गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

अथ नकलोपाख्यानम!


जी भ्रम न करें नकलोपाख्यानम ही है.... पुराणों का नलोपाख्यानम यानि नल दमयंती आख्यान नहीं..नकल का अख्यान. इन दिनों परीक्षाएं चल रही हैं तो सोचा आप सबसे कुछ इसी मामले पर बतियाया जाए। नक़ल और परीक्षाओं का तो बड़ा गाढ़ा रिश्ता है। नक़ल विहीन परीक्षा की सारी कवायद के बाद भी नक़ल रोके नहीं रुक रही है तो केवल इसलिए कि यह हमारी एक बड़ी पुरानी थाती हैकला है और भारतीयता की पहचान है। शिक्षा व्यवस्था में चाहे वह तोता रटंत विद्या हो या नक़ल विद्याइनकी जड़ें बहुत गहरी हैं। वेदपाठी ब्राह्मण वेद की ऋचायें रट रट कर ही याद करते थे। बाबा तुलसी भी कहते भये हैं- 'दादुर धुन चहुं दिशा सुनाईवेद पढ़हिं जिमि बटु समुदाई'... मतलब वर्षा ऋतु में मेंढक ऐसे टर्रा रहे हैं जैसे वेदपाठी ब्राह्मणों के समूह वेदपाठ कर रहे हों। शिक्षाशास्त्री और भाषा विज्ञानी लाख कहें कि रटना मानव  बुद्धि की संभावनाओं को कमतर करता हैहम नहीं मानते। यदि ऐसा होता तो वैदिक वांगमय हजारो साल तक अक्षुण न रहते। हमने अपनी इसी नैसर्गिक क्षमता से ही तो अपने वेदों और स्मृतियों को हजारो साल तक बचाए रखा। लिखने की कला और छापे खाने तो कितने बाद में आए। अब नक़ल की बात कर लीजिए। आज नक़ल पूरे विश्व में भारतीयता की पहचान मानी जाती है। कोई भी उपकरण पश्चिमी देश आविष्कृत करें, यहां उसका तर्जुमा तुरत फुरत तैयार... और नक़ल में भी अकल की दखल ऐसी कि हमारी कितनी ही 'जुगाड़ीतकनीकों को दुनियां में इनोवेशन के उदाहरण के तौर पर देखा जाता है।

इसलिए यह सर्वथा उचित लगता है कि नक़ल के प्रति हम अपने नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलें और अपनी इस पुरानी कला को परिमार्जित करें। इस कला को आगे बढ़ाने में हर पीढी के छात्रों का बड़ा योगदान रहा है। शायद ही कोई पढ़ा लिखा ऊंचे ओहदे पर बैठा मानुष यह दावे के साथ कह सके कि उसने जीवन में कभी नक़ल नहीं की। बड़े ओहदों के प्रशासकों  और राजनेताओं ने भी बिना रटंत विद्या या कभी कभार के नक़ल के जीवन में इतनी ऊंचाई शायद ही पाई होती। हां इनके नक़ल के तरीके जुदा जुदा भले ही रहे हों। मेरे एक मित्र हैं आज कल एक बड़े राजनेता हैं। हम साथ ही पढ़ते थे। उनका रटने या समझने में विश्वास जरा कम था इसलिए वे परीक्षा के समय पुर्जियां बनाते रहते थे और हम सब को हिकारत भरी नज़र से देखते थे। कहते, लगाओ घोटा ...जितनी देर में तुम लोग रट्टा मारकर एक दो सवाल याद करोगे, मैं पचीसों सवाल की पुर्जी बना चुका रहूंगा। बला की फुर्ती से वे महीन अक्षरों में नक़ल की पुर्जी बनाते थे और अंत में एक पुर्जी यह भी बनाते थे कि अमुक अमुक पुर्जी कहाँ कहाँ छुपाई जाएगी।

