है -कहने को तो नाम उनके बड़े हैं मगर उनका बहुत कुछ  जाल -फरेब है ,नटवरलाल से भी बढ चढ़ कर और वे मानव   भावनाओं से खेलने में बड़े उस्ताद है इनसे बच कर रहने की जरूरत है ....कभी नटवरलाल से यह पूछा गया था कि उसकी मोडस आप्रेंडी क्या है तो उसका सहज जवाब था कि मैं लोगों को वह देने का भरम देता हूँ जिसकी तमन्ना में वे जिए जा  रहे हैं या मरे जा रहे हैं  ..बस लोगों की इस कमजोरी का ही फायदा मुझे मिल जाता है .....शायद  ऐसे सनामी बेनामियों से ज्यादा खतरनाक है ....

ब्लॉग जगत भौगोलिक विभाजनों का निषेध करता है मगर यह विरोधाभास तो देखिये कि यहाँ भी भौगोलिक सीमाओं को लेकर समूह बन रहे  हैं ,नए नए कबीले तैयार हो रहे हैं ....ब्लॉग तो वसुधैव कुटुम्बकम की ही प्रतीति है क्या हम इसे इसी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते ? क्या है आपकी राय ?

41 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग तो वसुधैव कुटुम्बकम की ही प्रतीति है क्या हम इसे इसी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते ?...
    यह लाख टके की बात जब लोंगो की समझ में आये तब न?

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  2. अनाम लोगों ने कई सार्थक टिप्पणियां की हैं। मैं तो कहता हूं अनाम लोगों की टिप्पणियों पर अगर नज़र रखी जाए तो बहुत रोचक पोस्ट अथवा आलेख तैयार हो सकता है। ध्यान मुद्दे पर केंद्रित होना चाहिए चाहे उसपर कोई अपने नाम से टिप्पणी करे अथवा अनाम बनकर। साहित्य जगत में,छद्म नाम से लिखकर जगाने का काम करने की स्वस्थ और सुदीर्घ परंपरा रही है।

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  3. राय अच्छी है . गूगल से संपर्क कीजिये लेकिन उम्मीद कम है क्योंकि यह बीमारी ही पश्चिमी है .

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  4. आप काहे नाहक चिंता कर रहे हैं? यहां गिनती के दो चार अनामी सनामी हैं और उनको इसी खेल में मजा आता है.

    बाकी इन दो चार कचरे लोगों के पीछे सारा ब्लाग जगत थोडे ही कचरा होगया? ये लोग हैं तो रौनक बनी रहती है. इनके खेल और ओछी सोच देखकर तो हंसी ही आयेगी. इन मासूम लोगों की हरकतों पे क्या ध्यान देना?

    आखिर ब्लागिंग कोई आपका हमारा ही तो मौलिक अधिकार नही है ना? मामाओं और सुर्पणखाओं के भी मौलिक अधिकार तो वही हैं.

    रामराम.

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  5. मैं बेनामी का समर्थक हूँ। सोच रहा हूँ कि अपना छ्द्मनाम 'आलसी' ही धारण कर लूँ लेकिन विलम्ब हो चुका है। मैं तो आप को भी कहूँगा कि छद्मनाम 'क्वचिद्' धारण कर लीजिए। क्यूट लगता है। ;)

    अब देखिए न यहाँ मैं छद्मनामी 'शिक्षामित्र' से सहमत हूँ। इनका ब्लॉग भी उत्तम है -http://eduployment.blogspot.com ।

    वैसे दान में मिली बछिया के दाँत तो नहीं गिने जाते लेकिन ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत वगैरह को कुछ मॉडरेशन तो लगाना ही चाहिए। गुगल पर लगवाना तो असम्भव है लेकिन जो अपने बस में लगता है उसके लिए प्रयास होने चाहिए।

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  6. ब्लोगवाणी और चिट्ठाजगत से गुजारिश है कि यहाँ वे अपने विवेक से हस्तक्षेप कर एक आने वाले खतरे /संघात को कुछ कमतर कर सकते हैं ...
    =============
    अच्छा, फीड एग्रेगेटर यह सब कर सकते हैं। मुझे तो नहीं लगता!

