ब्लागर बोलता नहीं लिखता है,बोलता तो प्रखर मुखर वक्ता होता, वाचस्पति होता .मगर मंच और पंच का आदेश है तो यह ब्लॉगर सूत्रवत कुछ कहेगा ही.ब्लागिंग यानी चिट्ठाकारी को वैकल्पिक मीडिया ,नयी मीडिया और अब तो सोशल मीडिया के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में देखा जा रहा है .इसकी ख़ूबसूरती है इसका त्वरित और तत्क्षण दुतरफा संवाद और खतरा भी यहीं मंडरा रहा है . संवाद विनिमय का इतना सहज स्वरुप है जैसे दो जन या बहुजन आमने सामने बतिया रहे हों -भौगोलिक दूरियों को धता बताते हुए . यह अभिव्यक्ति के अधिकार का लोकतांत्रिकीकरण है -कहने का अधिकार अब किसी सामर्थ्यवान या मीडियाहाउसेज तक ही सीमित नहीं रह गया है -अब जबरा मारे रोये भी न दे वाला युग बीतने के कगार पर है ..अब दबे कुचले शोषित को भी खुद अपनी आवाज बुलंद करने की तकनीक वजूद में है ...
सोशल मीडिया की अनेक नेटवर्किंग साईट या फिर ब्लॉग अपने कंटेंट/ फीड की नेट वर्किंग के चलते एक प्रमुख सोशल मीडियम बन कर उभरा है . यहाँ कोई ख़ास प्रतिबन्ध नहीं है या बिल्कुल भी प्रतिबन्ध नहीं है .किन्तु यही खतरे की सुगबुगाहट है .....इसके दुरूपयोग की संभावनाएं हैं -साईबर आतंकवाद की भयावनी संभावनाएं हैं .जिसकी एक बानगी अभी हम बड़ी संख्या में शहरों से लोगों के असम पलायन के रूप में देख चुके हैं -एक दहशतनाक मंजर का हाल ना दैन्यं न पलायनम पर बयां हुआ है .....ऐसी अफवाहें और भी संगठित रूप से किसी भी मसले को लेकर फिर फैलाई जा सकती है -सारे देश में अफरा तफरी का माहौल बन सकता है -यह साईबर आतंकवाद की एक छोटी सी मिसाल है ,झलक है .हमें सावधान रहना है .
तकनीक के दुरूपयोग को भयावह दानव का मिथकीय रूप दिया जा सकता है ...इस अर्थ में तकनीक को हमेशा चेरी की ही भूमिका में रहने को नियमित करना होगा ,कभी भी स्वामिनी न बने वह ..(जेंडर सहिष्णु लोग इसे स्वामी या दास शब्द के रूप में कृपया गृहीत कर लें) ..और अब तो स्मार्ट प्रौद्योगिकी वाली इंटेलिजेंट मशीनें भी आ धमकने वाली हैं जिसके पास खुद अपने सोचने समझने की क्षमता होगी -आगे चल कर इनमें संवेदना भी आ टपकेगी ...तब तो इन पर नियंत्रण और भी मुश्किल होगा -दूरदर्शी विज्ञान कथाकारों ने ऐसी भयावहता को पहले ही भांप लिया था ...
इसाक आजिमोव ने इसलिए ही बुद्धिमान मशीनों पर लगाम कसने का जुगत लगाया था अपने
थ्री ला आफ रोबोटिक्स के जरिये -जिसका लुब्बे लुआब यह कि कोई मशीन मानवता को नुकसान नहीं पहुंचा सकती ..मनुष्य के आदेश का उल्लंघन भी कर सकती है अगर मानवता का नुकसान होता है तो ....वैज्ञानिक ऐसी युक्तियों पर काम कर रहे हैं जिससे मशीनें बुद्धिमान तो बनें मगर मनुष्यता की दुश्मन न बने ....ऐसे नियंत्रण जरुरी हैं खासकर आनेवाली बुद्धिमान मशीनों के लिए .मगर आज भी जो मशीनें हैं ,अंतर्जाल प्रौद्योगिकी की कई प्राविधि -सुविधाएं हैं उन पर भी एक विवेकपूर्ण नियंत्रण तो होना ही चाहिए -मगर यह हम पर ही निर्भर हैं -हम इसका सदुपयोग करते हैं या दुरूपयोग!