एक बार तो अपनी इसी सूझ के चलते वे भारी मुसीबत में पड़ गए। हिन्दी का साहित्य का प्रश्नपत्र था। उनका दुर्भाग्य की कक्ष निरीक्षक खुर्राट किस्म के निकल गए और उन्हें नक़ल करते धर दबोचा और दुर्भाग्य से वही पुर्जी उन्हें पहले ही दिख गयी जिसमें कुछ ऐसा मजमून बारीक अक्षरों में था। मीराबाई मोज़े में, तुलसीदास कांख में, कबीर दास लंगोट में, रसखान रीढ़ के नीचे... आदि आदि। जाहिर है कक्ष निरीक्षक के हाथ नक़ल साहित्य का खजाना ही मिल गया था। बेचारे अलग कक्ष में ले जाए गए जहां उनकी नंगाझोरी करनी पड़ी। अभी वे नक़ल शुरू नहीं कर पाए थे कि यह विपदा आन पड़ी थी। बहरहाल उनकी सारी नक़ल सामग्री जो जहां जहां से प्राप्त हुई जब्त कर ली गयी। गनीमत यही रही कि उन्हें परीक्षा देने की अनुमति दे दी गयी और ताज्जुब कि वे फिर भी पास हो गए थे। यह  राज तो उन्होंने बाद में उजागर किया कि वह पुर्जी तो उन्होंने जानबूझ कर निरीक्षक को थमा दी थी ताकि उनका ध्यान बंट जाए। असली वाली पुर्जी  तो कहीं और थी...

भला बताइए, ऐसी  तीक्ष्ण प्रतिभा वाले को नक़ल के नाम पर प्रताड़ित करना कहां तक उचित था और आज वे अपनी इसी प्रतिभा के बल पर राजनीति के  एक बड़े नाम हैं। उनसे ही जुड़े  एकाध और संस्मरण हैं। एक बार काला चश्मा लगाए एक कक्ष निरीक्षक जब पधारे तो हमारे प्रिय भावी राजनेता ने उन्हें इस बात पर कनविंस कर लिया कि वे बिना काले चश्मे के ही बला की पर्सनालिटी वाले लगते हैं। लिहाजा निरीक्षक साहब ने चश्मा निकाल कर सामने रख दिया। यह सब उन्होंने  इसलिए किया था कि उनके मुताबिक़ काले चश्मे  से यह पता नहीं लग पा रहा था कि वे देख किधर रहे हैं और नक़ल करने के लिहाज से यह एक असहज स्थति थी।
इनके कुछ क़िस्से  फिर कभी। आज का नक़ल आख्यान बस इतना ही।

यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय जी की इन दिनों चल रहे नक़ल विमर्श से प्रेरित है अतः उनका आभार! 

30 टिप्‍पणियां:

  1. आज से ५० साल पहले जापानी माल घटिया माना जाता था. नक़ल की गयी होती थी और सस्ती भी लकिन अब देखिये.

    जवाब देंहटाएं
  2. मस्त है नकलपुराण :)

    ब्लॉगिंग में तो इसकी महती आवश्यकता टिप्पणियां देते समय पड़ती है जब कुछ नहीं सूझता तो उपर लिखी टिप्पणीयों से कापी पेस्ट करने में क्या जाता है :)

    हां, पोस्ट लेखन में इस विधा का उपयोग करना चाहूं भी तो न हो पायगा :)

    वो क्या है कि मौलिकता वाली मौज नकलची पोस्ट में कदापि न मिलेगी ......और बिना मौज के पोस्ट लिखने से अच्छा है कि कुछ न लिखा जाय :)

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या बात है जो आज कल परीक्षाओं में नकल पर बहुत ज़ोर दिया जा रहा है ....

    नकल विवरण रोचक लगा

    जवाब देंहटाएं
  4. करत करत नकलाभ्यास जड़मति होत सुजान .. और ईंट घिस-घिस कर दर्पण..

    जवाब देंहटाएं
  5. सार्थक नक़ल पुराण ..
    नकल की महत्ता तो सर्वदा रही है .. आपके प्रतिपादन के बाद तो और ... मारे तो हम जैसे अध्यापक ही जायेंगे जिन्हें यह जानते हुए कि नक़ल रोक पाना असंभव है फिर भी नक़ल रोकने की टीम में रहना होगा और इस सार्वभौमिक सत्य को नकार कर नक़ल पकडना होगा.

