रविवार, 15 जून 2014

क्या पुरुष को बस यही चाहिए?


एक ही धरती एक ही कालावधि मगर लोगों की सोच और रुचियाँ अलग अलग देशों में कितनी भिन्न हैं और हैरत में डालने वाली हैं . क्या सही है और क्या गलत यह भी पूरी तरह सापेक्षिक है . आज फेसबुक दोस्त शालिनी श्रीवास्तव ने एक लिंक साझा किया . यह मामला है एक पश्चिमी दुनिया में पली बढ़ी युवती का जिन्हे सेक्स की लत  है और वे इसकी खुले आम जिक्र भी करती हैं -पब्लिक डोमेन में उन्होंने एक आर्टिकल प्रकाशित किया है. और अपने सेक्स अभिरुचियों और झुकावों का ईमानदारी से जिक्र भी किया है. इस लेख की चर्चा अन्यत्र जगहों पर इसकी बेबाकी और ईमानदार स्वीकृतियों के चलते है। आप को पूरा आलेख पढ़ने के लिए ऊपर के  अंग्रेजी लिंक पर जाना होगा मगर मैं हिन्दी प्रेमियों के लिए यहाँ कुछ उद्धरण देना चाहता हूँ.

क्रिस्टीन व्हेलेन  ४० वर्ष की मोटी महिला हैं। एक रिलेशन में थीं जो दस वर्षों चला मगर टूट गया। अब उन्हें सेक्स की सनक सवार हो गयी - अपने सर्किल के किसी मित्र, जान पहचान वाले  के साथ सोने को तैयार। और यह सिलसिला चल पड़ा. उन्होंने अपने अनुभवों को समेट कर यह प्रकाश डाला है कि आखिर पुरुष चाहते क्या हैं? और इससे भी बढ़कर कि उनकी खुद की क्या ख्वाहिश होती  है . उनके सेक्स संबंधियों में कई आयु वर्ग के लोग हैं. टीनएजर्स भी . उनकी स्वीकारोक्ति को कुछ आलोचकों ने वर्ष २०१४ का एक बड़ा खुलासा माना है.

मोहतरमा क्रिस्टीन व्हेलेन ने खुद के बारे में बताया है कि वे बहुत इंटेलिजेंट हैं ,मनोविनोदी हैं ,कभी कभार स्टाइलिश ,अपने बारे में बेफिक्र और वास्तव में बहुत अच्छी हैं। वे कहती हैं कि आकर्षण एक निजी मामला है और उनमें वह बहुत कुछ नहीं है जो बहुतों के लिए उन्हें आकर्षक बनाए। उनकी अपनी सेक्स अभिरुचियाँ /वितृष्णायें हैं और इसलिए और लोगों के समान व्यवहार से भी उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता ।क्रिस्टीन ने अपने एक दीवाने से पूछा कि उसे एक थुलथुल चालीस वर्षीय महिला में आखिर क्या आकर्षक लगा? जवाब था क्रिस्टीन तुम्हारा जबर्दस्त आत्मविश्वास ! कांफिडेंस इज सेक्सी! 

मैंने यह क्रिस्टीन कथा एक सनसनी पोस्ट के लिए ही नहीं की है . यह भारतीय समाज के सेक्स वर्जना को  सापेक्ष रखने और उस पर खुली चर्चा के लिए पोस्ट किया है मैंने . बहुत से लोग तुरंत क्रिस्टीन को वैश्या कह देगें -काल गर्ल कहेगें! मगर उसके निर्भीक आत्मकथन, स्पष्टवादिता को तवज्जो नहीं देगें .हमारा कल्चर इतनी स्वच्छंदता को अनुमति नहीं देता बल्कि सेक्स को पाप की सीमा तक यहाँ घृणित समझा जाता है -एक उचित स्थिति कहीं बीच में है . है ना ?

12 टिप्‍पणियां:

  1. व्यक्तिगत रूप से मैं नहीं सोचता कि आपकी ओस पोस्ट को उदारता से लिया जाएगा

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    1. हमारे देश में ओशो के साथ न्याय नहीं हुआ । सच बोलने की क़ीमत हर महापुरुष को चुक़ानी पडी है , चाहे वह सुकरात हो , गॉधी हो या ओशो ।

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  2. रोचक लेख! पूरा अनुवाद करके लाना था ब्लॉग में।

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  3. मैं आपसे सहमत हूँ !
    सेक्स को पाप समझने वालों पर दया आती है , यह इंसानों को सर्वाधिक आकर्षित करने वाला एवं मानसिक,शारीरिक तृप्ति के लिए बेहद आवश्यक विषय है !
    मगर हम, देसियों की मनोवृत्ति का क्या करें ! और दस बीस साल की उम्र है , हम इसी (दुर्दशा) दशा में खुश हैं बाकी भी कट जायेगी भाषण देते :)

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  4. हमारे देश मे यह एक वर्जित विषय है ! सेक्स डिमांड ( लिबीडो ) हर मनुष्य की अलग होती है , कहीं थोड़ी , कहीं ज्यादा ! कभी कभी यह एक रोग भी बन सकता है ! अंत मे यही कह सकते हैं कि इसकी कोई सार्वजनिक निर्धारित सीमा नहीं होती !

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  5. यहां सवाल पाप पुण्य या बे -बाकी का नहीं है -क्रिस्टीन के एक सेक्स मैनियॉक होने का है। शी इज़ ए सेक्स मैनियॉक। दैट्स आल !

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  6. क्रिस्टीन की साफगोई मुझे अच्छी लगी । मैंने महापुरुषों के विषय में पढा है , उनके जीवन में बहुत अचरज भरे प्रेम- सम्बन्ध थे , जिसे उन्होंने न केवल स्वीकार किया अपितु पूरे मनोयोग से निभाया भी । प्रेम बहुत ही स्वाभाविक और पावन प्रवृत्ति है । यह बलिदान मॉगती है , पर इसका निर्वाह बहुत खूबसूरती से किया जाना चाहिए । वस्तुतः जो पेट से उबर चुका है , वही इस रास्ते पर चल पाता है , यह तलवार की धार है , इस पर चलना बहुत हिम्मत का काम है , अधिकॉश प्रसंग में तो इज़हार ही नहीं हो पाता - इसीलिए तो कबीर ने कहा है - " सच्चा मोती तो मिले गहरे पानी पैठि । जो बौरा डूबन - डरा रहा किनारे बैठि ॥" [ कबीर के शुरु के दो - तीन शब्द मेरे अपने हैं , जिन्हें यह दोहा याद हो , कृपया सुधार दें ।]

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  7. शकुंतला जी आपके विचार अच्छे लगे -आप फेसबुक पर भी आईये!

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  8. जो खोज तिन पाइयां गहरे पानी पैठ !
    जो बौरा डूबन - डरा रहा किनारे बैठि ॥

    @शकुंतला शर्मा

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    1. सतीश जी ! धन्यवाद । अब मुझे भी याद आ गया ।" जिन खोजा तिन पाइयॉ....

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  9. कांफिडेंस भी सेक्सी हो सकता है , मुझे ताे पता ही न था...

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