इसाक आजिमोव ने इसलिए ही बुद्धिमान मशीनों पर लगाम कसने का जुगत लगाया था अपने
थ्री ला आफ रोबोटिक्स के जरिये -जिसका लुब्बे लुआब यह कि कोई मशीन मानवता को नुकसान नहीं पहुंचा सकती ..मनुष्य के आदेश का उल्लंघन भी कर सकती है अगर मानवता का नुकसान होता है तो ....वैज्ञानिक ऐसी युक्तियों पर काम कर रहे हैं जिससे मशीनें बुद्धिमान तो बनें मगर मनुष्यता की दुश्मन न बने ....ऐसे नियंत्रण जरुरी हैं खासकर आनेवाली बुद्धिमान मशीनों के लिए .मगर आज भी जो मशीनें हैं ,अंतर्जाल प्रौद्योगिकी की कई प्राविधि -सुविधाएं हैं उन पर भी एक विवेकपूर्ण नियंत्रण तो होना ही चाहिए -मगर यह हम पर ही निर्भर हैं -हम इसका सदुपयोग करते हैं या दुरूपयोग!
आज ब्लॉग अपने शुरुआती स्वरुप यानी निजी अभिव्यक्ति से ऊपर आ सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ रहे हैं .आज कितने ही सामुदायिक ब्लॉग हैं और विषयाधारित ब्लॉग हैं -साहित्य ,संगीत ,निबंध, कविता ,इतिहास ,विज्ञान, तकनीक आदि आदि के रूप में ब्लागों का इन्द्रधनुषी सौन्दर्य निखार पा रहा है .....मानवीय अभिव्यक्ति उद्दाम उदात्त हो उठी है ....मानव सर्जना विविधता में मुखरित हो उठी है ... मगर एक बात मैं ख़ास तौर जोर देकर कहना चाहता हूँ -ब्लॉग मात्र अभिव्यक्ति के माध्यम भर नहीं रह गए हैं अब यह अभिव्यक्ति के एक खूबसूरत और सशक्त विधा के रूप में भी पहचाने जाने की दरख्वास्त भी करते हैं.
विधाओं के अपने पहचान के लक्षण होते हैं -जैसे कहानी का अंत अप्रत्याशित हो ,ख़बरों का शीर्षक अपनी और खींचता हो ,प्रेम कथाओं में प्रेम पसरा पड़ा हो ....सस्पेंस कथाओं में द्वैध भाव हो ,कहानी(शार्ट स्टोरी ) एक बैठक में खत्म होने जैसी हो ....आदि आदि ..तो ऐसे ही ब्लॉग लेखन की विशेषताओं की भी पहचान और इन्गिति होनी चाहिए --क्या हो ब्लॉग विधा के पहचान के लक्षण ? ? -हम इस पर चर्चा कर सकते हैं -जैसे ब्लॉग पोस्ट ज्यादा लम्बी न हों ,ब्रेविटी इज द सोल आफ विट ....गागर में सागर भरने की विधा हो ब्लॉग ...कुछ लोग लम्बी लम्बी कवितायें ,निबंध ब्लागों पर डाल रहे हैं -कितने लोग पढ़ते हैं? -इसलिए कितने ही नामधारी साहित्यकार यहाँ असफल हो रहे हैं क्योकि उनकी पुरानी हथौटी लम्बे लेखों विमर्शों की है ....एक बार शुरू करेगें तो कथ्य का समापन और क़यामत एक ही समय आये ऐसा जज्बा होता है उनका :-) माईक पकड़ेगें तो छोड़ेगें नहीं ..
ब्लॉग लेखन ऐसी ही कुशलता मांग करता है कि कम शब्दों में अपनी बात सामने रखें ....और यह अभ्यास से सम्भव है ..अनावश्यक विस्तार की गुंजाईश इस विधा में नहीं है .... लेखक की लेखकीय कुशलता का लिटमस टेस्ट है ब्लॉग विधा में लेखन ...ट्विटर तो १४० कैरेक्टर सीमा में ही अपनी बात कहने की इजाजत देता है ......किसी ने कहा था यहाँ तो मीडिया और मेसेज का भेद ही मिट गया है ..यहाँ मीडिया ही मेसेज है ...
