इन दिनों एक अभियान गोरे रंग के बजाय सावलें रंग की महत्ता साबित करने को परवान पर है और इसे प्रचारित कर रही हैं अभिनेत्री नंदिता दास ... और यह अभियान आम भारतीयों की उस मानसिकता को लक्ष्य करके शुरू हुआ है जिसके चलते काली त्वचा को गोरा रंग देने के दावा करने वाली क्रीम का उद्योग यहाँ फल फूल रहा है .शाहरुख खान भी टी वी पर एक ऐसी ही क्रीम का प्रचार करते दिखते हैं . श्याम रंग सुन्दर है ( डार्क इज ब्यूटीफुल ) नाम का यह अभियान 2009 में शुरू हुआ था। इस अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है . नंदिता दस कटाक्ष करती हैं कि भारत में सावलें लोगों को गोरे लोगों से कमतर समझने की प्रवृत्ति आखिर क्यों है।
मुझे इस अभियान ने सौन्दर्यानुभूति की कुछ प्राचीन भारतीय मान्यताओं/उपमाओं की ओर ध्यान दिलाया . यहाँ 'श्यामा' षोडशी नायिका की बड़ी चर्चा हुयी है-श्यामा सानन्दं न करोति किमि। मुझे तो लगता है यहाँ भी श्यामा में सांवला रंग ही अर्थ लिए है . मगर विद्वानों में इसे लेकर बहुत मतभेद रहा है . कई यह भी मानते है यहाँ श्यामा का अर्थ बस सुन्दर युवती है . यह श्यामा शब्द सौन्दर्य के चतुर चितेरे महाकवि कालिदास के इस प्रसिद्ध श्लोक से साहित्य में चर्चा में आया जो 'मेघदूत' में वर्णित है -
तन्वी श्यामा शिखरि दशना पक्व बिम्बाधरोष्ठी
मध्ये क्षामा चकित हरिणी प्रेक्षणा निम्ननाभि।
श्रोणीभारादलसगमना स्तोकनम्रा स्तनाभ्यां
या तत्रा स्याद्युवतिविषये सृष्टिराद्येव धातुः।
मुझे इस श्लोक का पूरा अर्थ खुद ठीक से समझने के लिए और पाठकों की सुविधा के लिए ब्लॉग जगत के संस्कृत के विद्वानों /विदुषियों के मदद की दरकार है . (अर्थ जानने को उत्सुक यहाँ जाएँ यद्यपि यहाँ श्यामा शब्द अनुवादक गोल कर कर गए हैं!) जहाँ तक सहज बुद्धि की बात है यहाँ भी श्यामा का अर्थ पतली/छरहरी सावलीं सलोनी से है, मगर विद्वान असहमत हैं .जाने माने व्यंगकार और निबंधकार रवीन्द्रनाथ त्यागी ने अपनी एक कृति 'भाद्रपद की सांझ' में जो कुछ लिखा है आप खुद पढ़ लीजिये . ." मुझे मेघदूत की याद फिर सताने लगी जिसमें रूप का वर्णन कालिदास ने ‘‘तन्वी, श्यामा, शिखरदशना, पक्वबिम्बाधरोष्ठी’’ कहकर शुरू किया। इस पंक्ति में जो ‘श्यामा’ शब्द है उसका सही अर्थ जानने में मेरी आधी उम्र निकल गई। ‘श्यामा’ का प्रत्यक्ष अर्थ ‘साँवली’ या ‘कृष्णवर्णा, हो सकता था पर कालिदास जैसा रससिद्ध कवि अपनी प्रिय नायिका को उस रूप में देख सकता था? उसे क्या गौरवर्णा रमणियों की कोई कमी थी? मैंने राजा लक्ष्मणसिंह से लेकर बाबू श्यामसुंदर दास (बी.ए.) तक जितने भी बड़े-बड़े विद्वानों के अनुवाद हैं, वे सब देखे। सबमें से ‘श्यामा’ शब्द का सही अर्थ कोई भी पंडित नहीं जानता था। कुछ ने तो ‘श्यामा’ का अनुवाद ‘श्यामा’ ही किया है और कुछ मतिमान् लोगों ने अपने अनुवाद में श्यामा’ का जिक्र ही नहीं किया है। बहुत दिनों बाद मैत्रेयी देवी की टैगोर बाई फ़ायरसाइड नामक श्रेष्ठ पोथी पढ़ने को प्राप्त हुई और उसमें रवींद्रनाथ ठाकुर की वाणी पढ़ने को मिली जिसमें यह बताया गया है कि संस्कृत में ‘श्यामा का अर्थ उस स्त्री से है जिसका कि रंग उस, स्वर्ण की भाँति दमकता है ..."
लीजिये फिर बात उसी गौर वर्ण पर आकर रुक गई . भारत में गोरे काले का विवाद बहुत पुराना है . बावजूद इसके कि हमारे कितने ही आराध्य सावलें/काले हैं -राम और कृष्ण को ही देख लीजिये ... दोनों अच्छे खासे काले हैं . आर्यों का रंग गोरा है . मगर यह चर्चा हम फिलहाल मुल्तवी करते हैं क्योकि यह विषय स्वयं में एक अलग विशद चर्चा की मांग करता है. मगर आपतो बतायें आपको सौन्दर्य का कौन सा रंग पसंद है?