पिछली लगातार तीन पोस्टें भारी गुजर गयीं ,,अब कुछ हल्कानी(तर्ज तूफानी) भी हो जाय .... :-)
डिजिटल युग के एक प्रेमी का उल्लेख यहाँ है जिसने अपनी माशूका को जो मेसेज भेजे उससे १२०० पृष्ठों का मजमून बना और प्रेम पत्रों की सिमट रही दुनिया की याद करा गया .अब प्रेम पत्र कहाँ लिखे जाते हैं?. अब तो प्रेम की अभिव्यक्ति टेक्स्ट मेसेजों में शोभित हो रही है -अब वे खुशबूदार रंग रंगीले प्रेम पृष्ठ तो गुजरे जमाने के अध्याय हो चुके-अब उनकी अमानत भी शायद कहीं सहेजी हों -महापुरुषों के प्रकाशित प्रेमपत्रों को छोड़कर ..मैंने अपने तो सहेजे हुए हैं मगर अब उन्हें माँ गंगा को समर्पित कर देने का वक्त आ गया है -मानव ज़िन्दगी के बहुत ही अन्तरंग पहलुओं को भी टेक्नोलोजी ने कितना बदल डाला है ....
आज फेसबुक ,ट्विटर जैसी कई अन्य सोशल साईटों ने प्रेम के इजहार से लेकर उसके फलने फूलने तक का सारा जिम्मा संभाल लिया है ...बस थोड़ी सजगता जरुरी है .शेप्स एंड मेंस मैगज़ीन के हाल के एक अंक में हुए सर्वे के मुताबिक़ चुने गए लोगों में से पैसठ फीसदी से अधिक लोगों ने प्रेम का इज़हार डिजिटल माध्यमों से किया .अब चुनाव के यहाँ ज्यादा मौके हैं . और रिजेक्शन के भी ...इंटरनेट अब लोगों की पोल पट्टी भी खोल रहा है .आप किसी के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं -मसलन उसकी रुचियों ,उसके नाक नक्श, उसके कार्य आदि तो यह सजरा इंटरनेट के खंगालने से मिल जाएगा -यहाँ रोमियो को ढूंढना किसी जूलियट के लिए मुश्किल नहीं है ....और अब सारी वसुधा आपके सामने हैं ....आनुवंशिकीविद भी कहते हैं जितना ही जीनों की दूरी होगी उनके सम्मिलन से जीनी विवधता उतनी ही बढ़ेगी और आगामी पीढी अन्तःप्रजनन आदि दोषों से उतनी ही मुक्त होगी -संकर ओज वाली देदीप्यमान संताने जन्म लेगीं ...
मैंने यह गुरु दीक्षा अपने एक चेले को क्या दे दी वह यहाँ की सुन्दरियों/भारतीय अंतर्जाल, ब्लॉग सुन्दरियों को तुरत फुरत छोड़ छाड़ एक अमेरिकन हूर को ही पटा लिया ..अच्छी बात हुयी दोनों की शादी हो गयी और अब वे साथ साथ अमेरिका में रह रहे हैं -जाति पांति का रूढिगत बंधन टूटा सो अलग .....हाँ यहाँ कथित निम्न सामाजिक स्तर का वरण अमेरिका के एक बड़े ऊंचे घराने की बाला ने कर लिया ....अभी तक वंशावली वृद्धि की खुशखबरी तो नहीं सुनायी दी ..नालायक का यही अभीष्ट यही होना था मगर पता नहीं कर क्या रहा है? दो साल तो बीत गए... अभी अपने अली भाई भी उस दंपत्ति को खोज बैठे तो मुझसे जोड़ी की वास्तविकता का शिनाख्त करा बैठे ..एक दिन अचानक उनका बहुत ही संक्षिप्त सन्देश मिला -यही है? साथ में एक लिंक ..मैंने रिफ्लेक्स एक्शन में प्रतिप्रश्न किया -"क्या यही है ?" ?उन्होंने कहा लिंक देखिए ..मैंने देखा और पुष्टि कर दी ..अब अली भाई यह शिनाख्त क्यों करा रहे थे वही जाने आज तक तो साफ़ साफ़ बताये नहीं ....समाजविद हैं ऐसे अध्ययन करना उनकी पेशागत जरुरत है .