ब्लॉग एक ही पोस्ट में लम्बे चौड़े अफ़साने सुनाने का माध्यम /विधा नहीं है ....हाँ जरुरी लगे तो श्रृंखलाबद्ध कर दीजिये पोस्ट को ...मुश्किल यही है ब्लागिंग के तकनीक के सिद्धहस्त जिनकी संख्या बहुत अधिक है यहाँ ,इसे बस माध्यम समझ बैठने की भूल कर बैठे हैं ....जबकि यह एक विधा के रूप में अपार पोटेंशियल लिए है हम इसकी अनदेखी कर रहे हैं .....आज ब्लागों के विधागत स्वरुप को निखारने का वक्त आ गया है ......हाऊ टू मेक अ ब्लॉग से कम जरुरी नहीं है यह जानना कि हाऊ टू राईट अ ब्लॉग? ....
विधाओं के अपने पहचान के लक्षण होते हैं -जैसे कहानी का अंत अप्रत्याशित हो ,ख़बरों का शीर्षक अपनी और खींचता हो ,प्रेम कथाओं में प्रेम पसरा पड़ा हो ....सस्पेंस कथाओं में द्वैध भाव हो ,कहानी(शार्ट स्टोरी ) एक बैठक में खत्म होने जैसी हो ....आदि आदि ..तो ऐसे ही ब्लॉग लेखन की विशेषताओं की भी पहचान और इन्गिति होनी चाहिए --क्या हो ब्लॉग विधा के पहचान के लक्षण ? ? -हम इस पर चर्चा कर सकते हैं -जैसे ब्लॉग पोस्ट ज्यादा लम्बी न हों ,ब्रेविटी इज द सोल आफ विट ....गागर में सागर भरने की विधा हो ब्लॉग ...कुछ लोग लम्बी लम्बी कवितायें ,निबंध ब्लागों पर डाल रहे हैं -कितने लोग पढ़ते हैं? -इसलिए कितने ही नामधारी साहित्यकार यहाँ असफल हो रहे हैं क्योकि उनकी पुरानी हथौटी लम्बे लेखों विमर्शों की है ....एक बार शुरू करेगें तो कथ्य का समापन और क़यामत एक ही समय आये ऐसा जज्बा होता है उनका :-) माईक पकड़ेगें तो छोड़ेगें नहीं ..
ब्लॉग लेखन ऐसी ही कुशलता मांग करता है कि कम शब्दों में अपनी बात सामने रखें ....और यह अभ्यास से सम्भव है ..अनावश्यक विस्तार की गुंजाईश इस विधा में नहीं है .... लेखक की लेखकीय कुशलता का लिटमस टेस्ट है ब्लॉग विधा में लेखन ...ट्विटर तो १४० कैरेक्टर सीमा में ही अपनी बात कहने की इजाजत देता है ......किसी ने कहा था यहाँ तो मीडिया और मेसेज का भेद ही मिट गया है ..यहाँ मीडिया ही मेसेज है ...
ब्लॉग एक ही पोस्ट में लम्बे चौड़े अफ़साने सुनाने का माध्यम /विधा नहीं है ....हाँ जरुरी लगे तो श्रृंखलाबद्ध कर दीजिये पोस्ट को ...मुश्किल यही है ब्लागिंग के तकनीक के सिद्धहस्त जिनकी संख्या बहुत अधिक है यहाँ ,इसे बस माध्यम समझ बैठने की भूल कर बैठे हैं ....जबकि यह एक विधा के रूप में अपार पोटेंशियल लिए है हम इसकी अनदेखी कर रहे हैं .....आज ब्लागों के विधागत स्वरुप को निखारने का वक्त आ गया है ......हाऊ टू मेक अ ब्लॉग से कम जरुरी नहीं है यह जानना कि हाऊ टू राईट अ ब्लॉग? ....
आपने मुझे बोलने का अवसर दिया इसलिए बहुत आभार! इस दूसरे अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन और परिकल्पना सम्मान के आयोजकों को बहुत बधाई और आभार कि उन्होंने ब्लागिंग के इस उत्सव का सिलसिला बनाए रखा है .
(अन्तर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मलेन ,लखनऊ ,२७ अगस्त में विषय प्रवर्तन)