यह
ताऊ ही कर सकते थे और
उन्होंने कर भी दिखाया ! शोले फिल्म ने मानवीय संवेदना को इतना गहरे छुआ था कि दशकों बाद आज भी लोग उसकी अपनी अपनी तरह से याद करते रहते हैं -रामगोपाल वर्मा ने उसे
आग केशोले के रूप में फिल्मांकित किया तो अब अपने ताऊ ब्लॉग के शोले का मूहूर्त करते भये हैं ! उनकी अपनी भरोसे की टीम है और वह यह प्रोजेक्ट पूरा कर भी लेगें -हमारी कोटिशः शुभकामनाएं है उन्हें ! मगर एक ख्याल रह रह कर मुझे परेशान कर रहा है कि वे ब्लॉग के शोले में किसे टंकी पर चढायेगें ! किसी ऐसे को जो टंकी पर चढ़ने में अभ्यस्त हो या फिर किसी नौसिखिये को ?
भगवान उस ब्लॉगर को चिरंजीवी बनाए जिसने टंकी पर चढ़ने का ब्लागजग्तीय मुहावरा ही गढ़ डाला ! ब्लागिंग के आदि देव बताएगें ही कि आख़िर यह महान कल्पनाशीलता किसकी थी !
नवागंतुक ब्लॉगर मित्र जान लें कि टंकी पर चढ़ने के ब्लागीय मुहावरे का मतलब है ब्लॉग जगत छोड़ देने की धमकी देना -या ब्लागजगत से सहसा उदासीन हो उठना और इस आभासी दुनिया से वानप्रस्थ पर जाने की घोषणा कर देना /इच्छा जाहिर कर देना -बाद में भले ही यही से चिपके रहना -मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे की स्टाईल में ! शोले में धर्मेन्द्र के टंकी के सीन का तनिक सुमिरन कर लें ! यह लीला अनेक जन निपटा चुके हैं यहाँ तक कि ब्लॉग सम्राट तक भी -समीर लाल जी ने जब कहा था कि वे टंकी पर चढ़ने जा रहे हैं तो हमारे जैसे कितने ही भावुक ब्लागरों की रूहे काँप गयी थीं -बहरहाल वे मान गए थे ! ऐसे ही ज्ञानदत्त जी ने भी कभी ट्यूब खाली होने ,राजकाज की व्यस्तता आदि अन्यान्य बहानों से टंकी पर चढ़ने का मन बनाया तो हम लोगों ने उन्हें रोकने का हल्ला वैसे ही मचाया था जैसे युद्धिष्ठिर के नरक दर्शन से वापस होते समय उनके बन्धु बांधवों ने ! हे तात तुम चले गए तो फिर से नरक की बदबू
और प्रेतिनियों की प्रताडनाएँ
झेलनी होगीं ! और उन लोगों के कहने ही क्या जो बिना बताये धीरे से टंकी पर जा चढ़े और अभी भी चढे हुए हैं उतरते ही नहीं ! उन महान संज्ञाओं का नाम लेकर उन्हें सर्वनाम क्यों करुँ -जानकार लोग जानते ही हैं !
कुछ लोग यह कभी नहीं कहते हुए या सुने गए कि वे भी टंकी पर चढ़ जाने का इरादा और माद्दा रखते हैं जैसे दिनेशराय द्विवेदी जी और अपने आदिम ब्लॉगर अनूप शुक्ल जी ! भले ही इनके मन ने कितने ही आवर्त विवर्त झेले हों मगर मर्दानगी बरकरार रखी ! मेरे लिए तो यही अनुकरणीय ब्लॉग जन हैं ! कुछ ने ब्लॉग जगत छोड़ा मगर अचानक ही एक सुबह नमूदार हो गए यहाँ और वह सुबह खुशनुमा बन गयी -जैसे अपने
विवेक भाई !पर लोग ऐसी मनःस्थिति में पहुँच कैसे जाते हैं -कई कारण है ! कुछ सवेदनशील तो कबीलाई माहौल की तू तू मैं मैं से अचानक बहुत संतप्त हो उठते हैं और सीधे टंकी की ओर भागते हैं -फिर उन्हें कुछ और नही दीखता ! टंकी तक पहुँच कर सरपट चढ़ भी जाते हैं ! लोग लुगाई हाथ मलते रह जाते हैं ! कुछ लोग /लुगाई बिना कहे ही दुःख कातर हो पानी पी पी कर ब्लॉग जगत को कोसते हुए मगर बिना बताये टंकी पर चढ़ कर प्रायः वही बने रहते हैं, हाँ. बीच बीच में चारा पानी के लिए चुपके से नीचे उतर आते हैं मगर लोग बाग़ देखे इसके पहले फिर टंकी -आरूढ़ हो जाते हैं !