    जवाब देंहटाएं
  6. FOR EXAMPLE.....

    मस्त है नकलपुराण :)

    ब्लॉगिंग में तो इसकी महती आवश्यकता टिप्पणियां देते समय पड़ती है जब कुछ नहीं सूझता तो उपर लिखी टिप्पणीयों से कापी पेस्ट
    करने में क्या जाता है :)

    हां, पोस्ट लेखन में इस विधा का उपयोग करना चाहूं भी तो न हो पायगा :)

    वो क्या है कि मौलिकता वाली मौज नकलची पोस्ट में कदापि न मिलेगी ......और बिना मौज के पोस्ट लिखने से अच्छा है कि कुछ न लिखा जाय :)

    sabhar satish pancham

    pranam.

    जवाब देंहटाएं
  7. पूरी कर दें सबकी इच्छा
    आओ खेलें परीक्षा परीक्षा

    नकल रोकने के चउचक तामझाम हो
    नकल कराने का भी पूरा इंतजाम हो

    एकलव्य औ गुरूद्रोण पर
    नित नित करें नई समीक्षा।

    आओ खेलें परीक्षा परीक्षा।

    जवाब देंहटाएं
  8. नक़ल का अपना अलग महत्त्व है.अक्ल की नकल अच्छी होती है पर परीक्षा वाली....नहीं.
    ...थोड़ी-बहुत मैंने भी करी है पर उसके दम पर कुछ बड़ा हासिल नहीं किया जा सकता.

    'दादुर धुनि चहुँ दिसा सुहाई..." शुद्ध पंक्ति है !

    जवाब देंहटाएं
  9. सच कहा आपने, जो सिद्ध कर दे कि उसने नकल की पर पकड़ा नहीं गया, उसे ऐसे ही पास कर देना चाहिये।

    जवाब देंहटाएं
  10. अरविन्द जी ,
    नक़ल एक महत्वपूर्ण विधा /शब्द /कार्यवाही है ! इसके बिना किसी मकान की रजिस्ट्री / किसी संपत्ति का अंतरण / किसी अदालत की कार्यवाही पूर्ण नहीं हो सकती और कोई बच्चा भी पैदा नहीं हो सकता ! फिर छोटी मोटी परीक्षा की क्या औकात है !

    प्राणीवैज्ञानिक बतौर आप भी जानते हैं कि इसका चलन पीढ़ियों की निरंतरता के लिए प्रकृति स्वयं करती आ रही है ! किसी धार्मिक व्यक्ति से पूछिए तो वो यही कहेगा कि ईश्वर से बड़ा नक्काल और कौन है उसने बस एक बार मनु और इला को बनाया और फिर जुट गया उसकी नक़ल बनाने में :)
    सारे जीव / पूरी सृष्टि / पूरा ब्रह्मांड इस विधा का अदभुत उदाहरण है यह आप भी जानते हैं :)

    जितने लार्ज स्केल पर नक़ल ( इसे प्रतिलिप्यांकन भी कह सकते हैं ) का काम कुदरत करती है वही क्षमता कुदरत ने हमें भी दी है ! मुझे समझ में नहीं आता कि घर घर में यही काम करने वाले लोग परीक्षा हाल के मामले में इतनी हाय तौबा क्यों कर रहे हैं :)

    आपने किसी आलेख से प्रभावित होकर यही किया प्रवीण जी ने भी किसी और से प्रभावित होकर यही किया होगा :)

    हम सब कुदरती तौर पर वो ही हैं जिसका मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  11. नक़ल पर शोध अब तो होकर रहेगा. पहले प्रवीण जी अब आप.

    जवाब देंहटाएं
  12. नकल का महत्व था , है और रहेगा। आपके लेख के बाद तो इसमें इति सिद्धम भी लग गया। :)

    जवाब देंहटाएं
  13. बिना अक्ल तो नकल भी नहीं की जा सकती पंडित जी । :)

    जवाब देंहटाएं
  14. सब कुछ सीखा हमनें ... न सीखी होशियारी ... :) ... वैसे नक़ल के लिए भी अकल चाहिए ...