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  7. बहुत पहले कहीं पढ़ा था -
    एक सज्जन जो जर्मनी में हिटलर के शासन काल में मंत्री रह चुके थे ! हिटलर के पतन के उपरान्त वही सज्जन एक सभाकक्ष में श्रोताओं को भाषण देते हुए हिटलर के शासन काल की तमाम बुराईयाँ गिना रहे थे ! श्रोताओं के बीच में किसी एक से रहा नहीं गया .... बोल उठा -"महोदय आप तो उनके मंत्री थे तब आप उस समय क्यूँ नहीं बोले ?"
    यह सुनकर उन भूतपूर्व मंत्री जी ने अपने बगल में खड़े सुरक्षा गार्ड से बन्दूक छीनी और दहाड़े -"कौन बोला ...... किसने कहा ये ?" सभाकक्ष में सन्नाटा ....एकदम सनाटा ...कोई आवाज नहीं !
    मंत्री महोदय मुस्कराते हुए बोले -"मित्र जिस वजह से तुम नहीं बोल रहे हो ..बस वही वजह थी !"
    ==========
    अरविन्द जी मुझे तो इन बेनामियों की वजह से ही कई बार ब्लॉग जगत की जीवन्तता का एहसास होता है, वरना अधिकतर तो यहाँ चियर्स गर्ल्स की भूमिका में ही नजर आते हैं !

    आप यह क्यों भूल जाते हैं की दुनिया को सुन्दर बनाने का काम बेनाम लोगों ने ही किया है .....नाम तो बाद में हुआ !

    जग में आलोचना किसको नहीं सहनी पड़ी ..... लेकिन लगता है यहाँ बहुत से लोग बुद्ध, महावीर, कबीर, और गांधी से भी बड़े हैं !

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  8. अरे! लिखने दीजिए सब को। जैसा वे चाहें। ब्लागजगत या हिन्दी ब्लाग जगत का कुछ नहीं बिगड़ना है जी। यह वसुधैव ही रहेगा।

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  9. मॉडरेशन लगायें, स्व विवेक का इस्तेमाल करे. सुनामी, बेनामी या कितना भी नामी, अगर वैमनस्य, द्वेष या फालतू बात करता है, तो उसे मॉडरेशन से पास न होने दें.

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  10. बेनामी से कोई दिक्कत नहीं अगर बकवास ना लिखें

    नामी लोग धर्म के नाम पर क्या क्या लिख रहे है देख ही रहे होंगे

    अगर आपने कुछ नाम गिनाए होते तो हम भी उसमें कुछ जोड़ते मगर जब आप ही किसी का नाम नहीं लिए तो फिर हम भी मौन भले ,,,:)

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  11. अच्छा इक बात बताईये आपने माडरेशन क्यों लगाया है ?
    :):):)

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  12. ये सवाल तो कब से हम उठाते आ रहे हैं है
    किन्तु कायर लोग बेनामी/अनामी रूप तज़ते ही नहीं

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  13. बेनामियों को तो खैर सभी सूतते हैं, आपने बात की बात में सनामियों की जो खबर ली, वह जोरदार रही।

    आपका केरल वृत्तांत बहुत शानदार है। बची तीन किस्तें कल निपटाऊंगा। तस्वीरें लेने में कंजूसी दिखाई है अलबत्ता डाक्टसा।

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  14. आपका लेख महत्त्वपूर्ण है, मुझे भी लगता है कि गरिमामयी पदों पर रहने वाले सज्ज्न अगर अपने ब्लॉग के माध्यम से संवाद स्थापित करने का प्रयास करें तो और अच्छा होगा।
    रही बात अनामियों की तो यदि आप उनको इतनी तवज्जो नही देंगे तो वो भी अपनी हरकतें ज्यादा समय तक ज़ारी नही रख सकेंगे। वैसे भी इन्टरनेट आपको अनामी-बेनामी होने की सुविधा प्रदान करता है। और दुरुपयोग हर सुविधा का होता ही है कम या ज्यादा।

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  15. @ Vyasa-

    Coffee is important , not the cups !...So stop bothering about naam and benaami. People's opinion are important. Let them opine the way they feel comfortable. Why to deprive ourselves from their valuable comments ?

    btw main benaami nahi hun..