हाँ यह तो विषयांतर हो गया -बात ताऊ के शोले की चल रही थी -टंकी पर चढ़ने का रोल किसे देगें वे -कोई गेस ?
क्यों नही वे रील लाईफ से किरदार चुनते ?-सुनते हैं कि
अमिताभ बच्चन टंकी पर चढ़ने वाले हैं ! तो ब्लॉग जगत का अमिताभ बच्चन कौन ? ताऊ की मदद शायद
कुश कर सकें ! उनका पटकथाओं आदि के लेखन में हाथ काफी खुल गया है ! मेरी गुजारिश तो है कि ताऊ मेरे जैसे अनुभवी को इस रोल के लिए ले लें -अभिनय ही तो करना है कौन ससुरा सचमुच टंकी पर चढ़ना है -इन दिनों मेरा मन भी कुछ उभ चुभ कर रहा है एक्टिंग से शायद कुछ शान्ति मिल जाय ! अगर मुझे वे न भी लें तो इतनी गुजारिश जरूर मान लें कि किसी नौसिखिये को तो बिल्कुलै टंकी का रोलवा न दें ! अब आप पून्छेगें काहें ? तो लीजिये इस पोस्ट के उपसंहार के रूप में भोजपुरी के प्रख्यात कवि पंडित चन्द्रशेकर मिश्र का यह संस्मरण सुन लें !
पंडित जी प्रायः सभी कवि सम्मेलनों में इसे सुनाते हैं ! कहते हैं जब उन्हें सायकिल सीखने का शौक छुटपन में चर्राया तो एक दिन कभी पैदल कभी कैंची (बिना सीट पर चढे फ्रेम में से टागें निकाल कर पैडल मारना ) वे एक बाग़ में सायकिल साधना करने लगे -आखिर अकस्मात सीट पर भी उछल कर आरूढ़ हो लिए ! उनकी खूशी का कोई ठिकना नही रहा जब उन्होंने देखा कि सायकिल बखूबी दौड़ पडी है ! वे सायकिल चलाना सीख चुके थे ! अभी उनका मन व् पैडल पर पैर
कुलाचे ही मार रहे थे कि अचानक एक आशंका मन में उठ खडी हुयी -बन्दे चढ़ने को तू चढ़ गया अब
उतेरेगा कैसे ? नौसिखियों के साथ अक्सर यही होता है और ब्लॉग जगत कोई अपवाद नही है -आव न देखा ताव बस चढ़ लिए ,उतरना मालूम ही नहीं ! मुझ जैसे अनुभवी के साथ यह लफडा नही आने को ..ताऊ आश्वस्त हो सकते हैं कि हम चढेगें भी सलीके से ( जानी ) और उतरेगें भी उसी ठाठ के साथ ! हमें यह हुनर मालूम है ! अब नौसिखिये चंद्रशेखर नही हैं हम कि उन्हें निर्जन बाग़ में चढे हुए घंटों बीत गए और ससुरी सायकिल ही उन्हें उतरने न दे !
मगर लोगों का क्या कहें वे नौसिखियों को ही तवज्जो दे देते हैं -ताऊ किसी नौसिखिये को तवज्जो दे दी तो जान लेना फिल्म में गतिरोध आ जाएगा हाँ ! मित्र हो चेताये दे रहे हैं !