    जवाब देंहटाएं
  15. ये भी मजेदार बात है ....नक़ल पर इतना शोध ....!!
    पर इसमें कोई शक नहीं कि नक़ल करने वाले भी मजेदार होते हैं और नक़ल के किस्से भी .....

    जवाब देंहटाएं
  16. बढ़िया प्रस्तुति के लिए शुक्रिया .
    बोलीवुड की फ़िल्में ,पटकथा ,संगीत सब उड़ाई गई होतीं हैं थोड़ी सी तरमीम और नक़ल एक नए मौलिक पैरहन में प्रस्तुत .नक़ल सब उन्नति को है मूल .दवाओं के मामले में ब्रान्दिद दवाओं की नकल होतीं हैं जान्रिक दवाएं .न रिसर्च न डिवलपमेंट रंग चोखा ही चोखा .असली नोट की नक़ल .एक दिन अकल की भी नक़ल तैयार कर लेंगे भारतीय .शोध प्रबंध तो ज्यादा तर नक़ल ही होतें हैं .ब्लॉगजगत भी नकलचियों से नहीं बचा है दूसरों की जाने माने नाम चीन लेखकों का माल नए लेबल के तहत छापा गया है .यह सब नक़ल की ही मेवा है .

    जवाब देंहटाएं
  17. अरे साहब नक़ल के सन्दर्भ हमशक्ल यानी क्लोन का ज़िक्र न किया जाए तो जीन -इंजिनीयरिंग की तौहीन होगी .एक दिन हम शक्ल हम अक्ल भी बना लिया जाएगा भारतीय सलामत रहें .

    जवाब देंहटाएं
  18. अरे साहब नक़ल के सन्दर्भ हमशक्ल यानी क्लोन का ज़िक्र न किया जाए तो जीन -इंजिनीयरिंग की तौहीन होगी .एक दिन हम शक्ल हम अक्ल भी बना लिया जाएगा भारतीय सलामत रहें .

    जवाब देंहटाएं
  19. बढ़िया रिपोर्ट काली .तितलियों की ऊर्जा को बनाए रखने की सौर विकिरण को अधिकतम रोके रखने की क्षमता ने ब्लेक बॉडी की याद ताज़ा कर दी जो सौर विकिरण को पूरा ज़ज्ब कर लेती है जिसका उच्चतर तापमान सदैव ही नियत बना रहता है .वैसे किसी इलाके में तितलियों कीट पतंगों का मिलना स्वस्थ पारि- तंत्र की इत्तला देता है .बढ़िया अपडेट लायें हैं आप .बस हमें तितलियों की चिंता है .अपनी ऊर्जा की भूख मिटाने के लिए कुछ भी करेगा मानव ?
    नैनो - टेक ही एक दिन रास्ता दिखायेगी .
    मोर पंख की सैट रंगी आभा हो या तितलियों के नयनाभिराम रंग सब नैनो टेक की ही प्रदस्र्हानी है भाई साहब .कुदरत के इन नायाब तोहफों के संग भी आदमी करेगा अब छेड़छाड़ .
    बढ़िया प्रस्तुति के लिए शुक्रिया .
    'काली तितलियों से बनेगी ऊर्जा ' कहाँ गई यह पोस्ट भाई साहब .अभी अभी तो थी .

    जवाब देंहटाएं





  20. आदरणीय अरविंद मिश्र जी
    नकल का ऐसा कोई अनुभव तो नहीं गुज़रा मेरे साथ
    हां, एक कवि सम्मेलन में कंठस्थ दो रचनाएं पढ़ने के बाद एक नई रचना पढ़ने के लिए जेब से कागज निकाला तो रटे रटाए चुटकले सुनाकर तगड़ा धंधा जमाये संचालक कवि ने सीधे आरोप लगा दिया कि राजेन्द्र जी तो नकल टीप रहे हैं …
    … बाकी पढ़ाई के दिनों में तो सहपाठी ही हमारी नकल करने के लिए गर्दन उचकाते थे…


    *महावीर जयंती* और *हनुमान जयंती*
    की शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  21. .


    … बाकी आप जीजा-साला -टीम का इरादा क्या है ? प्रवीण पाण्डेय जी की दो-दो प्रविष्टियां नकल को ले'कर पढ़ी है इन दो-तीन दिनों में :) … और अब आप !

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत बढ़िया ....
    अनुभव मजेदार हैं !
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  23. जब हम किसी अच्छे/अच्छी , विद्वान् /विदुषी , चमत्कारी व्यक्तित्व से मिलते हैं तो उसके जैसा ही हो जाना चाह्ते हैं ...कभी कुछ खास पढ़ रहे हों , फिल्म/नाटक /धारावाहिक देखा हो तो उनके चरित्रों का थोडा बहुत असर तो हम पर भी होता ही है ! नक़ल में ऐसी बुराई भी नहीं , यदि उसमे अपनी अकल का इस्तेमाल भी किया जाये !
    नक़ल के इलज़ाम ब्लॉग जगत के विज्ञान लेखकों पर भी कम नहीं है !!यकीन करना या नहीं करना प्रत्येक व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है !

    जवाब देंहटाएं
  24. मजे की बात है कि पुर्जे में लिखा जरूर आता है प्रश्नपत्र में :)

    जवाब देंहटाएं
  25. एक तजुर्बा अपना भी ठोंक देते हैं.. जब किसी ने बताया कि तीन घंटे के पेपर में बीस मिनट सिर्फ "कहाँ क्या है" के लिए होता है.. क्योंकि किताबों के पन्ने फाडते वक्त यह भी पता होना चाहिए कि पास्कल का नियम जीपीएम् में मिलेगा कि ईएनएम् में!!

    जवाब देंहटाएं
  26. Enjoying the Nakal series of Praveen Ji... and now yours was fun too :)

    जवाब देंहटाएं
  27. रोचक और बातें भी एकदम सटीक हैं ....प्रवीणजी की पोस्ट्स भी पढ़ रही हूँ...... इस विषय पर गहन विवेचन प्रस्तुत किया है आप दोनों ने

    जवाब देंहटाएं
  28. पूरा न्याय तंत्र नक़ल पर खडा है हर फैसले मामले की 'नकल' चाहिए .फाटो -स्टेट मशीन उसी का विकसित रूप है .हमारा सारा लेखन नक़ल पर टिका है उस नक़ल में हमारा अंश ज़रूर जुड़ जाता है जिसे हम कहतें हैं 'प्रस्तुति '.

    नक़ल और नक्कालों का दौर है यह .हसोड़ कार्यक्रमों में सारे नकलची भरे पड़ें हैं .

    प्लास्टिक सर्जन नैन नक्शों की नक़ल तैयार कर देतें हैं .चाहे ऐश्वर्य राय जैसी नाक बन वालो या करीना जैसी ठोड़ी .हर चीज़ की नक़ल चल रही है . नक़ल उतारना उदंडता नहीं किसी का हास परिहास करना नहीं कला है मनोरंजन है .नक़ल असल से २१ ठाह्रती है .क्योंकि नक़ल में थोड़ी असल भी होती है .असल में नक़ल नहीं होती ,होती भी है तो उसकी किस्म अलग होती है .और संकर चीज़ें उम्दा होतीं हैं .संगीत वर्ण -संकर रच रहा है उसे कहतें हैं री -मिक्स .

    देवता इंद्र इस कला में माहिर थे ,किसी का भी भेष धर सकते थे .धरवा सकते थे ऑर्डर पर .

    नक़ल को राष्ट्रीय संरक्षण मिलना चाहिए .कहीं यह विलुप्त प्राय क़ला न बनके रह जाए .

    जवाब देंहटाएं

यदि आपको लगता है कि आपको इस पोस्ट पर कुछ कहना है तो बहुमूल्य विचारों से अवश्य अवगत कराएं-आपकी प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत है !

मेरी ब्लॉग सूची

ब्लॉग आर्काइव