तो आज प्रेम प्रणय के जितने अवसर अंतर्जाल दे रहा है पुराने सभी नई पंडित मुल्ला के दिन लदते भये हैं.प्रेम- प्रणय परिणय के मामले भी महज दो जिंदगियों से जुड़े हैं -पुराना जुमला है -मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ....यह कितना हास्यास्पद है कि जीवन संगी बनना दो जनों को है और उनके बजाय कितने और लोग रिश्ते ढूंढ रहे हैं -माँ बाप बिचारे हलकान हैं सो अलग ....अंतर्जाल युग के युवाओं को भी यह आजादी क्यों न हो? यहाँ अवसरों की भरमार है -रिश्ते ही रिश्ते कोई भी चुन लो ....मगर फाईनल चयन के पहले काफी जांच पड़ताल तो जरुरी है अन्यथा कितने ही कैसोनोवा और मियाँ रंगीले यहाँ घूम रहे हैं जिन्हें जीवन साथी ही नहीं बाकी सभी कुछ चाहिए ....
अंतर्जाल के प्रेम युग में आप सभी गैर विवाहितों का स्वागत है ....अब विवाहितों को भी ऐसा कोई निषेध नहीं ..वे मन -रंजन तो कर ही सकते हैं ....कोई मनाही थोड़े ही है बस मन मिलने की बात है :-)
मैं हमेशा चौंकता हूं जब प्रेम अभिव्यक्त होता है :)
जवाब देंहटाएंकोई एक फार्मूला नहीं सब गुज़रते हैं उस रहगुज़र से पर कुछ तो बाद में इतने भोले बन जाते हैं कि प्रेम की बात करने से ही उनके शादी शुदा जीवन का ब्रह्मचर्य टूटने लगता है , अपने ज़माने में कितना काला पीला किया भूल कर उपदेश देने बैठ जाते हैं :)
हां तो मैं कह रहा था कि उस जोड़े को देख कर अजीब सा लगा , कह नहीं सकता कि लड़की ने क्या देखा उसमें :)
एक पल को लगा कि कहीं यह विदेशी नागरिकता हथियाने का सायास उपक्रम तो नहीं :)
खैर ये प्रेम है बुरा नहीं लगता उसे देखकर , बस कभी कभी अजीब सा ज़रूर लगता है :)
अब यह राज भी बताइये कि उसके कितने बेनामी ईमेल आई.डी. / फेक प्रोफाइल्स हो सकते हैं ? कोई अनुमान ? :)
जय गुरुदेव ||
जवाब देंहटाएंकिसी का युग खत्म होता है और किसी का शुरू होता है। मार्च 2008 में ईमेल से तलाक़ लेकर पत्रकार सादिया देहलवी अपने डिजिटल युग का पटाक्षेप-ए-मुहब्बत कर चुकी थीं।
जवाब देंहटाएंमैं प्रेम-पत्र कभी लिख न पाया या कहिये मौका नसीब नहीं हुआ पर अभी भी अंतरजाल के प्रेम को या शादी डॉट कॉम से जुड़े रिश्ते को मैं उस प्रेम के स्तर का नहीं मानता,जिसका आपने ज़िक्र किया है.
जवाब देंहटाएं...दर-असल आज प्रेम को आधार बनाकर सम्बन्ध कम बन रहे हैं.कई जोड़े अपनी आर्थिक उन्नति को ध्यान में रखते हुए नजदीक आते है,पर जब ऐसे सम्मोहन टूटते हैं तो ववाह 'प्रेम' भी कहीं 'न्यायालय'के चक्कर लगाता है.