    Mera Parichay-

    Name- Dr. Divya Srivastava
    Marital status- Married ( Happily)
    Nationality- From the land of tradition and culture ( India)
    State- Uttar Pradesh
    City- From the city of kabab and Nawabs ( Lucknow)
    Hobby- To explore human mind

    Divya is a name given by parents 30 years ago...I prefer the name 'zeal' chosen by myself.

    @ Girijesh Rao saab-

    Thank you Sir for giving me freedom of expression. But i do accept that i am quite lazy. Will try to rectify this vice of mine.

    Thanks.

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  16. मुझे लगता है कि यह वो आभासी दुनिया है, जहाँ व्यक्ति से अधिक विचार महत्त्वपूर्ण हैं. इसलिये बेनामी अगर अच्छे विचार व्यक्त करते हैं, तो इसमें कोई आपत्तिजनक बात नहीं है. मैंने भी मुक्ति नाम से ही लिखना शुरू किया था, क्योंकि एक तो मैं तब आई.ए.एस. के इंटरव्यू की तैयारी कर रही थी, दूसरे मैं चाहती थी कि लोग मुझे मेरे नाम और सरनेम से नहीं बल्कि विचारों से जानें.
    मेरे विचार से जो लोग नाम से लिखते हैं, वही गुटबाजी अधिक करते हैं. हाँ, जहाँ तक साम्प्रदायिकता को बढ़ाने वाले ब्लॉग्स की बात है, तो इसका एक मात्र इलाज यह है कि ऐसे लोगों को न पढ़ा जाये और न वहाँ टिप्पणी की जाय.

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  17. जो आपको समझे और फिर सुनाये खरी खरी...भले ही बेनामी हो उससे परहेज़ कैसा...नाम और बेनाम का मुद्दा है ही क्यों ? यहां तो नामवर भी पैगाम रास्ते में ही फाड़ कर फेंक देते हैं...अफ़साने शुरू भी हों तो कैसे ?
    अरविन्द जी कोई करे या ना करे मैं निजी तौर पर उनकी परदेदारियों की इच्छा का सम्मान करता हूं ! एक अनुभूति ये भी कि वहां बहुत कुछ अच्छा भी हो सकता है :)

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  18. जो आपको समझे और फिर सुनाये खरी खरी...भले ही बेनामी हो उससे परहेज़ कैसा...नाम और बेनाम का मुद्दा है ही क्यों ? यहां तो नामवर भी पैगाम रास्ते में ही फाड़ कर फेंक देते हैं...अफ़साने शुरू भी हों तो कैसे ?
    अरविन्द जी कोई करे या ना करे मैं निजी तौर पर उनकी परदेदारियों की इच्छा का सम्मान करता हूं ! एक अनुभूति ये भी कि वहां बहुत कुछ अच्छा भी हो सकता है :)

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  19. अरे जो साकार है उसमें मन लगाओ ...निराकार के पीछे काहें समय गवां रहे हो ....
    सही है ... निराकारियों के पीछे समय नहीं गंवाना चाहिए ..:)

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  20. विषय गहन चिन्तन व दिशा माँगते हैं ।

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  21. ब्लॉग जगत भौगोलिक विभाजनों का निषेध करता है मगर यह विरोधाभास तो देखिये कि यहाँ भी भौगोलिक सीमाओं को लेकर समूह बन रहे हैं ,नए नए कबीले तैयार हो रहे हैं ....ब्लॉग तो वसुधैव कुटुम्बकम की ही प्रतीति है क्या हम इसे इसी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते ? क्या है आपकी राय ?
    Benami ho ya naami bus usmen वसुधैव कुटुम्बकम kee nek bhawana parlakshit hoti hai to mera manana hai ki esmin koi burai nahi hai.....

