रविवार, 21 जून 2009

पितृ दिवस पर पिता जी की ही कविता के पाठ की श्रद्धाजंली

आज युनुस जी की इस पोस्ट ने पिता जी की याद दिला ही दी जिसे मैं तबसे सायास रोके हुए था जब आज यह पता चला कि आज ही "फादर्स दे " है -इन नित नए नए चोचलों में ,नूतन दिवसों में मेरी रूचि नही है -मगर अब युनुस भाई को क्या कहूं कि उन्होंने इस दिवस को कुछ चुनिन्दा लोगों की चुनिन्दा कविताओं से ऐसा अर्थ गौरव प्रदान कर डाला कि पिता जी याद आ गए और बेसाख्ता याद आए !
मैं उन पर क्या लिखूं ? पहले उनके लिखे से आगे बढ़ पाऊँ तब तो ! लीजिये "आत्मा वै जायते पुत्रः " के फलस्वरूप उनकी यह कविता आप भी पढ़ लें !

कया करुँ मन कुछ कहो तो .........

क्या करुँ मन कुछ कहो तो
क्या सितारे तोड़ लाऊँ
या कि गैरिक वस्त्र में सब कुछ छुपाऊँ
तरस आता किंतु तेरी विवशता पर
त्याग सकते हो कुछ नही तुम
रूढियों की जिन्दगी ही भाती तुझे है
कसकना ,कोसना ,हरदम फुलाए गाल रहना
और रो -रोकर सिसक कर पाँव रखना
बस ,यही आग्रह तुम्हारा खून पीकर
लड़ रहा प्रतिपल तुम्हारी साँस लेकर
और तुम ?
मुझी पर डांट की वर्षा लगाये
रो रहे हो
क्या करुँ मन कुछ कहो तो !

19 टिप्‍पणियां:

  1. अरविंद जी पिता जी की यह कविता बहुत कुछ कह जाती है उन के खुद के बारे में। उन्हें शत शत प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस प्रकार की उत्कृष्ट रचनायें आपको थाती में मिल गयीं हैं । मैं अनभिव्यक्त हूँ । पितृ-दिवस पर पिता जी का सादर स्मरण व उनकी इस रचना का धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी पितृ दिवस पर बहुत ही सटीक रचना लिखी है जिसे पढ़कर आंखे नम हो गई . पिता की कमी हमेशा जीवन पर्यंत रहती है . मै तो कहूँगा " ओह पापा तुम्हारे वगैर .." . . फादर्स डे पर उन्हें याद करते हुए श्रद्धासुमन विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ .

    जवाब देंहटाएं
  4. "त्याग सकते हो कुछ नही तुम
    रूढियों की जिन्दगी ही भाती तुझे है"
    पिताश्री को हमारा नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. शत शत प्रणाम, यह तो आपके पास अनमोल धरोहर हैं जो हर किसी के पास नही होती.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  6. कर्तव्यबोध एवं मर्यादाओं में बंधा मनुष्य कभी-कभी भयंकर मानसिक संत्रास से गुजरता है। व्याकुलता के यह क्षण कुछ इसी प्रकार से व्यक्त होते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. अरविंद जी अभी अभी पिता से फोन पर बात की है ।
    पितृ दिवस तो एक बहाना था...मुझे तो अपने पिता से अपने मन की कई बातें कहनी थीं । देखिए आपने भी कह डालीं । यही तो इस दिन का सार है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. आप सबको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ...
    DevPalmistry

    जवाब देंहटाएं
  9. वाकई अनमोल धरोहर हैं ये यादें. अक्सर कई भाव हम चाह कर भी व्यक्त नहीं कर पाते.

    जवाब देंहटाएं
  10. पितृ दिवस के बहाने पिता जी की रचना के सहारे उनको याद करना ही उनके प्रति सच्‍ची श्रृद्धांजलि है।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    जवाब देंहटाएं
  11. मन की भावनाओं को विराम नहीं लगाना चाहिए ..कभी कभी ऐसे मौके अपना वजूद तलाश ही देते है...

    जवाब देंहटाएं
  12. pitr diwas par pitaa shree ko shradhaanjali ka anuthaa prayog kaabile saadhuvaad hai.
    jhalli kalam se
    jhalli gallan
    angrezi.com

    जवाब देंहटाएं
  13. हमारी भी श्रद्धांजलि जी।

    जवाब देंहटाएं
  14. फादर्स डे तो बहाना है ! ऐसी भावनाएं कब भूलती हैं भला ?

    जवाब देंहटाएं
  15. आह..
    इस अद्‍भुत रचना के लिये शुक्रिया मिश्र जी। हमने एक प्रति बचा कर रख ली है अपने संकलन में।

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव