एक मीडिया संस्थान ने आगामी हिन्दी दिवस के लिए मुझे सोशल मीडिया के बढ़ाते प्रभाव पर आलेख भेजने का अनुरोध किया। मैंने आलेख तैयार किया तो उसके कुछ अंश जो हिन्दी ब्लॉगों की मौजूदा स्थिति पर है फेसबुक पर डाला। ताकि मित्रों के विचार भी जान लिया जाय. खुशी हुयी वहां ठीक वैसे ही विचार आने लगे जैसे किसी ज़माने में ब्लॉग पोस्टों पर आया करते थे. आईये आप भी मुजाहरा कीजिये कि हिंदी ब्लॉगों की स्थिति पर हिन्दी के पुरायट ब्लॉगर क्या कहते हैं। यहाँ वही टिप्पणियाँ मैं दे रहा हूँ जो विचारवान लगीं। बाकी के मित्र अन्यथा नहीं लेगें!
मैंने जो कहा -
अंतर्जाल पर जब हिन्दी ब्लॉगों का प्रादुर्भाव कोई एक दशक पहले नियमित तौर पर शुरू हुआ तो लगा अभिव्यक्ति के नए पर उग गए हैं। सृजनशीलता और अभिव्यक्ति जो अभी तक 'क्रूर' संपादकों के रहमोकरम पर थी सहसा एक नयी आजादी पा गयी थी। कोई क़तर ब्योंत नहीं -अपना लिखा खुद छापो। अंतर्जाल ने लेखनी को बिना लगाम के घोड़े सा सरपट दौड़ा दिया। खुद लेखक खुद संपादक और खुद प्रकाशक। लगा कि अभिव्यक्ति की यह 'न भूतो न भविष्यति' किस्म की आजादी है। अब संपादकों के कठोर अनुशासन से रचनाधर्मिता मुक्त हो चली थी ,लगने लगा। किन्तु आरंभिक सुखानुभूति के बाद जल्दी ही कंटेंट की क्वालिटी का सवाल उठने लगा. हर वह व्यक्ति जो कम्प्यूटर का ऐ बी सी भी जान गया पिंगल शास्त्री वैयाकरण बन बैठने का मुगालता पाल बैठा। नतीजतन 'सिर धुन गिरा लॉग पछताना' जैसी स्थिति बन आई. ब्लॉग को साहित्य मान बैठने का भ्रम टूटने लगा है -यह एक माध्यम भर है या फिर साहित्य की एक विधा इस विषय पर भी काफी बहस मुबाहिसे हो चुके। लगता है हिन्दी ब्लॉगों का अवसान युग आ पहुंचा है -उनकी पठनीयता गिरी है -कई पुराने मशहूर ब्लॉगों के डेरे तम्बू उखड चुके हैं -वहां अब कोई झाँकने तक नहीं जाता।
और चुनिंदा प्रतिक्रियायें ये रहीं -
काजल कुमार
"ब्लॉग और सोशल मीडिया आज भी अत्यंत सशक्त माध्यम हें. आज भी तथाकथित ग्लैमर वाला मीडिया, ब्लॉगों और सोशल मीडिया की ख़बरों के बिना जी नहीं पा रहा है. जब कुछ घटता है तो लोग उसी समय नवीनतम जानकारी के लिए सोशल मीडिया पर लॉगइन करते हैं क्योंकि यह त्वरित है.
बात बस इतनी सी है कि जो लोग अख़बारों/पत्रिकाओं में छप नहीं पा रहे थे उनके लिए ब्लॉग एक नई हवा का झोंका लाया, ब्लॉगिंग को उन्होंने स्प्रिंगबोर्ड की तरह प्रयोग किया और फिर वे यहां-वहां छपने लगे. उनकी मनोकामना पूर्ण हुई. दूसरे, आत्मश्लाघापीड़ितों( ) ने परस्पर-प्रशंसा के लिए अपने-अपने गुट बना लिए और मिल-बांट कर आपस में छप और पढ़ रहे हैं. यह स्टॉक एक्सचेंज की ऑटोकरेक्शन जैसा है. इन सबसे, बहुत ज्यादा कुछ अंतर नहीं आने वाला... ब्लॉगिंग की अपनी जगह है बरसाती पतंंगे आते-जाते ही रहते हैं"
वाणी गीत
"हिंदी ब्लोगिंग में जो गंभीर पाठक अथवा लिखने वाले थे , वे अब भी लिख पढ़ रहे हैं . कुछ लोग सिर्फ अपने को रौशनी में बनाये रखने के लिए जानबूझकर विचार विमर्श के नाम पर लडाई झगडे का माहौल बनाये रखते थे , कुछ अंग्रेजीदां ब्लॉग्स भी थे जिन्होंने जानबूझकर हिंदी ब्लॉगिंग को नुकसान पहुँचाने के लिए विषाक्त माहौल पैदा किया जिससे संवेदनशील ब्लॉगर्स ने अवश्य विदा ली , कुछेक गंभीर ब्लॉगर अपनी इतर जिम्मेदारियों के चलते दूर हुए तो कुछ अर्थ/नाम के लिए प्रिंट लेखन में उतरे .. मगर ब्लॉग पढने वाले बने हुए है , लिखने वाले भी!"
आशीष श्रीवास्तव
मेरे ब्लाग पर दैनिक ८०० लोग आते है, वह भी जब इसमे नया लेख महिने मे एक बार आता है.... ब्लाग जिवित है.... रचनाकार के आकड़े देख लिजीये .. वैसे आपने अपनी पढे जाने वाले ब्लागो की सूची कब नविनीकृत की थी ? नये ब्लाग आये है.... नये बेहतरीन लेखक....
शिखा वार्ष्णेय
जो लिखने वाले थे वे आज भी बने हुए हैं, और पढ़े भी जा रहे हैं. हाँ जिनका उद्देश्य कुछ और था वे छट गए हैं परन्तु इससे ब्लॉगिंग को कोई हानि नहीं हुई है. ऐसा लगता है कि ब्लॉग अब कोई लिखता पढता नहीं क्योंकि पुराने जिन लोगों के हम अभ्यस्त थे उनमें से कम दीखते हैं. परन्तु नए लिखने वाले भी आये हैं और पढ़ने वाले भी पठनीय ब्लॉग्स की रीडरशिप आज भी बनी हुई है.
सलिल वर्मा
दरसल जिस दुर्दिन की बात आपने कही है वो तो चिट्ठाजगत बन्द होने के बाद ही शुरू हो गया था... टॉप टेन की दौड़ ने बहुत दौड़ाया लोगों को... लेकिन जो उस दौड़ से बाहर ईमानदारी से लिख रहे थे, वे अब भी लिख रहे हैं और उन्हें इससे कोई अंतर नहीं पड़ा. हाँ फेसबुक को ही अब लोगों ने ब्लॉग का पर्याय बनाकर यहीं पर पोस्ट ठेलना शुरू कर दिया है! यहाँ भी वही होड़ लगी है!!ब्लॉग के सूनेपन का स्यापा करने वाले सारे लोग एक बार अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि क्या वे पढने का समय निकाल पाते हैं ब्लॉग पढने का?? चुँकि वो नहीं लिखते, इसलिये पढते भी नहीं! और पढते भी तब हैं जब अपना कुछ पोस्ट करना होता है!!तू मेरी खुजा मैं तेरी खुजाऊँ - यह मुहावरा ब्लॉग जगत की देन है.. लेकिन कितनों ने इसे झूठ साबित करने की ईमानदार कोशिश की है!!
रविशंकर श्रीवास्तव (रतलामी जी )
आपका कहना है कि ब्लॉगों की पठनीयता गिरी है - जबकि हुआ इसके उलट है. जब हमने शुुरुआत की थी तो दिन में 10 लोग पढ़ते थे - वह भी जब कुछ नया लिखो. अब तो गूगल सर्च से ही पुराना माल हजारों की संख्या में पढ़ा और उपयोग किया जा रहा है!
निशांत मिश्र
ब्लॉगिग को लेकर लोगों में जो जोश था वह नदारद है. एक नई क्रॉप आई है ब्लॉगिंग में जो इससे होने वाली संभावित कमाई को देखकर योजनाबद्ध तरीके से ब्लॉगिंग कर रही है. हिंदी में वे बहुत कम हैं.
सतीश चन्द्र सत्यार्थी
शुरू में हिन्दी ब्लोग्स पर व्यक्तिगत बातें ज्यादा होती थीं.. या फिर कविता कहानियाँ.. धीरे धीरे सब्जेक्ट स्पेसिफिक ब्लोग्स आ रहे हैं हिन्दी में, तकनीक, विज्ञान, साहित्य, राजनीति, फोटोग्राफी, कूकिंग वगैरह विषयों पर.. लोगों के काम की चीजें स्तरीय सामग्री के साथ हिन्दी में नेट पर आयेंगी तभी पढ़ने वाले भी गूगल से आयेंगे. जिन ब्लोगों पे ये सब है उनपर पाठक आते हैं और आते रहेंगे.