..रही बात,अपने चाहने वाले से इज़हार करने की तो जो मज़ा और सुख संकेतों से और हाव-भाव से आता है,एकदम से कह देने से नहीं.अगर प्यार दिल से है तो वह महसूसता है,उबलता कम है.दो प्यार करने वाले तो निगाहों से ही समझ जाते हैं.हाँ,ये बात और है कि अंतर्जालीय-प्यार में आपको लंबी-चौड़ी बताने की छूट होती है और यह काम दुतरफा होता है,मगर इस प्रेमालाप की असलियत तस्दीक करना मुश्किल है !
ववाह 'प्रेम' =वह 'प्रेम'
जवाब देंहटाएंकोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन!
जवाब देंहटाएं@ अब अली भाई यह शिनाख्त क्यों करा रहे थे वही जाने आज तक तो साफ़ साफ़ बताये नहीं ....समाजविद हैं ऐसे अध्ययन करना उनकी पेशागत जरुरत है .
जवाब देंहटाएंतब तो प्रोफ़ेसर अली बेहद खतरनाक साबित होंगे !
इनका अध्ययन कईयों के गले में ..
आपसी मधुर होते या बिगडते रिश्ते, तकरार अथवा परस्पर बे वजह लतियाना, सींग मारना, ब्लॉग जगत में आसानी से उपलब्ध है !
यकीनन अपनी तीखी नजरो से ताड़ते ( रिसर्च ) करते प्रो अली , को ऐसा बहुत कुछ पता होगा जिसकी हमें समझ नहीं !
'न निषेध श्रेणी' बढ़िया है:)
जवाब देंहटाएं'बस थोड़ी सजगता जरुरी है' ये कहकर फिर से एक पंगे का बीजारोपण कर रहे हैं आप:)
कौन यहाँ किसी से कम समझदार है? सारे तो ड्योढी बुद्धि वाले\वालियां हैं| शेष तूफ़ान\हलकान ऑफिस से लौटकर चैक करते हैं:))
@सतीश भाई,कुछ न पूछिए इनसे अब मुझे भी बहुत डर लगता है -मेरे कुछ अंतर्जालीय राज ये महोदय मुझे प्रोफेसनली सम्मोहित कर पूंछ चुके हैं -डरता हूँ कहीं उजागर करते भये तो क्या होगा?
जवाब देंहटाएं@स्मार्ट इंडियन,
जवाब देंहटाएंहाँ यहाँ दोनों सहज हैं -लव और रिजेक्शन...और संभावनाएं भी बहुत ....तूं नहीं और सही और नहीं और सही ... :-) बच्चन जी इसी को कह गए हैं -नीड़ का निर्माण फिर फिर ... :-)
हमारे देश की बात अलग है. यहाँ अब भी अधिकांश लोग अंतर्जाल की पहुँच से काफी दूर हैं. हाँ, ये ज़रूर है कि नयी पीढ़ी को मनोरंजन का काफी अच्छा माध्यम मिल गया है. वो रिश्ते सिर्फ इसीलिए बनाते हैं. शादी अधिकतर युवा अपने माँ-बाप की मर्ज़ी से ही करते हैं.
जवाब देंहटाएंमित्र , रिश्ते , प्रेम अंतरजाल पर आसानी से उपलब्ध हैं और आसान भी क्योंकि यहाँ रिश्ते जोड़ना , पीछा छुडाना दोनों ही आसान है .यहाँ जैसा दिखता हो , वास्तविकता में भी हो , कदाचित ही संभव है !
जवाब देंहटाएंविवाहितों की अविवाहित प्रोफाइल भी दिख जाती है यहाँ !
प्रेम कहने या लिखने की नहीं , करने या निभाने की भावना है , यह आज के युवाओं/युवतियों को समझना /समझाना थोडा मुश्किल है !
धीरे धीरे प्रेमी युगल और डरपोक होते जा रहे हैं...कोई उपाय?