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  22. सर , मैंने तो अनुभव किया है कि सब बकवास करने वाले और उलजलूल हरकतें करने वाले बेनामी कुछ नकाब ओढे पके पकाए ब्लोग्गर्स ही हैं और जो सच में ही बेनामी हैं या छ्द्म नाम धारी हैं वे फ़िर भी सार्थक ब्लोग्गिंग और टिप्पणियां ही करते हैं
    अजय कुमार झा

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  23. सबसे ज्यादा व्यथित आप करते हो महाराज , उस दिन आपका एक कमेंट्स कहीं पढ़ा था ...स्वनामधन्य वाला ...हँसते हँसते बापस लौटा हूँ ...सबकी ऐसी तैसी किये रहते हो . न खुद सोते हो ना सोने देते हो ..
    हा...हा....हा.....हा.......

    बेनामियों की खूब कही ...ये आते हैं और आपको पीछे से सुई नहीं भाला मार के भाग जाते हैं ..आप अपनी भड़ास और गलियों का स्टाक कहाँ खाली करोगे...अपने बाल ही नोचते रहो मियां और या फिर बेनामी खुद बनकर एक ब्लाग बनालो और दो उसे गालियाँ जिसे सामने शालीनता विद्वता बड़प्पन और उम्र के कारण नहीं दे सकते !
    *$###&%!>><<,,,,##$$
    शुभकामनायें !

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  24. why mix virtual and real world
    hindi bloging does exactly that
    do issue based bloging write in favor of issue or against issue and wrte what your conscience says { but for that one needs to have a conscience and moral} stand with what is correct and not with what your friends say is correct .

    anaami is good when it opens the pandora box of truth and who likes the truth do you ??

    accept that groups are there and that groups target bloggers and not blog posts

    any day chack the number of posts you will find more that 60 % are written on aprreciating each other , giving milage to individual rather then the issues ,

    internet is infomation highway but in hindi bloging it has become roads to enter personal homes and make real friendships which spoil the entire need to blog

    make groups so that you become powerful to eradicate they system of its follies rather then using group poser to malign bloggers personally

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  25. @ Rachana ji ,
    You seem to be right to some extent ! But most of the time you also behave quite rudely to your fellow bloggers which can not be given sanctions and be appreciated .
    you could get same out of here what you yourself pour into it -
    am I wrong?

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  26. इतना समय हो गया ब्लागजगत से जुडे हुए..इतने में तो वैसे ही इन्सान आदी हो जाता है...सो, अब तो इन बातें से मन व्यथित नहीं होना चाहिए :-)

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  27. dr mishra
    i just return favours be rude to me or for that matter any woman and i repay in the same coin its just that i dont have a bcak up team to post 100 comments in favor of me !!!!! where as people have written even against my parents that what is hindi bloging and it will continue till people learn to behave on the public platform

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  28. Dear Rachana ji ,
    I condemn in very strong words the dastardly act of desecration of fatherly figures - parents whether yours or mine or any body else-we must have that sense of propriety and manners .
    arvind

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  29. यह भी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है और मन व्यथित तो होगा ही, आखिर ब्लॉग लिखने और पढ़ने वाला इंसान ही तो है।

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  30. मैं डॉ अरविन्द मिश्र से सहमत हूँ , यह घटना क्या थी क्या मैं जान सकता हूँ रचना जी ?

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  31. ब्लॉग पर हर तरह कि समालोचना के लिए तैयार रहना चाहिए...और यदि ब्लॉग से आपस में मित्रता बनाती और विकसित होती है तो बुरा क्या है?

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  32. हमारा स्टैंड तो बेनामी के ब्लॉग पर इन सब को लेकर आ ही चुका है ..

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