मनीष कुमार
अगर आपका content काम का है तो लोग उसे खोज खोज कर पढ़ने आते हैं। जो भी ब्लॉग शुरु से ऐसा करते आए हैं वो फल फूल रहे हैं। हाँ इस content तक पहुँचने के लिए हिंदी भाषी जनता के लिए अच्छे टूल्स उपलब्ध करने की आवश्यकता है। ब्लॉगरों ने पिछले कुछ सालों से इसके लिए सोशल मीडिया का प्रयोग किया है पर इंटरनेट पर उपलब्ध वेब एप्लीकेशन इसमें महत्त्वपूर्ण भुमिका निभा सकते हैं। हाल ही में भारतीय भाषाओं से जुड़े एक वेब एप्लीकेशन ने मेरे एक ब्लॉग को हिंदी में यात्रा संबंधी जानकारी के लिए समाचार पत्रों के साथ जगह दी। नतीज़े के तौर पर पाँच सौ से हजार प्रति पोस्ट से आंकड़ा कुछ दिनों में ही कई हजार तक पहुँच गया।
डॉ. मोनिका शर्मा
ब्लॉगिंग में नए लोग आ रहे हैं और पुराने भी लिख रहे हैं , पर निश्चित रूप से ब्लॉग्स की पाठक संख्या कम हुयी है | लेखन भी कम हुआ है | गिनती के ब्लॉगर्स हैं जो आज भी उसी तरह नियमित लेख लिख रहे हैं जैसे दो तीन साल पहले .....इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि ब्लॉग अभिव्यक्ति का प्रभावी माध्यम तो है पर इसका प्रभाव तभी दीखता है जब पाठक पोस्ट पढ़ने आते हैं | अपने विचार रखते हैं | किसी विषय पर सधी और सार्थक बहस होती है | नए दृष्टिकोण निकलकर सामने आते हैं | ब्लॉगिंग में अब ये नहीं हो रहा है, और इसी के चलते अभिव्यक्ति के इस माध्यम की गति में ठहराव आया है |
हरिवंश शर्मा
फेस बुक के माध्यम से ही हम जान पाए है ब्लॉग को। फेस बुक पर स्टेटस ओर की गई टिपणी महज चुटकुले सामान है,एक पानी का बुलबुला है। ब्लॉग पड़ने का एक अनूठा अपना सा आनंद है।
संतोष त्रिवेदी
जो चुक गए हैं, उनका जोश भी ठंडा हो गया है पर नए लोग खूब आ रहे हैं। कुछ पुरनिया अभी भी डटे हुए हैं।
अभिषेक मिश्रा
किसी विषय पर विस्तार से अभिव्यक्ति तो ब्लॉग पर ही प्रभावशाली है।
अनूप शुक्ल
मुझे नहीं लगता कि ब्लॉगिंग कि अभिव्यक्ति के किसी अन्य माध्यम से कोई खतरा है। फ़ेसबुक और ट्विटर से बिल्कुलै नहीं है। इन सबको ब्लॉगर अपने प्रचार के लिये प्रयोग करता है। इनसे काहे का खतरा जी!
ब्लॉगिंग आम आदमी की अभिव्यक्ति का सहज माध्यम है। आम आदमी इससे लगातार जुड़ रहा है। समय के साथ कुछ खास बन चुके लोगों के लिखने न लिखने से इसकी सेहत पर असर नहीं पड़ेगा। अपने सात साल के अनुभव में मैंने तमाम नये ब्लॉगरों को आते , उनको अच्छा , बहुत अच्छा लिखते और फ़िर लिखना बंद करते देखा है। लेकिन नये लोगों का आना और उनका अच्छा लिखने का सिलसिला बदस्तूर जारी है- पता लगते भले देर होती हो समुचित संकलक के अभाव में।जरूरी नहीं है फ़िर भी ये कहना चाहते हैं कि हम ब्लॉग, फ़ेसबुक और ट्विटर तीनों का उपयोग करते हैं। समय कम होता है तो फ़ेसबुक/ट्विटर का उपयोग करते हैं लेकिन जब भी मौका मिलता है दऊड़ के अपने ब्लॉग पर आते हैं पोस्ट लिखने के लिए।
रंजू भाटिया
मेरे जैसे कुछ लोग है ब्लॉग लिखते हैं पढ़ते हैं ,आदत में यह अब शुमार है , हिंदी ब्लॉग्स पहले भी इंग्लिश ब्लॉग्स की तुलना में अधिक तवज़्ज़ो नहीं पाते थे पर अभी घुम्मकड़ी के शौक में यह पता चला की आज कल फ्री लांस राइटर से अधिक ब्लॉग लिखने वालों को बुलाया जाता है। मैंने हैरान हो कर पूछा क्या उस में हिंदी ब्लॉगर भी है?तो जवाब हाँ मिला ,अब हिंदी ब्लॉगर वाकई उस में शामिल है तो यह एक उम्मीद की किरण है वैसे भी हिंदी के भी अच्छे दिन आने वाले हैं.
सतीश सक्सेना
मैंने तो पिछले एक वर्ष में पहले से अधिक पोस्ट लिखी हैं और नियमित रहा हूँ , आने वाले विजिटर भी बढे हैं।
चलते चलते मोनिका जैन
हम तो जब तक हैं हमारा ब्लॉग रहेगा और झाँकने वाले भी हमेशा रहेंगे
अब आप ही बताईये कि क्या फेसबुक पर गंभीर चर्चा नहीं हो सकती?