जवाब देंहटाएं@नीड़ का निर्माण फिर फिर ... :-)
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
यह स्पीडी डिजिटल भावों में नीड़ भाव का अभाव ही है।
यह तो बीड़ की तरह है खुल जाय तो एक सौदा सम्पन्न, जिस समय जैसी नीड (अंग्रेजी वाली) जिस समय जैसी पीड़। बीड़ फेवर में खुल जाती है।
इसीलिए समय बदलते ही उपयोगिता भी बदल जाती है। इसलिए नीड़ नहीं, बीड़ स्थल सजते है, मार्केटिंग स्ट्रेट्जी बदलती है,शर्तों के स्वरूप बदलते है। मॉल में सभी तरह की दुकाने, नयनाभिराम तरीके से सजती है। आकर्षण जितना अधिक विकर्षण की सम्भावनाएं भी अधिक। आसानी बढ़ जाती है तो जिम्मेदारियां कठिन लगने लगती है।
डिजीटल युग में इजहार ज्यादा है प्रेम खो गया है.....
जवाब देंहटाएंInternet kisee maya jaalse kam nahee! Bada khatarnaak saabit ho sakta hai!
जवाब देंहटाएंसहमत क्षमा जी से ..खतरनाक हो सकता है ये खेल..और दुखदायी भी.
जवाब देंहटाएंअब जाति-पांति पूछे नहीं कोई
जवाब देंहटाएंप्रेम को भजे सो तब प्रेमी होई ...
इंटरनेट से शादी हो पर रहे उम्र भर प्यार।
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों को जब भी प्रेम की बातें करते हुए देखता हूँ तो पाण्डे जी की एक पोस्ट में पढ़ी ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं --- यदि जलते कोयले पर सफ़ेद राख जमा हो जाए तो कदापि यह भ्रम मत पालना की अन्दर आग नहीं होती . :)
जवाब देंहटाएंदेखते जाइए , आगे - आगे होता है क्या..
जवाब देंहटाएंसुंदर , विचारणीय पोस्ट.
मैं भी क्षमा जी से सहमत हूँ....
जवाब देंहटाएंधोखधड़ी के सिवा कुछ नहीं यहाँ.......
और सभी जानते हैं ये बात.
सादर
अनु
आज 26/07/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सब दिशाहीन भटक रहे हैं प्रेम का अर्थ ही गुम हो गया है शायद।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ... विचारात्मक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी बात सही है .पर ये प्यार है या आकर्षण ,ये तो करने वाले ही जाने .....पर धोखा होने की संभावना ही अधिक है
जवाब देंहटाएंकृत्रिम दुनिया के कृत्रिम लोग ..तो भावनाएँ कब वास्तविक हो सकती हैं.
जवाब देंहटाएंअधिकतर तो नाटकीय और मशीनी है डीजिटल युग में .भारत में अभी एक तबके तक ही इसकी पहुँच है.इसलिए आगे -आगे देखीये यह तकनीकी विकास अपना कैसा रूप दिखाता है .फोटोशोप/मोबाइल /यूट्यूब/ब्लॉग.फेसबुक..सही की जगह गलत इस्तमाल अधिक हो रहा है ..प्रेम के इस डिजिटलीकरण में फ़िल्में भी कम दोषी नहीं है.इंस्टेंट रीसल्ट का लालच भी कथित 'प्रेमियों को तकनिकी सहारा लेने पर मजबूर करता है.
अब तो ' ब्रेक -अप' का भी सेलिब्रेशन होता हैं नेट पर!
जैसे समूह के समूह दिशाहीन हो रहे हैं इस डिजिटल [इंस्टेंट ] प्रेम' के नाम पर और कुछ नहीं!
बहुत बढ़िया है
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No love in Digital age :)
जवाब देंहटाएंvery nice post...
ताज्जुब है लोग इतना हताश क्यों हैं :-)
जवाब देंहटाएंWhether love has really gone out of our lives?
प्रेम की अभिव्यक्ति अब ० और १ में होगी .या तो प्रेम है या नहीं है ,बीच का लफडा झिख झिख नहीं है .
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक पोस्ट सर बधाई |
जवाब देंहटाएंमेघदूत, कबूतर होते हुए... डिजिटल युग तक. प्यार का तत्व वही है. माध्यम भले जो हो !
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